मास्को पहुँचने के दूसरे ही दिन हम मास्को विश्वविद्यालय देखने गए। इसका निर्माण रूस के महान वैज्ञानिक लामानोज़ोव ने किया था। अत: उनके नाम पर इसे लामानोज़ोव विश्वविद्यालय भी कहते है। इसकी स्थापना सन् 1755 में हुई। यह उसका 204वाँ वर्ष था। बीच की मुख्य इमारत 236 मीटर ऊँची है, इसमें तेरह विषयों की पढ़ाई होती है—विज्ञान के छः और कला के सात विभाग है।
विश्वविद्यालय में 22000 विद्यार्थी शिक्षा पा रहे है। इनमें से 15500 दिन में विधिवत् पढ़ाई करते हैं। 2000 शाम के वर्गों में आते हैं। शेष 4500 विद्यार्थी पत्र-व्यवहार द्वारा अपनी पढ़ाई करते हैं। नियमित पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों में से 70 प्रतिशत को राज्य से छात्रवृत्तियाँ दी जाती है।
छात्रालयों में 6000 विद्यार्थी रहते हैं। छात्रालयों का शुल्क नाम-मात्र का है। शाम के वर्गों में जाने वाले अधिकांश विद्यार्थी दिन में काम करके अपनी रोज़ी कमाते है। उन्हें कोई छात्रवृत्ति नहीं दी जाती।
पर-व्यवहार का पाठ्यग्राम उन विद्यार्थियों के लिए है, जो प्रायः मास्को से बाहर रहते हैं। घर पर किया गया लेखनकार्य जाँच के लिए वे डाक द्वारा विश्वविद्यालय को भेजते रहते हैं। वर्ष में दो बार वहाँ परीक्षा के लिए आ जाते हैं।
परीक्षा में जो विद्यार्थी पहली बार में उत्तीर्ण नहीं होते, उनका नाम रजिस्टर से हटा दिया जाता है। उन्हें फिर दूसरी बार परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाता। कॉलेज की पढ़ाई साधारणतया साढ़े पाँच वर्ष की होती है। इसके बाद विद्यार्थी या तो आगे पढ़ सकते हैं या किसी काम में लग जाते हैं। विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए केवल अच्छे और योग्य विद्यार्थियों को ही इजाज़त मिलती है—वह भी रिक्त स्थानों के अनुसार। इसलिए विद्यार्थियों में बड़ी कड़ी होड़ रहती है। उन्हें ख़ूब मेहनत करनी पड़ती है। इस कारण शिक्षा का सामान्य स्तर बहुत ऊँचा रहता है। जिन्होंने किसी उद्योग में दो वर्ष काम कर लिया है, उनको प्राथमिकता दी जाती है।
विद्यार्थियो में 46 प्रतिशत लड़के है, शेष लड़कियाँ हैं। इनमें से 1500 विदेशी हैं। भारत सरकार से हाल ही में हुए एक समझौते के अनुसार कुछ भारतीय विद्यार्थी भी वहाँ आए हुए थे। विश्वविद्यालय का नया भवन बहुत ही भव्य और विशाल है। उसमें हज़ारों कमरे हैं। हमें कहा गया कि यदि हम हर कमरे में केवल एक मिनट भी रुके तो सारे विश्वविद्यालय के कमरों की सैर करने में हमें तीन महीने लग जाएँगे। युवक-समिति के लोगों ने पहले कहा था कि यदि हम हर कमरे में दस मिनट रुकें तो अपने पूरे जीवन में भी विश्वविद्यालय को पूरी तरह से नहीं देख सकते। ज़ाहिर है कि यह तो अत्युक्ति है, जो केवल बाहरवालों को प्रभावित करने के लिए की जाती होगी। इस विश्वविद्यालय में केवल पढ़ाई के लिए 150 हाल है। इसके अलावा व्यायामशालाएँ, रंगभूमि, नृत्यशालाएँ, संगीतगृह, खेल के मैदान वग़ैरह हैं सो अलग। सहायक विषय के रूप में खगोलशास्त्र भी पढ़ाया जाता है, जिसके लिए एक महान वेधशाला मास्को शहर के बाहर बनाई गई है। विश्वविद्यालय के अधिकारी भूगोल और भूगर्भविषयक शोध के लिए विश्वविद्यालय से 58 अभियान दूसरे देशों को भेजने की योजना बना रहे थे, क्योंकि वह अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिक (जियोफ़िज़िकल) वर्ष था।
विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर वर्गों में 1500 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। इनमें से 10 प्रतिशत विदेशी हैं। विश्वविद्यालय में 450 प्रोफ़ेसर, 600 लेक्चरर, 550 वैज्ञानिक और 1200 प्रयोगशाला में सहायक हैं। पुस्तकालय में दस लाख से अधिक पुस्तकें है।
सोवियत संघ की योजना है कि देश में 36 विश्वविद्यालय बनाए जाएँ, जिनसे सैकड़ों संस्थाएँ संबद्ध हो। इन विश्वविद्यालयों के स्नातकों को यहाँ से निकलने पर काम की कमी नहीं होती। सरकार उन्हें तुरंत काम देती है। आकड़ों से ज्ञात होता है कि परीक्षाओं में क़रीब 60 प्रतिशत विद्यार्थी सफल होते है। जो 10 प्रतिशत रह जाते है, उनका भविष्य तो अंधकारमय ही समझना चाहिए। उनके आगे बढ़ने की आशा बहुत कम होती है। किस विषय की पढ़ाई के लिए कितने विद्यार्थी लिए जाएँ, इसकी संख्या देश की आवश्यकता के अनुसार शिक्षा-मंत्रालय पहले से ही निश्चित कर देता है। इसके अलावा जिन्हें अधिक समय मिलता है, ऐसे विद्याथियों के लिए प्रत्येक कॉलेज में ख़ास-ख़ास विषयों के अलग वर्ग भी होते है। उन्हें हर तरह की सहूलियतें दी जाती हैं। हमारी यात्रा से पहले वर्ष मास्को विश्वविद्यालय का आनुमानिक व्यय-बजट 28 करोड़ रूबल था। इस वर्ष बजट को बढ़ाकर दस लाख रूबल प्रतिदिन के हिसाब से रखा गया है। विशेष शोध-कार्यों आदि के लिए विश्वविद्यालय को शासन की तरफ़ से तीस लाख रूबल की सहायता अलग से मिलती है।
विश्वविद्यालय की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक सरकारी आयोग विद्यार्थी की फिर परीक्षा लेता है और उसकी योग्यता के अनुरूप उसे काम देता है। इसमें उसकी निजी रुचि और वह कहाँ रहना पसंद करेगा, इसका भी ध्यान रखा जाता है। विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ने हमें ये सारी बातें बताई और कहा कि हम उनकी तथा उनके साथी प्रोफ़ेसर और विद्यार्थियों की शुभेच्छाएँ भारत के प्रोफ़ेसर तथा विद्यार्थियों तक पहुँचाएँ।
बातचीत के बाद हमें विश्वविद्यालय की मुख्य इमारत, सभा-भवन और विभिन्न विभाग दिखाए गए। मुख्य भवन की नवीं मंज़िल से पूरे शहर का विहंगम दृश्य हमने देखा। हमें विश्वविद्यालय का म्यूज़ियम, पुस्तकालय, स्वीमिंग-पूल, लेक्चर हाल, कसरत करने का स्थान आदि भी दिखाए गए।
विश्वविद्यालय को देखने के बाद हम छात्रालयों में गए। यहाँ पर हमे विद्यार्थी-संघ के मित्र मिले। उन्होंने हमारा स्वागत किया और भारत तथा उसके महान नेता श्री जवाहरलाल नेहरू और भारत के विद्याथियों के प्रति सोवियत संघ की शुभकामनाए प्रकट की। उन्होंने हमें बताया कि मास्को विश्वविद्यालय में विद्याथियों के बहुत से संगठन हैं, जैसे 'यंग कम्यूनिस्ट लीग' (कोमसोमोल), 'यंग ट्रेड यूनियनिस्ट्स', 'साइंटिफ़िक स्टूडेंट्स सोसाइटी', 'स्पोर्टस सोसाइटी' और 'टूरिस्ट्स सोसाइटी'। इनके अलावा साम्यवादी दल की भी एक शाखा है। कुछ विद्यार्थी इसके भी सदस्य है। 22000 विद्यार्थियों में से 16000 विद्यार्थी 'यंग कम्यूनिस्ट लीग' (कोमसोमोल) के सदस्य है। फ़ुरसत के समय के खेलों के प्रबंध के लिए प्रत्येक छात्रावास में विद्यार्थी कौंसिलें हैं। इसके अलावा विद्यार्थियों के क्लब भी है, जो नए, उदीयमान कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिए चित्रकला, नृत्य-संगीत, नाट्य आदि प्रवृत्तिया चलाते रहते हैं। हर कॉलेज की एक प्रबंधक-समिति होती है। इसमें कोमसोमोल के द्वारा चुना हुआ एक विद्यार्थी-प्रतिनिधि भी होता है। उसे मत देने का अधिकार है। दूसरी बातों के साथ-साथ छात्रवृत्तियाँ किसे दी जाए, इसका भी विचार यह प्रबंधक समिति करती है।
हमें बताया गया कि कोमसोमोल तो एक राजनैतिक संस्था है, परंतु ट्रेड यूनियनें राजनीतिक संस्थाएँ नहीं है। प्रोफ़ेसर, शिक्षक और बड़ी उम्र के विद्यार्थी ट्रेड यूनियनों के सदस्य हो सकते है। विद्यार्थी संघ ने हमारे सम्मान में एक छोटा-सा समारोह किया। इसमें प्रतिमा ने दो गीत गाए, जिनमें से एक टैगोर का भी था। विद्यार्थियों ने इन्हें बहुत पसंद किया। 'मीत्रो', अर्थात् ज़मीन के अंदर चलने वाली रेल मास्को का एक विशेष आकर्षण है। जब हम यह रेल देखने गए तो रेलवे के डायरेक्टर ने हमारा स्वागत किया और इसका सारा इतिहास सुनाया। सन् 1635 में इसके निर्माण का काम शुरु हुआ। अब इस 43 मील लंबी रेल पर 47 स्टेशन है। 10000 व्यक्ति इसमें काम करते है। हमें बताया गया कि ज़मीन के अंदर चलनेवाली इन गाड़यों में लगभग 27 लाख लोग प्रतिदिन यात्रा करते है। मास्को की जनसंख्या 50 लाख है, इसे देखते हुए मुझे ये आकड़े कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण लगे। मैंने उनसे पूछा कि किस आधार पर यह गणना उन्होंने की है। स्वयं वे लोग भी चक्कर में पड़ गए कि ये आकड़े किस आधार पर इकट्ठा किए गए हैं। जब मैंने अपना संदेह प्रकट किया तब स्वयं उन्होंने महसूस किया कि जो आकड़े उन्होंने हमें बताए थे, व्यवहार में उन्हें प्राप्त करना बहुत कठिन था। मैंने उनका ध्यान इस ओर खींचा कि यह हो सकता है कि एक व्यक्ति दिन में कई बार सफ़र करता है और गणना करते समय एक ही व्यक्ति की अलग-अलग यात्रा को विभिन्न व्यक्तियों की यात्राएँ मान लिया गया हो। इस ट्रेन में बैठकर हमने चारों तरफ़ चक्कर भी लगाया। हर बड़े स्टेशन पर हम उतरते, उसे अच्छी तरह देखते और फिर आगे जाने के लिए अगली गाड़ी में चढ़ जाते। हर तीन या चार मिनट में एक गाड़ी आती-जाती थी।
नि:संदेह मास्को की ज़मीन के अंदर चलने वाली रेल एक बहुत वसी चीज़ है। उसका संचालन भी बहुत संबंधित है। मुसाफ़िरों को ऊपर-नीचे लाने ले जाने में लिए चलती हुर्इ सीढ़ियाँ हैं। स्टेशनों पर बत्तियों से बहुत बार लटरते हैं, जिनसे अंदर का सारा भाग सदा जगमगाता रहता है। स्टेशन बहुत सुंदर दिखते हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश के फ़र्श संगमरमर के है। हमें कहा गया कि पहले तो संगमरमर केवल ज़ार और अमीरों के महलों के काम में आता था, किंतु अब वह सार्वजनिक उपयोग के स्थानों में लगाया जा रहा है। स्टेशनों पर बड़ी-बड़ी पेंटिंग और मोजेक से बनाए गए सुंदर-सुंदर चित्र बने हुए हैं। इस रेलवे की अपनी सामान्य उपयोगिता तो है ही, परंतु मुझे लगता है कि युद्ध-काल में हवाई हमले से बचाव के लिए भी यह बहुत अच्छी जगह हो सकती है। इसके स्टेशनों में से एक तो कोमसोमोल के युवकों ने बनाया है। अत: उसका नाम 'कोमसोमोल' रख दिया गया है।
उसी दिन दोपहर को 12:30 बजे हम 'इन्स्टिट्यूट आव ऑरिएंटल स्टडीज़' देखने के लिए गए। संस्था के अध्यक्ष ने अपने साथी अध्यापकों और विद्यार्थियों की तरफ़ से हमारा स्वागत किया। संस्था की प्रवृत्तियों और ख़ासतौर पर भारत से संबंधित प्रवृत्तियों का उन्होंने विस्तृत परिचय दिया। इन दिनों हमारे दो देशों के बीच मित्रता के संबंध होने के कारण भारत-विषयक अध्ययन पर यहाँ अधिक ध्यान दिया जा रहा है। बहुत-से रूसी विद्यार्थी हिंदी सीख रहे हैं। कुछ बंगला, उर्दू, मराठी, और मलयालम भी सीख रहे हैं। उन दिनों वहा रवींद्रनाथ ठाकुर, भारती, बंकिमचंद्र, प्रेमचंद, निराला आदि की कृतियों के रूसी अनुवाद हो रहे थे। पाठ्यक्रम में भारतीय दर्शनशास्त्र को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। भारतीय अर्थशास्त्र, ख़ासतौर पर भारत में विदेशी उद्योगों की स्थिति, भारत की कृषि-पद्धति में क्या-क्या सुधार और परिवर्तन हो रहे है और सार्वजनिक उद्योग वग़ैरह का अध्ययन भी गहराई से हो रहा है।
प्रोफ़ेसर गोलवर्ग ने भारत-रूस संबंधों का अच्छा अध्ययन किया है। इन दोनों देशों के इतिहास तथा अन्य पुराने दस्तावेज़ों के अध्ययन के आधार पर उन्होंने बताया है कि सत्रहवीं और अठारहवीं सदी से हमारे दोनों देशों के बीच मित्रता के संबंध चले आ रहे हैं। यूँ तो शोध-कार्य करने वालों ने यहाँ तक भी पता लगाया है कि ठेठ दसवीं सदी से हम दोनों देशों का पारंपरिक संबंध है। यह संस्था भारत का प्राचीन और आधुनिक इतिहास, जिसमें सन 1857 का इतिहास भी शामिल होगा, शीघ्र ही प्रकाशित करने जा रही है।
यहाँ पर एक बात मुझे बड़ी अजीब लगी। यद्यपि ये लोग यहाँ पर अध्ययन करते हैं, बड़े-बड़े प्रबंध लिखते है और भारत के प्रसिद्ध लेखकों, कवियों और राजनैतिक विचारकों पर समाचार-पत्र व पत्रिकाओं के लिए लेख वग़ैरह तैयार करते हैं, फिर भी उन्होंने महात्मा गाँधी का कहीं नामोल्लेख तक नहीं किया। उन्होंने तिलक और उनके विचारों का बड़े आदर के साथ वर्णन किया है। परंतु गाँधीजी के बारे में वे एकदम चुप रहे। भारत के जिन लोगों को स्वयं हम भी बहुत कम जानते है, उनके नामों का उल्लेख है, पर गाँधीजी का नाम कहीं नहीं।
