जब मैंने अस्पताल में प्रवेश किया, मैंने वहाँ एक गोरी और सुनहरे बालों वाली नर्स को देखा, जिसे रोगी और स्टाफ़ सभी प्यार करते थे। जैसे ही मरीज़ उसके पदचाप सुनते, अपने बिछौने से उठ जाते और अपने हाथ उस छोटे बच्चे की तरह फैलाते, जो अपनी माँ की तरफ़ हाथ फैलाता है और कहते, नर्स, नर्स, मेरे पास आओ! यहाँ तक कि सबसे चिड़चिड़े लोग भी, जिन्हें दुनिया की हर चीज़ से नफ़रत होती है, उसके चेहरे की मुस्कान और उसके मृदुल स्वभाव के आगे झुक जाते और वह जो कुछ कहती, करने को तैयार रहते। इस मुस्कान के अतिरिक्त थीं उसकी नीली आँखें। वह जिस किसी की तरफ़ देखती, वह अपने को दुनिया का महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझने लगता। एक बार मैंने अपने आपसे पूछा, उसे यह ताक़त कहाँ से मिली, क्योंकि जिस क्षण उसकी नज़रें मुझ पर ठहरीं, मैं भी दूसरे लोगों की तरह हो गया। निस्संदेह उसके दिल में मेरे लिए कोई ख़ास इरादे न थे। मेरे लिए भी नहीं और दूसरों के लिए भी नहीं।
उसकी साथी नर्सें भी उसे ख़ूब चाहती थीं। उसकी मेट्रन चालीस वर्ष की प्रौढ़ महिला थी, एकदम फीकी और सिरके की तरह तीखी, जिसे काली कॉफ़ी, नमकीन केक और अपने छोटे कुत्ते को छोड़कर डॉक्टर, रोगी, नर्स सबसे चिढ़ थी। वह भी इस नर्स को ख़ूब चाहती थी। कहने की ज़रूरत नहीं कि मेरे साथी डॉक्टर, जो भी इस नर्स के साथ काम करते, अपने भाग्य को सराहते थे। मैं भी इस लड़की में रुचि लेने लगा।
वह भी मुझमें रुचि लेने लगी। बात इतनी बढ़ी कि मैंने उससे शादी कर ली। और वह इस प्रकार हुआ :
एक दुपहर को जब मैं डाइनिंग हॉल से बाहर निकला तो सीधे डायना के कमरे की ओर बढ़ गया। और पूछा, नर्स, क्या तुम व्यस्त हो?
नहीं, मैं फ़ुरसत में हूँ। आज मेरा ऑफ़ है।
तो आज छुट्टी के दिन तुम क्या करोगी?
मैंने इस प्रश्न पर विचार नहीं किया है, डॉक्टर।
क्या मैं तुम्हें कुछ सलाह दूँ?
हाँ, डॉक्टर, मेहरबानी होगी।
पर मैं तुम्हें तभी सलाह दूँगा, जब मुझे कुछ मेहनताना मिलेगा। उसने मेरी तरफ़ देखा और हँसने लगी।
मैंने कहा, चलो, हम लोग ऑपेरा चलें। अगर जल्दी निकलो, तो कॉफ़ी हाउस होते हुए चलें।
मंज़ूर? उसने हँसते हुए सिर हिला कर सहमति दे दी।
मैंने कहा, “अच्छा, मैं अपना काम निपटाकर जल्दी ही आऊँगा। फिर वह अपने कमरे में चली गई और मैं अपनी ड्यूटी पर।
कुछ समय बाद जब मैं उसे लेने पहुँचा, तो उसने कपड़े बदल लिए थे। एकाएक वह मुझे एक नया व्यक्तित्व लगी और इस परिवर्तन के साथ उसका आकर्षण अब दुगना हो गया था। मैं उसके कमरे में गया और मैंने उससे टेबल पर सजे फूलों के नाम पूछे। इस डर से कि कहीं कोई गंभीर हालत का रोगी न आ जाए और मुझे बुलावा न आ जाए, मैं उठा और बोला, “चलो, हम लोग जल्दी चलें।
हम बस स्टॉप की तरफ़ बढ़े। पहली बस, डायना तो चढ़ गई किंतु मुझे जगह नहीं मिली, तो वह भी नीचे उतर गई और हम दूसरी बस का इंतज़ार करने लगे। तब मैंने अपने आपसे कहा—कुछ लोग कहते हैं, बस की और लड़की की परवाह मत करो, क्योंकि वे बहुत मिलती हैं, पर जो लोग ऐसा सोचते हैं, वे मूर्ख हैं, जहाँ तक लड़की का प्रश्न है, क्या उन्हें डायना के समान लड़की मिल सकती है?
आख़िर एक बस आई और हमें जगह मिल गई। यह बस एक पार्क के सामने जाकर रुकी। हमने सड़क पार की। एकाएक मैंने अपनी बाँहें फैला दीं और कहा, “चलो, हम अस्पताल की और दुनिया की बातें भूल जाएँ और कुछ मधुर बातें करें। बाग़ में बच्चे खेल रहे थे। हमें देखकर वे आपस में फुसफुस करने लगे। मैंने डायना से पूछा, “जानती हो, ये बच्चे किसके बारे में बातें कर रहे हैं? ये हमारे बारे में बातें कर रहे हैं।
'शायद। डायना बोली।
“तुम्हें मालूम है, ये क्या बोल रहे हैं? ये बच्चे बातें कर रहे हैं कि तुम और मैं दूल्हा-दुल्हन हैं।
उसका चेहरा लाल हो गया। वह बोली, “शायद ये यही बातें कर रहे हैं।
तो तुम्हारा मतलब है कि तुम्हें इस बात पर आपत्ति नहीं है?
किस बात पर?
“यही जो बच्चे बोल रहे हैं?
