हेनरी के ढाबे का दरवाज़ा खुला और आदमी अंदर आए। वे काउंटर पर जा बैठे।
“आप लोग क्या खाएँगे...?” जार्ज ने उनसे पूछा।
“मुझे नहीं मालूम,” उनमें से एक ने कहा, “तुम क्या खाना चाहते हो एल?”
“मुझे नहीं मालूम,” एल ने कहा, “मैं नहीं जानता कि मैं क्या खाना चाहता हूँ।”
बाहर अँधेरा छा रहा था। खिड़की के बाहर से सड़क की रोशनी भीतर आ रही थी। काउंटर पर बैठे दोनों आदमी 'मीनू' को देखने लगे। काउंटर की दूसरी तरफ़ से निक एडम्ज उनको देख रहा था। जब वे अंदर आए थे, तब वह जार्ज से बातें कर रहा था।
“मुझे तंदूरी पोर्क, सेब की चटनी और आलू का भरता चाहिए।” पहले आदमी ने कहा।
“वह अभी तैयार नहीं है…।”
“फिर तुमने उसे फ़ेहरिस्त में क्यों डाल रखा है…?”
“वह रात के खाने के लिए है…,” जार्ज ने समझाया, “आपको शाम छह बजे के बाद वह मिल सकता है।” जार्ज ने काउंटर के पीछे दीवार पर लगी घड़ी को देखा।
“पाँच बजे हैं...।”
“लेकिन घड़ी तो पाँच बजकर बीस मिनट बता रही है…।” दूसरे आदमी ने कहा।
“वह बीस मिनट तेज़ है।”
“गोली मारो घड़ी को, घड़ी जाए जहन्नुम में…” पहले आदमी ने कहा, “तुम्हारे पास खाने को क्या है…?”
“मैं आपको किसी भी तरह का सैंडविच दे सकता हूँ,” जार्ज ने कहा, “आप अंडे और हैम, अंडे और बेकन, कलेजी और बेकन या स्टेक खा सकते हैं…।”
“मुझे चिकन-क्राकेट, हरी मटर, मलाई और आलू का भरता दे दो।”
“वह रात का खाना है, अभी नहीं मिल सकता…।”
“जो भी हम चाहें, वही रात का खाना है, अँय! यही है तुम्हारा काम करने का तरीक़ा!”
“मैं आपको हैम और अंडे, बेकन और अंडे, कलेजी…दे सकता हूँ…।”
“मैं हैम और अंडे लूँगा…।” एल ने कहा। वह ऊँची टोपी और काला ओवरकोट पहने हुए था, जिसमें ऊपर छाती तक बटन लगे हुए थे। उसका चेहरा छोटा और सफ़ेद था और उसके होंठ भिंचे हुए थे। वह रेशमी मफलर और दस्ताने पहने था।
“मुझे बेकन और अंडे दे दो।” दूसरे आदमी ने कहा। वह क़द में एल के बराबर ही रहा होगा। उनके चेहरों में फ़र्क़ था, लेकिन वे जुड़वाँ भाइयों की तरह कपड़े पहने हुए थे। दोनों के कोट कुछ ज़्यादा ही कसे थे। वे आगे झुककर बैठे थे, कोहनियों को काउंटर पर टेके हुए।
“पीने के लिए कुछ है…?” एल ने पूछा।
“सिल्वर बियर, बीवा और जिंजर-एल है।” जार्ज बोला।
“मेरा मतलब तुम्हारे पास पीने के लिए कुछ है?”
“वही, जो मैंने कहा…”
“यह गर्म शहर है,” दूसरे ने कहा, “इसे क्या कहते हैं?”
“समिट।”
“क्या कभी नाम सुना है?” एल ने अपने दोस्त से पूछा।
“नहीं।” दोस्त ने कहा।
“तुम लोग रात को यहाँ क्या करते हो?” एल ने पूछा।
“सब लोग खाना खाते हैं,” उसके मित्र ने कहा, “सब यहाँ आकर शानदार खाना खाते हैं।”
“ठीक कहते हैं…।” जार्ज ने कहा।
“तो तुम सोचते हो कि यह ठीक है?” एल ने जार्ज से पूछा।
“बिलकुल…।”
“लेकिन तुम तेज़ नहीं हो…” दूसरे छोटे-से आदमी ने कहा, “है क्या एल…?”
“यह बेवक़ूफ़ है…।” एल ने कहा। वह निक की ओर मुख़ातिब हुआ, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“एडम्ज!”
“एक और तेज़ लड़का!” एल ने कहा, “यह भी काफ़ी अक़्लमंद दिखाई देता है। है न मैक्स?”
“यह शहर ही अक़्लमंद लड़कों से भरा पड़ा है।” मैक्स बोला।
जार्ज ने दोनों प्याले, एक हैम और अंडे का और दूसरा बेकन और अंडे का मेज़ पर रख दिए। उसने अलग से दो प्लेट तले हुए आलू भी रख दिए और रसोई का दरवाज़ा बंद कर दिया।
“इनमें से तुम्हारा कौन-सा है?” मैक्स ने एल से पूछा।
“तुम्हें याद नहीं?”
“हैम और अंडे।”
“मैं भी काफ़ी तेज़ लड़का हूँ।” मैक्स ने कहा। उसने आगे झुककर हैम और अंडे ले लिए। दोनों ने दस्ताने पहनकर ही खाया। जार्ज उनको खाते हुए देखता रहा।
“तुम इधर क्या देख रहे हो?” मैक्स ने जार्ज की ओर देखते हुए कहा।
'कुछ नहीं।”
“तुमने बिलकुल देखा। तुम मेरी ओर ही देख रहे थे।”
“शायद वह यूँ ही मज़ाक़ कर रहा था मैक्स…।” एक बोला।
जार्ज हँसा।
“तुम्हें हँसने की कोई ज़रूरत नहीं है,” मैक्स ने उससे कहा, “तुम्हें ज़रा भी हँसने की ज़रूरत नहीं है, समझे।”
“अच्छा।” जार्ज ने कहा।
“तो वह सोच रहा है कि यह सब ठीक है…,” मैक्स एक की ओर मुड़कर बोला, “वह सोचता है कि यह सब बिलकुल ठीक है, यह भी ख़ूब बात हुई।”
“फ़िलॉस्फर दिखाई देता है…कुछ न कुछ सोचता ही रहता है…।” एल ने कहा। वे खाने में लगे रहे।
“अच्छा, उस तेज़ लड़के का क्या नाम है?” एल ने मैक्स से पूछा।
“ए लड़के!” मैक्स ने निक से कहा, “तुम अपने दोस्त को लेकर काउंटर के दूसरी तरफ़ चले जाओ।”
“क्या इरादा है?” निक ने पूछा।
“कोई इरादा नहीं है।”
“लड़के, तुम पीछे चले जाओ तो अच्छा है।” एल ने कहा। निक उठकर काउंटर के दूसरी तरफ़ चला गया।
“क्या करने वाले हो?” जार्ज ने पूछा।
“तुमसे क्या मतलब?” एल ने कहा, “वहाँ रसोई में कौन है…?”
“एक हब्शी।”
“हब्शी से तुम्हारा क्या मतलब?”
“वह हब्शी खाना पकाता है।”
“उससे कहो, अंदर आए।”
“क्या बात है?”
“उससे कहो, अंदर आए।”
“क्या तुम्हें पता है कि तुम लोग कहाँ हो?”
“हम लोग अच्छी तरह जानते हैं कि हम कहाँ हैं,” मैक्स नाम के आदमी ने कहा, “क्या हम लोग तुम्हें बेवक़ूफ़ दिखाई देते हैं?”
“तुम बेवक़ूफ़ी की बातें करते हो…।” एल ने उससे कहा।
“आख़िर तुम इससे इतनी बहस क्यों कर रहे हो?”
'सुनो,” उसने जार्ज से कहा, “उस हब्शी से कहो यहाँ आए।”
“तुम उसका क्या करोगे?”
“कुछ नहीं। ज़रा दिमाग़ से काम लो अक़्लमंद लड़के, हब्शी का हम क्या करेंगे?”