जब मैं उन्हें धन्यवाद देने के लिए उठा तो मैंने उनका ध्यान इस तरफ़ खींचा। मैंने कहा, यदि आप भारत की वर्तमान पीढ़ी और ख़ासकर युवकों के दिलों को जानना चाहते है, तो जबतक आप गाधीजी का अध्ययन नहीं करेंगे तब तक आप इनको नहीं जान सकेगे। मैंने तो, चूँकि यह बात ध्यान में आई, इसलिए साफ़-साफ़ कह दी थी। यह उम्मीद नहीं थी कि वे इसका जवाब देंगे। परंतु उन पर मेरी बात का गहरा असर पड़ा। उनके अध्यक्ष तथा इस विभाग के विशेषज्ञ ने बड़े विस्तार से कहा कि उनकी सरकार और पार्टी। गाँधीजी के सिद्धांतों और विचारों से मतभेद रखती है। वे तिलक के विचारों को पसंद करते हैं। फिर भी मुझे बराबर अश्चर्य होता रहा कि इस प्रकार की विशुद्ध अध्ययन की संस्था में भी महज मतभेद के कारण गाँधीजी के विचारों और सिद्धांतों के अध्ययन की उपेक्षा क्यों की जा रही है।
प्रतिनिधि-मंडल के अन्य सदस्य टाल्सटाय की जायदाद 'यास्नाया पोल्याना' देखने भी गए। यह जगह मास्को से कोई 125 मील की दूरी पर है। दूसरे काम में व्यस्त रहने के कारण मैं नहीं जा पाया। शाम को लौटकर सदस्यों ने बताया कि ग्राम्य-प्रदेश की यह यात्रा बहुत आनंददायक रही। उन्हें ख़ुशी थी कि उन्हें टाल्सटाय का निवास स्थान देखने का अवसर मिला। टाल्सटाय को हमारे यहाँ बहुत आदर की दृष्टि से देखा जाता है। गाँधीजी के साथ उनके संबंध तथा गाँधीजी पर उनके प्रभाव को हम कैसे भूल सकते हैं। यास्नाया पोल्याना शहर की भीड़-भाद और व्यस्त जीवन से दूर शांत वातावरण में 'वर्च' के वृक्षों के झुरमुट के बीच स्थित है। मौसम दिनभर ख़राब रहा। बूदाबादी होती रही। टाल्सटाय म्यूज़ियम के डिप्टी डायरेक्टर और कॉमरेड एलेग्ज़ेंडर दिमियिव ने प्रतिनिधि-मंडल के सदस्यों का सौजन्य पूर्ण स्वागत किया। यह तमाम जायदाद टाल्सटाय के नाना की थी। टाल्सटाय ने पचास वर्ष से भी अधिक इसी स्थान में बिताए थे और उनकी अधिकतर श्रेष्ठ कृतिया यही लिखी गई थी। सन 1906 में गाँधीजी ने टाल्सटाय को जो पत्र लिखा था, वह मास्को म्यूज़ियम में सुरक्षित रखा हुआ है। टाल्सटाय का मकान अब भी उसी तरह जमा हुआ है जैसा टाल्सटाय के समय में था—फ़र्नीचर आदि सब उसी तरह रखे हुए है। निवास स्थान के पास ही एक म्यूज़ियम बनाया गया है, जिसमें टाल्सटाय की पुस्तकों की मूल पांडुलिपियाँ आदि सहेजकर रखी गई है।
एक दिन सुबह हम मास्को का प्रख्यात लेनिन स्टेडियम देखने गए। यह एक बहुत विशाल स्टेडियम है। अपने-आपमें यह एक स्वतंत्र संस्था ही है। उसके डायरेक्टर जनरल श्री नापासनीकोव ने हमारे साथ घूमकर सारा स्टेडियम दिखाया। एम्फी थियेटर की तर्ज़ की उसमें तिहत्तर क़तार हैं, जिनमें एक लाख से ऊपर आदमी बैठकर खेल देख सकते है। उसके अंदर जाने-आने के रास्ते इस ख़ूबी के साथ बनाए गए है कि इतने सारे लोग सिर्फ़ सात मिनट के अंदर बाहर चले जा सकते हैं। हमें बताया गया कि इस स्टेडियम के बनाने में लगभग 45 करोड़ रूबल लगे। मुख्य स्टेडियम के साथ बच्चों का एक छोटा स्टेडियम भी है, जिसमें केवल सात से सत्रह साल की उम्र के बच्चे खेलते है। इसमें प्रति दिन 2500 बच्चों को शारीरिक व्यायाम का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा एक छतदार स्टेडियम भी है, जिसे क्रीड़ा-महल (पैलेस ऑव स्पोर्ट्स) कहते है। इसमें 170 प्रेक्षक बैठ सकते है। बॉक्सिंग के मैच, वाद्यवृंद, नाटक आदि इसी में होते है। पड़ोस में ही एक तैरने का तालाब भी है, जिसके चारों ओर 13200 व्यक्ति बैठकर देख सकते है। प्रत्येक दिन इसमें लगभग 1500 मनुष्य तैरने का अभ्यास करने के लिए आते हैं।
यहाँ पर एक स्पोटर्स म्यूज़ियम अर्थात खेल-कूद के साधनों का संग्रहालय भी है। इसमें हमें पिछले युवकोत्सव की एक छोटी फ़िल्म दिखाई गई। इस संग्रहालय में एक आलमारी भारतीय चीज़ों की थी। रूस की वालीवाल और फुटबाल की टीमें भारत में आई थीं, तब उन्हें जो इनाम मिले थे, उनको इसमें संग्रहीत करके रखा गया है।
शाम के समय हम मास्को की उद्योग और कृषि-प्रदर्शनी देखने गए। यह एक स्थाई प्रदर्शनी है, जो विशाल इमारतों में सजाई गई है। कई बड़े-बड़े मंडप है। परंतु इनके अलावा हर राज्य ने अपने अपने स्थापत्य और कला के अनुरूप स्वतंत्र भवन भी बनाए हैं। उनमें अपने-अपने राज्य के उद्योगों की तथा खेती की चीज़ें सजाकर रक्खी है। यह पूरा क्षेत्र, उसके उद्यान, फव्वारे और सारी सजावट अत्यंत आकर्षक और मनोहर है। अगर इस सारे संग्रहालय को ध्यान से देखने लगे तो कई दिन लग जाए। हमारे पास तो कुछ ही घंटे थे। अत: हम सारे मंडपों में जल्दी-जल्दी घूम लिए और सारी चीज़ों पर एक दौड़ती हुई नज़र मात्र डाल ली। इनमें एक 'स्पुतनिक मंडप' भी था। उसकी तरफ़ हमारा ध्यान ख़ासतौर पर गया। इसमें रूस के स्पुतनिक का पूरे आकार का एक नमूना रखा था। विशेषज्ञों ने पहले और दूसरे स्पुतनिक की सारी विशेषताएँ हमें समझाई। ज्यार्जिया का मंडप मुख्यतया फलों और सब्ज़ियों से भरा था। इसी के पास एक काच का मकान था, जिसके अंदर ज्यार्जिया के फल सचमुच उगाए जाते हैं। एक और मंडप था, जिसमें शांति के लिए अणु-शक्ति का उपयोग बताया गया है। इसने भी हमारा ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया।
अगले दिन सुबह हम जगत-प्रसिद्ध क्रेमलिन देखने गए। अंदर पुराने ढंग के बहुत-से गिरजाघर है। क्रेमलिन के सामने इस्पात का बना एक बहुत बड़ा घंटा है, जिसका वज़न 200 टन से भी ऊपर होगा। 40 टन की एक बहुत बड़ी तोप भी है—'तोप, जो कभी दागी नहीं गई और घंटा, जो कभी बजाया नहीं गया।' घंटा वास्तव में ढले हुए इस्पात का एक बहुत बड़ा ढेर-सा है। क्रेमलिन पर ले जाते समय यह कुछ टूट गया था।
क्रेमलिन को देखकर स्वभावत हमारे दिल पर बड़ा असर हुआ। समस्त संसार को प्रभावित करने वाले कितने ही निर्णय वहाँ लिए गए हैं और अब भी लिए जा रहे हैं। दुर्भाग्य से मुख्य इमारतों की मरम्मत चल रही थी, जहाँ उनकी संसद की बैठकें होती हैं। हमारे रूसी मित्रों ने इन्हें हमें दिखाने की इजाज़त लेने की बहुत कोशिश की, परंतु वह नहीं मिल सकी। फाटक के पासवाला संग्रहालय भी हमें बताया गया। यहाँ पर उन्होंने ज़ारो की बहुत-सी चीज़ों का संग्रह करके रखा है। अब तो शोभा की ये क़ीमती चीज़ें महज़ ऐतिहासिक महत्व की होकर रह गई हैं। अनेक प्रकार के क़ीमती व सुंदर मुकुट, सिंहासन, ज़ेवरात, पहनने के बहुमूल्य वस्त्र, ज़िरह-बक्तर और रथ वग़ैरह यहाँ पर रक्खे है।
महान लेनिन-ग्रंथालय को भी हमने जल्दी में एक नज़र डालकर देख लिया। हमें बताया गया कि इस ग्रंथालय में 160 भाषाओं की दो करोड़ पुस्तकें है। इसमें बड़े-बड़े बीस हॉल हैं, पचासों वाचनालय हैं और छोटी-छोटी 'माइक्रो फ़िल्में' पढ़ने के यंत्रों के बीस सेट हैं। हम मास्को की आर्ट गैलेरी भी देखने गए। इसे भी अच्छी तरह देखने के लिए हमारे पास पूरा समय नहीं था। हमें कहा गया कि लेनिनग्राद का चित्र-संग्रहालय इससे भी बड़ा और प्रसिद्ध है और उसे देखने के लिए हमें अधिक समय मिल सकेगा। रूस के अन्य स्थानों की सैर करके जब हम वापस मास्को आए, तब एक दिन शाम को हम गोर्की पार्क में टहलने चले गए, जिसे यहाँ 'सांस्कृतिक उद्यान' कहा जाता है। मास्कवा नदी के किनारे यह एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके अंदर बहुत-से नाटकगृह, उपहारगृह, खेल के मैदान आदि है। यहाँ बहुत बड़ी संख्या में लोग आकर अपना फ़ुरसत का समय बिताते हैं।
मास्को से बारह घंटे की रेल-यात्रा के बाद सुबह नौ बजे हम ऐतिहासिक और सुंदर नगर लेनिनग्राद पहुँचे। स्थानीय युवक-समिति के सदस्यों ने स्टेशन पर हमारा स्वागत किया। सामान आदि होटल में जमाकर हम घूमने निकले। जिस होटल में हमें ठहराया गया था, वह कोई बहुत अच्छा होटल नहीं था। ऐसा लगा कि लेनिनग्राद में होटलों की बहुत कमी है, बल्कि बढिया होटल तो एक ही था, जो पूरी तरह भर चुका था। हमारे मेज़बानों ने वढिया होटल में हमारी व्यवस्था करने का भरपूर प्रयत्न किया, किंतु वे भी बेचारे क्या करते! लेनिनग्राद शहर मास्को की अपेक्षा अधिक सुंदर और अच्छा लगा। मास्को जितनी भीड़-भाड़ और व्यस्तता भी यहाँ नहीं थी। लोगों के काम करने और चलने-फिरने में यहाँ अधिक शांति थी। वे अधिक ख़ुशहाल और मैत्रीपूर्ण लगे। महिलाओं में नारी-सुलभ लावण्य व माधुर्य अपेक्षाकृत अधिक है, ऐसा भी हमें लगा। उनके चेहरे पर सहज स्वाभाविक कोमलता और व्यवहार में सौजन्य का अनुभव हमें हुआ। सुंदर चेहरे भी यहाँ कहीं-कहीं दिखाई दे जाते थे। लेनिनग्राद में हम जहाँ भी गए, लोग हमसे स्नेह और मित्रतापूर्वक मिले। वे जिस तरह हमारा स्वागत करते थे, वह हमें बहुत अच्छा लगा। नगर के चारों ओर अच्छी-ख़ासी हरियाली है। सैकड़ों बग़ीचे शहर में हैं। नदी के दोनों किनारों पर बसी बस्तिया काफ़ी विकसित हैं।
गत महायुद्ध में जर्मन सेनाए नगर के बहुत क़रीब तक आ गई थीं और शहर के चारों तरफ़ उन्होंने घेरा डाल दिया था। अत: लेनिनग्राद और उसके आसपास के इलाक़ों को बहुत विपदाएँ सहनी पड़ी। तमाम शहर युद्ध की यादों से भरा पड़ा है। 'मार्स' (युद्ध देवता) के बग़ीचे में सतत जलनेवाली अग्नि-ज्वाला है, जो युद्ध के शहीदों की स्मृति में जलाई गई थी। जार पीटर प्रथम के शीतकालीन प्रासाद के सामने एक 47 मीटर ऊँचा विजय-स्तंभ है, जिसे नेपोलियन के समय के रूसी-फ़्रेंच युद्ध में हुई रूसी विजय की स्मृति में बनाया गया था।
हमें लेनिनग्राद म्यूनिसिपल-भवन भी ले जाया गया। उपप्रधान, कॉमरेड स्त्रज्ल्कोवस्की ने हमारा स्वागत किया और लेनिनग्राद-सोवियत का पूरा विवरण दिया। स्थानीय नगर-प्रशासन के विभिन्न पहलुओं को उन्होंने विस्तार से हमें बताया। लेनिनग्राद-गणतंत्र की सामान्य-परिपद् में 551 सदस्य है, जिनमें से 345 पुरुष हैं और 206 महिलाएँ। ये सदस्य स्थानीय नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्येक 6000 लोगों के पीछे एक सदस्य होता है। सामान्य परिषद् की कार्यकारिणी समिति में 25 सदस्य होते है, जिनमें से दस 'प्रोसीडियम' के सदस्य होते है। सभापति व मंत्री के अतिरिक्त 'प्रीसीडियम' में आठ सदस्य ऐसे होते हैं, जो सभापति को रोज़मर्रा के कार्यों में सहायता देते हैं। सामान्य परिषद अपने सभापति और अन्य समितियों का चुनाव करती है। विभागाध्यक्ष चुने भी जा सकते है और, यदि आवश्यकता हो तो, उनकी पद-वृद्धि भी की जा सकती है। हमें बताया गया कि सामान्य परिषद् के 551 सदस्यों में से 263 सदस्य उच्च शिक्षा प्राप्त हैं, 47 सदस्य स्कूली-शिक्षा प्राप्त हैं और 210 सदस्य फ़ैक्टरियों आदि में काम करते हैं।
सामान्य परिषद् की बैठक वर्ष में तीन-चार बार होती है। बैठक में वे नगर का बजट, भवन-निर्माण का कार्यक्रम, शिक्षा आदि की नीति निर्धारित करते है। सामान्य परिषद् की 15 स्थायी उपसमितियाँ हैं। कार्यकारिणी समिति की बैठक प्रत्येक सोमवार को होती है। 'प्रीसीडियम' की बैठक प्रत्येक मंगलवार को होती है और आवश्यकता होने पर अधिक बैठकें भी हो सकती है। जिस वर्ष हम वहाँ थे, उस वर्ष उनका वार्षिक ख़र्च 32540 लाख रूबल का था, और आय 32450 लाख रूबल। आय का मुख्य साधन प्रौद्योगिक उत्पादन-कर है। प्रत्येक नागरिक अपनी आय का एक निश्चित हिस्सा आय-कर के रूप में देता है, जिसका कुछ भाग तो राज्य के पास चला जाता है और शेष नगर-निगम के पास।
कुल ख़र्च का लगभग 47 प्रतिशत निर्माण कार्यों में चला जाता है, जिसमें नहरें आदि बनाना और उनकी देखभाल भी है। लगभग इतनी ही राशि शिक्षा, सफ़ाई, स्वास्थ्य-सेवा, बग़ीचे, पुस्तकालय, थियेटर, संग्रहालय तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यों पर ख़र्च की जाती है। 2 प्रतिशत प्रशासन पर और 2 प्रतिशत विविध मदों पर ख़र्च किया जाता है। लेनिनग्नाद की जनसंख्या 32 लाख है। 17 वर्ष की उम्र से मताधिकार प्राप्त हो जाता है। स्थानीय पुलिस नगर-निगम के ही प्राधीन हैं। नगर-निगम के सदस्यों को निगम से कोई तनख़्वाह नहीं मिलती। जिन फ़ैक्टरियों अथवा संस्थानों का वे प्रतिनिधित्व करते है, वहाँ से उन्हें तनख़्वाह मिलती है। 'प्रीसीडियम' के दस सदस्यों को निगम तनख़्वाह देता है। शहर की उपसमितियो में 252 लोग और क्षेत्रीय उपसमितियों में 1062 लोग नौकरी करते हैं। हमें बताया गया कि निगम-सदस्यों को केवल साम्यवादी दल ही खड़ा नहीं करता, बल्कि उन्हें अलग-अलग संस्थाएँ अथवा जनता खड़ा करती है। साथ ही उन्होंने इस बात को भी माना कि चुनाव में प्रतिद्वंदी खड़ा करने की व्यवस्था तो है, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। सदस्य निर्विरोध ही चुनकर आ जाते हैं।