मैं क्यों परवाह करूँ?
मैंने साहस बटोरकर कहा, “अगर बच्चे जो कुछ कह रहे हैं, वह सच हो तो? मेरा मतलब है, अगर हम शादी कर लें तो? वह हँसी और मेरी तरफ़ देखने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, दूसरा हाथ भी दो। मैंने उसके दोनों हाथ चूमे और उसके मुख की ओर देखने लगा। उसका मुख और लाल हो गया। बोला, कहावत है, बच्चे और मूर्ख सच बोलते हैं।
हमारी सगाई के बाद का समय मेरे लिए सबसे अच्छा था। अब मैं समझने लगा, कवि क्यों प्रेम-काव्य लिखा करते हैं। फिर भी न जाने क्यों उसकी आँखों में एक काली छाया थी, जो कभी-कभी उस बादल की तरह गहरी हो जाती, जो फूटना ही चाहता हो। एक बार मैंने उससे इस उदासी का कारण पूछा। उसने बिना उत्तर दिए अपनी आँखें मुझ पर टिका दीं। मैंने फिर से अपना प्रश्न दुहराया। उसने मेरे गले में बाँहें डालते हुए कहा, तुम नहीं जानते, तुम मेरे लिए कितने क़ीमती हो और मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ। और एक मुस्कराहट उसके उदासीन होंठों पर फैल गई।
मैंने अपने आपसे पूछा—अगर वह मुझसे प्यार करती है, तो उसकी उदासीनता का कारण क्या है? शायद उसका परिवार ग़रीब हो। लेकिन वह तो कहती थी कि वे लोग रईस हैं। शायद उसने किसी और से शादी का वादा किया होगा। पर वह तो कहती थी, ऐसी कोई बात नहीं है। मैंने बार-बार पूछना चाहा, पर वह मुझे और प्यार जताती गई और ख़ामोश रही, लेकिन उसके प्यार में उदासीनता का स्पर्श था, जिसने मेरी ख़ुशी में विष की एक बूँद घोल दी थी। मैं बार-बार सवाल पूछकर उसे तंग करता रहा, उसने भी उत्तर देने का वचन दिया, पर हर बार बहाने बनाने में दृढ़ रही। फिर एक बार उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, डार्लिंग, हम लोग ख़ुश रहें और ऐसा कुछ न करें, जिससे हमारी ख़ुशियाँ ख़त्म हो जाएँ। और उसने ऐसी आह भरी, जिसे सुनकर मेरा दिल टूट गया। मैंने इस आह का राज़ पूछा, तो वह बोली, “डार्लिंग, मेहरबानी करके और कुछ न पूछो। मेरा दिमाग़ ठिकाने नहीं था। मैं अब भी उस मौक़े की राह देख रहा था, जब वह मुझे अपने दिल की बात कहती।
एक दुपहर को मैं उसके कमरे में गया। उस समय वह फ़ुरसत में थी और अपने कमरे में बैठी, नई ड्रेस सी रही थी। मैंने कपड़े के किनारे को पकड़ा और अपनी आँखें उसकी ओर उठाईं। उसने सीधा मेरी आँखों की तरफ़ देखा और कहा, तुम्हें मालूम है, मेरी दोस्ती किसी और के साथ थी। एक तरह की ठंडक मेरे शरीर में दौड़ गई और मैं अंदर से कमज़ोर हो गया। मैं चुपचाप बैठ गया। फिर भी मैं उसके साथ पहले जैसा ही व्यवहार करता रहा। सच पूछो तो उस क्षण भी वह मेरी नज़रों से गिरी नहीं और सदा की तरह मुझे प्रिय लगी। जब वह भी यह बात समझ गई, तो फिर एक मुस्कान उसके होंठों पर आई। पर आँखों में अब भी एक तरह का परदा था और वह उस इनसान की तरह थी, जो एक अँधेरे से निकलकर दूसरे अँधेरे में जा रहा हो।
मैंने उससे पूछा, वह कौन था, जो बिना शादी किए तुम्हें छोड़कर चला गया? डायना, तुम्हारे प्रति मेरे दिल में कोई बुरा ख़याल नहीं है, सिर्फ़ कुतूहल ही मुझे पूछने पर विवश कर रहा है। ज़ोर देने पर उसने मुझे उसका नाम बताया। मैंने कहा, डायना, मुझे आश्चर्य होता है कि दफ़्तर के एक मामूली क्लर्क ने तुम्हारे पाँव इस तरह डगमगा दिए और फिर तुम्हें छोड़कर चला गया। इससे पता चलता है कि वह अच्छा आदमी नहीं था। उसने अपनी आँखें नीचे कर लीं और ख़ामोश हो गई। उस दिन के बाद से मैंने उसे कभी अतीत की याद नहीं दिलाई। मैंने भी उस बात को दिमाग़ से निकाल देने की कोशिश की और इस प्रकार हमारी शादी हो गई।
शादी के बाद हम लोग अपने 'हनीमून' के लिए एक गाँव में गए। निस्संदेह रास्ते में झरने थे, पहाड़ थे, घाटियाँ थीं। उन्हें तो मैं भूल गया, लेकिन एक बात याद रही, जो हमारी पहली रात को हुई। जिस होटल में हम लोगों ने रिज़र्वेशन किया था, वह बग़ीचे के मध्य में था और उसके आजू-बाजू पहाड़ और झरने थे। जब हम अपने कमरे में पहुँचे, तो मेरी पत्नी की नज़रें गुलाब के उन लाल फूलों पर टिक गईं, जो वहाँ सजाए गए थे। मैंने हँसते हुए कहा, कौन है वह भलामानस, जिसने हमें इतने सुंदर फूल भेजे हैं?