जार्ज ने रसोई के दरवाज़े का पट थोड़ा-सा खोला।
“सैम,” उसने पुकारा, “एक मिनट इधर आना।” रसोई का दरवाज़ा खुला और हब्शी अंदर आया।
“क्या है?” उसने पूछा। मेज़ पर बैठे दोनों आदमियों ने उसे देखा।
“अच्छा हब्शी, तुम वहीं खड़े रहो।” एल ने कहा। हब्शी सैम अपनी एप्रन पहने खड़ा-खड़ा काउंटर पर बैठे दोनों लोगों को देखता रहा। “अच्छा साहब!” वह बोला। एल अपने स्टूल पर से उतरा।
“हब्शी और उस लड़के के साथ मैं रसोई में जा रहा हूँ,” रसोई में वापस जाकर वह बोला, “हब्शी, तुम भी जाओ उसके साथ।”
छोटा आदमी निक और ख़ानसामाँ सैम के पीछे रसोई में चले गए। दरवाज़ा उनके पीछे बंद हो गया। मैक्स जार्ज के सामने काउंटर पर बैठा रहा। वह जार्ज की ओर नहीं, बल्कि उस आईने की ओर देख रहा था, जो काउंटर के पीछे लगा हुआ था।
“क्यों, लड़के,” शीशे में देखता हुआ मैक्स बोला, “तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?”
“यह सब क्या हो रहा है?”
“अरे एल!” मैक्स ने पुकारा, “यह लड़का जानना चाहता है कि यह सब क्या हो रहा है।”
“तो तुम बताते क्यों नहीं?” एल रसोई से बोला।
“तुम क्या सोचते हो, यह क्या हो रहा है?”
“मुझे नहीं मालूम।”
“पर क्या सोचते हो?” मैक्स बोलते हुए पूरे वक़्त शीशे में देखता रहा था।
“कह नहीं सकता!”
“अरे एल! यह कहता है कि वह कह नहीं सकता कि क्या हो रहा है।”
“मैं सब सुन रहा हूँ।” एल ने रसोई में से कहा। उसने एक बोतल से उस छोटी-सी खिड़की को खोल डाला था, जिसमें से बर्तन रसोई में लाए जाते थे।
“सुनो लड़के!” उसने जार्ज से कहा, “ज़रा और दूर जाकर खड़े हो जाओ। तुम ज़रा बाएँ हटकर खड़े हो जाओ मैक्स!” वह किसी फ़ोटोग्राफर की मुद्रा में बात कर रहा था, मानो ग्रुप-फ़ोटो खींचने की तैयारी कर रहा हो।
“मुझसे बोलो लड़के!” मैक्स ने कहा, “तुम क्या सोचते हो कि यहाँ क्या होने वाला है?”
जार्ज कुछ नहीं बोला।
“मैं तुम्हें बताता हूँ,” मैक्स बोला, “हम लोग एक स्वीडी को मारने जा रहे हैं। क्या तुम एंडरसन नाम के किसी स्वीडी को जानते हो?”
“हाँ”
“वह रोज़ रात को यहाँ खाना खाने आता है, है न…?”
“कभी-कभी आता है।”
“वह यहाँ छह बजे आता है, है न?”
“हाँ, यदि वह आता है।”
“वह तो हम जानते हैं,” मैक्स बोला, “कुछ दूसरी बातें करो। क्या कभी सिनेमा देखने जाते हो?”
“कभी-कभार।”
“तुम्हें सिनेमा अधिक देखना चाहिए। तुम्हारे जैसे होशियार लड़के के लिए सिनेमा अच्छी चीज़ है।”
“तुम लोग बूढ़े एंडरसन को क्यों मारने जा रहे हो? उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”
“हमारा कुछ बिगाड़ने का उसे मौक़ा ही नहीं मिला। उसने हमें देखा तक नहीं।”
“और वह हमें सिर्फ़ पहली बार और आख़िरी बार देखेगा।” एल ने रसोई से कहा “तब तुम लोग उसे क्यों मारने जा रहे हो?” जार्ज ने पूछा।
“हम लोग उसे एक दोस्त के लिए मार रहे हैं...एक दोस्त पर एहसान करने के लिए।”
“चुप रहो!” एल रसोई से बोला, “तुम बहुत ज़्यादा बात करते हो।”
“पर मुझे इस लड़के का मन बहलाना है, क्यों लड़के?”
“तुम हद से ज़्यादा बातें करते हो।” एल बोला, “हब्शी और यह लड़का तो अपने आप ही ख़ुश हैं।” जार्ज ने घड़ी की ओर देखा।
“कोई अगर आए तो उससे कह देना कि ख़ानसामाँ छुट्टी पर है और अगर वह ज़्यादा इसरार करने लगे तो कह देना कि तुम्हीं खाना पका दोगे। समझे लड़के।”
“अच्छी बात है,” जार्ज बोला, “पर उसके बाद तुम हमारे साथ क्या करोगे?”
“कह नहीं सकते...” मैक्स ने कहा, “यह तो एक ऐसी बात है, जो पहले से नहीं कही जा सकती।” जार्ज ने घड़ी की ओर देखा। सवा छह बज रहे थे। सड़क की ओर का दरवाज़ा खुला, कोई मोटर चलाने वाला अंदर आया।'
“हैलो जार्ज,” वह बोला, “मुझे खाना मिलेगा...?”
“सैम कहीं गया है,” जार्ज ने कहा, “वह क़रीब आधे घंटे में लौटेगा।”
“तब तो मुझे कहीं और जाना चाहिए।” मोटर चलाने वाला आदमी बोला। जार्ज ने घड़ी देखा। छह बजकर बीस मिनट हो रहे थे।
“उससे यह कहकर तुमने अच्छा किया, लड़के!” मैक्स बोला, “तुम सचमुच बहुत अच्छे हो।”
“वह जानता था कि मैं उसे गोली से उड़ा दूँगा...” एल रसोई में से बोला।
“नहीं...” मैक्स बोला, “ऐसा नहीं है। यह अच्छा लड़का मुझे पसंद है।”
छह बजकर पचपन मिनट पर जार्ज ने कहा, “एंडरसन अब नहीं आएगा...।”
दो लोग और आ चुके थे। एक बार जार्ज ने रसोई में जाकर हैम और अंडे का सैंडविच बना दिया था, जो वह आदमी अपने साथ ले जाना चाहता था। रसोई के अंदर उसने एल को देखा। उसकी टोपी खिसक गई थी। वह एक स्टूल पर बैठा हुआ था। कोट की बग़ल से एक पुरानी बंदूक की नोंक दिखाई दे रही थी। निक और ख़ानसामाँ एक-दूसरे की तरफ़ पीठ किए हुए एक कोने में बँधे हुए थे। दोनों के मुँह में कपड़ा ठूँसा हुआ था।
जार्ज ने सैंडविच तैयार किया, उसे काग़ज़ में लपेटा, झोले में रखा और बाहर ले आया। आदमी उसके पैसे देकर चला गया।
“यह लड़का तो सब कुछ कर लेता है...” मैक्स बोला।
“खाना भी पका लेता है...”
“तुम किसी लड़के की अच्छी-सी बीवी बनोगे लड़के!”
“हाँ!” जार्ज बोला, “लेकिन तुम्हारा बुड्ढा एंडरसन अब नहीं आने वाला।”
“दस मिनट और देते हैं उसे...” मैक्स ने कहा। वह शीशे और घड़ी की ओर देखता रहा। घड़ी की सुई सात बजा रही थी, फिर सात बजकर पाँच मिनट।
“चलो एल!” मैक्स बोला, “अब एंडरसन नहीं आएगा।”
“चलो, पाँच मिनट और रुक जाते हैं...” एल ने किचन से कहा।
उसी पाँच मिनट में एक आदमी आया। जार्ज ने उसे बताया कि ख़ानसामाँ बीमार है।
“तुम आख़िर एक नया रसोइया क्यों नहीं रखते?” वह बोला, “तुम्हें यह ढाबा चलाना है या नहीं?” कहकर वह बाहर चला गया।
“चलो एल...” मैक्स ने कहा।
“इन दोनों लड़कों और उस हब्शी का क्या करें?”
“ये ऐसे ही ठीक हैं।”
“क्या तुम ऐसा सोचते हो?”
“और क्या, हमारा काम तो ख़त्म हो गया।”
“मुझे इस तरह इन्हें छोड़कर जाना अच्छा नहीं लग रहा है।”
एल ने कहा, “यह फूहड़ और बेढंगा काम है। तुम बहुत ज़्यादा बोलते है...।”
‘अरे जाएँ जहन्नुम में!” मैक्स बोला, “हम लोगों को अपना मन बहलाए रखना है कि नहीं?”