हमे बताया गया कि व्यक्तिगत आय पर 8 प्रतिशत तक आयकर वसूल किया जाता है। नौकरी-पेशा लोग 6 प्रतिशत आय-कर देते हैं। लेकिन हमें ये आकड़े संदेहजनक लगे, क्योंकि दूसरी जगह से हमें जो आँकड़े प्राप्त हुए, वे इनसे सर्वथा भिन्न थे। हमें लगा कि हमारे यहाँ नगर-निगम के सामने जो समस्याएँ और कार्यक्रम हैं, वे वहाँ भी हैं। अंतर केवल इतना है कि उनका बजट हमारे यहाँ के बजट से काफ़ी बड़ा है। मकान की समस्या तो उनके सामने भी उतनी ही विकट है जितनी हमारे यहाँ। जब हमने कॉमरेड स्त्रज्ल्कोवस्की से पूछा कि आपके आधीन कुल कितने आदमी काम करते है, तो उन्होंने मज़ाक में हमसे पूछा कि आपका मतलब शरारत करने वाले लोगों से ही है न। श्री स्त्रज्ल्कोवस्की लगभग दो वर्ष पूर्व भारत आए थे और भारत यात्रा के कई सुंदर संस्मरण उन्होंने हमें सुनाए।
हमने 'लेनिनग्राद युवक क्लब' भी देखा। क्लब के सभापति कामरेड झित्री गियानकिन ने हमारा स्वागत किया। संगीत-कार्यक्रम में जाने से पहले हमने उनके कुछ सक्रिय कार्यकर्ताओं के साथ कुछ देर मुलाक़ात की। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए उनके पास एक विशाल भवन है, जिसके एक हाल में एक हज़ार लोग आराम से बैठ सकते हैं। हमें लगा कि हम जो कार्यक्रम देखने गए थे, वह बहुत लोकप्रिय था, क्योंकि पूरा हाल दर्शकों से खचाखच भरा था और टिकट मिलना कठिन था। सब कलाकार पेशेवर कलाकार नहीं थे। उनमें से कुछ तो अध्यापक थे, कुछ मज़दूर और बढई थे। कलाकारों में एक रसोइया नौजवान भी था। अपने ख़ाली समय में ये लोग मन-बहलाव के लिए क्लब में आते हैं और इस तरह के कार्यक्रम तैयार करते हैं। इससे न केवल उन्हें ही लाभ होता है, बल्कि जनता का भी मन-बहलाव हो जाता है। जो कार्यक्रम हमने देखा वह वास्तव में बहुत सुंदर था और उसका संगीत ऊँचे दर्जे का था। उन्होंने कई देशों के गीत गाए, प्रत्येक देशा का गीत उसी देश की भाषा और तर्ज़ में गाया गया। ग्यारह-बारह वर्ष के एक बच्चे ने अत्यंत आत्म-विश्वास और शानदार तरीक़े से एक गीत सुनाया।
हम लोग तो केवल कार्यक्रम देखने गए थे, किंतु ऐन समय पर कार्यक्रम के प्रबंधकों ने सोचा कि उपस्थित दर्शकों से हमारा परिचय कराया जाए तो अच्छा हो। हमें मंच पर ले जाया गया और एक-एक करके हम सबका परिचय दर्शकों से कराया गया। यह जानने पर कि हम लोग भारतवर्ष से आए हैं, उपस्थित लोगों ने भारी करतल-ध्वनि से हमारा स्वागत किया। कोई लंबा भाषण देने का अवसर तो वह था नहीं। अतः जब मुझ से बोलने को कहा गया, तो स्नेहपूर्ण स्वागत के लिए आभार प्रदर्शन कर मैंने शिष्टमंडल की ओर से उन्हें ताजमहल की एक प्रतिकृति भेंट में दी और कहा, यह इमारत प्रेम की प्रतीक है। लेकिन वह प्रेम एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के लिए था। किंतु यह प्रतिकृति मैं भारत के नवयुवकों की ओर से लेनिनग्राद के नवयुवकों को प्यार और स्नेह के प्रतीक के रूप में भेंट कर रहा है। यह व्यक्ति-विशेष के प्रेम का नहीं, बल्कि सामूहिक प्रेम का प्रतीक हैं। उपस्थित लोगों को ये भाव बहुत पसंद आए। मेरे बोलने के बाद एक मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूँजता रहा।
जब हमने उन्हें ताजमहल की प्रतिकृति भेंट में दी तो प्रबंधकों को लगा कि हमें भी कुछ देना चाहिए। अत: शीघ्र ही उन्होंने टाल्स्टाय की एक मूर्ति मंगवाई और हमें मेंट में दी। इस प्रकार का हार्दिक और शानदार स्वागत वास्तव में हमारे लिए एक निराला अनुभव था। रात को लगभग 12-30 बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ और क्लब के सदस्य हमें हमारी बस तक पहुँचाने आए। लड़के-लड़कियों ने लोकप्रिय रूसी गाने गाए और हार्दिक विदाई दी। सोवियत संघ में आने के बाद आज पहली बार ही हमारा ऐसा स्वतःस्फूर्त व हृदयस्पर्शी स्वागत हुआ था। लोगों से मिलना-जुलना आदि तो इसके पहले भी चल रहा था। लेकिन वे मुलाक़ातें बहुत औपचारिक थी। यह प्रेम और स्नेह देखकर तो एक बार यह भूल गए कि हम विदेश में हैं।
लेनिनग्राद विश्वविद्यालय की 'आरियन्टल फ़ैकल्टी' देखने का भी अवसर मिला। यह विश्वविद्यालय 140 वर्ष पुराना है और रूस का दूसरा सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है। यहाँ 20000 से भी अधिक विद्यार्थी शिक्षा पाते है, जिनमें से 12000 नियमित कक्षाओं के विद्यार्थी है, 4000 शाम की कक्षाओं के और 3000 विद्यार्थी पत्र-व्यवहार के द्वारा शिक्षा पाते हैं। छात्रालय में 6000 विद्यार्थी रहते है। केवल पूर्वी यूरोपीय देशों के ही लगभग 800 विद्यार्थी यहाँ है। कई विद्यार्थी हिंदी सीखते हैं, कुछ तो बंगला और तमिल तक का अध्ययन कर रहे है। पुस्तकालय में 30 लाख से भी अधिक पुस्तकें है। दोपहर को हमने 'हरमिताज' देखा। यह रूस के पुराने ज़ारो का शीतकालीन प्रासाद था और अब यह संसार की सबसे बड़ी कलादीर्घाओ (आर्ट गैलेरी) में से एक है। लगभग 7500 कलाकृतियाँ यहाँ एकत्रित की गई हैं, जिनमें से कुछ लियोनार्डो दविची और रेम्ब्रा जैसे महान् कलाकारों की मौलिक कृतियाँ हैं। समय की कमी के कारण इस महान् कला-भवन को हम जल्दी-जल्दी में ही देख पाए।
शिष्टमंडल के अन्य सदस्य लेनिनग्राद का 'पायनियर-प्रासाद' देखने भी गए। यह बच्चों की प्रवृत्तियों का एक बड़ा केंद्र है तथा उस महल में स्थित है, जहाँ पहले सस्सि वश के लोग रहते थे। इसमें 300 कमरे हैं। एक पुस्तकालय भी है, जिसमें लगभग एक लाख पुस्तकें है। यहाँ बच्चे विभिन्न खेल खेल सकते हैं। बच्चों के चित्रों, खिलौनों और मॉडलों की प्रदर्शनी ने शिष्टमंडल के सदस्यों को विशेपरूप से आकर्षित किया। बाद में बच्चों ने स्वयं एक संगीत-कार्यक्रम प्रस्तुत किया। मैत्रीपूर्ण घरेलू वातावरण और बच्चों के सौजन्यपूर्ण व्यवहार ने हमारे साथियों को बहुत प्रभावित किया।
लेनिनग्राद से हवाई जहाज़ द्वारा हम क्रीमिया पहुँचे और क्रीमिया हवाई अड्डे से मोटरों द्वारा काले-समुद्र के तट पर स्थित याल्टा। याल्टा क्रीमिया का प्रसिद्ध स्वास्थ्य केंद्र है। एक दिन शाम को वनस्पति बाग़ (बोटेनिकल गार्डन) में गए। यह बग़ीचा ज़ारो के ज़माने का है। बहुत सुंदर है। देश-विदेश से पेड़-पौधे लाकर यहाँ लगाए गए हैं। इससे स्थानीय लोगों को कल्पना होती है कि भिन्न-भिन्न देशों में कैसे कैसे वृक्ष और वनस्पतियाँ होती हैं।
बग़ीचे में हमें लगभग तीस रूसी लड़कियों का झुंड मिला। ये लड़कियाँ भ्रमण के लिए लेनिनग्राद से आई थी। उनमें से एक लड़की ने, जो थोड़ी-बहुत अँग्रेज़ी जानती थी, हमारे एक साथी से मज़ाक़ में पूछा कि हमारे प्रतिनिधि-मंडल में केवल एक ही महिला क्यों है। हमारा साथी कुछ असमंजस में पड़ गया और उत्तर के लिए मेरी तरफ़ इशारा कर दिया। उस लड़की के प्रश्न का कोई सही उत्तर तो मेरे पास भी नही था। अत: उत्तर देने की अपेक्षा मैंने उसी से एक प्रश्न पूछा, तुम लोग इतनी लड़कियाँ हो, तुम्हारे साथ पुरुष कितने हैं? चूँकि उनके साथ एक भी पुरुष नहीं था, उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया और सब लोग मुक्त हँसी हँस पड़े। थोड़ी ही देर में हम सब आपस में ख़ूब घुलमिल गए। उन्होंने हमारे शिष्टमंडल के बारे में कई प्रश्न पूछे। प्रतिमा के बारे में भी उन्होंने जानना चाहा कि वह किसान है या फ़ैक्टरी में काम करने वाली। जब हमने उन्हें बताया कि वह गाना जानती है तो उन्होंने सड़क पर खड़े-खड़े ही उससे गाना सुनने की ज़िद की। बाद में उन्होंने भी एक रूसी गीत गाकर हमें सुनाया।
शाम को हमें एक शानदार जहाज़ में समुद्र की सैर कराई गई। इस जहाज़ का नाम 'रोसिया' था और इसमें 1500 यात्रियों के बैठने की व्यवस्था थी। यह थोड़ी देरे पहले ही बंदरगाह पर आया था। उसके बाद हम समुद्र के किनारे-किनारे सड़क पर टहलते हुए चले। दरअसल यह याल्टा की एकमात्र मुख्य सड़क है। सारी सड़क पर्यटकों से भरी पड़ी थी। कई रोगी भी थे, जो देश के विभिन्न भागों से स्वास्थ्य सुधार के लिए यहाँ आए हुए थे। शाम को यह सड़क लोगों से भर जाती है और काफ़ी भीड़-भाड़ हो जाती है। उस समय सवारियों का आवागमन बिलकुल बंद कर दिया जाता है, जिससे लोगों को चलने-फिरने में बहुत सुविधा हो जाती है। सड़क पर टहलते समय हमने डेढ़-दो वर्ष का एक बच्चा देखा, जो सड़क के बीचों बीच नन्ही-सी घोड़ागाड़ी हाँककर ले जा रहा था। हमारा एक साथी उसके पास गया और घोड़े की लगाम पकड़कर हमारे पास ले आया। बच्चा ज़रा भी नहीं रोया, उलटे उसने हाथ मिलाने के लिए अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ा दिया। उसके माता-पिता पास ही एक बेंच पर बैठे हुए थे। यह देखकर कि उनके नन्हे बच्चे ने नए-नए दोस्त बनाए हैं, वे भी हमारे पास आए और कुछ ही देर में हमारे मित्र बन गए।
रास्तों से गुज़रने वाले लोग तथा दूसरे भी हमारे साथ बहुत प्रेम से व्यवहार करते। उनको भारतीय अच्छे लगते हैं। वे हमारे प्रधानमंत्री की ख़ूब तारीफ़ करते। जहाँ-जहाँ भी हम गए, हमारा बड़े हर्ष के साथ स्वागत किया गया। उसमें कहीं कोई कृत्रिमता नहीं थी। भाषा की कठिनाई के बावजूद लोग हमसे बोलने और बातचीत करने को उत्सुक थे। अँग्रेज़ी जानने वाले बहुत कम थे, इसलिए दुभाषिए की सर्वत्र माँग रहती। जहाँ-कहीं कोई थोड़ी भी अँग्रेज़ी जाननेवाला मिल जाता, लोग उसे लेकर हमारे पास आते और उसके ज़रिए दुनियाभर के प्रश्न उत्सुकतापूर्वक हमसे पूछते। स्वदेश के अतिरिक्त उन्हें अपने शहर पर भी गर्व था। हर बात चीत के अंत में ''हमारा शहर आपको कैसा लगा? ज़रूर पूछ लिया जाता। लेनिनग्राद में भी लोग इसी तरह पूछते थे। रूस में हमने जबसे क़दम रखा, हमारा सारा समय बड़ा व्यस्त रहा। याल्टा में पहली बार हमें सही माने में आराम और चैन मिला। 'काले-समुद्र' के सुंदर तटों और पास-पड़ोस के स्वास्थ्यप्रद स्थानों पर हम ख़ूब मौज से घूमे। समुद्र के पानी का गहरा नीला रंग बड़ा मनमोहक लगता था। नाश्ता करके मोटर-बोट में हम मिशोब के लिए रवाना हुए। रास्ते में हमारी नाव कुछ स्टेशनों पर रुकी। हम किनारे किनारे ही जा रहे थे। तटों पर सैकड़ों लोग आनंद से घूमते हुए दिखाई दे रहे थे। कोई बालू पर लेटा है तो कोई सूर्य-स्नान कर रहा है, कोई नहा रहा है तो कोई नौका-विहार कर रहा है। लगभग सारे समुद्र-तट को लोगों के विश्राम-विहार के लायक़ सजा-बना दिया गया है और इसका लाभ उठाने के लिए यहाँ हज़ारों-लाखों की संख्या में लोग आते रहते हैं। जैसे ही हम मिशोव पहुँचे, हम सीधे समुद्र में कूद पड़े और ख़ूब मौज से स्नान किया, तैरे, कश्तियों पर धूमे और खेले। पानी काफ़ी ठंडा था, फिर भी बहुत मज़ा आया। बिल्कुल तर-ओ-ताज़ा हो गए।
भोजन के बाद हम फिर नए-नए स्थान और चीज़ें देखने के लिए निकल पड़े। ब्रेनसोसकी महल हमें बड़ा अच्छा लगा। इसमें यूरोप और आटोमन के स्थापत्यकला का मेल है। मुग़ल तरीक़े के गुंबद थे और खिड़कियाँ गोथिक ढंग की थी।
न्यानो और मिशानो हमारे साथ मास्को में ही आए थे। इनके अलावा दो स्थानीय मित्र, एरिक और नाज्रा भी इस तरफ़ की सारी यात्रा में हमारे साथ रहे। हमने यहाँ भी मित्र बनाना शुरु कर दिया था। नाजा एक व्यस्क और बड़ी मुस्तैद महिला है। इन्होंने सगी बड़ी बहन की भाँति हमारी देखभाल की। वह बड़ी चिंता के साथ हमारे लिए शाकाहारी भोजन बनवाती और भोजन में रोज़ नई-नई चीज़ें देती। जहाँ-जहाँ भी हमें जाना होता, वह हमसे पहले एक अलग कार में पहुँच जाती। जब हम पहुँचते तो सारी चीज़ें तरतीब से सजी-सजाई हमें मिलती। उनकी शलीनता और कार्यकुशलता ने हमें बड़ा प्रभावित किया।
जब हम नाव में मिशोव से लौटने लगे तो मुसाफ़िरो ने आकर हमें घेर लिया। उनके लिए और हमारे लिए भी वह एक उत्सव-सा बन गया। हम भी उनमें घुल-मिल गए और ख़ूब गाते-खेलते रहे। उनमें एक आठ वर्ष का बालक ब्लादिशिव शेको भी था। उसने हाव-भाव समेत एक कहानी सुनानी शुरू कर दी। वह बहुत ही अलमस्त प्रकृति का लड़का था। जो कहानी उसने सुनाई, उसका भाव यही था कि एक बार एक भेडिया एक गाँव में आया। लोग उसे मार डालना चाहते थे। वह एक बिल्ले के पास गया और पूछा कि गाँव में कोई ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है, जो उसकी जान बचाए? बिल्ले ने तीन-चार लोगों के नाम बताए। भेडिया बोला, नहीं, वे मेरी मदद नहीं करेंगे, क्योंकि मैंने उनके जानवर खा लिए थे। बिल्ले ने उत्तर दिया, जब तुमने सब लोगों के जानवर खा डाले, तो तुम्हारी जान कोन बचाएगा?
