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मौलाना जलालुद्दीन रूमी

1207 - 1273

मौलाना जलालुद्दीन रूमी की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

मैंने द्वैत के आवरण को अपने अंदर से निकाल दिया है। दोनों संसारों (नश्वर जगत् अविनाशी जगत्) को मैं एक ही जानता हूँ। मैं एक ही को ढूँढ़ता हूँ और उसी को जानता हूँ। वही एक मेरी दृष्टि में है और वही एक मेरे हृदय में है।

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वही आदि है और वही अंत है। वही प्रकट है और वही अदृश्य है। जो बाहर है और जो मेरे अंदर है, उसके अतिरिक्त और किसी को मैं नहीं जानता।

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