“वैसे भी तुम ज़्यादा बातें करते हो।” एल बोला। वह रसोई से बाहर आ गया। उसके कसे हुए कोट के नीचे से बंदूक का उभार दिखाई पड़ रहा था। दस्ताने से ढके हुए हाथ से उसने अपना कोट खींचकर सीधा किया।
“यह सच बात है...” मैक्स बोला, “तुमको तो जुआ खेलना चाहिए।”
दोनों दरवाज़े के बाहर चले गए। जार्ज उनको खिड़की से जाते हुए देखता रहा। वे सड़क पर जलती बत्ती के नीचे से होते हुए सड़क पार कर गए। कसे हुए ओवरकोट और ऊँची टोपी में वे किसी नौटंकी में काम करने वाले जैसे दिखाई दे रहे थे। जार्ज रसोई का दरवाज़ा खोलकर अंदर गया। उसने निक और ख़ानसामाँ की रस्सियाँ खोल दीं।
“मुझे यह एकदम पसंद नहीं...।” ख़ानसामाँ सैम बोला।
“फिर यह कभी नहीं होना चाहिए।”
निक खड़ा हो गया। मुँह में कपड़ा ठूँसे जाने का उसे पहले कभी अनुभव नहीं था।
“बताओ” वह बोला, “उनकी यह मजाल!” वह बात को यूँ ही उड़ा देना चाहता था।
“वे लोग बूढ़े एंडरसन को मारना चाह रहे थे।” जार्ज ने कहा।
“वे लोग उस पर गोली चलाने वाले थे, जब वह खाना खाने आता।”
“बूढ़ा एंडरसन...?”
“हाँ...!”
ख़ानसामे ने अपने मुँह के कोरों को अँगूठे से खुजलाया।
“वे चले गए...?” उसने पूछा।”
“हाँ,” जार्ज बोला, “वे जा चुके हैं।”
“मुझे यह सब अच्छा नहीं लग रहा है।” ख़ानसामाँ बोला।
“ज़रा भी अच्छा नहीं लग रहा है।”
“सुनो!” जार्ज निक से बोला, “तुम्हें एंडरसन से सब कुछ बता देना चाहिए।”
“अच्छी बात है।”
“तुमको इसमें अपनी टाँग हरगिज़ नहीं फँसानी चाहिए,” सैम बोला, “ऐसी बातों से दूर ही रहो तो अच्छा है।”
“तुम नहीं जाना चाहते तो न जाओ...” जार्ज बोला।
“ऐसी बातों में बेकार की दख़ल देने से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा,” ख़ानसामाँ बोला, “ऐसी बातों से अलग ही रहो।”
“मैं उससे जाकर मिल लूँगा।” निक ने जार्ज से कहा।
वह कहाँ रहता है?”
ख़ानसामाँ अलग हो गया। “तुम लोग ही जानो, तुम क्या करना चाहते हो।” वह बोला।
“एंडरसन हर्श के होटल में रहता है।” जार्ज ने निक से कहा।
“तो मैं वहीं चला जाता हूँ।”
बाहर रोशनी एक पेड़ की सूखी डालियों में से चमक रही थी। निक सड़क पर मोटर के पहियों के निशान के साथ-साथ चलता रहा। फिर वह अगली बत्ती के पास एक लेन में मुड़ गया। सड़क पर तीन घरों के बाद हर्श का होटल था। सीढ़ियाँ चढ़कर निक ने घंटी बजाई। एक महिला दरवाज़े पर आई।
“बूढ़ा एंडरसन क्या यहाँ है?”
“तुम उससे मिलना चाहते हो?”
“हाँ, अगर वह है तो।”
निक औरत के पीछे-पीछे सीढ़ियों पर हो लिया। एक लंबा कोरीडॉर पार करके औरत ने दरवाज़ा खटखटाया।
“कौन है?”
“एंडरसन साहब! कोई तुमसे मिलने आया है।” औरत ने कहा।
“मैं हूँ निक एडम्ज।”
“अंदर आ जाओ।”
निक दरवाज़ा खोलकर कमरे के अंदर गया। बूढ़ा एंडरसन पलंग पर लेटा हुआ था। वह किसी ज़माने में काफ़ी ताक़तवर पहलवान हुआ करता था। उसकी लंबाई पलंग से ज़्यादा थी। वह अपने सिर के नीचे दो तकिए लगाए हुए था। उसने निक की ओर नहीं देखा।
“क्या हुआ?” उसने पूछा।
“मैं हैनरी के ढाबे में था,” निक ने कहा, “वहाँ दो लोगों ने आकर मुझे और ख़ानसामाँ को रस्सी से बाँध दिया। वे कह रहे थे कि तुम्हें मारने वाले हैं।” यह कहते हुए उसकी बात हास्यास्पद लग रही थी। बूढ़ा एंडरसन कुछ नहीं बोला। “उन लोगों ने हमें किचन में बंद कर दिया...” निक बोलता गया, “वे तुम्हें मारने जा रहे थे। जब तुम रात का खाना खाने वहाँ जाते।”
एंडरसन कुछ नहीं बोला। वह घड़ी की ओर देखता रहा।
“जार्ज ने सोचा कि मुझे आकर तुम्हें स्थिति से अवगत करा देना चाहिए। मैं उनके बारे में तुमको बताता हूँ।”
“मैं नहीं जानना चाहता कि वे कैसे थे,” बूढ़ा एंडरसन दीवार की ओर देखते हुए बोला, “तुमने आकर इस संबंध में बताने का कष्ट किया, इसके लिए धन्यवाद।”
“वह तो ठीक है।” निक ने पलंग पर लेटे लंबे-चौड़े आदमी को देखा।
“तुम क्या नहीं चाहते कि मैं पुलिस के पास जाऊँ?”
“नहीं,” एंडरसन बोला, “उससे कोई फ़ायदा नहीं होगा।”
“क्या इसके बारे में मैं कुछ कर सकता हूँ?”
“नहीं, इस संबंध में कुछ नहीं करना है।”
“एक ही बात मुझे परेशान कर रही है,” दीवार की ओर मुँह करके वह बोला, “मैं बाहर जाऊँ या नहीं? दिन-भर से मैं यहीं हूँ।”
“तुम क्या शहर के बाहर नहीं जा सकते?”
“नहीं,” एंडरसन बोला, “मैं इधर-उधर भागते-भागते थक गया हूँ।”
उसने दीवार की ओर देखा।
“अब करने को कुछ नहीं है।”
“तुम क्या इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकते?”
“नहीं, मैंने शुरू से ही ग़लत क़दम उठाया...” वह बराबर एक ही तरह धीमी आवाज़ में बोलता रहा, “अब कुछ करने के लिए नहीं है? कुछ देर बाद मैं बाहर निकलने के बारे में निश्चय करूँगा।”
“मेरे ख़याल से मैं वापस जाकर जार्ज से मिल लूँ...” निक बोला।
“अच्छी बात है।” एंडरसन ने कहा। उसने निक की ओर नहीं देखा, “यहाँ आने के लिए शुक्रिया।”
निक बाहर चला गया। दरवाज़ा बंद करते वक़्त उसने एंडरसन को पलंग पर पड़े दीवार की ओर एकटक ताकते देखा।
“वह सारा दिन कमरे में रहा है, मकान मालकिन ने नीचे आकर कहा,” शायद उसकी तबीयत ठीक नहीं है। मैंने उससे कहा, “एंडरसन साहब, इतने ख़ूबसूरत पतझड़ के दिन तो तुम्हें अवश्य बाहर जाना चाहिए...पर उसकी ख़्वाहिश नहीं थी।”
“वह बाहर जाना नहीं चाहता?”
“मुझे अफ़सोस है कि उसकी तबीयत अच्छी नहीं है,” औरत बोली, “वह बहुत अच्छा आदमी है। तुम्हें मालूम है, वह कभी पहलवान हुआ करता था।”
“मालूम है।”
“वह बहुत सौम्य है।” औरत ने कहा।
“अच्छा मिसेज़ हर्श, अब मैं चलता हूँ।” निक बोला।
“मैं मिसेज़ हर्श नहीं हूँ,” औरत बोली, “वह तो इस जगह की मालकिन है। मैं यहाँ की देखभाल करती हूँ। मैं मिसेज़ बेल हूँ।”
“अच्छा, चलूँ मिसेज़ बेल!” निक ने कहा।
“अच्छा!” औरत बोली।
निक अँधेरी सड़क पर चला, बत्ती के नीचे उस कोने तक। फिर मोटर के निशान के साथ-साथ हेनरी के ढाबे तक। जार्ज अंदर था, काउंटर के पीछे।
“क्या मिले एंडरसन से?”
