“कितना अद्भुत यंत्र!” अफ़सर ने कहा और यंत्र की ओर प्रशंसा से देखा।
सैलानी कमांडेंट के अनुरोध पर आया हुआ था। एक सिपाही को, जिस पर अवज्ञा का आरोप था, मृत्युदंड दिया जा रहा था। कॉलोनी में किसी को इसमें कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी। यही कारण था कि चारों ओर पहाड़ियों से घिरी उस रेतीली घाटी में, सिवाय इन चार व्यक्तियों—अफ़सर, सैलानी, सिपाही और क़ैदी के, और कोई नहीं था। क़ैदी एक बेवक़ूफ़ों जैसी शक्ल का आदमी था। उसका मुँह चौड़ा था और सिर के बाल खड़े हुए। उसकी गर्दन, कमर और घुटने ज़ंजीरों से जकड़े हुए थे। ज़ंजीर सिपाही के हाथ में थी। क़ैदी उस आज्ञाकारी कुत्ते की तरह दिखता था, जिसे पहाड़ियों पर घूमने के लिए छोड़ा जा सकता था और दंड के वक़्त सीटी देकर वापस बुलाया जा सकता था।
सैलानी को यंत्र में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह उदासीन भाव से क़ैदी के चारों ओर चक्कर काट रहा था। उतनी देर में अफ़सर ने यंत्र का निरीक्षण पूरा कर लिया। जो काम किसी मिस्त्री से कराया जा सकता था, वह काम वह ख़ुद करता था। शायद इसलिए कि वह यंत्र का दिली प्रशंसक था। या शायद इसलिए कि इतना महत्त्वपूर्ण काम किसी और के ज़िम्मे नहीं छोड़ा जा सकता था।
“तैयार है,” अफ़सर ने यंत्र की सीढ़ियाँ उतरते हुए कहा। वह लँगड़ाकर चलता था, मुँह खोलकर साँस लेता था और उसने अपनी वर्दी की जैकेट के कॉलर में दो जनाने रूमाल टाँक रखे थे।
“ऐसे काम में वर्दी से दिक्कत आती होगी?” यंत्र में कोई उत्सुकता प्रकट करने की बजाए सैलानी ने पूछा।
“सच है,” अफ़सर ने बाल्टी के पानी से हाथों की ग्रीज़ धोते हुए कहा।
“लेकिन वर्दी में हम सहज रहते हैं। अब इस यंत्र को देखिए,” उसने तौलिए से हाथ रगड़ते हुए यंत्र की ओर इशारा किया, “अब तक इस पर हाथ से काम किया गया है। आगे का काम यह अपने आप करेगा। यों कभी-कभी इसमें गड़बड़ियाँ पैदा हो जाती हैं, लेकिन उम्मीद है कि आज कुछ नहीं होगा। फिर भी थोड़ी-बहुत गुँजाइश तो रह ही जाती है। क़ायदे से इसे बिना रुके बारह घंटे चलना चाहिए। कोई छोटा-मोटा नुक़्स पैदा होता है तो तत्काल ठीक कर दिया जाता है। आप कुर्सी पर बैठना चाहेंगे?” अफ़सर ने कुर्सियों के ढेर से एक कुर्सी निकालते हुए पूछा। सैलानी इंकार करने की स्थिति में नहीं था। अफ़सर क़ब्र के किनारे बैठ गया। क़ब्र ज़्यादा गहरी नहीं थी। उसके एक तरफ़ मिट्टी का ढेर था, दूसरी तरफ़ यंत्र।
“मुझे नहीं पता, आपको कमांडेंट ने यंत्र के बारे में कुछ बताया या नहीं?” अफ़सर ने कहा। सैलानी के इंकार करने पर उत्साहित होकर बताने लगा, “यह हमारे पूर्व कमांडेंट का आविष्कार है। मैं इसमें शुरू से अंत तक उनका सहायक रहा। क्या आपने उनके बारे में कुछ नहीं सुना? नहीं? यदि मैं कहूँ कि हमारी सारी व्यवस्था उस अकेले व्यक्ति की देन है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हम, जो उनकी मौत के बहुत पहले से उनके दोस्त थे, जानते थे कि उस वक़्त हमारी कॉलोनी का गठन कितना त्रुटिहीन था। उनका कोई भी उत्तराधिकारी, चाहे वह कितना भी मेधावी क्यों न हो, आने वाले कई वर्षों तक इसमें किसी सुधार की गुंजाइश नहीं पाएगा। हमारी भविष्यवाणी सही थी, इसे हमारे नए कमांडेंट भी स्वीकार करते हैं, लेकिन,” अफ़सर थोड़ा झिझका, “हम असली मुद्दे से भटक रहे हैं। तो ये हमारा यंत्र है। इसके तीन खंड हैं, जिन्हें अपने काम के अनुसार तीन अलग-अलग नाम दिए गए हैं। नीचे का खंड बिस्तर कहलाता है, ऊपर वाला डिज़ाइनर, और ये तीसरा, जो दोनों के बीच ऊपर-नीचे झूलता है, दरांती।”
“दरांती?” सैलानी ने पूछा। दरअसल वह अफ़सर की बातों को ध्यान से नहीं सुन पा रहा था। उस वृक्षहीन घाटी में सूर्य की चमक इतनी प्रखर थी कि उसे अपने ख़यालों को नियंत्रित करने में दिक्कत महसूस हो रही थी। हालाँकि अफ़सर के लिए, जो अपनी चुस्त वर्दी के बावजूद इतना उत्साहित दिख रहा था, उसके मन में प्रशंसा का भाव था।
अफ़सर बोल रहा था, और इसके साथ ही हाथ के पाने से यंत्र के ढीले पेंचों को कसता जा रहा था। सिपाही की हालत सैलानी जैसी ही थी। उसने ज़ंजीर को अपनी दोनों कलाइयों में लपेट रखा था और बंदूक़ से टिका, सिर लटकाए हुए कुछ भी नहीं सुन रहा था। इस पर सैलानी को आश्चर्य नहीं हो रहा था। अफ़सर फ्रेंच बोल रहा था, जिसका एक शब्द भी सिपाही या क़ैदी को नहीं आता था। लेकिन इसके बावजूद क़ैदी समझने की कोशिश कर रहा था। इसलिए अफ़सर जिस तरफ़ उँगली से संकेत करता था, वह भी उसी ओर देखने लगता था।
“हाँ, दरांती! एकदम सार्थक नाम!” अफ़सर कह रहा था, “इसमें दरांती के दाँतों की तरह सुइयाँ फिट की गई हैं। यह दरांती की ही तरह काम करता है, लेकिन कलात्मक तरीक़े से। यहाँ बिस्तर पर अपराधी को लिटा दिया जाता है। अच्छा रहेगा कि यंत्र चालू करने के पहले मैं आपको मोटी-मोटी जानकारियाँ दे दूँ। इससे आपको इसकी प्रक्रिया समझने में सुविधा रहेगी। डिज़ाइनर का एक चक्का बुरी तरह घिस चुका है। घूमते वक़्त इतना शोर करता है कि आपको अपनी ही आवाज़ न सुनाई दे। इसके पुर्ज़े यहाँ मुश्किल से मिलते हैं। तो ये बिस्तर है और ये सूत मिश्रित ऊन का गद्दा। अपराधी को गद्दे पर लिटा दिया जाता है। उसके हाथों, पैरों और गले को मज़बूत पट्टों से कस दिया जाता है। यहाँ, जहाँ अपराधी का सिर रहता है, ये डॉट लगा हुआ है। यंत्र चालू होते ही यह अपराधी के मुँह में प्रवेश कर जाता है। इसका काम अपराधी की चीख़ों को रोकना होता है और ये भी कि कहीं अपराधी अपनी जीभ को दाँतों से न काट ले। डॉट को मुँह में लेने के लिए अपराधी को मजबूर किया जाता है, वर्ना वह पट्टे से छूटने के चक्कर में अपनी गर्दन तोड़ सकता है।”
“क्या ये भी ऊन और सूत का बना हुआ है?” सैलानी ने झुकते हुए पूछा।
“हाँ!” अफ़सर ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। “छूकर देखें,” उसने सैलानी का हाथ पकड़कर बिस्तर से छुआया। “इसे विशेष ढंग से बनाया गया है, इसलिए कुछ विचित्र लगता है। अब मैं आपको बताऊँगा कि इसके पीछे क्या उद्देश्य है?”
