प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा नौवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मज़बूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे 'बेस कैंप' पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।
नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में 'सागरमाथा' के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा।
एवरेस्ट की तरफ़ ग़ौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत-शिखर पर लहराता एक ध्वज-सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर ख़राब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी।
जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जाने वाले अभियान दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।
इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में ख़तरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।
उपनेता प्रेमचंद, जो अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे, 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने हमारी पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से हमें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप-एक (6000 मी.), जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायज़ा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और हमें रास्ता खोलने का काम दुबारा करना पड़ सकता है।
'बेस कैंप' में पहुँचने से पहले हमें एक और मृत्यु की ख़बर मिली। जलवायु अनुकूल न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से हम आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।
एवरेस्ट शिखर को मैंने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन मैंने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। मैं भौंचक्की होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फ़ीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही।
हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही था। हमें बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती थी, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टाने तत्काल गिर जाया करती थीं और अन्य कारणों से भी अचानक प्रायः ख़तरनाक स्थिति धारण कर लेती थीं। सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र ख़याल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रवास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।
दूसरे दिन नए आने वाले अपने अधिकांश सामान को हम हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ. मीनू मेहता ने हमें अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और हमारे अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी।
तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए निश्चित था। रीता गोंबू तथा मैं साथ-साथ चढ़ रहे थे। हमारे पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे हम अपने हर क़दम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय ख़ुश हुए, जब हमने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पहुँचने वाली केवल हम दो ही महिलाएँ थीं।
अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी।
जब अप्रैल में मैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।
15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मैं ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहने वाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे। मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग मेरे सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख़्त चीज़ के टकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक ज़ोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज़ मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।
यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ़ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ़ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ़ इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज़ गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस-नहस कर दिया) वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।
लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से हमारे तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही अत्यंत तेज़ी से मुझे बचाने की कोशिश में लग गए। थोड़ी-सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बड़े-बड़े हिमपिंडों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने मेरे चारों तरफ़ की कड़े जमे बर्फ़ की खुदाई की और मुझे उस बर्फ़ की क़ब्र से निकाल बाहर खींच लाने में सफल हो गए।
सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रात: 8 बजे तक हम प्रायः सभी कैंप-दो पर पहुँच गए थे। जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक ख़ुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। हमारे नेता कर्नल खुल्लर के शब्दों में, यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक ज़बरदस्त साहसिक कार्य था।
सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों अथवा टूटी हड्डियों आदि के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर मेरी तरफ़ मुड़कर कहने लगे, क्या तुम भयभीत थीं?
जी हाँ।
क्या तुम वापिस जाना चाहोगी?
नहीं, मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।
जैसे ही मैं साउथ कोल कैंप पहुँची, मैंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। मैंने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दुपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने मुझे चाय के लिए पानी गर्म करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। मैं चिंतित थी क्योंकि मुझे अगले दिन उनके साथ ही चढाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।
दुपहर बाद मैंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक थरमस को जूस से और दूसरे को गर्म चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय किया। मैंने बर्फ़ीली हवा में ही तंबू से बाहर क़दम रखा। जैसे ही मैं कैंप क्षेत्र से बाहर आ रही थी मेरी मुलाक़ात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। मुझे जय जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने कृतज्ञतापूर्वक चाय वग़ैरह पी लेकिन मुझे और आगे जाने से रोकने की कोशिश की। मगर मुझे की से भी मिलना था। थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर मैंने की को देखा। वह मुझे देखकर हक्का-बक्का रह गया।
तुमने इतनी बड़ी जोख़िम क्यों ली बचेंद्री?
