एडिनवरा पहुँचने के दूसरे दिन सुबह उठकर नहाने-धोने के पश्चयात पहला काम मैंने डॉ० थामसन को मिलने का समय निश्चित करने के लिए फोन करने का किया। फोन पर मिली डॉ० थामसन की सेकेट्री कोई महिला। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया।
‘’जी हाँ, आपका पत्र कल मिल गया था। यहाँ आप ग्यारह बजे पहुंच जाएँ। डॉ० थामसन से उस समय आपकी मुलाकात हो सकेगी।’’
‘’आपके यहाँ पहुँचने का रास्ता बताइए।’’
‘’आप तेरह नंबर की बस पकड़े और जहाँ शहर ख़त्म होकर हरियाली शुरू हो जाती है, वहीं हमारा क्लीनिक है। बस-कंडक्टर भी इस सवध में आपकी मदद करेगा। वह हमारे स्थान से परिचित है।’’
मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और अपने आने की सूचना डॉ० थामसन को देने की प्रार्थना की। तेरह नंबर की बस पकड़ने के लिए मैं दस बजे सड़क पर ठहरने के अड्डे पर आ गया। बसे पश्चिम की ओर से आ रही थीं। यह सड़क धीरे-धीरे ऊँचाई की ओर गई थी, अत लुढ़कती हुई आती बसें बच्चों के खिलौनों-सी दिखाई देती थी। सूरज की रोशनी उनपर पड़कर उनके हरे-पीले रंगो को और भी चमकीला बना देती और वे बड़ी सुहावनी प्रतीत हो रही थी। मेरी बस भी आ गई और उसमें मैंने अपनी जगह ली। बस-कंडक्टर से मैंने अपना गंतव्य स्थान बताकर अपना टिकट ख़रीदा। बस चलती-चलती शहर से पार हो गई और हरियाली के बीच आ गई।
यहाँ सड़क के दोनों ओर हरी पत्तियों से लदे वृक्ष थे। थोड़ी देर में बस रुकी तो कंडक्टर ने मेरे पास आकर कहा—‘’डॉ० थामसन का चिकित्सालय आ गया।’’ और उसने सड़क के किनारे एक बड़े फाटक पर लगे साईंनबोर्ड की ओर इशारा किया, जिसपर लिखा था, ‘किंग्सटन क्लीनिक’। मेरे साथ ही एक अन्य युवक भी उतरे और मेरे साथ ही चलने लगे। मुझे अपने साथ देखकर बोले—‘’आप डॉ० थामसन के पास जा रहे हैं?’’
‘’जी हाँ, और आप?’’
‘’उन्ही के पास।’’
‘’उनसे चिकित्सा करा रहे हैं?’’
‘’नही, मैं उनका विद्यार्थी हूँ। इस समय कालेज की छुट्टी है,पर मैं उनकी सहायता के लिए रह गया हूँ।
‘’कॉलेज में विद्यार्थी कितने हैं?’’