यंत्र पुराना और भीमकाय था। सैलानी की दिलचस्पी जगने लगी थी। वह धूप से बचने के लिए आँखों पर हाथ लगाकर उसकी ओर देखने लगा। बिस्तर और डिज़ाइनर एक ही आकार-प्रकार के थे और काठ के काले संदूक़ों की तरह दिखते थे। डिज़ाइनर बिस्तर से लगभग दो मीटर की ऊँचाई पर था। उसके दोनों कोनों पर पीतल के ठोस और मज़बूत रॉड जुड़े हुए थे। बीच में दरांती थी। दरांती फ़ौलाद के पट्टे के सहारे ऊपर-नीचे झूलती थी। अफ़सर, जो अभी तक सैलानी की उदासीनता से बेख़बर था, उसकी दिलचस्पी से सतर्क होकर चुप हो गया। ताकि सैलानी बिना किसी अड़चन के यंत्र का निरीक्षण कर सके। क़ैदी सैलानी की नक़ल करने लगा। हथकड़ियों के कारण वह आँखों पर हाथ नहीं ले जा सकता था। अत: वह वैसे ही आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगा।
“हाँ, तो यहाँ अपराधी को लिटा दिया जाता है?” सैलानी ने कुर्सी से टिककर पैर-पर-पैर रखते हुए पूछा।
“हाँ,” टोपी सरकाकर अपने धूप से तपे चेहरे पर हाथ फेरते हुए अफ़सर ने कहा।
“बिस्तर और डिज़ाइनर दोनों में एक-एक बैटरी फिट की गई है। बिस्तर में बिस्तर की ज़रूरत के लिए, डिज़ाइनर में दरांती के लिए। अपराधी को पट्टों में कसने के बाद बिस्तर को चालू कर दिया जाता है। बिस्तर में तेज़ कँपन शुरू हो जाता है। आपने अस्पतालों में ऐसे बिस्तर देखे होंगे। लेकिन हमारे इस बिस्तर को हमारे अनुसार हिलना-डुलना पड़ता है। आप समझ रहे हैं न? बिस्तर के कंपनों को दरांती के कंपनों के साथ तालमेल रखना होता है। दरांती दंड-प्रक्रिया को अंजाम देने वाला असली खंड है।
“दंड-प्रक्रिया कैसी होती है?” सैलानी ने पूछा।
“आपको नहीं मालूम?” अफ़सर ने आश्चर्य से होंठ काट लिए। “मेरी टूटी-फूटी अभिव्यक्ति के लिए माफ़ करेंगे। हमारे पूर्व कमांडेंट इसके बारे में पहले से बता दिया करते थे। लेकिन नए कमांडेंट अपने कर्त्तव्य से भागते हैं। इतने महत्त्वपूर्ण मेहमान को...” सैलानी ने हाथ उठाकर अपनी इज़्ज़त अफज़ाई से रोकने की कोशिश की, लेकिन अफ़सर कहता गया, “कुछ न बताया जाए, यह हमारे लिए एक नई बात है।” अफ़सर कड़े शब्दों का प्रयोग करने जा रहा था, लेकिन अपने को क़ाबू में करते हुए उसने सिर्फ़ इतना कहा, “इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं। मुझे बताया नहीं गया। मेरे पास हमारे पूर्व कमांडेंट द्वारा तैयार की गई डिज़ाइन मौजूद है।”
“पूर्व कमांडेंट द्वारा तैयार की गई डिज़ाइन। तो क्या उनमें बहुत सी ख़ूबियाँ थीं? सैनिक, न्यायाधीश, डिज़ाइनर...सब एक साथ?”
“बिलकुल,” अफ़सर ने स्वीकृति की मुद्रा में सिर हिलाया। अपने हाथों का जाएजा लिया और पानी की बाल्टी के पास जाकर उन्हें दोबारा साफ़ किया। फिर जेब से चमड़े का एक छोटा-सा ब्रीफ़केस निकालते हुए बोला, “हमारे दंड ज़्यादा कठोर नहीं होते, सिर्फ़ अपराधी के जुर्म को सुइयों से उसके शरीर पर गोदा जाता है। उदाहरण के लिए इस क़ैदी पर गोदा जाएगा—“अपने अफ़सरों का सम्मान करो।”
सैलानी ने क़ैदी की तरफ़ देखा। वह सिर झुकाए दत्तचित्त होकर उनकी बातें सुन रहा था। लेकिन उसके भिंचे हुए मोटे होंठों से ज़ाहिर था कि वह एक भी शब्द नहीं समझा। सैलानी के दिमाग़ में तरह-तरह के सवाल कुलबुला रहे थे। उसने क़ैदी की ओर संकेत करते हुए पूछा, “क्या इसे अपने अपराध की जानकारी है?”
“इसकी कोई ज़रूरत नहीं। दंड से गुज़रने के दौरान वह अपने आप जान जाएगा,” क़ैदी ने सैलानी की ओर देखा। उसकी निगाहें पूछ रही थीं कि क्या वह उसका समर्थन करता है?
“लेकिन क्या यह जानता है कि इसे कोई दंड दिया जा रहा है?”
“नहीं,” अफ़सर ने मुस्कुराकर उत्तर दिया।
“तो क्या इसे यह भी नहीं पता कि इसकी ‘सफ़ाई’ को ख़ारिज कर दिया है?”
“इसे सफ़ाई देने का कोई मौक़ा नहीं दिया गया।”
“लेकिन मौक़ा दिया जाना चाहिए था,” सैलानी ने कुर्सी से उठते हुए कहा। अफ़सर चलकर सैलानी के पास आया। उसे बाजू से पकड़ा और क़ैदी की ओर हाथ हिलाया। सिपाही ने ज़ंजीर को झटका दिया।
“बात यह है कि नौजवान होने के बावजूद मुझे यहाँ की न्याय-व्यवस्था का दंडाधिकारी बनाया गया है। इस आधार पर कि मैं पूर्व कमांडेंट का सहयोगी था, और इस यंत्र के बारे में किसी भी व्यक्ति के मुक़ाबले ज़्यादा जानकारी रखता हूँ। मेरा आदर्श वाक्य है—‘अपराधी के अपराध के बारे में कोई संदेह नहीं किया जाना चाहिए।’ दूसरी अदालतें इस सिद्धांत पर अमल नहीं कर सकतीं, क्योंकि उनमें विभिन्न मतों वाले न्यायाधीश होते हैं। फिर उनके फ़ैसलों की जाँच करने के लिए उच्च न्यायालय होते हैं। हमारे द्वीप की यही परंपरा है। शुरू में नए कमांडेंट ने मेरे काम में टाँग अड़ाने की कोशिश की थी, लेकिन मैंने उसे रोक दिया। क्या आप इस मामले के बारे में सुनना चाहेंगे। एकदम सीधा है। सुबह मुझे एक कैप्टन ने सूचित किया कि यह शख़्स, जो उसे बतौर नौकर सौंपा गया था, अपनी ड्यूटी पर सोता पाया गया। इसकी ड्यूटी थी कि रात को कैप्टन के दरवाज़े पर पहरा दे। और घंटा बजने पर हर बार उठकर दरवाज़े को सलाम करे। कोई बहुत मुश्किल काम नहीं, लेकिन इसके बावजूद बहुत ज़रूरी क्योंकि इसे संतरी और नौकर दोनों के काम सौंपे गए थे। रात को कैप्टन ने यह देखने के लिए कि यह अपनी ड्यूटी ठीक से करता है या नहीं, दो बजे दरवाज़ा खोला तो इसे सोता हुआ पाया। उसने इसके मुँह पर चाबुक से प्रहार किया। इस शख़्स ने बजाए माफ़ी माँगने के अपने मालिक की टाँग पकड़ ली और चीख़कर बोला, “चाबुक फेंक दे, वर्ना मैं तुझे ज़िंदा खा जाऊँगा।” इसका प्रमाण ये है कि कैप्टन ने घंटे भर पहले मेरे सामने एक लिखित बयान दिया। उसी पर मैंने दंड लिख दिया। अगर मैं इससे पूछताछ करता या सफ़ाई माँगता तो ये एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलता, उससे मामला और भी उलझता। मैंने इसे तुरंत गिरफ़्तार कर लिया, लेकिन हम बातों में समय गँवा रहे हैं। अब दंड शुरू होना चाहिए। लेकिन अभी तक मैंने आपको यंत्र के बारे में तो बताया ही नहीं। अफ़सर सैलानी को कुर्सी पर बिठाकर यंत्र के पास जा पहुँचा और बताने लगा, “जैसा कि आप देख रहे हैं, दरांती की सुईयों का आकार मनुष्य से मिलता है। ये सुइयाँ पैरों के लिए हैं, ये धड़ के लिए और सिर के लिए यह बड़ा सूजा है। समझ रहे हैं न?”
सैलानी खिन्न मन से दरांती के बारे में सोचने लगा। उसने अपने को याद दिलाया कि वह एक दंडद्वीप में है, जहाँ फ़ौजी अनुशासन क़ायम रखने के लिए असामान्य तरीकों की ज़रूरत होती है। इसके बावजूद उसे नए कमांडेट से कुछ उम्मीद थी।
“क्या कमांडेंट महोदय मौके पर उपस्थित रहेंगे?” उसने दूसरा सवाल किया।
“क्या पता,” अफ़सर ने रुखाई से जवाब दिया। “हमारे पास ज़्यादा समय नहीं, इसलिए ज़रूरी बातें संक्षेप में बताऊँगा। तो अपराधी को बिस्तर पर लिटा दिया जाता है। इसके बाद बिस्तर में कंपन शुरू हो जाते हैं। फिर दरांती को बिस्तर के पास लाया जाता है, लेकिन अभी सुइयाँ अपराधी के शरीर को नहीं छूतीं। इसके साथ ही दरांती को चालू करने वाला फ़ौलाद का पट्टा घूमने लगता है। दरांती अपना काम शुरू कर देती है। दरांती के काँपने के साथ ही सुइयाँ अपराधी के शरीर में घुसने लगती हैं। बिस्तर के साथ अपराधी का जिस्म भी काँपता है। दरांती काँच की बनी है। इतनी बड़ी सुइयों को काँच में फिट करने में हमें काफ़ी तकनीकी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा था, लेकिन कुछ प्रयोगों के बाद हम सफल हो गए। काँच से होकर अपराधी के शरीर पर गोदे गए अक्षरों को साफ़-साफ़ पढ़ा जा सकता है। क्या आप सुइयों को पास से देखना पसंद करेंगे?”