मैंने उसे दृढ़तापूर्वक कहा, मैं भी औरों की तरह एक पर्वतारोही हूँ, इसीलिए इस दल में आई हूँ। शारीरिक रूप से मैं ठीक हूँ। इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों की मदद क्यों नहीं करनी चाहिए। की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन उसने मुझे अपना किट ले जाने नहीं दिया।
थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा हमें मिलने नीचे उतर आए। और हम सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। साउथ कोल 'पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर' जगह के नाम से प्रसिद्ध है।
अगले दिन मैं सुबह चार बजे उठ गई। बर्फ़ पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई आसपास नहीं था।
अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करने वाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था।
वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था...और उसने मुझसे पूछा, क्या मैं उसके साथ जाना चाहूँगी? एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और श्रमसाध्य होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके लौटकर आने का भी जोख़िम था। मुझे फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ-साथ में आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी। अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।
सुबह 6:20 पर जब अंगदोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर आ निकले तो दिन ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफ़ी सुरक्षित और गर्म थी। हमने बग़ैर रस्सी के ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे भी उनके साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
जमे हुए बर्फ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख़्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बर्फ़ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना ही पड़ा और मुझे इतनी सख़्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। मैंने उन ख़तरनाक स्थलों पर हर क़दम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।
दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, नहीं। जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि पहले वाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दुपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।
ल्हाटू हमारे पीछे-पीछे आ रहा था और जब हम दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह हमारे पास पहुँच गया। थोड़ी-थोड़ी चाय पीने के बाद हमने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय हमारे संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि मैं इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यतः आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, मुझे महसूस हुआ कि सपाट और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।
दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ़ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है।
मेरी साँस मानो रुक गई थी। मुझे विचार कौंधा कि सफलता बहुत नज़दीक है। 23 मई 1984 के दिन दुपहर के एक बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली मैं प्रथम भारतीय महिला थी।
एवरेस्ट शंकु की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न सुरक्षा का था। हमने पहले बर्फ़ के फावड़े से बर्फ़ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद, मैं अपने घुटनों के बल बैठी, बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर मैंने 'सागरमाथे' के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ़ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।
जैसे मैं उठी, मैंने अपने हाथ जोड़े और मैं अपने रज्जु-नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे लक्ष्य तक पहुँचाया। मैंने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे कानों में फुसफुसाया, दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!
कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फ़ोटो लेने शुरू कर दिए।
इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा! वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा!
evrest abhiyan dal 7 march ko dilli se kathmanDu ke liye havai jahaz se chal diya. ek mazbut agrim dal bahut pahle hi chala gaya tha jisse ki wo hamare bes kaimp pahunchne se pahle durgam himpat ke raste ko saaf kar sake.
namche bazar, sherpalainD ka ek sarvadhik mahattvpurn nagriy kshetr hai. adhikansh sherapa isi sthaan tatha yahin ke asapas ke ganvon ke hote hain. ye namche bazar hi tha, jahan se mainne sarvapratham evrest ko nihara, jo nepaliyon mein sagarmatha ke naam se prasiddh hai. mujhe ye naam achchha laga.
evrest ki taraf ghaur se dekhte hue, mainne ek bhari barf ka baDa phool (ploom) dekha, jo parvat shikhar par lahrata ek dhvaj sa lag raha tha. mujhe bataya gaya ki ye drishya shikhar ki uupri satah ke asapas 150 kilomitar athva isse bhi adhik ki gati se hava chalne ke karan banta tha, kyonki tez hava se sukha barf parvat par uDta rahta tha. barf ka ye dhvaj 10 kilomitar ya isse bhi lamba ho sakta tha. shikhar par jane vale pratyek vyakti ko dakshin purvi pahaDi par in tufanon ko jhelna paDta tha, visheshkar kharab mausam mein. ye mujhe Darane ke liye kafi tha, phir bhi main evrest ke prati vichitr roop se akarshit thi aur iski kathintam chunautiyon ka samna karna chahti thi.
jab hum 26 march ko pairich pahunche, hamein him skhalan ke karan hui ek sherapa kuli ki mrityu ka duःkhad samachar mila. khumbhu himpat par jane vale abhiyan dal ke raste ke bain taraf sidhi pahaDi ke dhasakne se, lhotse ki or se ek bahut baDi barf ki chattan niche khisak aai thi. solah sherapa kuliyon ke dal mein se ek ki mrityu ho gai aur chaar ghayal ho ge the.
is samachar ke karan abhiyan dal ke sadasyon ke chehron par chhaye avsad ko dekhkar hamare neta karnal khullar ne aspasht kiya ki evrest jaise mahan abhiyan mein khatron ko aur kabhi kabhi to mrityu bhi adami ko sahj bhaav se svikar karni chahiye.
upneta premchand, jo agrim dal ka netritv kar rahe the, 26 march ko pairich laut aaye. unhonne hamari pahli baDi badha khumbhu himpat ki sthiti se hamein avgat karaya. unhonne kaha ki unke dal ne kaimp ek (6000 mi. ), jo himpat ke theek uupar hai, vahan tak ka rasta saaf kar diya hai. unhonne ye bhi bataya ki pul banakar, rassiyan bandhakar tatha jhanDiyon se rasta chihnit kar, sabhi baDi kathinaiyon ka jayza le liya gaya hai. unhonne is par bhi dhyaan dilaya ki gleshiyar barf ki nadi hai aur barf ka girna abhi jari hai. himpat mein aniymit aur anishchit badlav ke karan abhi tak ke kiye ge sabhi kaam vyarth ho sakte hain aur hamein rasta kholne ka kaam dubara karna paD sakta hai.
bes kaimp mein pahunchne se pahle hamein ek aur mrityu ki khabar mili. jalvayu anukul na hone ke karan ek rasoi sahayak ki mrityu ho gai thi. nishchit roop se hum ashajanak sthiti mein nahin chal rahe the.