“हाँ...” निक बोला, “वह अपने कमरे में है और बाहर नहीं निकलता।”
निक की आवाज़ सुनकर ख़ानसामाँ ने रसोई का दरवाज़ा खोला, “मैं तो यह सब सुनूँगा भी नहीं।” यह कहकर उसने फिर दरवाज़ा बंद कर लिया।
“तुमने उसे सब कुछ बताया?” जार्ज ने पूछा।
“हाँ, बताया, पर वह पहले से ही सब कुछ जानता था।”
“अब वह क्या करने जा रहा है?”
“कुछ नहीं।”
“वे उसको मार डालेंगे!”
“हाँ, ऐसा ही लगता है।”
“वह निश्चित रूप से शिकागो में इस लफ़ड़े में फँसा होगा।”
“यही हुआ होगा।” निक ने कहा।
“काफ़ी परेशानी की बात है।”
'बहुत बुरी बात है।” निक बोला।
वे थोड़ी देर के लिए चुप रहे। जार्ज ने तौलिए से काउंटर को पोंछ डाला।
“न जाने क्या किया होगा उसने?” निक बोला।
“किसी को धोखा दिया होगा। इसीलिए तो ये लोग मारे जाते हैं।”
“मैं इस शहर से बाहर जा रहा हूँ।” निक ने कहा।
“हाँ,” जार्ज बोला, “ऐसा ही करना अच्छा है।”
“मैं उसके बारे में बहुत देर तक नहीं सोच सकता।” निक बोला।
“कोई जानता हो कि वह मरने वाला है, कुछ लोग उसे मारने आने वाले हैं और यह जानते हुए भी वह अपने कमरे में पड़ा-पड़ा मौत की प्रतीक्षा कर रहा हो, यह बहुत मारक स्थिति है, बर्दाश्त के बाहर!”
“ख़ैर!” जार्ज बोला, “सोचने से क्या होगा?”
henri ke Dhabe ka darvaza khula aur adami andar aaye. ve counter par ja baithe.
“mujhe nahin malum,” unmen se ek ne kaha, “tum kya khana chahte ho l?”
“mujhe nahin malum,” l ne kaha, “main nahin janta ki main kya khana chahta hoon. ”
bahar andhera chha raha tha. khiDki ke bahar se saDak ki roshni bhitar aa rahi thi. counter par baithe donon adami minu ko dekhne lage. counter ki dusri taraf se nik eDamj unko dekh raha tha. jab ve andar aaye the, tab wo jaarj se baten kar raha tha.
“mujhe tanduri pork, seb ki chatni aur aalu ka bharta chahiye. ” pahle adami ne kaha.
“vah abhi taiyar nahin hai…. ”
“phir tumne use fehrist mein kyon Daal rakha hai…?”
“vah raat ke khane ke liye hai…,” jaarj ne samjhaya, “apko shaam chhah baje ke baad wo mil sakta hai. ” jaarj ne counter ke pichhe divar par lagi ghaDi ko dekha.
“paanch baje hain. . . . ”
“lekin ghaDi to paanch bajkar bees minat bata rahi hai…. ” dusre adami ne kaha.
“vah bees minat tez hai. ”
“goli maro ghaDi ko, ghaDi jaye jahannum men…” pahle adami ne kaha, “tumhare paas khane ko kya hai…?”
“main aapko kisi bhi tarah ka sandwich de sakta hoon,” jaarj ne kaha, “aap anDe aur haim, anDe aur bekan, kaleji aur bekan ya stek kha sakte hain…. ”
“mujhe chikan kraket, hari matar, malai aur aalu ka bharta de do. ”
“vah raat ka khana hai, abhi nahin mil sakta…. ”
“jo bhi hum chahen, vahi raat ka khana hai, anya! yahi hai tumhara kaam karne ka tariqa!”
“main haim aur anDe lunga…. ” l ne kaha. wo unchi topi aur kala overcoat pahne hue tha, jismen upar chhati tak button lage hue the. uska chehra chhota aur safed tha aur uske honth bhinche hue the. wo reshmi maphlar aur dastane pahne tha.
“mujhe bekan aur anDe de do. ” dusre adami ne kaha. wo qad mein l ke barabar hi raha hoga. unke chehron mein farq tha, lekin ve juDvan bhaiyon ki tarah kapDe pahne hue the. donon ke coat kuch zyada hi kase the. ve aage jhukkar baithe the, kohaniyon ko counter par teke hue.
“pine ke liye kuch hai…?” l ne puchha.
“silver biyar, biva aur jinjar l hai. ” jaarj bola.
“mera matlab tumhare paas pine ke liye kuch hai?”
“vahi, jo mainne kaha…”
“yah garm shahr hai,” dusre ne kaha, “ise kya kahte hain?”
“samit. ”
“kya kabhi naam suna hai?” l ne apne dost se puchha.
“nahin. ” dost ne kaha.
“tum log raat ko yahan kya karte ho?” l ne puchha.
“to tum sochte ho ki ye theek hai?” l ne jaarj se puchha.
“bilkul…. ”
“lekin tum tez nahin ho…” dusre chhote se adami ne kaha, “hai kya l…?”
“yah bevaquf hai…. ” l ne kaha. wo nik ki or mukhatib hua, “tumhara naam kya hai?”
“eDamj!”
“ek aur tez laDka!” l ne kaha, “yah bhi kafi aqlmand dikhai deta hai. hai na maiks?”
“yah shahr hi aqlmand laDkon se bhara paDa hai. ” maiks bola.
jaarj ne donon pyale, ek haim aur anDe ka aur dusra bekan aur anDe ka mez par rakh diye. usne alag se do plate tale hue aalu bhi rakh diye aur rasoi ka darvaza band kar diya.
“inmen se tumhara kaun sa hai?” maiks ne l se puchha.
“tumhen yaad nahin?”
“haim aur anDe. ”
“main bhi kafi tez laDka hoon. ” maiks ne kaha. usne aage jhukkar haim aur anDe le liye. donon ne dastane pahankar hi khaya. jaarj unko khate hue dekhta raha.
“tum idhar kya dekh rahe ho?” maiks ne jaarj ki or dekhte hue kaha.
kuch nahin. ”
“tumne bilkul dekha. tum meri or hi dekh rahe the. ”
“shayad wo yoon hi maज़aक़ kar raha tha maiks…. ” ek bola.
jaarj hansa.
“tumhen hansne ki koi zarurat nahin hai,” maiks ne usse kaha, “tumhen zara bhi hansne ki zarurat nahin hai, samjhe. ”
“achchha. ” jaarj ne kaha.
“to wo soch raha hai ki ye sab theek hai…,” maiks ek ki or muDkar bola, “vah sochta hai ki ye sab bilkul theek hai, ye bhi khoob baat hui. ”
“filausphar dikhai deta hai…kuchh na kuch sochta hi rahta hai…. ” l ne kaha. ve khane mein lage rahe.
“achchha, us tez laDke ka kya naam hai?” l ne maiks se puchha.
“e laDke!” maiks ne nik se kaha, “tum apne dost ko lekar counter ke dusri taraf chale jao. ”
“kya irada hai?” nik ne puchha.
“koi irada nahin hai. ”
“laDke, tum pichhe chale jao to achchha hai. ” l ne kaha. nik uthkar counter ke dusri taraf chala gaya.
“kya karne vale ho?” jaarj ne puchha.
“tumse kya matlab?” l ne kaha, “vahan rasoi mein kaun hai…?”
“ek habshi. ”
“habshi se tumhara kya matlab?”
“vah habshi khana pakata hai. ”
“usse kaho, andar aaye. ”
“kya baat hai?”
“usse kaho, andar aaye. ”
“kya tumhein pata hai ki tum log kahan ho?”
“ham log achchhi tarah jante hain ki hum kahan hain,” maiks naam ke adami ne kaha, “kya hum log tumhein bevaquf dikhai dete hain?”
“tum bevaqufi ki baten karte ho…. ” l ne usse kaha.
“akhir tum isse itni bahs kyon kar rahe ho?”
suno,” usne jaarj se kaha, “us habshi se kaho yahan aaye. ”
“tum uska kya karoge?”
“kuchh nahin. zara dimagh se kaam lo aqlmand laDke, habshi ka hum kya karenge?”
“kya hai?” usne puchha. mez par baithe donon adamiyon ne use dekha.