सैलानी अपनी जगह से उठकर और दरांती पर झुककर देखने लगा।
“आप ग़ौर कर रहे हैं, दरांती में दो तरह की सुइयाँ लगी हुई हैं। लंबी सुइयाँ अपराधी के जिस्म को छेदती हैं, जबकि छोटी सुइयाँ पानी छिड़कने का काम करती हैं, ताकि गोदे गए अक्षरों को साफ़-साफ़ पढ़ा जा सके। ख़ून और पानी एक नली के द्वारा क़ब्र में गिरा दिया जाता है।”
सैलानी ने भय और आश्चर्य से देखा कि क़ैदी दरांती के क़रीब आ गया है और ग़ौर से देख रहा है। उसने उनींदे सिपाही को ज़ंजीर से अपने पीछे खींच लिया था। इस वक़्त वह काँच के ऊपर झुका हुआ था। शायद यह कोई दंडनीय हरकत थी। इसलिए सैलानी उसे वहाँ से हटाना चाहता था। अफ़सर ने एक हाथ से सैलानी को रोका, दूसरे से सिपाही पर मिट्टी फेंकी। सिपाही ने आँखें खोलकर क़ैदी की गुस्ताख़ी पर ग़ौर किया। उसने अपनी बंदूक़ को नीचे गिर जाने दिया और दोनों एड़ियों को ज़मीन में गड़ाकर एक ज़ोरदार झटका दिया, जिससे क़ैदी लड़खड़ाकर रेत पर गिर पड़ा।
“इसे उठाकर खड़ा करो और सावधान करो।” अफ़सर ने चिल्लाकर कहा, और सिपाही की मदद से क़ैदी को उठाकर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया।
“मैंने यंत्र के बारे में सब कुछ समझ लिया,” सैलानी ने कहा।
“सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ के अलावा सब कुछ,” अफ़सर ने सैलानी की बाँह पकड़कर डिज़ाइनर की ओर संकेत किया। “दरांती को नियंत्रित करने वाले सारे चक्के डिज़ाइनर में फिट हैं। यह खंड अपराधी पर गोदे गए अपराध के अनुसार काम करता है। मैं अपने पूर्व कमांडेंट के निर्देशों का पालन करता हूँ।” उसने चमड़े के ब्रीफ़केस से कुछ काग़ज़ निकाले, “लेकिन ख़ेद है कि मैं आपको इन्हें छूने नहीं दूँगा। ये मेरी सर्वाधिक मूल्यवान निधि हैं। इन्हें सामने फैला देता हूँ, ताकि आप इनका अवलोकन कर सकें। पढ़िए!”
“मैं नहीं पढ़ सकता।”
“बहुत साफ़ लिखा है।”
“बिल्कुल, लेकिन मैं नहीं पढ़ सकता।”
“हाँ!” अफ़सर हँसा और काग़ज़ों को ब्रीफ़केस में वापस रखता हुआ बोला, “कोई बच्चों का काम नहीं। समझने के लिए आपको दिमाग़ लड़ाना पड़ेगा। अपराधी को जल्द नहीं मरने दिया जाता, बल्कि औसतन बारह घंटे बाद। दंड-प्रक्रिया में निर्णायक मोड़ छह घंटे बात आता है। इसे प्रकट करने के लिए नक़्शे में जगह-जगह चक्र बनाए गए हैं। अब आप इस यंत्र में दरांती द्वारा किए जाने वाले काम को समझ सकते हैं। अफ़सर यंत्र की सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गया। वहाँ पहुँचकर उसने एक चक्का घुमाया और चीख़कर बोला, “होशियार! हटकर खड़े होइए। यंत्र चालू हो चुका है। अगर ये चक्का आवाज़ न करता, तो हमारा यंत्र बेमिसाल होता।”
चक्के की आवाज़ से क्षुब्ध होते हुए अफ़सर ने हवा में मुट्ठी हिलाई। फिर यंत्र के काम की जाँच करने के लिए फुर्ती से सीढ़ियाँ उतरकर नीचे आ गया। यंत्र में कोई गड़बड़ी थी, जिसे सिर्फ़ वही समझ सकता था। उसने डिज़ाइनर में दोनों हाथ डाल दिए और चिल्लाकर बोला, “आप समझ रहे हैं, दरांती ने गोदना शुरू कर दिया है। जैसे ही यह एक इबारत पूरी करेगा, नीचे का गद्दा अपराधी को पलट देगा। इससे दरांती को गोदने के लिए नई जगह मिल जाएगी। उतनी देर गोदा हुआ हिस्सा गद्दे पर पड़ा रहेगा। गद्दा ख़ासकर ख़ून सोखने के उद्देश्य से बनाया गया है, ताकि बाद में पहली इबारत को गहराया जा सके। फिर जैसे ही अपराधी का शरीर पलटेगा, दरांती के अगले दाँत गद्दे को क़ब्र में उछाल देंगे। लेकिन दरांती का काम फिर भी बाक़ी रह जाएगा। यह लगातार बारह घंटे तक अपराधी के शरीर पर लिखी हुई इबारत को गहरा करती रहेगी। छह घंटे अपराधी पहले की तरह ज़िंदा रहता है, दर्द से तड़पता। दो घंटे बाद उसके मुँह से डॉट निकाल दी जाती है, क्योंकि तब तक उसमें चिल्लाने की ताक़त नहीं बचती। यहाँ से बिजली से गर्म रहने वाला चावल का माड़, बिस्तर के सिरहाने इस तरह से टपकाया जाता है कि अपराधी जितना चाहे चाट ले। इसका फ़ायदा हर अपराधी उठाता है। छठे घंटे में अपराधी की खाने की इच्छा मर जाती है। मैं झुक-झुककर अपराधी का निरीक्षण करता रहता हूँ। वह माड़ का अंतिम घूँट नहीं पीता। कुछ देर मुँह में भरे रहता है, फिर क़ब्र में बुलक देता है। लेकिन छठे घंटे उसका चेहरा कितना शांत हो उठता है। मूर्ख से मूर्ख अपराधी का चेहरा आलोकित हो उठता है। ज्ञान उसकी आँखों के रास्ते से आता है और वहीं दीप्त होता है। एक दुर्लभ क्षण, जब आपकी दिली इच्छा होने लगती है कि आप भी क़ैदी के साथ होते। इसके बाद कुछ नहीं घटता। अपराधी अपनी देह पर गोदी गई इबारत को समझ लेता है। उसके चेहरे के भाव से लगता है, जैसे कुछ सुन रहा हो। आप सोच सकते हैं—जिस इबारत को आँखों से पढ़ना मुश्किल हो, उसे ज़ख़्मों की पीड़ा से समझना! उस वक़्त तक दरांती उसके शरीर को आर-पार गोद चुकी होती हैं। इसके बाद उसके शव को क़ब्र में उछाल देती है। अपराधी ख़ून-पानी से सने गद्दे पर जा गिरता है। इसके साथ ही दंड का अंत। मैं और सिपाही शव को क़ब्र में दफ़न कर देते हैं।”
जैकेट की जेबों में हाथ दिए सैलानी अफ़सर को ग़ौर से सुन रहा था। इसके साथ ही चालू हो गए यंत्र की ओर भी देख रहा था। क़ैदी भी देख रहा था, लेकिन कुछ भी न समझता हुआ। यकायक क़ैदी झुका। वह दरांती चालू करने को था कि अफ़सर के संकेत पर सिपाही ने पीछे से उसके कपड़ों को चाक़ू से चीर दिया। क़ैदी के कपड़े अलग-थलग जा पड़े। नंगेपन से बचने के लिए उसने कपड़ों को पकड़ने की कोशिश की, तभी सिपाही ने उसे पीछे से उठाकर उसके बचे-खुचे चीथड़ों को भी झाड़ दिया। अफ़सर ने यंत्र बंद किया। क़ैदी को दरांती के नीचे लिटा दिया गया; चेनें ढीली कर दी गई; क़ैदी के गले और हाथ-पैरों को पट्टों से कस दिया गया। शुरू में लगा, जैसे क़ैदी को आराम मिला हो। क़ैदी एक दुबला-पतला व्यक्ति था, इसलिए दरांती को थोड़ा और नीचे लाया गया। सुइयों के एहसास के साथ ही उसकी देह में ठंडी सिहरन दौड़ गई। सिपाही उसके दाएँ हाथ का पट्टा कस रहा था, तभी उसने अपना बायाँ हाथ बाहर फेंका। संयोग से उधर, जहाँ सैलानी खड़ा हुआ था। अफ़सर सैलानी का चेहरा भाँप रहा था। जैसे उस पर दंड का प्रभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हो।
