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गजानन माधव मुक्तिबोध पर ब्लॉग

आधुनिक हिंदी कविता के

अग्रणी कवियों में से एक मुक्तिबोध को विषय-प्रेरणा या अवलंब रखते हुए लिखी गई कविताओं का संचयन।

दो दीमकें लो, एक पंख दो

दो दीमकें लो, एक पंख दो

मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर पाने का मौक़ा दिया। मेरे लिए यह मौक़ा असाधारण तो नहीं, लेकिन कुछ दुर्लभ ज़रूर है। लि

योगेंद्र आहूजा
कुँवर नारायण की कविता और मुक्तिबोध की आलोचना-दृष्टि

कुँवर नारायण की कविता और मुक्तिबोध की आलोचना-दृष्टि

मौजूदा समय के संकटों और चिंताओं के बीच जब हमें मुक्तिबोध याद आते हैं, तो न केवल उनकी कविताएँ और कहानियाँ हमें याद आती हैं, बल्कि उनका समीक्षक रूप भी शिद्दत से हमें याद आता है। मुक्तिबोध ने अपने आलोचना

सुशील सुमन
मुक्तिबोध का दुर्भाग्य

मुक्तिबोध का दुर्भाग्य

आज 11 सितंबर है—मुक्तिबोध के निधन की तारीख़। इस अर्थ में यह एक त्रासद दिवस है। यह दिन याद दिलाता है कि आधुनिक हिंदी कविता की सबसे प्रखर मेधा की मृत्यु कितनी आसामयिक और दुखद परिस्थिति में हुई। जैसा कि ह

सुशील सुमन
‘अँधेरे में’ कविता में स्वाधीनता आंदोलन का अतीत है

‘अँधेरे में’ कविता में स्वाधीनता आंदोलन का अतीत है

मुक्तिबोध और ‘अँधेरे में’ पर मैनेजर पांडेय और अर्चना लार्क की बातचीत : अर्चना लार्क : ‘अँधेरे में’ कविता को अतीत और वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में किस तरह देखा जा सकता है? मैनेजर पांडेय : ‘अँधेरे म

अर्चना लार्क

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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