‘’सोलह।’’
‘’और चिकित्सालय में रोगी कितने हैं?‘’
‘’तीस ‘’
मेरा परिचय पाकर विद्यार्थी ने मुझसे हिंदुस्तान में प्राकृतिक चिकित्सा के संबंध में बहुत बातें पूछी और चिकित्सालय के संबंध में मेरी हर जिज्ञासा को शांत किया।
डॉ थामसन का चिकित्सालय एक बहुत बड़े बाग़ में है, जिसके चारों ओर बहुत ऊँची-ऊँची दीवारें है। यह सारा स्थान पुराने समय में यहाँ के किसी छोटे रजवाड़े के हाथ में था। चिकित्सालय भी उसी के महल में है। महल पर ऊँचा गुंबद है,जो दूर से ही दिखाई देता है। अहाते में कुछ और भी इमारतें हैं। शेष बाग़ है, जिसमे फूलों की बहुतायत है। चिकित्सालय के चारों ओर डॉ० थामसन ने रोगियों के लिए तरह-तरह की तरकारियाँ भी लगा रखी हैं।
चिकित्सालय में पहुँचा और जल्द ही मुझे डॉ० थामसन मिल गए। वह दौड़ते-से मेरे पास आए—बूढ़े शरीर से बहुत ही दृढ, कमर जरा झुकी हुई, पर फिर भी गर्दन ऊँची। आते ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया, ‘’इतने दूर देश से आए अपने प्राकृतिक चिकित्सक बंधू से मिलकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है।’’
आपकी इस आत्मीयता के लिए न आपका बहुत बृहत ह्र्दय है। ‘’वेल्सली’’ उन्होंने अपने चौबीस वर्षीय पुत्र को संबोधित किया ‘’तुम मिस्टर मोदी को चिकित्सालय दिखलाओ। और मिस्टर मोदी, अभी मेरे पास दो नए रोगी आ गए हैं। मैं उनसे बात करके निपट लूँ, तब आपसे फ़ुर्सत से बात करना चाहता हूँ। मेरा पुत्र वेल्सली मेरे सहकारी-का काम करता है। कॉलेज का काम इसी के हाथ में हैं। आप चिकित्सालय देखें, यहाँ भोजन करें, आराम करें। मैं दो बजे बैठकर आपसे बात करूँगा।
''भाग-दौड़ में तो मैं न आपकी सारी बातें सुन पाउँगा और न कुछ सुना पाउँगा।’’
मैं श्री वेल्सली थामसन के साथ हो लिया। उन्होंने मुझे चिकित्सालय दिखलाया, जहाँ चालीस रोगियों के रहने की जगह है। रोगियों के रहने और चिकित्सालय का स्थान क़रीब-क़रीब डॉ० लीफके चिकित्सालय जैसा ही है। बाग़ में तरकारियों के खेत भी देखे। ये डॉ० थामसन को बहुत प्रिय हैं। लटूस ही अधिक लगी थी, जो शीशे में बंद थी।
चिकित्सालय की व्यायामशाला विशेषरूप से उल्लेखनीय है। यह एक बड़े कमरे में है, जहाँ पच्चीस-तीस आदमी आसानी से कसरत कर सकते है। यहाँ तरह-तरह के व्यायाम करने के साधन रखे हुए हैं। डाक्टर थामसन का विश्वास है कि हर रोगी को कुछ-न-कुछ कसरत करनी ही चाहिए। कमज़ोर-से कमज़ोर रोगी भी कुछ कसरत कर सके, ऐसे साधन उन्होंने व्यायामशाला जुटा रखे है।
घास के एक बड़े मैदान में पाँच-सात काठ की बड़ी सुंदर-सी झोपड़िया बनी थी, यहाँ बैठकर रोगी धूप-स्नान ले सकते है और पानी बरसने लगे तो झोपड़ियों में जाकर वर्षा से बच रखे है।
चिकित्सालय के निकट ही डॉ० थामसन के कालेज की इमारत है। थामसन का कॉलेज ब्रिटेन का पहला प्राकृतिक चिकित्सा के शिक्षण का केंद्र है। यह लगभग पच्चीस वर्ष पहले स्थापित हुआ था। यहाँ से लगभग एक सी स्नातक कालेज का चार वर्ष का कोर्स समाप्त कर डिग्री प्राप्त कर चुके हैं। मैंने श्री वेल्सली से पूछा—‘’क्या सभी स्नातक चिकित्सा का कार्य कर रहे हैं?’’
‘’हाँ अधिकांश कर रहे हैं।’’
‘’जो नही कर रहे हैं वे कौन है?’’
‘’ऐसों में अधिकांश लडकियाँ हैं, जिन्होंने शादी के बाद चिकित्सा का काम बंद कर दिया है, पर कई ऐसी भी है, जिन्होंने शादी के पाँच-सात वर्ष बाद फिर काम शुरू किया है, पर ऐसे भी हैं, जो चिकित्सा नही चला सके और दूसरा धंधा इख़्तियार कर लिया। चिकित्सा चलाने के लिए केवल चिकित्सा का ज्ञान ही तो काफी नही है।’’
एक बजे मैंने चिकित्सालय के भोजनालय से भोजन किया। वहाँ मेरा टेबुल का साथी एक किशोर था, जो मुझे भारतीय लगा। पूछने पर पता लगा कि यह दक्षिण अफ़्रीका का है। उसके माता-पिता भारत जाकर वहाँ बस गए थे।
‘’आप किस रोग से पीड़ित हैं‘’
‘’मिरगी से‘’
‘’प्राकृतिक चिकित्सा की ओर आपकी रूचि कैसे हुई?’’