एक कलाई का पट्टा टूट गया था। शायद सिपाही ने उसे ज़्यादा कस दिया था। इस पर अफ़सर को हस्तक्षेप करना पड़ा। उसने सिपाही के पास पहुँचकर सैलानी से कहा, “बहुत पेचीदा यंत्र है। इसकी कोई-न-कोई चीज़ हमेशा टूटती या गड़बड़ होती रहती है, लेकिन हम इससे घबराते नहीं। अब मैं पट्टे की जगह ज़ंजीर से काम लूँगा।” ज़ंजीर कसते हुए उसने आगे कहा, “यंत्र के रख-रखाव के लिए दी जाने वाली राशि में कटौती कर दी गई है। पुराने कमांडेंट के समय इसके लिए एक निश्चित राशि सुरक्षित रहती थी, जिसे मैं कभी भी निकाल सकता था। एक स्टोर रूम भी दिया गया था, जिसमें मरम्मत के औजार और फ़ालतू कल-पुर्ज़े रखे रहते थे। लेकिन अब नए कमांडेंट ने सब कुछ अपने चार्ज में ले लिया है। अब अगर मैं उससे नए पट्टे की माँग करता हूँ तो वह पुराने पट्टे को देखना चाहेगा। नया पट्टा मँगाने में दस दिन लग जाएँगे और वह भी रद्दी क़िस्म का। बिना पट्टे के मैं यंत्र से कैसे काम लूँ, इसकी फ़िक्र किसी को नहीं।”
सैलानी सोच-विचार में डूब गया। दूसरों के मामलों में टाँग फँसाना हमेशा झँझट का काम होता है। न तो वह इस द्वीप का सदस्य है, न ही उसके देश का नागरिक। वह कोई आलोचना करेगा तो वे उसे टका-सा जवाब दे देंगे—“आप बाहरी आदमी हैं। अपने काम से मतलब रखें।” इस पर वह क्या कहेगा ज़्यादा-से-ज़्यादा यही कि वह आश्चर्यचकित है। उस द्वीप में सिर्फ़ एक सैलानी की हैसियत से आया है और दूसरों की न्याय व्यवस्था में दखलंदाजी करने का उसका कोई इरादा नहीं।
यों वह अंदर से काफ़ी क्षुब्ध था। उसे वहाँ की न्याय-व्यवस्था और उसका क्रियान्वयन अमानुषिक लगा था। उस पर स्वार्थ-प्रेरित होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता था। क़ैदी से उसका कोई संबंध नहीं था। उसे उच्चस्तरीय सिफ़ारिश पर भेजा गया था। यह तथ्य कि उसे मृत्युदंड देखने के लिए बुलाया गया है, इस बात का संकेत था कि उसके विचारों को महत्त्व दिया जाएगा। और भी ज़्यादा संभावना इसलिए थी, क्योंकि कमांडेंट दंडाधिकारी के ख़िलाफ़ था।
उसी क्षण अफ़सर की ग़ुस्से से चिल्लाने की आवाज़ आई। वह बड़ी मुश्किल से क़ैदी के मुँह में डॉट ठूँस पाया था कि क़ैदी ने आँखें मूंदकर उल्टी कर दी। अफ़सर ने फ़ुर्ती से डॉट निकालकर क़ैदी का मुँह क़ब्र पर झुका दिया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। क़ैदी ने मशीन में ही उल्टी कर दी थी। “सारी ग़लती कमांडेंट की है,” अफ़सर पीतल की रॉडों को झकझोरता हुआ चिल्लाया। “यंत्र सुअरबाड़े की तरह गंदा हो गया है,” उसने काँपते हाथों से सैलानी को संकेत किया कि पास आकर देखे। “मैंने कमांडेंट के साथ घंटों सिर खपाया कि अपराधी को दिन भर भूखा रखा जाना चाहिए। लेकिन हमारे नए और मृदु सिद्धांतों का मिज़ाज ही कुछ दूसरा है। अब कमांडेंट की प्रेयसियाँ विदा के वक़्त अपराधी को शुगरकैंडी खिलाती हैं। जो ज़िंदगी भर सड़ी मछली खाता रहा हो, उसे मरते वक़्त शुगरकैंडी! मैं इसे भी नज़रंदाज़ करने को तैयार हूँ, लेकिन वह मुझे नया डॉट क्यों नहीं देते? तीन महीनों से माँग कर रहा हूँ। कोई उस डॉट को अपने मुँह में कैसे रख सकता है, जो सौ से ज़्यादा मरते हुए अपराधियों के मुँह में रह चुका हो।”
क़ैदी सिर झुकाए हुए शांत रहा था। सिपाही क़ैदी की क़मीज़ से अंदर की सफ़ाई करने में व्यस्त था।
अफ़सर सैलानी की ओर बढ़ा। पता नहीं क्या समझकर, सैलानी एक क़दम पीछे हट गया, लेकिन अफ़सर ने उसे हाथ पकड़कर एक तरफ़ खींच लिया।
“मैं आपसे कुछ गोपनीय बातें कह सकता हूँ?”
“बिल्कुल!” सैलानी ने कहा और सिर झुकाकर सुनने लगा।
“वर्तमान समय में, हमारी दंड-व्यवस्था का (जिसका दर्शक होने का स्वर्णावसर आपको मिला है) इस कॉलोनी में मेरे अलावा एक भी समर्थक नहीं। इसके अलावा अपने पूर्व कमांडेंट की परंपरा का भी एकमात्र समर्थक मैं भी अब अपनी व्यवस्था के विस्तार के बारे में नहीं सोचता। यह इसी रूप में बची रहे इसी की कोशिश में सारी शक्ति ख़र्च हो जाती है। पूर्व कमांडेंट के समय कॉलोनी हमारे समर्थकों से भरी पड़ी थी। उनके विचारों की कुछ शक्ति मुझमें भी हैं, लेकिन उनकी वास्तविक ताक़त का एक अंश भी नहीं। नतीजा ये है कि हमारे
समर्थक गुम हो गए हैं। जो हैं भी वे खुलकर नहीं आ सकते। अगर आप आज किसी चाय-घर में बैठें तो वहाँ आपको उल्टी-सीधी टिप्पणियाँ सुनने को मिलेंगी।
लेकिन वर्तमान कमांडेंट और उसके नए सिद्धांतों के चलते मेरे लिए उनका कोई महत्त्व नहीं। अब मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ, क्या कमांडेंट और उनकी महिलाओं (जिनसे वह प्रभावित हैं) के कारण एक समूची ज़िंदगी के काम को यों ही छोड़ देना चाहिए? क्या किसी को भी इसकी इजाज़त दी जा सकती है? मेरे उन कामों पर, जो मैं दंडाधिकारी की हैसियत से करता हूँ, हमला होने वाला है। अब मुझे कमांडेंट के कक्ष में होने वाली सभाओं में नहीं बुलाया जाता? यहाँ तक कि आपको यहाँ भेजने के पीछे भी मुझे उसकी कोई साज़िश नज़र आती है। वह बुज़दिल है और आपका उपयोग एक ढाल के रूप में कर रहा है। पुराने वक़्त में मृत्युदंड को हमारे द्वीप में एक पर्व की तरह मनाया जाता था। दिन भर घाटी में दर्शकों का ताँता लगा रहता था। कमांडेंट सुबह से ही अपनी महिलाओं के साथ आ जाते थे। फिर मैं उन्हें सूचित करता था कि यंत्र तैयार है। दर्शकों की भीड़ (उस वक़्त कोई भी बड़ा अधिकारी अनुपस्थित रहने की हिम्मत नहीं कर सकता था) यंत्र के चारों ओर व्यवस्थित हो जाती थी। ये कुर्सियों का ढेर उसी युग की दुखद यादगार है। यंत्र चुस्त-दुरुस्त और चमचमाता हुआ होता था। मुझे हर मृत्युदंड के पहले नए पुर्ज़े उपलब्ध कराए जाते थे। पंजों पर खड़े सैकड़ों दर्शकों के बीच कमांडेंट स्वयं अपराधी को अपने हाथों से सुइयों के नीचे लिटाते थे। जो आज एक मामूली सिपाही का काम रह गया है, उस वक़्त मेरे लिए होता था। यानी एक दंडाधिकारी का काम, जो मेरे लिए सम्मान की बात होती थी। फिर दंड-प्रक्रिया शुरू हो जाती थी। भीड़ से कोई भी असहमति की चूँ-चपाट यंत्र के रंग को भंग नहीं करती थी बहुत से लोग यंत्र की तरफ़ न देखकर रेत में आँखें गड़ाए रहते थे। लेकिन वे जानते थे कि न्याय किया जा रहा है। सन्नाटे में अपराधी की घुटती साँसों के अलावा कोई आवाज़ नहीं सुनाई देती थी। अब तो अपराधी की चीख़ों को डॉट द्वारा घोंट दिया जाता है। पुराने समय में गोदने वाली सुइयों से तेज़ाब रिसता रहता, जिसकी अब इजाज़त नहीं। फिर छठाँ घंटा आता था, उस समय सबको नज़दीक से देखने की इजाज़त देना असंभव हो जाता था। बुद्धिमान कमांडेंट का आदेश होता था कि सबसे पहले बच्चों को अवसर दिया जाए। अपने पद के कारण मुझे कमांडेंट के पास बैठने की इजाज़त रहती थी। मैं अक्सर दोनों हाथों में दो बच्चे लिए उनके बग़ल में बैठा होता था। हम किस तरह अपराधी के बिगड़ते हुए चेहरे की यातना को अपने अंदर जज़्ब करते थे! किस क़दर हमारे चेहरे न्याय की भावना से चमकते थे! वह कौन-सा वक़्त था साथी?” ज़ाहिरा तौर पर अफ़सर भूल चुका था कि वह किससे बातें कर रहा है?