evrest shikhar ko mainne pahle do baar dekha tha, lekin ek duri se. bes kaimp pahunchne par dusre din mainne evrest parvat tatha iski anya shreniyon ko dekha. main bhaunchakki hokar khaDi rah gai aur evrest, lhotse aur nutse ki uunchaiyon se ghiri, barfili teDhi meDhi nadi ko niharti rahi.
himpat apne apmen ek tarah se barf ke khanDon ka avyavasthit Dhang se girna hi tha. hamein bataya gaya ki gleshiyar ke bahne se aksar barf mein halchal ho jati thi, jisse baDi baDi barf ki chattane tatkal gir jaya karti theen aur anya karnon se bhi achanak praayः khatarnak sthiti dharan kar leti theen. sidhe dharatal par darar paDne ka vichar aur is darar ka gahre chauDe him vidar mein badal jane ka maatr khayal hi bahut Daravna tha. isse bhi zyada bhayanak is baat ki jankari thi ki hamare sampurn pravas ke dauran himpat lagbhag ek darjan arohiyon aur kuliyon ko pratidin chhuta rahega.
dusre din ne aane vale apne adhikansh saman ko hum himpat ke aadhe raste tak le ge. Dau. minu mehta ne hamein alyuminiyam ki siDhiyon se asthayi pulon ka banana, latthon aur rassiyon ka upyog, barf ki aaDi tirchhi divaron par rassiyon ko bandhna aur hamare agrim dal ke abhiyantriki karyon ke bare mein hamein vistrit jankari di.
tisra din himpat se kaimp ek tak saman Dhokar chaDhai ka abhyas karne ke liye nishchit tha. rita gombu tatha main saath saath chaDh rahe the. hamare paas ek vauki tauki tha, jisse hum apne har qadam ki jankari bes kaimp par de rahe the. karnal khullar us samay khush hue, jab hamne unhen apne pahunchne ki suchana di kyonki kaimp ek par pahunchne vali keval hum do hi mahilayen theen.
angdorji, lopsang aur gagan bissa antatः sauth kol pahunch ge aur 29 april ko 7900 mitar par unhonne kaimp chaar lagaya. ye santoshajnak pragti thi.
jab april mein main bes kaimp mein thi, tenjing apni sabse chhoti suputri Deki ke saath hamare paas aaye the. unhonne is baat par vishesh mahattv diya ki dal ke pratyek sadasya aur pratyek sherapa kuli se batachit ki jaye. jab meri bari aai, mainne apna parichay ye kahkar diya ki main bilkul hi nausikhiya hoon aur evrest mera pahla abhiyan hai. tenjing hanse aur mujhse kaha ki evrest unke liye bhi pahla abhiyan hai, lekin ye bhi aspasht kiya ki shikhar par pahunchne se pahle unhen saat baar evrest par jana paDa tha. phir apna haath mere kandhe par rakhte hue unhonne kaha, tum ek pakki parvatiy laDki lagti ho. tumhein to shikhar par pahle hi prayas mein pahunch jana chahiye.
15 16 mai 1984 ko buddh purnima ke din main lhotse ki barfili sidhi Dhalan par lagaye ge sundar rangin nailaun ke bane tambu ke kaimp teen mein thi. kaimp mein 10 aur vyakti the. lopsang, tasharing mere tambu mein the, en. Di. sherapa tatha aur aath anya sharir se mazbut aur uunchaiyon mein rahne vale sherapa dusre tambuon mein the. main gahri neend mein soi hui thi ki raat mein 12. 30 baje ke lagbhag mere sir ke pichhle hisse mein kisi ek sakht cheez ke takrane se meri neend achanak khul gai aur saath hi ek zordar dhamaka bhi hua. tabhi mujhe mahsus hua ki ek thanDi, bahut bhari koi cheez mere sharir par se mujhe kuchalti hui chal rahi hai. mujhe saans lene mein bhi kathinai ho rahi thi.
ye kya ho gaya tha? ek lamba barf ka pinD hamare kaimp ke theek uupar lhotse gleshiyar se tutkar niche aa gira tha aur uska vishal himpunj bana gaya tha. himkhanDon, barf ke tukDon tatha jami hui barf is vishalakay punj ne, ek eksapres relgaDi ki tez gati aur bhishan garjana ke saath, sidhi Dhalan se niche aate hue hamare kaimp ko tahas nahas kar diya) vastav mein har vyakti ko chot lagi tho. ye ek ashyarch tha ki kisi ki mrityu nahin hui thi.