‘’मेरे बड़े भाई यहाँ लंदन में पढ़ते है। उन्हें मेरे रोग के बारे में लिखा गया। उन्होंने पता लगाया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि यह रोग प्राकृतिक चिकित्सा से ही जा सकता है और उन्होंने मुझे बुलाकर यहाँ करा दिया।’’
‘’कितने सप्ताह हुए यहाँ आए‘’
‘’चार सप्ताह।‘’
‘’लाभ है?’’
‘’मुझे प्रति सप्ताह दौरे आते हैं। यहाँ आने पर पहले दो सप्ताह तो दौरे आए, इधर दो सप्ताह से कोई दौरा नही आया है, पर डॉ० थामसन का कहना है कि अभी दौरे और आ सकते हैं।
‘’आप निश्चय कर लीजिए कि दौरे नही आएँगे तो फिर वे नही आएँगे।’’
लड़के को बड़ी तसल्ली हुई। उसका मन चिकित्सा में खूब लग रहा था और यहाँ की चिकित्सा और व्यवहार से वह संतुष्ट था।
दो बजे डॉ० थामसन भेंट हुई। वह मुझे अपने परीक्षा गृह में ले गए। हम बैठे तो वह आप-बीती सुनाने लगे, जो कशमकश से भरी हुई है। उनका सारा काम रोगियों द्वारा दी गई सहायता से चला है। एक स्त्री ने, जो सब कुछ चिकित्सा कराकर निराश हो चुकी थी, अपनी सारी संपत्ति इस चिकित्सालय और प्राकृतिक चिकित्सा के अन्वेषण के लिए लिख दी थी। अभी वह मरी है , पर उसकी वसीयत में उसके भाइयों के वकील ने खामी निकाल ली और सारी संपत्ति उन्हें मिल गई। उन्होंने दो ऐसी और घटनाएँ सुनाई, जिनमे डॉ० थामसन की आर्थिक समस्या हल होते-होते रह गई।
मैं सोच रहा था कि दुनिया में हर जगह प्राकृतिक चिकित्सकों को कितना संघर्ष करना पड़ता है। यही कारण है कि प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बहुत सशक्त व्यक्ति ही आकृष्ट होते हैं और उन्हें भी खड़े रहने में कितनी कठिनाई पड़ती है।
डॉ० थामसन का प्रवाह रुक ही नही रहा था और समय तेज़ी से भागा जा रहा था। मैंने उन्हें रोकने के हिसाब से पूछा ‘’डाक्टर, मैंने अभी आपके कॉलेज के श्याम-पट्ट पर कुछ अक्षि-विज्ञान के नक़्शे देखे हैं। अक्षि-विज्ञान पर आपका कितना विश्वास है?’’