कौन है वह?” मेरी पत्नी ने बड़े आश्चर्य से कहा।
मैंने कहा, ‘‘फिर भी मैं इन फूलों को बाजू में रख देता हूँ, क्योंकि इनकी ख़ुशबू हमें सोने न देगी।
मैंने उसके गालों को चूमते हुए कहा, डायना, अब हम लोग अकेले हैं। वह खड़ी हुई और बड़ी सावधानी के साथ अपने कपड़े उतारे और अपने बालों को सँवारते-सँवारते वह बैठ गई और अपने सिर को टेबल पर झुका लिया। मैंने देखा कि वह एक पैंफ्लेट पढ़ रही थी, जिस पर लिखा था, 'हर घड़ी अपने स्वामी का इंतज़ार करो कि वह आए।' मैंने उसकी ठोड़ी अपने हाथ में लेकर कहा, तुम्हें इंतज़ार नहीं करना है, तुम्हारा स्वामी पहले ही आ चुका है। और मैंने उसका चुंबन लिया। उसने बड़ी उदासी से अपनी पलकें उठाईं और पैंफ्लेट बाजू में रख दिया। मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और लैंप की बत्ती धीमी कर दी। उस क्षण फूलों ने अपनी सारी सुगंध दे दी और एक तरह की मधुर स्थिरता ने मुझे चारों ओर से घेर लिया।
एकाएक मुझे अपने बाजू वाले कमरे से पदचाप सुनाई दी। मैंने उस आवाज़ को अपने दिमाग़ से निकाल देने की कोशिश की। मैंने अपनी पत्नी को अपनी ओर खींचा और अत्यंत प्रेम के साथ उसका आलिंगन किया, क्योंकि मैं जानता था कि वह संपूर्ण मेरी थी। अब वे पदचाप समान गति से आगे-पीछे चल रही थी। उन पैरों की आवाज़ ने मुझे भ्रम में डाल दिया। अब एक अजीब-सा ख़याल मेरे दिमाग़ में आया कि यह वही क्लर्क है, जिसे मेरी पत्नी शादी के पहले जानती थी। इस ख़याल से मेरा दिमाग़ घृणा से भर गया। इस भय से कि कहीं मैं गाली न दे दूँ, मैंने अपने होंठ चबा लिए।
मेरी पत्नी ने यह देख लिया। बोली, डार्लिंग, क्या हुआ? मुझे लगता है तुम किसी बात से विचलित हो गए हो।
बार-बार पूछने पर मैंने उसे अपने मन की बात बता दी। वह सिसकने लगी।
मैंने पूछा, “तुम क्यों रो रही हो?
उसने अपने आँसू पीते हुए जवाब दिया, सारे दरवाज़े और खिड़कियाँ खोल दो और दुनिया से कह दो कि मैं कितनी बुरी हूँ! मैं उसे शांत करने की कोशिश करने लगा।
उस दिन के बाद से वह व्यक्ति मेरे दिमाग़ से कभी न निकला। मैं उससे बात करता तो उसका नाम ज़रूर लेता। उन लाल गुलाब के फूलों की याद आती। अब मैं समझ गया था कि मेरी पत्नी ने उस दिन उन फूलों को क्यों नहीं सूँघा था। जब मैं अपनी पत्नी के साथ ख़ुश होने की कोशिश करता, मुझे उसी व्यक्ति की याद आती, जिसने मेरी ख़ुशियाँ छीन ली थीं और मैं निराश हो जाता। मैं जानना चाहता था कि वह किस प्रकार का व्यक्ति था, जिसने एक अच्छे घर की लड़की को आकर्षित किया था। मैं उसकी किताबों में ढूँढ़ने लगा, कहीं उसका कोई पत्र मिल जाए, किंतु न मिला। तब मैंने प्रेम-कहानियों को पढ़ना शुरू कर दिया, जिसमें कि मैं नारी और उसके प्रेमियों के स्वभाव को समझ सकूँ, पर उन प्रेम-उपन्यासों ने मुझे थका दिया।
विवाह के दूसरे वर्ष भी कोई शांति न मिली। मन:स्ताप से वह बीमार पड़ गई। मैंने उसे दवाओं से ठीक किया। मैं उससे कहा करता, इन सब बीमारियों की जड़ वही आदमी है, जिसने तुम्हारी ज़िंदगी को बरबाद किया है। इस वक़्त वह दूसरी औरतों के साथ खेल रहा होगा, पर मेरे नसीब में एक बीमार औरत छोड़ दी है। अब उसने व्यवहार का नया ढंग अपनाया। अगर मैं उस व्यक्ति का नाम लेता, तो वह ध्यान ही न देती और चुप रहती। एक दिन जब शाम को हम चाय पीने बैठे, तो मैं एकाएक बोल उठा, ‘‘कुछ ऐसी बात है, जिसके बारे में मैं सोच रहा हूँ।
उसने अपना सिर हिलाया और बोली, हाँ, मैं भी कुछ सोच रही हूँ।
तो बताओ मेरे दिल में क्या छुपा है?
वह धीरे से बोली, तलाक़ और उसने उदास निगाहों से मेरी ओर देखा।
मैंने कहा, क्या तुम सहमत हो?