अफ़सर ने सैलानी को बाँहों में जकड़कर उसके कंधों पर सिर रख दिया। सैलानी को अटपटा लग रहा था। इस बीच सिपाही यंत्र साफ़ कर चुका था और अब बर्तन में चावल का माड़ भर रहा था। जैसे ही क़ैदी ने ये देखा, वह मुँह के चारों ओर जीभ चलाने लगा। (क़ैदी को होश आ चुका था।) सिपाही उसके चेहरे को परे ठेलने लगा, क्योंकि माड़ बाद के घंटों के लिए था। इसके अलावा क़ैदी की लालची आँखों के सामने वह ख़ुद नहीं खा सकता था।
अफ़सर ने प्रकृतिस्थ होते हुए कहा, “मैं आपका दिमाग़ ख़राब नहीं करना चाहता। मैं समझता हूँ कि उन दिनों के बारे में किसी को विश्वास दिलाना मुश्किल है। जो भी हो, ये यंत्र अब भी काम करता है। इसके बावजूद इस वीरान घाटी में उपेक्षित पड़ा हुआ है। ये अब भी अपराधी के शव को क़ब्र में उसी सहजता से फेंकता है। हालाँकि इसका कमाल देखने के लिए अब भीड़ नहीं होती। उस समय हमने क़ब्र के चारों ओर कंटीले तारों की बाड़ लगा दी थी। पता नहीं उसे किसने उखाड़ दिया?
सैलानी अफ़सर के चेहरे से निगाहें हटाना चाहता था। अफ़सर को लगा, वह घाटी का निरीक्षण करना चाहता है। उसने सैलानी का हाथ पकड़कर अपनी ओर मुख़ातिब किया और आँखों में आँखें डालकर बोला, “आप देख रहे हैं, कितनी शर्मनाक हालत है?”
सैलानी ने कोई जवाब नहीं दिया। अफ़सर ने उसे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ देना उचित समझा और टाँगें फैलाकर, कूल्हों पर हाथ रखकर रेत के विस्तार को देखने लगा। कुछ ही पलों के बाद उत्साहित होकर फिर कहने लगा, “कल जब कमांडेंट ने आपको आमंत्रित किया, मैं आपके बिलकुल पास खड़ा था। मैं तभी समझ गया था कि उसका असली निशाना कहाँ है? उसमें मेरे ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की शक्ति तो है, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। उसकी योजना है कि आपके फैसले का मेरे विरुद्ध उपयोग करे। एक विख्यात विदेशी का निर्णय! उसने अपना गणित बहुत चतुराई से बिठाया है। इस द्वीप में आपका दूसरा दिन है। आपको हमारे पूर्व कमांडेंट और उनके तौर-तरीक़ों की कोई जानकारी नहीं। आप यूरोप के उदारवादी विचारों में संस्कारित हुए हैं और सिद्धांतत: मृत्युदंड के ख़िलाफ़ हैं, विशेष रूप से ऐसे यांत्रिक मृत्युदंड के। इसके अलावा आपने यह भी देखा है कि हमारे पास जन-समर्थन नहीं। एक जर्जर और रूढ़ अनुष्ठान! जिसे हम एक पुराने और जर्जर यंत्र के सहारे संपन्न करते हैं। इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए क्या यह संभव नहीं कि आपको मेरे तौर-तरीक़े न पसंद आएँ। (कमांडेंट की सोच यही है। अगर ऐसा होगा तो आप उससे छिपाएँगे भी नहीं, क्योंकि आप ऐसे व्यक्ति हैं, जिसे अपने निष्कर्षों पर विश्वास होता है। आप तरह-तरह के लोगों से मिलते हैं और उनका सम्मान करते हैं। अत: आप हमारे काम के प्रति कोई वैसा कठोर रुख़ न अपनाएँ, जैसा अपने देश में करते। लेकिन कमांडेंट को उसकी ज़रूरत भी नहीं। मेरे ख़िलाफ़ आपका कोई मामूली-सा नुक़्ता, कोई असावधान-सी टिप्पणी ही उसके लिए काफ़ी होगी। वह आपसे छिपे हुए सवाल पूछेगा। उसकी महिलाएँ कान खड़े किए, आपको घेरकर बैठ जाएँगी और आप कुछ इस तरह बोल रहे होंगे, “हमारे देश की न्याय-व्यवस्था आपसे भिन्न है या हमारे यहाँ दंड से पहले अभियुक्त को सफ़ाई देने का अवसर दिया जाता है या हमारे देश में मध्य युग के बाद यातना देना बंद है।” इस तरह के जुम्ले, जो आप जैसे व्यक्ति के लिए बिलकुल स्वाभाविक है। निरीह-सी टिप्पणियाँ, जो हमारे तौर-तरीक़ों पर कोई निर्णय नहीं देतीं। लेकिन कमांडेंट पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी, इसका अंदाज़ा मैं लगा सकता हूँ। वह कुर्सी से उठकर बालकनी की ओर लपकेगा। उसके पीछे चीख़ती हुई उसकी महिलाएँ। मैं उसके स्वर की कल्पना कर सकता हूँ, जिसे स्त्रियाँ घन-गर्जना के विशेषण से विभूषित करती हैं। वह कहेगा, एक प्रसिद्ध पश्चिमी पर्यटक ने, जिसे संसार के तमाम देशों की न्याय व्यवस्थाओं के अध्ययन के लिए भेजा गया है, अभी-अभी कहा है कि हमारी पुरानी न्याय व्यवस्था अमानवीय है। इतने महत्वपूर्ण अन्वेषी के इस फ़ैसले के बाद आदेश देता हूँ कि आज से...” बाद में आप इसका खंडन कर सकते हैं कि आपने ऐसी कोई बात नहीं कही, कि आपने हमारी न्याय-व्यवस्था को अमानवीय नहीं, बल्कि अत्यंत मानवीय और मानवीय गरिमा के अनुकूल बताया है और आप मेरे यंत्र के प्रसंशक हैं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। आप बालकनी तक कभी नहीं पहुँच सकेंगे, क्योंकि वहाँ स्त्रियों की भीड़ होगी। आप लोगों का ध्यान खींचने के लिए चिल्लाना चाहेंगे तो किसी महिला की हथेली आपका मुँह बंद कर देगी। और मैं और हमारे स्वर्गीय कमांडेंट हमेशा के लिए दफ़न हो जाएँगे।
सैलानी ने अपनी मुस्कुराहट को दबाया। जिस काम को वह इतना मुश्किल समझ रहा था, वह वास्तव में कितना आसान है। “आप मेरे प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर आँक रहे हैं, “ सैलानी ने कहा। “कमांडेंट ने मेरे काग़ज़-पत्र देखे हैं। वे जानते हैं कि मैं न्याय-व्यवस्था का विशेषज्ञ नहीं। मेरी व्यक्तिगत राय का कोई असर उन पर होगा, इसका सवाल ही नहीं। लेकिन जैसा कि आपने बताया है, यहाँ की न्याय-व्यवस्था पर उनका पूरा अधिकार है और वे आपके विचारों के विरुद्ध हैं। ऐसी हालत में मुझे भय है कि आपकी परंपरा का अंत निकट है।”
क्या अफ़सर की समझ में कुछ आया? नहीं! वह एक शब्द भी नहीं समझा। उसने सिर को झटका देकर सिपाही और क़ैदी की ओर देखा। इस पर क़ैदी और सिपाही ने चावलों से हाथ हटा लिए, जो वे खा रहे थे, फिर वह सैलानी के पास जाकर धीरे से बोला, “आप कमांडेंट को नहीं जानते। आप भले ही एक बाहरी आदमी हों, आपकी राय को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया जा सकता। जब मुझे पता चला कि आप हमारे दर्शक होकर आ रहे हैं, तो मुझे ख़ुशी हुई थी।
यह काम कमांडेंट ने मेरे विरुद्ध एक चाल के रूप में किया है। लेकिन मैं उसका पाँसा पलटकर इससे ख़ुद फ़ायदा उठाऊँगा। आपने मेरा स्पष्टीकरण सुन लिया है, यंत्र देख चुके हैं और दंड-प्रक्रिया देखने जा रहे हैं। आप अपने निष्कर्षों पर पहुँच चुके होंगे। कुछ शंकाएँ होंगी तो सज़ा देने का ढंग देखकर दूर हो जाएँगी। आपसे एक अनुरोध है—कमांडेंट के खिलाफ़ मेरी मदद कीजिए।”
“मैं कैसे कर सकता हूँ!” सैलानी ने चीख़कर कहा, “मैं न तो आपकी मदद कर सकता हूँ, न ही आपको रोक सकता।”