‘’अक्षि-विज्ञान का कहना है कि हमारे शरीर में जो भी रोग आते हैं, उनके चिन्ह शाखों की पुतलियों पर पड़ जाते हैं और रोग जाने की गति के साथ मिटते जाते हैं। अक्षि-विज्ञान रोग के निदान में बहुत सहायक होता है।’’
‘’अक्षि-विज्ञान में तो कहीं गलती नही है, पर रोग किसी अंग में थोड़े ही होता है। वह तो सारे शरीर में होता है, अत किसी अंग की चिकित्सा क्या करनी है, वह तो सारे शरीर की ही करनी चाहिए।’’
डॉ० थामसन का उत्तर बड़ा ही प्रकाशपूर्ण था। उनके इस उत्तर ने मुझे उनके विचारों के सवध से अपनी शंकाएँ प्रकट करने का साहस दिया।
मैंने कहा, ‘’डाक्टर, आपकी सारी बातें तो समझ में आती हैं, पर आपका पानी ना पीने का सिद्धांत समझ नही आता।
‘’पानी के लिए कुदरत ने फल-तरकारियाँ बनाई हैं, मनुष्य को उन्ही से जल प्राप्त करना चाहिए। जो फल तरकारी ना खाए या नमक-मसाले ले वे ही पानी पिए।
मैं वहाँ रोगियों को राईस (एक पत्तीदार भाजी) खाने को कहता जो वे साधारण भोजन के साथ लेते हैं। मैं उन्हें दोपहर और शाम को तीन-तीन ओस (डेढ़ छटांक) मट्ठा भी पीने को देता हूँ।
‘’बिना पानी के उपवास कैसे कारगर हो सकता है?‘’
‘’होगा ही, पर मैं एक बार में दो-तीन दिन के उपवास से अधिक की आवश्यकता नही समझता।’’
‘’यहाँ तो शायद बिना पानी के चल सकता है, इतनी ठंडक जो पड़ती है, पर रेगिस्तान में अथवा गर्म देश में आपका सिद्धांत कैसे चलेगा?
नियम तो सार्वभौम होना चाहिए।’’
‘’रेगिस्तान की बात मैं नही जानता, पर आपके देश के बंबई शहर में एक ऐलोपैथिक डाक्टर है,जो पानी नही पीते। उन्होंने ये विचार मेरे किसी लेख से लिए और लिखा कि पानी न पीने से उनके अनेक रोग गए हैं और स्वास्थ्य सुधरा है, पर जब मैंने उन्हें लिखा कि जिन विचारों से आपको लाभ हुआ है, उनका प्रचार करें तो उनका कोई उत्तर नही आया।’’
और आप एनिमालेना क्यों मना करते हैं?’’
‘’एनिमा लेना मैं मना नही करता, पर जब तक लोगों का ख्याल रहता है कि एनिमा से ही आँते साफ़ हो सकती हैं तब तक एनिमा देता हूँ, पर उसका भी पानी कम करता हूँ, जिससे उनका एनिमा लेने का ख्याल खत्म हो जाए।’’
‘’यह तो एनिमा छुड़ाने की ही बात हुई। फिर तो आप एनिमा के खिलाफ ही हैं।’’
‘’है तो कुछ ऐसी ही बात। मेरा अनुभव तो यही कहता है।’’
डाक्टर थामसन को पानी न पीने और एनिमा का प्रयोग न करने के सब के लाख अनुभव हों, पर मैं उनके इन विचारों से न उनका साहित्य पढ़कर सहमत हो सका, न उनकी बातें ही मुझे प्रभावित कर सकीं।
मैंने आगे प्रश्न किया।
‘’काइरोप्रैक्टिक और आस्टियोपैथी (अस्थिचिकित्सा ) के बारे में आपका क्या ख़याल है? लंदन के प्राकृतिक चिकित्सक तो ऐसी बात कहते है, जैसे आस्टियोपैथी के बगैर प्राकृतिक चिकित्सा चल ही नही सकती।
‘’काइरोप्रैक्टिक के मैं ख़िलाफ़ हूँ, उसमे शरीर को बहुत ज़ोर के झटके देने पड़ते हैं, जो बिल्कुल अस्वभाविक है और उसमे जितनी तेज़ी से लाभ होता है, उतनी ही तेज़ी से लाभ चला भी जाता है। हाँ, आस्टियोपैथी कुछ ठीक है, पर वह काम तो व्यायामों द्वारा पूरे तौर पर चल सकता है।
आस्टियोपैथी न मैं चिकित्सालय में चलता हूँ और न शिक्षणालय में ही उसके शिक्षण का प्रबंध किया है।’’
दो-चार साधारण प्रश्न मैंने डॉ० थामसन से और किए और फिर उठ खड़े हुए। डॉ० थामसन मुझे समुद्र के बीच की उस चट्टान की तरह लगे, जो अपने में दृढ है और जिसकी दृढता को न आँधी-तूफ़ान और न उसपर सतत चोट करनेवाली लहरें ही कोई क्षति पहुँचा सकी हैं।
eDinawra pahunchne ke dusre din subah uthkar nahane dhone ke pashchyat pahla kaam mainne Dau० thamsan ko milne ka samay nishchit karne ke liye phon karne ka kiya phon par mili Dau० thamsan ki seketri koi mahila mainne unhen apna parichai diya
‘’ji han, aapka patr kal mil gaya tha yahan aap gyarah baje pahunch jayen Dau० thamsan se us samay apaki mulakat ho sakegi ’’
‘’apke yahan pahunchne ka rasta bataiye ’
‘’ap terah number ki bus pakDe aur jahan shahr khatm hokar hariyali shuru ho jati hai, wahin hamara klinik hai bus kanDaktar bhi is sawadh mein apaki madad karega wo hamare sthan se parichit hai ’’
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‘’ ji han, aur ap?’’