वह बोली, “मैं चाहूँ या न चाहूँ, मैं वह सब कुछ करने को तैयार हूँ, जिससे तुम्हें शांति मिले। भले ही वह तलाक़ क्यों न हो।
मैंने कसकर अपने दोनों हाथों को पकड़ा और ग़ुस्से में कहा, “चलो, फिर ठीक है!” संशय के कीड़े ने शादी की पहली ही रात हमारे प्यार के फूल को कुतरना शुरू कर दिया था, इसलिए अब हमारे पास तलाक़ के सिवाय कोई रास्ता न था।
डायना सच ही कहती थी कि नसीब में जो लिखा हो, वही होता है। इस प्रकार हम बाहरी रूप में तो एक-दूसरे से अलग हो गए, परंतु उसके होंठों की हँसी अब तक मेरे हृदय में क़ैद है। उसकी नीली आँखें अब तक मुझे दिखाई देती हैं। कभी-कभी मैं रात को उन रोगियों की तरह उठकर बैठ जाता हूँ और अपने दोनों हाथ फैलाकर कहता हूँ, नर्स, नर्स, मेरे पास आओ!
jab mainne aspatal mein pravesh kiya, mainne vahan ek gori aur sunahre balon vali nurse ko dekha, jise rogi aur staff sabhi pyaar karte the. jaise hi mariz uske padchap sunte, apne bichhaune se uth jate aur apne haath us chhote bachche ki tarah phailate, jo apni maan ki taraf haath phailata hai aur kahte, nurse, nurse, mere paas ao! yahan tak ki sabse chiDchiDe log bhi, jinhen duniya ki har cheez se nafar hoti hai, uske chehre ki muskan aur uske mridul svbhaav ke aage jhuk jate aur wo jo kuch kahti, karne ko taiyar rahte. is muskan ke atirikt theen uski nili ankhen. wo jis kisi ki taraf dekhti, wo apne ko duniya ka mahattvapurn vekti samajhne lagta. ek baar mainne apne aapse puchha, use ye taqat kahan se mili, kyonki jis kshan uski nazren mujh par thahrin, main bhi dusre logon ki tarah ho gaya. nissandeh uske dil mein mere liye koi khaas irade na the. mere liye bhi nahin aur dusron ke liye bhi nahin.
uski sathi nursen bhi use khoob chahti theen. uski metran chalis varsh ki prauढ़ mahila thi, ekdam phiki aur sirke ki tarah tikhi, jise kali coffe, namkin cake aur apne chhote kutte ko chhoDkar doctor, rogi, nurse sabse chiDh thi. wo bhi is nurse ko khoob chahti thi. kahne ki zarurat nahin ki mere sathi doctor, jo bhi is nurse ke saath kaam karte, apne bhagya ko sarahte the. main bhi is laDki mein ruchi lene laga.
wo bhi mujhmen ruchi lene lagi. baat itni baDhi ki mainne usse shadi kar li. aur wo is prakar hua ha
ek duphar ko jab main Daining hall se bahar nikla to sidhe Dayna ke kamre ki or baDh gaya. aur puchha, nurse, kya tum vyast ho?
nahin, main fursat mein hoon. aaj mera off hai.
to aaj chhutti ke din tum kya karogi?
mainne is parashn par vichar nahin kiya hai, doctor.
kya main tumhein kuch salah doon?
haan, doctor, mehrbani hogi.
par main tumhein tabhi salah dunga, jab mujhe kuch mehnatana milega. usne meri taraf dekha aur hansne lagi.
mainne kaha, chalo, hum log opera chalen. agar jaldi niklo, to coffe house hote hue chalen.
manzur? usne hanste hue sir hila kar sahamti de di.
mainne kaha, “achchha, main apna kaam niptakar jaldi hi aunga. phir wo apne kamre mein chali gai aur main apni duty par.
kuch samay baad jab main use lene pahuncha, to usne kapDe badal liye the. ekayek wo mujhe ek naya vyaktitv lagi aur is parivartan ke saath uska akarshan ab dugna ho gaya tha. main uske kamre mein gaya aur mainne usse table par saje phulon ke naam puchhe. is Dar se ki kahin koi gambhir haalat ka rogi na aa jaye aur mujhe bulava na aa jaye, main utha aur bola, “chalo, hum log jaldi chalen.
hum bus staup ki taraf baDhe. pahli bus, Dayna to chaDh gai kintu mujhe jagah nahin mili, to wo bhi niche utar gai aur hum tisri bus ka intzaar karne lage. tab mainne apne aapse kaha—kuchh log kahte hain, bus ki aur laDki ki parvah mat karo, kyonki ve bahut milti hain, par jo log aisa sochte hain, ve moorkh hain, jahan tak laDki ka parashn hai, kya unhen Dayna ke saman laDki mil sakti hai?
akhir ek bus i aur hamein jagah mil gai. ye bus ek park ke samne jakar ruki. hamne saDak paar ki. ekayek mainne apni banhen phaila deen aur kaha, “chalo, hum aspatal ki aur duniya ki baten bhool jayen aur kuch madhur baten karen. baag mein bachche khel rahe the. hamein dekhkar ve aapas mein phusphus karne lage. mainne Dayna se puchha, “janti ho, ye bachche kiske bare mein baten kar rahe hain? ye hamare bare mein baten kar rahe hain.
shayad. Dayna boli.
“tumhen malum hai, ye kya bol rahe hain? ye bachche baten kar rahe hain ki tum aur main dulha dulhan hain.
uska chehra laal ho gaya. wo boli, “shayad ye yahi baten kar rahe hain.
to tumhara matlab hai ki tumhein is baat par apatti nahin hai?
kis baat par?
“yahi jo bachche bol rahe hain?
main kyon parvah karun?
mainne sahas batorkar kaha, “agar bachche jo kuch kah rahe hain, wo sach ho to? mera matlab hai, agar hum shadi kar len to? wo hansi aur meri taraf dekhne lagi. mainne uska haath pakDa aur kaha, dusra haath bhi do. mainne uske donon haath chume aur uske mukh ki or dekhne laga. uska mukh aur laal ho gaya. bola, kahavat hai, bachche aur moorkh sach bolte hain.
hamari sagai ke baad ka samay mere liye sabse achchha tha. ab main samajhne laga, kavi kyon prem kaavy likha karte hain. phir bhi na jane kyon uski ankhon mein ek kali chhaya thi, jo kabhi kabhi us badal ki tarah gahri ho jati, jo phutna hi chahta ho. ek baar mainne usse is udasi ka karan puchha. usne bina uttar diye apni ankhen mujh par tika deen. mainne phir se apna parashn duhraya. usne mere gale mein banhen Dalte hue kaha, tum nahin jante, tum mere liye kitne qimti ho aur main tumhein kitna pyaar karti hoon. aur ek muskrahat uske udasin honthon par phail gai.