“तुम कर सकते हो,” अफ़सर ने उत्तेजित होकर कहा। सैलानी ने डरते देखा कि अफ़सर की मुट्ठियाँ भिंची हुई थीं। “आप कर सकते हैं,” अफ़सर ने आग्रह के साथ दोहराया, “मेरी एक योजना है, जिसके असफल होने का सवाल ही नहीं। अगर आपके ख़याल से आपका कोई महत्व नहीं, तो भी क्या? क्या एक महान परंपरा को बचाने के लिए छोटे-मोटे प्रयत्न नहीं किए जाने चाहिए? मेरी योजना यों है—पहली बात तो ये कि आपने जो कुछ यहाँ देखा, उसके बारे में कम-से-कम बताएँ। वह भी तभी, जब आपसे पूछा जाए। आपके जवाब बहुत संक्षिप्त और आम हो, बहस तो बिलकुल नहीं। फिर भी यदि आपको अपने ऊपर नियंत्रण न हो तो मरे ख़िलाफ़ कठोर शब्दों का प्रयोग करें। मैं नहीं कहता कि आप झूठ बोलें, सिर्फ़ नपे-तुले जवाब दें। जैसे—हाँ, मैंने आपकी दंड-व्यवस्था देखी है, सिर्फ़ इतना। लेकिन हो सकता है कि बीच में आपका सब्र टूट जाए, जबकि कमांडेंट से ऐसी कोई उम्मीद नहीं। ये ज़रूर होगा कि वह आपके शब्दों की मनमानी व्याख्या करेगा, ग़लत अर्थ निकालेगा। मेरी योजना इसी पर निर्भर है। कल उसके सभापतित्व में कॉलोनी के वरिष्ठ अधिकारियों की मीटिंग होने जा रही है। कमांडेंट ने मीटिंग को सार्वजनिक रूप दे रखा है। सभा-भवन में एक गैलरी बनवा दी है, जो दर्शकों से भरी रहती है। मुझे उसके भाषणों से ऊब होती है, लेकिन मुझे उपस्थित होने का आदेश है। आपको उस मीटिंग में ज़रूर बुलाया जाएगा। लेकिन अगर किसी रहस्यमय कारण से नहीं भी बुलाया जाता, तो आप निमंत्रण की माँग करें, जो आपको दिया ही जाएगा। तो कल आप इस समय कमांडेंट के बॉक्स में उसकी सुंदर स्त्रियों के साथ बैठे होंगे। वह आपकी ओर बार-बार आश्वस्त भाव से देख रहा होगा। कुछेक महत्वहीन और मज़ाकिया मामलों के बाद, (जो सिर्फ़ जनता पर प्रभाव जताने के लिए उठाए जाते हैं और ज़्यादातर बंदरगाह के बारे में होते हैं) यहाँ की न्याय-व्यवस्था पर बहस छिड़ जाएगी। अगर कमांडेंट इस मुद्दे को नहीं उठाएगा, तो मैं उठाऊँगा। मैं अपनी कुर्सी से खड़ा होकर घोषित करूँगा कि आज एक मृत्युदंड संपन्न हुआ है। इस पर कमांडेंट हमेशा की तरह दोस्ताना मुस्कुराहट के साथ आभार प्रकट करेगा। इसके बाद वह अपने को इस स्वर्णावसर से फ़ायदा उठाने से रोक नहीं पाएगा। वह कहेगा, ‘अभी-अभी सूचित किया गया है’ या इसी आशय के कोई दूसरे शब्द, ‘आज एक मृत्युदंड दिया गया है।’ इस पर मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा, ‘एक विश्वविख्यात अंवेषी ने इसका अवलोकन किया है। जैसा कि आप सबको विदित है, उन्होंने हमारे यहाँ आकर हमारे द्वीप को सम्मानित किया है। उनकी उपस्थिति से हमारी आज की सभा का महत्त्व कई गुना बढ़ गया है। क्या ऐसे अवसर पर हमें इस विश्वविख्यात अंवेषी से अपनी न्याय-प्रणाली पर कोई राय नहीं लेनी चाहिए? मैं देख रहा हूँ कि मेरे प्रस्ताव का ज़ोरदार स्वागत हो रहा है।’ इसके बाद कमांडेंट आपके आगे सम्मान से झुकेगा और फिर बोलना शुरू कर देगा, तो मैं इस सभा की ओर से आपसे पूछता हूँ कि...’ इस समय आप बॉक्स के किनारे आ जाएँ और अपने हाथों को वहाँ रखें, जहाँ से उन पर निगाह रख सकें, वर्ना कमांडेंट की महिलाएँ आपकी उँगलियों को दबाना शुरू कर देंगी। मैं नहीं सोच पाता, उस क्षण के तनाव को कैसे बर्दाश्त करूँगा? इसके बाद आप बोलना शुरू कर दें। बोलते वक़्त झिझकिएगा मत। पूरी दृढ़ता से अपना निर्णय सुनाइए। लेकिन शायद यह चीज़ आपके चरित्र से मेल नहीं खाती। आपके मुल्क में ऐसे काम दूसरे तरीक़ों से किए जाते हैं। तो फिर आप ऐसा करें कि कुछ शब्द धीरे से बुदबुदाएँ, जिन्हें सिर्फ़ आपके नीचे बैठे हुए अधिकारी भर सुन सकें। दंड-व्यवस्था के पक्ष में कोई जनमत नहीं, इसकी चर्चा न करें। यंत्र के आवाज़ करने वाले चक्के, टूटे हुए पट्टे या गन्दे डॉट का भी कोई ज़िक्र नहीं, यह काम मैं करूँगा। और विश्वास मानिए कि मेरे आरोपों से घबराकर कमांडेंट अगर सभा भवन छोड़कर नहीं भागा तो घुटने टेककर इतना कहने को ज़रूर मजबूर हो जाएगा कि ‘हे पूर्व कमांडेंट! मैं तुझे सिर झुकाता हूँ।’ तो मेरी योजना यह है। क्या आप मेरी मदद करेंगे?” अफ़सर ने सैलानी के दोनों हाथ जकड़ लिए और लंबी साँसें भरता हुआ उसके चेहरे को देखने लगा।
सैलानी अनुभवी व्यक्ति था। उसे शुरू से ही कोई दुविधा नहीं थीं। वह निडर और सम्मानित आदमी था। फिर भी उसे सिपाही और क़ैदी के सामने कुछ कहने में झिझक हुई।
“नहीं!” सैलानी ने कहा। कहने के बाद गहरी साँस ली। अफ़सर ने कई मर्तबा पलकें झपकाई।
“बताऊँ कि क्यों नहीं?” सैलानी ने पूछा। अफ़सर ने गर्दन हिला दी।
“मैं आपके तरीक़ों का समर्थन नहीं करता। पहले, जब आपने मुझे विश्वास में लिया, मैं तय नहीं कर पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए? मैं दख़लंदाजी करूँ या नहीं? अगर करूँ, तो उसमें सफलता मिलेगी या नहीं। लेकिन अब मेरी समझ में आ गया है कि मुझे किसके पास जाना चाहिए, कमांडेंट के पास? लेकिन इससे मेरा इरादा दृढ़ नहीं हुआ, बल्कि इसके विपरीत आपकी ईमानदारी और निष्ठा ने मुझे गहरे छुआ है। हालाँकि इससे मेरे विचार बिल्कुल प्रभावित नहीं।”
कुछ पलों के लिए अफ़सर चुप रहा, फिर यंत्र की ओर बढ़ गया। उसने पीतल की रॉड को हिलाया। फिर डिज़ाइनर में झाँककर देखा। इस बीच सिपाही और क़ैदी में समझौता हो चुका था। क़ैदी के इशारे पर सिपाही उसके ऊपर झुका हुआ था। क़ैदी फुसफुसाहट में कुछ कह रहा था, सिपाही सिर हिला रहा था। सैलानी ने अफ़सर के पास जाकर कहा, “मैं कमांडेंट को अपनी राय बताऊँगा, लेकिन अकेले में, और मैं यहाँ किसी सभा के लिए कल रुकूँगा नहीं। सुबह चला जाऊँगा।” ऐसा नहीं लगा कि अफ़सर ने कुछ सुना।
“तो आख़िर आपको हमारी दंड-व्यवस्था ठीक नहीं लगी?” बुदबुदाने के बाद अफ़सर कुछ उसी तरह मुस्कुराया, जैसे कोई बुर्जुर्ग किसी की बचकानी हरक़त पर मुस्कुराता है और मुस्कुराहट के पीछे अपनी सोच जारी रखता है।
“तो आख़िरकार समय आ गया!” अफ़सर ने कहा और सैलानी की ओर देखा। उसकी आँखें चमक रही थीं।
“समय! किस बात का समय?” सैलानी ने बेचैनी से पूछा। अफ़सर ने कोई उत्तर नहीं दिया।
“अब तुम आज़ाद हो,” अफ़सर ने क़ैदी से उसकी भाषा में कहा। क़ैदी को विश्वास नहीं हुआ।
“तुम्हें आज़ाद किया जाता है,” अफ़सर ने दोहराया।
क़ैदी का चेहरा चमकने लगा। जो कुछ वह सुन रहा है, क्या सच है? या अफ़सर की कोई सनक, जो कुछ देर बाद बदल जाएगी? क्या विदेशी ने इससे उसके प्राणों की भीख माँग ली है। जो भी हो, क़ैदी आज़ाद होना चाहता था। दरांती में जिस सीमा तक गुंजाइश थी, उसने संघर्ष शुरू कर दिया।
“तुम मेरे पट्टे तोड़ दोगे,” अफ़सर ने डपटकर कहा, “चुपचाप पड़े रहो। हम खोल रहे हैं।” सिपाही को संकेत करने के बाद उसने क़ैदी को खोलना शुरू कर दिया। क़ैदी को हँसी आ रही थी। उसने पहले अफ़सर को देखा, फिर सैलानी को, फिर सिपाही को।
“इसे बाहर निकालो,” अफ़सर चीख़ा। सुइयों की वजह से इस काम में विशेष सावधानी की ज़रूरत थी। क़ैदी ने बेसब्री में अपनी पीठ को खुरच लिया था। इसके अंत तक अफ़सर ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
अफ़सर तेज़ी से सैलानी के पास आया। जेब से ब्रीफ़केस निकाला और अंदर के काग़ज़ को इधर-उधर किया। अंत में एक काग़ज़ निकालकर सैलानी के सामने फैलाता हुआ बोला, “इसे पढ़ो!”