‘’ unhi ke pas ’’
‘’unse chikitsa kara rahe hain?’’
‘’nahi, main unka widyarthi hoon is samay kalej ki chhutti hai,par main unki sahayata ke liye rah gaya hoon
‘’ kalej mein widyarthi kitne hain?’’
‘’solah ’’
‘’aur chikitsalay mein rogi kitne hain?‘’
‘’tees ‘’
mera parichai pakar widyarthi ne mujhse hindustan mein prakritik chikitsa ke sambandh mein bahut bate puchhi aur chikitsalay ke sambandh mein meri har jij~nasa ko shant kiya
Dau thamsan ka chikitsalay ek bahut baDe bagh mein hai, jiske charon or bahut unchi unchi diwaren hai ye sara sthan purane samay mein yahan ke kisi chhote rajwaDe ke hath mein tha chikitsalay bhi usi ke mahl mein hai mahl par uncha gumbad hai,jo door se hi dikhai deta hai ahate mein kuch aur bhi imaraten hain shesh bagh hai, jisme phulon ki bahutayat hai chikitsalay ke charon or Dau० thamsan ne rogiyon ke liye tarah tarah ki tarkariyan bhi laga rakhi hain
chikitsalay mein pahuncha aur jald hi mujhe Dau० thamsan mil gaye wo dauDte se mere pas aye—buDhe sharir se bahut hi driDh,kamar jara jhuki hui,par phir bhi gardan unchi aate hi unhonne mera hath pakaD liya, ‘’itne door desh se aaye apne prakritik chikitsak bandhu se milkar mujhe baDi prasannata ho rahi hai ’’
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bhag dauD mein to main na apaki sari baten sun paunga aur na kuch suna paunga ’’
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‘’hoga hi, par main ek bar mein do teen din ke upwas se adhik ki awashyakta nahi samajhta ’’
‘’yahan to shayad bina pani ke chal sakta hai, itni thanDak jo paDti hai, par registan mein athwa garm desh mein aapka siddhant kaise chalega?
niyam to sarwabhaum hona chahiye ’’
‘’registan ki baat main nahi janta, par aapke desh ke bambi shahr mein ek allopathic Daktar hai,jo pani nahi pite unhonne ye wichar mere kisi lekh se liye aur likha ki pani na pine se unke anek rog gaye hain aur swasthy sudhra hai, par jab mainne unhen likha ki jin wicharon se aapko labh hua hai, unka parchar karen to unka koi uttar nahi aaya ’’
aur aap enimalena kyon mana karte hain?’’