कहानी समाप्त होने के बाद जब मैंने उससे पूछा कि हमारे साथ भारत चलोगे, तो उसने कहा, हा-हा, क्यों नहीं। लेकिन थोड़े ही समय के लिए चलूँगा। और वह भी अकेला नहीं, अपने परिवार के साथ आऊँगा। मुझे अपना पता दे दीजिए। मैं आपको पत्र लिखूँगा। अपनी उम्र के हिसाब से उसकी बुद्धि बहुत प्रखर थी। उसके बोलने चालने और व्यवहार में काफ़ी आत्मविश्वास था। शाम को हमें अलूप का दिखाने ले जाया गया। यह वही प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ सन् 1945 में लड़ाई के अंत में स्तालिन, चर्चिल और रूजवेल्ट ने युद्ध और शांति के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे। हमें वह स्थान भी दिखाया गया जहाँ इनकी बैठकें हुई और जहाँ वे तीनों प्रमुख ठहरे थे। जिस इमारत में चर्चिल ठहरे थे, वह सुंदर है। सन् 1955 में जब प्रधानमंत्री नेहरू यहाँ आए थे, तब उन्हें भी इसी में ठहराया गया था। अब तो इसे सेनीटोरियम बना दिया गया है। समुद्र के किनारे चारों ओर पहाड़ियाँ है। अधिकतर इन पहाड़ियों की ढाल पर ही मकान बनाए जाते हैं। चारों तरफ़ पेड़-पौधे और हरियाली होने के कारण सबकुछ बहुत सुंदर लग रहा था। समुद्र के किनारे पर हमारे यहाँ जैसी रेत नहीं होती, बल्कि कंकड़-पत्थर होते है। दूसरे दिन सुबह नाश्ते के फ़ौरन बाद हम इपलसी पर्वत पर गए। इस पहाड़ की ऊँचाई 1253 मीटर है। पहाड़ की चोटी पर महायुद्ध में मारे गए शहीदों का स्मारक है। ऐसे पहाड़ों पर सड़क बनाना बहुत ही कठिन और ख़र्चीला है। इस क्षेत्र में एक किलोमीटर सड़क बनाने में लगभग 150 लाख रूबल ख़र्च आता है। प्रशासन ने सड़क बनाने वाले मज़दूरों के लिए तीन-चार मकान बनवा दिए है। हमें एक मकान भी दिखाया गया, जो माइवेरिया और टुड्रा से आने वाले पर्यटकों के लिए सुरक्षित है। रेलवे कर्मचारियों और खदान में काम करने वाले मज़दूरों के लिए भी अलग-अलग मकान सुरक्षित है।
शाम को हम युक्रेन सेनीटोरियम में गए। वहाँ के लोगों ने हमारा हार्दिक स्वागत किया और हमारी सुख-सुविधा का बहुत ख़याल रखा। सेनीटोरियम की देखभाल एक 72 वर्ष की वृद्धा करती है। हर माने में वह अद्भुत महिला थी। सब काम वह अपने हाथों से करती थी। हम जिस मेज़ पर खाना खाने वाले थे, उसे उसने स्वयं विशेष रूप में सजाया था। वह कमाल की मेज़बान थी। इतने आग्रह के साथ उसने हमें खाना खिलाया कि हमने अपनी सामान्य ख़ुराक से लगभग दुगुना खाना खाया। उस महिला का अपना निराला व्यक्तित्व था और पूरे सेनीटोरियम के लोग उसे 'माँ' कहकर बुलाते थे। वह वास्तव में उन सबकी माँ ही थी। भले ही कोई आदमी थोड़ी देर के लिए ही क्यों न आए, वापस जाते समय वह उनकी मधुर स्मृति लेकर ही जाएगा। उसके हृदर में प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्नेह और ममता थी।
पीमिया को अंतिम नमस्कार पर हम हवाई जहाज़ से शाम को युक्रेन की राजधानी पहुँचे। अगला दिन शहर के पर्यटन से ही शुरु हुआ। युद्ध के वीरों की मूर्तियाँ और अज्ञात योद्धाओं के स्मारक हमने देखे। शहर का चक्कर लगाकर हम एक टेकडी पर गए और वहाँ से एक तरफ़ कीव शहर का और दूसरी तरफ़ नीपर नदी का दृश्य देखा। उरीदोल गोर्की का मकबरा भी हमने देखा। मासकवा शहर की स्थापना उन्होंने ही की थी। ग्यारहवी सदी में निर्मित अन्य गिरजे तथा और भी कई स्थान हमने देखे। स्थानीय कोमसोमोल का दफ़्तर एक विशाल और सुंदर चार मंज़िले भवन में है। पहर में हमने बच्चों की रेल देखी। बाद में 4 : 30 बजे विशाल खुश्चोव स्टेडियम देखने गए। खुश्चोव इसी प्रदेश के मूल निवासी हैं। उनके सोवियत रूस के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही इस स्टेडियम का नाम उनके नाम पर रखा गया था। आज उत्सव का दिन था। पहली वार सोवियत युवक-दिवस मनाया जा रहा था। समारोह अत्यंत प्रभावोत्पादक था। बाद में सहृदयता और प्रेम से लोगों की भीड ने हमें इतनी बुरी तरह घेर लिया कि जिसको हम कभी नहीं भुला सकते।
दूसरे दिन सुबह हम छोटे बच्चों की कृपि-संस्था देखने गए। हमें इस संस्था के सभी विभागों में घुमाया गया और इसके कामकाज के बारे में सारी बातें विस्तारपूर्वक बताई गईं। बच्चे खेती के अनुसंधान का काम यहाँ सीख रहे थे। प्रत्यक्ष अनुभव और प्रयोग के लिए संस्था के पास एक खेत भी है।
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is train mein baithkar hamne charon taraf chakkar bhi lagaya har baDe station par hum utarte, use achchhi tarah dekhte, aur phir aage jane ke liye agli gaDi mein chaDh jate har teen ya chaar minat mein ek gaDi aati jati thi
nisandeh masco ki zamin ke andar chalne wali rail ek bahut wasi cheez hai uska sanchalan bhi bahut sampandhit hai musafiron ko upar nine lane le jane mein liye chalti huri siDhiyan hain steshnon par battiyon se bahut bar latarte hain, jinse andar ka sara bhag sada jagmagata rahta hai station bahut sundar dikhte hain, kyonki unmen se adhikansh ke farsh sangmarmar ke hai hamein kaha gaya ki pahle to sangmarmar kewal zar aur amiron ke mahlon ke kaam mein aata tha, kintu ab wo sarwajnik upyog ke asthanon mein lagaya ja raha hai steshnon par baDi baDi painting aur mojek se banaye gaye sundar sundar chitr bane hue hain is railway ki apni samany up yogita to hai hi, parantu mujhe lagta hai ki yudh kal mein hawai hamle se bachaw ke liye bhi ye bahut achchhi jagah ho sakti hai iske steshnon mein se ek to komsomol ke yuwkon ne banaya hai atah uska nam komsomol rakh diya gaya hai
usi din dopahar ko 12 30 baje hum instityut aaw ariyantal stDeez dekhne ke liye gaye sanstha ke adhyaksh ne apne sathi adhyapkon aur widyarthiyon ki taraf se hamara swagat kiya sanstha ki prwrittiyon aur khastaur par bharat se sambandhit prwrittiyon ka unhonne wistrit parichai diya in dinon hamare do deshon ke beech mitrata ke sambandh hone ke karan bharat wishayak adhyayan par yahan adhik dhyan diya ja raha hai bahut se rusi widyarthi hindi seekh rahe hain kuch bangla, urdu, marathi, aur malyalam bhi seekh rahe hain un dinon waha rawindrnath thakur, bharti, bankimchandr, premchand, nirala aadi ki kritiyon ke rusi anuwad ho rahe the pathyakram mein bharatiy darshanshastr ko bhi mahatw poorn sthan diya gaya hai bharatiy arthshastr, khastaur par bharat mein wideshi udyogon ki sthiti, bharat ki krishai paddhati mein kya kya sudhar aur pariwartan ho rahe hai aur sarwajnik udyog waghairah ka adhyayan bhi gahrai se ho raha hai
professor golwarg ne bharat roos sambandhon ka achchha adhyayan kiya hai in donon deshon ke itihas tatha any purane dastawezon ke adhyayan ke adhar par unhonne bataya hai ki satrahwin aur atharahwin sadi se hamare donon deshon ke beech mitrata ke sambandh chale aa rahe hain yoon to shodh kary karne walon ne yahan tak bhi pata lagaya hai ki theth daswin sadi se hum donon deshon ka paranprik sambandh hai ye sanstha bharat ka prachin aur adhunik itihas, jismen san 1857 ka itihas bhi shamil hoga, sheeghr hi prakashit karne ja rahi hai
yahan par ek baat mujhe baDi ajib lagi yadyapi ye log yahan par adhyayan karte hain, baDe baDe parbandh likhte hai aur bharat ke prasiddh lekhkon, kawiyon aur rajanaitik wicharkon par samachar patr wa patrikaon ke liye lekh waghairah taiyar karte hain, phir bhi unhonne mahatma gandhi ka kahin namollekh tak nahin kiya unhonne tilak aur unke wicharon ka baDe aadar ke sath warnan kiya hai parantu gandhiji ke bare mein we ekdam chup rahe bharat ke jin logon ko swayan hum bhi bahut kam jante hai, unke namon ka ullekh hai, par gandhiji ka nam kahin nahin
jab main unhen dhanyawad dene ke liye utha to mainne unka dhyan is taraf khincha mainne kaha, yadi aap bharat ki wartaman piDhi aur khaskar yuwkon ke dilon ko janna chahte hai, to jabtak aap gadhiji ka adhyayan nahin karenge tab tak aap inko nahin jaan sakege mainne to, chunki ye baat dhyan mein i, isliye saf saf kah di thi ye ummid nahin thi ki we iska jawab denge parantu un par meri baat ka gahra asar paDa unke adhyaksh tatha is wibhag ke wisheshaj~n ne baDe wistar se kaha ki unki sarkar aur party gandhiji ke siddhanton aur wicharon se matbhed rakhti hai we tilak ke wicharon ko pasand karte hain phir bhi mujhe barabar ashcharya hota raha ki is prakar ki wishuddh adhyayan ki sanstha mein bhi mahaj matbhed ke karan gandhiji ke wicharon aur siddhanton ke adhyayan ki upeksha kyon ki ja rahi hai
pratinidhi manDal ke any sadasy talstay ki jayadad yasnaya polyana dekhne bhi gaye ye jagah masco se koi 125 meel ki duri par hai dusre kaam mein wyast rahne ke karan main nahin ja paya sham ko lautkar sadasyon ne bataya ki gramy pardesh ki ye yatra bahut ananddayak rahi unhen khushi thi ki unhen talstay ka niwas sthan dekhne ka awsar mila talstay ko hamare yahan bahut aadar ki drishti se dekha jata hai gandhiji ke sath unke sambandh tatha gandhiji par unke prabhaw ko hum kaise bhool sakte hain yasnaya polyana shahr ki bheeD bhaD aur wyast jiwan se door shant watawarn mein warch ke wrikshon ke jhurmut ke beech sthit hai mausam dinbhar kharab raha budabadi hoti rahi talstay myuziyam ke deputy Dayarektar aur kamareD alegzenDar dimiyiw ne pratinidhi manDal ke sadasyon ka saujany poorn swagat kiya ye tamam jayadad talstay ke nana ki thi talstay ne pachas warsh se bhi adhik isi sthan mein bitaye the aur unki adhiktar shreshth kritiya yahi likhi gai thi san 1906 mein gandhiji ne talstay ko jo patr likha tha, wo masco myuziyam mein surakshait rakha hua hai talstay ka makan ab bhi usi tarah jama hua hai jaisa talstay ke samay mein tha—furniture aadi sab usi tarah rakhe hue hai, niwas sthan ke pas hi ek myuziyam banaya gaya hai, jismen talstay ki pustakon ki mool panDulipiya aadi sahejkar rakhi gai hai
ek din subah hum masco ka prakhyat lenin stadium dekhne gaye ye ek bahut wishal stadium hai apne apmen ye ek swatantr sanstha hi hai uske Dayarektar general shri napasnikow ne hamare sath ghumkar sara stadium dikhaya emphi thiyetar ki tarz ki usmen tihattar qatar hain, jinmen ek lakh se upar adami baithkar khel dekh sakte hai uske andar jane aane ke raste is khubi ke sath banaye gaye hai ki itne sare log sirf sat minat ke andar bahar chale ja sakte hain hamein bataya gaya ki is stadium ke banane mein lagbhag 45 karoD ruble lage
mukhy stadium ke sath bachchon ka ek chhota stadium bhi hai, jismen kewal sat se satrah sal ki umr ke bachche khelte hai ismen prati din 2500 bachchon ko sharirik wyayam ka prashikshan diya jata hai iske alawa ek chhatdar stadium bhi hai, jise kriDa mahl (pailes auw sports) kahte hai ismen 170 prekshak baith sakte hai boxing ke match, wadywrind, natk aadi isi mein hote hai paDos mein hi ek tairne ka talab bhi hai, jiske charon or 13200 wekti baithkar dekh sakte hai pratyek din ismen lagbhag 1500 manushya tairne ka abhyas karne ke liye aate hain
yahan par ek spotars myuziyam arthat khel kood ke sadhnon ka sangrahalay bhi hai ismen hamein pichhle yuwkotsaw ki ek chhoti film dikhai gai is sangrahalay mein ek almari bharatiy chizon ki thi roos ki waliwal aur phutbal ki teamen bharat mein i theen, tab unhen jo inam mile the, unko ismen sangrhit karke rakha gaya hai
sham ke samay hum masco ki udyog aur krishai pradarshani dekhne gaye ye ek sthayi pradarshani hai, jo wishal imaraton mein sajai gai hai kai baDe baDe manDap hai parantu inke alawa har rajy ne apne apne sthapaty aur kala ke anurup swatantr bhawan bhi banaye hain unmen apne apne rajy ke udyogon ki tatha kheti ki chizen sajakar rakkhi hai ye pura kshaetr, uske udyan, phawware aur sari sajawat atyant akarshak aur manohar hai agar is sare sangrahalay ko dhyan se dekhne lage to kai din lag jaye hamare pas to kuch hi ghante the atah hum sare manDpon mein jaldi jaldi ghoom liye aur sari chizon par ek dauDti hui nazar matr Dal li inmen ek sputnik manDap bhi tha uski taraf hamara dhyan khastaur par gaya ismen roos ke sputnik ka pure akar ka ek namuna rakha tha wisheshagyon ne pahle aur dusre sputnik ki sari wisheshtayen hamein samjhai jyarjiya ka manDap mukhyatya phalon aur sabziyon se bhara tha isi ke pas ek kach ka makan tha, jiske andar jyarjiya ke phal sachmuch ugaye jate hain ek aur manDap tha, jismen shanti ke liye anau shakti ka upyog bataya gaya hai isne bhi hamara dhyan wishesh roop se akarshait kiya
agle din subah hum jagat prasiddh kremlin dekhne gaye andar purane Dhang ke bahut se girjaghar hai kremlin ke samne ispat ka bana ek bahut baDa ghanta hai, jiska wazan 200 tan se bhi upar hoga 40 tan ki ek bahut baDi top bhi hai—top, jo kabhi dagi nahin gai aur ghanta, jo kabhi bajaya nahin gaya ghanta wastaw mein Dhale hue ispat ka ek bahut baDa Dher sa hai kremlin par le jate samay ye kuch toot gaya tha
kremlin ko dekhkar swbhawat hamare dil par baDa asar hua samast sansar ko prabhawit karne wale kitne hi nirnay wahan liye gaye hain aur ab bhi liye ja rahe hain durbhagy se mukhy imaraton ki marammat chal rahi thi, jahan unki sansad ki baithken hoti hain hamare rusi mitron ne inhen hamein dikhane ki ijazat lene ki bahut koshish ki, parantu wo nahin mil saki
phatak ke paswala sangrahalay bhi hamein bataya gaya yahan par unhonne zaro ki bahut si chizon ka sangrah karke rakha hai ab to shobha ki ye qimti chizen mahz aitihasik mahatw ki hokar rah gai hain anek prakar ke qimti wa sundar mukut, sinhasan, zewrat, pahanne ke bahumuly wastra, jirah bakhtar aur rath waghairah yahan par rakkhe hai
mahan lenin granthalay ko bhi hamne jaldi mein ek nazar Dalkar dekh liya hamein bataya gaya ki is granthalay mein 160 bhashaon ki do karoD pustken hai ismen baDe baDe bees haal hain, pachason wachanalay hain aur chhoti chhoti micro filmen paDhne ke yantron ke bees set hain
hum masco ki art gaileri bhi dekhne gaye ise bhi achchhi tarah dekhne ke liye hamare pas pura samay nahin tha hamein kaha gaya ki leninagrad ka chitr sangrhalay isse bhi baDa aur prasiddh hai aur use dekhne ke liye hamein adhik samay mil sakega
roos ke any asthanon ki sair karke jab hum wapas masco aaye, tab ek din sham ko hum gaurki park mein tahalne chale gaye, jise yahan sanskritik udyan kaha jata hai maskwa nadi ke kinare ye ek wishal kshaetr mein phaila hua hai iske andar bahut se natakgrih, uphargrih, khel ke maidan aadi hai yahan bahut baDi sankhya mein log aakar apna fursat ka samay bitate hain
masco se barah ghante ki rail yatra ke baad subah nau baje hum aitihasik aur sundar nagar leninagrad pahunche asthaniya yuwak samiti ke sadasyon ne station par hamara swagat kiya saman aadi hotel mein jamakar hum dhumne nikle jis hotel mein hamein thahraya gaya tha, wo koi bahut achchha hotel nahin tha aisa laga ki leninagrad mein hotalon ki bahut kami hai, balki baDhiya hotel to ek hi tha, jo puri tarah bhar chuka tha hamare mezbanon ne waDhiya hotel mein hamari wyawastha karne ka bharpur prayatn kiya, kintu we bhi bechare kya karte!