“achchha habshi, tum vahin khaDe raho. ” l ne kaha. habshi saim apni epran pahne khaDa khaDa counter par baithe donon logon ko dekhta raha. “achchha sahab!” wo bola. l apne stool par se utra.
“habshi aur us laDke ke saath main rasoi mein ja raha hoon,” rasoi mein vapas jakar wo bola, “habshi, tum bhi jao uske saath. ”
chhota adami nik aur khansaman saim ke pichhe rasoi mein chale gaye. darvaza unke pichhe band ho gaya. maiks jaarj ke samne counter par baitha raha. wo jaarj ki or nahin, balki us aine ki or dekh raha tha, jo counter ke pichhe laga hua tha.
“are l!” maiks ne pukara, “yah laDka janna chahta hai ki ye sab kya ho raha hai. ”
“to tum batate kyon nahin?” l rasoi se bola.
“tum kya sochte ho, ye kya ho raha hai?”
“mujhe nahin malum. ”
“par kya sochte ho?” maiks bolte hue pure vaक़t shishe mein dekhta raha tha.
“kah nahin sakta!”
“are l! ye kahta hai ki wo kah nahin sakta ki kya ho raha hai. ”
“main sab sun raha hoon. ” l ne rasoi mein se kaha. usne ek botal se us chhoti si khiDki ko khol Dala tha, jismen se bartan rasoi mein laye jate the.
“suno laDke!” usne jaarj se kaha, “zara aur door jakar khaDe ho jao. tum zara bayen hatkar khaDe ho jao maiks!” wo kisi fotographar ki mudra mein baat kar raha tha, mano group photo khinchne ki taiyari kar raha ho.
“mujhse bolo laDke!” maiks ne kaha, “tum kya sochte ho ki yahan kya hone vala hai?”
jaarj kuch nahin bola.
“main tumhein batata hoon,” maiks bola, “ham log ek sviDi ko marne ja rahe hain. kya tum enDarsan naam ke kisi sviDi ko jante ho?”
“haan”
“vah roz raat ko yahan khana khane aata hai, hai n…?”
“kabhi kabhi aata hai. ”
“vah yahan chhah baje aata hai, hai n?”
“haan, yadi wo aata hai. ”
“vah to hum jante hain,” maiks bola, “kuchh dusri baten karo. kya kabhi cinema dekhne jate ho?”
“tum log buDhe enDarsan ko kyon marne ja rahe ho? usne tumhara kya bigaDa hai?”
“hamara kuch bigaDne ka use mauqa hi nahin mila. usne hamein dekha tak nahin. ”
“aur wo hamein sirf pahli baar aur akhiri baar dekhega. ” l ne rasoi se kaha “tab tum log use kyon marne ja rahe ho?” jaarj ne puchha.
“ham log use ek dost ke liye maar rahe hain. . . ek dost par ehsaan karne ke liye. ”
“chup raho!” l rasoi se bola, “tum bahut zyada baat karte ho. ”
“par mujhe is laDke ka man bahlana hai, kyon laDke?”
“tum had se zyada baten karte ho. ” l bola, “habshi aur ye laDka to apne aap hi khush hain. ” jaarj ne ghaDi ki or dekha.
“koi agar aaye to usse kah dena ki khansaman chhutti par hai aur agar wo zyada israar karne lage to kah dena ki tumhin khana paka doge. samjhe laDke. ”
“kah nahin sakte. . . ” maiks ne kaha, “yah to ek aisi baat hai, jo pahle se nahin kahi ja sakti. ” jaarj ne ghaDi ki or dekha. sava chhah baj rahe the. saDak ki or ka darvaza khula, koi motor chalane vala andar aaya.
“hailo jaarj,” wo bola, “mujhe khana milega. . . ?”
“saim kahin gaya hai,” jaarj ne kaha, “vah qarib aadhe ghante mein lautega. ”
“tab to mujhe kahin aur jana chahiye. ” motor chalane vala adami bola. jaarj ne ghaDi dekha. chhah bajkar bees minat ho rahe the.
chhah bajkar pachpan minat par jaarj ne kaha, “enDarsan ab nahin ayega. . . . ”
do log aur aa chuke the. ek baar jaarj ne rasoi mein jakar haim aur anDe ka sandwich bana diya tha, jo wo adami apne saath le jana chahta tha. rasoi ke andar usne l ko dekha. uski topi khisak gai thi. wo ek stool par baitha hua tha. coat ki baghal se ek purani banduk ki nonk dikhai de rahi thi. nik aur khansaman ek dusre ki taraf peeth kiye hue ek kone mein bandhe hue the. donon ke munh mein kapDa thunsa hua tha.
jaarj ne sandwich taiyar kiya, use kaghaz mein lapeta, jhole mein rakha aur bahar le aaya. adami uske paise dekar chala gaya.
“yah laDka to sab kuch kar leta hai. . . ” maiks bola.
“khana bhi paka leta hai. . . ”
“tum kisi laDke ki achchhi si bivi banoge laDke!”
“haan!” jaarj bola, “lekin tumhara buDDha enDarsan ab nahin aane vala. ”
“das minat aur dete hain use. . . ” maiks ne kaha. wo shishe aur ghaDi ki or dekhta raha. ghaDi ki sui saat baja rahi thi, phir saat bajkar paanch minat.
“chalo, paanch minat aur ruk jate hain. . . ” l ne kitchen se kaha.
usi paanch minat mein ek adami aaya. jaarj ne use bataya ki khansaman bimar hai.
“tum akhir ek naya rasoiya kyon nahin rakhte?” wo bola, “tumhen ye Dhaba chalana hai ya nahin?” kahkar wo bahar chala gaya.
“chalo l. . . ” maiks ne kaha.
“in donon laDkon aur us habshi ka kya karen?”
“ye aise hi theek hain. ”
“kya tum aisa sochte ho?”
“aur kya, hamara kaam to khatm ho gaya. ”
“mujhe is tarah inhen chhoDkar jana achchha nahin lag raha hai. ”
l ne kaha, “yah phoohD aur beDhanga kaam hai. tum bahut zyada bolte hai. . . . ”
‘are jayen jahannum men!” maiks bola, “ham logon ko apna man bahlaye rakhna hai ki nahin?”
“vaise bhi tum zyada baten karte ho. ” l bola. wo rasoi se bahar aa gaya. uske kase hue coat ke niche se banduk ka ubhaar dikhai paD raha tha. dastane se Dhake hue haath se usne apna coat khinchkar sidha kiya.
donon darvaze ke bahar chale gaye. jaarj unko khiDki se jate hue dekhta raha. ve saDak par jalti batti ke niche se hote hue saDak paar kar gaye. kase hue overcoat aur unchi topi mein ve kisi nautangi mein kaam karne vale jaise dikhai de rahe the. jaarj rasoi ka darvaza kholkar andar gaya. usne nik aur khansaman ki rassiyan khol deen.
nik khaDa ho gaya. munh mein kapDa thunse jane ka use pahle kabhi anubhav nahin tha.
“batao” wo bola, “unki ye majal!” wo baat ko yoon hi uDa dena chahta tha.
“ve log buDhe enDarsan ko marana chaah rahe the. ” jaarj ne kaha.
“ve log us par goli chalane vale the, jab wo khana khane aata. ”
“buDha enDarsan. . . ?”
“haan. . . !”
khansame ne apne munh ke koron ko anguthe se khujlaya.
“ve chale gaye. . . ?” usne puchha. ”
“haan,” jaarj bola, “ve ja chuke hain. ”
“mujhe ye sab achchha nahin lag raha hai. ” khansaman bola.
“zara bhi achchha nahin lag raha hai. ”
“suno!” jaarj nik se bola, “tumhen enDarsan se sab kuch bata dena chahiye. ”
“achchhi baat hai. ”
“tumko ismen apni taang hargiz nahin phansani chahiye,” saim bola, “aisi baton se door hi raho to achchha hai. ”
“tum nahin jana chahte to na jao. . . ” jaarj bola.
“aisi baton mein bekar ki daख़l dene se tumhein kuch hasil nahin hoga,” khansaman bola, “aisi baton se alag hi raho. ”
“main usse jakar mil lunga. ” nik ne jaarj se kaha.
wo kahan rahta hai?”
khansaman alag ho gaya. “tum log hi jano, tum kya karna chahte ho. ” wo bola.
“enDarsan harsh ke hotel mein rahta hai. ” jaarj ne nik se kaha.
