आकाश में उड़ते पक्षियों की गति को जाना जा सकता है परंतु गुप्त रूप से कार्य करते हुए अर्थ-सबंधी कार्यो पर नियुक्त अधिकारियों की गति को जानना संभव नहीं है।
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कर्मचारी उस अर्थ का थोड़ा भी स्वाद न लें, यह संभव नहीं।
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जैसा अन्न खाया जाता है, वैसी ही प्रजा होती है। दीपक अँधेरे को खाता है और काजल को उत्पन्न करता है।
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जिस प्रकार जल में रहती हुई मछलियाँ जल पीती हुई नहीं ज्ञात होतीं, उसी प्रकार अर्थ कार्यो पर नियुक्त हुए राज कर्मचारी धनों का अपहरण करते हुए ज्ञात नहीं होते।
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शास्त्र अनेक हैं, विद्याएँ भी बहुत हैं, समय थोड़ा है, विघ्न भी बहुत हैं। अतएव जैसे हंस जल-मिश्रित दूध में से दूध को ले लेता है, उसी प्रकार जो कुछ सारभूत हो, उसी को ग्रहण कर लेना चाहिए।