यह एक कहानी है। लंबी कहानी, उपन्यास की हद से ज़रा पहले ख़त्म होती हुई। चार साल पहले लिखी गई इस कहानी ने काफ़ी धक्के खाए। वैसे ही जैसे कुछ ज़रा लंबे या नाटे, ज़ियादा हँसने या चुप रहने वाले, मतिमंद या तेज़ लोग अपने घर में अपैथी और उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं। कारण कुछ और होते हैं नज़र कुछ और आते हैं। किसी ने कहा बेहद लंबी है, किसी ने कहा कि इसका कोई नायक नहीं है, ज़ियादातर ने कुछ नहीं कहा।
दोस्त अशोक पांडे और मेरे महबूब कथाकार योगेन्द्र आहूजा ने पढ़ा। कुछ सुझाव दिए। मैंने कुछ हिस्से फिर से लिखे। अब इसे आप सबके सामने धारावाहिक प्रस्तुत किया जा रहा हैं। पढ़िए...। इसे होली का एक रंग माना जाए।
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छवि जिसे फ़ोटो समझती थी, दरअसल एक दुःस्वप्न था। रास्ते में चलते-चलते अक्सर उसे प्रकाश के हाथों में एक चेहरा दिखता था और उसके पीछे अपने दोनों हाथ सीने पर रखे, कुछ कहने की कोशिश करती एक बिना सिर की लड़की...।
प्रकाश जिसे सपना जानता था, एक फ़ोटो थी जो कभी भी नींद की घुमेर में झिलमिला कर लुप्त हो जाती थी—रात की झपकी के बाद जागते, अलसाए घाट, लाल दिखती नदी और सुबह का साफ़ आसमान है। एक बहुत ऊँचे झरोखेदार बुर्ज के नीचे सैकड़ों नंगी, मरियल, उभरी पसलियों वाली कुलबुलाती औरतों के ऊपर काठ की एक विशाल चौकी रखी है। उस डोलती, कंपकंपाती चौकी पर पीला उत्तरीय पहने उर्ध्वबाहु एक क़द्दावर आदमी बैठा है जिसके सिर पर एक पुजारी ताँबे के विशाल लोटे से दूध डाल रहा है। चौकी के एक कोने पर मुस्तैद खड़े एक मुच्छड़ सिपाही के हाथों में हैंगर से लटकी एक कलफ़ लगी वर्दी है जो हवा में फड़फड़ा रही है। थोड़ी दूर समूहबद्ध, प्रसन्न बटुक मंत्र बुदबुदाते हुए चौकी की ओर अक्षत फेंक रहे हैं।
इस फ़ोटो और सपने को एक दिन, पूरी शक्ति के साथ टकराना ही था और शायद सबकुछ नष्ट हो जाना था। मृत्यु हमेशा जीवन के बिल्कुल पास घात लगाए दुबकी रहती है लेकिन जीवन के ताप से सुदूर लगती है। यह दिन भी उन दोनों से बहुत दूर-बहुत पास था।
फ़ोटोजर्नलिस्ट प्रकाश जानता था कि यह सपनों की फ़ोटो है जो कभी नहीं मिलेगी लेकिन इसी अंतर्वस्तु की हज़ारों तस्वीरें उन दिनों गलियों, घाटों, सड़कों और मंदिरों के आसपास बिखरी हुई थी, जिनमें से एक को भी वह क़ायदे से नहीं खींच पाया। सब कुछ इतनी तेज़ी से बदल रहा था कि कैमरा फोकस करते-करते दृश्य कुछ और हो चुका होता था और अदृश्य सामने आ जाता था। लगता था पूरा शहर किसी तरल भंवर में डूबता-उतराता चक्कर खा रहा है।
लवली त्रिपाठी की आत्महत्या
धर्म, संस्कृति और ठगी के पुरातन शहर बनारस में सहस्त्राब्दि का पहला जाड़ा वाक़ई अजब था। हाड़ कंपाती, शीतलहर में लोग ठिठुर रहे थे लेकिन घुमावदार, संकरी, अँधेरी गलियों में और भीड़ से धँसती सड़कों पर नैतिकता की लू चल रही थी। लू के थपेड़ों से समय का पहिया उल्टी दिशा में दनदना रहा था।
नैतिकता की इस लू के चलने की शुरुआत यूँ हुई कि सबसे पहले एक कुम्हलाती पत्ती टूट कर चकराती हुई ज़मीन पर गिरी।
उस दिन के अख़बार के ग्यारहवें पन्ने पर सी. अंतरात्मा के मोहल्ले के एक घर की ब्लैक एंड व्हाइट, डबल कालम फ़ोटो छपी। आधा ईंट-आधा खपरैल वाले घर के दरवाज़े के बग़ल में अलकतरे से एक लंबा तीर खींचा गया था, जिसके नीचे लिखा था, ‘यह कोठा नहीं, शरीफ़ों का घर है।’ तीर की बनावट में कुछ ऐसा था जैसे खुले दरवाज़े की ओर बढ़ने में वह हिचकिचा रहा हो और शरीफ़ों में छोटी इ की मात्रा लगी थी। घर के आगे एक भैंस बंधी थी जो आतुर भाव से इस लिखावट को ताक रही थी। फ़ोटो के नीचे इटैलिक, बोल्ड अक्षरों में कैप्शन था—‘ताकि इज़्ज़त बची रहेः बदनाम बस्ती में आने वाले मनचले अब पड़ोस के मुहल्लों के घरों में घुसने लगे हैं। लोगों ने अपनी बहू बेटियों के बचाव का यह तरीक़ा निकाला है। महुवाडीह में इन दिनों क़रीब साढ़े तीन सौ नगर-वधुएँ हैं।’
सी. अंतरात्मा ही प्रकाश को लेकर वहाँ गए थे। दोनों को अफ़सोस था कि अंदर के पेज पर काले-सफ़ेद में छापकर इतने अच्छे फोटों की हत्या कर दी गई है।
काशी की संस्कृति के गलेबाज़ कहा करते थे कि यहाँ के अख़बार आज भी बहन-बेटी का संबंध बनाए बिना वेश्याओं तक की चर्चा नहीं करते। यह आचार्य चतुरसेन के ज़माने की भाषा की जूठन बची हुई थी। वे अपहरण को बलान्नयन, बलात्कार को शीलभंग, पुलिस की गश्त को चक्रमण और काकटेल पार्टी को पान—गोष्ठी लिखते थे। धोती वाले संपादक ही नहीं प्रूफ़ रीडर, पेस्टर, टाइपराइटर और टेलीप्रिंटर भी विदा हो चुके थे लेकिन सूट के नीचे जनेऊ की तरह अख़बरों के व्यक्तित्व में ये शब्द छिपे हुए थे, और कई लक्षणों के साथ इस भाषा से भी अख़बारों की आत्मा की थाह मिलती थी।
रोज़ की तरह उस दिन भी बयालीस साल के संवाददाता सी. अंतरात्मा अपनी खटारा स्कूटर से जिसके आगे पीछे की नंबर प्लेटों के अलावा स्टेपनी पर भी लाल रंग से प्रेस लिखा था, शाम को चीरघर गए। लाशों का लेखा-जोखा उनका रूटीन असाइमेंट था। उन्होंने चौकीदार को चाय पिलाई, एक बीड़ा पान खिलाया, ख़ुद भी जमाया और काग़ज़ क़लम निकालकर इमला घसीटने लगे। मर्चुरी में उस दिन आई लाशों के नाम, पते, मृत्यु का कारण और कुछ क़िस्से नोट कर दफ़्तर लौट आए। उन्होंने रिपोर्टिंग-डेस्क से पुलिस के भेजे क्राइम बुलेटिन का पुलिंदा, निंदा, बधाई, चुनाव, मनोनयन, की विज्ञप्तियाँ बटोरीं और अख़बार के सबसे उपेक्षित कोने में जाकर बैठ गए। रात साढ़े दस तक वह मारपीट, चेन छिनैती, स्मैक बरामदगी, आलानक़ब और प्रथम सूचना रपट दर्ज की सिंगल कॉलम ख़बरें बनाते रहे। ग्यारह बजे क्राइम रिपोर्टर को ये ख़बरें सौंपकर वे सीनियरों को पालागन के दैनिक राउंड पर निकलने ही वाले थे कि उसने पूछा, ‘यह लवली त्रिपाठी कौन हैं जानते हैं?’
‘सल्फास खाकर आई थी, किसी अफ़सर की बीबी है, पोस्टमार्टम तुरंत हो गया अब तो दाह संस्कार भी हो चुका होगा।’ उन्होंने बताया।
‘और यह रमाशंकर त्रिपाठी, आईपीएस कौन है?
उन्होंने सिर खुजलाया। मतलब था, आप ही बताइए कौन हो सकते हैं।
क्राइम रिपोर्टर बमक गया, अरे बुढ़ऊ रात ग्यारह के ग्यारह बज रहे हैं। चार घंटे से चूतड़ के नीचे डीआईजी की बीबी की आत्महत्या की ख़बर दबाए बैठे हो और अब सिंगल कालम दे रहे हो। कब सुधरोगे। कब डेवलप होगी, कब जाएगी, यह कब छपेगी। सी. अंतरात्मा की घुन्नी आँखें चमकीं, ज़रा ज़ोर से बोले हम क्या जानें, हम तो समझे थे कि आपको पहले से पता होगा। प्रकाश ने भी जानकारी दी कि अंतिम संस्कार की फ़ोटो भी है, तीन बजे मणिकर्णिका घाट पर हुआ था।
कोई जवाब देने के बजाय रिपोर्टर ने लपककर ख़ाली पड़े एक टेलीफ़ोन को गोद में उठा लिया। पौन घंटे तक सिपाही, दरोग़ा, ड्राइवर, नर्सिंग होम की रिसेप्शनिस्ट की मनुहार करने के बाद उसने पूरा ब्यौरा जुटा लिया। ख़बर का इंट्रो कम्प्यूटर में फ़ीड करने के बाद उसने सी. अंतरात्मा को बुलवाया जो दफ़्तर के बाहर पान की दुकान पर अपनी मुस्तैदी और क्राइम रिपोर्टर की चूक की शेख़ी बघार रहे थे। उसने उनकी ड्यूटी रात डेढ़ बजे तक के लिए डीआईजी के बंगले के बाहर लगा दी। अंतरात्मा जानते थे कि बंगले बाहर अब कुछ नहीं मिलना है, इसलिए उन्होंने जी भईया जी कहा और अपने घर चले गए।
डीआईजी की बीबी सुंदर थी, सोशियोलाइट थी, शहर की एक हस्ती थी। उसने भरी जवानी में आत्महत्या क्यों की। इसके बारे में सिर्फ़ क़यास थे। एक क़यास यह था कि डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी के अवैध संबंध किसी महिला पुलिस अफ़सर से थे, जिसके कारण उसने जान दे दी। लेकिन इस क़यास को किसी ने गॉसिप के कालम में भी लिखने की हिम्मत नहीं की, डर था कि तूफ़ान से भी तेज़ रफ़्तार उन जीपों की शामत आ जाएगी जो रात में अख़बार लेकर दूसरे जिलों में जाती थीं। तब पुलिस अवैध ढंग से सवारी लादने के आरोप में उनका चालान करती, थाने में खड़ा कराती। एक घंटे की भी देर होती तो सेंटर तक पहुँचते-पहुँचते अख़बार रद्दी काग़ज़ हो जाता। प्रतिद्वंद्वी अख़बारों की बन आती। ऐसे समय क्राइम रिपोर्टर को ही पुलिस के बड़े अफ़सरों से चिरौरी कर जीपें छुड़ानी पड़ती थीं। मोटी तनख़्वाह पाने वाले किसी कॉरपोरेटिया मैंनेजर के पास इस देसी हथकंडे से निपटने का कोई ऊपाय नहीं था।
लवली त्रिपाठी, छवि की क्लाइंट थी जिसे वह अपनी दोस्त कहना पसंद करती थी। छवि यूनिवर्सिटी से ब्यूटीशियन का कोर्स करने के बाद अपने बूढ़े, बीमार पिता के असहाय विरोध के बावजूद घर के एक कमरे में व्यूटी पार्लर चलाती थी। डीआईजी की पत्नी से उसकी मुलाक़ात यूनिवर्सिटी की एक मेंहदी एंड फ़ेशियल कंपटीशन में हुई थी जिसकी वह चीफ़ गेस्ट थीं। अक्सर लवली त्रिपाठी के घर जाने के कारण वह जानती थी कि उसका सोशियोलाइट होना पति की उपेक्षा से त्रस्त आकर, दिन काटने की मजबूरी थी क्योंकि डीआईजी ने कह रखा था कि वह जहाँ चाहे मुँह मार सकती है या जब चाहे मर सकती है। लवली की दोस्त बनने की प्रक्रिया में छवि को एक नए तरह के फ़ेशियल का आविष्कार करना पड़ा जिससे घूँसों से बने नील और तमाचों के निशान ख़ूबसूरती से छिपाए जा सकते थे। वह लगातार प्रकाश से कह रही थी कि अपराध की फ़र्ज़ी कहानियाँ रचने के माहिर डीआईजी ने ही लवली की हत्या की है और उसे फाँसी मिलनी चाहिए।
प्रकाश और छवि के तीन साल पुराने प्यार में लवली त्रिपाठी अक्सर तनाव लेकर आती थी जिसके झटके से वह आगे बढ़ता था। प्रकाश को लगता था कि लवली जैसी संपन्न, निठल्ली औरतों के प्रभाव में आकर ही वह कहा करती है कि वह प्रेस फ़ोटोग्राफ़ी छोड़कर मॉडलों के फ़ोटो खींचे और फ़ैशन-फ़ोटोग्राफ़र बन जाए तभी उसकी कला की क़द्र होगी और पैसे भी कमा पाएगा। छवि जानती थी कि यह सुनकर उसके भीतर के जर्नलिस्ट उर्फ़ वाच डॉग को किलनियाँ लगती हैं, तब यह सलाह आती है कि अगर वह तमाचों के निशान छिपाने की मेकअप कला का पेटेंट करा ले तो करोड़ों महिलाएँ उसकी क्लाइंट हो जाएँगी और टूटते परिवारों को सुंदर और सुखी दिखाने के अपने हुनर के कारण वह इतिहास में अमर हो जाएगी। समझौता यहाँ होता था कि कृपा करके अपनी-अपनी सलाहें उन बच्चों के लिए बचा कर रखीं जाएँ जो भविष्य में पैदा होने हैं और अभी इस तरह से प्यार किया जाए कि वे पैदा न होने पाएँ।...क्योंकि शादी होने में अभी देर है।
प्रकाश के पास एक लवली त्रिपाठी की एक सहेली थी जो डीआईजी और उसके झगड़ों की प्रत्यक्षदर्शी थी और खुलेआम डीआईजी की फाँसी की माँग भी कर सकती थी। लेकिन प्रकाश उसे किसी जोखिम में नहीं डालना चाहता था। उसने भी और पत्रकारों की तरह अपने प्रोफ़ेशन और निजी जीवन को अलग-अलग जीना सीख लिया था क्योंकि दोनों का घालमेल इस नाज़ुक से रिश्ते को तबाह कर सकता था। फिर भी छवि को दुखी, परेशान देखकर उसने वादा किया कि इस मामले में सच सामने लाने के लिए उससे जो बन पड़ेगा ज़रूर करेगा।
बिना पुख़्ता सबूत के हाथ डालना ख़तरनाक था। लेकिन इस सनसनीख़ेज़ मुद्दे को छोड़ा भी तो नहीं जा सकता था। इसलिए रिपोर्टरों को लवली त्रिपाठी के मायके दौड़ाया गया, उसकी सहेलियों को कुछ याद करने के लिए उकसाया गया, समाजसेवियों को उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर रौशनी डालने के लिए कहा गया। प्रकाश ने एक स्टूडियो से डीआईजी की फ़ैमिली अलबम की कुछ पुरानी तस्वीरों का जुगाड़ किया। कुछ चर्चित आत्महत्याओं का ब्यौरा जुटाया गया और लच्छेदार शब्दों में ह्यूमन एँगिल समाचार कथाओं का सोता पन्नों से फूट निकला। समाचार चैनलों पर भी यही कुछ, ज़रा ज़ियादा मसालेदार ढंग से आ रहा था।
आप कौन सा मसाला खाती थीं मेम साहेब
एक हफ़्ते बाद सिर मुड़ाए डीआईजी का बयान आया कि यह आत्महत्या नहीं, महज़ एक दुर्घटना थी। उनकी पत्नी पान मसाले की शौक़ीन थीं। बिजली जाने के बाद अँधेरे में उन्होंने पान मसाला के धोखे में, घर में पड़ा सल्फ़ास खा लिया था। साथ ही ख़बर आई कि लवली त्रिपाठी के पिता ने डीआईजी पर अपनी बेटी को प्रताड़ित करने व आत्महत्या के लिए उकसाने का मुक़दमा किया है और अदालत जाने वाले हैं।
क्राइम रिपोर्टर यह ख़बर फ़ीड कर रहा था और सी. अंतरात्मा पान का चौघड़ा थामे पीछे खड़े थे तभी एक चपरासी कंप्यूटर की स्क्रीन देखते हुए ख़ुद से कहने लगा, ‘आप कौन सा मसाला खाती थीं मेम साहेब। सल्फ़ास की गोली उँगली जितनी मोटी होती है और पान मसाला एकदम चूरा। ग़ज़ब हैं आप जो सूई के छेद से ऊँट पार करवा रही हैं।’
अचानक डीआईजी के ससुर ने सारी परिस्थितियों पर ग़ौर करने और सदमे पर क़ाबू पाने के बाद अपनी एफ़आईआर वापस ले ली। उन्होंने भी अपनी बेटी की मौत को अँधेरे में हुई दुर्घटना मान लिया। पुलिस ने इस मामले की फ़ाइल बंद कर दी और डीआईजी लंबी छुट्टी पर चले गए।
जानते बूझते मक्खी निगलनी पड़ी थी। रुटीन की संपादकीय बैठकों में कभी नहीं आने वाले प्रधान संपादक आए, उनसे नीचे के स्थानीय, असोसिएट और समाचार संपादकों ने रिपोर्टरों को झाड़ा कि वे एकदम काहिल, कामचोर और धंधेबाज़ हैं। उन्हें अख़बार की कम, अफ़सरों से अपने संबंधों की चिंता ज़ियादा है, इसीलिए वे अपने ढंग से तथ्य और सबूत खोजकर लाने के बजाय पुलिस की कहानी सुनकर संतुष्ट हो गए। रिपोर्टरों में संपादकों की झाड़ सुनने और बहाने गढ़ने की अद्भुत क्षमता होती हैं। ये बहाने अख़बार की गति से उपजते हैं। उन्हें पता होता है कि बहानों समेत यहाँ सब कुछ अगले दिन पुराना, बासी, व्यर्थ हो जाता है। उन्होंने एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। हर दिन नई घटनाएँ और नई ख़बरें थी, कौन एक लवली त्रिपाठी को याद रखता।
एक महीने बाद, डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी छुट्टी से लौटे तो बिल्कुल बदल गए थे। वे दफ़्तर में आरती के इलेक्ट्रानिक दीपों से सज्जित मैहर देवी की तस्वीर के आगे माथे पर त्रिपुंड लगाकर बैठने लगे। शहर के कई मठों, मंदिरों में जाना बढ़ गया और साधु-संत रोज़ दफ़्तर और घर में फेरा डालने लगे। उनका एकरस, खाकी कार्यालय अचानक रंगीन और सुगंधित हो गया। उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृति में शहर के मुख्य चौक गोदौलिया पर एक प्याऊ लगवाया। शहर में उसकी स्मृति में बेसहारा महिलाओं और बच्चों के लिए दो-तीन संस्थाएँ बन चुकी थीं। जिनके संरक्षक धर्मरक्षक रमाशंकर त्रिपाठी थे। धर्मरक्षक की उपाधि उन्हें इन संस्थाओं के प्रमुखों ने दी थी। छुट्टी के दौरान उन्होंने पुलिस की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए सामान्य ज्ञान की एक किताब लिखी थी। इस किताब में कंप्यूटर का पहला उपयोग यह बताया गया था कि यह उपकरण सफल दांपत्य में सहायक है क्योंकि यह विवाह के पूर्व कुंडली एवं नक्षत्रों के मिलाने और कालगणना के काम आता है। इस किताब को सभी थानेदार अपने-अपने हलक़ों में बुक स्टालों पर कोटा बाँधकर बिकवा रहे थे।
सारा पसीना नौकरी चलाने वाली रुटीन ख़बरों के लिए बहाया जाता है, बड़ी ख़बरें अपने आप चलकर अख़बारों, चैनलों तक आती हैं। वे परस्पर विरोधी स्वार्थो के टकराहट से चिनगारियों की तरह उड़ती, भटकती रहती है और एक दिन बुझ जाती हैं। एक शाम एक बीमा कंपनी का एक मरियल सा क्लर्क तथ्यों और सबूतों के साथ ख़बर लाया कि पुलिस ने भले ही मामला दाख़िल दफ़्तर कर दिया हो लेकिन बीमा कंपनी इसे दुर्घटना नहीं मानती। लवली त्रिपाठी की मौत के कारणों की जाँच एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी से कराई जा रही है। डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी ने ससुर के हलफ़िया बयान के साथ अपनी पत्नी के बीमे की बीस लाख की रक़म के लिए दावा किया था। जिसके तुरंत बाद यह जाँच शुरू हुई थी।
प्रकाश को यह बूढ़ा कभी-कभार एक सस्ते बार में मिला करता था और दो पैग के बाद पीछे पड़ जाता था कि वह एक पॉलिसी ले ले ताकि उसे बीमा एजेंट बेटे का टॉरगेट पूरा हो सके। प्रकाश उससे हमेशा यही कहता था कि फोकट की दारू पीने वाले उस जैसे पत्रकारों को इतने पैसे नहीं मिलते कि वे बीमा का प्रीमियम भर सकें लेकिन कई साल बाद भी बूढ़े ने अपनी रट नहीं छोड़ी।
पुष्टि की गई तो ख़बर बिल्कुल सही थी। लेकिन बीमा कंपनी का कोई अधिकारी इस ख़बर के साथ अपना नाम देने को तैयार नहीं था। वह मरियल क्लर्क ऐसी ख़बर लाया था जिसे वाक़ई स्कूप कहते हैं, दो दिन की पड़ताल और स्पेड वर्क के बाद उसे छापना तय किया गया। लेकिन जिस दिन ख़बर कंपोज़ हुई, पता नहीं कैसे लीक होकर डीआईजी तक जा पहुँची फिर मोबाइल फोनों की तरंगें ख़बर की गर्दन पर लिपटने लगी। डीआईजी ने राजधानी में एक मंत्री और फिर पुलिस महानिदेशक को कातर भाव से सैल्यूट बजाया। इन तीनों ने अख़बार के दो डाइरेक्टरों को मुंबई फ़ोन लगाया। डाइटेक्टरों के आपस में बात की फिर प्रधान संपादक को तलब किया। प्रधान ने स्थानीय संपादक को फ़ोन किया। स्थानीय ने अस्सिटेंट को असिस्टेंट ने न्यूज़ एडीटर को, न्यूज़ एडीटर ने ब्यूरो चीफ़ को ब्यूरो चीफ़ ने सिटी चीफ़ को ख़बर रोकने के लिए आदेश दिया। इतनी सीढ़ियों से लुढ़कती यह आशंका आई कि यह ख़बर आपसी स्पर्धा में किसी बीमा कंपनी ने इस बीमा कंपनी को बदनाम करने के लिए प्लांट कराई है। इसलिए इसे कुछ दिन तक रोककर स्वतंत्र ढंग से जाँच-पड़ताल की जाए। प्रकाश के पास मणिकर्णिका घाट की ज़मीन पर बैठकर सिर मुड़ाते डीआईजी की फ़ोटो भी थी, जिसका कैप्शन ‘सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े’ उसने पहले से ही तय कर रखा था लेकिन ओले अब फ़ोटो से बाहर छिटक कर कहीं और पड़ रहे थे।
उसी शाम बुर्क़े में चेहरा ढके एक अधेड़ औरत लगातार पान चबाते एक किशोर के साथ तीन घंटे से दफ़्तर के बाहर खड़ी थी। वह एक ही रट लगाए थी कि उसे अख़बार की फ़ैक्ट्री के मालिक से मिलना है। दरबान से उसे कई बार समझाया कि यह फ़ैक्ट्री नहीं है और यहाँ मालिक नहीं, संपादक बैठते हैं, वह चाहे तो उनसे जाकर मिल सकती है। औरत जिरह करने लगी कि ऐसा कैसे हो सकता है कि अख़बार का कोई मालिक ही न हो और उसे तो उन्हीं से मिलना है। आते-जाते कई रिपोर्टरों ने उससे पूछा कि उसकी समस्या क्या है लेकिन वह कुछ बताने को तैयार नहीं हुई। रट लगाए रही कि उसे मालिक से मिलना है। काम भी कुछ नहीं है, बस सलाम करके लौट जाएगी। सी. अंतरात्मा की की नज़र उस पर पड़ी तो देखते ही भड़क गए, ‘तुम यहाँ कैसे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई प्रेस में आने की, भागो चलो यहाँ से। हद है अब यहाँ भी...।’ घबराई हुई वह औरत लड़के का हाथ पकड़कर तेज़ी से निकल गई। वह सी. अंतरात्मा के मोहल्ले की औरत थी और वे उसे अच्छी तरह पहचानते थे।
प्रकाश इस तरह हाथ में आई कामयाबी के हताशा में बदल जाने के खेल का आदी थी। वह उस नज़रबंद को पहचानने लगा था कि जिससे के चलते बीसियों स्कैंडल, घोटाले और रहस्य ऐसे थे जो सबको पता थे लेकिन नज़रअंदाज़ किए जाते थे। उन पर दिमाग़ लगाने को अबोध, लौंडपन समझा जाता था लेकिन आज उसे समझ नहीं आ रहा था कि छवि को कैसे समझाएगा। सॉरी, मैं तुम्हारी दोस्त के लिए कुछ नहीं कर पाया के जवाब में आँसुओं से रूंधी आवाज़ में छवि ने कहा, ये अख़बार और चैनल मदारी की तरह ख़ुद को सच का ठेकेदार क्यों बताते हैं। साफ़ कह क्यों नहीं देते कि उन्हें डीआईजी जैसे ही लोग चलाते हैं।
लंबी चुप्पी के बीच 'सत्य का मदारी' को कई बार उसने थूक के साथ गुटका। वह सोच रहा था कि क्या सचमुच उसके फैशन फ़ोटोग्राफ़र बनने का समय आ गया है कम से कम तब उसे उन भ्रमों से तो छुटकारा मिल जाएगा जो उसे कभी-कभार सच साबित हो कर उसका रास्ता रोक लेते हैं। अचानक छवि ने कहा कि चलो तुमने मरने के बाद ही सही लवली से चिढ़ना तो बंद कर दिया लेकिन फ़ोटोग्राफ़ी के बहाने मॉडलो के बीच रासलीला के मंसूबे मत पालो। प्रकाश चौंक गया कि किस सटीक तरीक़े से वह उसके सोचने के ढंग को ट्रैक करने लगी है।
मठ, खंजन चिड़िया, मिस लहुराबीर
डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी के भव्य, फ़ोटोजेनिक, रिटायर्ड आईएएस पिता परिवार की प्रतिष्ठा, बेटे के कैरियर की चिंता के आवेग से मठों, अन्नक्षेत्रों और आश्रमों की परिक्रमा करने लगे। बनारस में ब्रिटिश ज़माने के भी पहले से अफ़सरों और मठों का रिश्ता टिकाऊ, उपयोगी और विलक्षण रहा है। कमिश्नर, कलेक्टर, कप्तान आदि पोस्टिंग के पहले दिन काशी के कोतवाल कालभैरव के आगे माथा नवाकर मदिरा से उनका अभिषेक करते हैं। जो दुनियादार, चतुर होते हैं वे तुरंत किसी न किसी शक्तिपीठ में अपनी आस्था का लंगर डाल देते हैं, क्योंकि वहाँ अहर्निश परस्पर शक्तिपात होता रहता है।
इन शक्तिपीठों में देश भर के ‘हू इज़ हू’ नेता, उद्योगपति, व्यापारी, माफ़िया, मंत्री भक्त या शिष्य के रूप में आते हैं और वे अपने गुरुओं के लिए कुछ भी करने को आतुर रहते हैं। अफ़सरों की तरक़्क़ी, तबादला, विरोधियों का सफ़ाया, ख़ुफ़िया जाँच रपटों का निपटारा सारे काम गुरुओं के एक संकेत से हो जाते हैं। इसके बदले वे महंतों, ज्योतिषाचार्यों, तांत्रिकों, वास्तुशास्त्रियों और प्राच्यविद्या के ज्ञाताओं की इच्छाओं को आदेश मानकर पालन करते हैं क्योकि वह प्राणिमात्र के कल्याण के लिए किया गया धार्मिक कार्य होता है। नौकरशाही और धर्म का यह संबंध अरहर और चने के पौधों जैसा अन्योनाश्रित है। दोनों एक दूसरे को पोषण, समृद्धि और जीवन देते हैं। छोटे-मोटे संत की मान्यता पा चुके उस वक़्त के कमिश्नर ने एक मठ को अपना कैंप कार्यालय बना लिया था और सरकारी ओदश के अनुपालन में बनारस को विश्व धरोहर घोषित करने की अर्जी यूनेस्को में डाल रखी थी जिसकी पैरवी के लिए वे हर महीने अमेरिका जाते थे। मठ में आने वाले विदेशियों, प्रवासी भारतीयों, उद्योगपतियों और सेठों को व महंत की कृपा से काशी के विकास में धन लगाने के लिए प्रेरित कर एक अरब से अधिक रुपया इकट्ठा कर चुके थे। यह काम आज तक कोई अधिकारी नहीं कर पाया था।
जिनसे मान्यता, गरिमा और शक्ति मिलती है, शक्तिपीठें उन्हें अपने क़रीब और क़रीब बुलाती हैं। धर्म की छतरी के नीचे यहाँ, आधुनिक और पुरातन, वैराग्य और ऐश्वर्य, धंधे और अध्यात्म, सहजता और तिकड़म ईश्वर की उपस्थिति में इस कौशल से आपस में घुल मिल जाते हैं कि कहीं कोई जोड़ नज़र नहीं आता। जो जितने शक्तिशाली और संपन्न दिखते हैं उनकी आत्मा उतनी ही खोखली और असुरक्षित होती जाती है। ऐसे लोगों को अभय और आश्वस्ति का नैतिक संबल देने वाला यह शहर बनारस चुंबक की तरह खींचता है। भौतिक चीज़ों की कामना करते, दुखी साधारण लोग इन शक्तिपीठों को आस्था देते हैं और बदले में सूखा आशीर्वाद पाते हैं। यह खाँटी आध्यात्मिक लेन-देन होता है। शक्तिशाली लोगों के आस्था निवेदित करते ही यह लेन-देन भौतिक हो जाता है और वे इन शक्तिपीठों के सबसे सुरक्षित गोपन रहस्यों में बराबर के साझीदार हो जाते हैं।
यूँ ही ईश्वर ने फ़ुर्सत के एक दिन डीआईजी के भव्य फ़ोटोजेनिक, बूढ़े बाप की आर्त पुकार सुन ली। अक्टूबर के महीने में अचानक खंजन चिड़ियाँ छतों पर फुदकने लगीं और अख़बार के चितकबरे पन्नों पर स्टोरी सीरिज़ ‘कहानी बदनाम बस्ती की’ नाचने लगी।
नैतिकता के सन्निपात में डूबते-उतराते दो रिपोर्टर, गाईड सी. अंतरात्मा के पीछे-पीछे घूमते हुए मंड़ुवाडीह, शिवदासपुर के मोहल्लों और गाँवों को खंगालने लगे। ख़बरें छपने लगीं कि नगर वधुओं के कारण आसपास के मोहल्लों की लड़कियों की शादियाँ नहीं हो या रही हैं, कईयों के तलाक़ हो चुके हैं, कई मायके आने को तरस रही हैं, भाइयों की कलाईयाँ और सावन के झूले सूने पड़े हैं। लोग गाँव, मोहल्ले का नाम छिपाकर रिश्ते जोड़ने की चालाकी करते हैं लेकिन असलियत पता चल ही जाती है। तब मंडप उखड़ते हैं, बारात लौटती है। बत्तीस साल की बीए पास सरला को शादी के नाम से नफ़रत हो गई है और अब उसे द्वाराचार के गीत सुनकर हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हैं। शिवदासपुर में पान की दुकान लगाने वाले राजेश भारद्वाज की शादी पाँच बार टूटी, छठी बार जौनपुर के त्रिलोचन महादेव मंदिर में चोरी से विवाह हुआ, पोल खुल गई। लड़की की विदाई रोककर, कहीं और शादी कर दी गई। नाते-रिश्तेदार हालचाल लेने तक गांव में नहीं आ सकते, उन्हें दलाल जबरन कोठों में खींच ले जाते हैं, वेश्याएँ-भडुए-गुंडे उनका मालमत्ता छीन लेते हैं। जान बचा कर निकले तो पुलिस घड़ी-अंगूठी बटुआ छीन लेती है। शर्म के मारे किसी से कुछ कह भी नहीं सकते। शाम ढलते ही शराबी घरों में घुसकर बहू बेटियों के हाथ पकड़कर खींचने लगते हैं। यह कि जलालत से बचने के लिए लोग अपने मकान औने-पौने बेचकर भाग रहे हैं। कई तो अपने घर वैसे ही ख़ाली छोड़कर शहर के दूसरे इलाक़ों में किराए के मकानों में रहने लगे हैं। अख़बार के पन्नों पर काले अक्षरों में इन लाचार लोगों की पीड़ा और उनके बीच की ख़ाली सफ़ेद जगह में वेश्याओं के प्रति नफ़रत छलछला रही थी। ख़बरों को विश्वसनीय बनाने के लिए प्रकाश को ढेरों ढहती खपरैल वाले, भुतहे मकानों की फ़ोटों खींचनी पड़ी जो वैसे भी रहने के लायक़ नहीं रह गए थे।
तो बहनों, धंधा बंद
मंड़ुवाडीह के आसपास के गाँवों—मोहल्लों से लोकल नेताओं के बयान और अफ़सरों के पास ज्ञापन आने लगे कि वेश्याओं को वहाँ से तुरंत हटाया नहीं गया तो वे आंदोलन करेंगे। आंदोलन से प्रशासन नहीं सुनता तो वे ख़ुद खदेड़ देंगे। रातों रात कई नए संगठन बन गए, राजनीति के कीचड़ में कुमुदिनी की तरह अचानक उभरी एक सुंदर और गदबदी महिला नेता स्नेहलता द्विवेदी आस-पास के इलाक़ों का दौरा कर औरतों को गोलबंद करने लगीं। उनका कहना था कि वे जान दे देंगी लेकिन काशी के माथे से वेश्यावृत्ति का कलंक मिटाकर रहेंगी। कई रात बैठकें और सभाएँ करने के बाद वे एक दिन कई गाँवों की महिलाओं को लेकर कचहरी के सामने की सड़क पर धरने पर बैठ गईं। तैयारी लंबी थी, यह धरना पहले क्रमिक फिर महीनों चलने वाले आमरण-अनशन में बदल जाने वाला था।
डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी के खिचड़ी बालों की खूँटियों में कंधी फेरने के दिन आने में अभी देर थी लेकिन वह दुर्लभ क्षण सामने था। अपने धार्मिक पिता की इच्छा पूरी करने और अपनी दाग़दार छवि धुलने का सही समय आ गया था। अचानक एक दिन वे लाव-लश्कर के साथ दोपहर में मंडुवाडीह बस्ती पहुँचे और सबको बुलाकर ‘आज से धंधा बंद’ का फ़रमान सुना दिया। उन्होंने सरकार की ओर से ऐलान किया, धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी के माथे पर वेश्यावृत्ति का कलंक बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वेश्याएँ शहर छोड़ दें। उनके जाते ही मंड़ुवाडीह की बदनाम बस्ती से गुज़रने वाली सड़क के दोनों छोरों पर पुलिस पिकेट लगा दी गई। शामों को बस्ती की तरफ़ लपकने वालों की ठुकाई होने लगी। नियमित कस्टमर सड़कों के किनारे मुर्ग़ा बने नज़र आने लगे। जो सिपाही रोज़ कोठों पर मुँह मारते थे, उनके मुँह लटक गए। थाने के बूढ़े दीवान ने ख़िज़ाब लगाना बंद कर दिया। घुँघरूओं की खनक, रूप की अदाएँ, पियक्कड़ों की बकबक, दलालों का कमीशन और पुलिस का हफ़्ता सब हवा हो गए। मंडुवाडीह के कर्फ़्यू जैसे माहौल में अख़बार काजल और लिपिस्टिक से ज़ियादा ज़रूरी चीज़ हो गया।
अख़बार के सर्कुलेशन में हल्का उछाल आया। उस हफ़्ते अख़बार की स्टियरिंग कमेटी की मीटिंग में यूनिट मैंनेजर ने अपनी रिपोर्ट पेश की कि इस स्टोरी सीरीज का लोगों और प्रशासन पर ज़ोरदार असर हुआ है। धार्मिक संस्थाओं के विज्ञापनों का फ़्लो भी बढ़ा है। इसे जारी रखा जानी चाहिए।
सी. अंतरात्मा अख़बार के उपेक्षित कोने से उठाकर सबसे चौड़ी डेस्क पर लाए गए और अचानक अपने व्यक्तित्व की दीनता को तिरोहित कर बेधड़क, व्यास की भूमिका में आ गए। वे अपने पड़ोस के मोहल्ले की दिनचर्या, आयोजनों, झगड़ों, अर्थशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र पर धारा प्रवाह, थोड़ा इतराते हुए बोलते जाते। प्रेस के सबसे बेहतरीन, वरिष्ठ लिक्खाड़ उसे लिपिबद्ध करते जाते। प्रकाश ने उन्हें वेश्या-विशेषज्ञ की उपाधि दी लेकिन उसी क्षण, उसके भीतर विचार आया कि दुर्बल अंतरात्मा भूखे साँड़ों को चारा खिला रहे हैं, जैसे ही उनका पेट भरेगा वे उन्हें हुरपेट कर खदेड़ देंगे। अंतरात्मा की जानकारियों में वह सब भी अनायास शामिल हो गया जो कुछ ये लिक्खाड़ बचपन से वेश्याओं के बारे में सुनते, जानते और अपनी कल्पना से जोड़ते आए थे।
कोठों का एक रंगारंग धारवाहिक तैयार हुआ, जिसका लुब्ब-ए-लुबाब यह था कि ज़ियादातर वेश्याएँ बहुत अमीर, सनकी और कुलीन हैं। कई शहरों में उनकी कोठियाँ, बग़ीचे, कारें, फ़ार्म हाउस और बैकों में लॉकर हैं। वे चाहें तो यह धंधा छोड़कर कई पीढ़ियों तक बड़े आराम से रह सकती हैं लेकिन हर शाम एक नए इश्क़ की आदत ऐसी लग गई है कि वे यह धंधा नहीं छोड़ सकतीं। एक तरफ़ कार्टूनों, इलेस्ट्रेशनों और सजावटी टाइप फेसेज़ से सजा यह रंगीन धारावाहिक था तो दूसरी तरफ़ रूटीन की तथ्यात्मक रिपोर्टें थीं, जिनकी शुरुआत इस तरह होती थी, ‘डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी की पवित्र काशी को वेश्यावृत्ति के कलंक से मुक्त कराने की मुहिम रंग ला रही है, आज चौथे दिन भी धंधा, मुजरा दोनों बंद रहे। अब तक कुल छियालीस लोगों को बदनाम बस्ती में घुसने की कोशिश करते पकड़ा गया। इनमें से ज़ियादातर को जानकारी नहीं थी कि धंधा बंद हो चुका है। आइंदा इधर नहीं आने की चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
डीआईजी के इस पुण्य काम की चारों ओर प्रशंसा हो रही थी। अख़बारों के दफ़्तरों में संगीतमय, संस्कृतनिष्ठ नामों वाले अखिल जंबूद्वीप विद्धत परिषद, हितकारिणी परिषद, जीव दया हितकारिणी समिति, मानव कल्याण मंडल, स्त्री प्रबोधिनी पुष्करणी, काशी गौरव रक्षा समिति, पराहित सदाचार न्यास, वेद-ब्रह्मांड अध्ययन केंद्र आदि पचासों संगठनों की ‘साधु-साधु’ का निनाद करती विज्ञप्तियाँ बरसने लगीं। कहीं न कहीं हर दिन उनका सम्मान और अभिनंदन को रहा था। सी. अंतरात्मा अब इस धन्यवाद से टपकते पुलिंदे को संक्षिप्त करने दोपहर बाद बैठते और देर रात तक निचुड़ कर घर जाते। उनके लिए अलग से आधा पेज तय करना पड़ा क्योंकि यह संपादकीय नीति थी कि सभी विज्ञप्तियाँ और दो-तीन प्रमुख लोगों के नाम ज़रूर छापे जाएँ। जिसका नाम छपेगा, वह अख़बार ज़रूर ख़रीदेगा।
तीस साल बाद इतिहास ख़ुद को दुहरा रहा था। तब बदनाम बस्ती शहर के बीच दालमंडी में हुआ करती थी। बस्ती नहीं, तब उन्हें तवायफ़ों के कोठे कहा जाता था। वहाँ तहज़ीब थी, मुजरा था, उनके गाए ग्रामोफ़ोन के रिकार्ड थे, किन्हीं एक बाईजी से एक ही ख़ानदान की कई पीढ़ियों के गुपचुप चलने वाले इश्क़ थे। यहीं से कई मशहूर फ़िल्म अभिनेत्रियाँ और क्लासिकी गाईकाएँ निकलीं जिनके भव्य वर्तमान में हेठा अतीत शालीनता से विलीन हो चुका है। वहाँ ज़मींदार, रईस और हुक्काम आते थे। ज़मींदारी और रियासतें जा चुकी थीं फिर भी कोठे की वह तहज़ीब गिरती, पड़ती विद्रूपों के साथ बहुत दिन घिसटती रही। सत्तर के दशक में भयानक ग़रीबी और लड़कियों की तस्करी के कारण वहाँ भीड़ बहुत बढ़ गई। जिन गलियों में रईसों की बग्घियाँ खड़ी होती थी वहाँ लफ़ंगे हड़हा सराय के मशहूर चाकू लहराने लगे। लोगों के विरोध के कारण तवायफ़ों को शहर की सीमा पर मंड़ुवाडीह में बसा दिया गया।
तवायफ़ों के जाने के बाद वहाँ चीन और बांग्लादेश से आने वाले तस्करी के सामानों का चोर बाज़ार बस गया। अब वहाँ नक़ली सीडी का सबसे बड़ा बाज़ार है। इलेक्ट्रानिक्स के विलक्षण देशी इंजीनियर इन दिनों वहाँ मिलते हैं, जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है लेकिन कबाड़ से किसी भी देश की किसी भी मल्टीनेशनल कंपनी के मोबाइल, सीडी प्लेयर, कैमरे और म्युजिक सिस्टम तैयार करके बेचते हैं। अब तक वेश्यावृत्ति एक सुसंगठित, विशाल व्यापार बन चुकी थी। मंड़ुवाडीह में ग़ज़लें, दादरा और टप्पे सुनना तो दूर गेंदे के फूल की एक पत्ती तक नहीं बिकती थी। वहाँ सिर्फ़ निर्मम धंधा होता था जहाँ कारख़ानों के मज़दूरों से लेकर रिक्शेवाले तक ग्राहक थे। ग्लोबल दौर के प्लास्टिक मनी वाले रईसों को अब हाथ में गजरा लपेट कर धूल, सीलन और कूड़े से बजबजाती बदनाम बस्ती में जाने की क़तई ज़रूरत नहीं थी। उन्हें अपनी पसंद के रंग, साइज़ और भाषा की कालगर्लें होटलों, फ़ार्महाउसों और ड्राइंगरूमों में ही मिल जाती थीं। इनमें से कई अपने क़स्बों, शहरों या प्रदेश की सुंदरी प्रतियोगिताओं की विजेता थीं। मिस लहुराबीर से लेकर मिस नार्थ इंडिया तक बस एक फ़ोनकॉल की दूरी पर सजी-धजी इंतिज़ार करती रहती थीं।
घुँघरू और बुलडोज़र
धंधा बंद होने के एक हफ़्ते बाद, डीआईजी रामशंकर त्रिपाठी का क़ाफ़िला फिर मंड़ुवाडीह पहुँचा। आगे उनकी बिल्कुल नई हरे रंग की जिप्सी थी। पीछे खड़खड़ाती जीपों में कई थानों के प्रभारी और लाठियों, राइफ़लों से लैस सिपाही थे। सबसे पीछे एक रिक्शे पर माइक और दो भोंपू बंधे हुए थे। शाम को जब यह लाव-लश्कर वहाँ पहुँचा तो मकानों की बत्तियाँ जल चुकी थी। आसमान पर छाते कुहरे के धुँधलके में बदनाम बस्ती के दोनों तरफ़ भरे पानी के गड्ढों के पार एक-एक बुलडोज़र रेंग रहे थे। कोई कंस्ट्रक्शन कंपनी इस खलार ज़मीन को पटवा रही थी। कुहरे में हिचकोले खाते बुलडोज़र बस्ती की तरफ़ बढ़ते मतवाले हाथियों की तरह लग रहे थे।
एक जीप के बोनट पर मुश्किल से चढ़ पाए एक तुंदियल सिपाही ने माइक से ऐलान किया, ‘मानव-मंडी के सभी बाशिंदे फ़ौरन यहाँ आ जाएँ, डीआईजी साहब उनसे बात करेंगे, उनकी समस्याएँ सुनेंगे और उनका निदान करेंगे।’ मंड़ुवाडीह थाने में मानव-मंडी बाक़ायदा एक बीट थी और एक रजिस्टर में वहाँ रहने वाले सभी लोगों के नाम पते और अतीत दर्ज था। नए आने और जाने वालों का रिकार्ड भी उसमें रखा जाता था। रेड लाइट एरिया के देसी विकल्प के रूप में सब्ज़ी मंडी, गल्ला मंडी, बकरा मंडी के तर्ज़ पर रखा गया यह नाम कितना सटीक था। मानव देह ही तो बिकती थी, वहाँ। चेतावनी की लालबत्ती जलती तो कभी देखी नहीं गई। नगर वधुओं को बुलाने के लिए सिपाहियों का एक जत्था बस्ती में घुस गया। थाने के ये वे सिपाही थे जो इन मकानों की एक-एक ईंट को जानते थे। वेश्याओं ने सोचा था कि धंधा बंद कराना, पुलिस की हफ़्ता बढ़वाने की जानी पहचानी क़वायद है। आमतौर पर थानेदार एक आध कोठे पर छापा डालता, दो चार दलालों से लप्पड़-झप्पड़ करता। कोई लड़की पकड़ कर थाने पर बिठा ली जाती और तय-तोड़ हो जाता था। लेकिन डीआईजी ख़ुद दूसरी बार आए थे। उन्हें अंदाज़ा हो गया था कि इस बार मामला गंभीर है।
सबसे पहले बच्चे आए। उनके साथ एक युवक आया, जिसने दो साल पहले उन्हें पढ़ाने के लिए बस्ती में स्कूल खोला था। बच्चे उसे मास्टर साहब कहते थे। पीछे बस्ती के दुकानदार, साज़िंदे, भड़ुए, सबसे बाद में वेश्याएँ आईं। इतनी भीड़ हो गई कि उसमें अचानक गुम हो गए डीआईजी की फ़ोटो खींचने के लिए प्रकाश को एक मकान की छत पर चढ़ना पड़ा। भीड़ के बीच छोटे से घेरे में, चार पाँच बूढ़ी औरतें और उनकी नक़ल करते बच्चे, बलैया लेते हुए, गिड़गिड़ाते हुए, नाटकीय ढंग से डीआईजी के पैरों की तरफ़ लपक रहे थे। सिपाही उन्हें डाँटते हुए आगे बढ़ते, वे उनसे पहले ही तपाक से वापस अपनी जगह चले जाते थे। एक चाय की दुकान से लाए गए बेंच पर, हाथों में माइक थामकर डीआईजी खड़े हुए तो सन्नाटा खिंच गया। बस्ती के किनारों पर रेंगते बुलडोज़रों की गड़गड़ाहट फिर सुनाई पड़ने लगी। उन्होंने कहा ‘भाईयों और बहनों।’ बहनों के ‘ओं’ में जैसे कोई चुटकुला छिपा था, भीड़ हँसने लगी, वेश्याएँ हँसते-हँसते एक दूसरे पर गिरने लगीं।
उन्होंने गला साफ़ करके कहीं दूर देखते हुए कहना शुरू किया, प्रशासन को मानव मंडी के बाशिंदों की समस्याओं का पूरा ध्यान है, वेश्यावृत्ति ग़ैर-क़ानूनी है इसलिए उस पर सख़्ती से रोक लगा दी गई है। मंड़ुवाडीह थाने में अलग से एक सेल खोला गया है। आप लोग वहाँ जाकर सरकारी लोन के लिए आवेदन करें। आप लोगों को छूट के साथ, कम ब्याज़ पर भैंस, सिलाई-मशीन, अचार-पापड़ का सामान दिलाया जाएगा। अपना रोज़गार शुरू करें, जो काम करने के लायक़ नहीं हैं, उन्हें नारी संरक्षण गृह भेज दिया जाएगा ताकि आप लोग यह बेइज़्ज़ती का पेशा छोड़कर सम्मान के साथ...। सरकार के नारी संरक्षण गृह का नाम सुनकर वेश्याएँ फिर आपस में ठिठोली करने लगी। डीआईजी ने अपने फालोअर को डपटा, जाओ पता करो, वे क्या कह रही हैं। फालोअर थोड़ी देर वेश्याओं के बीच जाकर हँसता रहा लेकिन पलटते ही उसका चेहरा पहले की तरह सख़्त हो गया। लौटकर अटेंशन की मुद्रा में खड़ा होकर बोला, ‘सर, कहती हैं फ़्री में समाज सेवा नहीं करेंगे।’
डीआईजी समझ नहीं पाए, वेश्याओं ने सिपाही से कहा था कि संरक्षण गृह जाने से बेहतर तो जेल है क्योंकि वहाँ फ़्री में समाज सेवा करनी पड़ती है। कुछ दिन पहले संरक्षण गृह में संवासिनी कांड हुआ था। वहाँ की सुपरिटेडेंट नेताओं, अफ़सरों और अख़बारी भाषा में सफ़ेदपोश कहे जाने वाले लोगों को लड़कियाँ सप्लाई करती थीं। जब यह मामला खुला तो एक के बाद एक मारकर पाँच लड़कियाँ ग़ायब कर दी गईं। ये वे लड़कियाँ थी जिन्होंने मुँह खोला था। इन दिनों सीबीआई इस मामले की जाँचकर रही थी।
भीड़ के पीछे एक बुढ़िया ग़श खाकर गिर पड़ी थी। झुर्रियों से ढके उसके चेहरे पर सिर्फ़ बेबस खुला मुँह दिखाई दे रहा था। एक मरियल औरत बैठकर आँचल से उसे हवा करते हुए गालियाँ दे रही थी, करमजले, मिरासिन की औलाद...मार डाला बेचारी को... जब जवानी थी तब यही पुलिस वाले रोज़ नोंचने आ जाते थे। कसबिन की ज़ात अब चौथेपन भैंस चराएगी... पेड़ा बनाएगी। कोई जाकर पूछे मरकीलौना से रंडी के हाथ का कौन पापड़ खाएगा, कौन दूध पिएगा, कौन कपड़ा पहिनेगा...यह सब, हम लोगों से घर-बार छीनकर भीख मँगवाने का इंतिज़ाम है और कुछ नहीं... शहर छोड़कर चले जाओ, जैसे हम हाथ पकड़ कर लोगों को घर से बुलाने जाते हैं। लोगों को ही क्यों नहीं मना कर देते कि यहाँ न आया करें। जो हमें भगाने के लिए धरना देकर बैठे हैं, वही कहीं और जाकर क्यों नहीं बस जाते। हमें कौन अपने पड़ोस में बसने देगा। यहाँ की तरह वहाँ भी छूत नहीं लगेगी क्या?