“to main vahin chala jata hoon. ”
bahar roshni ek peD ki sukhi Daliyon mein se chamak rahi thi. nik saDak par motor ke pahiyon ke nishan ke saath saath chalta raha. phir wo agli batti ke paas ek len mein muD gaya. saDak par teen gharon ke baad harsh ka hotel tha. siDhiyan chaDhkar nik ne ghanti bajai. ek mahila darvaze par i.
“buDha enDarsan kya yahan hai?”
“tum usse milna chahte ho?”
“haan, agar wo hai to. ”
nik aurat ke pichhe pichhe siDhiyon par ho liya. ek lamba koriDaur paar karke aurat ne darvaza khatkhataya.
nik darvaza kholkar kamre ke andar gaya. buDha enDarsan palang par leta hua tha. wo kisi zamane mein kafi taqatvar pahlavan hua karta tha. uski lanbai palang se zyada thi. wo apne sir ke niche do takiye lagaye hue tha. usne nik ki or nahin dekha.
“kya hua?” usne puchha.
“main hainri ke Dhabe mein tha,” nik ne kaha, “vahan do logon ne aakar mujhe aur khansaman ko rassi se baandh diya. ve kah rahe the ki tumhein marne vale hain. ” ye kahte hue uski baat hasyaspad lag rahi thi. buDha enDarsan kuch nahin bola. “un logon ne hamein kitchen mein band kar diya. . . ” nik bolta gaya, “ve tumhein marne ja rahe the. jab tum raat ka khana khane vahan jate. ”
enDarsan kuch nahin bola. wo ghaDi ki or dekhta raha.
“jaarj ne socha ki mujhe aakar tumhein sthiti se avgat kara dena chahiye. main unke bare mein tumko batata hoon. ”
“main nahin janna chahta ki ve kaise the,” buDha enDarsan divar ki or dekhte hue bola, “tumne aakar is sambandh mein batane ka kasht kiya, iske liye dhanyavad. ”
“vah to theek hai. ” nik ne palang par lete lambe chauDe adami ko dekha.
“tum kya nahin chahte ki main police ke paas jaun?”
“nahin, mainne shuru se hi ghalat qadam uthaya. . . ” wo barabar ek hi tarah dhimi avaz mein bolta raha, “ab kuch karne ke liye nahin hai? kuch der baad main bahar nikalne ke bare mein nishchay karunga. ”
“mere khayal se main vapas jakar jaarj se mil loon. . . ” nik bola.
“achchhi baat hai. ” enDarsan ne kaha. usne nik ki or nahin dekha, “yahan aane ke liye shukriya. ”
nik bahar chala gaya. darvaza band karte vaक़t usne enDarsan ko palang par paDe divar ki or ektak takte dekha.
“vah sara din kamre mein raha hai, makan malkin ne niche aakar kaha,” shayad uski tabiyat theek nahin hai. mainne usse kaha, “enDarsan sahab, itne khubsurat patjhaD ke din to tumhein avashy bahar jana chahiye. . . par uski khvahish nahin thi. ”
“vah bahar jana nahin chahta?”
“mujhe afsos hai ki uski tabiyat achchhi nahin hai,” aurat boli, “vah bahut achchha adami hai. tumhein malum hai, wo kabhi pahlavan hua karta tha. ”
“malum hai. ”
“vah bahut saumy hai. ” aurat ne kaha.
“achchha mrs harsh, ab main chalta hoon. ” nik bola.
“main mrs harsh nahin hoon,” aurat boli, “vah to is jagah ki malkin hai. main yahan ki dekhbhal karti hoon. main mrs bel hoon. ”
“achchha, chalun mrs bel!” nik ne kaha.
“achchha!” aurat boli.
nik andheri saDak par chala, batti ke niche us kone tak. phir motor ke nishan ke saath saath henri ke Dhabe tak. jaarj andar tha, counter ke pichhe.
nik ki avaz sunkar khansaman ne rasoi ka darvaza khola, “main to ye sab sununga bhi nahin. ” ye kahkar usne phir darvaza band kar liya.
“tumne use sab kuch bataya?” jaarj ne puchha.
“haan, bataya, par wo pahle se hi sab kuch janta tha. ”
“ab wo kya karne ja raha hai?”
“kuchh nahin. ”
“ve usko maar Dalenge!”
“haan, aisa hi lagta hai. ”
“vah nishchit roop se shikago mein is lafDe mein phansa hoga. ”
“yahi hua hoga. ” nik ne kaha.
“kafi pareshani ki baat hai. ”
bahut buri baat hai. ” nik bola.
ve thoDi der ke liye chup rahe. jaarj ne tauliye se counter ko ponchh Dala.
“n jane kya kiya hoga usne?” nik bola.
“kisi ko dhokha diya hoga. isiliye to ye log mare jate hain. ”
“main is shahr se bahar ja raha hoon. ” nik ne kaha.
“haan,” jaarj bola, “aisa hi karna achchha hai. ”
“main uske bare mein bahut der tak nahin soch sakta. ” nik bola.
“koi janta ho ki wo marne vala hai, kuch log use marne aane vale hain aur ye jante hue bhi wo apne kamre mein paDa paDa maut ki pratiksha kar raha ho, ye bahut marak sthiti hai, bardasht ke bahar!”
“khair!” jaarj bola, “sochne se kya hoga?”
henri ke Dhabe ka darvaza khula aur adami andar aaye. ve counter par ja baithe.
“mujhe nahin malum,” unmen se ek ne kaha, “tum kya khana chahte ho l?”
“mujhe nahin malum,” l ne kaha, “main nahin janta ki main kya khana chahta hoon. ”
bahar andhera chha raha tha. khiDki ke bahar se saDak ki roshni bhitar aa rahi thi. counter par baithe donon adami minu ko dekhne lage. counter ki dusri taraf se nik eDamj unko dekh raha tha. jab ve andar aaye the, tab wo jaarj se baten kar raha tha.
“mujhe tanduri pork, seb ki chatni aur aalu ka bharta chahiye. ” pahle adami ne kaha.
“vah abhi taiyar nahin hai…. ”
“phir tumne use fehrist mein kyon Daal rakha hai…?”
“vah raat ke khane ke liye hai…,” jaarj ne samjhaya, “apko shaam chhah baje ke baad wo mil sakta hai. ” jaarj ne counter ke pichhe divar par lagi ghaDi ko dekha.
“paanch baje hain. . . . ”
“lekin ghaDi to paanch bajkar bees minat bata rahi hai…. ” dusre adami ne kaha.
“vah bees minat tez hai. ”
“goli maro ghaDi ko, ghaDi jaye jahannum men…” pahle adami ne kaha, “tumhare paas khane ko kya hai…?”
“main aapko kisi bhi tarah ka sandwich de sakta hoon,” jaarj ne kaha, “aap anDe aur haim, anDe aur bekan, kaleji aur bekan ya stek kha sakte hain…. ”
“mujhe chikan kraket, hari matar, malai aur aalu ka bharta de do. ”
“vah raat ka khana hai, abhi nahin mil sakta…. ”
“jo bhi hum chahen, vahi raat ka khana hai, anya! yahi hai tumhara kaam karne ka tariqa!”
“main haim aur anDe lunga…. ” l ne kaha. wo unchi topi aur kala overcoat pahne hue tha, jismen upar chhati tak button lage hue the. uska chehra chhota aur safed tha aur uske honth bhinche hue the. wo reshmi maphlar aur dastane pahne tha.
“mujhe bekan aur anDe de do. ” dusre adami ne kaha. wo qad mein l ke barabar hi raha hoga. unke chehron mein farq tha, lekin ve juDvan bhaiyon ki tarah kapDe pahne hue the. donon ke coat kuch zyada hi kase the. ve aage jhukkar baithe the, kohaniyon ko counter par teke hue.
“pine ke liye kuch hai…?” l ne puchha.
“silver biyar, biva aur jinjar l hai. ” jaarj bola.
“mera matlab tumhare paas pine ke liye kuch hai?”
“vahi, jo mainne kaha…”
“yah garm shahr hai,” dusre ne kaha, “ise kya kahte hain?”
“samit. ”
“kya kabhi naam suna hai?” l ne apne dost se puchha.
“nahin. ” dost ne kaha.
“tum log raat ko yahan kya karte ho?” l ne puchha.
“to tum sochte ho ki ye theek hai?” l ne jaarj se puchha.
“bilkul…. ”
“lekin tum tez nahin ho…” dusre chhote se adami ne kaha, “hai kya l…?”
“yah bevaquf hai…. ” l ne kaha. wo nik ki or mukhatib hua, “tumhara naam kya hai?”