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subah tak sare suraksha dal aa ge the aur 16 mai ko pratah 8 baje tak hum praayः sabhi kaimp do par pahunch ge the. jis sherapa ki taang ki haDDi toot gai thi, use ek khud ke banaye strechar par litakar niche laye. hamare neta karnal khullar ke shabdon mein, yah itni uunchai par suraksha karya ka ek zabardast sahasik karya tha.
sabhi nau purush sadasyon ko choton athva tuti haDDiyon aadi ke karan bes kaimp mein bhejna paDa. tabhi karnal khullar meri taraf muDkar kahne lage, kya tum bhaybhit theen?
ji haan.
kya tum vapis jana chahogi?
nahin, mainne bina kisi hichkichahat ke uttar diya.
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agle din main subah chaar baje uth gai. barf pighlaya aur chaay banai, kuch biskut aur aadhi chauklet ka halka nashta karne ke baad main lagbhag saDhe paanch baje apne tambu se nikal paDi. angdorji bahar khaDa tha aur koi asapas nahin tha.
angdorji bina auksijan ke hi chaDhai karne vala tha. lekin iske karan uske pair thanDe paD jate the. isliye wo uunchai par lambe samay tak khule mein aur ratri mein shikhar kaimp par nahin jana chahta tha. isliye use ya to usi din choti tak chaDhkar sauth kol par vapas aa jana tha athva apne prayas ko chhoD dena tha.
wo turant hi chaDhai shuru karna chahta tha. . . aur usne mujhse puchha, kya main uske saath jana chahungi? ek hi din mein sauth kol se choti tak jana aur vapas aana bahut kathin aur shramsadhya hoga! iske alava yadi angdorji ke pair thanDe paD ge to uske lautkar aane ka bhi jokhim tha. mujhe phir bhi angdorji par vishvas tha aur saath saath mein arohan ki kshamata aur karmathta ke bare mein bhi ashvast thi. anya koi bhi vyakti is samay saath chalne ke liye taiyar nahin tha.
subah 6ha20 par jab angdorji aur main sauth kol se bahar aa nikle to din uupar chaDh aaya tha. halki halki hava chal rahi thi, lekin thanD bhi bahut adhik thi. main apne arohi upaskar mein kafi surakshit aur garam thi. hamne baghair rassi ke hi chaDhai ki. angdorji ek nishchit gati se uupar chaDhte ge aur mujhe bhi unke saath chalne mein koi kathinai nahin hui.
jame hue barf ki sidhi va Dhalau chattanen itni sakht aur bhurabhuri theen, mano shishe ki chadren bichhi hon. hamein barf katne ke phavDe ka istemal karna hi paDa aur mujhe itni sakhti se phavDa chalana paDa jisse ki us jame hue barf ki dharti ko phavDe ke dante kaat saken. mainne un khatarnak sthlon par har qadam achchhi tarah soch samajhkar uthaya.
do ghante se kam samay mein hi hum shikhar kaimp par pahunch ge. angdorji ne pichhe muDkar dekha aur mujhse kaha ki kya main thak gai hoon. mainne javab diya, nahin. jise sunkar ve bahut adhik ashcharyachkit aur anandit hue. unhonne kaha ki pahle vale dal ne shikhar kaimp par pahunchne mein chaar ghante lagaye the aur yadi hum isi gati se chalte rahe to hum shikhar par duphar ek baje ek pahunch jayenge.
lhatu hamare pichhe pichhe aa raha tha aur jab hum dakshini shikhar ke niche aram kar rahe the, wo hamare paas pahunch gaya. thoDi thoDi chaay pine ke baad hamne phir chaDhai shuru ki. lhatu ek naylaun ki rassi laya tha. isliye angdorji aur main rassi ke sahare chaDhe, jabki lhatu ek haath se rassi pakDe hue beech mein chala. usne rassi apni suraksha ki bajay hamare santulan ke liye pakDi hui thi. lhatu ne dhyaan diya ki main in uunchaiyon ke liye samanyatः avashyak, chaar litar auksijan ki apeksha, lagbhag Dhai litar auksijan prati minat ki dar se lekar chaDh rahi thi. mere reguletar par jaise hi usne auksijan ki apurti baDhai, mujhe mahsus hua ki sapat aur kathin chaDhai bhi ab asan lag rahi thi.
dakshini shikhar ke uupar hava ki gati baDh gai thi. us uunchai par tez hava ke jhonke bhurbhure barf ke kanon ko charon taraf uDa rahe the, jisse drishyata shunya tak aa gai thi. anek baar dekha ki keval thoDi door ke baad koi uunchi chaDhai nahin hai. Dhalan ekdam sidha niche chala gaya hai.
meri saans mano ruk gai thi. mujhe vichar kaundha ki saphalta bahut nazdik hai. 23 mai 1984 ke din duphar ke ek bajkar saat minat par main evrest ki choti par khaDi thi. evrest ki choti par pahunchne vali main pratham bharatiy mahila thi.
