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अवसाद पर ब्लॉग

अवसाद अपने सामान्य अर्थ

में उदासी, रिक्तता, निराशा, हताशा, ग्लानि, चिंता आदि को प्रकट करता है और इन्हें कविता और कला के लिए उत्प्रेरक लक्षणों की तरह देखा गया है। अपने गंभीर लक्षणों में यह एक मनोविकार है जो स्वयं के प्रति या दुनिया के प्रति हिंसा में भी बदल सकता है। मनोगतता से इसके संबंध के कारण यह हमेशा से कविता का विषय बनता रहा है।

रात का कौन-सा पहर है

रात का कौन-सा पहर है

‘‘रात का कौन-सा पहर है? कौन-सा तारा डूबा है? क्या चंद्रमा त्रिकोण हो चुका है?’’ शायद रात हो गई है और तुम वृद्ध। न तुम्हारे सिरहाने कोई प्रकाश करने वाला है, न ही कोई तुमसे बात करना चाहता है। बरसात क

सौरभ पांडेय
बनारस : आत्मा में कील की तरह धँसा है

बनारस : आत्मा में कील की तरह धँसा है

एक बनारस के छायाकार-पत्रकार जावेद अली की तस्वीरें देख रहा हूँ। गंगा जी बढ़ियाई हुई हैं और मन बनारस में बाढ़ से जूझ रहे लोगों की ओर है, एक बेचैनी है। मन अजीब शै है। दिल्ली में हूँ और मन बनारस में है।

कुमार मंगलम
किट्टू की कहानी

किट्टू की कहानी

यह कहानी नहीं है। यह बस एक छोटा-सा इंटरव्यू है—कहानी-सा। इसका नायक किट्टू है। वह 35 साल का है। वह 31 का था, जब उसे यह पता चला था कि वह एच.आई.वी. पॉज़िटिव है। किट्टू की कहानी में कोई भारी संघर्ष नहीं

तोषी
प्रसिद्धि की विडंबना

प्रसिद्धि की विडंबना

प्रसिद्धि के साथ एक मज़े की बात यह है कि जब तक प्रत्यय की तरह इसके साथ विडंबना नहीं जुड़ती, तब तक इसके छिपे हुए अर्थ हमारे सामने पूरी तरह उजागर नहीं होते। लेकिन इससे भी ज़्यादा मज़े की बात शायद यही हो

प्रियंका दुबे
हमारी इच्छाएँ हमारा परिचय हैं

हमारी इच्छाएँ हमारा परिचय हैं

यह सोचकर कितना सुकून मिलता है कि जिसे हम अपनी अस्ल ज़िंदगी में नहीं पा सके उसे एक दिन भाषा में पा लेंगे या भाषा में जी लेंगे या उसे एक दिन भाषा में जीने का मौक़ा ज़रूर मिलेगा। मुझे लगता है कि भाषा एक तरह

राकेश कुमार मिश्र
मुक्तिबोध का दुर्भाग्य

मुक्तिबोध का दुर्भाग्य

आज 11 सितंबर है—मुक्तिबोध के निधन की तारीख़। इस अर्थ में यह एक त्रासद दिवस है। यह दिन याद दिलाता है कि आधुनिक हिंदी कविता की सबसे प्रखर मेधा की मृत्यु कितनी आसामयिक और दुखद परिस्थिति में हुई। जैसा कि ह

सुशील सुमन
मृत्यु के आईने में जीवन कितना कुरूप दिखता होगा

मृत्यु के आईने में जीवन कितना कुरूप दिखता होगा

मन के गहरे में बस डूब है। ऐसी डूब, जिसमें उत्तरजीविता एक प्रश्न की तरह सतह पर छूट जाए। सतह पर जीवन की संभावना भी गुंजलकों के हुलिए में। डूब का समय अपनी जगह पर नहीं है। चेतना से भटका हुआ बस देह लिए मैट

आदर्श भूषण

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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