लाला लाजपत राय के उद्धरण

किसी भी धर्म-मत को आदर्श व निर्दोष बनने के लिए मानव-स्वभाव के उन सभी पक्षों के सामंजस्यपूर्ण विकास की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए, जो उसके भौतिक जीवन के आधार का निर्माण करते हैं, सामाजिक पक्ष की उपेक्षा तो वह कर ही नहीं सकता।
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