evrest shanku ki choti par itni jagah nahin thi ki do vyakti saath saath khaDe ho saken. charon taraph hazaron mitar lambi sidhi Dhalan ko dekhte hue hamare samne parashn suraksha ka tha. hamne pahle barf ke phavDe se barf ki khudai kar apne aapko surakshit roop se sthir kiya. iske baad, main apne ghutnon ke bal baithi, barf par apne mathe ko lagakar mainne sagarmathe ke taaj ka chumban liya. bina uthe hi mainne apne thaile se durga maan ka chitr aur hanuman chalisa nikala. mainne inko apne saath laye laal kapDe mein lapeta, chhoti si puja archna ki aur inko barf mein daba diya. anand ke is kshan mein mujhe apne mata pita ka dhyaan aaya.
jaise main uthi, mainne apne haath joDe aur main apne rajju neta angdorji ke prati aadar bhaav se jhuki. angdorji jinhonne mujhe protsahit kiya aur mujhe lakshya tak pahunchaya. mainne unhen bina auksijan ke evrest ki dusri chaDhai chaDhne par badhai bhi di. unhonne mujhe gale se lagaya aur mere kanon mein phusaphusaya, didi, tumne achchhi chaDhai ki. main bahut prasann hoon!
kuch der baad sonam puljar pahunche aur unhonne foto lene shuru kar diye.
is samay tak lhatu ne hamare neta ko evrest par hum charon ke hone ki suchana de di thi. tab mere haath mein vauki tauki diya gaya. karnal khullar hamari saphalta se bahut prasann the. mujhe badhai dete hue unhonne kaha, main tumhari is anuthi uplabdhi ke liye tumhare mata pita ko badhai dena chahunga! ve bole ki desh ko tum par garv hai aur ab tum aise sansar mein vapas jaogi, jo tumhare apne pichhe chhoDe hue sansar se ekdam bhinn hoga!
evrest abhiyan dal 7 march ko dilli se kathmanDu ke liye havai jahaz se chal diya. ek mazbut agrim dal bahut pahle hi chala gaya tha jisse ki wo hamare bes kaimp pahunchne se pahle durgam himpat ke raste ko saaf kar sake.
namche bazar, sherpalainD ka ek sarvadhik mahattvpurn nagriy kshetr hai. adhikansh sherapa isi sthaan tatha yahin ke asapas ke ganvon ke hote hain. ye namche bazar hi tha, jahan se mainne sarvapratham evrest ko nihara, jo nepaliyon mein sagarmatha ke naam se prasiddh hai. mujhe ye naam achchha laga.
evrest ki taraf ghaur se dekhte hue, mainne ek bhari barf ka baDa phool (ploom) dekha, jo parvat shikhar par lahrata ek dhvaj sa lag raha tha. mujhe bataya gaya ki ye drishya shikhar ki uupri satah ke asapas 150 kilomitar athva isse bhi adhik ki gati se hava chalne ke karan banta tha, kyonki tez hava se sukha barf parvat par uDta rahta tha. barf ka ye dhvaj 10 kilomitar ya isse bhi lamba ho sakta tha. shikhar par jane vale pratyek vyakti ko dakshin purvi pahaDi par in tufanon ko jhelna paDta tha, visheshkar kharab mausam mein. ye mujhe Darane ke liye kafi tha, phir bhi main evrest ke prati vichitr roop se akarshit thi aur iski kathintam chunautiyon ka samna karna chahti thi.
jab hum 26 march ko pairich pahunche, hamein him skhalan ke karan hui ek sherapa kuli ki mrityu ka duःkhad samachar mila. khumbhu himpat par jane vale abhiyan dal ke raste ke bain taraf sidhi pahaDi ke dhasakne se, lhotse ki or se ek bahut baDi barf ki chattan niche khisak aai thi. solah sherapa kuliyon ke dal mein se ek ki mrityu ho gai aur chaar ghayal ho ge the.
is samachar ke karan abhiyan dal ke sadasyon ke chehron par chhaye avsad ko dekhkar hamare neta karnal khullar ne aspasht kiya ki evrest jaise mahan abhiyan mein khatron ko aur kabhi kabhi to mrityu bhi adami ko sahj bhaav se svikar karni chahiye.
upneta premchand, jo agrim dal ka netritv kar rahe the, 26 march ko pairich laut aaye. unhonne hamari pahli baDi badha khumbhu himpat ki sthiti se hamein avgat karaya. unhonne kaha ki unke dal ne kaimp ek (6000 mi. ), jo himpat ke theek uupar hai, vahan tak ka rasta saaf kar diya hai. unhonne ye bhi bataya ki pul banakar, rassiyan bandhakar tatha jhanDiyon se rasta chihnit kar, sabhi baDi kathinaiyon ka jayza le liya gaya hai. unhonne is par bhi dhyaan dilaya ki gleshiyar barf ki nadi hai aur barf ka girna abhi jari hai. himpat mein aniymit aur anishchit badlav ke karan abhi tak ke kiye ge sabhi kaam vyarth ho sakte hain aur hamein rasta kholne ka kaam dubara karna paD sakta hai.