“मैं नहीं पढ़ सकता, पहले ही कह चुका हूँ।”
“और पास से देखो,” अफ़सर सैलानी के एकदम क़रीब आ गया, दोनों एकसाथ देख सकें। इससे भी बात नहीं बनी तो कनिष्ठ उँगली के संकेत से एक-एक अक्षर पढ़कर बताया, “लिखा है—’न्याय पर अडिग रहो’ अब आप पढ़ सकते हैं।”
सैलानी काग़ज़ पर झुक गया। इस डर से कि कहीं वह काग़ज़ को छू न ले, अफ़सर ने काग़ज़ परे हटा लिया।
“हो सकता है, मुझे आपका विश्वास है।”
“तब ठीक है,” अफ़सर ने आंशिक संतुष्ट होते हुए कहा और हाथ में काग़ज़ लिए हुए यंत्र की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। उसने काग़ज़ को डिज़ाइनर में डाल दिया। फिर चक्कों का क्रम बदलने लगा। यह काफ़ी मेहनत का काम था। कुछ देर के लिए तो वह डिज़ाइनर में बिलकुल ही गुम हो गया।
सैलानी नीचे से लगातार उसकी मेहनत को देख रहा था। उसकी गर्दन अकड़ गई थी। धूप से आँखें चौंधिया गई थीं। इस समय क़ैदी और सिपाही दूसरे काम में जुटे हुए थे। सिपाही ने बंदूक़ पर लगे चाक़ू से क़ैदी के कपड़े क़ब्र के बाहर निकाल लिए थे। कमीज़ बुरी तरह गंदी हो गई थी। क़ैदी उसे बाल्टी के पानी से धो रहा था। जब उसने अपने कपड़े पहने तो दोनों को हँसी आ गई। कमीज़ और पतलून दोनों पीछे से फटे हुए थे। क़ैदी को लगा, सिपाही का मनोरंजन होना चाहिए। वह अपने फटे कपड़ों में सिपाही के सामने गोल-गोल नाच रहा था। सिपाही ज़मीन पर बैठा, हथेली से घुटनों को ठोंकता हुआ हँसी से दोहरा हो रहा था।
एक बार फिर अफ़सर ने हर पुर्ज़े को बारीकी से परखा। डिज़ाइनर को, जो हमेशा खुला रहता था, बंद किया। फिर क़ैदी की ओर देखा। उसे संतोष हुआ कि उसने कपड़े पहन लिए हैं। फिर हाथ धोने के लिए बाल्टी की ओर बढ़ गया। बाल्टी का पानी गंदला हो गया था। अफ़सर के चेहरे पर अफ़सोस उभरा। अंत में उसने अपने हाथ गर्म रेत में ठूँस दिए। इससे उसे तक़लीफ़ हुई, लेकिन बचने का कोई उपाय नहीं था। इसके बाद वह अपनी जगह पर अकड़कर खड़ा हो गया। वर्दी की जैकेट के बटन खोलते समय दोनों जनाने रुमाल उसके हाथों पर आ गिरे।
“तुम्हारे रुमाल, अफ़सर ने कहा और रुमालों को क़ैदी की ओर उछाल दिया। स्पष्टीकरण के तौर पर सैलानी से कहा, “कमांडेंट की महिलाओं की सौगात!”
हालाँकि अफ़सर को जल्दी थी, फिर भी उसने वर्दी के प्रत्येक कपड़े को बड़े-बड़े जतन से उतारा। यहाँ तक कि जैकेट पर टँगी चाँदी की बेलबूटोंदार किनारी को उँगलियों से सहलाया, कुँदनों को हवा में हिलाया। लेकिन इस भावुकता का उसकी बाद की हरकतों से कोई मेल नहीं बैठता था। जैसे ही वह किसी कपड़े को उतार चुकता, उसे बड़ी निर्ममता से क़ब्र में उछाल देता। उसके शरीर पर पहनने वाली अंतिम चीज़ एक तलवार और उसकी बेल्ट थी। उसने तलवार को म्यान से बाहर निकाला, तोड़ा और टुकड़ों को क़ब्र में इतनी ज़ोर फेंका कि गिरते वक़्त तेज़ आवाजें हुईं।
अब अफ़सर मादरजाद नंगा खड़ा था। सैलानी ने होंठ काट लिए। वह समझ चुका था कि अब क्या होने जा रहा है, लेकिन अफ़सर को रोकने का उसे कोई अधिकार नहीं था। अगर उस दंड-व्यवस्था का (जिसका वह अंतिम प्रतिनिधि था और जिससे उसे इतना मोह था) अंत निकट था, तो अफ़सर एक सही काम कर रहा था। अफ़सर की जगह वह होता तो वह भी यही करता।
शुरू में क़ैदी और सिपाही की समझ में कुछ भी नहीं आया। क़ैदी रुमाल पाकर प्रसन्न था, लेकिन उसकी प्रसन्नता ज़्यादा देर तक नहीं टिकी। सिपाही ने एक अप्रत्याशित झटके से रुमालों को अपने कब्ज़े में कर लिया था। अब क़ैदी उन्हें सिपाही के बेल्ट के नीचे से निकालने की कोशिश कर रहा था। वे आपस में मज़ाकिया कुश्ती लड़ रहे थे। अफ़सर बिलकुल नंगा हो गया तो दोनों का ध्यान उसकी ओर गया। क़ैदी की समझ में आ रहा था कि उसके भाग्य में कोई बड़ा बदलाव आ रहा है। जो उसके साथ होने वाला था, अब वही शुरू से अंत तक अफ़सर के साथ होने जा रहा था। उसके लिए इसमें प्रतिशोध था। क़ैदी के चेहरे से एक चुपचाप और खिली हुई मुस्कुराहट आ चिपकी, जो अंत तक बनी रही।
अफ़सर यंत्र में प्रवेश कर चुका था। वह यंत्र से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था और देख रहा था कि अब तक वह यंत्र से किस तरह काम लेता रहा है, और यंत्र किस तरह उसकी आज्ञा का पालन करता रहा है। उसने हाथ उठाकर दरांती को चालू कर दिया। दरांती कई बार ऊपर-नीचे होती हुई उतनी ऊँचाई पर स्थिर हो गई, जितनी में अफ़सर समाता था। अफ़सर ने काँपते हुए बिस्तर के किनारे को छुआ, तभी ऊन और रूई वाला डॉट उसके मुँह में घुसने की कोशिश करने लगा। अफ़सर ने एक क्षण प्रतिवाद किया। अंत में उसे मुँह में प्रवेश कर जाने दिया। तभी क़ैदी को ख़्याल आया कि अफ़सर के हाथ-पैर खुले हुए हैं। उसने सिपाही को इशारा किया। दोनों पट्टे कसने के लिए दौड़े। इस बीच अफ़सर ने पैर से लीवर दबाकर डिज़ाइनर चालू कर दिया था। उन दोनों को देखकर उसने पैर पीछे खींच लिए ताकि पट्टे कसे जा सकें। पट्टे कसते ही यंत्र ने अपना काम चालू कर दिया। बिस्तर काँपने लगा; सुइयाँ अफ़सर के शरीर पर नाचने लगीं; दरांती ऊपर-नीचे होने लगी; सैलानी देखता रहा। तभी लगा जैसे कोई चक्का आवाज़ कर रहा हो। यंत्र चल रहा था। सैलानी का ध्यान क़ैदी और सिपाही की ओर आकृष्ट हुआ। क़ैदी ख़ुश दिख रहा था। सैलानी को उन पर ग़ुस्सा आ रहा था। वह वहाँ अंत तक ठहरना चाहता था, लेकिन उन दोनों की उपस्थिति उसे बर्दाश्त के बारह लग रही थी।
“अपने घर जाओ,” सैलानी ने कहा।