यह बुढ़िया अकेली रहती थी। उसने सबेरे से कुछ खाया पिया नहीं था। सुबह से ही वह दोनों छोरों तक घूम-घूम कर आंदोलन करने वालों को गालियाँ बक रही थी। उसके दो बेटे थे जो कहीं नौकरी करते थे। चोरी छिपे साल-दो साल में मिलने आ जाते थे। सबके सामने उसे वे अपनी माँ भी नहीं कह सकते थे।
लड़की लाना बंद करो दाज्यू
पीछे हंगामा देखकर सिपाही उधर लपके तभी न जाने कहाँ से एक अधेड़ नेपाली औरत झूमते हुए आकर डीआईजी के पीछे खड़ी हो गई। उसके बाल खुले थे, साड़ी धूल में लिथड़ रही थी, वह पीकर धुत्त थी। अगल-बग़ल की औरतें उसे खींच रही थी। अचानक वह चिल्लाने लगी और उसके गालों पर गंदले आँसू बहने लगे, ‘आस्तो न गर बड़ा साहब... आस्तो न गर दाज्यू.. अपाना हुकुम माथे पर लिया।’
डीआईजी चौंक कर पीछे घुमें तो उसने हाथ जोड़ लिए, ‘साहेब, मेरा साहेब। पहले यहाँ नई लड़की लोग का लाना तो बंद करो साहेब! हम लोग ख़ुद तो नहीं आया साहेब... बहुत बड़ा-बड़ा लोग लेकर आता है। नेपाल से, बंगाल से, ओड़िसा से... हर नई लड़की पीछे थाना को पैंतीस हज़ार पूजा दिया जाता है। पुराना का तो घर है, बाल-बच्चा है, बूढ़ा होके नहीं तो बीमारी से मर जाएगी। लेकिन नया लड़की आता रहेगा तो यहाँ का आबादी बढ़ता जाएगा। जहाँ से लड़की आता है, रास्ते भर सरकार को बहुत रुपया मिलता है।’
सिपाही उसे चुप कराने लपके तो उचक कर उसने एक की टोपी झटक ली और उसी से ख़ुद को पीटने लगी। मानो जिस सबसे बुरी होनी की आशंका हो, उसे ख़ुद अपने हाथों घटित कर देना चाहती हो, वह उन्माद में बड़बड़ाए जा रही थी, ‘मारेगा हमको, मारेगा... काट डालेगा... और जास्ती क्या कर लेगा। यहाँ से कोई नहीं जाएगा... जहाँ जाओ, वहीं से भगाता है। कितना भागेगा... यहीं मर जाएगा। लेकिन अब कहीं नहीं जाएगा। डीआईजी हाथ में माइक लिए भौंचक ताकते रह गए। उन्होंने कई बार नाराज़ होकर सुनिए, सुनिए की अपील की लेकिन हुल्लड़ में उधर किसी का ध्यान ही नहीं गया। सिपाही ने उससे टोपी वापस लेनी चाही तो वह भागने लगी। सिपाही पीछे लपका तो उसने टोपी पहन ली और ठुमकते हुए भीड़ में घुस गई। वह नाचते हुए आगे-आगे, बौखलाया सिपाही पीछे-पीछे। लोग सब कुछ भूलकर हँसने लगे। जो पुलिस वाले वहाँ अक्सर आते थे। वेश्याएँ उनके साथ इसी तरह हँसी ठट्ठा करती थीं। लेकिन आज यह सिपाही नथुने फुलाए, दाँत पीसते हुए, उसके पीछे लड़खड़ाता भाग रहा था। बच्चे तालियाँ बजाने और चीख़ने लगे।
डीआईजी ने घूरकर पुलिस वालों की तरफ़ देखा जो हँस रहे थे। पहले वे सकपकाए फिर तुरंत उन्होंने क़तार बनाकर डंडों से भीड़ को बस्ती के भीतर ठेलना शुरू कर दिया। जो बस्ती के नहीं थे, सिपाहियों को धकेलकर सड़क की ओर भागने लगे। इन भागते लोगों पर पीछे खड़े सिपाहियों ने डंडे जमाने शुरू कर दिए। इसी बीच ग़ुस्से से तमतमाए डीआईजी अपने फालोअर और ड्राइवर को लेकर निकल गए। बस्ती में स्कूल चलाने वाला लड़का डंडों के ऊपर इस तरह झुका हुआ था जैसे लाठियाँ उसके पंख हों और वह उड़ रहा हो। वह वहीं से चिल्लाया, ‘आप उनसे ख़ुद ही बात कर लीजिए, मैडम! पता चल जाएगा... शरीफ़ औरतें वेश्याओं के बारे में बात नहीं करतीं। वे गुड़िया पीटने और विश्वसुंदरी प्रतियोगिता के विरोध में बयान दे सकती हैं बस। यहाँ आएँगी तो उनके पति घर से भगा देंगे, सारा नारीवाद फुस्स हो जाएगा।’
एक महिला रिपोर्टर उससे पूछ रही थी कि आप लोग महिला संगठनों से बात क्यों नहीं करते, तभी लाठियाँ चलनी शुरू हो गई थीं। अब वह पुलिस वालों के पीछे घबराई खड़ी हुई उसे लाठियों, शोर और बस्ती के अँधेरे में ग़ायब होता देख रही थीं।
बिना एफ़आईआर बलात्कार नहीं होता
थोड़ी ही देर में वह जगह ख़ाली हो गई जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। अगले दिन अख़बार में हेडलाइन थी, ‘वेश्याओं ने पुलिस की टोपी उछाली, लाठी चार्ज, बाइस घायल।’ अख़बारों और चैनलों की भाषा में यह मामला अब ‘हॉटकेक’ बन चुका था जिसे वे अपने ही ढंग से परोस और बेच रहे थे। चैनलों ने इसे कुछ इस तरह पेश किया जैसे देश में यह अपने ढंग की अकेली घटना हुई हो जिसमें वेश्याओं ने एक डीआईजी के साथ ग्राहक से भी बुरा सलूक करने के बाद उन्हें खदेड़ दिया हो। अख़बार के दफ़्तर में जो संगठन बधाईयाँ दे रहे थे, अब उनकी तरफ़ से वेश्याओं के इस कृत्य के निन्दा की विज्ञप्तियाँ बरसने लगीं। कई और संस्थाएँ कचहरी पर चल रहे धरने में शामिल हो गईं और स्नेहलता द्विवेदी आमरण अनशन पर बैठ गईं। मंड़ुवाडीह के दोनों छोरों पर अब एक-एक प्लाटून पीएसी भी लगा दी गई। बदला चुकाने और वेश्याओं का मनोबल तोड़ने के लिए पुलिस वालों ने एक लड़की के साथ बलात्कार कर डाला।
चौदह साल की यह लड़की डीआईजी की मीटिंग के बाद से खाने का सामान लाने के लिए सड़क के उस पार जाने देने के लिए पहरा दे रहे सिपाहियों की विनती कर रही थी। दो-तीन बार आई तो डपटकर भगा दिया। अगले दिन फिर आई तो सिपाही उससे बतियाने और चुहल करने लगे, उसे लगा कि शायद अब जाने देंगे इसलिए वह भी दिन भर इतराती और हँसती रही।
अँधेरा होने के बाद सिपाहियों ने उसे एक छोटे लड़के के साथ सड़क पार करने दी। वे सामानों की गठरियाँ लेकर जैसे ही लौटे सिपाहियों ने डंडे पटकते हुए दोनों को दूर तक खदेड़ दिया। वे डर गए, क्योंकि बस्ती से कभी बाहर निकले ही नहीं थे। दोनों वहीं सड़क के किनारे बैठकर रोने लगे, कई घंटे बाद जब दुकानें बंद हो गईं। तब एक सिपाही लड़की को बुलाकर एक लारी के भीतर ले गया। वहाँ एक सिपाही ने उसका मुँह बंद कर दिया और दो ने टाँगे पकड़ लीं। बारी-बारी से चार सिपाहियों ने उसके साथ बलात्कार किया फिर उसे बच्चे और पोटलियों के साथ बस्ती में धकेल दिया गया। वेश्याएँ रात भर सड़क के मुहाने पर जमा होकर गालियाँ देती रहीं और पुलिस वाले यह कहकर हँसते रहे कि उन्होंने लड़की को बढ़िया ट्रेनिंग दे दी है, अब आगे कभी कोई दिक़्क़त नहीं होगी।
स्कूल चलाने वाले युवक ने अख़बार के दफ़्तर में आकर सारा वाक़िआ सुनाया। यह लड़की उसके स्कूल में पढ़ती थी। रिपोर्टरों ने कहा कि वह एफ़आईआर की कॉपी लाएँ तब ख़बर छप सकती है, कोई तो सबूत होना चाहिए। उसने बहुत समझाया कि जब पुलिस ने ही रेप किया है तो वे कैसे सोचते हैं कि अपने ही ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कर लेगी। वे चाहें तो लड़की को अस्पताल ले जाकर या किसी डाक्टर को बस्ती में ले जाकर मेडिकल जाँच करा सकते हैं। उसकी हालत अब भी बहुत ख़राब है। ख़बरों के बोझ के मारे रिपोर्टर इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे और वे जानते थे कि कोई डाक्टर बस्ती में जाने को तैयार नहीं होगा। एक रिपोर्टर ने शरारत से कहा, ‘और मान लो मेडिकल जाँच हो भी तो क्या निकलेगा क्या?’
‘मतलब हाइमन ब्रोकेन, ख़रोंच, ख़ून ये सब तो रिपोर्ट में आएगा नहीं।’
दूसरे रिपोर्टर ने हँसी दबाते हुए घुटी चीख के स्वर में कहा, ‘रिपोर्ट में आएगा एवरीथिंग ओवर साइज़, ट्यूबवेल डीप, अनेबल टू फाइंड एनीथिंग!’
कानफाड़ू ठहाकों के बीच वह युवक हक्का-बक्का रह गया। थोड़ी देर बाद उसे सांत्वना देने के लिए एक रिपोर्टर ने पुलिस सुपरिटेंडेंट को फ़ोन मिलाया तो वे हँसे, वेश्या के साथ बलात्कार! विचित्र लीला है। अरे भाई साहब, वे आजकल ग्राहकों के लिए पगलाई घूम रही हैं, सामने मत पड़ जाइएगा। नहीं तो आप ही का बलात्कार कर डालेंगी। यह पुलिस को बदनाम करने का रंडियों का ख़ास पैंतरा हैं। यह ख़बर नहीं छपी न ही किसी चैनल में दिखी, क्योंकि किसी के पास कोई सबूत नहीं था कि बलात्कार हुआ है। दरअसल सुपरिटेंडेंट की तरह पत्रकारों को भी यह समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर, किसी वेश्या के साथ बलात्कार कैसे संभव हैं।
प्रकाश ने अचानक ख़ुद को उस युवक जैसी हालत में पाया जिसका हुचुर-हुचुर हँसते अपने साथियों के सामने यह भी कहना व्यर्थ था कि वह ख़बर दे पाने में लाचार है लेकिन उसे यक़ीन है कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। तब शायद अगला निर्मम जुमला यह भी आ सकता था कि वह भविष्य की एक अनुभवी पोर्न मॉडल तक पहुँचने का सूत्र बना रहा है।
तभी फ़ोन की घंटी बजी, यह छवि थी जो कह रही थी कि उसे अब फ़ोटो खींचने की तमीज़ सीख ही लेनी चाहिए। शायद आवाज़ के कंपन से उसे तीव्र पूर्वाभास हुआ कि उसे लड़की के साथ बलात्कार की घटना का पता है। उसने जब यूनिवर्सिटी में ब्यूटीशियन का कोर्स कर रही छवि की पहली बार फ़ोटो खींचने की कोशिश की थी तो उसके भरे-भरे होंठों पर नाचती रहस्यमय हँसी, आँखों की शरारत और बाँह पर खरोंच के दो निशानों से अकबका गया था। कैमरे का शटर खोलना ही नहीं, उस पर लगा ढक्कन भी हटाना भूल गया था और लगातार फ़ोटो खींचते, लगभग हकलाते हुए उसे तरह-तरह के पोज़ देने के लिए कह रहा था। छवि ने जब कहा कि कई दिन से उसका टेली लेंस उसके पार्लर में ही पड़ा हुआ है तो लगा शायद उसे नहीं पता है। उससे फ़ोन पर बात करते हुए उसे लगातार लग रहा था कि दुनिया में बहुत सारे लोग हैं जो अपने साथ घट चुके को कभी साबित नहीं कर पाएँगे और वह भी उन्हीं में से एक है। वह उनकी आवाज़ कभी नहीं बन सकता जो कमज़ोरी के कारण बोल नहीं पाते, वह सिर्फ़ उनकी आवाज़ को दुहरा सकता या चेहरे दिखा सकता है, जिनके पास ताक़त है। उसकी क़लम में किसी और की स्याही है, कैमरे के पीछे किसी और की आँख है। फ़ोन रखने के काफ़ी देर बाद तक वह कैमरे का शटर खोलता, बंद करता यूँ ही बैठा रहा।
खटाक...पता है। खटाक...नहीं पता है। खटाक...पता है। उसका दिमाग़ झूला हो चुका था।
कंडोम बाबा की करूणा
बनारस में धंधा बंद होने की ख़बर पाकर दिल्ली से कंडोम बाबा आए। साठ-बासठ साल के बुज़ुर्ग बाबा वेश्याओं को सेक्सवर्कर कहते थे और उन्हें एड्स आदि यौन बीमारियों से बचाने के लिए देशभर के वेश्यालयों में घूमकर कंडोम बाँटते थे। ये कंडोम उन्हें सरकार के समाज कल्याण विभाग और कई विदेशी संगठनों से मिलते थे। वे लड़कियों की तस्करी और वेश्याओं के पुनर्वास की समस्याओं को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाते थे। वे समर्पित, फक्कड़ सोशल एक्टिविस्ट लिखे जाते थे। उन्हें फ़िलीपींस का प्रतिष्ठित मैगसायसाय पुरस्कार मिल चुका था।
वे सर्किट हाउस में ठहरे। तड़के उठकर उन्होंने गंगा-स्नान और विश्वनाथ मंदिर में दर्शन किया। फिर फूलमंडी गए। वहाँ एक ट्रक से ताज़ा कटे लाल गुलाबों के बंडल उतर रहे थे। उन्होंने गिनकर एक सौ छिहत्तर फूलों का बंडल बंधवाया और सर्किट हाउस लौटे। प्रेस और टीवी वालों के साथ दनदनाता हुआ उनका क़ाफ़िला मंड़ुवाडीह से थोड़ा पहले सड़क किनारे रुक गया जहाँ उन्होंने अपना श्रृंगार किया। कार में बैठे-बैठे उन्होंने सबसे पहले कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय ठप्पों वाली टी-शर्ट पहनी, दो कंडोम खोलकर दोनों कानों में लटका लिए, जो हवा चलने पर सीगों की तरह तनने लगते थे वरना बकरी के कानों की तरह लटके रहते थे। कई कंडोमों को थोड़ा सा फुलाकर एक धागे में बाँधकर उनकी माला गले में डाल ली। वे ऐसे अंगुलिमाल लगने लगे, जिसने किसी पारदर्शी दानव की उंगलियाँ काटकर गले में पहन ली हों। ड्राइवर से उन्होंने कई गुब्बारे कार के आगे पीछे बँधवा दिए। उन्होंने पहले ही जिलाधिकारी से अनुमति ले ली थी और उनके साथ समाज कल्याण विभाग का एक अफ़सर भी था, जिस कारण बदनाम बस्ती में घुसने में उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं हुई।
बस्ती में सन्नाटा था, यहाँ-वहाँ कुछ बच्चे ख़ाली सड़क पर खेल रहे थे। बच्चों ने उनकी गाड़ी को घेर लिया और गुब्बारे माँगने लगे। उन्होंने उन्हें खदेड़ते हुए कहा कि बच्चों को कंडोम देना संसाधनों की बर्बादी है। जब तक उनकी कंडोम से संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान करने वाले कार्यकर्ता हर घर तक नहीं पहुँचेंगे, बच्चे उन्हें ग़ुब्बारा ही समझते रहेंगे। इसके बाद वे हर दरवाज़े पर जाकर वेश्याओं को ताजे लाल-लाल गुलाब के फूल भेंट करने लगे। यह कंडोम बाबा का अपना ख़ास तरीक़ा था जिस रेड लाइट एरिया में वे जितने दिनों बाद जाते थे, उतने गुलाब के फूल बाँटते थे। यहाँ वे कोई छह महीने बाद आए थे। उन्होंने कंडोम देने चाहे तो वेश्याओं ने मना कर दिया। एक बुढ़िया ने उन्हें डाँटा, जब धंधा ही बंद है तो गुब्बारा लेकर क्या करेंगे, उबालकर खाएँगे कि तुम्हारी तरह झुमका बनाकर पहनेंगे। ज़ियादातर कंडोम दलालों और भडुंओं ने झपट लिए, वे इन्हें ग्राहकों को बेचते थे।
फूल बाँटने के बाद उन्होंने एक तेरह साल की लड़की को कंडोम देना चाहा तो वह शरमा गई। उसके कंधे पर हाथ रखकर वे उसे कैमरों के सामने लाते हुए उन्होंने पूछा, ‘बेटी कंडोम का इस्तेमाल करती हो?’
वह चुप ख़ाली आँखों से उन्हें देखती रही। उन्होंने फिर उससे पूछा, ‘लकड़ी खाती हो या नहीं?’
लकड़ी घबराकर भाग गई।
कान में लटके कंडोम की चिकनाई को अँगूठे और तर्जनी के बीच मलते हुए वे अब प्रेस की तरफ़ मुख़ातिब हुए, ‘लकड़ी खिलाना एक तकनीक है जो कम उमर की लड़कियों को धंधे में लाने के लिए अपनाई जाती है। इसमें सोला लकड़ी का इस्तेमाल होता है जो पानी में बहुत जल्दी फूल जाती है। लड़की के भीतर इस लकड़ी को डालकर उसे रोज़ पानी के टब में या पोखर में नहलाया जाता है। जल्दी ही लड़की धंधे के लायक़ हो जाती है... जब धंधे से बचा नहीं जा सकता तो इसे करने में हर्ज ही क्या है, इससे लड़कियों को तकलीफ़ नहीं होती।’ प्रेस वाले वेश्याओं के जीवन के बारे में उनकी जानकारी से चकित थे।
देर तक बुलाने के बाद कुछ वेश्याएँ इकट्ठा हुईं। उन्होंने एक छोटा सा भाषण दिया, कुछ दिन पहले धार्मिक नगरी उज्जैन की नगर पालिका ने वेश्याओं को लइसेंस दिए थे, हमने माँग की है कि काशी में भी ऐसा किया जाए। इसके लिए मेयर और जिलाधिकारी से बात हुई है... जब से दुनिया है तब से सेक्स वर्कर हैं। डंडे के ज़ोर पर वेश्यावृत्ति कोई नहीं रोक पाया है। एक सौ छिहत्तर देशों में सेक्स वर्करों को धंधे के लाइसेंस दिए गए हैं। यूरोप में तो लाइसेंस है, बीमा होता है, मेडिकल जाँच कराई जाती है, ऐसी सुविधाएँ दी जाती हैं जो हमारे यहाँ के सरकारी कर्मचारियों को भी नहीं मिलती हैं। अगर वेश्यावृत्ति बंद करनी हैं तो पुनर्वास के अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाना चाहिए। पहले ऐसी परिस्थितियाँ बनाई जाएँ कि समाज, सेक्स वर्करों को सामान्य नागरिक की तरह स्वीकार कर सके, फिर उन्हें धंधा छोड़ने को कहा जाए वरना कोई नतीजा नहीं निकलेगा।’ उन्होंने नारा दिया, ‘काशी को उज्जैन बनाओ’ और जाने लगे। बच्चों से घिरी एक औरत ने रास्ते में रोककर उनसे कहा कि क्या वे कंडोम बाँटने के बजाय यहाँ खाने का कुछ सामान नहीं भिजवा सकते। यहाँ से कोई न जा सकता है, न अंदर आ सकता है। हम लोगों के पास जो कमाई थी, ख़त्म हो चली है। यही हाल रहा तो हम लोग बीमारी से पहले भूख से मरेंगे। उन्होंने उसे गुलाब का फूल देते हुए कहा कि वे जिलाधिकारी के पास जा रहे हैं, उनसे इस बारे में बात करेंगे। बस्ती से वे जिलाधिकारी के पास चले गए। अगले दिन उन्हें किसी सम्मेलन में थाइलैंड जाना था।
कंडोम बाबा जिस समय ग़ुब्बारे माँगने वाले वेश्याओं के बच्चों को लंगड़ाते हुए खदेड़ रहे थे छवि ने ठीक उसी समय फ़ोन पर बताया, उसे आशंका है कि वह प्रेगनेन्ट हो गई है। प्रकाश ने उसे बधाई देते हुए बताया कि कल अख़बार के मेन पेज पर उसकी ऐसे आदमी से मुलाक़ात होने वाली है, जो अगर इस दुनिया में न होता तो वह अब तक एक दर्जन बच्चों की माँ बन चुकी होती।
अगले ही क्षण उसे लगा कि उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है और वह अँधेरे में धंसता जा रहा है। छवि ने शाँत ढंग से कहा कि उसने कई महिलाओं से बात की है जिनका कहना है कि बारह हफ़्ते से ज़ियादा हो चुके हैं। कंधे पर लटका उसका बैग धप्प से गिर पड़ा। वह लड़खड़ाता हुआ एक मकान के आगे निकले चबूतरे पर बैठकर आँखें फाड़े कंडोम बाबा को देखने लगा। उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, आँखों के ठीक आगे मटमैले धुंधले चकत्ते उड़ रहे थे। उसकी तरफ़ किसी का ध्यान जाए इससे पहले उसने ख़ुद को ज़बर्दस्ती खींच कर खड़ा करने की कोशिश की तो चक्कर आ गया, माथे पर हाथ फिराते हुए उसने महसूस किया कि वह जाड़े में भी पसीने से भीगा हुआ है। थोड़ी देर बाद अकस्मात पहली चीज़ उसके दिमाग़ में यही आई कि छवि उस लड़की के साथ बलात्कार की घटना के बारे जानती है। वह फिर घड़ी के पेंडुलम की तरह झूलने लगा, जानती है...नहीं जानती...जानती है। उसकी पूरी ज़िंदगी इस एक सवाल पर जैसे आकर टिक गई थी और उसे बहुत जल्दी फ़ैसला करना था। अक्सर सिर उठाने वाले शर्मिंदगी से भरे संदेहों और उनके शाँत होने पर उससे भी भीषण आत्मघाती पश्चाताप में सुलगने का समय जा चुका था क्योंकि छवि के भीतर एक बच्चा लगातार बड़ा हो रहा था और वह किसी भी चीज़ का इंतिज़ार नहीं करने वाला था।
सी. अंतरात्मा का कौतुक
सी. अंतरात्मा को कंडोम बाबा बहुत दिलचस्प आदमी लगे, उस शाम अनायास उनका स्कूटर सर्किट हाउस की तरफ़ मुड़ गया और वह इंटरव्यू करने के बहाने उनसे मिलने चले गए। वे इस विचित्र आदमी को एक बार फिर देखना और उसकी छवि अपने मन में ठीक से बिठा लेना चाहते थे। उन्होंने सोचा था, लगे हाथ कंडोम के आठ-दस पैकेट भी माँग लेंगे। घर में पड़े रहेंगे, कभी-कभी काम आएँगे।
सी. अंतरात्मा हमेशा इतने चौकन्ने रहते थे कि उन्हें अचूक ढंग से पता रहता था कि काम की कोई भी चीज़ मुफ़्त में या कम से कम दाम में कहाँ मिल सकती है। उनमें अगर यह क़ाबिलियत नहीं होती तो प्रेस की तनख़्वाह से उनकी गृहस्थी का चल पाना असंभव था। दवाओं के मुफ़्त सैंपल वे फ़ार्मासिस्टों, डाक्टरों के यहाँ से लेते थे, बच्चों की किताबें सीधे प्रकाशकों से माँग लाते थे, कपड़े कटपीस के रियायती दाम पर लेते थे, प्रेस कांफ्रेंसों में मिलने वाले पैड और कलमें साग्रह बटोरते थे जो बच्चों के काम आते थे। वहाँ गिफ़्त में मिलने वाले सजावटी सामानों को वे दुकानदारों को बेचकर नक़द या अपने काम की चीज़ें लेते थे। खटारा स्कूटर उन्हें एक सजातीय थानेदार ने सुपुर्दगी में दिया था जो एक कुर्की के बाद थाने के अहाते में पड़ा सड़ रहा था। उन्हें अख़बार की जो कांप्लीमेंट्री कॉपी मिलती थी, वे उसे पढ़ने के बाद आधे दाम में घर के सामने चाय वाले को बेच देते थे और इस पैसे से बच्चों को यदा-कदा बिस्कुट, नमकीन वग़ैरह दिला दिया करते थे।
सर्किट हाउस में घंटी बजाने के बाद कंडोम बाबा ने जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खोला अंतरात्मा ने आदतन और थोड़ा उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में झुककर, आत्मीय मुस्कान के साथ पूछा, यहाँ पर आपको कोई दिक़्क़त तो नहीं है, बेहिचक बताइएगा आप हमारे मेहमान हैं। कंडोम बाबा बिदक गए, यह सर्किट हाउस है या डकैतों का अड्डा, एक साफ़ तौलिया तो दे नहीं सकते दिक़्क़तें पूछने चले आते हैं। अंतरात्मा अकबका गए, कुछ बोल ही नहीं पाए और भड़ाक से दरवाज़ा बंद हो गया। पूरे सर्किट हाउस में एक ही चीकट तौलिया था जो वेटर ने कंडोम बाबा को दे दिया था। उन्होंने साफ़ तौलिया माँगा तो उसने उन्हें बताया कि आप ही जैसे गेस्ट लोग उठा ले जाते हैं इसलिए कोई और बचा ही नहीं है। कंडोम बाबा ने मैंनेजर से शिकायत की तो उसने बताया कि इस साल अभी तक सामानों की ख़रीद नहीं हुई है। सी. अंतरात्मा जब इंटरव्यू मुलाक़ात के लिए पहुँचे, उस वक़्त भन्नाए हुए कंडोम बाबा जिलाधिकारी को शिकायती पत्र लिख रहे थे और उन्होंने उन्हें सर्किट हाउस का वेटर समझ लिया था।
अंतरात्मा दफ़्तर लौटकर यह क़िस्सा सुना रहे थे कि सिटी चीफ़ ने उन्हें डाँटा कि 'इतनी बड़ी ख़बर' उनके पास है और वह बैठे चकल्लस कर रहे हैं। अगले दिन यह तौलिए वाली ख़बर कंडोम बाबा के बदनाम बस्ती दौरे के बीच में डबल कॉलम बॉक्स में छपी। कंडोम बाबा का उस दिन दिल्ली लौटना स्थगित हो गया, शाम को वह अँग्रेज़ी में लिखा साढ़े तीन पेज का खंडन लेकर अख़बार के दफ़्तर पहुँचे और वहाँ सी. अंतरात्मा को बैठे देखकर उनकी चीख़ निकल गई। वह संपादक से झगड़ने लगे कि उनका अख़बार पीत-पत्रकारिता कर रहा है। खंडन में लिखा था कि आदर, आतिथ्य और सत्कार के लिए वे ज़िला प्रशासन व सर्किट हाउस के कर्मचारियों के आभारी हैं। तौलिए का क़िस्सा पूरी तरह मनगढ़त है। किसी रिपोर्टर ने इस बारे में उनसे बात तक नहीं की है। अख़बार यह सब ज़िला प्रशासन की छवि बिगाड़ने के लिए कर रहा है। दरअसल ज़िलाधिकारी ने कंडोम बाबा को बुलाकर कह दिया था कि वे या तो तुरंत इस ख़बर का खंडन छपवाएँ या फिर अगली बार से अपने ठहरने का कोई और ठिकाना ढूँढ़ लें। कंडोम बाबा का खंडन रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। क्योंकि पता था कि उन्हें रात में दिल्ली जाना ही जाना है और उनके दर्शन फिर कब होंगे कोई नहीं जानता।
असाइनमेंट के बीच में ही प्रकाश पार्लर पहुँचा और छवि को लगभग घसीटते हुए बाथरूम में ले जाकर उसे प्रेगनेंसी के होम टेस्ट की किट थमा कर दरवाज़ा धड़ाक से बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद छवि ने उसे दिखाया कि इंडीकेटर साफ़ बता रहा था कि वह सच बोल रही थी। वह पूछना चाहता था कि तुम्हें उस लड़की के बलात्कार की बात कैसे पता चली लेकिन मुँह से निकला, कब पता चला। छवि ने उसे छुआ तो वह काँप रहा था उसने कहा, तुम्हारा तो वह हाल हो रहा है जो, मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ, का भयानक डॉयलाग सुनते ही पुरानी फ़िल्मों के हीरो का हुआ करता था।
अब शादी के बारे सोचना होगा जल्दी कुछ करना पड़ेगा, उसका मुँह सूख रहा था। क्योंकि भीतर लू चल रही थी।
जलसमाधि वाया चिन्मय चिलग़ोज़ा
मंड़ुवाडीह में नहीं गंगा की मंझधार में एक नया संकट उठ खड़ा हुआ। एक बलिदानी हिंदू युवक ने संकल्प कर लिया कि अगर मकर संक्रांति तक काशी को वेश्यावृत्ति के कलंक से मुक्त नहीं किया जाता, तो वह सूर्य के उत्तरायण होते ही जलसमाधि ले लेगा। मुंडित सिर, जनेऊधारी यह युवक गले में पत्थर की एक भारी पटिया बाँधकर गंगा में ही एक नाव पर रहने लगा। पहले भी एक बार वह ऐसा प्रयास कर चुका था। इसलिए प्रशासन विशेष सतर्क था। उसकी नाव के आगे और पीछे प्रशिक्षित गोताख़ोरों से लैस जल पुलिस की दो नावें लगा दी गईं।
जल पुलिस के पीछे महाबीरी झंडों से सजी नाव पर शंख, घंटा, घड़ियाल बजाते और बीच-बीच में हर-हर महादेव का उद्घोष करते गर्व से तने समर्थक चलते थे। पीछे नावों में इलेक्ट्रानिक चैनलों के क्रू रहते थे। हर क्रू को अपने इंटरव्यू की बारी के लिए समर्थकों की अगली नाव से टोकन लेना पड़ता था। जल्दबाज़ मीडिया की अराजकता को रोकने और युवक को पर्याप्त विश्राम देने के लिए यह व्यवस्था की गई थी। क्योंकि बोलते-बोलते उसका गला बैठ चुका था। दिल्ली और मुंबई के बड़े चैनलों ने बजरे किराए पर लेकर उन्हें ओबी वैन में बदल दिया था। वे निरंतर ‘सदाचार की गंगा से गणिका विरोध,’ ‘जल में आंदोलन,’ ‘जल समाधि’ का सजीव प्रसारण कर रहे थे।
दाएँ, बाएँ और बीच में कैमरे लिए विदेशी पर्यटकों की कश्तियाँ घुसी रहती थीं, वे उस युवक की नैतिकता, संकल्प और अभियान के विलक्षण तरीक़े से चमत्कृत थे। स्वीडन की ओरिएँटल फ़िलासफ़ी की छात्रा माग्दालीना इन्केन इतनी प्रभावित थी कि उसने युवक से प्रेम की सार्वजनिक घोषणा कर दी थी। प्रकट तौर पर वे यही कहते थे कि उन्हें इस युवक में ईसा मसीह की छवि दिख रही है लेकिन आपसी बातचीत में गोद में रखी बिसलेरी की बोतलों को दुलराते हुए वे पुलक उठते थे कि किताबों में पढ़े मदारियों, संपेरों, साधुओं और जादूगरों के जिन करतबों को देखने के लिए वे यहाँ आए थे, अनायास दिख रहे हैं। इस दुर्लभ क्षण की झाँकियों अपने देश ले जाकर बेचने का अवसर वे चूकना नहीं चाहते थे।
यह अंतर्राष्ट्रीय धज का अजीब-ओ-ग़रीब बेड़ा भोर से लेकर रात के ग्यारह बजे तक राजघाट के पुल से रामनगर के क़िले के बीच गंगा में तैरता था। घाटों पर तमाशबीनों की भीड़ लगी रहती थी। जब बेड़ा उनकी नज़रों से ओझल होने लगता था तो वे खीझकर हर-हर महादेव का नारा लगाते हुए गालियाँ बकने लगते थे और पास आने पर फिर वे प्रसन्नता से अभिवादन करते हुए हर-हर महादेव का नारा लगाते थे। यह उदघोष ऐसा संपुट था जिसका इस्तेमाल वे प्रसन्नता, क्रोध, गौरव, हताशा, उन्माद सभी भावों को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों सालों से करते आए थे।
वेश्याओं को धंधे के लाइसेंस दिए जाएँ न दिए जाएँ इस पर टीवी चैनलों पर टॉक शो हो रहे थे जिनमें वेश्यावृत्ति के विशेषज्ञ, ट्रैफ़िकिंग के जानकार, नैतिक प्रश्नों के शोधकर्ता, इतिहासकार, कालगर्लों के रैकेट पकड़ने वाले पुलिस अधिकारी, समाज कल्याण से जुड़े अफ़सर, महिला संगठनों की नेता और आम लोग धारावाहिक बोल रहे थे। गंगा में नावों पर सवार रिपोर्टर असहाय मंदबुद्धि बच्चों की तरह चीख़ रहे थे, ‘समूची काशी नगरी नदी और घाटों पर निकल आई है। वेश्यावृत्ति से नाराज़ लोग हर-हर महादेव के नारे लगा रहे हैं। पानी और पत्थर के बीच एक युवक की जान ख़तरे में है, उधर वेश्याओं ने अब तक रोज़गार के उपायों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और वे मड़ुवाडीह में ही बनी हुई हैं। अब देखना है प्रशासन इस चुनौती से कैसे निपटता है... मैं चिन्मय चिलग़ोज़ा... वाराणसी से हवा-हवाई टीवी के लिए।’
उधर घाट किनारे, अस्सी मोहल्ले में बुद्धिजीवियों का अड्डा कही जाने वाली एक चाय की दुकान में विश्वविद्यालयों के निठल्ले प्रोफ़ेसर, विफल वकील, राजनीतिक दलों के हताश कार्यकर्ता, बेरोज़गार, ठलुए, अधपगले भंगेड़ी, कवि, पत्रकार, लेखक और बतरसी आपस में इस मुद्दे पर जूझ रहे थे। मठों में कोठारिनों, मंदिरों में देवदासियों और सेविकाओं को लेकर औझैती के कर्मकांड में पिछड़ी, दलित औरतों के साथ व्यभिचार के उद्धरण दिए जा रहे थे तो जवाब में हर घर में चलते व्याभिचार और छिनालपन के सच्चे क़िस्से सुनाए जा रहे थे। कोई विवाह को खाना, कपड़ा, छत और सुरक्षा के एवज़ में होने वाली सामाजिक मान्यता प्राप्त वेश्यावृत्ति का सबसे बड़ा कर्मकांड बता रहा था तो जवाब में ऐसे विचार का उत्स उसके रखैल की औलाद होने में तलाशा जा रहा था। इन सबके ऊपर एक आयुर्वेदिक नुस्ख़ा था, जिसे सभी अपनी स्मृति में सहेज लेना चाहते थे इसे एक भंगेड़ी ने वेश्यावृत्ति उन्मूलन के उपाय के रूप में सुझाया था-
सोंठ, सतावर, गोरख गुंडी
कामराज, विजया, नरमुंडी॥
गिरै न बीज, झड़े न डंडी
पलंग छोड़ के भागै रंडी॥
उसका कहना था कि अगर कस्टमर इस नुस्ख़े का इस्तेमाल शुरू कर दें तो नगर वधुएँ भाग जाएँगी और मड़ुवाडीह देखते ही देखते ख़ाली हो जाएगा। पतली गर्दन, झुकी पीठ और सूख चली जाँघों वाले बुद्धिजीवी इसे याद कर लेना चाहते थे। शायद उनके अवचेतन में था कि वेश्याओं पर न सही अपनी पत्नियों, प्रेमिकाओं पर तो वे इसका इस्तेमाल कर ही सकते हैं।
महावर, आशिक़ का बैनर और पुतलियाँ
पुलिस वाले मंड़ुवाडीह की बदनाम बस्ती से फिर किसी लड़की को न घसीट ले जाएँ, इसकी चौकसी के लिए टोलियाँ बनाकर रात में गश्त की जा रही थी। डर कर भागने वालियों को मनाने के लिए पंचायत हो रही थी। अदालत जाने के लिए चंदा जुटाया जा रहा था। पुराने ग्राहकों और हमदर्दों से संपर्क साधा जा रहा था। शहर में फैली इस कचरघाँव के बीच मंड़ुवाडीह की बदनाम बस्ती में चुपचाप अख़बारों पर रौशनाई और महावर से अनगढ़ लिखावट में ‘हमको वेश्या किसने बनाया, ‘काशी में किसने बसाया, जो क़िस्मत से लाचार-उन पर भी बलात्कार, पहले पुनर्वास करो-फिर धंधे की बात करो जैसे नारे लिखे जा रहे थे। पुआल, पॉलीथीन और काग़ज़ के अलावों पर एल्यूमिनियम की पतीलियों में पतली लेई पक रही थी। एक पुराना कस्टमर जो पेंटर था, बैनर लिखकर दे गया जिस इतनी फूल-पत्तियाँ बना दी थीं कि जो लिखा था, छिप गया था। स्कूल चलाने वाले लड़के अभिजीत ने राष्ट्रपति से लेकर कलेक्टर तक के नाम ज्ञापन लिखे।
एक दिन सुबह वे अचानक, चुपचाप अपने बच्चों, भूखे खौरहे कुत्तों, सुग्गों के पिंजरों, पानदानों, खाने की पोटलियों, पानी की बोतलों के साथ हाथ से सिली जरी के किनारी वाले, फूलपत्तियों से ढके बैनर के पीछे मुख्य सड़क पर आ खड़ी हुईं। आगे वही लड़का अभिजीत था और सबके हाथों में नारे लिखी तख़्तियाँ थीं। यह अब तक के ज्ञात इतिहास में वेश्याओं का पहला जुलूस था जो आठ किलोमीटर दूर कचहरी पर प्रदर्शन करने और कलेक्टर को माँग-पत्र देने जा रहा था। तीन सौ औरतों की लंबी क़तार। इनमें से ज़ियादातर बस्ती में लाए जाने के बाद पहली बार बाहर शहर में निकलीं थीं। उन्हें देखने के लिए ट्रैफ़िक थम गया, सड़कों के किनारे और मकानों के छज्जों पर लोगों की क़तारें लग गईं।
रंडियाँ... रंडियाँ... देखो, रंडियाँ
लेकिन वे किसी को नहीं देख रही थीं, उनकी आँखों में भीड़ से घिरे जानवर के भय की परछाई थी और रह-रहकर ग़ुस्सा भभक जाता था। लड़ेंगे... जीतेंगे, लड़ेंगे.. जीतेंगे वे किसी का सिखाया हुआ, अजीब सा नारा लगा रही थीं जिसका उनकी ज़िंदगी और हुलिए से कोई मेल नहीं था। ज़ियादातर औरतें बीमार, उदास और थकी हुई लग रही थीं। मामूली साड़ियों से निकले प्लास्टिक की चप्पलों वाले पैर संकोच के साथ इधर-उधर पड़ रहे थे मानो सड़क में अदृश्य गड्ढे हों, जिनमें गिरकर समा जाने का ख़तरा था। बच्चे और कुत्ते भी सहमे हुए थे। नारे लगाते वक़्त उठने वाले हाथों में भी लय नहीं झिझक और बेतरतीबी थी। लेकिन उनकी चिंचियाती, भर्राई आवाज़ों में कुछ ऐसा मार्मिक ज़रूर था जो रह-रहकर कचोट जाता था। उनके साथ-साथ सड़कों के किनारे-किनारे लोग भी गरदनें मोड़े चलने लगे। लोगों के घूरने से घबराकर गले में हारमोनियम और ढोलक लटकाए साज़िंदों ने तान छेड़ी और वे चौराहों पर रुक-रुक कर नाचने लगीं।
झिझकते, नाचते-गाते यह विशाल जुलूस जब कचहरी में दाख़िल हुआ तो वहाँ भी सनसनी फैल गई।
वे नारे लगाती कलेक्टर के दफ़्तर के सामने के बरामदे और सड़क पर धरने पर बैठीं और चारों ओर तमाशबीनों का घेरा बन गया। जल्दी ही वकील, मुवक्किल, पुलिसवाले और कर्मचारी काग़ज़ की पर्चियों पर गानों की फ़रमाइशें लिखकर उन पर फेंकने और नोट दिखाने लगे। कुछ ढीठ क़िस्म के वकील हाथों से मोर और नागिन बनाकर भीड़ में बैठी कम उमर की लड़कियों को नाचने के लिए इशारे करने लगे। वेश्याओं ने उनकी ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया, वे अपने बच्चों को संभालती नारे लगाती बैठी रहीं। दो-ढाई घंटे बाद ज़िलाधिकारी के भेजे प्रोबेशन अधिकारी ने आकर कहा कि विभाग के पास वेश्याओं के पुनर्वास के लिए कोई फंड और योजना नहीं है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को लिखा गया है। उनकी माँगे सभी संबंधित पक्षों तक पहुँचा दी जाएँगी। नारी संरक्षण गृह में इतनी जगह नहीं है कि सभी को रखा जा सके। ज़िलाधिकारी ने आश्वासन दिया है कि अगर वे धंधा नहीं करें तो अपने घरों में रह सकती हैं, उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाएगी। ज़िलाधिकारी ने राहत फंड की उपलब्धता जानने के लिए समाज कल्याण अधिकारी को बुलवाया लेकिन पता चला कि वे इन दिनों जेल में हैं। उनके विभाग के क्लर्कों और स्कूलों के प्रधानाचार्यों ने मिलकर हज़ारों दलित छात्रों के नाम से फ़र्ज़ी खाते खोलकर उनके वज़ीफ़े हड़प लिए थे। इस मामले का भंडा फूटने के बाद कल्याण विभाग पर इन दिनों ताला लटक रहा था।