bes kaimp mein pahunchne se pahle hamein ek aur mrityu ki khabar mili. jalvayu anukul na hone ke karan ek rasoi sahayak ki mrityu ho gai thi. nishchit roop se hum ashajanak sthiti mein nahin chal rahe the.
evrest shikhar ko mainne pahle do baar dekha tha, lekin ek duri se. bes kaimp pahunchne par dusre din mainne evrest parvat tatha iski anya shreniyon ko dekha. main bhaunchakki hokar khaDi rah gai aur evrest, lhotse aur nutse ki uunchaiyon se ghiri, barfili teDhi meDhi nadi ko niharti rahi.
himpat apne apmen ek tarah se barf ke khanDon ka avyavasthit Dhang se girna hi tha. hamein bataya gaya ki gleshiyar ke bahne se aksar barf mein halchal ho jati thi, jisse baDi baDi barf ki chattane tatkal gir jaya karti theen aur anya karnon se bhi achanak praayः khatarnak sthiti dharan kar leti theen. sidhe dharatal par darar paDne ka vichar aur is darar ka gahre chauDe him vidar mein badal jane ka maatr khayal hi bahut Daravna tha. isse bhi zyada bhayanak is baat ki jankari thi ki hamare sampurn pravas ke dauran himpat lagbhag ek darjan arohiyon aur kuliyon ko pratidin chhuta rahega.
dusre din ne aane vale apne adhikansh saman ko hum himpat ke aadhe raste tak le ge. Dau. minu mehta ne hamein alyuminiyam ki siDhiyon se asthayi pulon ka banana, latthon aur rassiyon ka upyog, barf ki aaDi tirchhi divaron par rassiyon ko bandhna aur hamare agrim dal ke abhiyantriki karyon ke bare mein hamein vistrit jankari di.
tisra din himpat se kaimp ek tak saman Dhokar chaDhai ka abhyas karne ke liye nishchit tha. rita gombu tatha main saath saath chaDh rahe the. hamare paas ek vauki tauki tha, jisse hum apne har qadam ki jankari bes kaimp par de rahe the. karnal khullar us samay khush hue, jab hamne unhen apne pahunchne ki suchana di kyonki kaimp ek par pahunchne vali keval hum do hi mahilayen theen.
angdorji, lopsang aur gagan bissa antatः sauth kol pahunch ge aur 29 april ko 7900 mitar par unhonne kaimp chaar lagaya. ye santoshajnak pragti thi.
jab april mein main bes kaimp mein thi, tenjing apni sabse chhoti suputri Deki ke saath hamare paas aaye the. unhonne is baat par vishesh mahattv diya ki dal ke pratyek sadasya aur pratyek sherapa kuli se batachit ki jaye. jab meri bari aai, mainne apna parichay ye kahkar diya ki main bilkul hi nausikhiya hoon aur evrest mera pahla abhiyan hai. tenjing hanse aur mujhse kaha ki evrest unke liye bhi pahla abhiyan hai, lekin ye bhi aspasht kiya ki shikhar par pahunchne se pahle unhen saat baar evrest par jana paDa tha. phir apna haath mere kandhe par rakhte hue unhonne kaha, tum ek pakki parvatiy laDki lagti ho. tumhein to shikhar par pahle hi prayas mein pahunch jana chahiye.
15 16 mai 1984 ko buddh purnima ke din main lhotse ki barfili sidhi Dhalan par lagaye ge sundar rangin nailaun ke bane tambu ke kaimp teen mein thi. kaimp mein 10 aur vyakti the. lopsang, tasharing mere tambu mein the, en. Di. sherapa tatha aur aath anya sharir se mazbut aur uunchaiyon mein rahne vale sherapa dusre tambuon mein the. main gahri neend mein soi hui thi ki raat mein 12. 30 baje ke lagbhag mere sir ke pichhle hisse mein kisi ek sakht cheez ke takrane se meri neend achanak khul gai aur saath hi ek zordar dhamaka bhi hua. tabhi mujhe mahsus hua ki ek thanDi, bahut bhari koi cheez mere sharir par se mujhe kuchalti hui chal rahi hai. mujhe saans lene mein bhi kathinai ho rahi thi.
ye kya ho gaya tha? ek lamba barf ka pinD hamare kaimp ke theek uupar lhotse gleshiyar se tutkar niche aa gira tha aur uska vishal himpunj bana gaya tha. himkhanDon, barf ke tukDon tatha jami hui barf is vishalakay punj ne, ek eksapres relgaDi ki tez gati aur bhishan garjana ke saath, sidhi Dhalan se niche aate hue hamare kaimp ko tahas nahas kar diya) vastav mein har vyakti ko chot lagi tho. ye ek ashyarch tha ki kisi ki mrityu nahin hui thi.