‘’enema lena main mana nahi karta, par jab tak logon ka khyal rahta hai ki enema se hi ante saf ho sakti hain tab tak enema deta hoon, par uska bhi pani kam karta hoon, jisse unka enema lene ka khyal khatm ho jaye ’’
‘’yah to enema chhuDane ki hi baat hui phir to aap enema ke khilaph hi hain ’’
‘’hai to kuch aisi hi baat mera anubhaw to yahi kahta hai ’’
Daktar thamsan ko pani na pine aur enema ka prayog na karne ke sab ke lakh anubhaw hon, par main unke in wicharon se na unka sahity paDhkar sahmat ho saka, na unki baten hi mujhe prabhawit kar sakin
mainne aage parashn kiya
‘’kairopraiktik aur astiyopaithi (asthichikitsa ) ke bare mein aapka kya khyal hai? london ke prakritik chikitsak to aisi baat kahte hai,jaise astiyopaithi ke bagair prakritik chikitsa chal hi nahi sakti
‘’kairopraiktik ke main khilaf hoon, usme sharir ko bahut zor ke jhatke dene paDte hain, jo bilkul aswbhawik hai aur usme jitni tezi se labh hota hai, utni hi tezi se labh chala bhi jata hai han, astiyopaithi kuch theek hai, par wo kaam to wyayamon dwara pure taur par chal sakta hai
astiyopaithi na main chikitsalay mein chalta hoon aur na shikshanalay mein hi uske shikshan ka parbandh kiya hai ’’
do chaar sadharan parashn mainne Dau० thamsan se aur kiye aur phir uth khaड़e hue Dau० thamsan mujhe samudr ke beech ki us chattan ki tarah lage, jo apne mein driDh hai aur jiski driDhta ko na andhi tufan aur na uspar satat chot karnewali lahren hi koi kshati pahuncha saki hain
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mera parichai pakar widyarthi ne mujhse hindustan mein prakritik chikitsa ke sambandh mein bahut bate puchhi aur chikitsalay ke sambandh mein meri har jij~nasa ko shant kiya
Dau thamsan ka chikitsalay ek bahut baDe bagh mein hai, jiske charon or bahut unchi unchi diwaren hai ye sara sthan purane samay mein yahan ke kisi chhote rajwaDe ke hath mein tha chikitsalay bhi usi ke mahl mein hai mahl par uncha gumbad hai,jo door se hi dikhai deta hai ahate mein kuch aur bhi imaraten hain shesh bagh hai, jisme phulon ki bahutayat hai chikitsalay ke charon or Dau० thamsan ne rogiyon ke liye tarah tarah ki tarkariyan bhi laga rakhi hain
chikitsalay mein pahuncha aur jald hi mujhe Dau० thamsan mil gaye wo dauDte se mere pas aye—buDhe sharir se bahut hi driDh,kamar jara jhuki hui,par phir bhi gardan unchi aate hi unhonne mera hath pakaD liya, ‘’itne door desh se aaye apne prakritik chikitsak bandhu se milkar mujhe baDi prasannata ho rahi hai ’’
apaki is atmiyata ke liye na aapka bahut brihat hrday hai ‘’welsli’’ unhonne apne chaubis warshaiy putr ko sambodhit kiya ‘’tum mistar modi ko chikitsalay dikhlao aur mistar modi,abhi mere pas do nae rogi aa gaye hain main unse baat karke nipat loon, tab aapse phursat se baat karna chahta hoon mera putr welsli mere sahkari ka kaam karta hai kalej ka kaam isi ke hath mein hain aap chikitsalay dekhen, yahan bhojan karen, aram karen, main do baje baithkar aapse baat karunga
bhag dauD mein to main na apaki sari baten sun paunga aur na kuch suna paunga ’’
main shri welsli thamsan ke sath ho liya unhonne mujhe chikitsalay dikhlaya, jahan chalis rogiyon ke rahne ki jagah hai rogiyon ke rahne aur chikitsalay ka sthan qarib qarib Dau० liphke chikitsalay jaisa hi hai bagh mein tarkariyon ke khet bhi dekhe ye Dau० thamsan ko bahut priy hain latus hi adhik lagi thi, jo shishe mein band thi
chikitsalay ki wyayamashala wisheshrup se ullekhaniy hai ye ek baDe kamre mein hai, jahan pachchis tees adami asani se kasrat kar sakte hai yahan tarah tarah ke wyayam karne ke sadhan rakhe hue hain Daktar thamsan ka wishwas hai ki har rogi ko kuch na kuch kasrat karni hi chahiye kamzor se kamzor rogi bhi kuch kasrat kar sake, aise sadhan unhonne wyayamashala juta rakhe hai
ghas ke ek baDe maidan mein panch sat kathki baDi sundar si jhopaDiya bani thi, yahan baithkar rogi dhup snan le sakte hai aur pani barasne lage to jhopaDiyon mein jakar warsha se bach rakhe hai
chikitsalay ke nikat hi Dau० thamsan ke kalej ki imarat hai thamsan ka kalej briten ka pahla prakritik chikitsa ke shikshan ka kendr hai ye lagbhag pachchis warsh pahle sthapit hua tha yahan se lagbhag ek si snatak kalej ka chaar warsh ka course samapt kar degre prapt kar chuke hain mainne shri welsli se puchha—‘’kya sabhi snatak chikitsa ka kary kar rahe hain?’’