भीड़ में से एक बुढ़िया प्रोबेशन अधिकारी के आगे अपनी मैली धोती का आँचल फैलाकर खड़ी हो गई और भर्राई आवाज़ में कहने लगी,... जब तक जवानी रही सरकार आप सब लोगन की सेवा किया। ऊपर वाले ने जैसा रखा, रह लिए अब बुढ़ापा है। सरकार उजाड़िए मत कहाँ जाएँगे, कहीं ठौर नहीं है। वेश्याएँ हँसने लगी, बुढ़िया प्रोबेशन अधिकारी को ही कलक्टर समझकर फ़रियाद कर रही थी। बुढ़िया बोले जा रही थी, ‘जब तक जवानी रही आपकी सेवा किया सरकार।’ तमाशबीन भी हँसने लगे। प्रोबेशन अधिकारी के चेहरे का रंग उतर गया। वह जल्दी से कुछ बोलकर मुड़ा और अंग्रेज़ों के ज़माने की कचहरी के बरामदे के विशाल खंभों के पीछे अदृश्य हो गया।
यज्ञ, जला हुआ स्कूल और संपादकों से निवेदन
वेश्याओं के जुलूस के अगले दिन दशश्वमेध के बग़ल में मान मंदिर घाट पर ब्रह्मचारी साधुओं और बटुकों ने सामाजिक पर्यावरण की शुद्धि के लिए गणिका उच्छेद यज्ञ शुरू कर दिया। आटे के स्त्रियों के सैकड़ों पुतले बनाए गए। उन्हें नहलाने के बाद चंदन, सिंदूर, गुग्गुल आदि का लेप करने के बाद कच्चे सूत से लपेट कर सीढ़ियों पर सजा दिया गया। हर दिन हज़ारों की तमाशाई भीड़ के आगे टीवी चैनलों के कैमरो की उपस्थिति में गुरू गंभीर मंत्रोच्चार के बीच इन्हें हवन कुंड में फेंका जाता था। साधु और मांत्रिक गर्व से बताते थे कि इससे वेश्याएँ समूल नष्ट हो जाएँगी और काशी पुन: पवित्र हो जाएगी।
इन साधुओं और बटुकों की अधिक विश्वसनीयता नहीं थी, इसलिए उन्हें बहुत समर्थन नहीं मिल पाया। इनमें से ज़ियादातर साधु, पंडे थे जो ख़ासतौर पर विदेशियों को फाँसने के लिए टूटी-फूटी अँग्रेज़ी, फ्रेंच या स्पेनिश बोलते हुए घाटों पर अलबम लिए बैठे रहते थे। बटुक भी ऐसे थे जिन्हें पितृपक्ष के महीने में यजमानों की भारी भीड़ जुट जाने पर पुरोहित दिहाड़ी पर लगा लेते थे। उन्हें घाटों पर मुंडित सिरों के बीच थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पोथी थमाकर बिठा गया जाता था। पुरोहित माइक्रोफ़ोन पर मंत्र बोलते थे, वे उसे दुहराते थे। वे पुरोहित के निर्देशों की नक़ल कर यजमानों को उपनिर्देश देते थे। एक तरह से वे पिंडदान और तर्पण के दिहाड़ी मज़दूरों की तरह थे।
हवन कुंड में पककर फट गई इन पुतलियों को विधि विधान पूर्वक गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता था। रात में इन हवन कुंडों को घाटों पर सोने वाले भिखारी टटोलते थे और आग पर पकी इन पुतलियों का गूदा निकालकर खा जाते थे। वे अपनी भूख मिटाने के लिए वेश्याओं को वैसे ही खा रहे थे जैसे थोड़े पैसे वाले लोग अपनी भूख मिटाने के लिए वेश्याओं से संभोग करते हैं। जब मालाओं और धागों में लिपटी प्रवाहित पुतलियाँ नदी के किनारों पर तिर रही थीं और उनके नितंबो, स्तनों, पेट, जाँघों, चेहरों का गूदा फूलकर पानी में छितर रहा था तब वेश्याएँ राजनीतिक पार्टियों के दफ़्तरों के फेरे लगाकर मदद की गुहार कर रही थीं।
डेढ़ महीने के बाद बदनाम बस्ती के बच्चों का स्कूल एक रात जला दिया गया। यह स्कूल बस्ती के बाहर एक खंडहर पर टीन शेड डालकर चलता था। स्कूल चलाने वाले युवक अभिजीत ने बहुत कोशिश की लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई। सभी जानते थे कि किसने जलाया है लेकिन पुलिस ने अपनी तरफ़ से जाँच कर निष्कर्ष निकाला कि वहाँ रात में जुआ खेला जाता था। रात में आग तापने के लिए जुआरियों ने जो अलाव जलाया था, उसी से आग लगी थी। अख़बारों में भी यही छपा क्योंकि कोई सबूत नहीं था। जिसके आधार पर आग लगाने वालों को इस घटना का ज़िम्मेदार ठहराया जा सके।
यह लड़का अभिजीत दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फिल. करने के बाद कुछ दिन मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में बेड़िनियों के एक गाँव में एक साल रहा था। यहाँ आकर उसने वेश्याओं के कुछ बच्चों को गोद लेकर पढ़ाना शुरू किया। अब उसके स्कूल में सौ से अधिक बच्चे पढ़ते थे और उसे विश्वास था कि ये बच्चे, उस नर्क में जाने से बच जाएँगे। वेश्याएँ पहले अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजती थीं क्योंकि उन्हें यक़ीन ही नहीं था कि उन्हें कोई सचमुच पढ़ाना चाहता है। वह लगातार वेश्याओं से कहता रहता था कि वे अपनी आमदनी अपने पास रखें, उसे अपने पतियों यानि दलालों और भड़ुओं को न दें। उस पैसे को अपने और बच्चों पर ख़र्च करें।
वह बदनाम बस्ती के पुरुषों की आँख की किरकिरी था। वे स्कूल जलने से ख़ुश थे। यहाँ भी ज़ियादातर औरतें बिना पति के अकेले नहीं रह पाती थीं। उन्हें किसी न किसी से सुरक्षा की ओट चाहिए थी। ये पति यानि दलाल, भड़ुए और साज़िंदे ही उनके लिए ग्राहक पटाकर लाते थे और ज़ियादातर पैसे हड़प लेते थे। वे आम पत्नियों की ही तरह उनके नाम पर व्रत और उपवास करती थीं और वे उन्हें आम पतियों की ही तरह पीटते थे। यह लड़का अभिजीत अब सब तरफ़ से मायूस होकर सारे दिन अख़बारों के दफ़्तरों में चपरासी से लेकर संपादक तक सबसे निवेदन करता रहता था कि वे बस एक बार चलकर अपनी आँखों से बदनाम बस्ती की हालत देख लें। वहाँ भुखमरी की हालत है, छह औरतें कोठे छोड़कर जा चुकी हैं और दूसरे जगहों पर धंधा ही कर रही हैं। यहाँ अगर पुलिस पिकेट नहीं उठती और उनका धंधा नहीं शुरू होता तो वे भूखों मरेंगी, या फिर चारों ओर फैल जाएँगी। इससे वेश्यावृत्ति कम नहीं होगी, बल्कि और बढ़ेगी। सी. अंतरात्मा की तरह, आम पत्रकारों की भी उसके बारे में राय यही थी कि बच्चों को पढ़ाने की आड़ में वह लड़कियों की तस्करी का रैकेट चलाता है और वेश्याओं की आमदनी से हिस्सा लेता है। वेश्याओं की भलाई का स्वांग करते हुए वह करोड़पति हो चुका है।
डेढ़ महीना बीतने के बाद भी किसी वेश्या ने थाने में जाकर सरकारी लोन की अर्ज़ी नहीं दी थी और कोई भी नारी संरक्षण गृह जाने को तैयार नहीं हुई। ज़ियादातर साज़िंदों, दलालों के जाने के बाद यह मान लिया गया था कि जल्दी ही वे सभी कहीं और चली जाएँगी, सिर्फ़ बूढ़ी, बीमार औरते रह जाएँगी। जिनमें से कुछ को पुलिस उठाकर संरक्षण गृह में डाल देगी। बाक़ियों को खदेड़ दिया जाएगा जो घूमकर भीख माँगेगी। वैसे भी जनगणना विभाग वेश्याओं की गिनती भिखारियों के रूप में ही करता आया है।
साड्डे नाल रहोगे तो ऐश करोगे
एक दिन चुपचाप प्रकाश ने अभिजीत के सामने प्रस्ताव रखा, मैं तुम्हारे साथ वहाँ चल सकता हूँ लेकिन मुजरा कराना पड़ेगा, फ़ोटो खींचना चाहता हूँ। उसके मन में मुजरा देखने-सुनने की भी बहुत पुरानी दबी इच्छा थी जो इस समय आसानी से पूरी हो सकती थी। इस इच्छा से भी बड़ी वह गुत्थी थी जिसे खोलने के लिए मंड़ुवाडीह जाना शायद ज़रूरी था।
एक शाम रुटीन के फ़ोटो प्रेस में डाउनलोड करने के बाद वह जल्दी निकल गया और मंड़ुवाडीह की उस बस्ती में पहुँचकर उसने पाया कि वहाँ की बिजली काटी जा चुकी है। बस्ती के दोनों तरफ़ भरे पानी के उस पार बुलडोज़रों की गड़गड़ाहट और छपाक-छपाक मिट्टी फेंकने की आवाज़ें आ रही थीं। पहली बार ध्यान से उसने कोठों को देखा, जिन्हें एक ख़ास तरह के भ्रम के कारण कोठे कहा जाता था। एक टूटी फूटी सड़क के किनारे ईंटों के एक मंज़िला, कहीं दुमंज़िला मकान थे। ज़ियादातर के पिछले हिस्से में पलस्तर नहीं था। पतली-पतली गलियों में खिड़कियों से लालटेनों और मोमबत्तियों की रौशनी आ रही थीं। बस्ती के दोनों तरफ़ बरसात का सड़ता पानी भरा था और चारों ओर हवा में बदबू थी, मच्छर भिनभिना रहे थे। सड़क किनारे की ख़ाली पड़ी दुकानों की चाय की भट्ठियों में और छज्जों की छाँव में अलाव जल रहे थे, जिनके गिर्द औरतें और रुखे बालों वाले कुम्हलाए बच्चे बैठे हुए थे। यह दलितों का कोई गाँव लग रहा था। जहाँ उदास रात उतर रही थी।
मुजरे के तुरंत इंतिज़ाम के तहत किसी घर से हारमोनियम, कहीं से ढोलक मंगाई गई। एक झबरे बालों वाला नशेड़ी लगता लड़का एक बैजों ले आया। एक घर के दालान में कई लालटेनें रखी गईं जिसकी छत के कोनों में मकड़ी के जाले थे जिनके आसपास सुस्त छिपकलियाँ रेंग रही थीं। दीवारों पर मामूली कैलेंडर और फ्रेमों में परिवारों के मेले, ठेले या चलताऊ स्टूडियोज़ में खिंचवाए फ़ोटो लटक रहे थे। अंदर के दरवाज़े पर नॉयलान की साड़ी को फाड़कर बनाया गया, चीकट हो चुका परदा लटक रहा था। थोड़ी देर में कमरा औरतों, बच्चों और दलालों से ठसाठस भर गया, उसे किसी तरह अपना कैमरा गोद में रखकर ऊकड़ू बैठना पड़ा। परदे की ओट से एक काले रंग की मोटी सी औरत आई जिसके चेहरे पर पुते पाउडर के बावजूद चेचक के दाग़ झिलमिला रहे थे, बैठकर घुँघरू बाँधने लगी। प्रकाश को लगा कि वह घुँघरू नहीं बाँध रहीं, कहीं जाने से पहले जूते पहन रही है। उसके पीछे घुँघरू बाँधे एक ख़ूबसूरत सी लड़की आई जिसकी आँखे बिल्कुल भावहीन थीं। वह होंठ आगे की तरफ़ निकालकर बीच में खड़ी हो गई। उसे देख कर प्रकाश को लगा कि उसे कहीं पहले देखा है। वह इतनी दुबली थी कि एनीमिया की मरीज़ लगती थी।
अचानक सुर मिलाने के लिए टूटी भाथी वाले हारमोनियम ने हाँफना शुरू किया और दोनों औरतें नाचने लगीं। वे हाथ-पैर ऐसे झटक रही थी जैसे उन पर जमी धूल झाड़ रही हों। दोनों ने भावहीन तरीक़े से एक चालू फ़िल्मी गाना गाया। एक ऊँघती बुढ़िया ने जैसे नींद में फ़रमाइश की, ‘बाबू को पंजाबी सुनाओ, पंजाबी।’
एक क्षण के लिए मोटी औरत ने होंठ फैलाकर प्रकाश की तरफ़ देखा फिर अपने आँचल को कमर से निकालकर सिर पर पटका बाँध लिया। ढोलक की गमक के साथ उचकते हुए उन्होंने गाना शुरू किया, ‘बोले तारा रा रा, बोले तारा रा रा!
साड्डे नाल रहोगे तो ऐश करोगे, दुनिया के सारे मज़े कैश करोगे...’
कई बच्चे भी कूदकर नाचने लगे और धक्का-मुक्की होने लगी। कमरे में धूल उड़ने लगी, लालटेनों के आगे कुहासा सा गया। अब चीख़ पुकार के बीच सिर्फ़ उछलती हुई आकृतियों का आभास भर हो रहा था मानो रात के धुँधलके में प्रेत नाच रहे हों। वाक़ई यह भूखे और क्रुद्ध प्रेतों का ही नाच था जिन्हें घेरकर सड़ते हुए पानी और पुलिस के पहरे में बंद कर दिया गया। धूल के ग़ुबार के कारण अब फ़ोटो खींच पाना संभव नहीं रह गया था। वह उठकर बाहर निकल आया। चेहरे के सामने की धूल उड़ाने की बेकार कोशिश करते हुए अभिजीत ने कहा, ‘यही इनकी ज़िदंगी है सर।’
अभिजीत को साथ लेकर प्रकाश चला तो सड़क आते ही पुलिस वाले चिल्लाते हुए लपके। इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता एक लाठी से मोटर साइकिल की हेडलाइट फूट कर छितरा चुकी थी। अभिजीत ने तेज़ी से कहा, मुड़ लीजिए, दूसरी तरफ़ से निकलिए जानबूझकर मार रहे हैं, ये प्रेस बताने पर भी सुनेंगे नहीं।
मुड़ते-मुड़ते एक लाठी अभिजीत की पीठ पर पड़ी वह बिलबिला गया। बस्ती के दूसरे छोर पर मुस्तैद पर पुलिस वाले दूर से ही लाठियाँ लहराते, गालियाँ देते हुए बुला रहे थे, वह समझ गया ये निकलने नहीं देंगे। आज की रात यहीं काटनी पड़ेगी। बहुत दिनों के बाद उसे उस रात सचमुच का डर लगा। लग रहा था जैसे पेट में पानी भर गया है और मुँह से बाहर आ जाना चाहता है। थोड़ी देर तक बस्ती के दोनों छोरों से गालियाँ लहरातीं आती रही, ‘साले, मादरचोद प्रेस के नाम पर रंडीबाज़ी करने आते हैं।’
मोटरसाइकिल खड़ी कर संयत होने के बाद दुखते हाथ को सेंकने के लिए वह एक अलाव के आगे बैठ गया। अभिजीत वहाँ पहले ही जैकेट उतारकर अपनी पीठ सेंक रहा था और दो बच्चे, सिपाहियों को गालियाँ देते हुए, मास्टर साहब की पीठ की मालिश कर रहे थे। दोनों नाचने वालियाँ यास्मीन और विमला उसे छेड़ रही थी, और कराओ, खुलेआम मुजरा, समुझावन-बुझावन का प्रसाद मिल गया न।
वे दोनों अब प्रकाश को देखकर मुस्कुरा रही थी। कुछ इस भाव से जैसे अब आटे-दाल का भाव कुछ समझ में आने लगा होगा पत्रकार जी को। दोनों के चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने से पाउडर जगह-जगह बह गया था। उसने यास्मीन से कहा, तुम दोनों नाचती अच्छा हो, ख़ूब नाचती हो। वह जैसे बुरा मान गई, ख़ाली पेट ख़ाक नाचेंगे दीवाली अँधेरे में गई, शादी ब्याह में सट्टा होता था, वह भी बंद हुआ देखिए कितने दिन नुमाइश के लिए नाचते हैं। अलाव से फूस का एक तिनका खींचते हुए यास्मीन ने उलाहना दिया, जिनको खिलाया, पिलाया, बाप-भाई माना जब वही दुश्मन हो जाएँ तो कोई क्या गाएगा और क्या नाचेगा।
प्रकाश ने अभिजीत से पूछा इनके कौन बाप-भाई है जो दुश्मन हो गए हैं। वह हँसा, ‘ख़ुद ही देख लीजिए, अब रुक ही गए हैं तो सब समझ में आ जाएगा। उसके कहने पर विमला एक घर से एक छोटा सा फ़ोटो अलबम ले आई। वापसी में उसके पीछे छोटी सी भीड़ चली आ रही थी। उसने फ़ोटो दिखाने शुरू किए, ‘यह देखिए सावित्री की बिटिया का कन्यादान हो रहा है।’ अगल बग़ल बैठी कई औरतों, बच्चों के चेहरे उस फोटों में थे वे। सभी एक सरपत के मंडप के नीचे खड़े थे। एक आदमी झुका हुआ वर के पैर धो रहा था।
‘ये मायाराम पटेल हैं, जो इस लड़की के बाप हैं। यहीं से डेढ़ साल पहले शादी हुई थी आज यह हम लोगों को भगाने के लिए कचहरी पर धरना देकर बैठा हुआ है।
यह देखिए, असगरी बेगम के लड़के के ख़तने में सभासद तीरथराज दुबे मुर्ग़ा तोड़ रहे हैं।
बोतलों, गिलासों, जूठी प्लेटों के पीछे दो औरतों को अगल-बग़ल दबाए तीरथराज दुबे फ़ोटो से बाहर भहराने वाला था।
‘यह देखिए, हम लोगों के छोटे भइया सलमा से राखी बंधवा रहे हैं।’
पान की दुकान चलाने वाले राजेश भारद्वाज के हाथों में इतनी राखियाँ बंधी थी कि उसकी कलाइयाँ फूलदान लग रही थीं।
‘यह देखिए प्रधान जी सुहानी के साथ चाँद पर जा रहे हैं।’
शिवदासपुर के उपप्रधान राम विलास यादव किसी मेले के स्टूडियो में चमकीली पन्नियों से सजे लकड़ी के चाँद तारे पर एक लड़की से गाल सटाए बेवजह मुस्कुरा रहे थे।
‘यह देखिए... यह देखिए...वे एक के बाद एक मामूली कैमरों से खींचे हुए ग़ैरमामूली फ़ोटो दिखाए जा रही थीं।’
हमारी दारू, मुर्ग़ा हमारा, आंदोलन उनका
जैसे फ़ोटो अलबम में कोई पंप लगा था। हर फ्लैप पलटने के साथ प्रकाश की छाती में हवा भरती जा रही थी। ये सभी तो बदनाम बस्ती को हटाने के लिए आंदोलन चला रहे, कचहरी पर आमरण अनशन पर बैठे नेता थे। बस इनके छपने की देर थी कि उनके पाखंड को बारुद लग जाता और सारा आंदोलन कुछ घंटे में चिथड़े-चिथड़े हो जाता। अपनी उत्तेजना पर क़ाबू पाने के बाद उसने अलबम हाथ में लेते हुए कहा, लेकिन ये लोग तो कह रहे हैं कि उनके बच्चों की शादियाँ नहीं हो पा रही हैं, बहू-बेटियों का जीना मुश्किल हो गया है।
लगा मधुमक्खियों की छत्ते पर ढेला पड़ गया। अलाव की आग से भी तेज़ जीभें लपलपाने लगीं, ये असली दल्ले हैं, अपनी बहू बेटियों का जीना ख़ुद इन्होंने मुश्किल कर रखा है। इनके घर में कौन सी ऐसी शादी हुई है, जिसमें हम लोगों ने पचास हज़ार-लाख रूपया जमा करके न दिया हो और मुफ़्त में गाना बजाना न किया हो। हमारे सामने तो आएँ, ज़बान ही नहीं खुलेगी। हम लोग तो राजेश भारद्वाज की बारात में भी गई थीं, उसकी शादी यहीं की महामाया ने कराई है। जिस मकान में वह रहता है वह भी महामाया का ही है। उसके पास रजिस्ट्री के काग़ज़ हैं, चाहिए तो अभी ले जाइए। प्रपंची हैं, कुकर्मी हैं सामने पैसा देखकर बदल गए हैं कोढ़ फूटेगा सालों को।
इस कुहराम से अभिजीत हकबका गया। थोड़ी देर तक लाचार भाव से देखने के बाद उसने खड़े होकर पूरी ताक़त से चिल्लाकर कहा, हल्ला करने से कोई फ़ायदा नहीं महामाया को बोलने दिया जाए। वह सबको जानती हैं। ज़ियादा अच्छी तरह बताएगी। भुनभुनाहट के बाद फिर थोड़ी के लिए खामोशी छा गई।
नेपालिन महामाया के बस्ती में तीन मकान थ। शायद सबसे मालदार और मानिंद वही थी। वह आग को खोदते हुए एक चमकीले शाल में लिपटी चुपचाप बैठी हुई थी। सबके चुप होने के बाद उसने झुर्रियों में धंसी, काजल पुती, चमकीलीं आखें उठाईं, नशे से लरज़ती आवाज़ में वह ठहर-ठहर कर बोलनें लगी, देखिए कोई छठ आठ महीने पहले की बात है ये नेताजी लोग और भी कई शरीफ़ लोग बस्ती में रोज़ आते थे। हमारी दारू पीते थे हमारा मुर्ग़ा तोड़ते थे और हमारे ही साथ सोते थे। हम लोग भी इनसे हर तरह का रिश्ता रखते थे। यह बात उनके बाल-बच्चों को भी पता है। लेकिन उनका लालच बढ़ता ही जा रहा था। ये लोग पुलिस के भी बाप निकले, आए दिन इतना पैसा माँगते थे कि देना हमारे बस में नहीं रहा। मास्टर साहब के कहने पर सब औरतों ने पंचायत करके तय किया कि बहुत हो गया। अब पैसा, दारू, मुर्ग़ा बंद। हाँ, बोल-बात रहेगी, उनके प्रयोजन में पहले की तरह नाच-गाना भी रहेगा लेकिन पैसे की मदद किसी को नहीं की जाएगी। यही नाराज़गी की वजह है। वरना, हम लोगों को तो इन्हीं लोगों ने और उनके बाप-दादों ने ही यहाँ बसाया था। बसाया भी अपने फ़ायदे के लिए। बाज़ार से तीन गुने रेट पर भाड़ा लिया और पाँच गुने रेट पर ज़मीन और मकान बेचे। अपनी सारी पूंजी लगाकर हम लोगों ने अपने ठीहे खड़े किए, अब रंडिया आँख दिखाएँ, उन लोगों से यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है। प्रकाश को बस्ती के भीतर एक नई बस्ती नज़र आ रही थी।
महामाया ने ऊपर ताक कर कहा, ‘काग़ज़ लाओ... मकान ही नहीं बस्ती के भीतर जितनी दुकानें हैं, वे भी उन्हीं लोगों की हैं। घर-घर में झगड़ा हो रहा है कि उनकी ज़िद की वजह से पचासों परिवारों की रोज़ी-रोटी मारी जा रही है। उसने एक-एक दुकानदारों के नाम गिनाने शुरू किए तो उन्हीं के साझीदार, भाई, रिश्तेदार या नौकर-चाकर थे। कोई दुकान छूट जाए तो बच्चे बीच में उचककर याद दिला देते थे। आधे घंटे के भीतर प्रकाश के पास इक्कीस मकानों की रजिस्ट्री के स्टैंप लगे असली काग़ज़ जमा हो चुके थे। बीस-बाइस साल पहले वाक़ई शहर से बाहर की जलभराव वाली ज़मीन के मनमाने दाम लिए गए थे।
अब अभिजीत ने बोलना शुरू किया ‘असलियत वैसी इकहरी नहीं है, जैसा कि आप लोग सोचते हैं। दरअसल यह आंदोलन ये बुलडोज़र वाले चलवा रहे हैं। जलभराव के अगल-बगल के खेत और परती दिल्ली की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी ने ख़रीद लिए हैं। यहाँ के कई बड़े नेता, बिल्डर और माफ़िया कंपनी के फ्रेंचाइज़ी हैं। उन सबकी नज़र इस बस्ती पर हैं, गाँव और पड़ोस के मुहल्लों के चालाक लोग डीआईजी की शह पाकर आंदोलन इसलिए चला रहे हैं कि वेश्याएँ अपने मकान औने-पौने में इन्हें बेचकर भाग जाएँ फिर ये उनकी प्लाटिंग करके बिल्डरों की मदद से यहाँ अपार्टमेंट और मार्केटिंग काम्प्लेक्स बनवाएँगे और रातों-रात मालामाल हो जाएँगे। यक़ीन न हो तो इनमें से जिनके घर हैं, किसी से पूछ लीजिए दलाल और बिचौलिए मकानों की क़ीमत लगाने लगे हैं। उन्हें लगता है कि धंधा बंद होने के बाद वेश्याएँ यहाँ ज़ियादा दिन नहीं टिक पाएँगी। आप ग़ौर से देखिए जो संस्थाएँ आजकल डीआईजी का अभिनंदन करने में लगी हैं, उनका कोई न कोई पदाधिकारी कंस्ट्रक्शन कंपनी या फिर बिल्डरों से जुड़ा हुआ है।
प्रकाश के सीने में फिर से हवा भरने लगी। वह तुरंत उड़ जाना चाहता था। उसे तीस साल पहले इस इलाक़े की ज़मीनों के असल रेट और वेश्याओं को की गई रजिस्ट्री के रेट का तुलनात्मक व्यौरा, कंस्ट्रक्शन कंपनी के भू-उपयोग और ले-आउट प्लान का ख़ाका, आंदोलन कर रहे नेताओं और डीआईजी की बिल्डरों से सौदेबाज़ी के सबूत और कुछ पुराने प्रापर्टी डीलरों और रीयल इस्टेट के धंधेबाज़ों के बयानों का इंतिज़ाम करना था बस! यह कोई बड़ी बात नहीं थी। रजिस्ट्री दफ़्तर, विकास प्राधिकरण और कंस्ट्रक्शन कंपनी के मार्केटिंग डिवीज़न और पीआरओ से मिलकर ये सारे काम चुटकी बजाते हो सकते थे। एक सनसनीख़ेज़ स्टोरी सीरिज़ उसकी मुट्ठी में थी। उसने अभिजीत से कहा, ‘हमें एक बार फिर निकलने की कोशिश करनी चाहिए।’
‘अब ज़ियादा ख़तरा है, सुबह से पहले निकलने की सोचिए भी मत, इस समय पुलिस वाले ट्रकों को रोककर वसूली कर रहे होंगे, बौखला जाएँगे।, अभिजीत ने कहा।
एक लड़की ने आकर बताया कि आज रात खाने का इंतिज़ाम रोटी गली में है। ज़ियादातर लोग खाकर जा चुके हैं, वे लोग भी पहुँचें, नहीं तो खाना ख़त्म हो जाएगा। प्रकाश हिचकिचाया तो एक अधेड़ औरत ने हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा, ‘हम लोगों का कोठी, बंगला और गाड़ियाँ सब तो आपने देख ही लिया, अब चलकर खाना भी देख लीजिए। बड़े-बड़े लागों का खाना तो रोज़ ही खाते होंगे, एक दिन हमारा भी खाइए।
एक गली में पेट्रोमेक्स की रौशनी में वेश्याओं की पंगत बैठ रही थी। बच्चों को पहले ही खिला दिया गया था। यह शायद आख़िरी पंगत थी। पत्तल पर जब खिचड़ी और अचार आया तो यास्मीन हँसी, पत्रकार जी आजकल हम लोग यही खा रहे हैं। जो कमाया था डेढ़ महीने में उड़ गया। अगर पैसा हो भी तो सामान लाने निकल नहीं सकते। चोरी-छिपे चावल लाकर यही इंतिज़ाम किया गया है।
प्रकाश अचरज को दबाना चाहता था लेकिन मुँह से निकल गया, ‘तवायफ़ें साधुओं की तरह खिचड़ी खा रही हैं और जहाँ यह बंट रही है, उस जगह का नाम रोटी ही गली है।’
अभिजीत ने सामने की पंगत में खा रही पत्थर जैसे भावहीन चेहरे वाली एक औरत से कहा, ‘ये पत्रकार हैं, इनको बताओ रोटी वाली गली को किसने बसाया।’
जल्दी-जल्दी चार-पाँच कौर खाने के बाद वह बोलने लगी, असली रोटी गली यहाँ नहीं कानपुर में है। वहाँ भी एक पागल पुलिस अफ़सर आई थीं, नाम था उसका ममता विद्यार्थी, उसने धंधा बंद करा दिया और पीटकर सब आदमियों को भगा दिया। आसपास के लोग भी हमें हटाने के लिए धरना प्रदर्शन करने लगे। डेढ़ साल तक हम लोग बैठकर खाते रहे, सोचते थे कि धंधा फिर शुरू होगा लेकिन नहीं हुआ। सबकी हालत बहुत ख़राब हो गई तो भागना पड़ा। मेरा बच्चा डेढ़ साल का था और बूढ़ी माँ थी। सावित्री, जानकी और रेशमा के भी बच्चे छोटे-छोटे थे। हम लोग किसी परिचित के साथ यहाँ आ गए। बाक़ी औरतें कहाँ-कहाँ गई पता नहीं। हम लोगों का नाम ही रोटी गली वाली पड़ गया है। प्रकाश जान गया, अगर ये यहाँ से गईं तो पता नहीं कितने गए मंड़ुवाडीह और आबाद होंगे।
खाना खाने के बाद दोनों बाक़ी रोटी-गली वालियों के घर गए जहाँ मोमबत्ती की मद्धिम रौशनी में लटकते चीथड़ों के बीच उने बच्चे बेसुध सो रहे थे। प्रकाश ने ऐसे सैकड़ों घर देखे थे जहाँ ग़रीबी, भूख और दीनता बच्चों की आँखों में आँसुओं की पतली परत की तरह जम जाती है और वे दुनिया को हमेशा भय के परदे से देखने के आदी हो जाते हैं। यहाँ उनकी आँखें बंद थीं। सोते बच्चों की तस्वीरें खींचने के बाद वे फिर अलाव के पास वापस आ गए। वहाँ एक लूली बुढ़िया, वही रोज़ वाला क़िस्सा सुना रही थी कि कैसे एक बारात में नाचते हुए उसने बंदूक़ की नाल पर रखे सौ रुपए के नोट को छुआ तभी बंदूक़ वाले ने घोड़ा दबा दिया। उसकी जो हथेली अब नहीं है, उसमें दर्द महसूस होता है। बच्चे उसे चुप कराने के लिए शोर मचा रहे थे।
निहलानी की आँखों में नैतिकता का पुल
प्रकाश की हालत उस साँप जैसी हो गई जिसने अपनी औक़ात से काफ़ी बड़ा मेढक अनजाने में निगल लिया हो, जिसे न वह उगल पा रहा है न पचा पा रहा है। वह दिन में ज़िला कचहरी के सामने धरने पर बैठे नेताओं के पास बैठकर लनतरानियाँ सुनता, घर आकर रात में तस्वीरों में उनके चेहरों का मिलान करता। हर दिन उनके बयान पढ़ता और रात में रजिस्ट्री के काग़ज़ों पर उनके हलफ़नामे देखता। स्नेहलता द्विवेदी, डीआईजी के पिता के साथ इस बीच लखनऊ जाकर दो बार मुख्यमंत्री और कई विधायकों से मिल आई थीं। दिन में कई बार गाड़ियों से उतरने वाले सोने की चेनों, पान मसाले के डिब्बों, मोबाइल फ़ोनों से लदे-फंदे लोग उनका हाल पूछ जाया करते थे। प्रशासन की सारी अपीलें ठुकराकर उन्होंने ऐलान कर रखा था कि यह धरना तभी उठेगा जब मंड़ुवाडीह की सारी वेश्याएँ शहर छोड़कर चली जाएँगी।
टेंट के आगे लगा 'वेश्या हटाओ-काशी बचाओ' का बैनर अब ओस और धूल में लिथड़ कर मटमैला पड़ चुका था। पुआल पर बिछे सफ़ेद रज़ाई, गद्दों, मसनदों पर मैल जमने लगी थी। रोज़ पहनाई जाने वाली सूख कर काली पड़ चुकी गेंदे की लटकती मालाओं की झालर बन चुकी थी। गद्दे पर बिखरे लाई चने, पान के पत्तों और मुचड़े हुए अख़बारों के बीच, धरना देने वाले अब भी वेश्याओं, ग्राहकों और दलालों के उत्पात के क़िस्से धारावाहिक सुनाए जा रहे थे। समर्थन देने वाली संस्थाओं के लिए दोपहर बाद का समय तय था। उनके नेताओं के आने के साथ माइक ऑन होता और सभा शुरू हो जाती जो कचहरी बंद होने तक चलती थी। शाम और रात का समय भजन गाने वाले कीर्तनियों के लिए था। वे सभी पूरी तन्यमता से एक पुण्य काम में सहयोग कर रहे थे।
सी. अंतरात्मा ही छवि को ख़ुश कर सकने वाले, प्रकाश के खोजी-पत्रकारिता अभियान में मदद कर सकते थे। उसने चंट फ़ोटोग्राफ़र की तरह उनकी बरसों पुरानी एक इच्छा पूरी कर दी। वे न जाने कब से कह रहे थे कि प्रकाश उनके माँ-बाप की अच्छी सी तस्वीर खींच दे। उसने अंतरात्मा के घर जाकर चुपचाप तस्वीर ही नहीं खींची, एक पेंटर से उसका पोट्रेट बनवाया, अभी पेंट सूखा भी नहीं था कि अख़बार में लपेटकर उन्हें भेंट कर दिया। वह ख़ुशी और अचरज से हक्के-बक्के रह गए। उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि उनकी छिपी हुई साध इस तरह पूरी हो जाएगी।
अंतरात्मा, प्रकाश को लेकर शहर के सबसे बड़े बिल्डर और राज्यसभा के सदस्य हरीराम अग्रवाल के पास लेकर गए, जिसको वह अपना दोस्त कहते थे। प्रकाश को यक़ीन नहीं था कि अंतरात्मा जैसा फ़टीचर पत्रकार अग्रवाल का इतना क़रीबी हो सकता है। वह बड़े तपाक से मिला जैसे घिसी पैंट-क़मीज़ वाले अंतरात्मा सिद्धांतों, मूल्यों वाले कोई असफल नेता हों जिनके लिए उसके मन में अपार सहानुभूति है। उसे बताया गया कि अख़बार के लिए एक फ़ोटोफीचर करना है जिसकी थीम यह है कि प्रस्तावित निर्माण परियोजना पूरी होने के बाद मंड़ुवाडीह का पिछड़ा, बदहाल इलाक़ा कैसा दिखेगा और शहर में क्या-क्या बदलाव आएँगे। अग्रवाल, फ़ौरन दोनों को लेकर निधि कंस्ट्रक्शन कंपनी के एमडी श्रीविलास निहलानी के पास गए जो शहर के एक पाँच सितारा होटल में ठहरे हुए थे। कंपनी के चीफ़ आर्किटेक्ट और जनसंपर्क अधिकारी को भी वहीं बुलवा लिया गया।
उस शाम वह होटल के सबसे शानदार सूट में एक बेड पर लैपटाप, फोनों ब्रीफ़केसों और काग़ज़ों के ढेर से घिरा शराब पी रहा था। उसके सामने प्लास्टिक की कुर्सियों पर विभिन्न आकार-प्रकार के कारोबारी, बिल्डर, छुटभैये नेता, गुंडे, दलाल विनम्र भाव से बैठे हुए थे। उसका पेट इतना बड़ा था कि लग रहा था, उसके साँवले, विशाल शरीर के बग़ल में अलग से रखा हुआ है। उस पूरे परिदृश्य में उसकी आँखें विलक्षण थीं। उसकी असाधारण बड़ी आँखों का उजला परदा अति आत्मविश्वास से बुना हुआ था जिस पर आश्वस्ति से निर्मित, भूरी पुतलियाँ डोल रही थीं। दुनिया के सारे रहस्यों को वह जान चुका था, शायद इसीलिए किसी भी बात पर उसकी आँखें झपकती नहीं थी और न ही उनमें विस्मय का हल्का सा भी भाव आने पाता था।
अग्रवाल के आते ही उसने आर्किटेक्ट और पीआरओ को इशारा किया और मीटिंग चुटकी बजाते निपटा दी। सामने बैठे लोगों से उसने कहा, उस गाँव में जिन लोगों के बड़े प्लाट हैं, उनका रेट थोड़ा बढ़ा दो। उन्हें लगाओ कि बाक़ी लोगों को समझाएँ। फिर भी नहीं समझते तो छोड़ दो, उस गाँव को भूल जाओ। हमारे पास अभी छह महीने का टाइम है। दो महीने बाद उस ज़मीन के सरकारी अधिग्रहण का काग़ज़ निकलवा देंगे। सरकारी रेट और सर्किल रेट दोनों हमारे रेट से कम है। थोड़ा जिंदाबाद-मुर्दाबाद होगा और पुलिस डंडा चलाएगी तो अपने आप अक़ल ठिकाने आ जाएगी। वे अपने खेत अपने हाथ में उठाकर ले आएँगे और हमें दे देंगे।
जनसंपर्क अधिकारी उन्हें दूसरे कमरे में ले गया, जहाँ मेज़ पर बेयरे खाने-पीने का सामान लगा रहे थे। सांसद अग्रवाल ने कहा, कुछ लेते रहिए, बातचीत भी चलती रहेगी, निहलानी जी व्यस्त आदमी है।
सी. अंतरात्मा लपककर उठे और प्रकाश के कान में कहा, ‘वही वाली पिया जाएगा। जो यह पी रहा था। व्हिस्की से सबेरे पेट भी बढ़िया साफ़ होगा।’
निहलानी कुर्सी में नहीं अट पाता था। अपना गिलास लिए बिस्तर में धँसते हुए बोला, इस शहर में सिटी प्लानिंग का हम नया युग शुरू करने जा रहे हैं, पुराने के ठीक बग़ल में नया शहर होगा जहाँ दुनिया के किसी भी अच्छे मेट्रो जैसी सुविधाएँ होंगी। दुनिया पुराना बनारस देखने आती है लेकिन यहाँ के लोग इंच और सेंटीमीटर में नापी जाने वाली पतली गलियों में, टेंट में रुपया दबाए घुट रहे हैं। हम उन्हें नए खुले और मार्डन शहर में ले आएँगे। वह हँसा...कहिए अग्रवाल जी यह कबीर दास की उल्टी बानी कैसी रहेगी।
बहुत सुंदर, बहुत सुंदर! अग्रवाल ने गिलास रखते हुए भावभीने ढंग से कहा जैसे उनका गला रुंध गया हो। खंखार कर बोले, अब देखिए भगवान की कृपा रही, डीआईजी साहब और अंतरात्मा जी ने चाहा तो दो महीने में आख़िरी समस्या भी ख़त्म हो जाएगी। उसके बाद रोड क्लीयर है।
निहलानी हँसा, डीआईजी तो धर्मात्मा आदमी है साईं, तपस्या कर रहा है। बस अंतरात्मा जी के भाई बंदों की कृपा बनी रहे तो गाड़ी निकल जाएगी। मैंने तो इनके लिए एक पर एक फ्री का ऑफऱ सोच रखा है। एक मकान के बदले एक दुकान और एक फ़्लैट ले जाओ। ऐश करो। वैसे भी हमारी स्कीम है कि जब बुकिंग होगी तो हम पुलिस, प्रेस और वकीलों का ख़ास ख़याल रखेंगे। पत्रकार संघ से बात हुई है। अगर उन्होंने पैसा इकट्ठा कर लिया तो हम पत्रकारों के लिए अलग एक ब्लाक दे देंगे, उसमें कोई समस्या नहीं है।
अग्रवाल जी ने अंतरात्मा का कंधा थपथपाया, हमारे तो डीआईजी यही हैं, इन्होंने भी कम प्रयास नहीं किया है। अंतरात्मा की पकी दाढ़ी में मेधावी स्कूली छात्र जैसी मुस्कान फैल गई।
निहलानी के संकेत पर आर्किटेक्ट ने मेज़ पर नक़्शा फैला दिया। अर्धचंद्राकार घेरे में ग्यारह-ग्यारह मंज़िल के तीन आवासीय काम्प्लेक्स बनने थे। जिनके बीच फैले सड़कों के जाल के धागों के इधर-उधर मार्केटिंग कांपलेक्स, पार्किंग ज़ोन, स्टेडियम, सिनेमाहाल, पेट्रोल पंप, स्विमिंग पूल, पार्क, कम्युनिटी सेंटर, सिक्योरिटी आफ़िस छितरे हुए थे। लाल नीले रंग निशानों से भरे स्केच में प्रकाश अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि इसमें बदनाम बस्ती वाली जगह कहाँ है।
आर्किटेक्ट, अचानक नक़्शा समेटने लगा तो प्रकाश ने हड़बड़ाकर पूछा, अगर वेश्याएँ मंड़ुवाडीह से नहीं हटती हैं, तब आपके प्रोजेक्ट का क्या होगा? निहलानी ने आश्वस्त भाव से कहा, नहीं हटेंगी तो प्रोजेक्ट रुक थोड़े जाएगा बल्कि और शानदार हो जाएगा। उसने आर्किटेक्ट को इशारा किया, इन्हें मॉरेलिटी ब्रिज दिखाओ।
आर्किटेक्ट ने अब दूसरा स्केच खोलकर मेज़ पर फैला दिया। अर्धचंद्र के दोनों छोरों पर बनी बहुमंज़िली इमारतों को एक ओवर ब्रिज से जोड़ दिया गया था। जिसके नीचे, ठीक बीच में बदनाम बस्ती थी।
आर्किटेक्ट समाचार वाचक की तरह बोलने लगा, यह नैतिकता सेतु पाँच सौ मीटर चौड़ा होगा। जिसके बीच फाइबर ग्लास के ट्रांसपैरेंट स्लैब होंगे। यहाँ कारें आसानी से पहुँच सकेंगी। नीचे हैलोजन लाइटस होंगी, जिससे नीचे, ज़मींन की सारी चीज़ें रात में भी साफ़ नज़र आएँगी। एक बंगीजंपिंग का प्लेटफ़ार्म होगा और भी बहुत कुछ होगा। इस ब्रिज का इस्तेमाल मनोरंजन, सैर सपाटे लेकर निगरानी तक के लिए किया जाएगा और वहाँ पर...