lopsang apni svis chhuri ki madad se hamare tambu ka rasta saaf karne mein saphal ho ge the aur turant hi atyant tezi se mujhe bachane ki koshish mein lag ge. thoDi si bhi der ka sidha arth tha mrityu. baDe baDe himpinDon ko mushkil se hatate hue unhonne mere charon taraf ki kaDe jame barf ki khudai ki aur mujhe us barf ki qabr se nikal bahar kheench lane mein saphal ho ge.
subah tak sare suraksha dal aa ge the aur 16 mai ko pratah 8 baje tak hum praayः sabhi kaimp do par pahunch ge the. jis sherapa ki taang ki haDDi toot gai thi, use ek khud ke banaye strechar par litakar niche laye. hamare neta karnal khullar ke shabdon mein, yah itni uunchai par suraksha karya ka ek zabardast sahasik karya tha.
sabhi nau purush sadasyon ko choton athva tuti haDDiyon aadi ke karan bes kaimp mein bhejna paDa. tabhi karnal khullar meri taraf muDkar kahne lage, kya tum bhaybhit theen?
ji haan.
kya tum vapis jana chahogi?
nahin, mainne bina kisi hichkichahat ke uttar diya.
jaise hi main sauth kol kaimp pahunchi, mainne agle din ki apni mahattvpurn chaDhai ki taiyari shuru kar di. mainne khana, kuking gais tatha kuch auksijan silinDar ikatthe kiye. jab duphar DeDh baje bissa aaya, usne mujhe chaay ke liye pani garam karte dekha. ki, jay aur minu abhi bahut pichhe the. main chintit thi kyonki mujhe agle din unke saath hi chaDhai karni thi. ve dhire dhire aa rahe the kyonki ve bhari bojh lekar aur bina auksijan ke chal rahe the.
duphar baad mainne apne dal ke dusre sadasyon ki madad karne aur apne ek tharmas ko joos se aur dusre ko garam chaay se bharne ke liye niche jane ka nishchay kiya. mainne barfili hava mein hi tambu se bahar qadam rakha. jaise hi main kaimp kshetr se bahar aa rahi thi meri mulaqat minu se hui. ki aur jay abhi kuch pichhe the. mujhe jay jeneva spar ki choti ke theek niche mila. usne kritagytapurvak chaay vaghairah pi lekin mujhe aur aage jane se rokne ki koshish ki. magar mujhe ki se bhi milna tha. thoDa sa aur aage niche utarne par maine ki ko dekha. wo mujhe dekhkar hakka bakka rah gaya.
tumne itni baDi jokhim kyon li bachendri?
mainne use driDhtapurvak kaha, main bhi auron ki tarah ek parvatarohi hoon, isiliye is dal mein aai hoon. sharirik roop se main theek hoon. isliye mujhe apne dal ke sadasyon ki madad kyon nahin karni chahiye. ki hansa aur usne pey padarth se pyaas bujhai, lekin usne mujhe apna kit le jane nahin diya.
thoDi der baad sauth kol kaimp se lhatu aur bissa hamein milne niche utar aaye. aur hum sab sauth kol par jaisi bhi suraksha aur aram ki jagah uplabdh thi, us par laut aaye. sauth kol prithvi par bahut adhik kathor jagah ke naam se prasiddh hai.
agle din main subah chaar baje uth gai. barf pighlaya aur chaay banai, kuch biskut aur aadhi chauklet ka halka nashta karne ke baad main lagbhag saDhe paanch baje apne tambu se nikal paDi. angdorji bahar khaDa tha aur koi asapas nahin tha.
angdorji bina auksijan ke hi chaDhai karne vala tha. lekin iske karan uske pair thanDe paD jate the. isliye wo uunchai par lambe samay tak khule mein aur ratri mein shikhar kaimp par nahin jana chahta tha. isliye use ya to usi din choti tak chaDhkar sauth kol par vapas aa jana tha athva apne prayas ko chhoD dena tha.
wo turant hi chaDhai shuru karna chahta tha. . . aur usne mujhse puchha, kya main uske saath jana chahungi? ek hi din mein sauth kol se choti tak jana aur vapas aana bahut kathin aur shramsadhya hoga! iske alava yadi angdorji ke pair thanDe paD ge to uske lautkar aane ka bhi jokhim tha. mujhe phir bhi angdorji par vishvas tha aur saath saath mein arohan ki kshamata aur karmathta ke bare mein bhi ashvast thi. anya koi bhi vyakti is samay saath chalne ke liye taiyar nahin tha.
