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बाल साहित्य

बाल साहित्य के अंतर्गत

बच्चों और किशोरों के लिए लिखी गई रचनाएँ संकलित की गई हैं। ‘हिन्दवी’ ने यहाँ बाल साहित्य के अर्थ को कुछ व्यापक करने की कोशिश की है। इस क्रम में न सिर्फ़ यहाँ बच्चों के लिए लिखा गया साहित्य संकलित है, बल्कि उन रचनाओं को भी यहाँ सहेजा गया है जिन्हें ख़ुद बच्चों ने ही रचा है। इसके अतिरिक्त हिंदी की जिन महत्वपूर्ण कविताओं में समय-समय पर बच्चे आएँ हैं, उन कविताओं का भी एक चयन यहाँ प्रस्तुत है।

बच्चे — सुप्रभात अध्यापिका जी!

अध्यापिका — सुप्रभात बच्चो! आज हम धरती पर रहने वाले जीवों के पैरों की संख्या की बात करेंगे। जीवों के पैरों की संख्या शून्य से लेकर कई सौ तक भी हो सकती है। अच्छा...कोई बता सकता है कि किस जीव के पैर नहीं होते?

श्याम — जी हाँ अध्यापिका जी! मुझे पता है। बरसात में मैंने बहुत केंचुए देखे हैं। उनके पैर नहीं होते। वे पेट के बल सरकते हैं।

अध्यापिका — बहुत ठीक! अब कुछ दो पैरों वाले जीवों की बात करेंगे... इन जीवों को द्विपाद कहते हैं। मनुष्य के अतिरिक्त आप और कोई द्विपाद बता सकते हैं?

रमेश — क्यों नहीं! सारी चिड़ियाँ द्विपाद ही होती हैं न, अध्यापिका जी?

अध्यापिका बिलकुल सही कहा रमेश! अब हम यदि पशुओं की बात करें तो यह बताइए कि आपने कभी किसी ऐसे पशु का नाम सुना है जिसके दो ही पैर हों?

सविता जी हाँ अध्यापिका जी! मेरी माँ एक दिन मुझे ऑस्ट्रेलिया देश के विषय में बता रही थीं और उन्होंने मुझे वहाँ पाए जाने वाले एक द्विपाद पशु का चित्र दिखाया था जो दो पैरों पर कूद-कूदकर चलता है। किंतु मैं उसका नाम भूल गई! 

रजनी — हाँ... हाँ, मैंने भी उस द्विपाद पशु के विषय में एक पुस्तक में पढ़ा था जो मैं पुस्तकालय से लाई थी। मुझे उसका नाम भी याद है। उसे कंगारू कहते हैं। उसके पेट पर एक थैली भी होती है जिसमें वह अपने बच्चे को साथ ले जाता है

अध्यापिका — वाह! वाह! आप सब बच्चे बड़े बुद्धिमान हैं। आपके पास मेरे सभी प्रश्नों के उत्तर हैं। वह जब तेज़ी से चलता है तो दो पैरों पर कूदकर चलता है, लेकिन जब वह धीरे चलता है तो झुककर चार पैरों पर चलने लगता है, इसलिए उसे चतुष्पाद भी कहते हैं और कभी-कभी आगे बढ़ने में वह अपनी पूँछ का भी उपयोग करता है, इसलिए उसे पंचपाद भी कहते हैं। वैसे अधिकतर पशुओं के तो चार पैर ही होते हैं, जैसे- गाय, भैंस, और..?

समीर — कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा... 

वीणा — बकरी, गधा, बंदर... 

रफ़िया — मेंढक, ऊदबिलाव, घड़ियाल...

रमेश — शेर, चीता...

बिपिन — ज़ेबरा, जिराफ़...

अध्यापिका — बहुत सही बच्चों! आप सबको तो बहुत सारे पशुओं के नाम आते हैं, लेकिन अब देखते हैं कि भिन्न-भिन्न कीटों के पैरों के विषय में आपको कितना पता है! आप सभी ने चींटे और चींटियाँ तो देखी ही हैं। बताइए उनके कितने पैर होते हैं?

मीना — अध्यापिका जी, मुझे चींटों को देखने में बड़ा आनंद आता है। उनका चलना मैंने बहुत पास से देखा है। मैंने कई बार उनके पैर भी गिन लिए और पता चला कि उनके छह पैर होते हैं।

अध्यापिका — अरे वाह! अब आप स्वयं गिनकर आई हैं तो आपका उत्तर सही ही है। आपको पता है कि चींटी के अतिरिक्त और भी कई कीटों के छह पैर होते हैं, जैसे- मक्खी, भँवरा... और?

राम — तितली? 

सिमरन — झींगुर?

अध्यापिका — शाबाश बच्चों! बहुत सही कहा। आप सब कीटों में इतनी रुचि रखते हैं तो फिर आप में से कोई किसी ऐसे कीट का नाम बता सकता है जिसके छह से अधिक पैर होते हैं?

रमेश (हँसकर) — मकड़ी!

सविता — हाँ! मकड़ी के तो आठ पैर दिखाई देते हैं, जब वह जाले पर चलती है।

अध्यापिका — बिलकुल सही बताया! अब मैं आपको एक कीट के विषय में और ऐसे बताना चाहती हूँ, जिसके तीस (30) से लेकर तीन सौ बयासी (342) तक पैर हो सकते हैं अर्थात पंद्रह (15) जोड़ी से लेकर एक सौ इक्यानवे (191) जोड़ी तक पैर हो सकते हैं। इस अद्भुत कीट का नाम है—कनखजूरा। आप में से किसी ने कनखजूरा देखा है? 

सब विद्यार्थी — नहीं!!!

अध्यापिका — वास्तव में घरों में इनका मिलना कठिन है। ये अधिकतर ऐसे स्थानों में रहते हैं जहाँ सीलन और अँधेरा हो, जैसे- गीले पेड़ों के तनों के अंदर या गीली घास या पत्तों के ढेर के नीचे।... पर सोचने की बात ये है कि इतने सारे पैरों वाला कैसे चलता होगा!

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दोस्त के जूते— (पढ़ने के लिए)

मेंढक जूते बनाता था। एक दिन उसके दुकान के सामने से एक काला चींटा निकला। चींटे के पास गुड़ की डली थी। मेंढक ने चींटे से कहा, “थोड़ा गुड़ दे दो। मच्छर खाते-खाते ऊब गया हूँ।” चींटा बोला, “अगर तुम मेरे दोस्त के लिए जूते बना दो तो आधा गुड़ तुम्हारा।”

मेंढक ने सोचा, गुड़ के बदले छह जूते बनाना अच्छा सौदा है। उसने हामी भर ली। चींटे ने आधा गुड़ मेंढक को दे दिया। अगले दिन चींटा अपने दोस्त के जूतों का नाप मेंढक के पास पहुँचा।

चींटे का दोस्त कनखजूरा था।

—चंदन यादव

मंजुल भार्गव

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