leninagrad shahr masco ki apeksha adhik sundar aur achchha laga masco jitni bheeD bhaD aur wyastata bhi yahan nahin thi logon ke kaam karne aur chalne phirne mein yahan adhik shanti thi we adhik khushhal aur maitripurn lage mahilaon mein nari sulabh lawany wa madhurya apekshakrit adhik hai, aisa bhi hamein laga unke chehre par sahj swabhawik komalta aur wywahar mein saujany ka anubhaw hamein hua sundar chehre bhi yahan kahin kahin dikhai de jate the leninagrad mein hum jahan bhi gaye, log hamse sneh aur mitrtapurwak mile we jis tarah hamara swagat karte the, wo hamein bahut achchha laga
nagar ke charon or achchhi khasi hariyali hai saikDon baghiche shahr mein hain nadi ke donon kinaron par basi bastiya kafi wiksit hain
gat mahayuddh mein german senaye nagar ke bahut qarib tak aa gai theen aur shahr ke charon taraf unhonne ghera Dal diya tha atah leninagrad aur uske asapas ke ilaqon ko bahut wipdayen sahni paDi tamam shahr yudh ki yadgaron se bhara paDa hai mars (yudh dewta) ke baghiche mein satat jalnewali agni jwala hai, jo yudh ke shahidon ki smriti mein jalai gai thi jar pitar pratham ke shitakalin prasad ke samne ek 47 meter uncha wijay stambh hai, jise napoleon ke samay ke rusi phrench yudh mein hui rusi wijay ki smriti mein banaya gaya tha
hamein leninagrad municipal bhawan bhi le jaya gaya upaprdhan, kamareD strajlkowaski ne hamara swagat kiya aur leninagrad sowiyat ka pura wiwarn diya asthaniya nagar prashasan ke wibhinn pahluon ko unhonne wistar se hamein bataya
leninagrad gantantr ki samany paripad mein 551 sadasy hai, jinmen se 345 purush hain aur 206 mahilayen ye sadasy asthaniya nagarikon dwara chune jate hain pratyek 6000 logon ke pichhe ek sadasy hota hai samany parishad ki karyakarinai samiti mein 25 sadasy hote hai, jinmen se das prosiDiyam ke sadasy hote hai sabhapati wa mantari ke atirikt prisiDiyam mein aath sadasy aise hote hain, jo sabhapati ko rozmarra ke karyon mein sahayata dete hain samany parishad apne sabhapati aur any samitiyon ka chunaw karti hai wibhagadhyaksh chune bhi ja sakte hai aur, yadi awashyakta ho to, unki pad wriddhi bhi ki ja sakti hai
hamein bataya gaya ki samany parishad ke 551 sadasyon mein se 263 sadasy uchch shiksha prapt hain, 47 sadasy skuli shiksha prapt hain aur 210 sadasy faiktariyon aadi mein kaam karte hain
samany parishad ki baithak warsh mein teen chaar bar hoti hai baithak mein we nagar ka budget, bhawan nirman ka karyakram, shiksha aadi ki niti nirdharit karte hai samany parishad ki 15 sthayi upasamitiyan hain kary karinai samiti ki baithak pratyek somwar ko hoti hai prisiDiyam ki baithak pratyek mangalwar ko hoti hai aur awashyakta hone par adhik baithke bhi ho sakti hai jis warsh hum wahan the, us warsh unka warshaik kharch 32540 lakh ruble ka tha, aur aay 32450 lakh ruble aay ka mukhy sadhan praudyogik utpadan kar hai pratyek nagarik apni aay ka ek nishchit hissa aay kar ke roop mein deta hai, jiska kuch bhag to rajy ke pas chala jata hai aur shesh nagar nigam ke pas
kul kharch ka lagbhag 47 pratishat nirman karyon mein chala jata hai, jismen nahren aadi banana aur unki dekhbhal bhi hai lagbhag itni hi rashi shiksha, safai, swasthy sewa, baghiche, pustakalaya, thiyetar, sangrahalay tatha any sanskritik karyon par kharch ki jati hai 2 pratishat prashasan par aur 2 pratishat wiwidh madon par kharch kiya jata hai
leninagnad ki jansankhya 32 lakh hai 17 warsh ki umr se matadhikar prapt ho jata hai asthaniya police nagar nigam ke hi pradhin hain
nagar nigam ke sadasyon ko nigam se koi tankhwah nahin milti jin faiktariyon athwa sansthanon ka we pratinidhitw karte hai, wahan se unhen tankhwah milti hai prisiDiyam ke das sadasyon ko nigam tankhwah deta hai shahr ki upasamitiyo mein 252 log aur kshaetriy upasamitiyon mein 1062 log naukari karte hain hamein bataya gaya ki nigam sadasyon ko kewal samyawadi dal hi khaDa nahin karta, balki unhen alag alag sansthayen athwa janta khaDa karti hai sath hi unhonne is baat ko bhi mana ki chunaw mein prtidwandi khaDa karne ki wyawastha to hai, lekin aisa bahut kam hota hai sadasy nirwirodh hi chunkar aa jate hain
hame bataya gaya ki wyaktigat aay par 8 pratishat tak aay kar wasul kiya jata hai naukari pesha log 6 pratishat aay kar dete hain lekin hamein ye akDe sandehajnak lage, kyonki dusri jagah se hamein jo akDe prapt hue, we inse sarwatha bhinn the
hamein laga ki hamare yahan nagar nigam ke samne jo samasyayen aur karyakram hain, we wahan bhi hain antar kewal itna hai ki unka budget hamare yahan ke budget se kafi baDa hai makan ki samasya to unke samne bhi utni hi wicket hai jitni hamare yahan
jab hamne kamareD strajlkowaski se puchha ki aapke adhin kul kitne adami kaam karte hai, to unhonne mazaq mein hamse puchha ki aapka matlab shararat karne wale logon se hi hai na shri strajlkowaski lagbhag do warsh poorw bharat aaye the aur bharat yatra ke kai sundar sansmarn unhonne hamein sunaye
hamne leninagrad yuwak club bhi dekha club ke sabhapati kamareD jhitri giyankin ne hamara swagat kiya sangit karyakram mein jane se pahle hamne unke kuch sakriy karykartaon ke sath kuch der mulaqat ki sanskritik karyakrmon ke liye unke pas ek wishal bhawan hai, jiske ek haal mein ek hazar log aram se baith sakte hain hamein laga ki hum jo karyakram dekhne gaye the, wo bahut lokapriy tha, kyonki pura haal darshkon se khachakhach bhara tha aur ticket milna kathin tha sab kalakar peshewar kalakar nahin the unmen se kuch to adhyapak the, kuch mazdur aur baDhai the kalakaron mein ek rasoiya naujawan bhi tha apne khali samay mein ye log man bahlaw ke liye club mein aate hain aur is tarah ke karyakram taiyar karte hain isse na kewal unhen hi labh hota hai, balki janta ka bhi man bahlaw ho jata hai jo karyakram hamne dekha wo wastaw mein bahut sundar, tha aur uska sangit unche darje ka tha unhonne kai deshon ke geet gaye, pratyek desha ka geet usi desh ki bhasha aur tarz mein gaya gaya gyarah barah warsh ke ek bachche ne atyant aatm wishwas aur shanadar tariqe se ek geet sunaya
hum log to kewal karyatram dekhne gaye the, kintu ain samay par karyakram ke prbandhkon ne socha ki upasthit darshkon se hamara parichai karaya jaye to achchha ho hamein manch par le jaya gaya aur ek ek karke hum sabka parichai darshkon se karaya gaya ye janne par ki hum log bharatwarsh se aaye hain, upasthit logon ne bhari kartal dhwani se hamara swagat kiya
koi lamba bhashan dene ka awsar to wo tha nahin at jab mujh se bolne ko kaha gaya, to snehpurn swagat ke liye abhar pradarshan kar mainne shishtamanDal ki or se unhen tajamhal ki ek pratikrti bhent mein di aur kaha,yah imarat prem ki pratik hai lekin wo prem ek wekti ka dusre wekti ke liye tha kintu ye pratikrti main bharat ke nawayuwkon ki or se leninagrad ke nawayuwkon ko pyar aur sneh ke pratik ke roop mein bhent kar raha hai ye wekti wishesh ke prem ka nahin, balki samuhik prem ka pratik hain upasthit logon ko ye bhaw bahut pasand aaye mere bolne ke baad ek minat tak taliyon ki gaDagDahat se haal gunjta raha
jab hamne unhen tajamhal ki pratikrti bhent mein di to prbandhkon ko laga ki hamein bhi kuch dena chahiye atah sheeghr hi unhonne talstay ki ek murti mangwai aur hamein meint mein di
is prakar ka hardik aur shanadar swagat wastaw mein hamare liye ek nirala anubhaw tha raat ko lagbhag 12 30 baje karyakram samapt hua aur club ke sadasy hamein hamari bus tak pahunchane aaye
laDke laDakiyon ne lokapriy rusi gane gaye aur hardik widai di sowiyat sangh mein aane ke baad aaj pahli bar hi hamara aisa swmasphurt wa hridayasparshi swagat hua tha logon se milna julna aadi to iske pahle bhi chal raha tha lekin we mulaqaten bahut aupacharik thi ye prem aur sneh dekhkar to ek bar ye bhool gaye ki hum widesh mein hain
leninagrad wishwawidyalay ki ariyantal faculty dekhne ka bhi awsar mila ye wishwawidyalay 140 warsh purana hai aur roos ka dusra sabse baDa wishwawidyalay hai yahan 20000 se bhi adhik widyarthi shiksha pate hai, jinmen se 12000 niymit kakshaon ke widyarthi hai, 4000 sham ki kakshaon ke aur 3000 widyarthi patr wywahar ke dwara shiksha pate hain chhatralay mein 6000 widyarthi rahte hai kewal purwi yuropiy deshon ke hi lagbhag 800 widyarthi yahan hai kai widyarthi hindi sikhte hain, kuch to bangla aur tamil tak ka adhyayan kar rahe hai pustakalaya mein 30 lakh se bhi adhik pustken hai
dopahar ko hamne haramitaj dekha ye roos ke purane zaro ka shitakalin prasad tha aur ab ye sansar ki sabse baDi kaladirghao (art gaileri) mein se ek hai lagbhag 7500 kalakritiyan yahan ekatrit ki gai hain, jinmen se kuch liyonarDo dawichi aur rembra jaise mahan kalakaron ki maulik kritiyan hain samay ki kami ke karan is mahan kala bhawan ko hum jaldi jaldi mein hi dekh pae
shishtamanDal ke any sadasy leninagrad ka pioneer prasad dekhne bhi gaye ye bachchon ki prwrittiyon ka ek baDa kendr hai tatha us mahl mein sthit hai, jahan pahle sassi wash ke log rahte the ismen 300 kamre hain ek pustakalaya bhi hai, jismen lagbhag ek lakh pustken hai yahan bachche wibhinn khel khel sakte hain bachchon ke chitron, khilaunon aur modalon ki pradarshani ne shishtamanDal ke sadasyon ko wisheprup se akarshait kiya baad mein bachchon ne swayan ek sangit karyakram prastut kiya maitripurn gharelu watawarn aur bachchon ke saujanyapurn wywahar ne hamare sathiyon ko bahut prabhawit kiya
leninagrad se hawai jahaz dwara hum krimiya pahunche aur krimiya hawai aDDe se motoron dwara kale samudr ke tat par sthit yalta yalta krimiya ka prasiddh swasthy kendr hai ek din sham ko wanaspati bagh (botenikal garDan) mein gaye ye baghicha zaro ke zamane ka hai bahut sundar hai desh widesh se peD paudhe lakar yahan lagaye gaye hain isse asthaniya logon ko kalpana hoti hai ki bhinn bhinn deshon mein kaise kaise wriksh aur wanaspatiyan hoti hain
baghiche mein hamein lagbhag tees rusi laDkiyon ka jhunD mila ye laDkiyan bhramn ke liye leninagrad se i thi unmen se ek laDanki ne, jo thoDi bahut angrezi janti thi, hamare ek sathi se mazaq mein puchha ki hamare pratinidhi manDal mein kewal ek hi mahila kyon hai hamara sathi kuch asmanjas mein paD gaya aur uttar ke liye meri taraf ishara kar diya us laDki ke parashn ka koi sahi uttar to mere pas bhi nahi tha atah uttar dene ki apeksha mainne usi se ek parashn puchha, tum log itni laDkiyan ho, tumhare sath purush kitne hain? chunki unke sath ek bhi purush nahin tha, use apne parashn ka uttar mil gaya aur sab log mukt hansi hans paDe thoDi hi der mein hum sab aapas mein khoob ghulmil gaye unhonne hamare shishtamanDal ke bare mein kai parashn puchhe pratima ke bare mein bhi unhonne janna chaha ki wo kisan hai ya factory mein kaam karne wali jab hamne unhen bataya ki wo gana janti hai to unhonne saDak par khaDe khaDe hi usse gana sunne ki zid ki baad mein unhonne bhi ek rusi geet gakar hamein sunaya
sham ko hamein ek shanadar jahaz mein samudr ki sair karai gai is jahaz ka nam rosiya tha aur ismen 1500 yatriyon ke baithne ki wyawastha thi ye thoDi dere pahle hi bandargah par aaya tha
uske baad hum samudr ke kinare kinare saDak par tahalte hue chale darasal ye yalta ki ekmatr mukhy saDak hai sari saDak paryatkon se bhari paDi thi kai rogi bhi the, jo desh ke wibhinn bhagon se swasthy sudhar ke liye yahan aaye hue the
sham ko ye saDak logon se bhar jati hai aur kafi bheeD bhaD ho jati hai us samay sawariyon ka awagaman bilkul band kar diya jata hai, jisse logon ko chalne phirne mein bahut suwidha ho jati hai
saDak par tahalte samay hamne DeDh do warsh ka ek bachcha dekha, jo saDak ke bichon beech nannhi si ghoDagaDi hankakar le ja raha tha hamara ek sathi uske pas gaya aur ghoDe ki lagam pakaDkar hamare pas le aaya bachcha zara bhi nahin roya, ulte usne hath milane ke liye apna dayan hath aage baDha diya uske mata pita pas hi ek bench par baithe hue the ye dekhkar ki unke nannhe bachche ne nae nae dost banaye hain, we bhi hamare pas aaye aur kuch hi der mein hamare mitr wan gaye
raston se guzarne wale log tatha dusre bhi hamare sath bahut prem se wywahar karte unko bharatiy achchhe lagte hain we hamare pardhan mantari ki khoob tarif karte jahan jahan bhi hum gaye, hamara baDe harsh ke sath swagat kiya gaya usmen kahin koi kritrimta nahin thi
bhasha ki kathinai ke bawjud log hamse bolne aur batachit karne ko utsuk the angrezi janne wale bahut kam the, isliye dubhashiye ki sarwatr mang rahti jahan kahin koi thoDi bhi angrezi jannewala mil jata, log use lekar hamare pas aate aur uske zariye duniyabhar ke parashn utsuktapurwak hamse puchhte
swadesh ke atirikt unhen apne shahr par bhi garw tha har baat cheet ke ant mein hamara shahr aapko kaisa laga? zarur poochh liya jata leninagrad mein bhi log isi tarah puchhte the
roos mein hamne jabse qadam rakha, hamara sara samay baDa wyast raha yalta mein pahli bar hamein sahi mane mein aram aur chain mila kale samudr ke sundar taton aur pas paDaus ke swasthyaprad asthanon par hum khoob mauj se ghume samudr ke pani ka gahra nila rang baDa manmohak lagta tha nashta karke motor bote mein hum mishob ke liye rawana hue raste mein hamari naw kuch steshnon par ruki hum kinare kinare hi ja rahe the taton par saikDon log anand se ghumte hue dikhai de rahe the koi balu par leta hai to koi surya snan kar raha hai, koi nha raha hai to koi nauka wihar kar raha hai lagbhag sare samudr tat ko logon ke wishram wihar ke layaq saja bana diya gaya hai aur iska labh uthane ke liye yahan hazaron lakhon ki sankhya mein log aate rahte hain jaise hi hum mishow pahunche, hum sidhe samudr mein kood paDe aur khoob mauj se snan kiya, taire, kashtiyon par dhume aur khele pani kafi thanDa tha, phir bhi bahut maza aaya bilkul tar o taza ho gaye
bhojan ke baad hum phir nae nae sthan aur chizen dekhne ke liye nikal paDe brensoski mahl hamein baDa achchha laga ismen europe aur atoman ke sthapatyakla ka mel hai mughal tariqe ke gumbad the aur khiDkiyan gothik Dhang ki thi
nyano aur mishano hamare sath masco mein hi aaye the inke alawa do asthaniya mitr, erik aur najra bhi is taraf ki sari yatra mein hamare sath rahe hamne yahan bhi mitr banana shuru kar diya tha naja ek wyask aur baDi mustaid mahila hai inhonne sagi baDi bahan ki bhanti hamari dekhbhal ki wo baDi chinta ke sath hamare liye sakahari bhojan banwati aur bhojan mein roz nai nai chizen deti jahan jahan bhi hamein jana hota, wo hamse pahle ek alag kar mein pahunch jati jab hum pahunchte to sari chizen tartib se saji sajai hamein milti unki shalinta aur karyakushalta ne hamein baDa prabhawit kiya
jab hum naw mein mishow se lautne lage to musafiro ne aakar hamein gher liya unke liye aur hamare liye bhi wo ek utsaw sa ban gaya hum bhi unmen ghul mil gaye aur khoob gate khelte rahe unmen ek aath warsh ka balak bladishiw sheko bhi tha usne haw bhaw samet ek kahani sunani shuru kar di wo bahut hi almast prakrti ka laDka tha jo kahani usne sunai, uska bhaw yahi tha ki ek bar ek bheDiya ek ganw mein aaya log use mar Dalna chahte the wo ek bille ke pas gaya aur puchha ki ganw mein koi aisa wekti bhi ho sakta hai, jo uski jaan bachaye? bille ne teen chaar logon ke nam bataye bheDiya bola, nahin, we meri madad nahin karenge, kyonki mainne unke janwar kha liye the bille ne uttar diya, jab tumne sab logon ke janwar kha Dale, to tumhari jaan kon bachayega?