“eDamj!”
“ek aur tez laDka!” l ne kaha, “yah bhi kafi aqlmand dikhai deta hai. hai na maiks?”
“yah shahr hi aqlmand laDkon se bhara paDa hai. ” maiks bola.
jaarj ne donon pyale, ek haim aur anDe ka aur dusra bekan aur anDe ka mez par rakh diye. usne alag se do plate tale hue aalu bhi rakh diye aur rasoi ka darvaza band kar diya.
“inmen se tumhara kaun sa hai?” maiks ne l se puchha.
“tumhen yaad nahin?”
“haim aur anDe. ”
“main bhi kafi tez laDka hoon. ” maiks ne kaha. usne aage jhukkar haim aur anDe le liye. donon ne dastane pahankar hi khaya. jaarj unko khate hue dekhta raha.
“tum idhar kya dekh rahe ho?” maiks ne jaarj ki or dekhte hue kaha.
kuch nahin. ”
“tumne bilkul dekha. tum meri or hi dekh rahe the. ”
“shayad wo yoon hi maज़aक़ kar raha tha maiks…. ” ek bola.
jaarj hansa.
“tumhen hansne ki koi zarurat nahin hai,” maiks ne usse kaha, “tumhen zara bhi hansne ki zarurat nahin hai, samjhe. ”
“achchha. ” jaarj ne kaha.
“to wo soch raha hai ki ye sab theek hai…,” maiks ek ki or muDkar bola, “vah sochta hai ki ye sab bilkul theek hai, ye bhi khoob baat hui. ”
“filausphar dikhai deta hai…kuchh na kuch sochta hi rahta hai…. ” l ne kaha. ve khane mein lage rahe.
“achchha, us tez laDke ka kya naam hai?” l ne maiks se puchha.
“e laDke!” maiks ne nik se kaha, “tum apne dost ko lekar counter ke dusri taraf chale jao. ”
“kya irada hai?” nik ne puchha.
“koi irada nahin hai. ”
“laDke, tum pichhe chale jao to achchha hai. ” l ne kaha. nik uthkar counter ke dusri taraf chala gaya.
“kya karne vale ho?” jaarj ne puchha.
“tumse kya matlab?” l ne kaha, “vahan rasoi mein kaun hai…?”
“ek habshi. ”
“habshi se tumhara kya matlab?”
“vah habshi khana pakata hai. ”
“usse kaho, andar aaye. ”
“kya baat hai?”
“usse kaho, andar aaye. ”
“kya tumhein pata hai ki tum log kahan ho?”
“ham log achchhi tarah jante hain ki hum kahan hain,” maiks naam ke adami ne kaha, “kya hum log tumhein bevaquf dikhai dete hain?”
“tum bevaqufi ki baten karte ho…. ” l ne usse kaha.
“akhir tum isse itni bahs kyon kar rahe ho?”
suno,” usne jaarj se kaha, “us habshi se kaho yahan aaye. ”
“tum uska kya karoge?”
“kuchh nahin. zara dimagh se kaam lo aqlmand laDke, habshi ka hum kya karenge?”
“kya hai?” usne puchha. mez par baithe donon adamiyon ne use dekha.
“achchha habshi, tum vahin khaDe raho. ” l ne kaha. habshi saim apni epran pahne khaDa khaDa counter par baithe donon logon ko dekhta raha. “achchha sahab!” wo bola. l apne stool par se utra.
“habshi aur us laDke ke saath main rasoi mein ja raha hoon,” rasoi mein vapas jakar wo bola, “habshi, tum bhi jao uske saath. ”
chhota adami nik aur khansaman saim ke pichhe rasoi mein chale gaye. darvaza unke pichhe band ho gaya. maiks jaarj ke samne counter par baitha raha. wo jaarj ki or nahin, balki us aine ki or dekh raha tha, jo counter ke pichhe laga hua tha.
“are l!” maiks ne pukara, “yah laDka janna chahta hai ki ye sab kya ho raha hai. ”
“to tum batate kyon nahin?” l rasoi se bola.
“tum kya sochte ho, ye kya ho raha hai?”
“mujhe nahin malum. ”
“par kya sochte ho?” maiks bolte hue pure vaक़t shishe mein dekhta raha tha.
“kah nahin sakta!”
“are l! ye kahta hai ki wo kah nahin sakta ki kya ho raha hai. ”
“main sab sun raha hoon. ” l ne rasoi mein se kaha. usne ek botal se us chhoti si khiDki ko khol Dala tha, jismen se bartan rasoi mein laye jate the.
“suno laDke!” usne jaarj se kaha, “zara aur door jakar khaDe ho jao. tum zara bayen hatkar khaDe ho jao maiks!” wo kisi fotographar ki mudra mein baat kar raha tha, mano group photo khinchne ki taiyari kar raha ho.
“mujhse bolo laDke!” maiks ne kaha, “tum kya sochte ho ki yahan kya hone vala hai?”
jaarj kuch nahin bola.
“main tumhein batata hoon,” maiks bola, “ham log ek sviDi ko marne ja rahe hain. kya tum enDarsan naam ke kisi sviDi ko jante ho?”
“haan”
“vah roz raat ko yahan khana khane aata hai, hai n…?”
“kabhi kabhi aata hai. ”
“vah yahan chhah baje aata hai, hai n?”
“haan, yadi wo aata hai. ”
“vah to hum jante hain,” maiks bola, “kuchh dusri baten karo. kya kabhi cinema dekhne jate ho?”
“tum log buDhe enDarsan ko kyon marne ja rahe ho? usne tumhara kya bigaDa hai?”
“hamara kuch bigaDne ka use mauqa hi nahin mila. usne hamein dekha tak nahin. ”
“aur wo hamein sirf pahli baar aur akhiri baar dekhega. ” l ne rasoi se kaha “tab tum log use kyon marne ja rahe ho?” jaarj ne puchha.
“ham log use ek dost ke liye maar rahe hain. . . ek dost par ehsaan karne ke liye. ”
“chup raho!” l rasoi se bola, “tum bahut zyada baat karte ho. ”
“par mujhe is laDke ka man bahlana hai, kyon laDke?”
“tum had se zyada baten karte ho. ” l bola, “habshi aur ye laDka to apne aap hi khush hain. ” jaarj ne ghaDi ki or dekha.
“koi agar aaye to usse kah dena ki khansaman chhutti par hai aur agar wo zyada israar karne lage to kah dena ki tumhin khana paka doge. samjhe laDke. ”
“kah nahin sakte. . . ” maiks ne kaha, “yah to ek aisi baat hai, jo pahle se nahin kahi ja sakti. ” jaarj ne ghaDi ki or dekha. sava chhah baj rahe the. saDak ki or ka darvaza khula, koi motor chalane vala andar aaya.
“hailo jaarj,” wo bola, “mujhe khana milega. . . ?”
“saim kahin gaya hai,” jaarj ne kaha, “vah qarib aadhe ghante mein lautega. ”
“tab to mujhe kahin aur jana chahiye. ” motor chalane vala adami bola. jaarj ne ghaDi dekha. chhah bajkar bees minat ho rahe the.
chhah bajkar pachpan minat par jaarj ne kaha, “enDarsan ab nahin ayega. . . . ”
do log aur aa chuke the. ek baar jaarj ne rasoi mein jakar haim aur anDe ka sandwich bana diya tha, jo wo adami apne saath le jana chahta tha. rasoi ke andar usne l ko dekha. uski topi khisak gai thi. wo ek stool par baitha hua tha. coat ki baghal se ek purani banduk ki nonk dikhai de rahi thi. nik aur khansaman ek dusre ki taraf peeth kiye hue ek kone mein bandhe hue the. donon ke munh mein kapDa thunsa hua tha.
jaarj ne sandwich taiyar kiya, use kaghaz mein lapeta, jhole mein rakha aur bahar le aaya. adami uske paise dekar chala gaya.
“yah laDka to sab kuch kar leta hai. . . ” maiks bola.
“khana bhi paka leta hai. . . ”
“tum kisi laDke ki achchhi si bivi banoge laDke!”
“haan!” jaarj bola, “lekin tumhara buDDha enDarsan ab nahin aane vala. ”
“das minat aur dete hain use. . . ” maiks ne kaha. wo shishe aur ghaDi ki or dekhta raha. ghaDi ki sui saat baja rahi thi, phir saat bajkar paanch minat.