mainne apne aapse puchha—agar wo mujhse pyaar karti hai, to uski udasinata ka karan kya hai? shayad uska parivar gharib ho. lekin wo to kahti thi ki ve log rais hain. shayad usne kisi aur se shadi ka vada kiya hoga. par wo to kahti thi, aisi koi baat nahin hai. mainne baar baar puchhna chaha, par wo mujhe aur pyaar jatati gai aur khamosh rahi, lekin uske pyaar mein udasinata ka sparsh tha, jisne meri khushi mein vish ki ek boond ghol di thi. main baar baar saval puchhkar use tang karta raha, usne bhi uttar dene ka vachan diya, par har baar bahane banane mein driDh rahi. phir ek baar usne mera haath apne hathon mein lekar kaha, Darling, hum log khush rahen aur aisa kuch na karen, jisse hamari khushiyan khatm ho jayen. aur usne aisi aah bhari, jise sunkar mera dil toot gaya. mainne is aah ka raaj puchha, to wo boli, “Darling, mehrbani karke aur kuch na puchho. mera dimagh thikane nahin tha. main ab bhi us mauqe ki raah dekh raha tha, jab wo mujhe apne dil ki baat kahti.
ek duphar ko main uske kamre mein gaya. us samay wo fursat mein thi aur apne kamre mein baithi, nai dress si rahi thi. mainne kapDe ke kinare ko pakDa aur apni ankhen uski or uthain. usne sidha meri ankhon ki taraf dekha aur kaha, tumhen malum hai, meri dosti kisi aur ke saath thi. ek tarah ki thanDak mere sharir mein dauD gai aur main andar se kamzor ho gaya. main chupchap baith gaya. phir bhi main uske saath pahle jaisa hi vyvahar karta raha. sach puchho to us kshan bhi wo meri nazron se giri nahin aur sada ki tarah mujhe priy lagi. jab wo bhi ye baat samajh gai, to phir ek muskan uske honthon par i. par ankhon mein ab bhi ek tarah ka parda tha aur wo us insaan ki tarah thi, jo ek andhere se nikalkar dusre andhere mein ja raha ho.
mainne usse puchha, vah kaun tha, jo bina shadi kiye tumhein chhoDkar chala gaya? Dayna, tumhare prati mere dil mein koi bura khayal nahin hai, sirf kutuhal hi mujhe puchhne par vivash kar raha hai. zor dene par usne mujhe uska naam bataya. mainne kaha, Dayna, mujhe ashchary hota hai ki daftar ke ek mamuli clerk ne tumhare paanv is tarah Dagmaga diye aur phir tumhein chhoDkar chala gaya. isse pata chalta hai ki wo achchha adami nahin tha. usne apni ankhen niche kar leen aur khamosh ho gai. us din ke baad se mainne use kabhi atit ki yaad nahin dilai. mainne bhi us baat ko dimagh se nikal dene ki koshish ki aur is prakar hamari shadi ho gai.
shadi ke baad hum log apne honeymoon ke liye ek gaanv mein gaye. nissandeh raste mein jharne the, pahaD the, ghatiyan theen. unhen to main bhool gaya, lekin ek baat yaad rahi, jo hamari pahli raat ko hui. jis hotel mein hum logon ne reservation kiya tha, wo bagiche ke madhya mein tha aur uske aaju baju pahaD aur jharne the. jab hum apne kamre mein pahunche, to meri patni ki nazren gulab ke un laal phulon par tik gain, jo vahan sajaye gaye the. mainne hanste hue kaha, kaun hai wo bhalamanas, jisne hamein itne sundar phool bheje hain?
kaun hai vah?” meri patni ne baDe ashchary se kaha.
mainne kaha, ‘‘phir bhi main in phulon ko baju mein rakh deta hoon, kyonki inki khushbu hamein sone na degi.
mainne uske galon ko chumte hue kaha, Dayna, ab hum log akele hain. wo khaDi hui aur baDi savadhani ke saath apne kapDe utare aur apne balon ko sanvarte sanvarte wo baith gai aur apne sir ko table par jhuka liya. mainne dekha ki wo ek paimphlet paDh rahi thi, jis par likha tha, har ghaDi apne svami ka intzaar karo ki wo aaye. mainne uski thoDi apne haath mein lekar kaha, tumhen intzaar nahin karna hai, tumhara svami pahle hi aa chuka hai. aur mainne uska chumban liya. usne baDi udasi se apni palken uthain aur paimphlet baju mein rakh diya. mainne use apni banhon mein bhar liya aur lainp ki batti dhimi kar di. us kshan phulon ne apni sari sugandh de di aur ek tarah ki madhur sthirta ne mujhe charon or se gher liya.
ekayek mujhe apne baju vale kamre se padchap sunai di. mainne us avaz ko apne dimagh se nikal dene ki koshish ki. mainne apni patni ko apni or khincha aur atyant prem ke saath uska alingan kiya, kyonki main janta tha ki wo sampurn meri thi. ab ve padchap saman gati se aage pichhe chal rahi thi. un pairon ki avaz ne mujhe bhram mein Daal diya. ab ek ajib sa khayal mere dimagh mein aaya ki ye vahi clerk hai, jise meri patni shadi ke pahle janti thi. is khayal se mera dimagh ghrinaa se bhar gaya. is bhay se ki kahin main gali na de doon, mainne apne honth chaba liye.
meri patni ne ye dekh liya. boli, Darling, kya hua? mujhe lagta hai tum kisi baat se vichlit ho gaye ho.
baar baar puchhne par mainne use apne man ki baat bata di. wo sisakne lagi.