उसे रोककर निहलानी ने बताना शुरू किया। एक एजेंसी से बात हो गई है जो लोगों को किराए पर हर दिन दूरबीनें देगी और सुरक्षा का इंतिज़ाम देखेगी। आइडिया यह है कि वहाँ घूमने आने वाले लोग टिकट लेकर नीचे वेश्याओं को घूमते, ग्राहकों को पटाते और वहाँ चलता सारा कारोबार देख सकेंगे। इससे बड़ा मनोरंजन और क्या हो सकता है। पुलिस पेट्रोल और निगरानी के लिए ख़ास इंतिज़ाम होगा। पुलिस वहाँ से अवैध कारोबार पर नज़र रखेगी, अपराधियों को पहचानेगी। इससे क्राइम कंट्रोल करने में भी काफ़ी मदद मिलेगी। यह भी हो सकता है कि इससे बनने वाले मनोवैज्ञानिक दबाव, पहचाने और पकड़े जाने के डर के कारण वहाँ कस्टमर आना बंद कर दें। जब कारोबार ही ठप हो जाएगा तो वेश्याएँ कितने दिन रहेंगी।
प्रकाश को लगा यह मज़ाक़ है। अंतरात्मा जो भौंचक, साँस रोके सुन रहे थे, ठठाकर हँस पड़े, ‘जुलुम बात है... यह तो वैसे ही है जैसे बचपन में हम लोग सरपत में छिपकर कुएँ पर नहाती औरतों को देखा करते थे।’
प्रकाश ने हैरत से कहा, अगर यह मज़ाक़ नहीं है तो यह बताइए कि अगर वेश्याओं ने धंधे का ऐसा कोई नया तरीक़ा अपना लिया, जिसमें सड़क पर कोई दिखे ही नहीं तो क्या होगा? जहाँ तक मनोविज्ञान की बात है तो बहुत पहले मकानों की दीवारों पर पेशाब करने वालों के बारे में भी लोग यही सोचते थे लेकिन क्या नतीजा निकला।
निहलानी ने तीसरा पेग ख़त्म कर लंबी हुंकार भरी, साईं तभी तो असली होना शुरू होगा। दस साल में हमारा दूरबीन कल्चर आ चुका होगा तब इंटरटेनमेंट कंपनियाँ अपनी लड़कियों को लाकर तुम्हारे मंड़ुवाडीह में बसा देंगी। उनकी छतों पर ओपेन एयर बार, कैबरे, स्विंमिंग पूल, सन बाथ स्टैंड, जाकुजी, साउना और तरह-तरह के खेल होंगे। लोग उन्हें देखने के लिए आएँगे। वेश्याएँ इन स्मार्ट और मालदार लड़कियों वाली कंपनियों के आगे पिट जाएँगी। ये कंपनियाँ उनसे पूरा इलाक़ा ही ख़रीदकर उसे एशिया क्या, दुनिया के सबसे बड़े ओपन एयर पीप-शो वाले इंटरटेनमेंट ज़ोन में बदल देंगी। बनारस में विदेशियों की भारी आमद को ध्यान में रखते हुए यह योजना तैयार की जा रही है लेकिन अभी पाइपलाइन में ही है। प्रकाश हैरत से नशे से रतनार, आत्मविश्वास से दमकती आँखों वाली मैहर की देवी जैसी उस मूर्ति को देखता ही रह गया।
निहलानी के सोने का समय हो चुका था। ले-आउट प्लान की फ़ोटो कापी, योजना का ब्रोशर और कुछ तस्वीरें प्रकाश चला तो अंतरात्मा ने प्लेट से एक मुट्ठी काजू उठाकर पैंट की जेब में डाल लिया। जनसंपर्क अधिकारी ने बाहर छोड़ते समय सभी को निधि कंस्ट्रक्शन कंपनी का एक मोमेंटो, कंपनी के होलोग्राम वाली एक घड़ी, दो हज़ार के गिफ़्ट बाउचर उपहार में दिए। अंतरात्मा को यह कहते हुए, काजू का दो किलो एक पैकेट दिया कि अपने दोस्तों की पसंद का हम ख़ास ख़याल रखते हैं। अंतरात्मा ने बच्चे की तरह उसे गोद में उठा लिया। रास्ते में हवा लगी तो वह हिचकी लेते हुए बुदबुदाने लगे, बहुत दुर्दिन देखा दादा, बहुत दुर्दिन देखा।
वह बड़बड़ा रहे थे, सब कोई भगवान से मनाओ कि ये साला मुरल्टी का पुल न बने, नहीं तो हमारा परिवार बर्बाद हो जाएगा। बस्ती वाला मकान तो वैसे ही हाथ से निकल गया है। आशा बंधी थी कि कंपनी ख़रीद लेती तो कुछ रोटी-पानी का डौल बैठ जाएगा। हमारी तो बारह सौ की रिपोर्टरी करते किसी तरह कट गई पाँच-पाँच बच्चे हैं, पुल बन गया तो साले कहाँ जाएँगे। प्रकाश ने उन्हें घर छोड़ा तब सिसक रहे थे, विश्वनाथ बाबा से मनाओ कि मुरल्टी का पुल न बने दादा।
तितलियों के पंखों की धार
बदनाम बस्ती में पहले भूखे भँवरे आते थे। तीन महीने तक खिचड़ी खाने के बाद अब भूखी तितलियाँ दम साधकर फूलों की तरफ़ उड़ने लगीं, उनके रहस्यमय पंखों के रास्ते में जो भी आया, कट गया।
शाम के धुँधलके में जब गाड़ियों का धुँआ मंड़ुवाडीह की बदनाम बस्ती के ऊपर जमने लगता, सजी-धजी तितलियाँ एक-एक कर बेहिचक बाहर निकलतीं। सिपाहियों के तानों का मुस्कानों से जवाब देते हुए वे सड़क पार कर जातीं। वहाँ पहले से खड़े उनके मौसा, चाचा, दुल्हाभाई या भाईजान यानि दलाल उन्हें इशारा करते और वे चुपचाप एक-एक के पीछे हो लेतीं। वे उन्हें पहले से तय ग्राहकों के पास पहुँचा कर लौट आते थे। जिनके कस्टमर पहले से तय नहीं होते थे, वे अतृप्त, कामातुर प्रेतों की तलाश में सड़कों और घाटों पर चलने लगतीं। औरतों को मुड़-मुड़ कर देखने और उनका पीछा करते हुए भटकने वालों को वे ठंडे, सधे ढंग से इतना उकसाती कि वे घबराकर भाग जाते या उन्हें रोककर तय तोड़ करने लगते। जो थोड़ा तेज़ तर्रार और आत्मविश्वासी थीं वे होटलों और सिनेमाहालों के बाहर कोनों में घात लगातीं।
दोयम दर्जे की समझी जाने वाली अधेड़ औरतें रात गए बस्ती के दूसरे छोर से झुंड में निकलतीं और गाँव के पिछवाड़े खेतों से होते हुए हाई-वे पर निकल जातीं। वहाँ ओस से भीगे, पाले से ऐंठते पैरों को काग़ज़, प्लास्टिक और टायर जलाकर सेंकने के बाद वे एक-एक कर ढाबों पर खड़ी ट्रकों की क़तार में समा जातीं। भोर में जब वे लौटतीं लारियों में, चाय की दुकानों की बेंचों और मकानों के चबूतरों पर ओवरकोट में लिपटे, पुलिस वाले आराम से सो रहे होते। पहरा देने वालों का हफ़्त तय कर दिया गया था जिसे दलाल और भड़ुए एक मुश्त पहुँचा आते थे।
एक दोपहर प्रकाश घाट पर सलमा को देखकर चक्कर खाकर गिरते-गिरते बचा। वह नीले रंग का स्कर्ट और सफ़ेद क़मीज़ पहने, छाती पर एक मोटी किताब दबाए, एक पंडे की ख़ाली छतरी के नीचे बैठी छवि के पेट पर लेटी, नदी को देख रही थी। छवि का पेट थोड़ा और उभर आया था और चेहरे पर लुनाई आ गई थी। सलमा की बाँह पर हाथ रखे वह जितनी शाँत और सुंदर लग रही थी, उतना ही वीभत्स, हाहाकार प्रकाश के भीतर मचा हुआ था।...तो मेरा पूर्वाभास सही था। उसे मंड़ुवाडीह में उस लड़की के बलात्कार का पता था। शायद वह वहाँ के बारे में मुझसे कहीं ज़ियादा जानती है, उसने सोचा। उसका हाथ कैमरे पर गया कि वह दोनों की एक फ़ोटो उतार ले लेकिन फिर वह विक्षिप्त जैसी हालत में लड़खड़ाता, भरसक तेज़ क़दमों से दूसरे घाट की ओर चल पड़ा।
सामने जलसमाधि लेने वाले युवक के आगे पीछे, अजीब-ओ-ग़रीब अंतर्राष्ट्रीय बेड़ा गुज़र रहा था। और लोगों की तरह सलमा भी नाव पर घंटे घड़ियाल बजाते, नारे लगाते लोगों को देखकर हाथ हिला रही थी।
कोई दो घंटे बाद सलमा उसे फिर दिखी। इस बार वह अकेली, छाती पर किताब दबाए भटक रही थी। वह उससे बहुत कुछ पूछना चाहता था, लपक कर पास भी गया। लेकिन उसने किताब की ओर इशारा किया, आज कल तुम्हारे स्कूल में क़ुरान पढ़ाई जा रही है क्या?
उसने क़ुरान को पलट दिया और अपनी चुटिया को ऐंठते हुए हँसी। तुनक कर धीमे से कहा, जो मुझे ले जाएगा, वह किताब को नहीं पढ़ेगा... अच्छा अब आप जाइए। यहाँ मत खड़े होइए, बात करनी हो तो वहीं दिन में आइएगा। वहाँ अब रात में कोई नहीं मिलता। अब प्रकाश को दिखा कि नीचे घाट की सीढ़ियों पर, नदी किनारे उसी जैसी पाँच-सात और लड़कियाँ स्कर्ट, सलवार सूट, सस्ती जींस पहने घूम रही थीं। उनकी बुलाती आँखे, रूखे बाल, ज़ियादा ही इठलाती चाल और किताबें पकड़ने का ढंग, कोई भी ग़ौर करता तो जान जाता कि वे स्कूल-कालेज की लड़कियाँ नहीं हैं। जो लोग उनके ख़िलाफ़ इतने ताम-झाम से समारोहपूर्वक अपना ग़ुस्सा उगल रहे थे, उन्हीं के बीच भटकती हुई वे कस्टमर पटा रही थीं। प्रकाश उनके दुस्साहस पर दंग था। शायद उन्हें सचमुच की हालत का पता नहीं था इसीलिए वे सड़क पर हुँकारते ट्रकों के बीच मेढ़कों की तरह फुदक रही थीं। अगर लोगों को पता चल जाता कि वे वेश्याएँ है तो भीड़ उनकी टाँगे चीर देती और झुलाकर नदी में फेंक देती। सलमा ने पलटकर देखा प्रकाश वहीं खड़ा, कैमरा फोकस कर रहा था। उसने पूछा ‘आप अख़बार में हम लोगों को नगर-वधू क्यों लिखते हैं?’
प्रकाश ने कैमरे में देखते हुए ही कहा, ‘क्योंकि तुम किसी एक की नहीं, सारे नगर की बहू हो, तुम यहाँ किसी ख़ास आदमी को तो खोज नहीं रही हो, जो मिल जाए उसी के साथ चली जाओगी।’
‘अच्छा तब मेयर साहब को नगर प्रमुख क्यों, नगर पिता क्यों नहीं लिखते और उनसे कह दो कि आकर हम लोगों के साथ बाप की तरह रहें।’
प्रकाश ने खिलखिलाती हुई उस वेश्या छात्रा को देखा। उसे अचानक लालबत्ती और रेडलाइट एरिया का फ़र्क़ नए ढंग से समझ में आ गया। मेयर पुरुष है, संपन्न है इसलिए लालबत्ती में घूम रहे हैं। तुम ग़रीब लड़की हो इसलिए अपना पेट भरने के लिए मौत के मुँह में घुसकर ग्राहक खोज रही हो।
उसकी हँसी से चिढ़कर पूछा, ‘तुम्हें यहाँ डर नहीं लगता। इन लोगों को पता चल गया तो?’
वह हँसती ही जा रही थी, उसने नदी के उस पार क्षितिज तक फैले बालू का सूना विस्तार दिखाते हुए कहा, ‘जिन्हें पता चल गया है, वे लड़कियों के साथ उस पार रेती में कहीं पड़े हुए हैं और वे किसी से नहीं कहने जाएँगे... अलबत्ता हल्के होकर हम लोगों को हटाने के लिए और ज़ोर से हर हर महादेव चिल्लाएँगे।...अच्छा अब आप चलिए, नहीं तो लड़कियाँ आपको ही कस्टमर समझ कर पीछे लग लेंगी।’
बेईमानी का संतोष
धंधा, शहर में फैल रहा है। यह ख़बर डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी को लग चुकी थी। उन्होंने अफ़सरों की मीटिंगें कीं। सिपाहियों की माँ-बहन की। दारोग़ाओं को झाड़ा, एलआईयू को मुस्तैद किया, तबादले किए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। जो भी मंड़ुवाडीह के दोनों छोरों पर पहरा देने जाता, भड़ुओं का ग़ुस्सैल बड़ा भाई हो जाता। जिसकी हर सुख-सुविधा का वे ढीठ विनम्रता के साथ ख़याल रखते। कप्तान वग़ैरह रस्मी तौर पर मुआयना करने आते तो सिपाही उन्हें वेश्याओं के ख़ाली पड़े दो-चार घर दिखा देते। वे लौटकर रिपोर्ट देते कि धंधा बंद होने के कारण, उन घरों को छोड़कर वे कहीं और चली गईं हैं। डीआईजी ने शहर के लॉजों, होटलों में छापे डलवाने शुरू करा दिए, जिनमें बाहर से आकर धंधा कर रही कालगर्लें पकड़ी गईं लेकिन मंड़ुवाडीह की कोई वेश्या नहीं मिली। हमेशा की तरह ख़बरे छपी कि रैकेट चलाने वालों की डायरियों और कालगर्लों के बयानों से कई सफ़ेदपोश लोगों के नाम, पते और नंबर मिले हैं जल्दी ही पुलिस उनसे पूछताछ करेगी और उनकी क़लई खुलेगी। हमेशा की तरह न पूछताछ हुई, न क़लई खुली और न ही फालोअप हुआ। कालगर्लें ज़मानत पर छूटकर किसी और शहर चली गईं और रैकेट चलाने वालों ने भी नाम और ठिकाने बदल लिए।
प्रकाश की ड्यूटी लगाई गई कि वह शाम को पहरा देते पुलिसवालों के बीच से होकर बदनाम बस्ती से धंधे के लिए निकलने वाली लड़कियों की फ़ोटो ले आए। उसने पहली बार बेईमानी की, जब वे निकल रहीं थी, तब वह अंतरात्मा के घर में बैठकर उनके साथ चाय पी रहा था। उनके निकल जाने के बाद वहाँ पहुँचकर उसने एक पूरा रोल खींच डाला, जिसमें कुहरे बीच झिलमिलाते सिपाहियों और गुज़रते इक्का-दुक्का राहगीरों के सिवा और कुछ नहीं था। उसे फ़्लैश चमकाते देख, दो सिपाहियों ने खदेड़ने की कोशिश की तो उसने कहा कि वे निश्चिंत रहें आज वह एक भी फ़ोटो ऐसा नहीं खींचेगा जिससे उनको कोई परेशानी हो। एक सिपाही ने पूछा, बहुत साधु की तरह बोल रहे हो, बाई जी लोगों ने कुछ सुंघा दिया है क्या?’
सिपाही जब आश्वस्त हो गए तो उन्होंने बताया कि कम उम्र की लड़कियों का धंधा बढ़िया चलने से अब नई लड़कियाँ भी आ रही थीं। उन्हें मंड़ुवाडीह में नहीं, शहर में किराए पर लिए मकानों में रखा जा रहा था। थाने का रेट बढ़कर अब पैंतीस से पचास हज़ार हो गया था। प्रकाश ने अंतरात्मा से कहा कि लगता है निहलानी का मॉरेलिटी ब्रिज ही बनेगा और बड़े लोगों की चाँदी रहेगी। तुम तो बाई जी लोगों से ही बात कर लो, शायद उनमें से कोई तुम्हारा मकान ख़रीद ले। अंतरात्मा को अफ़सोस था कि पुलिस भी दो टुकड़ा हो चुकी है।
प्रेस लौटकर उसने फ़ोटो एडीटर को समझाया कि कुहरा इतना है कि वहाँ कुछ भी देख पाना संभव नहीं है। जो बन सकती थीं, वे यही तस्वीरे हैं। वह बेईमानी करके बहुत ख़ुश था। उसने ख़ुद को हताशा से बचा लिया था। उसके फ़ोटो खींचने से अख़बार की थोड़ी विश्वसनीयता बढ़ती, सर्कुलेशन बढ़ता लेकिन धंधे पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। पुलिस वाले ही बंद नहीं होने देते। वह चाहता भी नहीं था कि धंधा बंद हो। वह अब चाहता था कि चले और ख़ूब चले।
मरियल क्लर्क, थ्रिल और गलता पत्थर
(अमर होने की चाह के बजाय ज़िंदगी की गति के साथ चलने के थ्रिल को बार-बार महसूस करने की ग़रज़ से लिखी इस लंबी कहानी उर्फ़ लघु उपन्यास की यह समापन क़िस्त है। इसे हज़ार-पाँच सौ प्रतियों वाली किसी पत्रिका में प्रकाशित कराने के बजाय नेट पर ख़ास मक़सद से जारी किया गया है। इरादा है कि हिंदी के प्री-पेड आलोचकों, समीक्षकों और साहित्यबाज़ों के बजाय इसे सीधे पाठकों के पास ले जाया जाए और उनकी राय जानी जाए। आप सबसे आग्रह है कि इस कहानी पर अपनी राय बेधक ढंग से लिखें बिना इस बात की परवाह किए कि वह पहले कहीं देखी किसी स्वनामधन्य की लिखावट के आसपास है या नहीं। क्या पता बिना साहित्यिक विवादों की झालर, आलोचना शास्त्र के सलमे सितारों से रहित, इन या उन जी के दयनीय दबावों से मुक्त सहज प्रतिक्रियाएँ हिंदी के नए लेखकों की रचनाओं के मूल्यांकन का कोई नया दरवाज़ा खोल दें। आपके नज़रिए को अलग से प्रकाशित किया जाएगा।)अनिल
भेजने का पता हैः oopsanil@gmail.com
कोई तीन महीने बाद, फिर बीमा कंपनी का वही मरियल क्लर्क, काला चश्मा लगाए अख़बार के दफ़्तर की सीढ़ियों पर नज़र आया। इस बार फिर पक्की ख़बर लाया था कि प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी की जाँच रिपोर्ट आ गई है कि पान मसाला नहीं, डीआईजी रमाशंकर त्रिपाठी ही अपनी पत्नी की आत्महत्या के ज़िम्मेदार हैं। लगातार मारपीट, प्रताड़ना के तारीख़वार ब्यौरे वह लवली त्रिपाठी की डायरियों की फ़ोटो प्रतियों में समेट लाया था। इसके अलावा वह यह ख़बर भी लाया था कि डीआईजी त्रिपाठी डेढ़ महीने बाद, अपने से काफ़ी जूनियर एक महिला आईपीएस अफ़सर से शादी करने जा रहे हैं। इन ख़बरों की स्वतंत्र पड़ताल कराई जाने लगीं।
उन दिनों अख़बार प्रकाश को बेहद उबाऊ लगने लगा। हर सुबह खोलते ही काले अक्षर एक दूसरे में गड्डमड्ड अपनी जगहों से डोलते हुए नज़र आते थे, जिसकी वजह से सिरदर्द करने लगता था और वह अख़बार फेंक देता था। इसकी एक वजह तो यही थी कि जिन घटनाओं को ख़ुद उसने देखा और भोगा होता था, वे छपने के बाद बेरंग और प्राणहीन हो जाती थी। किसी जादू से उनके भीतर की असल बात ही भाप की तरह उड़ जाती थी। पहली लाइन पढ़ते ही वह जान जाता था कि असलियत कैसे शब्दों की लनतरानियों में लापता होने वाली है। रूटीन की बैठकों में उसे रोज़ झाड़ पड़ती थी कि वह अख़बार तक नहीं पढ़ता इसीलिए उसे नहीं पता रहता कि शहर में क्या होने वाला है और प्रतिद्वंदी अख़बार किन मामलों में स्कोर कर रहे हैं। दरअसल वह इन दिनों अपनी एक बहुत पुरानी गुप्त लालसा के साकार होने की कल्पना से थरथरा रहा था। यह लालसा थी नकचढ़ा, अहंकार से गंधाता पत्रकार नहीं सचमुच का एक रिपोर्टर होने की। ऐसा रिपोर्टर जिसकी क़लम सत्य के साथ एकमेक होकर धरती में कंपन पैदा कर सके।
उसके पास इतने अधिक काग़ज़ी सबूत, अनुभव, फ़ोटोग्राफ़ और बयान हो गए थे कि अब और चुपचाप सब कुछ देखते रह पाना मुश्किल हो गया था। अब वह जब चाहे जब वेश्याओं को हटाने वालों के पाखंड का भाँडा फोड़ सकता था। यही सनसनी उसके भीतर लहरों की तरह चल रही थी। सीधे सपाट शब्दों में, उसने रातों को जागकर कंपोज़ कर डाला कि कैसे पैसा, दारू, देह नहीं मिलने पर वेश्याओं को बसाने वाले लोकल नेता उनके ख़िलाफ़ हुए। कैसे निधि कंस्ट्रक्शन कंपनी ने उनके ग़ुस्से को अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया। कैसे डीआईजी ने अपनी छवि बनाने के लिए धंधा बंद कराया और बाद में वे कमिश्नर के साथ कंस्ट्रक्शन कंपनी के एजेंट हो गए। कंस्ट्रक्शन कंपनी कैसे इससे बड़ा और आधुनिक वेश्यालय खोलने जा रही है। वेश्याओं को हटाने से कैसे यह धंधा और जगहों पर फैलेगा। कैसे डीआईजी के पिता और कमिश्नर ने धार्मिक भावनाओं को भड़काया और कैसे हर-हर महादेव के उद्घघोष के साथ विरोध और वेश्यावृत्ति दोनों एक साथ घाटों पर चल रहे हैं। उसका अनुमान था कि यह सीरीज़ छपते-छपते बीमा कंपनी के जासूसों की जाँच रपट का भी सत्यापन हो जाएगा और उसके छपने के बाद सारे पाखंड के चिथड़े उड़ जाएँगे। इसके बाद शायद सचमुच वेश्याओं के पुनर्वास पर बात शुरू हो।
प्रकाश ने दो दिनों तक अपने ढंग से सभी छोटे-बड़े संपादकों को टटोला और आश्वस्त हो गया कि, उसकी रिपोर्टिंग का वक़्त आ गया है। तीसरे दिन उसने रिपोर्ट, तस्वीरें, रजिस्ट्री के काग़ज़, ले-आउट प्लान और तमाम सबूत ले जाकर स्थानीय संपादक की मेज़ पर रख दिए। पूरे दिन वे उन्हें पढ़ते, जाँचते और पूछताछ करते रहे। शाम को आकर उन्होंने उसकी पीठ थपथपाई, ‘तुम तो यार, पुराने रंडीबाज़ निकाले! बढ़िया रिपोर्ट हैं, हम छापेंगे।’
यह सचमुच दिल से निकली तारीफ़ थी।
अगले दिन अख़बार की स्टियरिंग कमेटी की बैठक हुई क्योंकि इस मसले पर पुराना स्टैंड बदलने वाला था। संपादक का फ़ैसला हो चुका था, बाक़ी विभागों से अब औपचारिक सहमति ली जाने की देर थी। डेढ़ घंटे की बहस के बाद अख़बार के मैंनेजर ने संपादक से पूछा, ‘मंड़ुवाडीह में कुल कितनी वेश्याएँ हैं?
‘क़रीब साढ़े तीन सौ’।
‘इनमें से कितनी अख़बार पढ़ती हैं?’
इसका आँकड़ा किसी के पास नहीं था। उसने फ़ैसला सुनाने के अंदाज़ में कहा, आज की तारीख़ में सारा शहर हमारे अख़बार के साथ है। कुल साढ़े तीन सौ रंडियाँ जिनमें से कुल मिलाकर शायद साढ़े तीन होंगी जो अख़बार पढ़ती हों, ऐसे में यह सब छापने का क्या तुक है। अगर कोई बहुत बड़ा और नया रीडर ग्रुप जुड़ रहा होता, तो यह जोखिम लिया भी जा सकता था।
संपादक जो ध्यान से उसका गणित सुन रहे थे, हँसे। उन्होंने कहा, सवाल वेश्याओं की संख्या का नहीं है मैंनेजर साहब! वे अगर तीन भी होती तो काफ़ी थी। उनके बारे में जो भी अच्छा-बुरा छपता है। उसे उनका विरोध करने वाले भी पढ़ते हैं। बल्कि उनकी ज़ियादा दिलचस्पी रहती है।
मैंनेजर ने पैंतरा बदला, अब आप ही बताइए कि अपने स्टैंड से इतनी जल्दी कैसे पलट जाया जाए। कल तक आप ही छाप रहे थे कि वेश्याओं की वजह से लोगों की बहू-बेटियों का घर में रहना तक मुश्किल हो गया है और डीआईजी धंधा बंद कराकर बहुत धर्म का काम कर रहा है। अब जब मुद्दा आग पकड़ चुका है तो उस पर पानी डाल रहे हैं। आप बताइए अख़बार की क्रेडिबिलिटी का क्या होगा। संपादक ने समझाने की कोशिश की कि क्रेडिबिलिटी एक दिन में बनने-बिगड़ने वाली चीज़ नहीं है। लोग थोड़ी देर के लिए भावना के उबाल में भले आ जाएँ लेकिन अंतत: भरोसा उसी का करते हैं जो उनके भोगे सच को छापता है। पहले ही दिन कोई कैसे जान सकता था कि मंड़ुवाडीह की असली अंदरूनी हालत क्या है। अब हमें जितना पता है, उतना छापेंगे। हो सकता है कल कुछ और नया पता चले उसे भी छापेंगे। अगर हमने नहीं छापा तो हमारी क्रेडिबिलिटी का कबाड़ा तो तब होगा जब लोग देखेंगे कि कंस्ट्रक्शन कंपनी मंडुवाडीह में इमारतें बना रही है।
गुणाभाग और अंततः ज़िंदगी
मामला उलझ गया कुछ तय नहीं हो पाया। मैंनेजर ने डाइरेक्टरों से बात की। डाइरेक्टरों ने प्रधान संपादक को तलब किया। प्रधान संपादक ने फिर बैठक बुलाई। प्रधान ने स्थानीय संपादक को वह समझाया जो वे जानते-बूझते हुए नहीं समझना चाहते थे। उन्होंने उन्हें बताया कि इस इलाक़े के जितने बिल्डर, नेता, व्यापारी अफ़सर हैं निधि कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ हैं और चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी वह बस्ती वहाँ से हटे ताकि काम शुरू हो। उन्होंने जनता को भी अपने पक्ष में सड़क पर उतार दिया है। अख़बार एक साथ इतने लोगों का विरोध नहीं झेल सकता। ख़ुद हमारे अख़बार के इस इलाक़े के फ्रेंचाइजी यानि जिनकी बिल्डिंग में हम किरायेदार हैं, जिनकी मशीन पर हमारा अख़बार छपता है, इस कंस्ट्रक्शन कंपनी के पार्टनर हैं। अख़बार के कई शेयर होल्डरों ने भी इस कंपनी में पैसा लगा रखा है। वे सभी अपनी मंज़िल के एकदम क़रीब हैं, और कहाँ हैं आप! ख़ुद डाइरेक्टर नहीं चाहते कि उनकी राह में कोई अड़ंगा डाला जाए। नौकरी प्यारी है तो हमें, आपको दोनों को चुप रहना चाहिए, फिर कभी देखा जाएगा।
स्थानीय संपादक को निकालने की पूरी तैयारी हो चुकी थी, इसलिए उन्हें सबकुछ बहुत जल्दी समझ में आ गया। स्टियरिंग कमेटी की बैठक में प्रधान संपादक ने भाषण दिया, सभी जानते हैं कि सरसों के पत्तों पर और बैंगन में अल्लाह अपना हस्ताक्षर नहीं करते, दो सिर वाले विकृत बच्चे देवता नहीं होते, खीरे में से भगवान नहीं निकलते, गणेश जी दूध नहीं पीते। यह सब सफ़ेद झूठ है लेकिन हम छापते हैं क्योंकि जनता ऐसा मानती है और उन्हें पूजती है। हम साढ़े तीन सौ वेश्याओं के लिए बीस लाख जनता से बैर नहीं मोल ले सकते। बाज़ार में हम धंधा करने बैठे हैं। हम वेश्याओं का पुनर्वास कराने वाली एजेंसी नहीं है। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है इसलिए उसकी भावनाओं का आदर करना ही होगा।
मैंनेजर मुस्कराया।
प्रधान संपादक ने स्थानीय संपादक को मुस्करा कर देखा, ‘हम अख़बार किसके लिए निकालते हैं?
‘जनता के लिए’ बेजान हँसी हँसते हुए उन्होंने कहा।
स्थानीय संपादक ने प्रकाश से कहा, इस समय ऊपर के लोगों में नाराज़गी बहुत है इसलिए थोड़ा माहौल ठंडा होने दो तब देखा जाएगा। वह जानता था कि धरती हिलाने का उसका अरमान सदा के लिए धरती में ही दफ़न किया जा चुका है।
उसी समय एक विचित्र बात हुई। जलसमाधि का इरादा लिए गंगा में फिरने वाला युवक एक दिन गाँजे के नशे में नाव से लड़खड़ाकर नदी में गिर गया। गले में बंधी पत्थर की पटिया के पीछे वह कटी पतंग की तरह लहराता हुआ नदी की पेंदी में बैठा जा रहा था। बड़ी कोशिश करके जल पुलिस के गोताख़ोरों ने उसे निकाला। पुराना पत्थर काटकर उसकी जगह छोटा पत्थर बाँधा गया। उसी दिन से अपने आप उसके गले में बंधे पत्थर का आकार घटने लगा। जैसे चंद्रमा घटता है उसी तरह पहले सिल, फिर चौकी, फिर माचिस की डिबिया के आकार का होता गया। धीरे-धीरे घटते हुए वह एक दिन तावीज़ में बदलकर थम गया।
उस क्रमश: घटते हुए रहस्यमय पत्थर की तस्वीरें, प्रकाश के पास मौजूद हैं।
अभी वेश्याएँ मंड़ुवाडीह से हटी नहीं है। अब वह युवक नाव में नहीं रहता। वह गाहे बेगाहे अपने गले का तावीज़ दिखाकर अपना संकल्प दोहराता रहता है कि वह एक दिन काशी को वेश्यावृत्ति के कलंक से मुक्ति दिलाकर मानेगा। लोग उसे प्रचार का भूखा, नौटंकीबाज़ कहते हैं और उस पर हँसते हैं। प्रकाश को लगता है कि वैसा ही एक तावीज़ उसके गले में भी है, जो हमेशा दिखाई देता है। उसे वह तावीज़ अक्सर अपनी क़मीज़ के बटन में उलझा हुआ दिख जाता है। उसे भी लोग धंधेबाज, दलाल और एक पौवा दारू पर बिकने वाला पत्रकार कहते हैं। उस पर और उसके अख़बार पर हँसते हैं।
प्रकाश सोचता है कि अब छवि से जल्दी से शादी कर ले। माना कि सच लिख नहीं सकता लेकिन उसे अपनी ज़िंदगी में स्वीकार तो कर सकता है।
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parkash ko ye buDha kabhi kabhar ek saste bar mein mila karta tha aur do paig ke baad pichhe paD jata tha ki wo ek paulisi le le taki use bima agnet bete ka taurget pura ho sake parkash usse hamesha yahi kahta tha ki phokat ki daru pine wale us jaise patrkaron ko itne paise nahin milte ki we bima ka premium bhar saken lekin kai sal baad bhi buDhe ne apni rat nahin chhoDi
pushti ki gai to khabar bilkul sahi thi lekin bima company ka koi adhikari is khabar ke sath apna nam dene ko taiyar nahin tha wo mariyal clerk aisi khabar laya tha jise waqi skoop kahte hain, do din ki paड़tal aur speD work ke baad use chhapna tay kiya gaya lekin jis din khabar compose hui, pata nahin kaise leak hokar Diaiji tak ja pahunchi phir mobile phonon ki tarangen khabar ki gardan par lipatne lagi Diaiji ne rajdhani mein ek mantari aur phir police mahanideshak ko katar bhaw se sailyut bajaya in tinon ne akhbar ke do Dairektron ko mumbai phone lagaya Daitektron ke aapas mein baat ki phir pardhan sanpadak ko talab kiya pardhan ne asthaniya sanpadak ko phone kiya asthaniya ne assitent ko asistent ne news editor ko, news editor ne byuro chief ko byuro chief ne city chief ko khabar rokne ke liye adesh diya itni siDhiyon se luDhakti ye ashanka i ki ye khabar aapsi spardha mein kisi bima company ne is bima company ko badnam karne ke liye plant karai hai isliye ise kuch din tak rokkar swatantr Dhang se jaanch paDtal ki jaye parkash ke pas manaikarnaika ghat ki zamin par baithkar sir muDate Diaiji ki photo bhi thi, jiska caption ‘sir munDate hi ole paDe’ usne pahle se hi tay kar rakha tha lekin ole ab photo se bahar chhitak kar kahin aur paD rahe the
usi sham burqe mein chehra Dhake ek adheD aurat lagatar pan chabate ek kishor ke sath teen ghante se daftar ke bahar khaDi thi wo ek hi rat lagaye thi ki use akhbar ki faiktri ke malik se milna hai darban se use kai bar samjhaya ki ye faiktri nahin hai aur yahan malik nahin, sanpadak baithte hain, wo chahe to unse jakar mil sakti hai aurat jirah karne lagi ki aisa kaise ho sakta hai ki akhbar ka koi malik hi na ho aur use to unhin se milna hai aate jate kai riportron ne usse puchha ki uski samasya kya hai lekin wo kuch batane ko taiyar nahin hui rat lagaye rahi ki use malik se milna hai kaam bhi kuch nahin hai, bus salam karke laut jayegi si antratma ki ki nazar us par paDi to dekhte hi bhaDak gaye, ‘tum yahan kaise, tumhari himmat kaise hui press mein aane ki, bhago chalo yahan se had hai ab yahan bhi ’ ghabrai hui wo aurat laDke ka hath pakaDkar tezi se nikal gai wo si antratma ke mohalle ki aurat thi aur we use achchhi tarah pahchante the
parkash is tarah hath mein i kamyabi ke hatasha mein badal jane ke khel ka aadi thi wo us nazarband ko pahchanne laga tha ki jisse ke chalte bisiyon scandal, ghotale aur rahasy aise the jo sabko pata the lekin nazarandaz kiye jate the un par dimagh lagane ko abodh, launDpan samjha jata tha lekin aaj use samajh nahin aa raha tha ki chhawi ko kaise samjhayega sorry, main tumhari dost ke liye kuch nahin kar paya ke jawab mein ansuon se rundhi awaz mein chhawi ne kaha, ye akhbar aur channel madari ki tarah khu ko sach ka thekedar kyon batate hain saf kah kyon nahin dete ki unhen Diaiji jaise hi log chalate hain
lambi chuppi ke beech saty ka madari ko kai bar usne thook ke sath gutka wo soch raha tha ki kya sachmuch uske fashion photographer banne ka samay aa gaya hai kam se kam tab use un bhrmon se to chhutkara mil jayega jo use kabhi kabhar sach sabit ho kar uska rasta rok lete hain achanak chhawi ne kaha ki chalo tumne marne ke baad hi sahi lowely se chiDhna to band kar diya lekin fotografi ke bahane mauDlo ke beech raslila ke mansube mat palo parkash chaunk gaya ki kis satik tariqe se wo uske sochne ke Dhang ko track karne lagi hai
math, khanjan chiDiya, miss lahurabir
Diaiji ramashankar tripathi ke bhawy, fotojenik, ritayarD aiees pita pariwar ki pratishtha, bete ke career ki chinta ke aaweg se mathon, annakshetron aur ashrmon ki parikrama karne lage banaras mein british zamane ke bhi pahle se afsaron aur mathon ka rishta tikau, upyogi aur wilakshan raha hai commissioner, collector, kaptan aadi posting ke pahle din kashi ke kotwal kalabhairaw ke aage matha nawakar madira se unka abhishaek karte hain jo duniyadar, chatur hote hain we turant kisi na kisi shaktipith mein apni astha ka langar Dal dete hain, kyonki wahan aharnish paraspar shaktipat hota rahta hai
in shaktipithon mein desh bhar ke ‘hu iz hoo’ neta, udyogapti, wyapari, mafia, mantari bhakt ya shishya ke roop mein aate hain aur we apne guruon ke liye kuch bhi karne ko aatur rahte hain afsaron ki taraqqi, tabadla, wirodhiyon ka safaya, khufiya jaanch rapton ka niptara sare kaam guruon ke ek sanket se ho jate hain iske badle we mahanton, jyotishacharyon, tantrikon, wastushastriyon aur prachyawidya ke gyataon ki ichchhaun ko adesh mankar palan karte hain kyoki wo pranimatr ke kalyan ke liye kiya gaya dharmik kary hota hai naukarshahi aur dharm ka ye sambandh arhar aur chane ke paudhon jaisa anyonashrit hai donon ek dusre ko poshan, samrddhi aur jiwan dete hain chhote mote sant ki manyata pa chuke us waqt ke commissioner ne ek math ko apna kainp karyalay bana liya tha aur sarkari odash ke anupalan mein banaras ko wishw dharohar ghoshait karne ki arji yunesko mein Dal rakhi thi jiski pairawi ke liye we har mahine amerika jate the math mein aane wale wideshiyon, prawasi bhartiyon, udyogapatiyon aur sethon ko wa mahant ki kripa se kashi ke wikas mein dhan lagane ke liye prerit kar ek arab se adhik rupaya ikattha kar chuke the ye kaam aaj tak koi adhikari nahin kar paya tha
jinse manyata, garima aur shakti milti hai, shaktipithen unhen apne qarib aur qarib bulati hain dharm ki chhatri ke niche yahan, adhunik aur puratan, wairagy aur aishwary, dhandhe aur adhyatm, sahajta aur tikDam ishwar ki upasthiti mein is kaushal se aapas mein ghul mil jate hain ki kahin koi joD nazar nahin aata jo jitne shaktishali aur sanpann dikhte hain unki aatma utni hi khokhli aur asurakshait hoti jati hai aise logon ko abhai aur ashwasti ka naitik sambal dene wala ye shahr banaras chumbak ki tarah khinchta hai bhautik chizon ki kamna karte, dukhi sadharan log in shaktipithon ko astha dete hain aur badle mein sukha ashirwad pate hain ye khanti adhyatmik len den hota hai shaktishali logon ke astha niwedit karte hi ye len den bhautik ho jata hai aur we in shaktipithon ke sabse surakshait gopan rahasyon mein barabar ke sajhidar ho jate hain
yoon hi ishwar ne fursat ke ek din Diaiji ke bhawy fotojenik, buDhe bap ki aart pukar sun li october ke mahine mein achanak khanjan chiDiyan chhaton par phudakne lagin aur akhbar ke chitkabre pannon par stori siriz ‘kahani badnam basti kee’ nachne lagi
naitikta ke sannipat mein Dubte utrate do riportar, guide si antratma ke pichhe pichhe ghumte hue manDuwaDih, shiwdaspur ke mohallon aur ganwon ko khangalne lage khabren chhapne lagin ki nagar wadhuon ke karan asapas ke mohallon ki laDakiyon ki shadiyan nahin ho ya rahi hain, kaiyon ke talaq ho chuke hain, kai mayke aane ko taras rahi hain, bhaiyon ki kalaiyan aur sawan ke jhule sune paDe hain log ganw, mohalle ka nam chhipakar rishte joDne ki chalaki karte hain lekin asliyat pata chal hi jati hai tab manDap ukhaDte hain, barat lautti hai battis sal ki ba pas sarla ko shadi ke nam se nafar ho gai hai aur ab use dwarachar ke geet sunkar histiriya ke daure paDte hain shiwdaspur mein pan ki dukan lagane wale rajesh bhardwaj ki shadi panch bar tuti, chhathi bar jaunpur ke tirlochan mahadew mandir mein chori se wiwah hua, pol khul gai laDki ki widai rokkar, kahin aur shadi kar di gai nate rishtedar halachal lene tak ganw mein nahin aa sakte, unhen dalal jabran kothon mein kheench le jate hain, weshyayen bhaDue gunDe unka malamatta chheen lete hain jaan bacha kar nikle to police ghaDi anguthi batua chheen leti hai sharm ke mare kisi se kuch kah bhi nahin sakte sham Dhalte hi sharabi gharon mein ghuskar bahu betiyon ke hath pakaDkar khinchne lagte hain ye ki jalalat se bachne ke liye log apne makan aune paune bechkar bhag rahe hain kai to apne ghar waise hi khali chhoDkar shahr ke dusre ilaqon mein kiraye ke makanon mein rahne lage hain akhbar ke pannon par kale akshron mein in lachar logon ki piDa aur unke beech ki khali safed jagah mein weshyaon ke prati nafar chhalachhla rahi thi khabron ko wishwasniy banane ke liye parkash ko Dheron Dahti khaprail wale, bhuthe makanon ki foton khinchni paDi jo waise bhi rahne ke layaq nahin rah gaye the
to bahnon, dhandha band
manDuwaDih ke asapas ke ganwon—mohallon se local netaon ke byan aur afsaron ke pas j~napan aane lage ki weshyaon ko wahan se turant hataya nahin gaya to we andolan karenge andolan se prashasan nahin sunta to we khu khadeD denge raton raat kai nae sangathan ban gaye, rajaniti ke kichaD mein kumudini ki tarah achanak ubhri ek sundar aur gadabdi mahila neta snehalta dwiwedi aas pas ke ilaqon ka daura kar aurton ko golband karne lagin unka kahna tha ki we jaan de dengi lekin kashi ke mathe se weshyawritti ka kalank mitakar rahengi kai raat baithken aur sabhayen karne ke baad we ek din kai ganwon ki mahilaon ko lekar kachahri ke samne ki saDak par dharne par baith gain taiyari lambi thi, ye dharna pahle kramik phir mahinon chalne wale amarn anshan mein badal jane wala tha
Diaiji ramashankar tripathi ke khichDi balon ki khuntiyon mein kandhi pherne ke din aane mein abhi der thi lekin wo durlabh kshan samne tha apne dharmik pita ki ichha puri karne aur apni daghdar chhawi Dhulne ka sahi samay aa gaya tha achanak ek din we law lashkar ke sath dopahar mein manDuwaDih basti pahunche aur sabko bulakar ‘aj se dhandha band’ ka farman suna diya unhonne sarkar ki or se ailan kiya, dharm aur sanskriti ki rajdhani kashi ke mathe par weshyawritti ka kalank bardasht nahin kiya jayega weshyayen shahr chhoD den unke jate hi manDuwaDih ki badnam basti se guzarne wali saDak ke donon chhoron par police piket laga di gai shamon ko basti ki taraf lapakne walon ki thukai hone lagi niymit customer saDkon ke kinare murgha bane nazar aane lage jo sipahi roz kothon par munh marte the, unke munh latak gaye thane ke buDhe diwan ne khizab lagana band kar diya ghungharuon ki khanak, roop ki adayen, piyakkDon ki bakbak, dalalon ka commission aur police ka hafta sab hawa ho gaye manDuwaDih ke curfew jaise mahaul mein akhbar kajal aur lipistik se ziyada zaruri cheez ho gaya
akhbar ke circulation mein halka uchhaal aaya us hafte akhbar ki stiyring committe ki meeting mein unit mainnejar ne apni report pesh ki ki is stori sirij ka logon aur prashasan par zordar asar hua hai dharmik sansthaon ke wigyapnon ka flo bhi baDha hai ise jari rakha jani chahiye
si antratma akhbar ke upekshait kone se uthakar sabse chauDi desk par laye gaye aur achanak apne wyaktitw ki dinta ko tirohit kar bedhaDak, wyas ki bhumika mein aa gaye we apne paDos ke mohalle ki dincharya, ayojnon, jhagDon, arthshastr, saundaryashastr par dhara prawah, thoDa itrate hue bolte jate press ke sabse behtarin, warishth likkhaD use lipibaddh karte jate parkash ne unhen weshya wisheshagya ki upadhi di lekin usi kshan, uske bhitar wichar aaya ki durbal antratma bhukhe sanDon ko chara khila rahe hain, jaise hi unka pet bharega we unhen hurpet kar khadeD denge antratma ki jankariyon mein wo sab bhi anayas shamil ho gaya jo kuch ye likkhaD bachpan se weshyaon ke bare mein sunte, jante aur apni kalpana se joDte aaye the
kothon ka ek rangarang dharwahik taiyar hua, jiska lubb e lubab ye tha ki ziyadatar weshyayen bahut amir, sanki aur kulin hain kai shahron mein unki kothiyan, baghiche, caren, farm house aur baikon mein locker hain we chahen to ye dhandha chhoDkar kai piDhiyon tak baDe aram se rah sakti hain lekin har sham ek nae ishq ki aadat aisi lag gai hai ki we ye dhandha nahin chhoD saktin ek taraf kartunon, ilestreshnon aur sajawati type phesez se saja ye rangin dharawahik tha to dusri taraf routine ki tathyatmak riporten theen, jinki shuruat is tarah hoti thi, ‘Diaiji ramashankar tripathi ki pawitra kashi ko weshyawritti ke kalank se mukt karane ki muhim rang la rahi hai, aaj chauthe din bhi dhandha, mujra donon band rahe ab tak kul chhiyalis logon ko badnam basti mein ghusne ki koshish karte pakDa gaya inmen se ziyadatar ko jankari nahin thi ki dhandha band ho chuka hai ainda idhar nahin aane ki chetawni dekar chhoD diya gaya
Diaiji ke is puny kaam ki charon or prashansa ho rahi thi akhbaron ke daftaron mein sangitamay, sanskritnishth namon wale akhil jambudwip widdhat parishad, hitkarini parishad, jeew daya hitkarini samiti, manaw kalyan manDal, istri prabodhini pushkarni, kashi gauraw rakhsha samiti, parahit sadachar nyas, wed brahmanD adhyayan kendr aadi pachason sangathnon ki ‘sadhu sadhu’ ka ninad karti wigyaptiyan barasne lagin kahin na kahin har din unka samman aur abhinandan ko raha tha si antratma ab is dhanyawad se tapakte pulinde ko sankshaipt karne dopahar baad baithte aur der raat tak nichuD kar ghar jate unke liye alag se aadha pej tay karna paDa kyonki ye sanpadakiy niti thi ki sabhi wigyaptiyan aur do teen pramukh logon ke nam zarur chhape jayen jiska nam chhapega, wo akhbar zarur kharidega
tees sal baad itihas khu ko duhra raha tha tab badnam basti shahr ke beech dalmanDi mein hua karti thi basti nahin, tab unhen tawayfon ke kothe kaha jata tha wahan tahazib thi, mujra tha, unke gaye gramophone ke rikarD the, kinhin ek baiji se ek hi khandan ki kai piDhiyon ke gupchup chalne wale ishq the yahin se kai mashhur film abhinetriyan aur classici gaikayen niklin jinke bhawy wartaman mein hetha atit shalinata se wilin ho chuka hai wahan zamindar, rais aur hukkam aate the zamindari aur riyasaten ja chuki theen phir bhi kothe ki wo tahazib girti, paDti widrupon ke sath bahut din ghisatti rahi sattar ke dashak mein bhayanak gharib aur laDakiyon ki taskari ke karan wahan bheeD bahut baDh gai jin galiyon mein raison ki bagghiyan khaDi hoti thi wahan lafange haDaha saray ke mashhur chaku lahrane lage logon ke wirodh ke karan tawayfon ko shahr ki sima par manDuwaDih mein bsa diya gaya
tawayfon ke jane ke baad wahan cheen aur bangladesh se aane wale taskari ke samanon ka chor bazar bus gaya ab wahan naqli siDi ka sabse baDa bazar hai ilektraniks ke wilakshan deshi engineer in dinon wahan milte hain, jinke liye kala akshar bhains barabar hai lekin kabaड़ se kisi bhi desh ki kisi bhi multinational company ke mobile, siDi player, camere aur myujik sistam taiyar karke bechte hain ab tak weshyawritti ek susangthit, wishal wyapar ban chuki thi manDuwaDih mein ghazlen, dadra aur tappe sunna to door gende ke phool ki ek patti tak nahin bikti thi wahan sirf nirmam dhandha hota tha jahan karkhanon ke mazduron se lekar rikshewale tak gerahak the global daur ke plastic mani wale raison ko ab hath mein gajra lapet kar dhool, silan aur kuDe se bajabjati badnam basti mein jane ki qati zarurat nahin thi unhen apni pasand ke rang, saiz aur bhasha ki kalgarlen hotalon, farmhauson aur Draingrumon mein hi mil jati theen inmen se kai apne qasbon, shahron ya pardesh ki sundari pratiyogitaon ki wijeta theen miss lahurabir se lekar miss narth india tak bus ek fonkaul ki duri par saji dhaji intizar karti rahti theen
ghunghru aur bulldozer
dhandha band hone ke ek hafte baad, Diaiji ramshankar tripathi ka qafila phir manDuwaDih pahuncha aage unki bilkul nai hare rang ki jipsi thi pichhe khaDkhaDati jeepon mein kai thanon ke prabhari aur lathiyon, raiflon se lais sipahi the sabse pichhe ek rikshe par maik aur do bhompu bandhe hue the sham ko jab ye law lashkar wahan pahuncha to makanon ki battiyan jal chuki thi asman par chhate kuhre ke dhundhalake mein badnam basti ke donon taraf bhare pani ke gaDDhon ke par ek ek bulldozer reng rahe the koi kanstrakshan company is khalar zamin ko patwa rahi thi kuhre mein hichkole khate bulldozer basti ki taraf baDhte matwale hathiyon ki tarah lag rahe the
ek jeep ke bonat par mushkil se chaDh pae ek tundiyal sipahi ne maik se ailan kiya, ‘manaw manDi ke sabhi bashinde fauran yahan aa jayen, Diaiji sahab unse baat karenge, unki samasyayen sunenge aur unka nidan karenge ’ manDuwaDih thane mein manaw manDi baqayda ek beet thi aur ek register mein wahan rahne wale sabhi logon ke nam pate aur atit darj tha nae aane aur jane walon ka rikarD bhi usmen rakha jata tha red lait area ke desi wikalp ke roop mein sabzi manDi, galla manDi, bakra manDi ke tarz par rakha gaya ye nam kitna satik tha manaw deh hi to bikti thi, wahan chetawni ki lalbatti jalti to kabhi dekhi nahin gai nagar wadhuon ko bulane ke liye sipahiyon ka ek jattha basti mein ghus gaya thane ke ye we sipahi the jo in makanon ki ek ek int ko jante the weshyaon ne socha tha ki dhandha band karana, police ki hafta baDhwane ki jani pahchani qawayad hai amtaur par thanedar ek aadh kothe par chhapa Dalta, do chaar dalalon se lappaD jhappaD karta koi laDki pakaD kar thane par bitha li jati aur tay toD ho jata tha lekin Diaiji khu dusri bar aaye the unhen andaza ho gaya tha ki is bar mamla gambhir hai
sabse pahle bachche aaye unke sath ek yuwak aaya, jisne do sal pahle unhen paDhane ke liye basti mein school khola tha bachche use master sahab kahte the pichhe basti ke dukandar, sazinde, bhaDue, sabse baad mein weshyayen ain itni bheeD ho gai ki usmen achanak gum ho gaye Diaiji ki photo khinchne ke liye parkash ko ek makan ki chhat par chaDhna paDa bheeD ke beech chhote se ghere mein, chaar panch buDhi aurten aur unki naqal karte bachche, balaiya lete hue, giDgiDate hue, natkiya Dhang se Diaiji ke pairon ki taraf lapak rahe the sipahi unhen Dantte hue aage baDhte, we unse pahle hi tapak se wapas apni jagah chale jate the ek chay ki dukan se laye gaye bench par, hathon mein maik thamkar Diaiji khaड़e hue to sannata khinch gaya basti ke kinaron par rengte bulDozron ki gaDgaDahat phir sunai paDne lagi unhonne kaha ‘bhaiyon aur bahnon ’ bahnon ke ‘on’ mein jaise koi chutkula chhipa tha, bheeD hansne lagi, weshyayen hanste hanste ek dusre par girne lagin
unhonne gala saf karke kahin door dekhte hue kahna shuru kiya, prashasan ko manaw manDi ke bashindon ki samasyaon ka pura dhyan hai, weshyawritti ghair qanuni hai isliye us par sakhti se rok laga di gai hai manDuwaDih thane mein alag se ek cell khola gaya hai aap log wahan jakar sarkari lon ke liye awedan karen aap logon ko chhoot ke sath, kam byaz par bhains, silai machine, achar papaD ka saman dilaya jayega apna rozgar shuru karen, jo kaam karne ke layaq nahin hain, unhen nari sanrakshan grih bhej diya jayega taki aap log ye beizzti ka pesha chhoDkar samman ke sath sarkar ke nari sanrakshan grih ka nam sunkar weshyayen phir aapas mein thitholi karne lagi Diaiji ne apne phaloar ko Dapta, jao pata karo, we kya kah rahi hain phaloar thoDi der weshyaon ke beech jakar hansta raha lekin palatte hi uska chehra pahle ki tarah sakht ho gaya lautkar attention ki mudra mein khaDa hokar bola, ‘sar, kahti hain fre mein samaj sewa nahin karenge ’
Diaiji samajh nahin pae, weshyaon ne sipahi se kaha tha ki sanrakshan grih jane se behtar to jel hai kyonki wahan fre mein samaj sewa karni paDti hai kuch din pahle sanrakshan grih mein sanwasini kanD hua tha wahan ki supariteDent netaon, afsaron aur akhbari bhasha mein safedaposh kahe jane wale logon ko laDkiyan supply karti theen jab ye mamla khula to ek ke baad ek markar panch laDkiyan ghayab kar di gain ye we laDkiyan thi jinhonne munh khola tha in dinon sibiai is mamle ki janchakar rahi thi
bheeD ke pichhe ek buDhiya ghash khakar gir paDi thi jhurriyon se Dhake uske chehre par sirf bebas khula munh dikhai de raha tha ek mariyal aurat baithkar anchal se use hawa karte hue galiyan de rahi thi, karamajle, mirasin ki aulad mar Dala bechari ko jab jawani thi tab yahi police wale roz nonchne aa jate the kasbin ki zat ab chauthepan bhains charayegi peDa banayegi koi jakar puchhe markilauna se ranDi ke hath ka kaun papaD khayega, kaun doodh piyega, kaun kapDa pahinega ye sab, hum logon se ghar bar chhinkar bheekh mangwane ka intizam hai aur kuch nahin shahr chhoDkar chale jao, jaise hum hath pakaD kar logon ko ghar se bulane jate hain logon ko hi kyon nahin mana kar dete ki yahan na aaya karen jo hamein bhagane ke liye dharna dekar baithe hain, wahi kahin aur jakar kyon nahin bus jate hamein kaun apne paDos mein basne dega yahan ki tarah wahan bhi chhoot nahin lagegi kya?
