साहित्य और कला की विभिन्न विधाओं का संसार
काठगोदाम एक्सप्रेस। गोरखपुर से होते हुए हावड़ा जंक्शन से चल कर काठगोदाम को जाने वाली। जो कई वर्षों से प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आ रही है। धीरे-धीरे। हथिनी की तरह मथते हुए। हल्के पदचापों सहित। डेढ़-दो घंटे ...और पढ़िए
अतुल तिवारी | 17 जून 2023
मुक्तिबोध और ‘अँधेरे में’ पर मैनेजर पांडेय और अर्चना लार्क की बातचीत : अर्चना लार्क : ‘अँधेरे में’ कविता को अतीत और वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में किस तरह देखा जा सकता है? मैनेजर पांडेय : ‘अँधेरे ...और पढ़िए
अर्चना लार्क | 10 जून 2023
जिस तरह उर्दू के प्रसिद्ध कवि नासिर काज़मी शाइर होने के लिए शाइरी करने को ज़रूरी नहीं समझते, उसी तरह मेरे ख़याल से घुमक्कड़ होने के लिए घुमक्कड़ी करना ज़रूरी नहीं है। घुमक्कड़ की एक अपनी अलग पहचान होत ...और पढ़िए
असग़र वजाहत | 09 जून 2023
कुछ फ्रॉड वाक़ई रचनात्मक और अद्भुत होते हैं। लेखिका ली इसराइल का फ्रॉड कुछ ऐसा ही था। ली इसराइल 1970-80 के दशक की एक मशहूर बायोग्राफी राइटर थीं, लेकिन 1990 तक उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई। वह ‘राइटर्स ...और पढ़िए
मिथिलेश प्रियदर्शी | 06 जून 2023
[एक] कवि हृदय का वकील होता है। उसकी वकालत तर्क की झूठी बैसाखियों के सहारे नहीं वरन् सच्चे मनुष्यत्व की नैतिकता और निष्ठा की अदृश्य बहनेवाली अंत:सलिला पर चलती है जिसके होंठों पर सदा इंसानपरस्ती का ...और पढ़िए
गोबिंद प्रसाद | 02 जून 2023
मन के गहरे में बस डूब है। ऐसी डूब, जिसमें उत्तरजीविता एक प्रश्न की तरह सतह पर छूट जाए। सतह पर जीवन की संभावना भी गुंजलकों के हुलिए में। डूब का समय अपनी जगह पर नहीं है। चेतना से भटका हुआ बस देह लिए मै ...और पढ़िए
आदर्श भूषण | 01 जून 2023
एक एक दिन श्रीप्रकाश शुक्ल जी का फोन आया : ‘जवान होते हुए लड़के का क़बूलनामा’ संग्रह की प्रति तुरंत उपलब्ध करवाओ, ‘परिचय’ के अगले अंक में समीक्षा जानी है। मेरे पास अपने संग्रह की कोई कॉपी नहीं थ ...और पढ़िए
निशांत | 23 मई 2023
शोध-कार्य-क्षेत्र में सक्रिय जनों को प्राय: ‘सिनॉप्सिस कैसे बनाएँ’ इस समस्या से साक्षात्कार करना पड़ता है। यहाँ प्रस्तुत हैं इसके समाधान के रूप में कुछ बिंदु, कुछ सुझाव : • आप 2400-2500 शब्दों का ए ...और पढ़िए
रमाशंकर सिंह | 17 मई 2023
पूर्वकथन किसी फ़िल्म को देख अगर लिखने की तलब लगे तो मैं अमूमन उसे देखने के लगभग एक-दो दिन के भीतर ही उस पर लिख देती हूँ। जी हाँ! तलब!! पसंद वाले अधिकतर काम तलब से ही तो होते हैं। लेकिन ‘लेबर डे’ क ...और पढ़िए
सुदीप्ति | 17 मई 2023
सुबह कद्दू का एक फूल खिला था—उजला! लेकिन उसके उजलेपन में भी एक मटमैली आभा थी। वैसी ही जैसे मनुष्य में होती है। कितना भी उजला हो, उसमें कुछ मटमैलापन कुछ दाग़ रह ही जाते हैं। शायद यह मटमैलापन ही उसे मन ...और पढ़िए
उपासना | 17 मई 2023