‘’han adhikansh kar rahe hain ’’
‘’jo nahi kar rahe hain we kaun hai?’’
‘’aison mein adhikansh laDakiyan hain, jinhonne shadi ke baad chikitsa ka kaam band kar diya hai, par kai aisi bhi hai, jinhonne shadi ke panch sat warsh baad phir kaam shuru kiya hai, par aise bhi hain, jo chikitsa nahi chala sake aur dusra dhandha akhtiyar kar liya chikitsa chalane ke liye kewal chikitsa ka gyan hi to kaphi nahi hai ’’
ek baje mainne chikitsalay ke bhojanalay se bhojan kiya wahan mera tebul ka sathi ek kishor tha, jo mujhe bharatiy laga puchhne par pata laga ki ye dakshain aphrika ka hai uske mata pita bharat jakar wahan bus gaye the
‘’ap kis rog se piDit hain‘’
‘’mirgi se‘’
‘’prakritik chikitsa ki or apaki ruchi kaise hui?’’
‘’mere baDe bhai yahan london mein paDhte hai unhen mere rog ke bare mein likha gaya unhonne pata lagaya to unhen j~nat hua ki ye rog prakritik chikitsa se hi ja sakta hai aur unhonne mujhe bulakar yahan kara diya ’’
‘’kitne saptah hue yahan aye‘’
‘’chaar saptah ‘’
‘’labh hai?’’
‘’ mujhe prati saptah daure aate hain yahan aane par pahle do saptah to daure aaye, idhar do saptah se koi daura nahi aaya hai,par Dau० thamsan ka kahna hai ki abhi daure aur aa sakte hain
‘’ap nishchay kar lijiye ki daure nahi ayenge to phir we nahi ayenge ’’
laDke ko baDi tasalli hui uska man chikitsa mein khoob lag raha tha aur yahan ki chikitsa aur wywahar se wo santusht tha
do baje Dau० thamsan bhent hui wo mujhe apne pariksha grih mein le gaye hum baithe to wo aap biti sunane lage, jo kashmakash se bhari hui hai unka sara kaam rogiyon dwara di gai sahayata se chala hai ek istri ne, jo sab kuch chikitsa karakar nirash ho chuki thi, apni sari sampatti is chikitsalay aur prakritik chikitsa ke anweshan ke liye likh di thi abhi wo mari hai , par uski wasiyat mein uske bhaiyon ke wakil ne khami nikal li aur sari sampatti unhen mil gai unhonne do aisi aur ghatnayen sunai, jinme Dau० thamsan ki arthik samasya hal hote hote rah gai
main soch raha tha ki duniya mein har jagah prakritik chikitskon ko kitna sangharsh karna paDta hai yahi karan hai ki prakritik chikitsa ki or bahut sashakt wekti hi akrisht hote hain aur unhen bhi khaड़e rahne mein kitni kathinai paDti hai
Dau० thamsan ka prawah ruk hi nahi raha tha aur samay tezi se bhaga ja raha tha mainne unhen rokne ke hisab se puchha ‘’Daktar,mainne abhi aapke kalej ke shyam patt par kuch akshai wigyanan ke naqshe dekhe hain akshai wigyanan par aapka kitna wishwas hai?’’