ye buDhiya akeli rahti thi usne sabere se kuch khaya piya nahin tha subah se hi wo donon chhoron tak ghoom ghoom kar andolan karne walon ko galiyan bak rahi thi uske do bete the jo kahin naukari karte the chori chhipe sal do sal mein milne aa jate the sabke samne use we apni man bhi nahin kah sakte the
laDki lana band karo dajyu
pichhe hangama dekhkar sipahi udhar lapke tabhi na jane kahan se ek adheD nepali aurat jhumte hue aakar Diaiji ke pichhe khaDi ho gai uske baal khule the, saDi dhool mein lithaD rahi thi, wo pikar dhutt thi agal baghal ki aurten use kheench rahi thi achanak wo chillane lagi aur uske galon par gandle ansu bahne lage, ‘asto na gar baDa sahab aasto na gar dajyu apana hukum mathe par liya ’
Diaiji chaunk kar pichhe ghumen to usne hath joD liye, ‘saheb, mera saheb pahle yahan nai laDki log ka lana to band karo saheb! hum log khu to nahin aaya saheb bahut baDa baDa log lekar aata hai nepal se, bangal se, oDisa se har nai laDki pichhe thana ko paintis hazar puja diya jata hai purana ka to ghar hai, baal bachcha hai, buDha hoke nahin to bimari se mar jayegi lekin naya laDki aata rahega to yahan ka abadi baDhta jayega jahan se laDki aata hai, raste bhar sarkar ko bahut rupaya milta hai ’
sipahi use chup karane lapke to uchak kar usne ek ki topi jhatak li aur usi se khu ko pitne lagi mano jis sabse buri honi ki ashanka ho, use khu apne hathon ghatit kar dena chahti ho, wo unmad mein baDabDaye ja rahi thi, ‘marega hamko, marega kat Dalega aur jasti kya kar lega yahan se koi nahin jayega jahan jao, wahin se bhagata hai kitna bhagega yahin mar jayega lekin ab kahin nahin jayega Diaiji hath mein maik liye bhaunchak takte rah gaye unhonne kai bar naraz hokar suniye, suniye ki appeal ki lekin hullaD mein udhar kisi ka dhyan hi nahin gaya sipahi ne usse topi wapas leni chahi to wo bhagne lagi sipahi pichhe lapka to usne topi pahan li aur thumakte hue bheeD mein ghus gai wo nachte hue aage aage, baukhalaya sipahi pichhe pichhe log sab kuch bhulkar hansne lage jo police wale wahan aksar aate the weshyayen unke sath isi tarah hansi thattha karti theen lekin aaj ye sipahi nathune phulaye, dant piste hue, uske pichhe laDkhaData bhag raha tha bachche taliyan bajane aur chikhne lage
Diaiji ne ghurkar police walon ki taraf dekha jo hans rahe the pahle we sakapkaye phir turant unhonne qatar banakar DanDon se bheeD ko basti ke bhitar thelna shuru kar diya jo basti ke nahin the, sipahiyon ko dhakelkar saDak ki or bhagne lage in bhagte logon par pichhe khaड़e sipahiyon ne DanDe jamane shuru kar diye isi beech ghusse se tamtamaye Diaiji apne phaloar aur Draiwar ko lekar nikal gaye basti mein school chalane wala laDka DanDon ke upar is tarah jhuka hua tha jaise lathiyan uske pankh hon aur wo uD raha ho wo wahin se chillaya, ‘ap unse khu hi baat kar lijiye, maiDam! pata chal jayega sharif aurten weshyaon ke bare mein baat nahin kartin we guड़iya pitne aur wishwasundri pratiyogita ke wirodh mein byan de sakti hain bus yahan ayengi to unke pati ghar se bhaga denge, sara nariwad phuss ho jayega ’
ek mahila riportar usse poochh rahi thi ki aap log mahila sangathnon se baat kyon nahin karte, tabhi lathiyan chalni shuru ho gai theen ab wo police walon ke pichhe ghabrai khaDi hui use lathiyon, shor aur basti ke andhere mein ghayab hota dekh rahi theen
bina efaiar balatkar nahin hota
thoDi hi der mein wo jagah khali ho gai jaise kabhi kuch hua hi nahin tha agle din akhbar mein heDlain thi, ‘weshyaon ne police ki topi uchhali, lathi charge, bais ghayal ’ akhbaron aur channelon ki bhasha mein ye mamla ab ‘hautkek’ ban chuka tha jise we apne hi Dhang se paros aur bech rahe the channelon ne ise kuch is tarah pesh kiya jaise desh mein ye apne Dhang ki akeli ghatna hui ho jismen weshyaon ne ek Diaiji ke sath gerahak se bhi bura saluk karne ke baad unhen khadeD diya ho akhbar ke daftar mein jo sangathan badhaiyan de rahe the, ab unki taraf se weshyaon ke is krity ke ninda ki wigyaptiyan barasne lagin kai aur sansthayen kachahri par chal rahe dharne mein shamil ho gain aur snehalta dwiwedi amarn anshan par baith gain manDuwaDih ke donon chhoron par ab ek ek platun piyesi bhi laga di gai badla chukane aur weshyaon ka manobal toDne ke liye police walon ne ek laDki ke sath balatkar kar Dala
chaudah sal ki ye laDki Diaiji ki meeting ke baad se khane ka saman lane ke liye saDak ke us par jane dene ke liye pahra de rahe sipahiyon ki winti kar rahi thi do teen bar i to Dapatkar bhaga diya agle din phir i to sipahi usse batiyane aur chuhal karne lage, use laga ki shayad ab jane denge isliye wo bhi din bhar itrati aur hansti rahi
andhera hone ke baad sipahiyon ne use ek chhote laDke ke sath saDak par karne di we samanon ki gathriyan lekar jaise hi laute sipahiyon ne DanDe patakte hue donon ko door tak khadeD diya we Dar gaye, kyonki basti se kabhi bahar nikle hi nahin the donon wahin saDak ke kinare baithkar rone lage, kai ghante baad jab dukanen band ho gain tab ek sipahi laDki ko bulakar ek lari ke bhitar le gaya wahan ek sipahi ne uska munh band kar diya aur do ne tange pakaD leen bari bari se chaar sipahiyon ne uske sath balatkar kiya phir use bachche aur potaliyon ke sath basti mein dhakel diya gaya weshyayen raat bhar saDak ke muhane par jama hokar galiyan deti rahin aur police wale ye kahkar hanste rahe ki unhonne laDki ko baDhiya training de di hai, ab aage kabhi koi diqqat nahin hogi
school chalane wale yuwak ne akhbar ke daftar mein aakar sara waqia sunaya ye laDki uske school mein paDhti thi riportron ne kaha ki wo efaiar ki copy layen tab khabar chhap sakti hai, koi to sabut hona chahiye usne bahut samjhaya ki jab police ne hi rape kiya hai to we kaise sochte hain ki apne hi khilaf efaiar bhi darj kar legi we chahen to laDki ko aspatal le jakar ya kisi Daktar ko basti mein le jakar medical jaanch kara sakte hain uski haalat ab bhi bahut kharab hai khabron ke bojh ke mare riportar is pachDe mein nahin paDna chahte the aur we jante the ki koi Daktar basti mein jane ko taiyar nahin hoga ek riportar ne shararat se kaha, ‘aur man lo medical jaanch ho bhi to kya niklega kya?’
‘matlab haiman broken, kharonch, khoon ye sab to report mein ayega nahin ’
dusre riportar ne hansi dabate hue ghuti cheekh ke swar mein kaha, ‘report mein ayega ewrithing ower saiz, tyubwel Deep, anebal two phainD enithing!’
kanphaDu thahakon ke beech wo yuwak hakka bakka rah gaya thoDi der baad use santwana dene ke liye ek riportar ne police supritenDent ko phone milaya to we hanse, weshya ke sath balatkar! wichitr lila hai are bhai sahab, we ajkal grahkon ke liye paglai ghoom rahi hain, samne mat paD jaiyega nahin to aap hi ka balatkar kar Dalengi ye police ko badnam karne ka ranDiyon ka khas paintra hain ye khabar nahin chhapi na hi kisi channel mein dikhi, kyonki kisi ke pas koi sabut nahin tha ki balatkar hua hai darasal supritenDent ki tarah patrkaron ko bhi ye samajh mein nahin aa raha tha ki akhir, kisi weshya ke sath balatkar kaise sambhaw hain
parkash ne achanak khu ko us yuwak jaisi haalat mein paya jiska huchur huchur hanste apne sathiyon ke samne ye bhi kahna byarth tha ki wo khabar de pane mein lachar hai lekin use yaqin hai ki laDki ke sath balatkar hua hai tab shayad agla nirmam jumla ye bhi aa sakta tha ki wo bhawishya ki ek anubhwi porn model tak pahunchne ka sootr bana raha hai
tabhi phone ki ghanti baji, ye chhawi thi jo kah rahi thi ki use ab photo khinchne ki tamiz seekh hi leni chahiye shayad awaz ke kanpan se use teewr purwabhas hua ki use laDki ke sath balatkar ki ghatna ka pata hai usne jab uniwersity mein byutishiyan ka course kar rahi chhawi ki pahli bar photo khinchne ki koshish ki thi to uske bhare bhare honthon par nachti rahasyamay hansi, ankhon ki shararat aur banh par kharonch ke do nishanon se akabka gaya tha camere ka shutter kholana hi nahin, us par laga Dhakkan bhi hatana bhool gaya tha aur lagatar photo khinchte, lagbhag haklate hue use tarah tarah ke poz dene ke liye kah raha tha chhawi ne jab kaha ki kai din se uska teli lence uske parlour mein hi paDa hua hai to laga shayad use nahin pata hai usse phone par baat karte hue use lagatar lag raha tha ki duniya mein bahut sare log hain jo apne sath ghat chuke ko kabhi sabit nahin kar payenge aur wo bhi unhin mein se ek hai wo unki awaz kabhi nahin ban sakta jo kamzori ke karan bol nahin pate, wo sirf unki awaz ko duhra sakta ya chehre dikha sakta hai, jinke pas taqat hai uski qalam mein kisi aur ki syahi hai, camere ke pichhe kisi aur ki ankh hai phone rakhne ke kafi der baad tak wo camere ka shutter kholta, band karta yoon hi baitha raha
khatak pata hai khatak nahin pata hai khatak pata hai uska dimagh jhula ho chuka tha
kanDom baba ki karuna
banaras mein dhandha band hone ki khabar pakar dilli se kanDom baba aaye sath basath sal ke buzurg baba weshyaon ko sekswarkar kahte the aur unhen eDs aadi yaun bimariyon se bachane ke liye deshbhar ke weshyalyon mein ghumkar kanDom bantte the ye kanDom unhen sarkar ke samaj kalyan wibhag aur kai wideshi sangathnon se milte the we laDakiyon ki taskari aur weshyaon ke punarwas ki samasyaon ko antarrashtriy manchon par uthate the we samarpit, phakkaD social ektiwist likhe jate the unhen filipins ka pratishthit maigsaysay puraskar mil chuka tha
we circuit house mein thahre taDke uthkar unhonne ganga snan aur wishwanath mandir mein darshan kiya phir phulmanDi gaye wahan ek truck se taza kate lal gulabon ke banDal utar rahe the unhonne ginkar ek sau chhihattar phulon ka banDal bandhwaya aur circuit house laute press aur tiwi walon ke sath danadnata hua unka qafila manDuwaDih se thoDa pahle saDak kinare ruk gaya jahan unhonne apna shrringar kiya kar mein baithe baithe unhonne sabse pahle kai rashtriya, antarrashtriy thappon wali t shirt pahni, do kanDom kholkar donon kanon mein latka liye, jo hawa chalne par sigon ki tarah tanne lagte the warna bakri ke kanon ki tarah latke rahte the kai kanDomon ko thoDa sa phulakar ek dhage mein bandhakar unki mala gale mein Dal li we aise angulimal lagne lage, jisne kisi paradarshi danaw ki ungaliyan katkar gale mein pahan li hon Draiwar se unhonne kai gubbare kar ke aage pichhe bandhawa diye unhonne pahle hi jiladhikari se anumti le li thi aur unke sath samaj kalyan wibhag ka ek afsar bhi tha, jis karan badnam basti mein ghusne mein unhen koi diqqat nahin hui
basti mein sannata tha, yahan wahan kuch bachche khali saDak par khel rahe the bachchon ne unki gaDi ko gher liya aur gubbare mangne lage unhonne unhen khadeDte hue kaha ki bachchon ko kanDom dena sansadhnon ki barbadi hai jab tak unki kanDom se sambandhit jigyasaon ka samadhan karne wale karyakarta har ghar tak nahin pahunchenge, bachche unhen ghubbara hi samajhte rahenge iske baad we har darwaze par jakar weshyaon ko taje lal lal gulab ke phool bhent karne lage ye kanDom baba ka apna khas tariqa tha jis red lait area mein we jitne dinon baad jate the, utne gulab ke phool bantte the yahan we koi chhah mahine baad aaye the unhonne kanDom dene chahe to weshyaon ne mana kar diya ek buDhiya ne unhen Danta, jab dhandha hi band hai to gubbara lekar kya karenge, ubalkar khayenge ki tumhari tarah jhumka banakar pahnenge ziyadatar kanDom dalalon aur bhaDunon ne jhapat liye, we inhen grahkon ko bechte the
phool bantne ke baad unhonne ek terah sal ki laDki ko kanDom dena chaha to wo sharma gai uske kandhe par hath rakhkar we use cameron ke samne late hue unhonne puchha, ‘beti kanDom ka istemal karti ho?’
wo chup khali ankhon se unhen dekhti rahi unhonne phir usse puchha, ‘lakDi khati ho ya nahin?’
lakDi ghabrakar bhag gai
kan mein latke kanDom ki chiknai ko anguthe aur tarjani ke beech malte hue we ab press ki taraf mukhatib hue, ‘lakDi khilana ek taknik hai jo kam umar ki laDakiyon ko dhandhe mein lane ke liye apnai jati hai ismen sola lakDi ka istemal hota hai jo pani mein bahut jaldi phool jati hai laDki ke bhitar is lakDi ko Dalkar use roz pani ke tub mein ya pokhar mein nahlaya jata hai jaldi hi laDki dhandhe ke layaq ho jati hai jab dhandhe se bacha nahin ja sakta to ise karne mein harj hi kya hai, isse laDakiyon ko taklif nahin hoti ’ press wale weshyaon ke jiwan ke bare mein unki jankari se chakit the
der tak bulane ke baad kuch weshyayen ikattha huin unhonne ek chhota sa bhashan diya, kuch din pahle dharmik nagri ujjain ki nagar palika ne weshyaon ko laisens diye the, hamne mang ki hai ki kashi mein bhi aisa kiya jaye iske liye mayor aur jiladhikari se baat hui hai jab se duniya hai tab se sex worker hain DanDe ke zor par weshyawritti koi nahin rok paya hai ek sau chhihattar deshon mein sex warkron ko dhandhe ke laisens diye gaye hain europe mein to laisens hai, bima hota hai, medical jaanch karai jati hai, aisi suwidhayen di jati hain jo hamare yahan ke sarkari karmchariyon ko bhi nahin milti hain agar weshyawritti band karni hain to punarwas ke antarrashtriy mankon ka palan kiya jana chahiye pahle aisi paristhitiyan banai jayen ki samaj, sex warkron ko samany nagarik ki tarah swikar kar sake, phir unhen dhandha chhoDne ko kaha jaye warna koi natija nahin niklega ’ unhonne nara diya, ‘kashi ko ujjain banao’ aur jane lage bachchon se ghiri ek aurat ne raste mein rokkar unse kaha ki kya we kanDom bantne ke bajay yahan khane ka kuch saman nahin bhijwa sakte yahan se koi na ja sakta hai, na andar aa sakta hai hum logon ke pas jo kamai thi, khatm ho chali hai yahi haal raha to hum log bimari se pahle bhookh se marenge unhonne use gulab ka phool dete hue kaha ki we jiladhikari ke pas ja rahe hain, unse is bare mein baat karenge basti se we jiladhikari ke pas chale gaye agle din unhen kisi sammelan mein thailainD jana tha
kanDom baba jis samay ghubbare mangne wale weshyaon ke bachchon ko langDate hue khadeD rahe the chhawi ne theek usi samay phone par bataya, use ashanka hai ki wo pregnent ho gai hai parkash ne use badhai dete hue bataya ki kal akhbar ke mein pej par uski aise adami se mulaqat hone wali hai, jo agar is duniya mein na hota to wo ab tak ek darjan bachchon ki man ban chuki hoti
agle hi kshan use laga ki uske pairon ke niche se zamin khisak rahi hai aur wo andhere mein dhansta ja raha hai chhawi ne shant Dhang se kaha ki usne kai mahilaon se baat ki hai jinka kahna hai ki barah hafte se ziyada ho chuke hain kandhe par latka uska bag dhapp se gir paDa wo laDkhaData hua ek makan ke aage nikle chabutre par baithkar ankhen phaDe kanDom baba ko dekhne laga use kuch dikhai nahin de raha tha, ankhon ke theek aage matamaile dhundhle chakatte uD rahe the uski taraf kisi ka dhyan jaye isse pahle usne khu ko zabardasti kheench kar khaDa karne ki koshish ki to chakkar aa gaya, mathe par hath phirate hue usne mahsus kiya ki wo jaDe mein bhi pasine se bhiga hua hai thoDi der baad akasmat pahli cheez uske dimagh mein yahi i ki chhawi us laDki ke sath balatkar ki ghatna ke bare janti hai wo phir ghaDi ke pendulum ki tarah jhulne laga, janti hai nahin janti janti hai uski puri zindagi is ek sawal par jaise aakar tik gai thi aur use bahut jaldi faisla karna tha aksar sir uthane wale sharmindagi se bhare sandehon aur unke shant hone par usse bhi bhishan atmaghati pashchatap mein sulagne ka samay ja chuka tha kyonki chhawi ke bhitar ek bachcha lagatar baDa ho raha tha aur wo kisi bhi cheez ka intizar nahin karne wala tha
si antratma ka kautuk
si antratma ko kanDom baba bahut dilchasp adami lage, us sham anayas unka skutar circuit house ki taraf muD gaya aur wo interwiew karne ke bahane unse milne chale gaye we is wichitr adami ko ek bar phir dekhana aur uski chhawi apne man mein theek se bitha lena chahte the unhonne socha tha, lage hath kanDom ke aath das packet bhi mang lenge ghar mein paDe rahenge, kabhi kabhi kaam ayenge
si antratma hamesha itne chaukanne rahte the ki unhen achuk Dhang se pata rahta tha ki kaam ki koi bhi cheez muft mein ya kam se kam dam mein kahan mil sakti hai unmen agar ye qabiliyat nahin hoti to press ki tankhwah se unki grihasthi ka chal pana asambhau tha dawaon ke muft saimpal we farmasiston, Doctron ke yahan se lete the, bachchon ki kitaben sidhe prkashkon se mang late the, kapड़e katpis ke riyayti dam par lete the, press kamphrenson mein milne wale pad aur kalmen sagrah batorte the jo bachchon ke kaam aate the wahan gift mein milne wale sajawati samanon ko we dukandaron ko bechkar naqad ya apne kaam ki chizen lete the khatara skutar unhen ek sajatiy thanedar ne supurdagi mein diya tha jo ek kurki ke baad thane ke ahate mein paDa saD raha tha unhen akhbar ki jo kamplimentri copy milti thi, we use paDhne ke baad aadhe dam mein ghar ke samne chay wale ko bech dete the aur is paise se bachchon ko yada kada biscuit, namkin waghairah dila diya karte the
circuit house mein ghanti bajane ke baad kanDom baba ne jaise hi kamre ka darwaza khola antratma ne adatan aur thoDa unke wyaktitw ke prabhaw mein jhukkar, atmiy muskan ke sath puchha, yahan par aapko koi diqqat to nahin hai, behichak bataiyega aap hamare mehman hain kanDom baba bidak gaye, ye circuit house hai ya Dakaiton ka aDDa, ek saf tauliya to de nahin sakte diqqten puchhne chale aate hain antratma akabka gaye, kuch bol hi nahin pae aur bhaDak se darwaza band ho gaya pure circuit house mein ek hi chikat tauliya tha jo waiter ne kanDom baba ko de diya tha unhonne saf tauliya manga to usne unhen bataya ki aap hi jaise guest log utha le jate hain isliye koi aur bacha hi nahin hai kanDom baba ne mainnejar se shikayat ki to usne bataya ki is sal abhi tak samanon ki kharid nahin hui hai si antratma jab interwiew mulaqat ke liye pahunche, us waqt bhannaye hue kanDom baba jiladhikari ko shikayati patr likh rahe the aur unhonne unhen circuit house ka waiter samajh liya tha
antratma daftar lautkar ye qissa suna rahe the ki city chief ne unhen Danta ki itni baDi khabar unke pas hai aur wo baithe chakallas kar rahe hain agle din ye tauliye wali khabar kanDom baba ke badnam basti daure ke beech mein double column box mein chhapi kanDom baba ka us din dilli lautna sthagit ho gaya, sham ko wo angrezi mein likha saDhe teen pej ka khanDan lekar akhbar ke daftar pahunche aur wahan si antratma ko baithe dekhkar unki cheekh nikal gai wo sanpadak se jhagaDne lage ki unka akhbar peet patrakarita kar raha hai khanDan mein likha tha ki aadar, atithy aur satkar ke liye we zila prashasan wa circuit house ke karmchariyon ke abhari hain tauliye ka qissa puri tarah managDhat hai kisi riportar ne is bare mein unse baat tak nahin ki hai akhbar ye sab zila prashasan ki chhawi bigaDne ke liye kar raha hai darasal ziladhikari ne kanDom baba ko bulakar kah diya tha ki we ya to turant is khabar ka khanDan chhapwayen ya phir agli bar se apne thaharne ka koi aur thikana DhoonDh len kanDom baba ka khanDan raddi ki tokari mein Dal diya gaya kyonki pata tha ki unhen raat mein dilli jana hi jana hai aur unke darshan phir kab honge koi nahin janta
asainment ke beech mein hi parkash parlour pahuncha aur chhawi ko lagbhag ghasitte hue bathrum mein le jakar use pregnensi ke hom test ki kit thama kar darwaza dhaDak se band kar diya thoDi der baad chhawi ne use dikhaya ki inDiketar saf bata raha tha ki wo sach bol rahi thi wo puchhna chahta tha ki tumhein us laDki ke balatkar ki baat kaise pata chali lekin munh se nikla, kab pata chala chhawi ne use chhua to wo kanp raha tha usne kaha, tumhara to wo haal ho raha hai jo, main tumhare bachche ki man banne wali hoon, ka bhayanak Dauylag sunte hi purani filmon ke hero ka hua karta tha
ab shadi ke bare sochna hoga jaldi kuch karna paDega, uska munh sookh raha tha kyonki bhitar lu chal rahi thi
jalasmadhi waya chinmay chilghoza
manDuwaDih mein nahin ganga ki manjhdhar mein ek naya sankat uth khaDa hua ek balidani hindu yuwak ne sankalp kar liya ki agar makar sankranti tak kashi ko weshyawritti ke kalank se mukt nahin kiya jata, to wo surya ke uttarayan hote hi jalasmadhi le lega munDit sir, janeudhari ye yuwak gale mein patthar ki ek bhari patiya bandhakar ganga mein hi ek naw par rahne laga pahle bhi ek bar wo aisa prayas kar chuka tha isliye prashasan wishesh satark tha uski naw ke aage aur pichhe prashikshait gotakhoron se lais jal police ki do nawen laga di gain
jal police ke pichhe mahabiri jhanDon se saji naw par shankh, ghanta, ghaDiyal bajate aur beech beech mein har har mahadew ka udghosh karte garw se tane samarthak chalte the pichhe nawon mein ilektranik channelon ke kru rahte the har kru ko apne interwiew ki bari ke liye samarthkon ki agli naw se token lena paDta tha jaldabaज़ media ki arajakta ko rokne aur yuwak ko paryapt wishram dene ke liye ye wyawastha ki gai thi kyonki bolte bolte uska gala baith chuka tha dilli aur mumbai ke baDe channelon ne bajre kiraye par lekar unhen obi wain mein badal diya tha we nirantar ‘sadachar ki ganga se ganaika wirodh,’ ‘jal mein andolan,’ ‘jal samadhi’ ka sajiw prasaran kar rahe the
dayen, bayen aur beech mein camere liye wideshi paryatkon ki kashtiyan ghusi rahti theen, we us yuwak ki naitikta, sankalp aur abhiyan ke wilakshan tariqe se chamatkrit the swiDan ki oriyental philosophy ki chhatra magdalina inken itni prabhawit thi ki usne yuwak se prem ki sarwajnik ghoshana kar di thi prakat taur par we yahi kahte the ki unhen is yuwak mein isa masih ki chhawi dikh rahi hai lekin aapsi batachit mein god mein rakhi bisleri ki botalon ko dulrate hue we pulak uthte the ki kitabon mein paDhe madariyon, samperon, sadhuon aur jadugron ke jin kartabon ko dekhne ke liye we yahan aaye the, anayas dikh rahe hain is durlabh kshan ki jhankiyon apne desh le jakar bechne ka awsar we chukna nahin chahte the
ye antarrashtriy dhaj ka ajib o gharib beDa bhor se lekar raat ke gyarah baje tak rajghat ke pul se ramangar ke qile ke beech ganga mein tairta tha ghaton par tamashbinon ki bheeD lagi rahti thi jab beDa unki nazron se ojhal hone lagta tha to we khijhkar har har mahadew ka nara lagate hue galiyan bakne lagte the aur pas aane par phir we prasannata se abhiwadan karte hue har har mahadew ka nara lagate the ye udghosh aisa sanput tha jiska istemal we prasannata, krodh, gauraw, hatasha, unmad sabhi bhawon ko wyakt karne ke liye saikDon salon se karte aaye the
weshyaon ko dhandhe ke laisens diye jayen na diye jayen is par tiwi channelon par tak sho ho rahe the jinmen weshyawritti ke wisheshaj~n, traifiking ke jankar, naitik prashnon ke shodhakarta, itihaskar, kalgarlon ke raiket pakaDne wale police adhikari, samaj kalyan se juDe afsar, mahila sangathnon ki neta aur aam log dharawahik bol rahe the ganga mein nawon par sawar riportar asahaye mandbuddhi bachchon ki tarah cheekh rahe the, ‘samuchi kashi nagri nadi aur ghaton par nikal i hai weshyawritti se naraz log har har mahadew ke nare laga rahe hain pani aur patthar ke beech ek yuwak ki jaan khatre mein hai, udhar weshyaon ne ab tak rozgar ke upayon mein koi dilchaspi nahin dikhai hai aur we maDuwaDih mein hi bani hui hain ab dekhana hai prashasan is chunauti se kaise nipatta hai main chinmay chilghoza waranasi se hawa hawai tiwi ke liye ’
udhar ghat kinare, assi mohalle mein buddhijiwiyon ka aDDa kahi jane wali ek chay ki dukan mein wishwwidyalyon ke nithalle professor, wiphal wakil, rajnitik dalon ke hatash karyakarta, berozgar, thalue, adhapagle bhangeDi, kawi, patrakar, lekhak aur batarsi aapas mein is mudde par joojh rahe the mathon mein kotharinon, mandiron mein dewdasiyon aur sewikaon ko lekar aujhaiti ke karmakanD mein pichhDi, dalit aurton ke sath wyabhichar ke uddharn diye ja rahe the to jawab mein har ghar mein chalte wyabhichar aur chhinalpan ke sachche qisse sunaye ja rahe the koi wiwah ko khana, kapDa, chhat aur suraksha ke ewaz mein hone wali samajik manyata prapt weshyawritti ka sabse baDa karmakanD bata raha tha to jawab mein aise wichar ka uts uske rakhail ki aulad hone mein talasha ja raha tha in sabke upar ek ayurwedic nuskha tha, jise sabhi apni smriti mein sahej lena chahte the ise ek bhangeDi ne weshyawritti unmulan ke upay ke roop mein sujhaya tha
sonth, satawar, gorakh gunDi
kamraj, wijya, narmunDi॥
girai na beej, jhaDe na DanDi
palang chhoD ke bhagai ranDi॥
uska kahna tha ki agar customer is nuskhe ka istemal shuru kar den to nagar wadhuen bhag jayengi aur maDuwaDih dekhte hi dekhte khali ho jayega patli gardan, jhuki peeth aur sookh chali janghon wale buddhijiwi ise yaad kar lena chahte the shayad unke awchetan mein tha ki weshyaon par na sahi apni patniyon, premikaon par to we iska istemal kar hi sakte hain
mahawar, ashiq ka banner aur putliyan
police wale manDuwaDih ki badnam basti se phir kisi laDki ko na ghasit le jayen, iski chaukasi ke liye toliyan banakar raat mein gasht ki ja rahi thi Dar kar bhagne waliyon ko manane ke liye panchayat ho rahi thi adalat jane ke liye chanda jutaya ja raha tha purane grahkon aur hamdardon se sanpark sadha ja raha tha shahr mein phaili is kacharghanw ke beech manDuwaDih ki badnam basti mein chupchap akhbaron par raushnai aur mahawar se angaDh likhawat mein ‘hamko weshya kisne banaya, ‘kashi mein kisne basaya, jo qimat se lachar un par bhi balatkar, pahle punarwas karo phir dhandhe ki baat karo jaise nare likhe ja rahe the pual, paulithin aur kaghaz ke alawon par elyuminiyam ki patiliyon mein patli lei pak rahi thi ek purana customer jo painter tha, banner likhkar de gaya jis itni phool pattiyan bana di theen ki jo likha tha, chhip gaya tha school chalane wale laDke abhijit ne rashtrapti se lekar collector tak ke nam j~napan likhe
ek din subah we achanak, chupchap apne bachchon, bhukhe khaurhe kutton, suggon ke pinjron, pandanon, khane ki potaliyon, pani ki botalon ke sath hath se sili jari ke kinari wale, phulpattiyon se Dhake banner ke pichhe mukhy saDak par aa khaDi huin aage wahi laDka abhijit tha aur sabke hathon mein nare likhi takhtiyan theen ye ab tak ke j~nat itihas mein weshyaon ka pahla julus tha jo aath kilomitar door kachahri par pradarshan karne aur collector ko mang patr dene ja raha tha teen sau aurton ki lambi qatar inmen se ziyadatar basti mein laye jane ke baad pahli bar bahar shahr mein niklin theen unhen dekhne ke liye traffic tham gaya, saDkon ke kinare aur makanon ke chhajjon par logon ki qataren lag gain
ranDiyan ranDiyan dekho, ranDiyan
lekin we kisi ko nahin dekh rahi theen, unki ankhon mein bheeD se ghire janwar ke bhay ki parchhai thi aur rah rahkar ghussa bhabhak jata tha laDenge jitenge, laDenge jitenge we kisi ka sikhaya hua, ajib sa nara laga rahi theen jiska unki zindagi aur huliye se koi mel nahin tha ziyadatar aurten bimar, udas aur thaki hui lag rahi theen mamuli saDiyon se nikle plastic ki chappalon wale pair sankoch ke sath idhar udhar paD rahe the mano saDak mein adrshy gaDDhe hon, jinmen girkar sama jane ka khatra tha bachche aur kutte bhi sahme hue the nare lagate waqt uthne wale hathon mein bhi lai nahin jhijhak aur betartibi thi lekin unki chinchiyati, bharrai awazon mein kuch aisa marmik zarur tha jo rah rahkar kachot jata tha unke sath sath saDkon ke kinare kinare log bhi garadnen moDe chalne lage logon ke ghurne se ghabrakar gale mein harmonium aur Dholak latkaye sazindon ne tan chheDi aur we chaurahon par ruk ruk kar nachne lagin
jhijhakte, nachte gate ye wishal julus jab kachahri mein dakhil hua to wahan bhi sansani phail gai
we nare lagati collector ke daftar ke samne ke baramde aur saDak par dharne par baithin aur charon or tamashbinon ka ghera ban gaya jaldi hi wakil, muwakkil, puliswale aur karmachari kaghaz ki parchiyon par ganon ki farmaishen likhkar un par phenkne aur not dikhane lage kuch Dheeth qim ke wakil hathon se mor aur nagin banakar bheeD mein baithi kam umar ki laDakiyon ko nachne ke liye ishare karne lage weshyaon ne unki or bilkul dhyan nahin diya, we apne bachchon ko sambhalti nare lagati baithi rahin do Dhai ghante baad ziladhikari ke bheje probation adhikari ne aakar kaha ki wibhag ke pas weshyaon ke punarwas ke liye koi phanD aur yojna nahin hai iske liye kendr aur rajy sarkar ko likha gaya hai unki mange sabhi sambandhit pakshon tak pahuncha di jayengi nari sanrakshan grih mein itni jagah nahin hai ki sabhi ko rakha ja sake ziladhikari ne ashwasan diya hai ki agar we dhandha nahin karen to apne gharon mein rah sakti hain, unke sath zor zabardasti nahin ki jayegi ziladhikari ne rahat phanD ki uplabdhata janne ke liye samaj kalyan adhikari ko bulwaya lekin pata chala ki we in dinon jel mein hain unke wibhag ke klarkon aur schoolon ke prdhanacharyon ne milkar hazaron dalit chhatron ke nam se farzi khate kholkar unke wazife haDap liye the is mamle ka bhanDa phutne ke baad kalyan wibhag par in dinon tala latak raha tha
bheeD mein se ek buDhiya probation adhikari ke aage apni maili dhoti ka anchal phailakar khaDi ho gai aur bharrai awaz mein kahne lagi, jab tak jawani rahi sarkar aap sab logan ki sewa kiya upar wale ne jaisa rakha, rah liye ab buDhapa hai sarkar ujaDiye mat kahan jayenge, kahin thaur nahin hai weshyayen hansne lagi, buDhiya probation adhikari ko hi kalaktar samajhkar fariyad kar rahi thi buDhiya bole ja rahi thi, ‘jab tak jawani rahi apaki sewa kiya sarkar ’ tamashabin bhi hansne lage probation adhikari ke chehre ka rang utar gaya wo jaldi se kuch bolkar muDa aur angrezon ke zamane ki kachahri ke baramde ke wishal khambhon ke pichhe adrshy ho gaya
yaj~n, jala hua school aur sampadkon se niwedan
weshyaon ke julus ke agle din dashashwmedh ke baghal mein man mandir ghat par brahamchari sadhuon aur batukon ne samajik paryawarn ki shuddhi ke liye ganaika uchchhed yaj~n shuru kar diya aate ke istriyon ke saikDon putle banaye gaye unhen nahlane ke baad chandan, sindur, guggul aadi ka lep karne ke baad kachche soot se lapet kar siDhiyon par saja diya gaya har din hazaron ki tamashai bheeD ke aage tiwi channelon ke kaimro ki upasthiti mein guru gambhir mantrochchar ke beech inhen hawan kunD mein phenka jata tha sadhu aur mantrik garw se batate the ki isse weshyayen samul nasht ho jayengi aur kashi punah pawitra ho jayegi
in sadhuon aur batukon ki adhik wishwasniyata nahin thi, isliye unhen bahut samarthan nahin mil paya inmen se ziyadatar sadhu, panDe the jo khastaur par wideshiyon ko phansne ke liye tuti phuti angrezi, phrench ya spenish bolte hue ghaton par albam liye baithe rahte the batuk bhi aise the jinhen pitrpaksh ke mahine mein yajmanon ki bhari bheeD jut jane par purohit dihaDi par laga lete the unhen ghaton par munDit siron ke beech thoDi thoDi duri par pothi thamakar bitha gaya jata tha purohit maikrofon par mantr bolte the, we use duhrate the we purohit ke nirdeshon ki naqal kar yajmanon ko upnirdesh dete the ek tarah se we pinDdan aur tarpan ke dihaDi mazduron ki tarah the
hawan kunD mein pakkar phat gai in putliyon ko widhi widhan purwak ganga mein prwahit kar diya jata tha raat mein in hawan kunDon ko ghaton par sone wale bhikhari tatolte the aur aag par paki in putliyon ka guda nikalkar kha jate the we apni bhookh mitane ke liye weshyaon ko waise hi kha rahe the jaise thoDe paise wale log apni bhookh mitane ke liye weshyaon se sambhog karte hain jab malaon aur dhagon mein lipti prwahit putliyan nadi ke kinaron par tir rahi theen aur unke nitambo, stnon, pet, janghon, chehron ka guda phulkar pani mein chhitar raha tha tab weshyayen rajnitik partiyon ke daftaron ke phere lagakar madad ki guhar kar rahi theen
DeDh mahine ke baad badnam basti ke bachchon ka school ek raat jala diya gaya ye school basti ke bahar ek khanDhar par teen shade Dalkar chalta tha school chalane wale yuwak abhijit ne bahut koshish ki lekin report darj nahin hui sabhi jante the ki kisne jalaya hai lekin police ne apni taraf se jaanch kar nishkarsh nikala ki wahan raat mein jua khela jata tha raat mein aag tapne ke liye juariyon ne jo alaw jalaya tha, usi se aag lagi thi akhbaron mein bhi yahi chhapa kyonki koi sabut nahin tha jiske adhar par aag lagane walon ko is ghatna ka zimmedar thahraya ja sake
ye laDka abhijit dilli wishwawidyalay se em phil karne ke baad kuch din madhya pardesh ke sidhi zile mein beDiniyon ke ek ganw mein ek sal raha tha yahan aakar usne weshyaon ke kuch bachchon ko god lekar paDhana shuru kiya ab uske school mein sau se adhik bachche paDhte the aur use wishwas tha ki ye bachche, us nark mein jane se bach jayenge weshyayen pahle apne bachchon ko school nahin bhejti theen kyonki unhen yaqin hi nahin tha ki unhen koi sachmuch paDhana chahta hai wo lagatar weshyaon se kahta rahta tha ki we apni amdani apne pas rakhen, use apne patiyon yani dalalon aur bhaDuon ko na den us paise ko apne aur bachchon par kharch karen
wo badnam basti ke purushon ki ankh ki kirakiri tha we school jalne se khush the yahan bhi ziyadatar aurten bina pati ke akele nahin rah pati theen unhen kisi na kisi se suraksha ki ot chahiye thi ye pati yani dalal, bhaDue aur sazinde hi unke liye gerahak patakar late the aur ziyadatar paise haDap lete the we aam patniyon ki hi tarah unke nam par wart aur upwas karti theen aur we unhen aam patiyon ki hi tarah pitte the ye laDka abhijit ab sab taraf se mayus hokar sare din akhbaron ke daftaron mein chaprasi se lekar sanpadak tak sabse niwedan karta rahta tha ki we bus ek bar chalkar apni ankhon se badnam basti ki haalat dekh len wahan bhukhamri ki haalat hai, chhah aurten kothe chhoDkar ja chuki hain aur dusre jaghon par dhandha hi kar rahi hain yahan agar police piket nahin uthti aur unka dhandha nahin shuru hota to we bhukon marengi, ya phir charon or phail jayengi isse weshyawritti kam nahin hogi, balki aur baDhegi si antratma ki tarah, aam patrkaron ki bhi uske bare mein ray yahi thi ki bachchon ko paDhane ki aaD mein wo laDakiyon ki taskari ka raiket chalata hai aur weshyaon ki amdani se hissa leta hai weshyaon ki bhalai ka swang karte hue wo karoDapati ho chuka hai
DeDh mahina bitne ke baad bhi kisi weshya ne thane mein jakar sarkari lon ki arzi nahin di thi aur koi bhi nari sanrakshan grih jane ko taiyar nahin hui ziyadatar sazindon, dalalon ke jane ke baad ye man liya gaya tha ki jaldi hi we sabhi kahin aur chali jayengi, sirf buDhi, bimar aurte rah jayengi jinmen se kuch ko police uthakar sanrakshan grih mein Dal degi baqiyon ko khadeD diya jayega jo ghumkar bheekh mangegi waise bhi janagnana wibhag weshyaon ki ginti bhikhariyon ke roop mein hi karta aaya hai
saDDe nal rahoge to aish karoge
ek din chupchap parkash ne abhijit ke samne prastaw rakha, main tumhare sath wahan chal sakta hoon lekin mujra karana paDega, photo khinchna chahta hoon uske man mein mujra dekhne sunne ki bhi bahut purani dabi ichha thi jo is samay asani se puri ho sakti thi is ichha se bhi baDi wo gutthi thi jise kholne ke liye manDuwaDih jana shayad zaruri tha
ek sham rutin ke photo press mein download karne ke baad wo jaldi nikal gaya aur manDuwaDih ki us basti mein pahunchakar usne paya ki wahan ki bijli kati ja chuki hai basti ke donon taraf bhare pani ke us par bulDozron ki gaDgaDahat aur chhapak chhapak mitti phenkne ki awazen aa rahi theen pahli bar dhyan se usne kothon ko dekha, jinhen ek khas tarah ke bhram ke karan kothe kaha jata tha ek tuti phuti saDak ke kinare inton ke ek manzila, kahin dumanzila makan the ziyadatar ke pichhle hisse mein palastar nahin tha patli patli galiyon mein khiDakiyon se laltenon aur mombattiyon ki raushani aa rahi theen basti ke donon taraf barsat ka saDta pani bhara tha aur charon or hawa mein badbu thi, machchhar bhinbhina rahe the saDak kinare ki khali paDi dukanon ki chay ki bhatthiyon mein aur chhajjon ki chhanw mein alaw jal rahe the, jinke gird aurten aur rukhe balon wale kumhlaye bachche baithe hue the ye daliton ka koi ganw lag raha tha jahan udas raat utar rahi thi
mujre ke turant intizam ke tahat kisi ghar se harmonium, kahin se Dholak mangai gai ek jhabre balon wala nasheDi lagta laDka ek baijon le aaya ek ghar ke dalan mein kai laltenen rakhi gain jiski chhat ke konon mein makDi ke jale the jinke asapas sust chhipkiliyan reng rahi theen diwaron par mamuli calendar aur phremon mein pariwaron ke mele, thele ya chaltau stuDiyoz mein khinchwaye photo latak rahe the andar ke darwaze par nauylan ki saDi ko phaDkar banaya gaya, chikat ho chuka parda latak raha tha thoDi der mein kamra aurton, bachchon aur dalalon se thasathas bhar gaya, use kisi tarah apna camera god mein rakhkar ukDu baithna paDa parde ki ot se ek kale rang ki moti si aurat i jiske chehre par pute pauDar ke bawjud chechak ke dagh jhilmila rahe the, baithkar ghunghru bandhne lagi parkash ko laga ki wo ghunghru nahin bandh rahin, kahin jane se pahle jute pahan rahi hai uske pichhe ghunghru bandhe ek khubsurat si laDki i jiski ankhe bilkul bhawahin theen wo honth aage ki taraf nikalkar beech mein khaDi ho gai use dekh kar parkash ko laga ki use kahin pahle dekha hai wo itni dubli thi ki enimiya ki mariz lagti thi
achanak sur milane ke liye tuti bhathi wale harmonium ne hanphna shuru kiya aur donon aurten nachne lagin we hath pair aise jhatak rahi thi jaise un par jami dhool jhaD rahi hon donon ne bhawahin tariqe se ek chalu filmi gana gaya ek unghti buDhiya ne jaise neend mein farmaish ki, ‘babu ko punjabi sunao, punjabi ’
ek kshan ke liye moti aurat ne honth phailakar parkash ki taraf dekha phir apne anchal ko kamar se nikalkar sir par patka bandh liya Dholak ki gamak ke sath uchakte hue unhonne gana shuru kiya, ‘bole tara ra ra, bole tara ra ra!