सिपाही जाने को तैयार हो गया, लेकिन क़ैदी ने इसे एक सज़ा के रूप में लिया। वह हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा, फिर घुटनों पर गिरकर गिड़गिड़ाने लगा। सैलानी ने देखा कि मौखिक आदेश से काम नहीं चलेगा। वह पास जाकर उन्हें भगाने को था कि डिज़ाइनर से तेज़ शोर उठने लगा। डिज़ाइनर का ढक्कन धीरे-धीरे उठ रहा था। डिज़ाइनर का ढक्कन उठा और एक तेज़ आवाज़ के साथ खुल गया। फिर एक चक्के के दाँत दिखना शुरू हुए। जल्द ही पूरा चक्का दिखने लगा। लग रहा था, जैसे कोई दानवी शक्ति डिज़ाइनर को भींच रही हो, जिससे अंदर के चक्कों के लिए कोई जगह न बची हो। चक्का डिज़ाइनर के सिरे तक आने तक घूमता रहा। अंत में गिरा और रेत में लुढ़कता हुआ एक जगह लेट गया। इसके बाद दूसरा चक्का। इसके बाद अनगिन बड़े, छोटे और बेहद छोटे चक्के। उस दृश्य को देखकर क़ैदी सैलानी का आदेश भूल गया। वह सिपाही की मदद से चक्कों को पकड़ना चाहता था, लेकिन पीछे लुढ़कते आते दूसरे चक्कों को देखकर डर जाता था।
सैलानी हैरान था। यंत्र विखंडित हो रहा था। सहसा उसे याद आया कि इस वक़्त उसे अफ़सर के पास होना चाहिए। जब अंतिम चक्का भी निकल चुका तो उसने दरांती के अंदर झाँककर देखा और आश्चर्य से पाया कि दरांती दिख नहीं रही थी, सिर्फ़ सुइयों को चुभो रही थी; न ही बिस्तर उलट रहा था; बल्कि दरांती की लय के साथ ऊपर-नीचे हो रहा था। सैलानी यंत्र को बंद करना चाहता था, क्योंकि यह अफ़सर द्वारा चाही गई कलात्मक मौत न होकर साफ़-साफ़ हत्या थी। उसने हाथ बढ़ाए, तभी दरांती एक तरफ़ मुड़ी। (जैसा कि अमूमन बारह घंटे के बाद होता था।) शव के सैकड़ों सूराख़ों से रक्त बह रहा था। पानी के नल ने अपना काम बंद कर दिया था। यंत्र अपने अंतिम काम को अंजाम देने में भी असफल रहा। दरांती की बड़ी-बड़ी सुइयों से बिंधा हुआ शव क़ब्र में नहीं गिरा, बल्कि रक्त दपकता हुआ अधर में झूलता रहा।
“दौड़ो! मदद!” सैलानी ने सिपाही और क़ैदी को आवाज़ दी और ख़ुद दौड़कर शव के पैर पकड़ लिए। वह चाह रहा था कि सिपाही और क़ैदी शव को सिर पकड़ लें, ताकि उसे ढीला करके क़ब्र में गिराया जा सके। सिपाही और क़ैदी तय नहीं कर पा रहे थे कि मदद करें या नहीं? क़ैदी ने तो भागने की तैयारी कर ली थी। सैलानी को उसके साथ ज़बर्दस्ती करनी पड़ी और यहीं उसको न चाहते हुए भी शव का चेहरा देखना पड़ा। अफ़सर का चेहरा वैसा ही था, जैसा जीवित अवस्था में हुआ करता था। ‘मुक्ति’—जिसका वायदा उससे किया गया था, का कोई चिन्ह उसके चेहरे पर नहीं था। यंत्र में जो दूसरों को मिला था, उसे नहीं मिला। अफ़सर के होंठ भिंचे हुए थे। उसकी खुली हुई आँखों में वही ख़ामोशी भरा विश्वास था। माथे के आर-पार एक बड़ा-सा सूजा ठुका हुआ था।
सैलानी, उसके पीछे सिपाही और क़ैदी जैसे ही कॉलोनी के सिरे के घरों के पास पहुँचे, सिपाही ने संकेत किया, “यह रहा चाय-घर!”
यह मकान के निचले तल्ले में एक गुफानुमा जगह थी, जिसकी छत और दीवारें धुएँ से काली पड़ चुकी थीं। इसमें सड़क से सीधे प्रवेश किया जा सकता था। चाय-घर कॉलोनी के दूसरे घरों (जो बेहद जर्जर हो चुके थे और कमांडेंट के महलनुमा हेड क्वार्टर तक फैले हुए थे) से भिन्न था। इससे सैलानी को पुराने युग की ताक़त का अंदाज़ा हुआ। वह क़ैदी और सिपाही के साथ टेबलों के बीच से गुज़रता हुआ चाय-घर में दाख़िल हुआ और अंदर से आती ठंडी, नम हवा में लंबी-लंबी साँसें भरने लगा।
“यहाँ हमारे पूर्व कमांडेंट दफ़न हैं,” सिपाही ने बताया।
“पादरी उन्हें चर्च के अहाते में जगह देने को तैयार नहीं था। उसमें और कमांडेंट के अनुयायियों में झगड़ा हुआ था। अंत में उन्हें यहाँ दफ़नाया गया। अफ़सर ने आपको यह इसलिए नहीं बताया, क्योंकि इस बात को लेकर वह बहुत शर्मिंदा था। उसने कई बार रात के वक़्त शव को खोद निकालने की कोशिश की, लेकिन उसे खदेड़ दिया गया।”
‘क़ब्र कहाँ पर है?” सैलानी ने पूछा।
सिपाही और क़ैदी उस तरफ़ भागे, जहाँ क़ब्र होनी चाहिए थी। वे उसे एक दीवार के पास ले गए, जहाँ कुछ ग्राहक टेबलों पर बैठे हुए थे। वे बंदरगाह पर काम करने वाले कामगार थे—छोटी, चमकीली और काली दाढ़ियों वाले लोग। उनके शरीर पर जैकेटें नहीं थी। वे सिर्फ़ फटी हुई कमीज़ें पहने हुए थे। सैलानी के आते ही वे दीवार से सटकर खड़े हो गए और टकटकी बाँधकर देखने लगे।
“कोई अजनबी है, क़ब्र देखना चाहता है,” उन्होंने आपस में फुसफुसाकर कहा।
उन्होंने एक टेबल सरकाई। टेबिल के नीचे क़ब्र का पत्थर था—एक मामूली-सा पत्थर। उस पर छोटे-छोटे अक्षरों में कुछ खुदा हुआ था। सैलानी ने झुककर पढ़ा, लिखा था—यहाँ हमारे पूर्व कमांडेंट विश्राम करते हैं। उनके अनुयायियों ने, जो अपने को प्रकट नहीं करना चाहते, यह क़ब्र खोदी और पत्थर लगाया। ऐसी भविष्यवाणी है कि कुछ वर्षों बाद कमांडेंट पुनर्जीवित होंगे और इसी जगह से अपने अनुयायियों का नेतृत्व करते हुए पुन: कॉलोनी पर विजय प्राप्त करेंगे।”
पढ़ने के बाद सैलानी उठा। उसने देखा कि उसे घेरकर खड़े लोग मुस्कुरा रहे हैं, जैसे उन्होंने भी इबारत को पढ़ा हो और उसे हास्यास्पद मान रहे हों, और सैलानी से उम्मीद कर रहे हों कि उनका समर्थन करे। सैलानी ने उनमें कुछ सिक्के बाँटे, टेबल को यथास्थान रखने की प्रतीक्षा की, और फिर चाय-घर से सीधा बंदरगाह की ओर भागा। चाय-घर में क़ैदी और सिपाही के कुछ परिचित मिल गए थे। उन्होंने उन्हें रोक लिया, लेकिन सैलानी को नदारद पाकर वे भी वहाँ से भागे। सैलानी बंदरगाह की आधी सीढ़ियाँ उतर चुका था, जब वे दौड़ते हुए उसके पीछे हो लिए। शायद वे उस पर अंतिम बार दबाव डालना चाहते थे कि उन्हें भी अपने साथ ले ले। जब सैलानी किश्ती वाले से स्टीमर तक पहुँचाने का किराया तय कर रहा था, वे सीढ़ियाँ उतर रहे थे। जब वे आख़िरी सीढ़ी पर पहुँचे तो किश्ती किनारा छोड़ रही थी। वे छलाँग लगाकर किश्ती में पहुँच सकते थे, लेकिन सैलानी ने एक मोटा गाँठदार रस्सा उठाकर उन्हें डराया और इस तरह उन्हें छलाँग लगाने से रोक दिया।
- पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 136)
- संपादक : ममता कालिया
- रचनाकार : फ्रांज काफ़्का
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 2005
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