mainne puchha, “tum kyon ro rahi ho?
usne apne ansu pite hue javab diya, sare darvaze aur khiDkiyan khol do aur duniya se kah do ki main kitni buri hoon! main use shaant karne ki koshish karne laga.
us din ke baad se wo vekti mere dimagh se kabhi na nikla. main usse baat karta to uska naam zarur leta. un laal gulab ke phulon ki yaad aati. ab main samajh gaya tha ki meri patni ne us din un phulon ko kyon nahin sungha tha. jab main apni patni ke saath khush hone ki koshish karta, mujhe usi vekti ki yaad aati, jisne meri khushiyan chheen li theen aur main nirash ho jata. main janna chahta tha ki wo kis prakar ka vekti tha, jisne ek achchhe ghar ki laDki ko akarshait kiya tha. main uski kitabon mein DhunDhane laga, kahin uska koi patr mil jaye, kintu na mila. tab mainne prem kahaniyon ko paDhna shuru kar diya, jismen ki main nari aur uske paremiyon ke svbhaav ko samajh sakun, par un prem upanyason ne mujhe thaka diya.
vivah ke dusre varsh bhi koi shanti na mili. manhastap se wo bimar paD gai. mainne use davaon se theek kiya. main usse kaha karta, in sab bimariyon ki jaD vahi adami hai, jisne tumhari zindagi ko barbad kiya hai. is vaक़t wo dusri aurton ke saath khel raha hoga, par mere nasib mein ek bimar aurat chhoD di hai. ab usne vyvahar ka naya Dhang apnaya. agar main us vekti ka naam leta, to wo dhyaan hi na deti aur chup rahti. ek din jab shaam ko hum chaay pine baithe, to main ekayek bol utha, ‘‘kuchh aisi baat hai, jiske bare mein main soch raha hoon.
usne apna sir hilaya aur boli, haan, main bhi kuch soch rahi hoon.
to batao mere dil mein kya chhupa hai?
wo dhire se boli, talaq aur usne udaas nigahon se meri or dekha.
mainne kaha, kya tum sahmat ho?
wo boli, “main chahun ya na chahun, main wo sab kuch karne ko taiyar hoon, jisse tumhein shanti mile. bhale hi wo talaq kyon na ho.
mainne kaskar apne donon hathon ko pakDa aur ghusse mein kaha, “chalo, phir theek hai!” sanshay ke kiDe ne shadi ki pahli hi raat hamare pyaar ke phool ko kutarna shuru kar diya tha, isliye ab hamare paas talaq ke sivay koi rasta na tha.
Dayna sach hi kahti thi ki nasib mein jo likha ho, vahi hota hai. is prakar hum bahari roop mein to ek dusre se alag ho gaye, parantu uske honthon ki hansi ab tak mere hirdai mein qaid hai. uski nili ankhen ab tak mujhe dikhai deti hain. kabhi kabhi main raat ko un rogiyon ki tarah uthkar baith jata hoon aur apne donon haath phailakar kahta hoon, nurse, nurse, mere paas ao!
jab mainne aspatal mein pravesh kiya, mainne vahan ek gori aur sunahre balon vali nurse ko dekha, jise rogi aur staff sabhi pyaar karte the. jaise hi mariz uske padchap sunte, apne bichhaune se uth jate aur apne haath us chhote bachche ki tarah phailate, jo apni maan ki taraf haath phailata hai aur kahte, nurse, nurse, mere paas ao! yahan tak ki sabse chiDchiDe log bhi, jinhen duniya ki har cheez se nafar hoti hai, uske chehre ki muskan aur uske mridul svbhaav ke aage jhuk jate aur wo jo kuch kahti, karne ko taiyar rahte. is muskan ke atirikt theen uski nili ankhen. wo jis kisi ki taraf dekhti, wo apne ko duniya ka mahattvapurn vekti samajhne lagta. ek baar mainne apne aapse puchha, use ye taqat kahan se mili, kyonki jis kshan uski nazren mujh par thahrin, main bhi dusre logon ki tarah ho gaya. nissandeh uske dil mein mere liye koi khaas irade na the. mere liye bhi nahin aur dusron ke liye bhi nahin.
uski sathi nursen bhi use khoob chahti theen. uski metran chalis varsh ki prauढ़ mahila thi, ekdam phiki aur sirke ki tarah tikhi, jise kali coffe, namkin cake aur apne chhote kutte ko chhoDkar doctor, rogi, nurse sabse chiDh thi. wo bhi is nurse ko khoob chahti thi. kahne ki zarurat nahin ki mere sathi doctor, jo bhi is nurse ke saath kaam karte, apne bhagya ko sarahte the. main bhi is laDki mein ruchi lene laga.
wo bhi mujhmen ruchi lene lagi. baat itni baDhi ki mainne usse shadi kar li. aur wo is prakar hua ha
ek duphar ko jab main Daining hall se bahar nikla to sidhe Dayna ke kamre ki or baDh gaya. aur puchha, nurse, kya tum vyast ho?
nahin, main fursat mein hoon. aaj mera off hai.
to aaj chhutti ke din tum kya karogi?
mainne is parashn par vichar nahin kiya hai, doctor.
kya main tumhein kuch salah doon?
haan, doctor, mehrbani hogi.
par main tumhein tabhi salah dunga, jab mujhe kuch mehnatana milega. usne meri taraf dekha aur hansne lagi.
mainne kaha, chalo, hum log opera chalen. agar jaldi niklo, to coffe house hote hue chalen.
manzur? usne hanste hue sir hila kar sahamti de di.
mainne kaha, “achchha, main apna kaam niptakar jaldi hi aunga. phir wo apne kamre mein chali gai aur main apni duty par.