saDDe nal rahoge to aish karoge, duniya ke sare maze cash karoge ’
kai bachche bhi kudkar nachne lage aur dhakka mukki hone lagi kamre mein dhool uDne lagi, laltenon ke aage kuhasa sa gaya ab cheekh pukar ke beech sirf uchhalti hui akritiyon ka abhas bhar ho raha tha mano raat ke dhundhalake mein pret nach rahe hon waqi ye bhukhe aur kruddh preton ka hi nach tha jinhen gherkar saDte hue pani aur police ke pahre mein band kar diya gaya dhool ke ghubar ke karan ab photo kheench pana sambhaw nahin rah gaya tha wo uthkar bahar nikal aaya chehre ke samne ki dhool uDane ki bekar koshish karte hue abhijit ne kaha, ‘yahi inki zidangi hai sar ’
abhijit ko sath lekar parkash chala to saDak aate hi police wale chillate hue lapke isse pahle ki wo kuch bol pata ek lathi se motor cycle ki heDlait phoot kar chhitra chuki thi abhijit ne tezi se kaha, muD lijiye, dusri taraf se nikaliye janbujhkar mar rahe hain, ye press batane par bhi sunenge nahin
muDte muDte ek lathi abhijit ki peeth par paDi wo bilbila gaya basti ke dusre chhor par mustaid par police wale door se hi lathiyan lahrate, galiyan dete hue bula rahe the, wo samajh gaya ye nikalne nahin denge aaj ki raat yahin katni paDegi bahut dinon ke baad use us raat sachmuch ka Dar laga lag raha tha jaise pet mein pani bhar gaya hai aur munh se bahar aa jana chahta hai thoDi der tak basti ke donon chhoron se galiyan lahratin aati rahi, ‘sale, madarchod press ke nam par ranDibazi karne aate hain ’
motarsaikil khaDi kar sanyat hone ke baad dukhte hath ko senkne ke liye wo ek alaw ke aage baith gaya abhijit wahan pahle hi jacket utarkar apni peeth senk raha tha aur do bachche, sipahiyon ko galiyan dete hue, master sahab ki peeth ki malish kar rahe the donon nachne waliyan yasmin aur wimla use chheD rahi thi, aur karao, khuleam mujra, samujhawan bujhawan ka parsad mil gaya na
we donon ab parkash ko dekhkar muskura rahi thi kuch is bhaw se jaise ab aate dal ka bhaw kuch samajh mein aane laga hoga patrakar ji ko donon ke chehre par chuhchuha aaye pasine se pauDar jagah jagah bah gaya tha usne yasmin se kaha, tum donon nachti achchha ho, khoob nachti ho wo jaise bura man gai, khali pet khak nachenge diwali andhere mein gai, shadi byah mein satta hota tha, wo bhi band hua dekhiye kitne din numaish ke liye nachte hain alaw se phoos ka ek tinka khinchte hue yasmin ne ulahna diya, jinko khilaya, pilaya, bap bhai mana jab wahi dushman ho jayen to koi kya gayega aur kya nachega
parkash ne abhijit se puchha inke kaun bap bhai hai jo dushman ho gaye hain wo hansa, ‘khu hi dekh lijiye, ab ruk hi gaye hain to sab samajh mein aa jayega uske kahne par wimla ek ghar se ek chhota sa photo albam le i wapsi mein uske pichhe chhoti si bheeD chali aa rahi thi usne photo dikhane shuru kiye, ‘yah dekhiye sawitri ki bitiya ka kanyadan ho raha hai ’ agal baghal baithi kai aurton, bachchon ke chehre us photon mein the we sabhi ek sarpat ke manDap ke niche khaड़e the ek adami jhuka hua war ke pair dho raha tha
‘ye mayaram patel hain, jo is laDki ke bap hain yahin se DeDh sal pahle shadi hui thi aaj ye hum logon ko bhagane ke liye kachahri par dharna dekar baitha hua hai
ye dekhiye, asagri begam ke laDke ke khatne mein sabhasad tirathraj dube murgha toD rahe hain
botalon, gilason, juthi pleton ke pichhe do aurton ko agal baghal dabaye tirathraj dube photo se bahar bhahrane wala tha
‘yah dekhiye, hum logon ke chhote bhaiya salma se rakhi bandhwa rahe hain ’
pan ki dukan chalane wale rajesh bhardwaj ke hathon mein itni rakhiyan bandhi thi ki uski kalaiyan phuladan lag rahi theen
‘yah dekhiye pardhan ji suhani ke sath chand par ja rahe hain ’
shiwdaspur ke upaprdhan ram wilas yadaw kisi mele ke stuDiyo mein chamkili panniyon se saje lakDi ke chand tare par ek laDki se gal sataye bewajah muskura rahe the
‘yah dekhiye ye dekhiye we ek ke baad ek mamuli cameron se khinche hue ghairmamuli photo dikhaye ja rahi theen ’
hamari daru, murgha hamara, andolan unka
jaise photo albam mein koi pump laga tha har phlaip palatne ke sath parkash ki chhati mein hawa bharti ja rahi thi ye sabhi to badnam basti ko hatane ke liye andolan chala rahe, kachahri par amarn anshan par baithe neta the bus inke chhapne ki der thi ki unke pakhanD ko barud lag jata aur sara andolan kuch ghante mein chithDe chithDe ho jata apni uttejna par qabu pane ke baad usne albam hath mein lete hue kaha, lekin ye log to kah rahe hain ki unke bachchon ki shadiyan nahin ho pa rahi hain, bahu betiyon ka jina mushkil ho gaya hai
laga madhumakkhiyon ki chhatte par Dhela paD gaya alaw ki aag se bhi tez jibhen lapalpane lagin, ye asli dalle hain, apni bahu betiyon ka jina khu inhonne mushkil kar rakha hai inke ghar mein kaun si aisi shadi hui hai, jismen hum logon ne pachas hazar lakh rupya jama karke na diya ho aur muft mein gana bajana na kiya ho hamare samne to ayen, zaban hi nahin khulegi hum log to rajesh bhardwaj ki barat mein bhi gai theen, uski shadi yahin ki mahamaya ne karai hai jis makan mein wo rahta hai wo bhi mahamaya ka hi hai uske pas registry ke kaghaz hain, chahiye to abhi le jaiye prapanchi hain, kukarmi hain samne paisa dekhkar badal gaye hain koDh phutega salon ko
is kuhram se abhijit hakabka gaya thoDi der tak lachar bhaw se dekhne ke baad usne khaड़e hokar puri taqat se chillakar kaha, halla karne se koi fayda nahin mahamaya ko bolne diya jaye wo sabko janti hain ziyada achchhi tarah batayegi bhunbhunahat ke baad phir thoDi ke liye khamoshi chha gai
nepalin mahamaya ke basti mein teen makan th shayad sabse maldar aur manind wahi thi wo aag ko khodte hue ek chamkile shaal mein lipti chupchap baithi hui thi sabke chup hone ke baad usne jhurriyon mein dhansi, kajal puti, chamkilin akhen uthain, nashe se larazti awaz mein wo thahar thahar kar bolnen lagi, dekhiye koi chhath aath mahine pahle ki baat hai ye netaji log aur bhi kai sharif log basti mein roz aate the hamari daru pite the hamara murgha toDte the aur hamare hi sath sote the hum log bhi inse har tarah ka rishta rakhte the ye baat unke baal bachchon ko bhi pata hai lekin unka lalach baDhta hi ja raha tha ye log police ke bhi bap nikle, aaye din itna paisa mangte the ki dena hamare bus mein nahin raha master sahab ke kahne par sab aurton ne panchayat karke tay kiya ki bahut ho gaya ab paisa, daru, murgha band han, bol baat rahegi, unke prayojan mein pahle ki tarah nach gana bhi rahega lekin paise ki madad kisi ko nahin ki jayegi yahi narazgi ki wajah hai warna, hum logon ko to inhin logon ne aur unke bap dadon ne hi yahan basaya tha basaya bhi apne fayde ke liye bazar se teen gune ret par bhaDa liya aur panch gune ret par zamin aur makan beche apni sari punji lagakar hum logon ne apne thihe khaड़e kiye, ab ranDiya ankh dikhayen, un logon se ye bardasht nahin ho raha hai parkash ko basti ke bhitar ek nai basti nazar aa rahi thi
mahamaya ne upar tak kar kaha, ‘kaghaz lao makan hi nahin basti ke bhitar jitni dukanen hain, we bhi unhin logon ki hain ghar ghar mein jhagDa ho raha hai ki unki zid ki wajah se pachason pariwaron ki rozi roti mari ja rahi hai usne ek ek dukandaron ke nam ginane shuru kiye to unhin ke sajhidar, bhai, rishtedar ya naukar chakar the koi dukan chhoot jaye to bachche beech mein uchakkar yaad dila dete the aadhe ghante ke bhitar parkash ke pas ikkis makanon ki registry ke staimp lage asli kaghaz jama ho chuke the bees bais sal pahle waqi shahr se bahar ki jalabhraw wali zamin ke manmane dam liye gaye the
ab abhijit ne bolna shuru kiya ‘asliyat waisi ikahri nahin hai, jaisa ki aap log sochte hain darasal ye andolan ye bulldozer wale chalwa rahe hain jalabhraw ke agal bagal ke khet aur parti dilli ki ek kanstrakshan company ne kharid liye hain yahan ke kai baDe neta, bilDar aur mafia company ke phrenchaizi hain un sabki nazar is basti par hain, ganw aur paDos ke muhallon ke chalak log Diaiji ki shah pakar andolan isliye chala rahe hain ki weshyayen apne makan aune paune mein inhen bechkar bhag jayen phir ye unki plating karke bilDron ki madad se yahan apartament aur marketing kampleks banwayenge aur raton raat malamal ho jayenge yaqin na ho to inmen se jinke ghar hain, kisi se poochh lijiye dalal aur bichauliye makanon ki qimat lagane lage hain unhen lagta hai ki dhandha band hone ke baad weshyayen yahan ziyada din nahin tik payengi aap ghaur se dekhiye jo sansthayen ajkal Diaiji ka abhinandan karne mein lagi hain, unka koi na koi padadhikari kanstrakshan company ya phir bilDron se juDa hua hai
parkash ke sine mein phir se hawa bharne lagi wo turant uD jana chahta tha use tees sal pahle is ilaqe ki zaminon ke asal ret aur weshyaon ko ki gai registry ke ret ka tulnatmak wyaura, kanstrakshan company ke bhu upyog aur le out plan ka khaka, andolan kar rahe netaon aur Diaiji ki bilDron se saudebazi ke sabut aur kuch purane property Dilron aur riyal istet ke dhandhebazon ke bayanon ka intizam karna tha bus! ye koi baDi baat nahin thi registry daftar, wikas pradhikarn aur kanstrakshan company ke marketing diwision aur piarao se milkar ye sare kaam chutki bajate ho sakte the ek sanasnikhez stori siriz uski mutthi mein thi usne abhijit se kaha, ‘hamen ek bar phir nikalne ki koshish karni chahiye ’
‘ab ziyada khatra hai, subah se pahle nikalne ki sochiye bhi mat, is samay police wale trakon ko rokkar wasuli kar rahe honge, baukhla jayenge, abhijit ne kaha
ek laDki ne aakar bataya ki aaj raat khane ka intizam roti gali mein hai ziyadatar log khakar ja chuke hain, we log bhi pahunchen, nahin to khana khatm ho jayega parkash hichakichaya to ek adheD aurat ne hath pakaDkar khinchte hue kaha, ‘ham logon ka kothi, bangla aur gaDiyan sab to aapne dekh hi liya, ab chalkar khana bhi dekh lijiye baDe baDe lagon ka khana to roz hi khate honge, ek din hamara bhi khaiye
ek gali mein petromeks ki raushani mein weshyaon ki pangat baith rahi thi bachchon ko pahle hi khila diya gaya tha ye shayad akhiri pangat thi pattal par jab khichDi aur achar aaya to yasmin hansi, patrakar ji ajkal hum log yahi kha rahe hain jo kamaya tha DeDh mahine mein uD gaya agar paisa ho bhi to saman lane nikal nahin sakte chori chhipe chawal lakar yahi intizam kiya gaya hai
parkash achraj ko dabana chahta tha lekin munh se nikal gaya, ‘tawayfen sadhuon ki tarah khichDi kha rahi hain aur jahan ye bant rahi hai, us jagah ka nam roti hi gali hai ’
abhijit ne samne ki pangat mein kha rahi patthar jaise bhawahin chehre wali ek aurat se kaha, ‘ye patrakar hain, inko batao roti wali gali ko kisne basaya ’
jaldi jaldi chaar panch kaur khane ke baad wo bolne lagi, asli roti gali yahan nahin kanpur mein hai wahan bhi ek pagal police afsar i theen, nam tha uska mamta widyarthi, usne dhandha band kara diya aur pitkar sab adamiyon ko bhaga diya asapas ke log bhi hamein hatane ke liye dharna pradarshan karne lage DeDh sal tak hum log baithkar khate rahe, sochte the ki dhandha phir shuru hoga lekin nahin hua sabki haalat bahut kharab ho gai to bhagna paDa mera bachcha DeDh sal ka tha aur buDhi man thi sawitri, janki aur reshma ke bhi bachche chhote chhote the hum log kisi parichit ke sath yahan aa gaye baqi aurten kahan kahan gai pata nahin hum logon ka nam hi roti gali wali paD gaya hai parkash jaan gaya, agar ye yahan se gain to pata nahin kitne gaye manDuwaDih aur abad honge
khana khane ke baad donon baqi roti gali waliyon ke ghar gaye jahan mombatti ki maddhim raushani mein latakte chithDon ke beech une bachche besudh so rahe the parkash ne aise saikDon ghar dekhe the jahan gharib, bhookh aur dinta bachchon ki ankhon mein ansuon ki patli parat ki tarah jam jati hai aur we duniya ko hamesha bhay ke parde se dekhne ke aadi ho jate hain yahan unki ankhen band theen sote bachchon ki taswiren khinchne ke baad we phir alaw ke pas wapas aa gaye wahan ek luli buDhiya, wahi roz wala qissa suna rahi thi ki kaise ek barat mein nachte hue usne banduq ki nal par rakhe sau rupae ke not ko chhua tabhi banduq wale ne ghoDa daba diya uski jo hatheli ab nahin hai, usmen dard mahsus hota hai bachche use chup karane ke liye shor macha rahe the
nihlani ki ankhon mein naitikta ka pul
parkash ki haalat us sanp jaisi ho gai jisne apni auqat se kafi baDa meDhak anjane mein nigal liya ho, jise na wo ugal pa raha hai na pacha pa raha hai wo din mein zila kachahri ke samne dharne par baithe netaon ke pas baithkar lantaraniyan sunta, ghar aakar raat mein taswiron mein unke chehron ka milan karta har din unke byan paDhta aur raat mein registry ke kaghazon par unke halafname dekhta snehalta dwiwedi, Diaiji ke pita ke sath is beech lucknow jakar do bar mukhyamantri aur kai widhaykon se mil i theen din mein kai bar gaDiyon se utarne wale sone ki chenon, pan masale ke Dibbon, mobile fonon se lade phande log unka haal poochh jaya karte the prashasan ki sari apilen thukrakar unhonne ailan kar rakha tha ki ye dharna tabhi uthega jab manDuwaDih ki sari weshyayen shahr chhoDkar chali jayengi
tent ke aage laga weshya hatao kashi bachao ka banner ab os aur dhool mein lithaD kar matmaila paD chuka tha pual par bichhe safed razai, gaddon, masnadon par mail jamne lagi thi roz pahnai jane wali sookh kar kali paD chuki gende ki latakti malaon ki jhalar ban chuki thi gadde par bikhre lai chane, pan ke patton aur muchDe hue akhbaron ke beech, dharna dene wale ab bhi weshyaon, grahkon aur dalalon ke utpat ke qisse dharawahik sunaye ja rahe the samarthan dene wali sansthaon ke liye dopahar baad ka samay tay tha unke netaon ke aane ke sath maik on hota aur sabha shuru ho jati jo kachahri band hone tak chalti thi sham aur raat ka samay bhajan gane wale kirtaniyon ke liye tha we sabhi puri tanyamta se ek puny kaam mein sahyog kar rahe the
si antratma hi chhawi ko khush kar sakne wale, parkash ke khoji patrakarita abhiyan mein madad kar sakte the usne chant photographer ki tarah unki barson purani ek ichha puri kar di we na jane kab se kah rahe the ki parkash unke man bap ki achchhi si taswir kheench de usne antratma ke ghar jakar chupchap taswir hi nahin khinchi, ek painter se uska potret banwaya, abhi paint sukha bhi nahin tha ki akhbar mein lapetkar unhen bhent kar diya wo khushi aur achraj se hakke bakke rah gaye unhen andaza hi nahin tha ki unki chhipi hui sadh is tarah puri ho jayegi
antratma, parkash ko lekar shahr ke sabse baDe bilDar aur rajyasbha ke sadasy hariram agarwal ke pas lekar gaye, jisko wo apna dost kahte the parkash ko yaqin nahin tha ki antratma jaisa fatichar patrakar agarwal ka itna qaribi ho sakta hai wo baDe tapak se mila jaise ghisi paint qamiz wale antratma siddhanton, mulyon wale koi asaphal neta hon jinke liye uske man mein apar sahanubhuti hai use bataya gaya ki akhbar ke liye ek fotophichar karna hai jiski theme ye hai ki prastawit nirman pariyojana puri hone ke baad manDuwaDih ka pichhDa, badhal ilaqa kaisa dikhega aur shahr mein kya kya badlaw ayenge agarwal, fauran donon ko lekar nidhi kanstrakshan company ke emDi shriwilas nihlani ke pas gaye jo shahr ke ek panch sitara hotel mein thahre hue the company ke chief arkitekt aur jansanpark adhikari ko bhi wahin bulwa liya gaya
us sham wo hotel ke sabse shanadar soot mein ek bed par laiptap, phonon brifkeson aur kaghazon ke Dher se ghira sharab pi raha tha uske samne plastic ki kursiyon par wibhinn akar prakar ke karobari, bilDar, chhutabhaiye neta, ghunDe, dalal winamr bhaw se baithe hue the uska pet itna baDa tha ki lag raha tha, uske sanwle, wishal sharir ke baghal mein alag se rakha hua hai us pure paridrshy mein uski ankhen wilakshan theen uski asadharan baDi ankhon ka ujla parda ati atmawishwas se buna hua tha jis par ashwasti se nirmit, bhuri putliyan Dol rahi theen duniya ke sare rahasyon ko wo jaan chuka tha, shayad isiliye kisi bhi baat par uski ankhen jhapakti nahin thi aur na hi unmen wismay ka halka sa bhi bhaw aane pata tha
agarwal ke aate hi usne arkitekt aur piarao ko ishara kiya aur meeting chutki bajate nipta di samne baithe logon se usne kaha, us ganw mein jin logon ke baDe plot hain, unka ret thoDa baDha do unhen lagao ki baqi logon ko samjhayen phir bhi nahin samajhte to chhoD do, us ganw ko bhool jao hamare pas abhi chhah mahine ka time hai do mahine baad us zamin ke sarkari adhigrahn ka kaghaz nikalwa denge sarkari ret aur circle ret donon hamare ret se kam hai thoDa jindabad murdabad hoga aur police DanDa chalayegi to apne aap aqal thikane aa jayegi we apne khet apne hath mein uthakar le ayenge aur hamein de denge
jansanpark adhikari unhen dusre kamre mein le gaya, jahan mez par beyre khane pine ka saman laga rahe the sansad agarwal ne kaha, kuch lete rahiye, batachit bhi chalti rahegi, nihlani ji wyast adami hai
si antratma lapakkar uthe aur parkash ke kan mein kaha, ‘wahi wali piya jayega jo ye pi raha tha whisky se sabere pet bhi baDhiya saf hoga ’
nihlani kursi mein nahin at pata tha apna gilas liye bistar mein dhanste hue bola, is shahr mein city planning ka hum naya yug shuru karne ja rahe hain, purane ke theek baghal mein naya shahr hoga jahan duniya ke kisi bhi achchhe metro jaisi suwidhayen hongi duniya purana banaras dekhne aati hai lekin yahan ke log inch aur centimetre mein napi jane wali patli galiyon mein, tent mein rupaya dabaye ghut rahe hain hum unhen nae khule aur marDan shahr mein le ayenge wo hansa kahiye agarwal ji ye kabir das ki ulti bani kaisi rahegi
bahut sundar, bahut sundar! agarwal ne gilas rakhte hue bhawbhine Dhang se kaha jaise unka gala rundh gaya ho khankhar kar bole, ab dekhiye bhagwan ki kripa rahi, Diaiji sahab aur antratma ji ne chaha to do mahine mein akhiri samasya bhi khatm ho jayegi uske baad roD kliyar hai
nihlani hansa, Diaiji to dharmatma adami hai sain, tapasya kar raha hai bus antratma ji ke bhai bandon ki kripa bani rahe to gaDi nikal jayegi mainne to inke liye ek par ek phri ka auphar soch rakha hai ek makan ke badle ek dukan aur ek flat le jao aish karo waise bhi hamari scheme hai ki jab booking hogi to hum police, press aur wakilon ka khas khayal rakhenge patrakar sangh se baat hui hai agar unhonne paisa ikattha kar liya to hum patrkaron ke liye alag ek block de denge, usmen koi samasya nahin hai
agarwal ji ne antratma ka kandha thapthapaya, hamare to Diaiji yahi hain, inhonne bhi kam prayas nahin kiya hai antratma ki paki daDhi mein medhawi skuli chhatr jaisi muskan phail gai
nihlani ke sanket par arkitekt ne mez par naqsha phaila diya ardhachandrakar ghere mein gyarah gyarah manzil ke teen awasiy kampleks banne the jinke beech phaile saDkon ke jal ke dhagon ke idhar udhar marketing kampleks, parking zone, stadium, sinemahal, petrol pump, swimming pool, park, kamyuniti centre, sikyoriti aafis chhitre hue the lal nile rang nishanon se bhare sketch mein parkash andaza lagane ki koshish kar raha tha ki ismen badnam basti wali jagah kahan hai
arkitekt, achanak naqsha sametne laga to parkash ne haDabDakar puchha, agar weshyayen manDuwaDih se nahin hatti hain, tab aapke project ka kya hoga? nihlani ne ashwast bhaw se kaha, nahin hatengi to project ruk thoDe jayega balki aur shanadar ho jayega usne arkitekt ko ishara kiya, inhen maureliti bridge dikhao
arkitekt ne ab dusra sketch kholkar mez par phaila diya ardhachandr ke donon chhoron par bani bahumanzili imaraton ko ek ower bridge se joD diya gaya tha jiske niche, theek beech mein badnam basti thi
arkitekt samachar wachak ki tarah bolne laga, ye naitikta setu panch sau meter chauDa hoga jiske beech phaibar glas ke transapairent slaib honge yahan caren asani se pahunch sakengi niche hailojan laitas hongi, jisse niche, zaminn ki sari chizen raat mein bhi saf nazar ayengi ek bangijamping ka pletfarm hoga aur bhi bahut kuch hoga is bridge ka istemal manoranjan, sair sapate lekar nigrani tak ke liye kiya jayega aur wahan par
use rokkar nihlani ne batana shuru kiya ek ejensi se baat ho gai hai jo logon ko kiraye par har din durbinen degi aur suraksha ka intizam dekhegi aiDiya ye hai ki wahan ghumne aane wale log ticket lekar niche weshyaon ko ghumte, grahkon ko patate aur wahan chalta sara karobar dekh sakenge isse baDa manoranjan aur kya ho sakta hai police petrol aur nigrani ke liye khas intizam hoga police wahan se awaidh karobar par nazar rakhegi, apradhiyon ko pahchanegi isse crime control karne mein bhi kafi madad milegi ye bhi ho sakta hai ki isse banne wale manowaij~nanik dabaw, pahchane aur pakDe jane ke Dar ke karan wahan customer aana band kar den jab karobar hi thap ho jayega to weshyayen kitne din rahengi
parkash ko laga ye mazaq hai antratma jo bhaunchak, sans roke sun rahe the, thathakar hans paDe, ‘julum baat hai ye to waise hi hai jaise bachpan mein hum log sarpat mein chhipkar kuen par nahati aurton ko dekha karte the ’
parkash ne hairat se kaha, agar ye mazaq nahin hai to ye bataiye ki agar weshyaon ne dhandhe ka aisa koi naya tariqa apna liya, jismen saDak par koi dikhe hi nahin to kya hoga? jahan tak manowij~nan ki baat hai to bahut pahle makanon ki diwaron par peshab karne walon ke bare mein bhi log yahi sochte the lekin kya natija nikla
nihlani ne tisra peg khatm kar lambi hunkar bhari, sain tabhi to asli hona shuru hoga das sal mein hamara durabin culture aa chuka hoga tab intartenment kampaniyan apni laDakiyon ko lakar tumhare manDuwaDih mein bsa dengi unki chhaton par open air bar, kaibare, swinming pool, san bath stand, jakuji, sauna aur tarah tarah ke khel honge log unhen dekhne ke liye ayenge weshyayen in smart aur maldar laDakiyon wali kampaniyon ke aage pit jayengi ye kampaniyan unse pura ilaqa hi kharidkar use asia kya, duniya ke sabse baDe open air peep sho wale intartenment zone mein badal dengi banaras mein wideshiyon ki bhari aamad ko dhyan mein rakhte hue ye yojna taiyar ki ja rahi hai lekin abhi paiplain mein hi hai parkash hairat se nashe se ratnar, atmawishwas se damakti ankhon wali maihar ki dewi jaisi us murti ko dekhta hi rah gaya
nihlani ke sone ka samay ho chuka tha le out plan ki photo kapi, yojna ka broshar aur kuch taswiren parkash chala to antratma ne plate se ek mutthi kaju uthakar pant ki jeb mein Dal liya jansanpark adhikari ne bahar chhoDte samay sabhi ko nidhi kanstrakshan company ka ek momento, company ke hologram wali ek ghaDi, do hazar ke gift bauchar uphaar mein diye antratma ko ye kahte hue, kaju ka do kilo ek packet diya ki apne doston ki pasand ka hum khas khayal rakhte hain antratma ne bachche ki tarah use god mein utha liya raste mein hawa lagi to wo hichki lete hue budbudane lage, bahut durdin dekha dada, bahut durdin dekha
wo baDbaDa rahe the, sab koi bhagwan se manao ki ye sala muralti ka pul na bane, nahin to hamara pariwar barbad ho jayega basti wala makan to waise hi hath se nikal gaya hai aasha bandhi thi ki company kharid leti to kuch roti pani ka Daul baith jayega hamari to barah sau ki riportri karte kisi tarah kat gai panch panch bachche hain, pul ban gaya to sale kahan jayenge parkash ne unhen ghar chhoDa tab sisak rahe the, wishwanath baba se manao ki muralti ka pul na bane dada
titliyon ke pankhon ki dhaar
badnam basti mein pahle bhukhe bhanware aate the teen mahine tak khichDi khane ke baad ab bhukhi titliyan dam sadhkar phulon ki taraf uDne lagin, unke rahasyamay pankhon ke raste mein jo bhi aaya, kat gaya
sham ke dhundhalake mein jab gaDiyon ka dhuna manDuwaDih ki badnam basti ke upar jamne lagta, saji dhaji titliyan ek ek kar behichak bahar nikaltin sipahiyon ke tanon ka muskanon se jawab dete hue we saDak par kar jatin wahan pahle se khaड़e unke mausa, chacha, dulhabhai ya bhaijan yani dalal unhen ishara karte aur we chupchap ek ek ke pichhe ho letin we unhen pahle se tay grahkon ke pas pahuncha kar laut aate the jinke customer pahle se tay nahin hote the, we atrpt, kamatur preton ki talash mein saDkon aur ghaton par chalne lagtin aurton ko muD muD kar dekhne aur unka pichha karte hue bhatakne walon ko we thanDe, sadhe Dhang se itna uksati ki we ghabrakar bhag jate ya unhen rokkar tay toD karne lagte jo thoDa tez tarrar aur atmawishwasi theen we hotalon aur sinemahalon ke bahar konon mein ghat lagatin
doyam darje ki samjhi jane wali adheD aurten raat gaye basti ke dusre chhor se jhunD mein nikaltin aur ganw ke pichhwaDe kheton se hote hue high we par nikal jatin wahan os se bhige, pale se ainthte pairon ko kaghaz, plastic aur tyre jalakar senkne ke baad we ek ek kar Dhabon par khaDi trakon ki qatar mein sama jatin bhor mein jab we lauttin lariyon mein, chay ki dukanon ki benchon aur makanon ke chabutron par owercoat mein lipte, police wale aram se so rahe hote pahra dene walon ka haft tay kar diya gaya tha jise dalal aur bhaDue ek musht pahuncha aate the
ek dopahar parkash ghat par salma ko dekhkar chakkar khakar girte girte bacha wo nile rang ka skirt aur safed qamiz pahne, chhati par ek moti kitab dabaye, ek panDe ki khali chhatri ke niche baithi chhawi ke pet par leti, nadi ko dekh rahi thi chhawi ka pet thoDa aur ubhar aaya tha aur chehre par lunai aa gai thi salma ki banh par hath rakhe wo jitni shant aur sundar lag rahi thi, utna hi wibhats, hahakar parkash ke bhitar macha hua tha to mera purwabhas sahi tha use manDuwaDih mein us laDki ke balatkar ka pata tha shayad wo wahan ke bare mein mujhse kahin ziyada janti hai, usne socha uska hath camere par gaya ki wo donon ki ek photo utar le lekin phir wo wikshaipt jaisi haalat mein laDkhaData, bharsak tez qadmon se dusre ghat ki or chal paDa
samne jalasmadhi lene wale yuwak ke aage pichhe, ajib o gharib antarrashtriy beDa guzar raha tha aur logon ki tarah salma bhi naw par ghante ghaDiyal bajate, nare lagate logon ko dekhkar hath hila rahi thi
koi do ghante baad salma use phir dikhi is bar wo akeli, chhati par kitab dabaye bhatak rahi thi wo usse bahut kuch puchhna chahta tha, lapak kar pas bhi gaya lekin usne kitab ki or ishara kiya, aaj kal tumhare school mein quran paDhai ja rahi hai kya?
usne quran ko palat diya aur apni chutiya ko ainthte hue hansi tunak kar dhime se kaha, jo mujhe le jayega, wo kitab ko nahin paDhega achchha ab aap jaiye yahan mat khaड़e hoiye, baat karni ho to wahin din mein aiyega wahan ab raat mein koi nahin milta ab parkash ko dikha ki niche ghat ki siDhiyon par, nadi kinare usi jaisi panch sat aur laDkiyan skirt, salwar soot, sasti jeans pahne ghoom rahi theen unki bulati ankhe, rukhe baal, ziyada hi ithlati chaal aur kitaben pakaDne ka Dhang, koi bhi ghaur karta to jaan jata ki we school kalej ki laDkiyan nahin hain jo log unke khilaf itne tam jham se samarohpurwak apna ghussa ugal rahe the, unhin ke beech bhatakti hui we customer pata rahi theen parkash unke dussahas par dang tha shayad unhen sachmuch ki haalat ka pata nahin tha isiliye we saDak par hunkarate trakon ke beech meDhkon ki tarah phudak rahi theen agar logon ko pata chal jata ki we weshyayen hai to bheeD unki tange cheer deti aur jhulakar nadi mein phenk deti salma ne palatkar dekha parkash wahin khaDa, camera phokas kar raha tha usne puchha ‘ap akhbar mein hum logon ko nagar wadhu kyon likhte hain?’
parkash ne camere mein dekhte hue hi kaha, ‘kyonki tum kisi ek ki nahin, sare nagar ki bahu ho, tum yahan kisi khas adami ko to khoj nahin rahi ho, jo mil jaye usi ke sath chali jaogi ’
‘achchha tab mayor sahab ko nagar pramukh kyon, nagar pita kyon nahin likhte aur unse kah do ki aakar hum logon ke sath bap ki tarah rahen ’
parkash ne khilkhilati hui us weshya chhatra ko dekha use achanak lalbatti aur reDlait area ka farq nae Dhang se samajh mein aa gaya mayor purush hai, sanpann hai isliye lalbatti mein ghoom rahe hain tum gharib laDki ho isliye apna pet bharne ke liye maut ke munh mein ghuskar gerahak khoj rahi ho
uski hansi se chiDhkar puchha, ‘tumhen yahan Dar nahin lagta in logon ko pata chal gaya to?’
wo hansti hi ja rahi thi, usne nadi ke us par kshaitij tak phaile balu ka suna wistar dikhate hue kaha, ‘jinhen pata chal gaya hai, we laDakiyon ke sath us par reti mein kahin paDe hue hain aur we kisi se nahin kahne jayenge albatta halke hokar hum logon ko hatane ke liye aur zor se har har mahadew chillayenge achchha ab aap chaliye, nahin to laDkiyan aapko hi customer samajh kar pichhe lag lengi ’
beimani ka santosh
dhandha, shahr mein phail raha hai ye khabar Diaiji ramashankar tripathi ko lag chuki thi unhonne afsaron ki meetingen keen sipahiyon ki man bahan ki daroghaon ko jhaDa, elaiyu ko mustaid kiya, tabadale kiye lekin koi natija nahin nikla jo bhi manDuwaDih ke donon chhoron par pahra dene jata, bhaDuon ka ghussail baDa bhai ho jata jiski har sukh suwidha ka we Dheeth winamrata ke sath khayal rakhte kaptan waghairah rasmi taur par muayna karne aate to sipahi unhen weshyaon ke khali paDe do chaar ghar dikha dete we lautkar report dete ki dhandha band hone ke karan, un gharon ko chhoDkar we kahin aur chali gain hain Diaiji ne shahr ke laujon, hotalon mein chhape Dalwane shuru kara diye, jinmen bahar se aakar dhandha kar rahi kalgarlen pakDi gain lekin manDuwaDih ki koi weshya nahin mili hamesha ki tarah khabre chhapi ki raiket chalane walon ki Dayariyon aur kalgarlon ke bayanon se kai safedaposh logon ke nam, pate aur number mile hain jaldi hi police unse puchhatachh karegi aur unki qali khulegi hamesha ki tarah na puchhatachh hui, na qali khuli aur na hi phaloap hua kalgarlen zamanat par chhutkar kisi aur shahr chali gain aur raiket chalane walon ne bhi nam aur thikane badal liye
parkash ki duty lagai gai ki wo sham ko pahra dete puliswalon ke beech se hokar badnam basti se dhandhe ke liye nikalne wali laDakiyon ki photo le aaye usne pahli bar beimani ki, jab we nikal rahin thi, tab wo antratma ke ghar mein baithkar unke sath chay pi raha tha unke nikal jane ke baad wahan pahunchakar usne ek pura rol kheench Dala, jismen kuhre beech jhilmilate sipahiyon aur guzarte ikka dukka rahgiron ke siwa aur kuch nahin tha use flaish chamkate dekh, do sipahiyon ne khadeDne ki koshish ki to usne kaha ki we nishchint rahen aaj wo ek bhi photo aisa nahin khinga jisse unko koi pareshani ho ek sipahi ne puchha, bahut sadhu ki tarah bol rahe ho, bai ji logon ne kuch sungha diya hai kya?’
sipahi jab ashwast ho gaye to unhonne bataya ki kam umr ki laDakiyon ka dhandha baDhiya chalne se ab nai laDkiyan bhi aa rahi theen unhen manDuwaDih mein nahin, shahr mein kiraye par liye makanon mein rakha ja raha tha thane ka ret baDhkar ab paintis se pachas hazar ho gaya tha parkash ne antratma se kaha ki lagta hai nihlani ka maureliti bridge hi banega aur baDe logon ki chandi rahegi tum to bai ji logon se hi baat kar lo, shayad unmen se koi tumhara makan kharid le antratma ko afsos tha ki police bhi do tukDa ho chuki hai
press lautkar usne photo editor ko samjhaya ki kuhra itna hai ki wahan kuch bhi dekh pana sambhaw nahin hai jo ban sakti theen, we yahi taswire hain wo beimani karke bahut khush tha usne khu ko hatasha se bacha liya tha uske photo khinchne se akhbar ki thoDi wishwasniyata baDhti, circulation baDhta lekin dhandhe par koi farq nahin paDta police wale hi band nahin hone dete wo chahta bhi nahin tha ki dhandha band ho wo ab chahta tha ki chale aur khoob chale
mariyal clerk, thril aur galta patthar
(amar hone ki chah ke bajay zindagi ki gati ke sath chalne ke thril ko bar bar mahsus karne ki ghar se likhi is lambi kahani urf laghu upanyas ki ye samapan qit hai ise hazar panch sau pratiyon wali kisi patrika mein prakashit karane ke bajay net par khas maqsad se jari kiya gaya hai irada hai ki hindi ke pri paid alochkon, samikshkon aur sahitybazon ke bajay ise sidhe pathkon ke pas le jaya jaye aur unki ray jani jaye aap sabse agrah hai ki is kahani par apni ray bedhak Dhang se likhen bina is baat ki parwah kiye ki wo pahle kahin dekhi kisi swanamadhany ki likhawat ke asapas hai ya nahin kya pata bina sahityik wiwadon ki jhalar, alochana shastr ke salme sitaron se rahit, in ya un jee ke dayniy dabawon se mukt sahj prtikriyayen hindi ke nae lekhkon ki rachnaon ke mulyankan ka koi naya darwaza khol den aapke nazariye ko alag se prakashit kiya jayega )anil
bhejne ka pata haiः oopsanil@gmail com
koi teen mahine baad, phir bima company ka wahi mariyal clerk, kala chashma lagaye akhbar ke daftar ki siDhiyon par nazar aaya is bar phir pakki khabar laya tha ki praiwet Ditektiw ejensi ki jaanch report aa gai hai ki pan masala nahin, Diaiji ramashankar tripathi hi apni patni ki atmahatya ke zimmedar hain lagatar marapit, prataDa़na ke tarikhwar byaure wo lowely tripathi ki Dayariyon ki photo pratiyon mein samet laya tha iske alawa wo ye khabar bhi laya tha ki Diaiji tripathi DeDh mahine baad, apne se kafi juniyar ek mahila aipiyes afsar se shadi karne ja rahe hain in khabron ki swatantr paड़tal karai jane lagin
un dinon akhbar parkash ko behad ubau lagne laga har subah kholte hi kale akshar ek dusre mein gaDDmaDD apni jaghon se Dolte hue nazar aate the, jiski wajah se sirdard karne lagta tha aur wo akhbar phenk deta tha iski ek wajah to yahi thi ki jin ghatnaon ko khu usne dekha aur bhoga hota tha, we chhapne ke baad berang aur pranhin ho jati thi kisi jadu se unke bhitar ki asal baat hi bhap ki tarah uD jati thi pahli line paDhte hi wo jaan jata tha ki asliyat kaise shabdon ki lanatraniyon mein lapata hone wali hai routine ki baithkon mein use roz jhaD paDti thi ki wo akhbar tak nahin paDhta isiliye use nahin pata rahta ki shahr mein kya hone wala hai aur prtidwandi akhbar kin mamlon mein score kar rahe hain darasal wo in dinon apni ek bahut purani gupt lalsa ke sakar hone ki kalpana se tharthara raha tha ye lalsa thi nakachDha, ahankar se gandhata patrakar nahin sachmuch ka ek riportar hone ki aisa riportar jiski qalam saty ke sath ekmek hokar dharti mein kanpan paida kar sake
uske pas itne adhik kaghazi sabut, anubhaw, photograph aur byan ho gaye the ki ab aur chupchap sab kuch dekhte rah pana mushkil ho gaya tha ab wo jab chahe jab weshyaon ko hatane walon ke pakhanD ka bhanDa phoD sakta tha yahi sansani uske bhitar lahron ki tarah chal rahi thi sidhe sapat shabdon mein, usne raton ko jagkar compose kar Dala ki kaise paisa, daru, deh nahin milne par weshyaon ko basane wale local neta unke khilaf hue kaise nidhi kanstrakshan company ne unke ghusse ko apne paksh mein istemal kar liya kaise Diaiji ne apni chhawi banane ke liye dhandha band karaya aur baad mein we commissioner ke sath kanstrakshan company ke agnet ho gaye kanstrakshan company kaise isse baDa aur adhunik weshyalay kholne ja rahi hai weshyaon ko hatane se kaise ye dhandha aur jaghon par phailega kaise Diaiji ke pita aur commissioner ne dharmik bhaunaun ko bhaDkaya aur kaise har har mahadew ke udghghosh ke sath wirodh aur weshyawritti donon ek sath ghaton par chal rahe hain uska anuman tha ki ye series chhapte chhapte bima company ke jasuson ki jaanch rapat ka bhi satyapan ho jayega aur uske chhapne ke baad sare pakhanD ke chithDe uD jayenge iske baad shayad sachmuch weshyaon ke punarwas par baat shuru ho
parkash ne do dinon tak apne Dhang se sabhi chhote baDe sampadkon ko tatola aur ashwast ho gaya ki, uski riporting ka waqt aa gaya hai tisre din usne report, taswiren, registry ke kaghaz, le out plan aur tamam sabut le jakar asthaniya sanpadak ki mez par rakh diye pure din we unhen paDhte, janchate aur puchhatachh karte rahe sham ko aakar unhonne uski peeth thapthapai, ‘tum to yar, purane ranDibaz nikale! baDhiya report hain, hum chhapenge ’
ye sachmuch dil se nikli tarif thi
agle din akhbar ki stiyring committe ki baithak hui kyonki is masle par purana stand badalne wala tha sanpadak ka faisla ho chuka tha, baqi wibhagon se ab aupacharik sahamti li jane ki der thi DeDh ghante ki bahs ke baad akhbar ke mainnejar ne sanpadak se puchha, ‘manDuwaDih mein kul kitni weshyayen hain?