kahani samapt hone ke baad jab mainne usse puchha ki hamare sath bharat chaloge, to usne kaha, ha ha, kyon nahin lekin thoDe hi samay ke liye chalunga aur wo bhi akela nahin, apne pariwar ke sath aunga mujhe apna pata de dijiye main aapko patr likhunga apni umr ke hisab se uski buddhi bahut prakhar thi uske bolne chalne aur wywahar mein kafi atmawishwas tha
sham ko hamein alup ka dikhane le jaya gaya ye wahi prasiddh aitihasik sthan hai, jahan san 1945 mein laDai ke ant mein stalin, charchil aur rujwelt ne yudh aur shanti ke bare mein mahatwapurn nirnay liye the hamein wo sthan bhi dikhaya gaya jahan inki baithken hui aur jahan we tinon pramukh thahre the jis imarat mein charchil thahre the, wo sundar hai san 1955 mein jab pradhanamantri nehru yahan aaye the, tab unhen bhi isi mein thahraya gaya tha ab to ise senitoriyam bana diya gaya hai samudr ke kinare charon or pahaDiyan hai adhiktar in pahaDiyon ki Dhaal par hi makan banaye jate hain charon taraf peD paudhe aur hariyali hone ke karan sabkuchh bahut sundar lag raha tha samudr ke kinare par hamare yahan jaisi ret nahin hoti, balki kankaD patthar hote hai
dusre din subah nashte ke fauran baad hum ipalsi parwat par gaye is pahaD ki unchai 1253 meter hai pahaD ki choti par mahayuddh mein mare gaye shahidon ka smarak hai aise pahaDon par saDak banana bahut hi kathin aur kharchila hai is kshaetr mein ek kilomitar saDak banane mein lagbhag 150 lakh ruble kharch aata hai prashasan ne saDak banane wale mazduron ke liye teen chaar makan banwa diye hai hamein ek makan bhi dikhaya gaya, jo maiweriya aur tuDra se aane wale paryatkon ke liye surakshait hai railway karmchariyon aur khadan mein kaam karne wale mazduron ke liye bhi alag alag makan surakshait hai
sham ko hum yukren senitoriyam mein gaye wahan ke logon ne hamara hardik swagat kiya aur hamari sukh suwidha ka bahut khayal rakha senitoriyam ki dekhbhal ek 72 warsh ki wriddha karti hai har mane mein wo adbhut mahila thi sab kaam wo apne hathon se karti thi hum jis mez par khana khane wale the, use usne swayan wishesh roop mein sajaya tha wo kamal ki mezban thi itne agrah ke sath usne hamein khana khilaya ki hamne apni samany khurak se lagbhag duguna khana khaya us mahila ka apna nirala wyaktitw tha aur pure senitoriyam ke log use man kahkar bulate the wo wastaw mein un sabki man hi thi bhale hi koi adami thoDi der ke liye hi kyon na aaye, wapas jate samay wo unki madhur smriti lekar hi jayega uske hridar mein pratyek wekti ke liye sneh aur mamta thi
pimiya ko antim namaskar par hum hawai jahaz se sham ko yukren ki rajdhani pahunche agla din shahr ke paryatan se hi shuru hua yudh ke wiron ki murtiyan aur agyat yoddhaon ke smarak hamne dekhe shahr ka chakkar lagakar hum ek tekDi par gaye aur wahan se ek taraf kiwashhar ka aur dusri taraf nipar nadi ka drishya dekha uridol gaurki ka makabra bhi hamne dekha masakwa shahr ki sthapana unhonne hi ki thi gyarahwi sadi mein nirmit any girje tatha aur bhi kai sthan hamne dekhe asthaniya komsomol ka daftar ek wishal aur sundar chaar manzile bhawan mein hai
dopahar mein hamne bachchon ki rail dekhi baad mein 4 30 baje wishal khushchow stadium dekhne gaye khushchow isi pardesh ke mool niwasi hain unke sowiyat roos ke pradhanamantri banne se pahle hi is stadium ka nam unke nam par rakha gaya tha aaj utsaw ka din tha pahli war sowiyat yuwak diwas manaya ja raha tha samaroh atyant prabhawotpadak tha baad mein sahrdayta aur prem se logon ki bheeD ne hamein itni buri tarah gher liya ki jisko hum kabhi nahin bhula sakte
dusre din subah hum chhote bachchon ki kripi sanstha dekhne gaye hamein is sanstha ke sabhi wibhagon mein dhumaya gaya aur iske kamakaj ke bare mein sari baten wistarpurwak batai gain bachche kheti ke anusandhan ka kaam yahan seekh rahe the pratyaksh anubhaw aur prayog ke liye sanstha ke pas ek khet bhi hai
masco pahunchne ke dusre hi din hum masco wishwawidyalay dekhne gaye iska nirman roos ke mahan waij~nanik lamanozow ne kiya tha atah unke nam par ise lamanozow wishwawidyalay bhi kahte hai iski sthapana san 1755 mein hui ye uska 204wan warsh tha beech ki mukhy imarat 236 meter unchi hai, ismen terah wishyon ki paDhai hoti hai—wigyan ke chhः aur kala ke sat wibhag hai
wishwawidyalay mein 22000 widyarthi shiksha pa rahe hai inmen se 15500 din mein widhiwat paDhai karte hai 2000 sham ke wargon mein aate hain shesh 4500 widyarthi patr wywahar dwara apni paDhai karte hain niymit paDhai karne wale widyarthiyon mein se 70 pratishat ko rajy se chhatrwrittiya di jati hai
chhatralyon mein 6000 widyarthi rahte hain chhatralyon ka shulk nam matr ka hai sham ke wargon mein jane wale adhikash widyarthi din mein kaam karke apni rozi kamate hai unhen koi chhatrawrtti nahin di jati
par wywahar ka pathyagram un widyathiyon ke liye hai, jo praya masco se bahar rahte hain ghar par kiya gaya lekhankarya jaanch ke liye we Dak dwara wishwawidyalay ko bhejte rahte hain warsh mein do bar wahan pariksha ke liye aa jate hain
pariksha mein jo widyarthi pahli bar mein uttirn nahin hote, unka nam register se hata diya jata hai unhen phir dusri bar pariksha mein nahin baithne diya jata college ki paDhai sadharanataya saDhe panch warsh ki hoti hai iske baad widyarthi ya to aage paDh sakte hain ya kisi kaam mein lag jate hain wishwawidyalay mein uchch shiksha ke liye kewal achchhe aur yogya widyarthiyon ko hi ijazat milti hai—wah bhi rikt asthanon ke anusar isliye widyarthiyon mein baDi kaDi hoD rahti hai unhen khoob mehnat karni paDti hai is karan shiksha ka samany star bahut uncha rahta hai jinhonne kisi udyog mein do warsh kaam kar liya hai, unko prathamikta di jati hai
widyarthiyo mein 46 pratishat laDke hai, shesh laDkiyan hain inmen se 1500 wideshi hain bharat sarkar se haal hi mein hue ek samjhaute ke anusar kuch bharatiy widyarthi bhi wahan aaye hue the
wishwawidyalay ka naya bhawan bahut hi bhawy aur wishal hai usmen hazaron kamre hain hamein kaha gaya ki yadi hum har kamre mein kewal ek minat bhi ruke to sare wishwawidyalay ke kamro ki sair karne mein hamein teen mahine lag jayenge yuwak samiti ke logon ne pahle kaha tha ki yadi hum har kamre mein das minit ruken to apne pure jiwan mein bhi wishwawidyalay ko puri tarah se nahin dekh sakte zahir hai ki ye to atyukti hai, jo kewal baharwalon ko prabhawit karne ke liye ki jati hogi is wishwawidyalay mein kewal paDhai ke liye 150 haal hai iske alawa wyayamshalayen, rangbhumi, nrityshalayen, sangitgrih, khel ke maidan, waghairah hain so alag sahayak wishay ke roop mein khagolshastr bhi paDhaya jata hai, jiske liye ek mahan wedhashala masco shahr ke bahar banai gai hai
wishwawidyalay ke adhikari bhugol aur bhugarbhawishyak shodh ke liye wishwawidyalay se 58 abhiyan dusre deshon ko bhejne ki yojna bana rahe the, kyonki wo antarrashtriy bhu bhautik (jiyofizikal) warsh tha
wishwawidyalay ke snatakottar wargon mein 1500 widyarthi paDh rahe hain inmen se 10 pratishat wideshi hain wishwawidyalay mein 450 professor, 600 lecturer, 550 waij~nanik aur 1200 prayogashala mein sahayak hain pustakalaya mein das lakh se adhik pustken hai
sowiyat sangh ki yojna hai ki desh mein 36 wishwawidyalay banaye jayen, jinse saikDon sansthayen sambaddh ho in wishwwidyalyon ke snatkon ko yahan se nikalne par kaam ki kami nahin hoti sarkar unhen turant kaam deti hai akDon se j~nat hota hai ki parikshaon mein qarib 60 pratishat widyarthi saphal hote hai jo 10 pratishat rah jate hai, unka bhawishya to andhkarmay hi samajhna chahiye unke aage baDhne ki aasha bahut kam hoti hai kis wishay ki paDhai ke liye kitne widyarthi liye jayen, iski sankhya desh ki awashyakta ke anusar shiksha mantralay pahle se hi nishchit kar deta hai iske alawa jinhe adhik samay milta hai, aise widyathiyon ke liye pratyek college mein khas khas wishyon ke alag warg bhi hote hai unhen har tarah ki sahuliyten di jati hain
hamari yatra se pahle warsh masco wishwawidyalay ka anumanik wyay budget 28 karoD ruble tha is warsh budget ko waDhakar das lakh ruble pratidin ke hisab se rakha gaya hai wishesh shodh karyon aadi ke liye wishwawidyalay ko shasan ki taraf se tees lakh ruble ki sahayata alag se milti hai
wishwawidyalay ki pariksha uttirn karne ke baad ek sarkari aayog widyarthi ki phir pariksha leta hai aur uski yogyata ke anurup use kaam deta hai ismen uski niji ruchi aur wo kahan rahna pasand karega, iska bhi dhyan rakha jata hai
wishwawidyalay ke adhyaksh ne hamein ye sari baten batai aur kaha ki hum unki tatha unke sathi professor aur widyarthiyon ki shubhechchhayen bharat ke professor tatha widyarthiyon tak pahunchayen
batachit ke baad hamein wishwawidyalay ki mukhy imarat, sabha bhawan aur wibhinn wibhag dikhaye gaye mukhy bhawan ki nawin manzil se pure shahr ka wihgam drishya hamne dekha hamein wishwawidyalay ka myuziyam, pustakalaya, swiming pool, lecture haal, kasrat karne ka sthan aadi bhi dikhaye gaye
wishwawidyalay ko dekhne ke baad hum chhatralyon mein gaye yahan par hame widyarthi sangh ke matri mile unhonne hamara swagat kiya aur bharat tatha uske mahan neta shri jawaharlal nehru aur bharat ke widyathiyon ke prati sowiyat sangh ki shubhkamnaye prakat ki unhonne hamein bataya ki masco wishwawidyalay mein widyathiyon ke bahut se sangathan hain, jaise yang kamyunist league (komsomol), yang treD yuniynists, saintifik stuDents society, sports society, aur turists society inke alawa samyawadi dal ki bhi ek shakha hai kuch widyarthi iske bhi sadasy hai 22000 widyarthiyo mein se 16000 widyarthi yang kamyunist league (komsomol) ke sadasy hai fursat ke samay ke khelon ke parbandh ke liye pratyek chhatrawas mein widyarthi kaunsilen hai iske alawa widyarthiyon ke club bhi hai, jo nae, udiyaman kalakaron ko protsahan dene ke liye chitrakla, nrity sangit, naty aadi prwrittiya chalate rahte hain
har college ki ek prabandhak samiti hoti hai ismen komsomol ke dwara chuna hua ek widyarthi pratinidhi bhi hota hai use mat dene ka adhikar hai dusri baton ke sath sath chhatrwrittiyan kise di jaye, iska bhi wichar ye prabandhak samiti karti hai
hamein bataya gaya ki komsomol to ek rajanaitik sanstha hai, parantu treD yuniynen rajnitik sansthayen nahin hai professor, shikshak aur baDi umr ke widyarthi treD yuniynon ke sadasy ho sakte hai
widyarthi sangh ne hamare samman mein ek chhota sa samaroh kiya ismen pratima ne do geet gaye, jinmen se ek tagore ka bhi tha widyarthiyon ne inhen bahut pasand kiya
mitro, arthat zamin ke andar chalne wali rail masco ka ek wishesh akarshan hai jab hum ye rail dekhne gaye to railway ke Dayarektar ne hamara swagat kiya aur iska sara itihas sunaya san 1635 mein iske nirman ka kaam shuru hua ab is 43 meel lambi rail par 47 station hai 10000 wekti ismen kaam karte hai hamein bataya gaya ki zamin ke andar chalnewali in gaDyon mein lagbhag 27 lakh log pratidin yatra karte hai masco ki jansankhya 50 lakh hai, ise dekhte hue mujhe ye akDe kuch atishyoktipurn lage mainne unse puchha ki kis adhar par ye ganana unhonne ki hai swayan we log bhi chakkar mein paD gaye ki ye akDe kis adhar par ikattha kiye gaye hain jab mainne apna sandeh prakat kiya tab swayan unhonne mahsus kiya ki jo akDe unhonne hamein bataye the, wywahar mein unhen prapt karna bahut kathin tha mainne unka dhyan is or khincha ki ye ho sakta hai ki ek wekti din mein kai bar safar karta hai aur ganana karte samay ek hi wekti ki alag alag yatra ko wibhinn wyaktiyon ki yatrayen man liya gaya ho
is train mein baithkar hamne charon taraf chakkar bhi lagaya har baDe station par hum utarte, use achchhi tarah dekhte, aur phir aage jane ke liye agli gaDi mein chaDh jate har teen ya chaar minat mein ek gaDi aati jati thi
nisandeh masco ki zamin ke andar chalne wali rail ek bahut wasi cheez hai uska sanchalan bhi bahut sampandhit hai musafiron ko upar nine lane le jane mein liye chalti huri siDhiyan hain steshnon par battiyon se bahut bar latarte hain, jinse andar ka sara bhag sada jagmagata rahta hai station bahut sundar dikhte hain, kyonki unmen se adhikansh ke farsh sangmarmar ke hai hamein kaha gaya ki pahle to sangmarmar kewal zar aur amiron ke mahlon ke kaam mein aata tha, kintu ab wo sarwajnik upyog ke asthanon mein lagaya ja raha hai steshnon par baDi baDi painting aur mojek se banaye gaye sundar sundar chitr bane hue hain is railway ki apni samany up yogita to hai hi, parantu mujhe lagta hai ki yudh kal mein hawai hamle se bachaw ke liye bhi ye bahut achchhi jagah ho sakti hai iske steshnon mein se ek to komsomol ke yuwkon ne banaya hai atah uska nam komsomol rakh diya gaya hai
usi din dopahar ko 12 30 baje hum instityut aaw ariyantal stDeez dekhne ke liye gaye sanstha ke adhyaksh ne apne sathi adhyapkon aur widyarthiyon ki taraf se hamara swagat kiya sanstha ki prwrittiyon aur khastaur par bharat se sambandhit prwrittiyon ka unhonne wistrit parichai diya in dinon hamare do deshon ke beech mitrata ke sambandh hone ke karan bharat wishayak adhyayan par yahan adhik dhyan diya ja raha hai bahut se rusi widyarthi hindi seekh rahe hain kuch bangla, urdu, marathi, aur malyalam bhi seekh rahe hain un dinon waha rawindrnath thakur, bharti, bankimchandr, premchand, nirala aadi ki kritiyon ke rusi anuwad ho rahe the pathyakram mein bharatiy darshanshastr ko bhi mahatw poorn sthan diya gaya hai bharatiy arthshastr, khastaur par bharat mein wideshi udyogon ki sthiti, bharat ki krishai paddhati mein kya kya sudhar aur pariwartan ho rahe hai aur sarwajnik udyog waghairah ka adhyayan bhi gahrai se ho raha hai