kuch samay baad jab main use lene pahuncha, to usne kapDe badal liye the. ekayek wo mujhe ek naya vyaktitv lagi aur is parivartan ke saath uska akarshan ab dugna ho gaya tha. main uske kamre mein gaya aur mainne usse table par saje phulon ke naam puchhe. is Dar se ki kahin koi gambhir haalat ka rogi na aa jaye aur mujhe bulava na aa jaye, main utha aur bola, “chalo, hum log jaldi chalen.
hum bus staup ki taraf baDhe. pahli bus, Dayna to chaDh gai kintu mujhe jagah nahin mili, to wo bhi niche utar gai aur hum tisri bus ka intzaar karne lage. tab mainne apne aapse kaha—kuchh log kahte hain, bus ki aur laDki ki parvah mat karo, kyonki ve bahut milti hain, par jo log aisa sochte hain, ve moorkh hain, jahan tak laDki ka parashn hai, kya unhen Dayna ke saman laDki mil sakti hai?
akhir ek bus i aur hamein jagah mil gai. ye bus ek park ke samne jakar ruki. hamne saDak paar ki. ekayek mainne apni banhen phaila deen aur kaha, “chalo, hum aspatal ki aur duniya ki baten bhool jayen aur kuch madhur baten karen. baag mein bachche khel rahe the. hamein dekhkar ve aapas mein phusphus karne lage. mainne Dayna se puchha, “janti ho, ye bachche kiske bare mein baten kar rahe hain? ye hamare bare mein baten kar rahe hain.
shayad. Dayna boli.
“tumhen malum hai, ye kya bol rahe hain? ye bachche baten kar rahe hain ki tum aur main dulha dulhan hain.
uska chehra laal ho gaya. wo boli, “shayad ye yahi baten kar rahe hain.
to tumhara matlab hai ki tumhein is baat par apatti nahin hai?
kis baat par?
“yahi jo bachche bol rahe hain?
main kyon parvah karun?
mainne sahas batorkar kaha, “agar bachche jo kuch kah rahe hain, wo sach ho to? mera matlab hai, agar hum shadi kar len to? wo hansi aur meri taraf dekhne lagi. mainne uska haath pakDa aur kaha, dusra haath bhi do. mainne uske donon haath chume aur uske mukh ki or dekhne laga. uska mukh aur laal ho gaya. bola, kahavat hai, bachche aur moorkh sach bolte hain.
hamari sagai ke baad ka samay mere liye sabse achchha tha. ab main samajhne laga, kavi kyon prem kaavy likha karte hain. phir bhi na jane kyon uski ankhon mein ek kali chhaya thi, jo kabhi kabhi us badal ki tarah gahri ho jati, jo phutna hi chahta ho. ek baar mainne usse is udasi ka karan puchha. usne bina uttar diye apni ankhen mujh par tika deen. mainne phir se apna parashn duhraya. usne mere gale mein banhen Dalte hue kaha, tum nahin jante, tum mere liye kitne qimti ho aur main tumhein kitna pyaar karti hoon. aur ek muskrahat uske udasin honthon par phail gai.
mainne apne aapse puchha—agar wo mujhse pyaar karti hai, to uski udasinata ka karan kya hai? shayad uska parivar gharib ho. lekin wo to kahti thi ki ve log rais hain. shayad usne kisi aur se shadi ka vada kiya hoga. par wo to kahti thi, aisi koi baat nahin hai. mainne baar baar puchhna chaha, par wo mujhe aur pyaar jatati gai aur khamosh rahi, lekin uske pyaar mein udasinata ka sparsh tha, jisne meri khushi mein vish ki ek boond ghol di thi. main baar baar saval puchhkar use tang karta raha, usne bhi uttar dene ka vachan diya, par har baar bahane banane mein driDh rahi. phir ek baar usne mera haath apne hathon mein lekar kaha, Darling, hum log khush rahen aur aisa kuch na karen, jisse hamari khushiyan khatm ho jayen. aur usne aisi aah bhari, jise sunkar mera dil toot gaya. mainne is aah ka raaj puchha, to wo boli, “Darling, mehrbani karke aur kuch na puchho. mera dimagh thikane nahin tha. main ab bhi us mauqe ki raah dekh raha tha, jab wo mujhe apne dil ki baat kahti.
ek duphar ko main uske kamre mein gaya. us samay wo fursat mein thi aur apne kamre mein baithi, nai dress si rahi thi. mainne kapDe ke kinare ko pakDa aur apni ankhen uski or uthain. usne sidha meri ankhon ki taraf dekha aur kaha, tumhen malum hai, meri dosti kisi aur ke saath thi. ek tarah ki thanDak mere sharir mein dauD gai aur main andar se kamzor ho gaya. main chupchap baith gaya. phir bhi main uske saath pahle jaisa hi vyvahar karta raha. sach puchho to us kshan bhi wo meri nazron se giri nahin aur sada ki tarah mujhe priy lagi. jab wo bhi ye baat samajh gai, to phir ek muskan uske honthon par i. par ankhon mein ab bhi ek tarah ka parda tha aur wo us insaan ki tarah thi, jo ek andhere se nikalkar dusre andhere mein ja raha ho.
mainne usse puchha, vah kaun tha, jo bina shadi kiye tumhein chhoDkar chala gaya? Dayna, tumhare prati mere dil mein koi bura khayal nahin hai, sirf kutuhal hi mujhe puchhne par vivash kar raha hai. zor dene par usne mujhe uska naam bataya. mainne kaha, Dayna, mujhe ashchary hota hai ki daftar ke ek mamuli clerk ne tumhare paanv is tarah Dagmaga diye aur phir tumhein chhoDkar chala gaya. isse pata chalta hai ki wo achchha adami nahin tha. usne apni ankhen niche kar leen aur khamosh ho gai. us din ke baad se mainne use kabhi atit ki yaad nahin dilai. mainne bhi us baat ko dimagh se nikal dene ki koshish ki aur is prakar hamari shadi ho gai.