‘qarib saDhe teen sau’
‘inmen se kitni akhbar paDhti hain?’
iska ankDa kisi ke pas nahin tha usne faisla sunane ke andaz mein kaha, aaj ki tarikh mein sara shahr hamare akhbar ke sath hai kul saDhe teen sau ranDiyan jinmen se kul milakar shayad saDhe teen hongi jo akhbar paDhti hon, aise mein ye sab chhapne ka kya tuk hai agar koi bahut baDa aur naya reader group juD raha hota, to ye jokhim liya bhi ja sakta tha
sanpadak jo dhyan se uska ganait sun rahe the, hanse unhonne kaha, sawal weshyaon ki sankhya ka nahin hai mainnejar sahab! we agar teen bhi hoti to kafi thi unke bare mein jo bhi achchha bura chhapta hai use unka wirodh karne wale bhi paDhte hain balki unki ziyada dilchaspi rahti hai
mainnejar ne paintra badla, ab aap hi bataiye ki apne stand se itni jaldi kaise palat jaya jaye kal tak aap hi chhap rahe the ki weshyaon ki wajah se logon ki bahu betiyon ka ghar mein rahna tak mushkil ho gaya hai aur Diaiji dhandha band karakar bahut dharm ka kaam kar raha hai ab jab mudda aag pakaD chuka hai to us par pani Dal rahe hain aap bataiye akhbar ki kreDibiliti ka kya hoga sanpadak ne samjhane ki koshish ki ki kreDibiliti ek din mein banne bigaDne wali cheez nahin hai log thoDi der ke liye bhawna ke ubaal mein bhale aa jayen lekin anttah bharosa usi ka karte hain jo unke bhoge sach ko chhapta hai pahle hi din koi kaise jaan sakta tha ki manDuwaDih ki asli andaruni haalat kya hai ab hamein jitna pata hai, utna chhapenge ho sakta hai kal kuch aur naya pata chale use bhi chhapenge agar hamne nahin chhapa to hamari kreDibiliti ka kabaDa to tab hoga jab log dekhenge ki kanstrakshan company manDuwaDih mein imaraten bana rahi hai
gunabhag aur antat zindagi
mamla ulajh gaya kuch tay nahin ho paya mainnejar ne Dairektron se baat ki Dairektron ne pardhan sanpadak ko talab kiya pardhan sanpadak ne phir baithak bulai pardhan ne asthaniya sanpadak ko wo samjhaya jo we jante bujhte hue nahin samajhna chahte the unhonne unhen bataya ki is ilaqe ke jitne bilDar, neta, wyapari afsar hain nidhi kanstrakshan company ke sath hain aur chahte hain ki jaldi se jaldi wo basti wahan se hate taki kaam shuru ho unhonne janta ko bhi apne paksh mein saDak par utar diya hai akhbar ek sath itne logon ka wirodh nahin jhel sakta khu hamare akhbar ke is ilaqe ke phrenchaiji yani jinki building mein hum kirayedar hain, jinki machine par hamara akhbar chhapta hai, is kanstrakshan company ke partnar hain akhbar ke kai sheyar holDron ne bhi is company mein paisa laga rakha hai we sabhi apni manzil ke ekdam qarib hain, aur kahan hain aap! khu director nahin chahte ki unki rah mein koi aDanga Dala jaye naukari pyari hai to hamein, aapko donon ko chup rahna chahiye, phir kabhi dekha jayega
asthaniya sanpadak ko nikalne ki puri taiyari ho chuki thi, isliye unhen sabkuchh bahut jaldi samajh mein aa gaya stiyring committe ki baithak mein pardhan sanpadak ne bhashan diya, sabhi jante hain ki sarson ke patton par aur bengan mein allah apna hastakshar nahin karte, do sir wale wikrt bachche dewta nahin hote, khire mein se bhagwan nahin nikalte, ganesh ji doodh nahin pite ye sab safed jhooth hai lekin hum chhapte hain kyonki janta aisa manti hai aur unhen pujti hai hum saDhe teen sau weshyaon ke liye bees lakh janta se bair nahin mol le sakte bazar mein hum dhandha karne baithe hain hum weshyaon ka punarwas karane wali ejensi nahin hai loktantr mein janta sarwopari hai isliye uski bhaunaun ka aadar karna hi hoga
mainnejar muskraya
pardhan sanpadak ne asthaniya sanpadak ko muskra kar dekha, ‘ham akhbar kiske liye nikalte hain?
‘janta ke liye’ bejan hansi hanste hue unhonne kaha
asthaniya sanpadak ne parkash se kaha, is samay upar ke logon mein narazgi bahut hai isliye thoDa mahaul thanDa hone do tab dekha jayega wo janta tha ki dharti hilane ka uska arman sada ke liye dharti mein hi dafan kiya ja chuka hai
usi samay ek wichitr baat hui jalasmadhi ka irada liye ganga mein phirne wala yuwak ek din ganje ke nashe mein naw se laDakhDakar nadi mein gir gaya gale mein bandhi patthar ki patiya ke pichhe wo kati patang ki tarah lahrata hua nadi ki pendi mein baitha ja raha tha baDi koshish karke jal police ke gotakhoron ne use nikala purana patthar katkar uski jagah chhota patthar bandha gaya usi din se apne aap uske gale mein bandhe patthar ka akar ghatne laga jaise chandarma ghatta hai usi tarah pahle sil, phir chauki, phir machis ki Dibiya ke akar ka hota gaya dhire dhire ghatte hue wo ek din tawiz mein badalkar tham gaya
us kramshah ghatte hue rahasyamay patthar ki taswiren, parkash ke pas maujud hain
abhi weshyayen manDuwaDih se hati nahin hai ab wo yuwak naw mein nahin rahta wo gahe begahe apne gale ka tawiz dikhakar apna sankalp dohrata rahta hai ki wo ek din kashi ko weshyawritti ke kalank se mukti dilakar manega log use parchar ka bhukha, nautankibaz kahte hain aur us par hanste hain parkash ko lagta hai ki waisa hi ek tawiz uske gale mein bhi hai, jo hamesha dikhai deta hai use wo tawiz aksar apni qamiz ke button mein uljha hua dikh jata hai use bhi log dhandhebaj, dalal aur ek pauwa daru par bikne wala patrakar kahte hain us par aur uske akhbar par hanste hain
parkash sochta hai ki ab chhawi se jaldi se shadi kar le mana ki sach likh nahin sakta lekin use apni zindagi mein swikar to kar sakta hai
ye ek kahani hai lambi kahani, upanyas ki had se zara pahle khatm hoti hui chaar sal pahle likhi gai is kahani ne kafi dhakke khaye waise hi jaise kuch zara lambe ya nate, ziyada hansne ya chup rahne wale, matimand ya tez log apne ghar mein apaithi aur upeksha ke shikar ho jate hain karan kuch aur hote hain nazar kuch aur aate hain kisi ne kaha behad lambi hai, kisi ne kaha ki iska koi nayak nahin hai, ziyadatar ne kuch nahin kaha
dost ashok panDe aur mere mahbub kathakar yogendr ahuja ne paDha kuch sujhaw diye mainne kuch hisse phir se likhe ab ise aap sabke samne dharawahik prastut kiya ja raha hain paDhiye ise holi ka ek rang mana jaye
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chhawi jise photo samajhti thi, darasal ek duaswapn tha raste mein chalte chalte aksar use parkash ke hathon mein ek chehra dikhta tha aur uske pichhe apne donon hath sine par rakhe, kuch kahne ki koshish karti ek bina sir ki laDki
parkash jise sapna janta tha, ek photo thi jo kabhi bhi neend ki ghumer mein jhilmila kar lupt ho jati thi—rat ki jhapki ke baad jagte, alsaye ghat, lal dikhti nadi aur subah ka saf asman hai ek bahut unche jharokhedar burj ke niche saikDon nangi, mariyal, ubhri pasliyon wali kulbulati aurton ke upar kath ki ek wishal chauki rakhi hai us Dolti, kampkampati chauki par pila uttariy pahne urdhwbahu ek qaddawar adami baitha hai jiske sir par ek pujari tanbe ke wishal lote se doodh Dal raha hai chauki ke ek kone par mustaid khaDe ek muchchhaD sipahi ke hathon mein hanger se latki ek kalaf lagi wardi hai jo hawa mein phaDphaDa rahi hai thoDi door samuhbaddh, prasann batuk mantr budbudate hue chauki ki or akshat phenk rahe hain
is photo aur sapne ko ek din, puri shakti ke sath takrana hi tha aur shayad sabkuchh nasht ho jana tha mirtyu hamesha jiwan ke bilkul pas ghat lagaye dubki rahti hai lekin jiwan ke tap se sudur lagti hai ye din bhi un donon se bahut door bahut pas tha
fotojarnlist parkash janta tha ki ye sapnon ki photo hai jo kabhi nahin milegi lekin isi antarwastu ki hazaron taswiren un dinon galiyon, ghaton, saDkon aur mandiron ke asapas bikhri hui thi, jinmen se ek ko bhi wo qayde se nahin kheench paya sab kuch itni tezi se badal raha tha ki camera phokas karte karte drishya kuch aur ho chuka hota tha aur adrshy samne aa jata tha lagta tha pura shahr kisi taral bhanwar mein Dubta utrata chakkar kha raha hai
lowely tripathi ki atmahatya
dharm, sanskriti aur thagi ke puratan shahr banaras mein sahastrabdi ka pahla jaDa waqi ajab tha haD kampati, shitalhar mein log thithur rahe the lekin ghumawadar, sankri, andheri galiyon mein aur bheeD se dhansti saDkon par naitikta ki lu chal rahi thi lu ke thapeDon se samay ka pahiya ulti disha mein danadna raha tha
naitikta ki is lu ke chalne ki shuruat yoon hui ki sabse pahle ek kumlati patti toot kar chakrati hui zamin par giri
us din ke akhbar ke gyarahwen panne par si antratma ke mohalle ke ek ghar ki black enD white, double kalam photo chhapi aadha int aadha khaprail wale ghar ke darwaze ke baghal mein alakatre se ek lamba teer khincha gaya tha, jiske niche likha tha, ‘yah kotha nahin, sharifon ka ghar hai ’ teer ki banawat mein kuch aisa tha jaise khule darwaze ki or baDhne mein wo hichkicha raha ho aur sharifon mein chhoti i ki matra lagi thi ghar ke aage ek bhains bandhi thi jo aatur bhaw se is likhawat ko tak rahi thi photo ke niche itailik, bold akshron mein caption tha—‘taki izzat bachi raheः badnam basti mein aane wale manchale ab paDos ke muhallon ke gharon mein ghusne lage hain logon ne apni bahu betiyon ke bachaw ka ye tariqa nikala hai mahuwaDih mein in dinon qarib saDhe teen sau nagar wadhuen hain ’
si antratma hi parkash ko lekar wahan gaye the donon ko afsos tha ki andar ke pej par kale safed mein chhapkar itne achchhe photon ki hattya kar di gai hai
kashi ki sanskriti ke galebaz kaha karte the ki yahan ke akhbar aaj bhi bahan beti ka sambandh banaye bina weshyaon tak ki charcha nahin karte ye acharya chatursen ke zamane ki bhasha ki juthan bachi hui thi we apharn ko balannayan, balatkar ko shilabhang, police ki gasht ko chakrman aur kaktel party ko pan—goshthi likhte the dhoti wale sanpadak hi nahin proof reader, pestar, taipraitar aur teliprintar bhi wida ho chuke the lekin soot ke niche janeu ki tarah akhabron ke wyaktitw mein ye shabd chhipe hue the, aur kai lakshnon ke sath is bhasha se bhi akhbaron ki aatma ki thah milti thi
roz ki tarah us din bhi bayalis sal ke sanwadadata si antratma apni khatara skutar se jiske aage pichhe ki number pleton ke alawa stepni par bhi lal rang se press likha tha, sham ko chiraghar gaye lashon ka lekha jokha unka routine asaiment tha unhonne chaukidar ko chay pilai, ek biDa pan khilaya, khu bhi jamaya aur kaghaz qalam nikalkar imla ghasitne lage marchuri mein us din i lashon ke nam, pate, mirtyu ka karan aur kuch qisse not kar daftar laut aaye unhonne riporting desk se police ke bheje crime bulletin ka pulinda, ninda, badhai, chunaw, manonayan, ki wigyaptiyan batorin aur akhbar ke sabse upekshait kone mein jakar baith gaye raat saDhe das tak wo marapit, chen chhinaiti, smaik baramadgi, alanqab aur pratham suchana rapat darj ki single column khabren banate rahe gyarah baje crime riportar ko ye khabren saumpkar we siniyron ko palagan ke dainik raunD par nikalne hi wale the ki usne puchha, ‘yah lowely tripathi kaun hain jante hain?’
‘salphas khakar i thi, kisi afsar ki bibi hai, postmortem turant ho gaya ab to dah sanskar bhi ho chuka hoga ’ unhonne bataya
‘aur ye ramashankar tripathi, aipiyes kaun hai?
unhonne sir khujlaya matlab tha, aap hi bataiye kaun ho sakte hain
crime riportar bamak gaya, are buढ़u raat gyarah ke gyarah baj rahe hain chaar ghante se chutaD ke niche Diaiji ki bibi ki atmahatya ki khabar dabaye baithe ho aur ab single kalam de rahe ho kab sudhroge kab Dewlap hogi, kab jayegi, ye kab chhapegi si antratma ki ghunni ankhen chamkin, zara zor se bole hum kya janen, hum to samjhe the ki aapko pahle se pata hoga parkash ne bhi jankari di ki antim sanskar ki photo bhi hai, teen baje manaikarnaika ghat par hua tha
koi jawab dene ke bajay riportar ne lapakkar khali paDe ek telephone ko god mein utha liya paun ghante tak sipahi, darogha, Draiwar, nursing hom ki risepshnist ki manuhar karne ke baad usne pura byaura juta liya khabar ka intro kampyutar mein feed karne ke baad usne si antratma ko bulwaya jo daftar ke bahar pan ki dukan par apni mustaidi aur crime riportar ki chook ki shekhi baghar rahe the usne unki duty raat DeDh baje tak ke liye Diaiji ke bangle ke bahar laga di antratma jante the ki bangle bahar ab kuch nahin milna hai, isliye unhonne ji bhaiya ji kaha aur apne ghar chale gaye
Diaiji ki bibi sundar thi, soshiyolait thi, shahr ki ek hasti thi usne bhari jawani mein atmahatya kyon ki iske bare mein sirf qayas the ek qayas ye tha ki Diaiji ramashankar tripathi ke awaidh sambandh kisi mahila police afsar se the, jiske karan usne jaan de di lekin is qayas ko kisi ne gausip ke kalam mein bhi likhne ki himmat nahin ki, Dar tha ki tufan se bhi tez raftar un jeepon ki shamat aa jayegi jo raat mein akhbar lekar dusre jilon mein jati theen tab police awaidh Dhang se sawari ladne ke aarop mein unka chalan karti, thane mein khaDa karati ek ghante ki bhi der hoti to centre tak pahunchte pahunchte akhbar raddi kaghaz ho jata pratidwandwi akhbaron ki ban aati aise samay crime riportar ko hi police ke baDe afsaron se chirauri kar jipen chhuDani paDti theen moti tankhwah pane wale kisi kaurporetiya mainnejar ke pas is desi hathkanDe se nipatne ka koi upay nahin tha
lowely tripathi, chhawi ki klaint thi jise wo apni dost kahna pasand karti thi chhawi uniwersity se byutishiyan ka course karne ke baad apne buDhe, bimar pita ke asahaye wirodh ke bawjud ghar ke ek kamre mein wyuti parlour chalati thi Diaiji ki patni se uski mulaqat uniwersity ki ek meinhdi enD feshiyal kamptishan mein hui thi jiski wo chief guest theen aksar lowely tripathi ke ghar jane ke karan wo janti thi ki uska soshiyolait hona pati ki upeksha se trast aakar, din katne ki majburi thi kyonki Diaiji ne kah rakha tha ki wo jahan chahe munh mar sakti hai ya jab chahe mar sakti hai lowely ki dost banne ki prakriya mein chhawi ko ek nae tarah ke feshiyal ka awishkar karna paDa jisse ghunson se bane neel aur tamachon ke nishan khubsurati se chhipaye ja sakte the wo lagatar parkash se kah rahi thi ki apradh ki farzi kahaniyan rachne ke mahir Diaiji ne hi lowely ki hattya ki hai aur use phansi milani chahiye
parkash aur chhawi ke teen sal purane pyar mein lowely tripathi aksar tanaw lekar aati thi jiske jhatke se wo aage baDhta tha parkash ko lagta tha ki lowely jaisi sanpann, nithalli aurton ke prabhaw mein aakar hi wo kaha karti hai ki wo press fotografi chhoDkar modalon ke photo khinche aur faishan photographer ban jaye tabhi uski kala ki qadr hogi aur paise bhi kama payega chhawi janti thi ki ye sunkar uske bhitar ke journalist urf wach Daug ko kilaniyan lagti hain, tab ye salah aati hai ki agar wo tamachon ke nishan chhipane ki mekap kala ka petent kara le to karoDon mahilayen uski klaint ho jayengi aur tutte pariwaron ko sundar aur sukhi dikhane ke apne hunar ke karan wo itihas mein amar ho jayegi samjhauta yahan hota tha ki kripa karke apni apni salahen un bachchon ke liye bacha kar rakhin jayen jo bhawishya mein paida hone hain aur abhi is tarah se pyar kiya jaye ki we paida na hone payen kyonki shadi hone mein abhi der hai
parkash ke pas ek lowely tripathi ki ek saheli thi jo Diaiji aur uske jhagDon ki pratyakshadarshi thi aur khuleam Diaiji ki phansi ki mang bhi kar sakti thi lekin parkash use kisi jokhim mein nahin Dalna chahta tha usne bhi aur patrkaron ki tarah apne profession aur niji jiwan ko alag alag jina seekh liya tha kyonki donon ka ghalmel is nazuk se rishte ko tabah kar sakta tha phir bhi chhawi ko dukhi, pareshan dekhkar usne wada kiya ki is mamle mein sach samne lane ke liye usse jo ban paDega zarur karega
bina pukhta sabut ke hath Dalna khatarnak tha lekin is sanasnikhez mudde ko chhoDa bhi to nahin ja sakta tha isliye riportron ko lowely tripathi ke mayke dauDaya gaya, uski saheliyon ko kuch yaad karne ke liye uksaya gaya, samajsewiyon ko unke wyaktitw aur krititw par raushani Dalne ke liye kaha gaya parkash ne ek stuDiyo se Diaiji ki faimili albam ki kuch purani taswiron ka jugaD kiya kuch charchit atmhatyaon ka byaura jutaya gaya aur lachchhedar shabdon mein human engil samachar kathaon ka sota pannon se phoot nikla samachar channelon par bhi yahi kuch, zara ziyada masaledar Dhang se aa raha tha
ap kaun sa masala khati theen mem saheb
ek hafte baad sir muDaye Diaiji ka byan aaya ki ye atmahatya nahin, mahz ek durghatna thi unki patni pan masale ki shauqin theen bijli jane ke baad andhere mein unhonne pan masala ke dhokhe mein, ghar mein paDa celfas kha liya tha sath hi khabar i ki lowely tripathi ke pita ne Diaiji par apni beti ko prataDit karne wa atmahatya ke liye uksane ka muqadma kiya hai aur adalat jane wale hain
crime riportar ye khabar feed kar raha tha aur si antratma pan ka chaughaDa thame pichhe khaड़e the tabhi ek chaprasi kanpyutar ki screen dekhte hue khu se kahne laga, ‘ap kaun sa masala khati theen mem saheb celfas ki goli ungli jitni moti hoti hai aur pan masala ekdam chura ghazab hain aap jo sui ke chhed se unt par karwa rahi hain ’
achanak Diaiji ke sasur ne sari paristhitiyon par ghaur karne aur sadme par qabu pane ke baad apni efaiar wapas le li unhonne bhi apni beti ki maut ko andhere mein hui durghatna man liya police ne is mamle ki file band kar di aur Diaiji lambi chhutti par chale gaye
jante bujhte makkhi nagalni paDi thi rutin ki sanpadakiy baithkon mein kabhi nahin aane wale pardhan sanpadak aaye, unse niche ke asthaniya, asosiyet aur samachar sampadkon ne riportron ko jhaDa ki we ekdam kahil, kamachor aur dhandhebaz hain unhen akhbar ki kam, afsaron se apne sambandhon ki chinta ziyada hai, isiliye we apne Dhang se tathy aur sabut khojkar lane ke bajay police ki kahani sunkar santusht ho gaye riportron mein sampadkon ki jhaD sunne aur bahane gaDhne ki adbhut kshamata hoti hain ye bahane akhbar ki gati se upajte hain unhen pata hota hai ki bahanon samet yahan sab kuch agle din purana, basi, byarth ho jata hai unhonne ek kan se suna aur dusre kan se nikal diya har din nai ghatnayen aur nai khabren thi, kaun ek lowely tripathi ko yaad rakhta
ek mahine baad, Diaiji ramashankar tripathi chhutti se laute to bilkul badal gaye the we daftar mein aarti ke ilektranik dipon se sajjit maihar dewi ki taswir ke aage mathe par tripunD lagakar baithne lage shahr ke kai mathon, mandiron mein jana baDh gaya aur sadhu sant roz daftar aur ghar mein phera Dalne lage unka ekras, khaki karyalay achanak rangin aur sugandhit ho gaya unhonne apni patni ki smriti mein shahr ke mukhy chauk godauliya par ek pyau lagwaya shahr mein uski smriti mein besahara mahilaon aur bachchon ke liye do teen sansthayen ban chuki theen jinke sanrakshak dharmrakshak ramashankar tripathi the dharmrakshak ki upadhi unhen in sansthaon ke pramukhon ne di thi chhutti ke dauran unhonne police ki pratiyogi parikshaon ki taiyari kar rahe chhatron ke liye samany gyan ki ek kitab likhi thi is kitab mein kanpyutar ka pahla upyog ye bataya gaya tha ki ye upkarn saphal danpaty mein sahayak hai kyonki ye wiwah ke poorw kunDali ewan nakshatron ke milane aur kalaganna ke kaam aata hai is kitab ko sabhi thanedar apne apne halqon mein buk stalon par qouta bandhakar bikwa rahe the
sara pasina naukari chalane wali rutin khabron ke liye bahaya jata hai, baDi khabren apne aap chalkar akhbaron, channelon tak aati hain we paraspar wirodhi swartho ke takrahat se chingariyon ki tarah uDti, bhatakti rahti hai aur ek din bujh jati hain ek sham ek bima company ka ek mariyal sa clerk tathyon aur sabuton ke sath khabar laya ki police ne bhale hi mamla dakhil daftar kar diya ho lekin bima company ise durghatna nahin manti lowely tripathi ki maut ke karnon ki jaanch ek praiwet Ditektiw ejensi se karai ja rahi hai Diaiji ramashankar tripathi ne sasur ke halafiya byan ke sath apni patni ke bime ki bees lakh ki raqam ke liye dawa kiya tha jiske turant baad ye jaanch shuru hui thi
parkash ko ye buDha kabhi kabhar ek saste bar mein mila karta tha aur do paig ke baad pichhe paD jata tha ki wo ek paulisi le le taki use bima agnet bete ka taurget pura ho sake parkash usse hamesha yahi kahta tha ki phokat ki daru pine wale us jaise patrkaron ko itne paise nahin milte ki we bima ka premium bhar saken lekin kai sal baad bhi buDhe ne apni rat nahin chhoDi
pushti ki gai to khabar bilkul sahi thi lekin bima company ka koi adhikari is khabar ke sath apna nam dene ko taiyar nahin tha wo mariyal clerk aisi khabar laya tha jise waqi skoop kahte hain, do din ki paड़tal aur speD work ke baad use chhapna tay kiya gaya lekin jis din khabar compose hui, pata nahin kaise leak hokar Diaiji tak ja pahunchi phir mobile phonon ki tarangen khabar ki gardan par lipatne lagi Diaiji ne rajdhani mein ek mantari aur phir police mahanideshak ko katar bhaw se sailyut bajaya in tinon ne akhbar ke do Dairektron ko mumbai phone lagaya Daitektron ke aapas mein baat ki phir pardhan sanpadak ko talab kiya pardhan ne asthaniya sanpadak ko phone kiya asthaniya ne assitent ko asistent ne news editor ko, news editor ne byuro chief ko byuro chief ne city chief ko khabar rokne ke liye adesh diya itni siDhiyon se luDhakti ye ashanka i ki ye khabar aapsi spardha mein kisi bima company ne is bima company ko badnam karne ke liye plant karai hai isliye ise kuch din tak rokkar swatantr Dhang se jaanch paDtal ki jaye parkash ke pas manaikarnaika ghat ki zamin par baithkar sir muDate Diaiji ki photo bhi thi, jiska caption ‘sir munDate hi ole paDe’ usne pahle se hi tay kar rakha tha lekin ole ab photo se bahar chhitak kar kahin aur paD rahe the
usi sham burqe mein chehra Dhake ek adheD aurat lagatar pan chabate ek kishor ke sath teen ghante se daftar ke bahar khaDi thi wo ek hi rat lagaye thi ki use akhbar ki faiktri ke malik se milna hai darban se use kai bar samjhaya ki ye faiktri nahin hai aur yahan malik nahin, sanpadak baithte hain, wo chahe to unse jakar mil sakti hai aurat jirah karne lagi ki aisa kaise ho sakta hai ki akhbar ka koi malik hi na ho aur use to unhin se milna hai aate jate kai riportron ne usse puchha ki uski samasya kya hai lekin wo kuch batane ko taiyar nahin hui rat lagaye rahi ki use malik se milna hai kaam bhi kuch nahin hai, bus salam karke laut jayegi si antratma ki ki nazar us par paDi to dekhte hi bhaDak gaye, ‘tum yahan kaise, tumhari himmat kaise hui press mein aane ki, bhago chalo yahan se had hai ab yahan bhi ’ ghabrai hui wo aurat laDke ka hath pakaDkar tezi se nikal gai wo si antratma ke mohalle ki aurat thi aur we use achchhi tarah pahchante the
parkash is tarah hath mein i kamyabi ke hatasha mein badal jane ke khel ka aadi thi wo us nazarband ko pahchanne laga tha ki jisse ke chalte bisiyon scandal, ghotale aur rahasy aise the jo sabko pata the lekin nazarandaz kiye jate the un par dimagh lagane ko abodh, launDpan samjha jata tha lekin aaj use samajh nahin aa raha tha ki chhawi ko kaise samjhayega sorry, main tumhari dost ke liye kuch nahin kar paya ke jawab mein ansuon se rundhi awaz mein chhawi ne kaha, ye akhbar aur channel madari ki tarah khu ko sach ka thekedar kyon batate hain saf kah kyon nahin dete ki unhen Diaiji jaise hi log chalate hain
lambi chuppi ke beech saty ka madari ko kai bar usne thook ke sath gutka wo soch raha tha ki kya sachmuch uske fashion photographer banne ka samay aa gaya hai kam se kam tab use un bhrmon se to chhutkara mil jayega jo use kabhi kabhar sach sabit ho kar uska rasta rok lete hain achanak chhawi ne kaha ki chalo tumne marne ke baad hi sahi lowely se chiDhna to band kar diya lekin fotografi ke bahane mauDlo ke beech raslila ke mansube mat palo parkash chaunk gaya ki kis satik tariqe se wo uske sochne ke Dhang ko track karne lagi hai
math, khanjan chiDiya, miss lahurabir
Diaiji ramashankar tripathi ke bhawy, fotojenik, ritayarD aiees pita pariwar ki pratishtha, bete ke career ki chinta ke aaweg se mathon, annakshetron aur ashrmon ki parikrama karne lage banaras mein british zamane ke bhi pahle se afsaron aur mathon ka rishta tikau, upyogi aur wilakshan raha hai commissioner, collector, kaptan aadi posting ke pahle din kashi ke kotwal kalabhairaw ke aage matha nawakar madira se unka abhishaek karte hain jo duniyadar, chatur hote hain we turant kisi na kisi shaktipith mein apni astha ka langar Dal dete hain, kyonki wahan aharnish paraspar shaktipat hota rahta hai
in shaktipithon mein desh bhar ke ‘hu iz hoo’ neta, udyogapti, wyapari, mafia, mantari bhakt ya shishya ke roop mein aate hain aur we apne guruon ke liye kuch bhi karne ko aatur rahte hain afsaron ki taraqqi, tabadla, wirodhiyon ka safaya, khufiya jaanch rapton ka niptara sare kaam guruon ke ek sanket se ho jate hain iske badle we mahanton, jyotishacharyon, tantrikon, wastushastriyon aur prachyawidya ke gyataon ki ichchhaun ko adesh mankar palan karte hain kyoki wo pranimatr ke kalyan ke liye kiya gaya dharmik kary hota hai naukarshahi aur dharm ka ye sambandh arhar aur chane ke paudhon jaisa anyonashrit hai donon ek dusre ko poshan, samrddhi aur jiwan dete hain chhote mote sant ki manyata pa chuke us waqt ke commissioner ne ek math ko apna kainp karyalay bana liya tha aur sarkari odash ke anupalan mein banaras ko wishw dharohar ghoshait karne ki arji yunesko mein Dal rakhi thi jiski pairawi ke liye we har mahine amerika jate the math mein aane wale wideshiyon, prawasi bhartiyon, udyogapatiyon aur sethon ko wa mahant ki kripa se kashi ke wikas mein dhan lagane ke liye prerit kar ek arab se adhik rupaya ikattha kar chuke the ye kaam aaj tak koi adhikari nahin kar paya tha
jinse manyata, garima aur shakti milti hai, shaktipithen unhen apne qarib aur qarib bulati hain dharm ki chhatri ke niche yahan, adhunik aur puratan, wairagy aur aishwary, dhandhe aur adhyatm, sahajta aur tikDam ishwar ki upasthiti mein is kaushal se aapas mein ghul mil jate hain ki kahin koi joD nazar nahin aata jo jitne shaktishali aur sanpann dikhte hain unki aatma utni hi khokhli aur asurakshait hoti jati hai aise logon ko abhai aur ashwasti ka naitik sambal dene wala ye shahr banaras chumbak ki tarah khinchta hai bhautik chizon ki kamna karte, dukhi sadharan log in shaktipithon ko astha dete hain aur badle mein sukha ashirwad pate hain ye khanti adhyatmik len den hota hai shaktishali logon ke astha niwedit karte hi ye len den bhautik ho jata hai aur we in shaktipithon ke sabse surakshait gopan rahasyon mein barabar ke sajhidar ho jate hain
yoon hi ishwar ne fursat ke ek din Diaiji ke bhawy fotojenik, buDhe bap ki aart pukar sun li october ke mahine mein achanak khanjan chiDiyan chhaton par phudakne lagin aur akhbar ke chitkabre pannon par stori siriz ‘kahani badnam basti kee’ nachne lagi
naitikta ke sannipat mein Dubte utrate do riportar, guide si antratma ke pichhe pichhe ghumte hue manDuwaDih, shiwdaspur ke mohallon aur ganwon ko khangalne lage khabren chhapne lagin ki nagar wadhuon ke karan asapas ke mohallon ki laDakiyon ki shadiyan nahin ho ya rahi hain, kaiyon ke talaq ho chuke hain, kai mayke aane ko taras rahi hain, bhaiyon ki kalaiyan aur sawan ke jhule sune paDe hain log ganw, mohalle ka nam chhipakar rishte joDne ki chalaki karte hain lekin asliyat pata chal hi jati hai tab manDap ukhaDte hain, barat lautti hai battis sal ki ba pas sarla ko shadi ke nam se nafar ho gai hai aur ab use dwarachar ke geet sunkar histiriya ke daure paDte hain shiwdaspur mein pan ki dukan lagane wale rajesh bhardwaj ki shadi panch bar tuti, chhathi bar jaunpur ke tirlochan mahadew mandir mein chori se wiwah hua, pol khul gai laDki ki widai rokkar, kahin aur shadi kar di gai nate rishtedar halachal lene tak ganw mein nahin aa sakte, unhen dalal jabran kothon mein kheench le jate hain, weshyayen bhaDue gunDe unka malamatta chheen lete hain jaan bacha kar nikle to police ghaDi anguthi batua chheen leti hai sharm ke mare kisi se kuch kah bhi nahin sakte sham Dhalte hi sharabi gharon mein ghuskar bahu betiyon ke hath pakaDkar khinchne lagte hain ye ki jalalat se bachne ke liye log apne makan aune paune bechkar bhag rahe hain kai to apne ghar waise hi khali chhoDkar shahr ke dusre ilaqon mein kiraye ke makanon mein rahne lage hain akhbar ke pannon par kale akshron mein in lachar logon ki piDa aur unke beech ki khali safed jagah mein weshyaon ke prati nafar chhalachhla rahi thi khabron ko wishwasniy banane ke liye parkash ko Dheron Dahti khaprail wale, bhuthe makanon ki foton khinchni paDi jo waise bhi rahne ke layaq nahin rah gaye the
to bahnon, dhandha band
manDuwaDih ke asapas ke ganwon—mohallon se local netaon ke byan aur afsaron ke pas j~napan aane lage ki weshyaon ko wahan se turant hataya nahin gaya to we andolan karenge andolan se prashasan nahin sunta to we khu khadeD denge raton raat kai nae sangathan ban gaye, rajaniti ke kichaD mein kumudini ki tarah achanak ubhri ek sundar aur gadabdi mahila neta snehalta dwiwedi aas pas ke ilaqon ka daura kar aurton ko golband karne lagin unka kahna tha ki we jaan de dengi lekin kashi ke mathe se weshyawritti ka kalank mitakar rahengi kai raat baithken aur sabhayen karne ke baad we ek din kai ganwon ki mahilaon ko lekar kachahri ke samne ki saDak par dharne par baith gain taiyari lambi thi, ye dharna pahle kramik phir mahinon chalne wale amarn anshan mein badal jane wala tha
Diaiji ramashankar tripathi ke khichDi balon ki khuntiyon mein kandhi pherne ke din aane mein abhi der thi lekin wo durlabh kshan samne tha apne dharmik pita ki ichha puri karne aur apni daghdar chhawi Dhulne ka sahi samay aa gaya tha achanak ek din we law lashkar ke sath dopahar mein manDuwaDih basti pahunche aur sabko bulakar ‘aj se dhandha band’ ka farman suna diya unhonne sarkar ki or se ailan kiya, dharm aur sanskriti ki rajdhani kashi ke mathe par weshyawritti ka kalank bardasht nahin kiya jayega weshyayen shahr chhoD den unke jate hi manDuwaDih ki badnam basti se guzarne wali saDak ke donon chhoron par police piket laga di gai shamon ko basti ki taraf lapakne walon ki thukai hone lagi niymit customer saDkon ke kinare murgha bane nazar aane lage jo sipahi roz kothon par munh marte the, unke munh latak gaye thane ke buDhe diwan ne khizab lagana band kar diya ghungharuon ki khanak, roop ki adayen, piyakkDon ki bakbak, dalalon ka commission aur police ka hafta sab hawa ho gaye manDuwaDih ke curfew jaise mahaul mein akhbar kajal aur lipistik se ziyada zaruri cheez ho gaya
akhbar ke circulation mein halka uchhaal aaya us hafte akhbar ki stiyring committe ki meeting mein unit mainnejar ne apni report pesh ki ki is stori sirij ka logon aur prashasan par zordar asar hua hai dharmik sansthaon ke wigyapnon ka flo bhi baDha hai ise jari rakha jani chahiye
si antratma akhbar ke upekshait kone se uthakar sabse chauDi desk par laye gaye aur achanak apne wyaktitw ki dinta ko tirohit kar bedhaDak, wyas ki bhumika mein aa gaye we apne paDos ke mohalle ki dincharya, ayojnon, jhagDon, arthshastr, saundaryashastr par dhara prawah, thoDa itrate hue bolte jate press ke sabse behtarin, warishth likkhaD use lipibaddh karte jate parkash ne unhen weshya wisheshagya ki upadhi di lekin usi kshan, uske bhitar wichar aaya ki durbal antratma bhukhe sanDon ko chara khila rahe hain, jaise hi unka pet bharega we unhen hurpet kar khadeD denge antratma ki jankariyon mein wo sab bhi anayas shamil ho gaya jo kuch ye likkhaD bachpan se weshyaon ke bare mein sunte, jante aur apni kalpana se joDte aaye the
kothon ka ek rangarang dharwahik taiyar hua, jiska lubb e lubab ye tha ki ziyadatar weshyayen bahut amir, sanki aur kulin hain kai shahron mein unki kothiyan, baghiche, caren, farm house aur baikon mein locker hain we chahen to ye dhandha chhoDkar kai piDhiyon tak baDe aram se rah sakti hain lekin har sham ek nae ishq ki aadat aisi lag gai hai ki we ye dhandha nahin chhoD saktin ek taraf kartunon, ilestreshnon aur sajawati type phesez se saja ye rangin dharawahik tha to dusri taraf routine ki tathyatmak riporten theen, jinki shuruat is tarah hoti thi, ‘Diaiji ramashankar tripathi ki pawitra kashi ko weshyawritti ke kalank se mukt karane ki muhim rang la rahi hai, aaj chauthe din bhi dhandha, mujra donon band rahe ab tak kul chhiyalis logon ko badnam basti mein ghusne ki koshish karte pakDa gaya inmen se ziyadatar ko jankari nahin thi ki dhandha band ho chuka hai ainda idhar nahin aane ki chetawni dekar chhoD diya gaya
Diaiji ke is puny kaam ki charon or prashansa ho rahi thi akhbaron ke daftaron mein sangitamay, sanskritnishth namon wale akhil jambudwip widdhat parishad, hitkarini parishad, jeew daya hitkarini samiti, manaw kalyan manDal, istri prabodhini pushkarni, kashi gauraw rakhsha samiti, parahit sadachar nyas, wed brahmanD adhyayan kendr aadi pachason sangathnon ki ‘sadhu sadhu’ ka ninad karti wigyaptiyan barasne lagin kahin na kahin har din unka samman aur abhinandan ko raha tha si antratma ab is dhanyawad se tapakte pulinde ko sankshaipt karne dopahar baad baithte aur der raat tak nichuD kar ghar jate unke liye alag se aadha pej tay karna paDa kyonki ye sanpadakiy niti thi ki sabhi wigyaptiyan aur do teen pramukh logon ke nam zarur chhape jayen jiska nam chhapega, wo akhbar zarur kharidega
tees sal baad itihas khu ko duhra raha tha tab badnam basti shahr ke beech dalmanDi mein hua karti thi basti nahin, tab unhen tawayfon ke kothe kaha jata tha wahan tahazib thi, mujra tha, unke gaye gramophone ke rikarD the, kinhin ek baiji se ek hi khandan ki kai piDhiyon ke gupchup chalne wale ishq the yahin se kai mashhur film abhinetriyan aur classici gaikayen niklin jinke bhawy wartaman mein hetha atit shalinata se wilin ho chuka hai wahan zamindar, rais aur hukkam aate the zamindari aur riyasaten ja chuki theen phir bhi kothe ki wo tahazib girti, paDti widrupon ke sath bahut din ghisatti rahi sattar ke dashak mein bhayanak gharib aur laDakiyon ki taskari ke karan wahan bheeD bahut baDh gai jin galiyon mein raison ki bagghiyan khaDi hoti thi wahan lafange haDaha saray ke mashhur chaku lahrane lage logon ke wirodh ke karan tawayfon ko shahr ki sima par manDuwaDih mein bsa diya gaya
tawayfon ke jane ke baad wahan cheen aur bangladesh se aane wale taskari ke samanon ka chor bazar bus gaya ab wahan naqli siDi ka sabse baDa bazar hai ilektraniks ke wilakshan deshi engineer in dinon wahan milte hain, jinke liye kala akshar bhains barabar hai lekin kabaड़ se kisi bhi desh ki kisi bhi multinational company ke mobile, siDi player, camere aur myujik sistam taiyar karke bechte hain ab tak weshyawritti ek susangthit, wishal wyapar ban chuki thi manDuwaDih mein ghazlen, dadra aur tappe sunna to door gende ke phool ki ek patti tak nahin bikti thi wahan sirf nirmam dhandha hota tha jahan karkhanon ke mazduron se lekar rikshewale tak gerahak the global daur ke plastic mani wale raison ko ab hath mein gajra lapet kar dhool, silan aur kuDe se bajabjati badnam basti mein jane ki qati zarurat nahin thi unhen apni pasand ke rang, saiz aur bhasha ki kalgarlen hotalon, farmhauson aur Draingrumon mein hi mil jati theen inmen se kai apne qasbon, shahron ya pardesh ki sundari pratiyogitaon ki wijeta theen miss lahurabir se lekar miss narth india tak bus ek fonkaul ki duri par saji dhaji intizar karti rahti theen
ghunghru aur bulldozer
dhandha band hone ke ek hafte baad, Diaiji ramshankar tripathi ka qafila phir manDuwaDih pahuncha aage unki bilkul nai hare rang ki jipsi thi pichhe khaDkhaDati jeepon mein kai thanon ke prabhari aur lathiyon, raiflon se lais sipahi the sabse pichhe ek rikshe par maik aur do bhompu bandhe hue the sham ko jab ye law lashkar wahan pahuncha to makanon ki battiyan jal chuki thi asman par chhate kuhre ke dhundhalake mein badnam basti ke donon taraf bhare pani ke gaDDhon ke par ek ek bulldozer reng rahe the koi kanstrakshan company is khalar zamin ko patwa rahi thi kuhre mein hichkole khate bulldozer basti ki taraf baDhte matwale hathiyon ki tarah lag rahe the
ek jeep ke bonat par mushkil se chaDh pae ek tundiyal sipahi ne maik se ailan kiya, ‘manaw manDi ke sabhi bashinde fauran yahan aa jayen, Diaiji sahab unse baat karenge, unki samasyayen sunenge aur unka nidan karenge ’ manDuwaDih thane mein manaw manDi baqayda ek beet thi aur ek register mein wahan rahne wale sabhi logon ke nam pate aur atit darj tha nae aane aur jane walon ka rikarD bhi usmen rakha jata tha red lait area ke desi wikalp ke roop mein sabzi manDi, galla manDi, bakra manDi ke tarz par rakha gaya ye nam kitna satik tha manaw deh hi to bikti thi, wahan chetawni ki lalbatti jalti to kabhi dekhi nahin gai nagar wadhuon ko bulane ke liye sipahiyon ka ek jattha basti mein ghus gaya thane ke ye we sipahi the jo in makanon ki ek ek int ko jante the weshyaon ne socha tha ki dhandha band karana, police ki hafta baDhwane ki jani pahchani qawayad hai amtaur par thanedar ek aadh kothe par chhapa Dalta, do chaar dalalon se lappaD jhappaD karta koi laDki pakaD kar thane par bitha li jati aur tay toD ho jata tha lekin Diaiji khu dusri bar aaye the unhen andaza ho gaya tha ki is bar mamla gambhir hai
sabse pahle bachche aaye unke sath ek yuwak aaya, jisne do sal pahle unhen paDhane ke liye basti mein school khola tha bachche use master sahab kahte the pichhe basti ke dukandar, sazinde, bhaDue, sabse baad mein weshyayen ain itni bheeD ho gai ki usmen achanak gum ho gaye Diaiji ki photo khinchne ke liye parkash ko ek makan ki chhat par chaDhna paDa bheeD ke beech chhote se ghere mein, chaar panch buDhi aurten aur unki naqal karte bachche, balaiya lete hue, giDgiDate hue, natkiya Dhang se Diaiji ke pairon ki taraf lapak rahe the sipahi unhen Dantte hue aage baDhte, we unse pahle hi tapak se wapas apni jagah chale jate the ek chay ki dukan se laye gaye bench par, hathon mein maik thamkar Diaiji khaड़e hue to sannata khinch gaya basti ke kinaron par rengte bulDozron ki gaDgaDahat phir sunai paDne lagi unhonne kaha ‘bhaiyon aur bahnon ’ bahnon ke ‘on’ mein jaise koi chutkula chhipa tha, bheeD hansne lagi, weshyayen hanste hanste ek dusre par girne lagin
unhonne gala saf karke kahin door dekhte hue kahna shuru kiya, prashasan ko manaw manDi ke bashindon ki samasyaon ka pura dhyan hai, weshyawritti ghair qanuni hai isliye us par sakhti se rok laga di gai hai manDuwaDih thane mein alag se ek cell khola gaya hai aap log wahan jakar sarkari lon ke liye awedan karen aap logon ko chhoot ke sath, kam byaz par bhains, silai machine, achar papaD ka saman dilaya jayega apna rozgar shuru karen, jo kaam karne ke layaq nahin hain, unhen nari sanrakshan grih bhej diya jayega taki aap log ye beizzti ka pesha chhoDkar samman ke sath sarkar ke nari sanrakshan grih ka nam sunkar weshyayen phir aapas mein thitholi karne lagi Diaiji ne apne phaloar ko Dapta, jao pata karo, we kya kah rahi hain phaloar thoDi der weshyaon ke beech jakar hansta raha lekin palatte hi uska chehra pahle ki tarah sakht ho gaya lautkar attention ki mudra mein khaDa hokar bola, ‘sar, kahti hain fre mein samaj sewa nahin karenge ’
Diaiji samajh nahin pae, weshyaon ne sipahi se kaha tha ki sanrakshan grih jane se behtar to jel hai kyonki wahan fre mein samaj sewa karni paDti hai kuch din pahle sanrakshan grih mein sanwasini kanD hua tha wahan ki supariteDent netaon, afsaron aur akhbari bhasha mein safedaposh kahe jane wale logon ko laDkiyan supply karti theen jab ye mamla khula to ek ke baad ek markar panch laDkiyan ghayab kar di gain ye we laDkiyan thi jinhonne munh khola tha in dinon sibiai is mamle ki janchakar rahi thi
bheeD ke pichhe ek buDhiya ghash khakar gir paDi thi jhurriyon se Dhake uske chehre par sirf bebas khula munh dikhai de raha tha ek mariyal aurat baithkar anchal se use hawa karte hue galiyan de rahi thi, karamajle, mirasin ki aulad mar Dala bechari ko jab jawani thi tab yahi police wale roz nonchne aa jate the kasbin ki zat ab chauthepan bhains charayegi peDa banayegi koi jakar puchhe markilauna se ranDi ke hath ka kaun papaD khayega, kaun doodh piyega, kaun kapDa pahinega ye sab, hum logon se ghar bar chhinkar bheekh mangwane ka intizam hai aur kuch nahin shahr chhoDkar chale jao, jaise hum hath pakaD kar logon ko ghar se bulane jate hain logon ko hi kyon nahin mana kar dete ki yahan na aaya karen jo hamein bhagane ke liye dharna dekar baithe hain, wahi kahin aur jakar kyon nahin bus jate hamein kaun apne paDos mein basne dega yahan ki tarah wahan bhi chhoot nahin lagegi kya?