professor golwarg ne bharat roos sambandhon ka achchha adhyayan kiya hai in donon deshon ke itihas tatha any purane dastawezon ke adhyayan ke adhar par unhonne bataya hai ki satrahwin aur atharahwin sadi se hamare donon deshon ke beech mitrata ke sambandh chale aa rahe hain yoon to shodh kary karne walon ne yahan tak bhi pata lagaya hai ki theth daswin sadi se hum donon deshon ka paranprik sambandh hai ye sanstha bharat ka prachin aur adhunik itihas, jismen san 1857 ka itihas bhi shamil hoga, sheeghr hi prakashit karne ja rahi hai
yahan par ek baat mujhe baDi ajib lagi yadyapi ye log yahan par adhyayan karte hain, baDe baDe parbandh likhte hai aur bharat ke prasiddh lekhkon, kawiyon aur rajanaitik wicharkon par samachar patr wa patrikaon ke liye lekh waghairah taiyar karte hain, phir bhi unhonne mahatma gandhi ka kahin namollekh tak nahin kiya unhonne tilak aur unke wicharon ka baDe aadar ke sath warnan kiya hai parantu gandhiji ke bare mein we ekdam chup rahe bharat ke jin logon ko swayan hum bhi bahut kam jante hai, unke namon ka ullekh hai, par gandhiji ka nam kahin nahin
jab main unhen dhanyawad dene ke liye utha to mainne unka dhyan is taraf khincha mainne kaha, yadi aap bharat ki wartaman piDhi aur khaskar yuwkon ke dilon ko janna chahte hai, to jabtak aap gadhiji ka adhyayan nahin karenge tab tak aap inko nahin jaan sakege mainne to, chunki ye baat dhyan mein i, isliye saf saf kah di thi ye ummid nahin thi ki we iska jawab denge parantu un par meri baat ka gahra asar paDa unke adhyaksh tatha is wibhag ke wisheshaj~n ne baDe wistar se kaha ki unki sarkar aur party gandhiji ke siddhanton aur wicharon se matbhed rakhti hai we tilak ke wicharon ko pasand karte hain phir bhi mujhe barabar ashcharya hota raha ki is prakar ki wishuddh adhyayan ki sanstha mein bhi mahaj matbhed ke karan gandhiji ke wicharon aur siddhanton ke adhyayan ki upeksha kyon ki ja rahi hai
pratinidhi manDal ke any sadasy talstay ki jayadad yasnaya polyana dekhne bhi gaye ye jagah masco se koi 125 meel ki duri par hai dusre kaam mein wyast rahne ke karan main nahin ja paya sham ko lautkar sadasyon ne bataya ki gramy pardesh ki ye yatra bahut ananddayak rahi unhen khushi thi ki unhen talstay ka niwas sthan dekhne ka awsar mila talstay ko hamare yahan bahut aadar ki drishti se dekha jata hai gandhiji ke sath unke sambandh tatha gandhiji par unke prabhaw ko hum kaise bhool sakte hain yasnaya polyana shahr ki bheeD bhaD aur wyast jiwan se door shant watawarn mein warch ke wrikshon ke jhurmut ke beech sthit hai mausam dinbhar kharab raha budabadi hoti rahi talstay myuziyam ke deputy Dayarektar aur kamareD alegzenDar dimiyiw ne pratinidhi manDal ke sadasyon ka saujany poorn swagat kiya ye tamam jayadad talstay ke nana ki thi talstay ne pachas warsh se bhi adhik isi sthan mein bitaye the aur unki adhiktar shreshth kritiya yahi likhi gai thi san 1906 mein gandhiji ne talstay ko jo patr likha tha, wo masco myuziyam mein surakshait rakha hua hai talstay ka makan ab bhi usi tarah jama hua hai jaisa talstay ke samay mein tha—furniture aadi sab usi tarah rakhe hue hai, niwas sthan ke pas hi ek myuziyam banaya gaya hai, jismen talstay ki pustakon ki mool panDulipiya aadi sahejkar rakhi gai hai
ek din subah hum masco ka prakhyat lenin stadium dekhne gaye ye ek bahut wishal stadium hai apne apmen ye ek swatantr sanstha hi hai uske Dayarektar general shri napasnikow ne hamare sath ghumkar sara stadium dikhaya emphi thiyetar ki tarz ki usmen tihattar qatar hain, jinmen ek lakh se upar adami baithkar khel dekh sakte hai uske andar jane aane ke raste is khubi ke sath banaye gaye hai ki itne sare log sirf sat minat ke andar bahar chale ja sakte hain hamein bataya gaya ki is stadium ke banane mein lagbhag 45 karoD ruble lage
mukhy stadium ke sath bachchon ka ek chhota stadium bhi hai, jismen kewal sat se satrah sal ki umr ke bachche khelte hai ismen prati din 2500 bachchon ko sharirik wyayam ka prashikshan diya jata hai iske alawa ek chhatdar stadium bhi hai, jise kriDa mahl (pailes auw sports) kahte hai ismen 170 prekshak baith sakte hai boxing ke match, wadywrind, natk aadi isi mein hote hai paDos mein hi ek tairne ka talab bhi hai, jiske charon or 13200 wekti baithkar dekh sakte hai pratyek din ismen lagbhag 1500 manushya tairne ka abhyas karne ke liye aate hain
yahan par ek spotars myuziyam arthat khel kood ke sadhnon ka sangrahalay bhi hai ismen hamein pichhle yuwkotsaw ki ek chhoti film dikhai gai is sangrahalay mein ek almari bharatiy chizon ki thi roos ki waliwal aur phutbal ki teamen bharat mein i theen, tab unhen jo inam mile the, unko ismen sangrhit karke rakha gaya hai
sham ke samay hum masco ki udyog aur krishai pradarshani dekhne gaye ye ek sthayi pradarshani hai, jo wishal imaraton mein sajai gai hai kai baDe baDe manDap hai parantu inke alawa har rajy ne apne apne sthapaty aur kala ke anurup swatantr bhawan bhi banaye hain unmen apne apne rajy ke udyogon ki tatha kheti ki chizen sajakar rakkhi hai ye pura kshaetr, uske udyan, phawware aur sari sajawat atyant akarshak aur manohar hai agar is sare sangrahalay ko dhyan se dekhne lage to kai din lag jaye hamare pas to kuch hi ghante the atah hum sare manDpon mein jaldi jaldi ghoom liye aur sari chizon par ek dauDti hui nazar matr Dal li inmen ek sputnik manDap bhi tha uski taraf hamara dhyan khastaur par gaya ismen roos ke sputnik ka pure akar ka ek namuna rakha tha wisheshagyon ne pahle aur dusre sputnik ki sari wisheshtayen hamein samjhai jyarjiya ka manDap mukhyatya phalon aur sabziyon se bhara tha isi ke pas ek kach ka makan tha, jiske andar jyarjiya ke phal sachmuch ugaye jate hain ek aur manDap tha, jismen shanti ke liye anau shakti ka upyog bataya gaya hai isne bhi hamara dhyan wishesh roop se akarshait kiya
agle din subah hum jagat prasiddh kremlin dekhne gaye andar purane Dhang ke bahut se girjaghar hai kremlin ke samne ispat ka bana ek bahut baDa ghanta hai, jiska wazan 200 tan se bhi upar hoga 40 tan ki ek bahut baDi top bhi hai—top, jo kabhi dagi nahin gai aur ghanta, jo kabhi bajaya nahin gaya ghanta wastaw mein Dhale hue ispat ka ek bahut baDa Dher sa hai kremlin par le jate samay ye kuch toot gaya tha
kremlin ko dekhkar swbhawat hamare dil par baDa asar hua samast sansar ko prabhawit karne wale kitne hi nirnay wahan liye gaye hain aur ab bhi liye ja rahe hain durbhagy se mukhy imaraton ki marammat chal rahi thi, jahan unki sansad ki baithken hoti hain hamare rusi mitron ne inhen hamein dikhane ki ijazat lene ki bahut koshish ki, parantu wo nahin mil saki
phatak ke paswala sangrahalay bhi hamein bataya gaya yahan par unhonne zaro ki bahut si chizon ka sangrah karke rakha hai ab to shobha ki ye qimti chizen mahz aitihasik mahatw ki hokar rah gai hain anek prakar ke qimti wa sundar mukut, sinhasan, zewrat, pahanne ke bahumuly wastra, jirah bakhtar aur rath waghairah yahan par rakkhe hai
mahan lenin granthalay ko bhi hamne jaldi mein ek nazar Dalkar dekh liya hamein bataya gaya ki is granthalay mein 160 bhashaon ki do karoD pustken hai ismen baDe baDe bees haal hain, pachason wachanalay hain aur chhoti chhoti micro filmen paDhne ke yantron ke bees set hain
hum masco ki art gaileri bhi dekhne gaye ise bhi achchhi tarah dekhne ke liye hamare pas pura samay nahin tha hamein kaha gaya ki leninagrad ka chitr sangrhalay isse bhi baDa aur prasiddh hai aur use dekhne ke liye hamein adhik samay mil sakega
roos ke any asthanon ki sair karke jab hum wapas masco aaye, tab ek din sham ko hum gaurki park mein tahalne chale gaye, jise yahan sanskritik udyan kaha jata hai maskwa nadi ke kinare ye ek wishal kshaetr mein phaila hua hai iske andar bahut se natakgrih, uphargrih, khel ke maidan aadi hai yahan bahut baDi sankhya mein log aakar apna fursat ka samay bitate hain
masco se barah ghante ki rail yatra ke baad subah nau baje hum aitihasik aur sundar nagar leninagrad pahunche asthaniya yuwak samiti ke sadasyon ne station par hamara swagat kiya saman aadi hotel mein jamakar hum dhumne nikle jis hotel mein hamein thahraya gaya tha, wo koi bahut achchha hotel nahin tha aisa laga ki leninagrad mein hotalon ki bahut kami hai, balki baDhiya hotel to ek hi tha, jo puri tarah bhar chuka tha hamare mezbanon ne waDhiya hotel mein hamari wyawastha karne ka bharpur prayatn kiya, kintu we bhi bechare kya karte!
leninagrad shahr masco ki apeksha adhik sundar aur achchha laga masco jitni bheeD bhaD aur wyastata bhi yahan nahin thi logon ke kaam karne aur chalne phirne mein yahan adhik shanti thi we adhik khushhal aur maitripurn lage mahilaon mein nari sulabh lawany wa madhurya apekshakrit adhik hai, aisa bhi hamein laga unke chehre par sahj swabhawik komalta aur wywahar mein saujany ka anubhaw hamein hua sundar chehre bhi yahan kahin kahin dikhai de jate the leninagrad mein hum jahan bhi gaye, log hamse sneh aur mitrtapurwak mile we jis tarah hamara swagat karte the, wo hamein bahut achchha laga
nagar ke charon or achchhi khasi hariyali hai saikDon baghiche shahr mein hain nadi ke donon kinaron par basi bastiya kafi wiksit hain
gat mahayuddh mein german senaye nagar ke bahut qarib tak aa gai theen aur shahr ke charon taraf unhonne ghera Dal diya tha atah leninagrad aur uske asapas ke ilaqon ko bahut wipdayen sahni paDi tamam shahr yudh ki yadgaron se bhara paDa hai mars (yudh dewta) ke baghiche mein satat jalnewali agni jwala hai, jo yudh ke shahidon ki smriti mein jalai gai thi jar pitar pratham ke shitakalin prasad ke samne ek 47 meter uncha wijay stambh hai, jise napoleon ke samay ke rusi phrench yudh mein hui rusi wijay ki smriti mein banaya gaya tha
hamein leninagrad municipal bhawan bhi le jaya gaya upaprdhan, kamareD strajlkowaski ne hamara swagat kiya aur leninagrad sowiyat ka pura wiwarn diya asthaniya nagar prashasan ke wibhinn pahluon ko unhonne wistar se hamein bataya
leninagrad gantantr ki samany paripad mein 551 sadasy hai, jinmen se 345 purush hain aur 206 mahilayen ye sadasy asthaniya nagarikon dwara chune jate hain pratyek 6000 logon ke pichhe ek sadasy hota hai samany parishad ki karyakarinai samiti mein 25 sadasy hote hai, jinmen se das prosiDiyam ke sadasy hote hai sabhapati wa mantari ke atirikt prisiDiyam mein aath sadasy aise hote hain, jo sabhapati ko rozmarra ke karyon mein sahayata dete hain samany parishad apne sabhapati aur any samitiyon ka chunaw karti hai wibhagadhyaksh chune bhi ja sakte hai aur, yadi awashyakta ho to, unki pad wriddhi bhi ki ja sakti hai
hamein bataya gaya ki samany parishad ke 551 sadasyon mein se 263 sadasy uchch shiksha prapt hain, 47 sadasy skuli shiksha prapt hain aur 210 sadasy faiktariyon aadi mein kaam karte hain
samany parishad ki baithak warsh mein teen chaar bar hoti hai baithak mein we nagar ka budget, bhawan nirman ka karyakram, shiksha aadi ki niti nirdharit karte hai samany parishad ki 15 sthayi upasamitiyan hain kary karinai samiti ki baithak pratyek somwar ko hoti hai prisiDiyam ki baithak pratyek mangalwar ko hoti hai aur awashyakta hone par adhik baithke bhi ho sakti hai jis warsh hum wahan the, us warsh unka warshaik kharch 32540 lakh ruble ka tha, aur aay 32450 lakh ruble aay ka mukhy sadhan praudyogik utpadan kar hai pratyek nagarik apni aay ka ek nishchit hissa aay kar ke roop mein deta hai, jiska kuch bhag to rajy ke pas chala jata hai aur shesh nagar nigam ke pas
kul kharch ka lagbhag 47 pratishat nirman karyon mein chala jata hai, jismen nahren aadi banana aur unki dekhbhal bhi hai lagbhag itni hi rashi shiksha, safai, swasthy sewa, baghiche, pustakalaya, thiyetar, sangrahalay tatha any sanskritik karyon par kharch ki jati hai 2 pratishat prashasan par aur 2 pratishat wiwidh madon par kharch kiya jata hai
leninagnad ki jansankhya 32 lakh hai 17 warsh ki umr se matadhikar prapt ho jata hai asthaniya police nagar nigam ke hi pradhin hain
nagar nigam ke sadasyon ko nigam se koi tankhwah nahin milti jin faiktariyon athwa sansthanon ka we pratinidhitw karte hai, wahan se unhen tankhwah milti hai prisiDiyam ke das sadasyon ko nigam tankhwah deta hai shahr ki upasamitiyo mein 252 log aur kshaetriy upasamitiyon mein 1062 log naukari karte hain hamein bataya gaya ki nigam sadasyon ko kewal samyawadi dal hi khaDa nahin karta, balki unhen alag alag sansthayen athwa janta khaDa karti hai sath hi unhonne is baat ko bhi mana ki chunaw mein prtidwandi khaDa karne ki wyawastha to hai, lekin aisa bahut kam hota hai sadasy nirwirodh hi chunkar aa jate hain
hame bataya gaya ki wyaktigat aay par 8 pratishat tak aay kar wasul kiya jata hai naukari pesha log 6 pratishat aay kar dete hain lekin hamein ye akDe sandehajnak lage, kyonki dusri jagah se hamein jo akDe prapt hue, we inse sarwatha bhinn the
hamein laga ki hamare yahan nagar nigam ke samne jo samasyayen aur karyakram hain, we wahan bhi hain antar kewal itna hai ki unka budget hamare yahan ke budget se kafi baDa hai makan ki samasya to unke samne bhi utni hi wicket hai jitni hamare yahan
jab hamne kamareD strajlkowaski se puchha ki aapke adhin kul kitne adami kaam karte hai, to unhonne mazaq mein hamse puchha ki aapka matlab shararat karne wale logon se hi hai na shri strajlkowaski lagbhag do warsh poorw bharat aaye the aur bharat yatra ke kai sundar sansmarn unhonne hamein sunaye
hamne leninagrad yuwak club bhi dekha club ke sabhapati kamareD jhitri giyankin ne hamara swagat kiya sangit karyakram mein jane se pahle hamne unke kuch sakriy karykartaon ke sath kuch der mulaqat ki sanskritik karyakrmon ke liye unke pas ek wishal bhawan hai, jiske ek haal mein ek hazar log aram se baith sakte hain hamein laga ki hum jo karyakram dekhne gaye the, wo bahut lokapriy tha, kyonki pura haal darshkon se khachakhach bhara tha aur ticket milna kathin tha sab kalakar peshewar kalakar nahin the unmen se kuch to adhyapak the, kuch mazdur aur baDhai the kalakaron mein ek rasoiya naujawan bhi tha apne khali samay mein ye log man bahlaw ke liye club mein aate hain aur is tarah ke karyakram taiyar karte hain isse na kewal unhen hi labh hota hai, balki janta ka bhi man bahlaw ho jata hai jo karyakram hamne dekha wo wastaw mein bahut sundar, tha aur uska sangit unche darje ka tha unhonne kai deshon ke geet gaye, pratyek desha ka geet usi desh ki bhasha aur tarz mein gaya gaya gyarah barah warsh ke ek bachche ne atyant aatm wishwas aur shanadar tariqe se ek geet sunaya