“chalo, paanch minat aur ruk jate hain. . . ” l ne kitchen se kaha.
usi paanch minat mein ek adami aaya. jaarj ne use bataya ki khansaman bimar hai.
“tum akhir ek naya rasoiya kyon nahin rakhte?” wo bola, “tumhen ye Dhaba chalana hai ya nahin?” kahkar wo bahar chala gaya.
“chalo l. . . ” maiks ne kaha.
“in donon laDkon aur us habshi ka kya karen?”
“ye aise hi theek hain. ”
“kya tum aisa sochte ho?”
“aur kya, hamara kaam to khatm ho gaya. ”
“mujhe is tarah inhen chhoDkar jana achchha nahin lag raha hai. ”
l ne kaha, “yah phoohD aur beDhanga kaam hai. tum bahut zyada bolte hai. . . . ”
‘are jayen jahannum men!” maiks bola, “ham logon ko apna man bahlaye rakhna hai ki nahin?”
“vaise bhi tum zyada baten karte ho. ” l bola. wo rasoi se bahar aa gaya. uske kase hue coat ke niche se banduk ka ubhaar dikhai paD raha tha. dastane se Dhake hue haath se usne apna coat khinchkar sidha kiya.
donon darvaze ke bahar chale gaye. jaarj unko khiDki se jate hue dekhta raha. ve saDak par jalti batti ke niche se hote hue saDak paar kar gaye. kase hue overcoat aur unchi topi mein ve kisi nautangi mein kaam karne vale jaise dikhai de rahe the. jaarj rasoi ka darvaza kholkar andar gaya. usne nik aur khansaman ki rassiyan khol deen.
nik khaDa ho gaya. munh mein kapDa thunse jane ka use pahle kabhi anubhav nahin tha.
“batao” wo bola, “unki ye majal!” wo baat ko yoon hi uDa dena chahta tha.
“ve log buDhe enDarsan ko marana chaah rahe the. ” jaarj ne kaha.
“ve log us par goli chalane vale the, jab wo khana khane aata. ”
“buDha enDarsan. . . ?”
“haan. . . !”
khansame ne apne munh ke koron ko anguthe se khujlaya.
“ve chale gaye. . . ?” usne puchha. ”
“haan,” jaarj bola, “ve ja chuke hain. ”
“mujhe ye sab achchha nahin lag raha hai. ” khansaman bola.
“zara bhi achchha nahin lag raha hai. ”
“suno!” jaarj nik se bola, “tumhen enDarsan se sab kuch bata dena chahiye. ”
“achchhi baat hai. ”
“tumko ismen apni taang hargiz nahin phansani chahiye,” saim bola, “aisi baton se door hi raho to achchha hai. ”
“tum nahin jana chahte to na jao. . . ” jaarj bola.
“aisi baton mein bekar ki daख़l dene se tumhein kuch hasil nahin hoga,” khansaman bola, “aisi baton se alag hi raho. ”
“main usse jakar mil lunga. ” nik ne jaarj se kaha.
wo kahan rahta hai?”
khansaman alag ho gaya. “tum log hi jano, tum kya karna chahte ho. ” wo bola.
“enDarsan harsh ke hotel mein rahta hai. ” jaarj ne nik se kaha.
“to main vahin chala jata hoon. ”
bahar roshni ek peD ki sukhi Daliyon mein se chamak rahi thi. nik saDak par motor ke pahiyon ke nishan ke saath saath chalta raha. phir wo agli batti ke paas ek len mein muD gaya. saDak par teen gharon ke baad harsh ka hotel tha. siDhiyan chaDhkar nik ne ghanti bajai. ek mahila darvaze par i.
“buDha enDarsan kya yahan hai?”
“tum usse milna chahte ho?”
“haan, agar wo hai to. ”
nik aurat ke pichhe pichhe siDhiyon par ho liya. ek lamba koriDaur paar karke aurat ne darvaza khatkhataya.
nik darvaza kholkar kamre ke andar gaya. buDha enDarsan palang par leta hua tha. wo kisi zamane mein kafi taqatvar pahlavan hua karta tha. uski lanbai palang se zyada thi. wo apne sir ke niche do takiye lagaye hue tha. usne nik ki or nahin dekha.
“kya hua?” usne puchha.
“main hainri ke Dhabe mein tha,” nik ne kaha, “vahan do logon ne aakar mujhe aur khansaman ko rassi se baandh diya. ve kah rahe the ki tumhein marne vale hain. ” ye kahte hue uski baat hasyaspad lag rahi thi. buDha enDarsan kuch nahin bola. “un logon ne hamein kitchen mein band kar diya. . . ” nik bolta gaya, “ve tumhein marne ja rahe the. jab tum raat ka khana khane vahan jate. ”
enDarsan kuch nahin bola. wo ghaDi ki or dekhta raha.
“jaarj ne socha ki mujhe aakar tumhein sthiti se avgat kara dena chahiye. main unke bare mein tumko batata hoon. ”
“main nahin janna chahta ki ve kaise the,” buDha enDarsan divar ki or dekhte hue bola, “tumne aakar is sambandh mein batane ka kasht kiya, iske liye dhanyavad. ”
“vah to theek hai. ” nik ne palang par lete lambe chauDe adami ko dekha.
“tum kya nahin chahte ki main police ke paas jaun?”
“nahin, mainne shuru se hi ghalat qadam uthaya. . . ” wo barabar ek hi tarah dhimi avaz mein bolta raha, “ab kuch karne ke liye nahin hai? kuch der baad main bahar nikalne ke bare mein nishchay karunga. ”
“mere khayal se main vapas jakar jaarj se mil loon. . . ” nik bola.
“achchhi baat hai. ” enDarsan ne kaha. usne nik ki or nahin dekha, “yahan aane ke liye shukriya. ”
nik bahar chala gaya. darvaza band karte vaक़t usne enDarsan ko palang par paDe divar ki or ektak takte dekha.
“vah sara din kamre mein raha hai, makan malkin ne niche aakar kaha,” shayad uski tabiyat theek nahin hai. mainne usse kaha, “enDarsan sahab, itne khubsurat patjhaD ke din to tumhein avashy bahar jana chahiye. . . par uski khvahish nahin thi. ”
“vah bahar jana nahin chahta?”
“mujhe afsos hai ki uski tabiyat achchhi nahin hai,” aurat boli, “vah bahut achchha adami hai. tumhein malum hai, wo kabhi pahlavan hua karta tha. ”
“malum hai. ”
“vah bahut saumy hai. ” aurat ne kaha.
“achchha mrs harsh, ab main chalta hoon. ” nik bola.
“main mrs harsh nahin hoon,” aurat boli, “vah to is jagah ki malkin hai. main yahan ki dekhbhal karti hoon. main mrs bel hoon. ”
“achchha, chalun mrs bel!” nik ne kaha.
“achchha!” aurat boli.
nik andheri saDak par chala, batti ke niche us kone tak. phir motor ke nishan ke saath saath henri ke Dhabe tak. jaarj andar tha, counter ke pichhe.
nik ki avaz sunkar khansaman ne rasoi ka darvaza khola, “main to ye sab sununga bhi nahin. ” ye kahkar usne phir darvaza band kar liya.
“tumne use sab kuch bataya?” jaarj ne puchha.
“haan, bataya, par wo pahle se hi sab kuch janta tha. ”
“ab wo kya karne ja raha hai?”
“kuchh nahin. ”
“ve usko maar Dalenge!”
“haan, aisa hi lagta hai. ”
“vah nishchit roop se shikago mein is lafDe mein phansa hoga. ”
“yahi hua hoga. ” nik ne kaha.
“kafi pareshani ki baat hai. ”
bahut buri baat hai. ” nik bola.
ve thoDi der ke liye chup rahe. jaarj ne tauliye se counter ko ponchh Dala.
“n jane kya kiya hoga usne?” nik bola.
“kisi ko dhokha diya hoga. isiliye to ye log mare jate hain. ”
“main is shahr se bahar ja raha hoon. ” nik ne kaha.
“haan,” jaarj bola, “aisa hi karna achchha hai. ”
“main uske bare mein bahut der tak nahin soch sakta. ” nik bola.
“koi janta ho ki wo marne vala hai, kuch log use marne aane vale hain aur ye jante hue bhi wo apne kamre mein paDa paDa maut ki pratiksha kar raha ho, ye bahut marak sthiti hai, bardasht ke bahar!”
“khair!” jaarj bola, “sochne se kya hoga?”
स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 178-189)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : अर्नेस्ट मिलर हेमिंग्वे
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।