भारतेंदु हरिश्चंद्र के व्यंग्य
स्त्री सेवा पद्धति
इस पूजा से अश्रु जल ही पाद्य है, दीर्घ श्वास ही अर्घ्य है, आश्वासन ही आचमन है, मधुर भाषण ही मधुपर्क है, सुवर्णालंकार ही पुष्प हैं, धैर्य ही धूप है, दीनता ही दीपक है, चुप रहना ही चंदन है, और बनारसी साड़ी ही विल्वपत्र है, आयुरूपी आँगन में सौंदर्य तृष्णा
सबै जात गोपाल की
(एक पंडित और एक क्षत्री आते हैं।) क्षत्री—महाराज देखिए बड़ा अंधेर हो गया है कि ब्राह्मणों ने व्यवस्था दे दी कि कायस्थ भी क्षत्री हैं, कहिए अब कैसे काम चलैगा। पंडित—क्यों इसमें दोष क्या हुआ? ‘‘सबै जात गोपाल की’’ और फिर यह तो हिंदुओं का शास्त्र पंसारी
अंगरेज़ स्तोत्र
हे अंगरेज़! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम नानागुण विभूषित, सुन्दर कान्ति विशिष्ट, बहुत संपद हो; अतएव हे अंगरेज! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम हर्ता—शचुदल के; तुम कर्ता आईनादि के, तुम विधाता—नौकरियों के, अतएव हे अंगरेज़! हम तुमको प्रणाम करते हैं। तुम