shadi ke baad hum log apne honeymoon ke liye ek gaanv mein gaye. nissandeh raste mein jharne the, pahaD the, ghatiyan theen. unhen to main bhool gaya, lekin ek baat yaad rahi, jo hamari pahli raat ko hui. jis hotel mein hum logon ne reservation kiya tha, wo bagiche ke madhya mein tha aur uske aaju baju pahaD aur jharne the. jab hum apne kamre mein pahunche, to meri patni ki nazren gulab ke un laal phulon par tik gain, jo vahan sajaye gaye the. mainne hanste hue kaha, kaun hai wo bhalamanas, jisne hamein itne sundar phool bheje hain?
kaun hai vah?” meri patni ne baDe ashchary se kaha.
mainne kaha, ‘‘phir bhi main in phulon ko baju mein rakh deta hoon, kyonki inki khushbu hamein sone na degi.
mainne uske galon ko chumte hue kaha, Dayna, ab hum log akele hain. wo khaDi hui aur baDi savadhani ke saath apne kapDe utare aur apne balon ko sanvarte sanvarte wo baith gai aur apne sir ko table par jhuka liya. mainne dekha ki wo ek paimphlet paDh rahi thi, jis par likha tha, har ghaDi apne svami ka intzaar karo ki wo aaye. mainne uski thoDi apne haath mein lekar kaha, tumhen intzaar nahin karna hai, tumhara svami pahle hi aa chuka hai. aur mainne uska chumban liya. usne baDi udasi se apni palken uthain aur paimphlet baju mein rakh diya. mainne use apni banhon mein bhar liya aur lainp ki batti dhimi kar di. us kshan phulon ne apni sari sugandh de di aur ek tarah ki madhur sthirta ne mujhe charon or se gher liya.
ekayek mujhe apne baju vale kamre se padchap sunai di. mainne us avaz ko apne dimagh se nikal dene ki koshish ki. mainne apni patni ko apni or khincha aur atyant prem ke saath uska alingan kiya, kyonki main janta tha ki wo sampurn meri thi. ab ve padchap saman gati se aage pichhe chal rahi thi. un pairon ki avaz ne mujhe bhram mein Daal diya. ab ek ajib sa khayal mere dimagh mein aaya ki ye vahi clerk hai, jise meri patni shadi ke pahle janti thi. is khayal se mera dimagh ghrinaa se bhar gaya. is bhay se ki kahin main gali na de doon, mainne apne honth chaba liye.
meri patni ne ye dekh liya. boli, Darling, kya hua? mujhe lagta hai tum kisi baat se vichlit ho gaye ho.
baar baar puchhne par mainne use apne man ki baat bata di. wo sisakne lagi.
mainne puchha, “tum kyon ro rahi ho?
usne apne ansu pite hue javab diya, sare darvaze aur khiDkiyan khol do aur duniya se kah do ki main kitni buri hoon! main use shaant karne ki koshish karne laga.
us din ke baad se wo vekti mere dimagh se kabhi na nikla. main usse baat karta to uska naam zarur leta. un laal gulab ke phulon ki yaad aati. ab main samajh gaya tha ki meri patni ne us din un phulon ko kyon nahin sungha tha. jab main apni patni ke saath khush hone ki koshish karta, mujhe usi vekti ki yaad aati, jisne meri khushiyan chheen li theen aur main nirash ho jata. main janna chahta tha ki wo kis prakar ka vekti tha, jisne ek achchhe ghar ki laDki ko akarshait kiya tha. main uski kitabon mein DhunDhane laga, kahin uska koi patr mil jaye, kintu na mila. tab mainne prem kahaniyon ko paDhna shuru kar diya, jismen ki main nari aur uske paremiyon ke svbhaav ko samajh sakun, par un prem upanyason ne mujhe thaka diya.
vivah ke dusre varsh bhi koi shanti na mili. manhastap se wo bimar paD gai. mainne use davaon se theek kiya. main usse kaha karta, in sab bimariyon ki jaD vahi adami hai, jisne tumhari zindagi ko barbad kiya hai. is vaक़t wo dusri aurton ke saath khel raha hoga, par mere nasib mein ek bimar aurat chhoD di hai. ab usne vyvahar ka naya Dhang apnaya. agar main us vekti ka naam leta, to wo dhyaan hi na deti aur chup rahti. ek din jab shaam ko hum chaay pine baithe, to main ekayek bol utha, ‘‘kuchh aisi baat hai, jiske bare mein main soch raha hoon.
usne apna sir hilaya aur boli, haan, main bhi kuch soch rahi hoon.
to batao mere dil mein kya chhupa hai?
wo dhire se boli, talaq aur usne udaas nigahon se meri or dekha.
mainne kaha, kya tum sahmat ho?
wo boli, “main chahun ya na chahun, main wo sab kuch karne ko taiyar hoon, jisse tumhein shanti mile. bhale hi wo talaq kyon na ho.
mainne kaskar apne donon hathon ko pakDa aur ghusse mein kaha, “chalo, phir theek hai!” sanshay ke kiDe ne shadi ki pahli hi raat hamare pyaar ke phool ko kutarna shuru kar diya tha, isliye ab hamare paas talaq ke sivay koi rasta na tha.
Dayna sach hi kahti thi ki nasib mein jo likha ho, vahi hota hai. is prakar hum bahari roop mein to ek dusre se alag ho gaye, parantu uske honthon ki hansi ab tak mere hirdai mein qaid hai. uski nili ankhen ab tak mujhe dikhai deti hain. kabhi kabhi main raat ko un rogiyon ki tarah uthkar baith jata hoon aur apne donon haath phailakar kahta hoon, nurse, nurse, mere paas ao!
स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 263-269)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : सैम्युअल यूसुफ एगनन
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
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