hum log to kewal karyatram dekhne gaye the, kintu ain samay par karyakram ke prbandhkon ne socha ki upasthit darshkon se hamara parichai karaya jaye to achchha ho hamein manch par le jaya gaya aur ek ek karke hum sabka parichai darshkon se karaya gaya ye janne par ki hum log bharatwarsh se aaye hain, upasthit logon ne bhari kartal dhwani se hamara swagat kiya
koi lamba bhashan dene ka awsar to wo tha nahin at jab mujh se bolne ko kaha gaya, to snehpurn swagat ke liye abhar pradarshan kar mainne shishtamanDal ki or se unhen tajamhal ki ek pratikrti bhent mein di aur kaha,yah imarat prem ki pratik hai lekin wo prem ek wekti ka dusre wekti ke liye tha kintu ye pratikrti main bharat ke nawayuwkon ki or se leninagrad ke nawayuwkon ko pyar aur sneh ke pratik ke roop mein bhent kar raha hai ye wekti wishesh ke prem ka nahin, balki samuhik prem ka pratik hain upasthit logon ko ye bhaw bahut pasand aaye mere bolne ke baad ek minat tak taliyon ki gaDagDahat se haal gunjta raha
jab hamne unhen tajamhal ki pratikrti bhent mein di to prbandhkon ko laga ki hamein bhi kuch dena chahiye atah sheeghr hi unhonne talstay ki ek murti mangwai aur hamein meint mein di
is prakar ka hardik aur shanadar swagat wastaw mein hamare liye ek nirala anubhaw tha raat ko lagbhag 12 30 baje karyakram samapt hua aur club ke sadasy hamein hamari bus tak pahunchane aaye
laDke laDakiyon ne lokapriy rusi gane gaye aur hardik widai di sowiyat sangh mein aane ke baad aaj pahli bar hi hamara aisa swmasphurt wa hridayasparshi swagat hua tha logon se milna julna aadi to iske pahle bhi chal raha tha lekin we mulaqaten bahut aupacharik thi ye prem aur sneh dekhkar to ek bar ye bhool gaye ki hum widesh mein hain
leninagrad wishwawidyalay ki ariyantal faculty dekhne ka bhi awsar mila ye wishwawidyalay 140 warsh purana hai aur roos ka dusra sabse baDa wishwawidyalay hai yahan 20000 se bhi adhik widyarthi shiksha pate hai, jinmen se 12000 niymit kakshaon ke widyarthi hai, 4000 sham ki kakshaon ke aur 3000 widyarthi patr wywahar ke dwara shiksha pate hain chhatralay mein 6000 widyarthi rahte hai kewal purwi yuropiy deshon ke hi lagbhag 800 widyarthi yahan hai kai widyarthi hindi sikhte hain, kuch to bangla aur tamil tak ka adhyayan kar rahe hai pustakalaya mein 30 lakh se bhi adhik pustken hai
dopahar ko hamne haramitaj dekha ye roos ke purane zaro ka shitakalin prasad tha aur ab ye sansar ki sabse baDi kaladirghao (art gaileri) mein se ek hai lagbhag 7500 kalakritiyan yahan ekatrit ki gai hain, jinmen se kuch liyonarDo dawichi aur rembra jaise mahan kalakaron ki maulik kritiyan hain samay ki kami ke karan is mahan kala bhawan ko hum jaldi jaldi mein hi dekh pae
shishtamanDal ke any sadasy leninagrad ka pioneer prasad dekhne bhi gaye ye bachchon ki prwrittiyon ka ek baDa kendr hai tatha us mahl mein sthit hai, jahan pahle sassi wash ke log rahte the ismen 300 kamre hain ek pustakalaya bhi hai, jismen lagbhag ek lakh pustken hai yahan bachche wibhinn khel khel sakte hain bachchon ke chitron, khilaunon aur modalon ki pradarshani ne shishtamanDal ke sadasyon ko wisheprup se akarshait kiya baad mein bachchon ne swayan ek sangit karyakram prastut kiya maitripurn gharelu watawarn aur bachchon ke saujanyapurn wywahar ne hamare sathiyon ko bahut prabhawit kiya
leninagrad se hawai jahaz dwara hum krimiya pahunche aur krimiya hawai aDDe se motoron dwara kale samudr ke tat par sthit yalta yalta krimiya ka prasiddh swasthy kendr hai ek din sham ko wanaspati bagh (botenikal garDan) mein gaye ye baghicha zaro ke zamane ka hai bahut sundar hai desh widesh se peD paudhe lakar yahan lagaye gaye hain isse asthaniya logon ko kalpana hoti hai ki bhinn bhinn deshon mein kaise kaise wriksh aur wanaspatiyan hoti hain
baghiche mein hamein lagbhag tees rusi laDkiyon ka jhunD mila ye laDkiyan bhramn ke liye leninagrad se i thi unmen se ek laDanki ne, jo thoDi bahut angrezi janti thi, hamare ek sathi se mazaq mein puchha ki hamare pratinidhi manDal mein kewal ek hi mahila kyon hai hamara sathi kuch asmanjas mein paD gaya aur uttar ke liye meri taraf ishara kar diya us laDki ke parashn ka koi sahi uttar to mere pas bhi nahi tha atah uttar dene ki apeksha mainne usi se ek parashn puchha, tum log itni laDkiyan ho, tumhare sath purush kitne hain? chunki unke sath ek bhi purush nahin tha, use apne parashn ka uttar mil gaya aur sab log mukt hansi hans paDe thoDi hi der mein hum sab aapas mein khoob ghulmil gaye unhonne hamare shishtamanDal ke bare mein kai parashn puchhe pratima ke bare mein bhi unhonne janna chaha ki wo kisan hai ya factory mein kaam karne wali jab hamne unhen bataya ki wo gana janti hai to unhonne saDak par khaDe khaDe hi usse gana sunne ki zid ki baad mein unhonne bhi ek rusi geet gakar hamein sunaya
sham ko hamein ek shanadar jahaz mein samudr ki sair karai gai is jahaz ka nam rosiya tha aur ismen 1500 yatriyon ke baithne ki wyawastha thi ye thoDi dere pahle hi bandargah par aaya tha
uske baad hum samudr ke kinare kinare saDak par tahalte hue chale darasal ye yalta ki ekmatr mukhy saDak hai sari saDak paryatkon se bhari paDi thi kai rogi bhi the, jo desh ke wibhinn bhagon se swasthy sudhar ke liye yahan aaye hue the
sham ko ye saDak logon se bhar jati hai aur kafi bheeD bhaD ho jati hai us samay sawariyon ka awagaman bilkul band kar diya jata hai, jisse logon ko chalne phirne mein bahut suwidha ho jati hai
saDak par tahalte samay hamne DeDh do warsh ka ek bachcha dekha, jo saDak ke bichon beech nannhi si ghoDagaDi hankakar le ja raha tha hamara ek sathi uske pas gaya aur ghoDe ki lagam pakaDkar hamare pas le aaya bachcha zara bhi nahin roya, ulte usne hath milane ke liye apna dayan hath aage baDha diya uske mata pita pas hi ek bench par baithe hue the ye dekhkar ki unke nannhe bachche ne nae nae dost banaye hain, we bhi hamare pas aaye aur kuch hi der mein hamare mitr wan gaye
raston se guzarne wale log tatha dusre bhi hamare sath bahut prem se wywahar karte unko bharatiy achchhe lagte hain we hamare pardhan mantari ki khoob tarif karte jahan jahan bhi hum gaye, hamara baDe harsh ke sath swagat kiya gaya usmen kahin koi kritrimta nahin thi
bhasha ki kathinai ke bawjud log hamse bolne aur batachit karne ko utsuk the angrezi janne wale bahut kam the, isliye dubhashiye ki sarwatr mang rahti jahan kahin koi thoDi bhi angrezi jannewala mil jata, log use lekar hamare pas aate aur uske zariye duniyabhar ke parashn utsuktapurwak hamse puchhte
swadesh ke atirikt unhen apne shahr par bhi garw tha har baat cheet ke ant mein hamara shahr aapko kaisa laga? zarur poochh liya jata leninagrad mein bhi log isi tarah puchhte the
roos mein hamne jabse qadam rakha, hamara sara samay baDa wyast raha yalta mein pahli bar hamein sahi mane mein aram aur chain mila kale samudr ke sundar taton aur pas paDaus ke swasthyaprad asthanon par hum khoob mauj se ghume samudr ke pani ka gahra nila rang baDa manmohak lagta tha nashta karke motor bote mein hum mishob ke liye rawana hue raste mein hamari naw kuch steshnon par ruki hum kinare kinare hi ja rahe the taton par saikDon log anand se ghumte hue dikhai de rahe the koi balu par leta hai to koi surya snan kar raha hai, koi nha raha hai to koi nauka wihar kar raha hai lagbhag sare samudr tat ko logon ke wishram wihar ke layaq saja bana diya gaya hai aur iska labh uthane ke liye yahan hazaron lakhon ki sankhya mein log aate rahte hain jaise hi hum mishow pahunche, hum sidhe samudr mein kood paDe aur khoob mauj se snan kiya, taire, kashtiyon par dhume aur khele pani kafi thanDa tha, phir bhi bahut maza aaya bilkul tar o taza ho gaye
bhojan ke baad hum phir nae nae sthan aur chizen dekhne ke liye nikal paDe brensoski mahl hamein baDa achchha laga ismen europe aur atoman ke sthapatyakla ka mel hai mughal tariqe ke gumbad the aur khiDkiyan gothik Dhang ki thi
nyano aur mishano hamare sath masco mein hi aaye the inke alawa do asthaniya mitr, erik aur najra bhi is taraf ki sari yatra mein hamare sath rahe hamne yahan bhi mitr banana shuru kar diya tha naja ek wyask aur baDi mustaid mahila hai inhonne sagi baDi bahan ki bhanti hamari dekhbhal ki wo baDi chinta ke sath hamare liye sakahari bhojan banwati aur bhojan mein roz nai nai chizen deti jahan jahan bhi hamein jana hota, wo hamse pahle ek alag kar mein pahunch jati jab hum pahunchte to sari chizen tartib se saji sajai hamein milti unki shalinta aur karyakushalta ne hamein baDa prabhawit kiya
jab hum naw mein mishow se lautne lage to musafiro ne aakar hamein gher liya unke liye aur hamare liye bhi wo ek utsaw sa ban gaya hum bhi unmen ghul mil gaye aur khoob gate khelte rahe unmen ek aath warsh ka balak bladishiw sheko bhi tha usne haw bhaw samet ek kahani sunani shuru kar di wo bahut hi almast prakrti ka laDka tha jo kahani usne sunai, uska bhaw yahi tha ki ek bar ek bheDiya ek ganw mein aaya log use mar Dalna chahte the wo ek bille ke pas gaya aur puchha ki ganw mein koi aisa wekti bhi ho sakta hai, jo uski jaan bachaye? bille ne teen chaar logon ke nam bataye bheDiya bola, nahin, we meri madad nahin karenge, kyonki mainne unke janwar kha liye the bille ne uttar diya, jab tumne sab logon ke janwar kha Dale, to tumhari jaan kon bachayega?
kahani samapt hone ke baad jab mainne usse puchha ki hamare sath bharat chaloge, to usne kaha, ha ha, kyon nahin lekin thoDe hi samay ke liye chalunga aur wo bhi akela nahin, apne pariwar ke sath aunga mujhe apna pata de dijiye main aapko patr likhunga apni umr ke hisab se uski buddhi bahut prakhar thi uske bolne chalne aur wywahar mein kafi atmawishwas tha
sham ko hamein alup ka dikhane le jaya gaya ye wahi prasiddh aitihasik sthan hai, jahan san 1945 mein laDai ke ant mein stalin, charchil aur rujwelt ne yudh aur shanti ke bare mein mahatwapurn nirnay liye the hamein wo sthan bhi dikhaya gaya jahan inki baithken hui aur jahan we tinon pramukh thahre the jis imarat mein charchil thahre the, wo sundar hai san 1955 mein jab pradhanamantri nehru yahan aaye the, tab unhen bhi isi mein thahraya gaya tha ab to ise senitoriyam bana diya gaya hai samudr ke kinare charon or pahaDiyan hai adhiktar in pahaDiyon ki Dhaal par hi makan banaye jate hain charon taraf peD paudhe aur hariyali hone ke karan sabkuchh bahut sundar lag raha tha samudr ke kinare par hamare yahan jaisi ret nahin hoti, balki kankaD patthar hote hai
dusre din subah nashte ke fauran baad hum ipalsi parwat par gaye is pahaD ki unchai 1253 meter hai pahaD ki choti par mahayuddh mein mare gaye shahidon ka smarak hai aise pahaDon par saDak banana bahut hi kathin aur kharchila hai is kshaetr mein ek kilomitar saDak banane mein lagbhag 150 lakh ruble kharch aata hai prashasan ne saDak banane wale mazduron ke liye teen chaar makan banwa diye hai hamein ek makan bhi dikhaya gaya, jo maiweriya aur tuDra se aane wale paryatkon ke liye surakshait hai railway karmchariyon aur khadan mein kaam karne wale mazduron ke liye bhi alag alag makan surakshait hai
sham ko hum yukren senitoriyam mein gaye wahan ke logon ne hamara hardik swagat kiya aur hamari sukh suwidha ka bahut khayal rakha senitoriyam ki dekhbhal ek 72 warsh ki wriddha karti hai har mane mein wo adbhut mahila thi sab kaam wo apne hathon se karti thi hum jis mez par khana khane wale the, use usne swayan wishesh roop mein sajaya tha wo kamal ki mezban thi itne agrah ke sath usne hamein khana khilaya ki hamne apni samany khurak se lagbhag duguna khana khaya us mahila ka apna nirala wyaktitw tha aur pure senitoriyam ke log use man kahkar bulate the wo wastaw mein un sabki man hi thi bhale hi koi adami thoDi der ke liye hi kyon na aaye, wapas jate samay wo unki madhur smriti lekar hi jayega uske hridar mein pratyek wekti ke liye sneh aur mamta thi
pimiya ko antim namaskar par hum hawai jahaz se sham ko yukren ki rajdhani pahunche agla din shahr ke paryatan se hi shuru hua yudh ke wiron ki murtiyan aur agyat yoddhaon ke smarak hamne dekhe shahr ka chakkar lagakar hum ek tekDi par gaye aur wahan se ek taraf kiwashhar ka aur dusri taraf nipar nadi ka drishya dekha uridol gaurki ka makabra bhi hamne dekha masakwa shahr ki sthapana unhonne hi ki thi gyarahwi sadi mein nirmit any girje tatha aur bhi kai sthan hamne dekhe asthaniya komsomol ka daftar ek wishal aur sundar chaar manzile bhawan mein hai
dopahar mein hamne bachchon ki rail dekhi baad mein 4 30 baje wishal khushchow stadium dekhne gaye khushchow isi pardesh ke mool niwasi hain unke sowiyat roos ke pradhanamantri banne se pahle hi is stadium ka nam unke nam par rakha gaya tha aaj utsaw ka din tha pahli war sowiyat yuwak diwas manaya ja raha tha samaroh atyant prabhawotpadak tha baad mein sahrdayta aur prem se logon ki bheeD ne hamein itni buri tarah gher liya ki jisko hum kabhi nahin bhula sakte
dusre din subah hum chhote bachchon ki kripi sanstha dekhne gaye hamein is sanstha ke sabhi wibhagon mein dhumaya gaya aur iske kamakaj ke bare mein sari baten wistarpurwak batai gain bachche kheti ke anusandhan ka kaam yahan seekh rahe the pratyaksh anubhaw aur prayog ke liye sanstha ke pas ek khet bhi hai
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।