‘’akshai wigyan ka kahna hai ki hamare sharir mein jo bhi rog aate hain, unke chinh shakhon ki putliyon par paD jate hain aur rog jane ki gati ke sath mitte jate hain akshai wigyan rog ke nidan mein bahut sahayak hota hai ’’
‘’akshai wigyanan mein to kahin galti nahi hai, par rog kisi ang mein thoDe hi hota hai wo to sare sharir mein hota hai, at kisi ang ki chikitsa kya karni hai, wo to sare sharir ki hi karni chahiye ’’
Dau० thamsan ka uttar baDa hi prkashpurn tha unke is uttar ne mujhe unke wicharon ke sawadh se apni shankayen prakat karne ka sahas diya
mainne kaha, ‘’Daktar,apaki sari baten to samajh mein aati hain,par aapka pani na pine ka siddhant samajh nahi aata
‘’pani ke liye kudrat ne phal tarkariyan banai hain, manushya ko unhi se jal prapt karna chahiye jo phal tarkari na khaye ya namak masale le we hi pani piye
main wahan rogiyon ko rais ( ek pattidar bhaji) khane ko kahta jo we sadharan bhojan ke sath lete hain main unhen dopahar aur sham ko teen teen os (DeDh chhatank ) mattha bhi pine ko deta hoon
‘’bina pani ke upwas kaise karagar ho sakta hai?‘’
‘’hoga hi, par main ek bar mein do teen din ke upwas se adhik ki awashyakta nahi samajhta ’’
‘’yahan to shayad bina pani ke chal sakta hai, itni thanDak jo paDti hai, par registan mein athwa garm desh mein aapka siddhant kaise chalega?
niyam to sarwabhaum hona chahiye ’’
‘’registan ki baat main nahi janta, par aapke desh ke bambi shahr mein ek allopathic Daktar hai,jo pani nahi pite unhonne ye wichar mere kisi lekh se liye aur likha ki pani na pine se unke anek rog gaye hain aur swasthy sudhra hai, par jab mainne unhen likha ki jin wicharon se aapko labh hua hai, unka parchar karen to unka koi uttar nahi aaya ’’
aur aap enimalena kyon mana karte hain?’’
‘’enema lena main mana nahi karta, par jab tak logon ka khyal rahta hai ki enema se hi ante saf ho sakti hain tab tak enema deta hoon, par uska bhi pani kam karta hoon, jisse unka enema lene ka khyal khatm ho jaye ’’
‘’yah to enema chhuDane ki hi baat hui phir to aap enema ke khilaph hi hain ’’
‘’hai to kuch aisi hi baat mera anubhaw to yahi kahta hai ’’
Daktar thamsan ko pani na pine aur enema ka prayog na karne ke sab ke lakh anubhaw hon, par main unke in wicharon se na unka sahity paDhkar sahmat ho saka, na unki baten hi mujhe prabhawit kar sakin
mainne aage parashn kiya
‘’kairopraiktik aur astiyopaithi (asthichikitsa ) ke bare mein aapka kya khyal hai? london ke prakritik chikitsak to aisi baat kahte hai,jaise astiyopaithi ke bagair prakritik chikitsa chal hi nahi sakti
‘’kairopraiktik ke main khilaf hoon, usme sharir ko bahut zor ke jhatke dene paDte hain, jo bilkul aswbhawik hai aur usme jitni tezi se labh hota hai, utni hi tezi se labh chala bhi jata hai han, astiyopaithi kuch theek hai, par wo kaam to wyayamon dwara pure taur par chal sakta hai
astiyopaithi na main chikitsalay mein chalta hoon aur na shikshanalay mein hi uske shikshan ka parbandh kiya hai ’’
do chaar sadharan parashn mainne Dau० thamsan se aur kiye aur phir uth khaड़e hue Dau० thamsan mujhe samudr ke beech ki us chattan ki tarah lage, jo apne mein driDh hai aur jiski driDhta ko na andhi tufan aur na uspar satat chot karnewali lahren hi koi kshati pahuncha saki hain
स्रोत :
पुस्तक : विठ्ठलदास मोदी की यूरोप यात्रा (पृष्ठ 78)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।