1905 - 1988
प्रेमचंदोत्तर युग के समादृत कथाकार, उपन्यासकार और निबंधकार। गद्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक।
पाप का सवाल एक बहुत बड़ा सवाल है। पाप समाप्त हो तो धर्म अनावश्यक हो जाता हैं। परम आस्तिक और परम नास्तिक दर्शन यही कहते हैं। आस्तिक कहता है कि तुम कुछ नहीं करते, सब परमेश्वर करता है। जो कुछ करता ही नहीं, कर सकता ही नहीं, वह पाप को करेगा। दूसरी और परम
एक बार की बात कहता हूँ। मित्र बाज़ार गए तो थे कोई एक मामूली चीज़ लेने, पर लौटे तो एकदम बहुत-से बंडल पास थे। मैंने कहा—यह क्या? बोले—यह जो साथ थीं। उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिमा का मैं क़ायल हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी
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