subah 6ha20 par jab angdorji aur main sauth kol se bahar aa nikle to din uupar chaDh aaya tha. halki halki hava chal rahi thi, lekin thanD bhi bahut adhik thi. main apne arohi upaskar mein kafi surakshit aur garam thi. hamne baghair rassi ke hi chaDhai ki. angdorji ek nishchit gati se uupar chaDhte ge aur mujhe bhi unke saath chalne mein koi kathinai nahin hui.
jame hue barf ki sidhi va Dhalau chattanen itni sakht aur bhurabhuri theen, mano shishe ki chadren bichhi hon. hamein barf katne ke phavDe ka istemal karna hi paDa aur mujhe itni sakhti se phavDa chalana paDa jisse ki us jame hue barf ki dharti ko phavDe ke dante kaat saken. mainne un khatarnak sthlon par har qadam achchhi tarah soch samajhkar uthaya.
do ghante se kam samay mein hi hum shikhar kaimp par pahunch ge. angdorji ne pichhe muDkar dekha aur mujhse kaha ki kya main thak gai hoon. mainne javab diya, nahin. jise sunkar ve bahut adhik ashcharyachkit aur anandit hue. unhonne kaha ki pahle vale dal ne shikhar kaimp par pahunchne mein chaar ghante lagaye the aur yadi hum isi gati se chalte rahe to hum shikhar par duphar ek baje ek pahunch jayenge.
lhatu hamare pichhe pichhe aa raha tha aur jab hum dakshini shikhar ke niche aram kar rahe the, wo hamare paas pahunch gaya. thoDi thoDi chaay pine ke baad hamne phir chaDhai shuru ki. lhatu ek naylaun ki rassi laya tha. isliye angdorji aur main rassi ke sahare chaDhe, jabki lhatu ek haath se rassi pakDe hue beech mein chala. usne rassi apni suraksha ki bajay hamare santulan ke liye pakDi hui thi. lhatu ne dhyaan diya ki main in uunchaiyon ke liye samanyatः avashyak, chaar litar auksijan ki apeksha, lagbhag Dhai litar auksijan prati minat ki dar se lekar chaDh rahi thi. mere reguletar par jaise hi usne auksijan ki apurti baDhai, mujhe mahsus hua ki sapat aur kathin chaDhai bhi ab asan lag rahi thi.
dakshini shikhar ke uupar hava ki gati baDh gai thi. us uunchai par tez hava ke jhonke bhurbhure barf ke kanon ko charon taraf uDa rahe the, jisse drishyata shunya tak aa gai thi. anek baar dekha ki keval thoDi door ke baad koi uunchi chaDhai nahin hai. Dhalan ekdam sidha niche chala gaya hai.
meri saans mano ruk gai thi. mujhe vichar kaundha ki saphalta bahut nazdik hai. 23 mai 1984 ke din duphar ke ek bajkar saat minat par main evrest ki choti par khaDi thi. evrest ki choti par pahunchne vali main pratham bharatiy mahila thi.
evrest shanku ki choti par itni jagah nahin thi ki do vyakti saath saath khaDe ho saken. charon taraph hazaron mitar lambi sidhi Dhalan ko dekhte hue hamare samne parashn suraksha ka tha. hamne pahle barf ke phavDe se barf ki khudai kar apne aapko surakshit roop se sthir kiya. iske baad, main apne ghutnon ke bal baithi, barf par apne mathe ko lagakar mainne sagarmathe ke taaj ka chumban liya. bina uthe hi mainne apne thaile se durga maan ka chitr aur hanuman chalisa nikala. mainne inko apne saath laye laal kapDe mein lapeta, chhoti si puja archna ki aur inko barf mein daba diya. anand ke is kshan mein mujhe apne mata pita ka dhyaan aaya.
jaise main uthi, mainne apne haath joDe aur main apne rajju neta angdorji ke prati aadar bhaav se jhuki. angdorji jinhonne mujhe protsahit kiya aur mujhe lakshya tak pahunchaya. mainne unhen bina auksijan ke evrest ki dusri chaDhai chaDhne par badhai bhi di. unhonne mujhe gale se lagaya aur mere kanon mein phusaphusaya, didi, tumne achchhi chaDhai ki. main bahut prasann hoon!
kuch der baad sonam puljar pahunche aur unhonne foto lene shuru kar diye.
is samay tak lhatu ne hamare neta ko evrest par hum charon ke hone ki suchana de di thi. tab mere haath mein vauki tauki diya gaya. karnal khullar hamari saphalta se bahut prasann the. mujhe badhai dete hue unhonne kaha, main tumhari is anuthi uplabdhi ke liye tumhare mata pita ko badhai dena chahunga! ve bole ki desh ko tum par garv hai aur ab tum aise sansar mein vapas jaogi, jo tumhare apne pichhe chhoDe hue sansar se ekdam bhinn hoga!
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।