ye buDhiya akeli rahti thi usne sabere se kuch khaya piya nahin tha subah se hi wo donon chhoron tak ghoom ghoom kar andolan karne walon ko galiyan bak rahi thi uske do bete the jo kahin naukari karte the chori chhipe sal do sal mein milne aa jate the sabke samne use we apni man bhi nahin kah sakte the
laDki lana band karo dajyu
pichhe hangama dekhkar sipahi udhar lapke tabhi na jane kahan se ek adheD nepali aurat jhumte hue aakar Diaiji ke pichhe khaDi ho gai uske baal khule the, saDi dhool mein lithaD rahi thi, wo pikar dhutt thi agal baghal ki aurten use kheench rahi thi achanak wo chillane lagi aur uske galon par gandle ansu bahne lage, ‘asto na gar baDa sahab aasto na gar dajyu apana hukum mathe par liya ’
Diaiji chaunk kar pichhe ghumen to usne hath joD liye, ‘saheb, mera saheb pahle yahan nai laDki log ka lana to band karo saheb! hum log khu to nahin aaya saheb bahut baDa baDa log lekar aata hai nepal se, bangal se, oDisa se har nai laDki pichhe thana ko paintis hazar puja diya jata hai purana ka to ghar hai, baal bachcha hai, buDha hoke nahin to bimari se mar jayegi lekin naya laDki aata rahega to yahan ka abadi baDhta jayega jahan se laDki aata hai, raste bhar sarkar ko bahut rupaya milta hai ’
sipahi use chup karane lapke to uchak kar usne ek ki topi jhatak li aur usi se khu ko pitne lagi mano jis sabse buri honi ki ashanka ho, use khu apne hathon ghatit kar dena chahti ho, wo unmad mein baDabDaye ja rahi thi, ‘marega hamko, marega kat Dalega aur jasti kya kar lega yahan se koi nahin jayega jahan jao, wahin se bhagata hai kitna bhagega yahin mar jayega lekin ab kahin nahin jayega Diaiji hath mein maik liye bhaunchak takte rah gaye unhonne kai bar naraz hokar suniye, suniye ki appeal ki lekin hullaD mein udhar kisi ka dhyan hi nahin gaya sipahi ne usse topi wapas leni chahi to wo bhagne lagi sipahi pichhe lapka to usne topi pahan li aur thumakte hue bheeD mein ghus gai wo nachte hue aage aage, baukhalaya sipahi pichhe pichhe log sab kuch bhulkar hansne lage jo police wale wahan aksar aate the weshyayen unke sath isi tarah hansi thattha karti theen lekin aaj ye sipahi nathune phulaye, dant piste hue, uske pichhe laDkhaData bhag raha tha bachche taliyan bajane aur chikhne lage
Diaiji ne ghurkar police walon ki taraf dekha jo hans rahe the pahle we sakapkaye phir turant unhonne qatar banakar DanDon se bheeD ko basti ke bhitar thelna shuru kar diya jo basti ke nahin the, sipahiyon ko dhakelkar saDak ki or bhagne lage in bhagte logon par pichhe khaड़e sipahiyon ne DanDe jamane shuru kar diye isi beech ghusse se tamtamaye Diaiji apne phaloar aur Draiwar ko lekar nikal gaye basti mein school chalane wala laDka DanDon ke upar is tarah jhuka hua tha jaise lathiyan uske pankh hon aur wo uD raha ho wo wahin se chillaya, ‘ap unse khu hi baat kar lijiye, maiDam! pata chal jayega sharif aurten weshyaon ke bare mein baat nahin kartin we guड़iya pitne aur wishwasundri pratiyogita ke wirodh mein byan de sakti hain bus yahan ayengi to unke pati ghar se bhaga denge, sara nariwad phuss ho jayega ’
ek mahila riportar usse poochh rahi thi ki aap log mahila sangathnon se baat kyon nahin karte, tabhi lathiyan chalni shuru ho gai theen ab wo police walon ke pichhe ghabrai khaDi hui use lathiyon, shor aur basti ke andhere mein ghayab hota dekh rahi theen
bina efaiar balatkar nahin hota
thoDi hi der mein wo jagah khali ho gai jaise kabhi kuch hua hi nahin tha agle din akhbar mein heDlain thi, ‘weshyaon ne police ki topi uchhali, lathi charge, bais ghayal ’ akhbaron aur channelon ki bhasha mein ye mamla ab ‘hautkek’ ban chuka tha jise we apne hi Dhang se paros aur bech rahe the channelon ne ise kuch is tarah pesh kiya jaise desh mein ye apne Dhang ki akeli ghatna hui ho jismen weshyaon ne ek Diaiji ke sath gerahak se bhi bura saluk karne ke baad unhen khadeD diya ho akhbar ke daftar mein jo sangathan badhaiyan de rahe the, ab unki taraf se weshyaon ke is krity ke ninda ki wigyaptiyan barasne lagin kai aur sansthayen kachahri par chal rahe dharne mein shamil ho gain aur snehalta dwiwedi amarn anshan par baith gain manDuwaDih ke donon chhoron par ab ek ek platun piyesi bhi laga di gai badla chukane aur weshyaon ka manobal toDne ke liye police walon ne ek laDki ke sath balatkar kar Dala
chaudah sal ki ye laDki Diaiji ki meeting ke baad se khane ka saman lane ke liye saDak ke us par jane dene ke liye pahra de rahe sipahiyon ki winti kar rahi thi do teen bar i to Dapatkar bhaga diya agle din phir i to sipahi usse batiyane aur chuhal karne lage, use laga ki shayad ab jane denge isliye wo bhi din bhar itrati aur hansti rahi
andhera hone ke baad sipahiyon ne use ek chhote laDke ke sath saDak par karne di we samanon ki gathriyan lekar jaise hi laute sipahiyon ne DanDe patakte hue donon ko door tak khadeD diya we Dar gaye, kyonki basti se kabhi bahar nikle hi nahin the donon wahin saDak ke kinare baithkar rone lage, kai ghante baad jab dukanen band ho gain tab ek sipahi laDki ko bulakar ek lari ke bhitar le gaya wahan ek sipahi ne uska munh band kar diya aur do ne tange pakaD leen bari bari se chaar sipahiyon ne uske sath balatkar kiya phir use bachche aur potaliyon ke sath basti mein dhakel diya gaya weshyayen raat bhar saDak ke muhane par jama hokar galiyan deti rahin aur police wale ye kahkar hanste rahe ki unhonne laDki ko baDhiya training de di hai, ab aage kabhi koi diqqat nahin hogi
school chalane wale yuwak ne akhbar ke daftar mein aakar sara waqia sunaya ye laDki uske school mein paDhti thi riportron ne kaha ki wo efaiar ki copy layen tab khabar chhap sakti hai, koi to sabut hona chahiye usne bahut samjhaya ki jab police ne hi rape kiya hai to we kaise sochte hain ki apne hi khilaf efaiar bhi darj kar legi we chahen to laDki ko aspatal le jakar ya kisi Daktar ko basti mein le jakar medical jaanch kara sakte hain uski haalat ab bhi bahut kharab hai khabron ke bojh ke mare riportar is pachDe mein nahin paDna chahte the aur we jante the ki koi Daktar basti mein jane ko taiyar nahin hoga ek riportar ne shararat se kaha, ‘aur man lo medical jaanch ho bhi to kya niklega kya?’
‘matlab haiman broken, kharonch, khoon ye sab to report mein ayega nahin ’
dusre riportar ne hansi dabate hue ghuti cheekh ke swar mein kaha, ‘report mein ayega ewrithing ower saiz, tyubwel Deep, anebal two phainD enithing!’
kanphaDu thahakon ke beech wo yuwak hakka bakka rah gaya thoDi der baad use santwana dene ke liye ek riportar ne police supritenDent ko phone milaya to we hanse, weshya ke sath balatkar! wichitr lila hai are bhai sahab, we ajkal grahkon ke liye paglai ghoom rahi hain, samne mat paD jaiyega nahin to aap hi ka balatkar kar Dalengi ye police ko badnam karne ka ranDiyon ka khas paintra hain ye khabar nahin chhapi na hi kisi channel mein dikhi, kyonki kisi ke pas koi sabut nahin tha ki balatkar hua hai darasal supritenDent ki tarah patrkaron ko bhi ye samajh mein nahin aa raha tha ki akhir, kisi weshya ke sath balatkar kaise sambhaw hain
parkash ne achanak khu ko us yuwak jaisi haalat mein paya jiska huchur huchur hanste apne sathiyon ke samne ye bhi kahna byarth tha ki wo khabar de pane mein lachar hai lekin use yaqin hai ki laDki ke sath balatkar hua hai tab shayad agla nirmam jumla ye bhi aa sakta tha ki wo bhawishya ki ek anubhwi porn model tak pahunchne ka sootr bana raha hai
tabhi phone ki ghanti baji, ye chhawi thi jo kah rahi thi ki use ab photo khinchne ki tamiz seekh hi leni chahiye shayad awaz ke kanpan se use teewr purwabhas hua ki use laDki ke sath balatkar ki ghatna ka pata hai usne jab uniwersity mein byutishiyan ka course kar rahi chhawi ki pahli bar photo khinchne ki koshish ki thi to uske bhare bhare honthon par nachti rahasyamay hansi, ankhon ki shararat aur banh par kharonch ke do nishanon se akabka gaya tha camere ka shutter kholana hi nahin, us par laga Dhakkan bhi hatana bhool gaya tha aur lagatar photo khinchte, lagbhag haklate hue use tarah tarah ke poz dene ke liye kah raha tha chhawi ne jab kaha ki kai din se uska teli lence uske parlour mein hi paDa hua hai to laga shayad use nahin pata hai usse phone par baat karte hue use lagatar lag raha tha ki duniya mein bahut sare log hain jo apne sath ghat chuke ko kabhi sabit nahin kar payenge aur wo bhi unhin mein se ek hai wo unki awaz kabhi nahin ban sakta jo kamzori ke karan bol nahin pate, wo sirf unki awaz ko duhra sakta ya chehre dikha sakta hai, jinke pas taqat hai uski qalam mein kisi aur ki syahi hai, camere ke pichhe kisi aur ki ankh hai phone rakhne ke kafi der baad tak wo camere ka shutter kholta, band karta yoon hi baitha raha
khatak pata hai khatak nahin pata hai khatak pata hai uska dimagh jhula ho chuka tha
kanDom baba ki karuna
banaras mein dhandha band hone ki khabar pakar dilli se kanDom baba aaye sath basath sal ke buzurg baba weshyaon ko sekswarkar kahte the aur unhen eDs aadi yaun bimariyon se bachane ke liye deshbhar ke weshyalyon mein ghumkar kanDom bantte the ye kanDom unhen sarkar ke samaj kalyan wibhag aur kai wideshi sangathnon se milte the we laDakiyon ki taskari aur weshyaon ke punarwas ki samasyaon ko antarrashtriy manchon par uthate the we samarpit, phakkaD social ektiwist likhe jate the unhen filipins ka pratishthit maigsaysay puraskar mil chuka tha
we circuit house mein thahre taDke uthkar unhonne ganga snan aur wishwanath mandir mein darshan kiya phir phulmanDi gaye wahan ek truck se taza kate lal gulabon ke banDal utar rahe the unhonne ginkar ek sau chhihattar phulon ka banDal bandhwaya aur circuit house laute press aur tiwi walon ke sath danadnata hua unka qafila manDuwaDih se thoDa pahle saDak kinare ruk gaya jahan unhonne apna shrringar kiya kar mein baithe baithe unhonne sabse pahle kai rashtriya, antarrashtriy thappon wali t shirt pahni, do kanDom kholkar donon kanon mein latka liye, jo hawa chalne par sigon ki tarah tanne lagte the warna bakri ke kanon ki tarah latke rahte the kai kanDomon ko thoDa sa phulakar ek dhage mein bandhakar unki mala gale mein Dal li we aise angulimal lagne lage, jisne kisi paradarshi danaw ki ungaliyan katkar gale mein pahan li hon Draiwar se unhonne kai gubbare kar ke aage pichhe bandhawa diye unhonne pahle hi jiladhikari se anumti le li thi aur unke sath samaj kalyan wibhag ka ek afsar bhi tha, jis karan badnam basti mein ghusne mein unhen koi diqqat nahin hui
basti mein sannata tha, yahan wahan kuch bachche khali saDak par khel rahe the bachchon ne unki gaDi ko gher liya aur gubbare mangne lage unhonne unhen khadeDte hue kaha ki bachchon ko kanDom dena sansadhnon ki barbadi hai jab tak unki kanDom se sambandhit jigyasaon ka samadhan karne wale karyakarta har ghar tak nahin pahunchenge, bachche unhen ghubbara hi samajhte rahenge iske baad we har darwaze par jakar weshyaon ko taje lal lal gulab ke phool bhent karne lage ye kanDom baba ka apna khas tariqa tha jis red lait area mein we jitne dinon baad jate the, utne gulab ke phool bantte the yahan we koi chhah mahine baad aaye the unhonne kanDom dene chahe to weshyaon ne mana kar diya ek buDhiya ne unhen Danta, jab dhandha hi band hai to gubbara lekar kya karenge, ubalkar khayenge ki tumhari tarah jhumka banakar pahnenge ziyadatar kanDom dalalon aur bhaDunon ne jhapat liye, we inhen grahkon ko bechte the
phool bantne ke baad unhonne ek terah sal ki laDki ko kanDom dena chaha to wo sharma gai uske kandhe par hath rakhkar we use cameron ke samne late hue unhonne puchha, ‘beti kanDom ka istemal karti ho?’
wo chup khali ankhon se unhen dekhti rahi unhonne phir usse puchha, ‘lakDi khati ho ya nahin?’
lakDi ghabrakar bhag gai
kan mein latke kanDom ki chiknai ko anguthe aur tarjani ke beech malte hue we ab press ki taraf mukhatib hue, ‘lakDi khilana ek taknik hai jo kam umar ki laDakiyon ko dhandhe mein lane ke liye apnai jati hai ismen sola lakDi ka istemal hota hai jo pani mein bahut jaldi phool jati hai laDki ke bhitar is lakDi ko Dalkar use roz pani ke tub mein ya pokhar mein nahlaya jata hai jaldi hi laDki dhandhe ke layaq ho jati hai jab dhandhe se bacha nahin ja sakta to ise karne mein harj hi kya hai, isse laDakiyon ko taklif nahin hoti ’ press wale weshyaon ke jiwan ke bare mein unki jankari se chakit the
der tak bulane ke baad kuch weshyayen ikattha huin unhonne ek chhota sa bhashan diya, kuch din pahle dharmik nagri ujjain ki nagar palika ne weshyaon ko laisens diye the, hamne mang ki hai ki kashi mein bhi aisa kiya jaye iske liye mayor aur jiladhikari se baat hui hai jab se duniya hai tab se sex worker hain DanDe ke zor par weshyawritti koi nahin rok paya hai ek sau chhihattar deshon mein sex warkron ko dhandhe ke laisens diye gaye hain europe mein to laisens hai, bima hota hai, medical jaanch karai jati hai, aisi suwidhayen di jati hain jo hamare yahan ke sarkari karmchariyon ko bhi nahin milti hain agar weshyawritti band karni hain to punarwas ke antarrashtriy mankon ka palan kiya jana chahiye pahle aisi paristhitiyan banai jayen ki samaj, sex warkron ko samany nagarik ki tarah swikar kar sake, phir unhen dhandha chhoDne ko kaha jaye warna koi natija nahin niklega ’ unhonne nara diya, ‘kashi ko ujjain banao’ aur jane lage bachchon se ghiri ek aurat ne raste mein rokkar unse kaha ki kya we kanDom bantne ke bajay yahan khane ka kuch saman nahin bhijwa sakte yahan se koi na ja sakta hai, na andar aa sakta hai hum logon ke pas jo kamai thi, khatm ho chali hai yahi haal raha to hum log bimari se pahle bhookh se marenge unhonne use gulab ka phool dete hue kaha ki we jiladhikari ke pas ja rahe hain, unse is bare mein baat karenge basti se we jiladhikari ke pas chale gaye agle din unhen kisi sammelan mein thailainD jana tha
kanDom baba jis samay ghubbare mangne wale weshyaon ke bachchon ko langDate hue khadeD rahe the chhawi ne theek usi samay phone par bataya, use ashanka hai ki wo pregnent ho gai hai parkash ne use badhai dete hue bataya ki kal akhbar ke mein pej par uski aise adami se mulaqat hone wali hai, jo agar is duniya mein na hota to wo ab tak ek darjan bachchon ki man ban chuki hoti
agle hi kshan use laga ki uske pairon ke niche se zamin khisak rahi hai aur wo andhere mein dhansta ja raha hai chhawi ne shant Dhang se kaha ki usne kai mahilaon se baat ki hai jinka kahna hai ki barah hafte se ziyada ho chuke hain kandhe par latka uska bag dhapp se gir paDa wo laDkhaData hua ek makan ke aage nikle chabutre par baithkar ankhen phaDe kanDom baba ko dekhne laga use kuch dikhai nahin de raha tha, ankhon ke theek aage matamaile dhundhle chakatte uD rahe the uski taraf kisi ka dhyan jaye isse pahle usne khu ko zabardasti kheench kar khaDa karne ki koshish ki to chakkar aa gaya, mathe par hath phirate hue usne mahsus kiya ki wo jaDe mein bhi pasine se bhiga hua hai thoDi der baad akasmat pahli cheez uske dimagh mein yahi i ki chhawi us laDki ke sath balatkar ki ghatna ke bare janti hai wo phir ghaDi ke pendulum ki tarah jhulne laga, janti hai nahin janti janti hai uski puri zindagi is ek sawal par jaise aakar tik gai thi aur use bahut jaldi faisla karna tha aksar sir uthane wale sharmindagi se bhare sandehon aur unke shant hone par usse bhi bhishan atmaghati pashchatap mein sulagne ka samay ja chuka tha kyonki chhawi ke bhitar ek bachcha lagatar baDa ho raha tha aur wo kisi bhi cheez ka intizar nahin karne wala tha
si antratma ka kautuk
si antratma ko kanDom baba bahut dilchasp adami lage, us sham anayas unka skutar circuit house ki taraf muD gaya aur wo interwiew karne ke bahane unse milne chale gaye we is wichitr adami ko ek bar phir dekhana aur uski chhawi apne man mein theek se bitha lena chahte the unhonne socha tha, lage hath kanDom ke aath das packet bhi mang lenge ghar mein paDe rahenge, kabhi kabhi kaam ayenge
si antratma hamesha itne chaukanne rahte the ki unhen achuk Dhang se pata rahta tha ki kaam ki koi bhi cheez muft mein ya kam se kam dam mein kahan mil sakti hai unmen agar ye qabiliyat nahin hoti to press ki tankhwah se unki grihasthi ka chal pana asambhau tha dawaon ke muft saimpal we farmasiston, Doctron ke yahan se lete the, bachchon ki kitaben sidhe prkashkon se mang late the, kapड़e katpis ke riyayti dam par lete the, press kamphrenson mein milne wale pad aur kalmen sagrah batorte the jo bachchon ke kaam aate the wahan gift mein milne wale sajawati samanon ko we dukandaron ko bechkar naqad ya apne kaam ki chizen lete the khatara skutar unhen ek sajatiy thanedar ne supurdagi mein diya tha jo ek kurki ke baad thane ke ahate mein paDa saD raha tha unhen akhbar ki jo kamplimentri copy milti thi, we use paDhne ke baad aadhe dam mein ghar ke samne chay wale ko bech dete the aur is paise se bachchon ko yada kada biscuit, namkin waghairah dila diya karte the
circuit house mein ghanti bajane ke baad kanDom baba ne jaise hi kamre ka darwaza khola antratma ne adatan aur thoDa unke wyaktitw ke prabhaw mein jhukkar, atmiy muskan ke sath puchha, yahan par aapko koi diqqat to nahin hai, behichak bataiyega aap hamare mehman hain kanDom baba bidak gaye, ye circuit house hai ya Dakaiton ka aDDa, ek saf tauliya to de nahin sakte diqqten puchhne chale aate hain antratma akabka gaye, kuch bol hi nahin pae aur bhaDak se darwaza band ho gaya pure circuit house mein ek hi chikat tauliya tha jo waiter ne kanDom baba ko de diya tha unhonne saf tauliya manga to usne unhen bataya ki aap hi jaise guest log utha le jate hain isliye koi aur bacha hi nahin hai kanDom baba ne mainnejar se shikayat ki to usne bataya ki is sal abhi tak samanon ki kharid nahin hui hai si antratma jab interwiew mulaqat ke liye pahunche, us waqt bhannaye hue kanDom baba jiladhikari ko shikayati patr likh rahe the aur unhonne unhen circuit house ka waiter samajh liya tha
antratma daftar lautkar ye qissa suna rahe the ki city chief ne unhen Danta ki itni baDi khabar unke pas hai aur wo baithe chakallas kar rahe hain agle din ye tauliye wali khabar kanDom baba ke badnam basti daure ke beech mein double column box mein chhapi kanDom baba ka us din dilli lautna sthagit ho gaya, sham ko wo angrezi mein likha saDhe teen pej ka khanDan lekar akhbar ke daftar pahunche aur wahan si antratma ko baithe dekhkar unki cheekh nikal gai wo sanpadak se jhagaDne lage ki unka akhbar peet patrakarita kar raha hai khanDan mein likha tha ki aadar, atithy aur satkar ke liye we zila prashasan wa circuit house ke karmchariyon ke abhari hain tauliye ka qissa puri tarah managDhat hai kisi riportar ne is bare mein unse baat tak nahin ki hai akhbar ye sab zila prashasan ki chhawi bigaDne ke liye kar raha hai darasal ziladhikari ne kanDom baba ko bulakar kah diya tha ki we ya to turant is khabar ka khanDan chhapwayen ya phir agli bar se apne thaharne ka koi aur thikana DhoonDh len kanDom baba ka khanDan raddi ki tokari mein Dal diya gaya kyonki pata tha ki unhen raat mein dilli jana hi jana hai aur unke darshan phir kab honge koi nahin janta
asainment ke beech mein hi parkash parlour pahuncha aur chhawi ko lagbhag ghasitte hue bathrum mein le jakar use pregnensi ke hom test ki kit thama kar darwaza dhaDak se band kar diya thoDi der baad chhawi ne use dikhaya ki inDiketar saf bata raha tha ki wo sach bol rahi thi wo puchhna chahta tha ki tumhein us laDki ke balatkar ki baat kaise pata chali lekin munh se nikla, kab pata chala chhawi ne use chhua to wo kanp raha tha usne kaha, tumhara to wo haal ho raha hai jo, main tumhare bachche ki man banne wali hoon, ka bhayanak Dauylag sunte hi purani filmon ke hero ka hua karta tha
ab shadi ke bare sochna hoga jaldi kuch karna paDega, uska munh sookh raha tha kyonki bhitar lu chal rahi thi
jalasmadhi waya chinmay chilghoza
manDuwaDih mein nahin ganga ki manjhdhar mein ek naya sankat uth khaDa hua ek balidani hindu yuwak ne sankalp kar liya ki agar makar sankranti tak kashi ko weshyawritti ke kalank se mukt nahin kiya jata, to wo surya ke uttarayan hote hi jalasmadhi le lega munDit sir, janeudhari ye yuwak gale mein patthar ki ek bhari patiya bandhakar ganga mein hi ek naw par rahne laga pahle bhi ek bar wo aisa prayas kar chuka tha isliye prashasan wishesh satark tha uski naw ke aage aur pichhe prashikshait gotakhoron se lais jal police ki do nawen laga di gain
jal police ke pichhe mahabiri jhanDon se saji naw par shankh, ghanta, ghaDiyal bajate aur beech beech mein har har mahadew ka udghosh karte garw se tane samarthak chalte the pichhe nawon mein ilektranik channelon ke kru rahte the har kru ko apne interwiew ki bari ke liye samarthkon ki agli naw se token lena paDta tha jaldabaज़ media ki arajakta ko rokne aur yuwak ko paryapt wishram dene ke liye ye wyawastha ki gai thi kyonki bolte bolte uska gala baith chuka tha dilli aur mumbai ke baDe channelon ne bajre kiraye par lekar unhen obi wain mein badal diya tha we nirantar ‘sadachar ki ganga se ganaika wirodh,’ ‘jal mein andolan,’ ‘jal samadhi’ ka sajiw prasaran kar rahe the
dayen, bayen aur beech mein camere liye wideshi paryatkon ki kashtiyan ghusi rahti theen, we us yuwak ki naitikta, sankalp aur abhiyan ke wilakshan tariqe se chamatkrit the swiDan ki oriyental philosophy ki chhatra magdalina inken itni prabhawit thi ki usne yuwak se prem ki sarwajnik ghoshana kar di thi prakat taur par we yahi kahte the ki unhen is yuwak mein isa masih ki chhawi dikh rahi hai lekin aapsi batachit mein god mein rakhi bisleri ki botalon ko dulrate hue we pulak uthte the ki kitabon mein paDhe madariyon, samperon, sadhuon aur jadugron ke jin kartabon ko dekhne ke liye we yahan aaye the, anayas dikh rahe hain is durlabh kshan ki jhankiyon apne desh le jakar bechne ka awsar we chukna nahin chahte the
ye antarrashtriy dhaj ka ajib o gharib beDa bhor se lekar raat ke gyarah baje tak rajghat ke pul se ramangar ke qile ke beech ganga mein tairta tha ghaton par tamashbinon ki bheeD lagi rahti thi jab beDa unki nazron se ojhal hone lagta tha to we khijhkar har har mahadew ka nara lagate hue galiyan bakne lagte the aur pas aane par phir we prasannata se abhiwadan karte hue har har mahadew ka nara lagate the ye udghosh aisa sanput tha jiska istemal we prasannata, krodh, gauraw, hatasha, unmad sabhi bhawon ko wyakt karne ke liye saikDon salon se karte aaye the
weshyaon ko dhandhe ke laisens diye jayen na diye jayen is par tiwi channelon par tak sho ho rahe the jinmen weshyawritti ke wisheshaj~n, traifiking ke jankar, naitik prashnon ke shodhakarta, itihaskar, kalgarlon ke raiket pakaDne wale police adhikari, samaj kalyan se juDe afsar, mahila sangathnon ki neta aur aam log dharawahik bol rahe the ganga mein nawon par sawar riportar asahaye mandbuddhi bachchon ki tarah cheekh rahe the, ‘samuchi kashi nagri nadi aur ghaton par nikal i hai weshyawritti se naraz log har har mahadew ke nare laga rahe hain pani aur patthar ke beech ek yuwak ki jaan khatre mein hai, udhar weshyaon ne ab tak rozgar ke upayon mein koi dilchaspi nahin dikhai hai aur we maDuwaDih mein hi bani hui hain ab dekhana hai prashasan is chunauti se kaise nipatta hai main chinmay chilghoza waranasi se hawa hawai tiwi ke liye ’
udhar ghat kinare, assi mohalle mein buddhijiwiyon ka aDDa kahi jane wali ek chay ki dukan mein wishwwidyalyon ke nithalle professor, wiphal wakil, rajnitik dalon ke hatash karyakarta, berozgar, thalue, adhapagle bhangeDi, kawi, patrakar, lekhak aur batarsi aapas mein is mudde par joojh rahe the mathon mein kotharinon, mandiron mein dewdasiyon aur sewikaon ko lekar aujhaiti ke karmakanD mein pichhDi, dalit aurton ke sath wyabhichar ke uddharn diye ja rahe the to jawab mein har ghar mein chalte wyabhichar aur chhinalpan ke sachche qisse sunaye ja rahe the koi wiwah ko khana, kapDa, chhat aur suraksha ke ewaz mein hone wali samajik manyata prapt weshyawritti ka sabse baDa karmakanD bata raha tha to jawab mein aise wichar ka uts uske rakhail ki aulad hone mein talasha ja raha tha in sabke upar ek ayurwedic nuskha tha, jise sabhi apni smriti mein sahej lena chahte the ise ek bhangeDi ne weshyawritti unmulan ke upay ke roop mein sujhaya tha
sonth, satawar, gorakh gunDi
kamraj, wijya, narmunDi॥
girai na beej, jhaDe na DanDi
palang chhoD ke bhagai ranDi॥
uska kahna tha ki agar customer is nuskhe ka istemal shuru kar den to nagar wadhuen bhag jayengi aur maDuwaDih dekhte hi dekhte khali ho jayega patli gardan, jhuki peeth aur sookh chali janghon wale buddhijiwi ise yaad kar lena chahte the shayad unke awchetan mein tha ki weshyaon par na sahi apni patniyon, premikaon par to we iska istemal kar hi sakte hain
mahawar, ashiq ka banner aur putliyan
police wale manDuwaDih ki badnam basti se phir kisi laDki ko na ghasit le jayen, iski chaukasi ke liye toliyan banakar raat mein gasht ki ja rahi thi Dar kar bhagne waliyon ko manane ke liye panchayat ho rahi thi adalat jane ke liye chanda jutaya ja raha tha purane grahkon aur hamdardon se sanpark sadha ja raha tha shahr mein phaili is kacharghanw ke beech manDuwaDih ki badnam basti mein chupchap akhbaron par raushnai aur mahawar se angaDh likhawat mein ‘hamko weshya kisne banaya, ‘kashi mein kisne basaya, jo qimat se lachar un par bhi balatkar, pahle punarwas karo phir dhandhe ki baat karo jaise nare likhe ja rahe the pual, paulithin aur kaghaz ke alawon par elyuminiyam ki patiliyon mein patli lei pak rahi thi ek purana customer jo painter tha, banner likhkar de gaya jis itni phool pattiyan bana di theen ki jo likha tha, chhip gaya tha school chalane wale laDke abhijit ne rashtrapti se lekar collector tak ke nam j~napan likhe
ek din subah we achanak, chupchap apne bachchon, bhukhe khaurhe kutton, suggon ke pinjron, pandanon, khane ki potaliyon, pani ki botalon ke sath hath se sili jari ke kinari wale, phulpattiyon se Dhake banner ke pichhe mukhy saDak par aa khaDi huin aage wahi laDka abhijit tha aur sabke hathon mein nare likhi takhtiyan theen ye ab tak ke j~nat itihas mein weshyaon ka pahla julus tha jo aath kilomitar door kachahri par pradarshan karne aur collector ko mang patr dene ja raha tha teen sau aurton ki lambi qatar inmen se ziyadatar basti mein laye jane ke baad pahli bar bahar shahr mein niklin theen unhen dekhne ke liye traffic tham gaya, saDkon ke kinare aur makanon ke chhajjon par logon ki qataren lag gain
ranDiyan ranDiyan dekho, ranDiyan
lekin we kisi ko nahin dekh rahi theen, unki ankhon mein bheeD se ghire janwar ke bhay ki parchhai thi aur rah rahkar ghussa bhabhak jata tha laDenge jitenge, laDenge jitenge we kisi ka sikhaya hua, ajib sa nara laga rahi theen jiska unki zindagi aur huliye se koi mel nahin tha ziyadatar aurten bimar, udas aur thaki hui lag rahi theen mamuli saDiyon se nikle plastic ki chappalon wale pair sankoch ke sath idhar udhar paD rahe the mano saDak mein adrshy gaDDhe hon, jinmen girkar sama jane ka khatra tha bachche aur kutte bhi sahme hue the nare lagate waqt uthne wale hathon mein bhi lai nahin jhijhak aur betartibi thi lekin unki chinchiyati, bharrai awazon mein kuch aisa marmik zarur tha jo rah rahkar kachot jata tha unke sath sath saDkon ke kinare kinare log bhi garadnen moDe chalne lage logon ke ghurne se ghabrakar gale mein harmonium aur Dholak latkaye sazindon ne tan chheDi aur we chaurahon par ruk ruk kar nachne lagin
jhijhakte, nachte gate ye wishal julus jab kachahri mein dakhil hua to wahan bhi sansani phail gai
we nare lagati collector ke daftar ke samne ke baramde aur saDak par dharne par baithin aur charon or tamashbinon ka ghera ban gaya jaldi hi wakil, muwakkil, puliswale aur karmachari kaghaz ki parchiyon par ganon ki farmaishen likhkar un par phenkne aur not dikhane lage kuch Dheeth qim ke wakil hathon se mor aur nagin banakar bheeD mein baithi kam umar ki laDakiyon ko nachne ke liye ishare karne lage weshyaon ne unki or bilkul dhyan nahin diya, we apne bachchon ko sambhalti nare lagati baithi rahin do Dhai ghante baad ziladhikari ke bheje probation adhikari ne aakar kaha ki wibhag ke pas weshyaon ke punarwas ke liye koi phanD aur yojna nahin hai iske liye kendr aur rajy sarkar ko likha gaya hai unki mange sabhi sambandhit pakshon tak pahuncha di jayengi nari sanrakshan grih mein itni jagah nahin hai ki sabhi ko rakha ja sake ziladhikari ne ashwasan diya hai ki agar we dhandha nahin karen to apne gharon mein rah sakti hain, unke sath zor zabardasti nahin ki jayegi ziladhikari ne rahat phanD ki uplabdhata janne ke liye samaj kalyan adhikari ko bulwaya lekin pata chala ki we in dinon jel mein hain unke wibhag ke klarkon aur schoolon ke prdhanacharyon ne milkar hazaron dalit chhatron ke nam se farzi khate kholkar unke wazife haDap liye the is mamle ka bhanDa phutne ke baad kalyan wibhag par in dinon tala latak raha tha
bheeD mein se ek buDhiya probation adhikari ke aage apni maili dhoti ka anchal phailakar khaDi ho gai aur bharrai awaz mein kahne lagi, jab tak jawani rahi sarkar aap sab logan ki sewa kiya upar wale ne jaisa rakha, rah liye ab buDhapa hai sarkar ujaDiye mat kahan jayenge, kahin thaur nahin hai weshyayen hansne lagi, buDhiya probation adhikari ko hi kalaktar samajhkar fariyad kar rahi thi buDhiya bole ja rahi thi, ‘jab tak jawani rahi apaki sewa kiya sarkar ’ tamashabin bhi hansne lage probation adhikari ke chehre ka rang utar gaya wo jaldi se kuch bolkar muDa aur angrezon ke zamane ki kachahri ke baramde ke wishal khambhon ke pichhe adrshy ho gaya
yaj~n, jala hua school aur sampadkon se niwedan
weshyaon ke julus ke agle din dashashwmedh ke baghal mein man mandir ghat par brahamchari sadhuon aur batukon ne samajik paryawarn ki shuddhi ke liye ganaika uchchhed yaj~n shuru kar diya aate ke istriyon ke saikDon putle banaye gaye unhen nahlane ke baad chandan, sindur, guggul aadi ka lep karne ke baad kachche soot se lapet kar siDhiyon par saja diya gaya har din hazaron ki tamashai bheeD ke aage tiwi channelon ke kaimro ki upasthiti mein guru gambhir mantrochchar ke beech inhen hawan kunD mein phenka jata tha sadhu aur mantrik garw se batate the ki isse weshyayen samul nasht ho jayengi aur kashi punah pawitra ho jayegi
in sadhuon aur batukon ki adhik wishwasniyata nahin thi, isliye unhen bahut samarthan nahin mil paya inmen se ziyadatar sadhu, panDe the jo khastaur par wideshiyon ko phansne ke liye tuti phuti angrezi, phrench ya spenish bolte hue ghaton par albam liye baithe rahte the batuk bhi aise the jinhen pitrpaksh ke mahine mein yajmanon ki bhari bheeD jut jane par purohit dihaDi par laga lete the unhen ghaton par munDit siron ke beech thoDi thoDi duri par pothi thamakar bitha gaya jata tha purohit maikrofon par mantr bolte the, we use duhrate the we purohit ke nirdeshon ki naqal kar yajmanon ko upnirdesh dete the ek tarah se we pinDdan aur tarpan ke dihaDi mazduron ki tarah the
hawan kunD mein pakkar phat gai in putliyon ko widhi widhan purwak ganga mein prwahit kar diya jata tha raat mein in hawan kunDon ko ghaton par sone wale bhikhari tatolte the aur aag par paki in putliyon ka guda nikalkar kha jate the we apni bhookh mitane ke liye weshyaon ko waise hi kha rahe the jaise thoDe paise wale log apni bhookh mitane ke liye weshyaon se sambhog karte hain jab malaon aur dhagon mein lipti prwahit putliyan nadi ke kinaron par tir rahi theen aur unke nitambo, stnon, pet, janghon, chehron ka guda phulkar pani mein chhitar raha tha tab weshyayen rajnitik partiyon ke daftaron ke phere lagakar madad ki guhar kar rahi theen
DeDh mahine ke baad badnam basti ke bachchon ka school ek raat jala diya gaya ye school basti ke bahar ek khanDhar par teen shade Dalkar chalta tha school chalane wale yuwak abhijit ne bahut koshish ki lekin report darj nahin hui sabhi jante the ki kisne jalaya hai lekin police ne apni taraf se jaanch kar nishkarsh nikala ki wahan raat mein jua khela jata tha raat mein aag tapne ke liye juariyon ne jo alaw jalaya tha, usi se aag lagi thi akhbaron mein bhi yahi chhapa kyonki koi sabut nahin tha jiske adhar par aag lagane walon ko is ghatna ka zimmedar thahraya ja sake
ye laDka abhijit dilli wishwawidyalay se em phil karne ke baad kuch din madhya pardesh ke sidhi zile mein beDiniyon ke ek ganw mein ek sal raha tha yahan aakar usne weshyaon ke kuch bachchon ko god lekar paDhana shuru kiya ab uske school mein sau se adhik bachche paDhte the aur use wishwas tha ki ye bachche, us nark mein jane se bach jayenge weshyayen pahle apne bachchon ko school nahin bhejti theen kyonki unhen yaqin hi nahin tha ki unhen koi sachmuch paDhana chahta hai wo lagatar weshyaon se kahta rahta tha ki we apni amdani apne pas rakhen, use apne patiyon yani dalalon aur bhaDuon ko na den us paise ko apne aur bachchon par kharch karen
wo badnam basti ke purushon ki ankh ki kirakiri tha we school jalne se khush the yahan bhi ziyadatar aurten bina pati ke akele nahin rah pati theen unhen kisi na kisi se suraksha ki ot chahiye thi ye pati yani dalal, bhaDue aur sazinde hi unke liye gerahak patakar late the aur ziyadatar paise haDap lete the we aam patniyon ki hi tarah unke nam par wart aur upwas karti theen aur we unhen aam patiyon ki hi tarah pitte the ye laDka abhijit ab sab taraf se mayus hokar sare din akhbaron ke daftaron mein chaprasi se lekar sanpadak tak sabse niwedan karta rahta tha ki we bus ek bar chalkar apni ankhon se badnam basti ki haalat dekh len wahan bhukhamri ki haalat hai, chhah aurten kothe chhoDkar ja chuki hain aur dusre jaghon par dhandha hi kar rahi hain yahan agar police piket nahin uthti aur unka dhandha nahin shuru hota to we bhukon marengi, ya phir charon or phail jayengi isse weshyawritti kam nahin hogi, balki aur baDhegi si antratma ki tarah, aam patrkaron ki bhi uske bare mein ray yahi thi ki bachchon ko paDhane ki aaD mein wo laDakiyon ki taskari ka raiket chalata hai aur weshyaon ki amdani se hissa leta hai weshyaon ki bhalai ka swang karte hue wo karoDapati ho chuka hai
DeDh mahina bitne ke baad bhi kisi weshya ne thane mein jakar sarkari lon ki arzi nahin di thi aur koi bhi nari sanrakshan grih jane ko taiyar nahin hui ziyadatar sazindon, dalalon ke jane ke baad ye man liya gaya tha ki jaldi hi we sabhi kahin aur chali jayengi, sirf buDhi, bimar aurte rah jayengi jinmen se kuch ko police uthakar sanrakshan grih mein Dal degi baqiyon ko khadeD diya jayega jo ghumkar bheekh mangegi waise bhi janagnana wibhag weshyaon ki ginti bhikhariyon ke roop mein hi karta aaya hai
saDDe nal rahoge to aish karoge
ek din chupchap parkash ne abhijit ke samne prastaw rakha, main tumhare sath wahan chal sakta hoon lekin mujra karana paDega, photo khinchna chahta hoon uske man mein mujra dekhne sunne ki bhi bahut purani dabi ichha thi jo is samay asani se puri ho sakti thi is ichha se bhi baDi wo gutthi thi jise kholne ke liye manDuwaDih jana shayad zaruri tha
ek sham rutin ke photo press mein download karne ke baad wo jaldi nikal gaya aur manDuwaDih ki us basti mein pahunchakar usne paya ki wahan ki bijli kati ja chuki hai basti ke donon taraf bhare pani ke us par bulDozron ki gaDgaDahat aur chhapak chhapak mitti phenkne ki awazen aa rahi theen pahli bar dhyan se usne kothon ko dekha, jinhen ek khas tarah ke bhram ke karan kothe kaha jata tha ek tuti phuti saDak ke kinare inton ke ek manzila, kahin dumanzila makan the ziyadatar ke pichhle hisse mein palastar nahin tha patli patli galiyon mein khiDakiyon se laltenon aur mombattiyon ki raushani aa rahi theen basti ke donon taraf barsat ka saDta pani bhara tha aur charon or hawa mein badbu thi, machchhar bhinbhina rahe the saDak kinare ki khali paDi dukanon ki chay ki bhatthiyon mein aur chhajjon ki chhanw mein alaw jal rahe the, jinke gird aurten aur rukhe balon wale kumhlaye bachche baithe hue the ye daliton ka koi ganw lag raha tha jahan udas raat utar rahi thi
mujre ke turant intizam ke tahat kisi ghar se harmonium, kahin se Dholak mangai gai ek jhabre balon wala nasheDi lagta laDka ek baijon le aaya ek ghar ke dalan mein kai laltenen rakhi gain jiski chhat ke konon mein makDi ke jale the jinke asapas sust chhipkiliyan reng rahi theen diwaron par mamuli calendar aur phremon mein pariwaron ke mele, thele ya chaltau stuDiyoz mein khinchwaye photo latak rahe the andar ke darwaze par nauylan ki saDi ko phaDkar banaya gaya, chikat ho chuka parda latak raha tha thoDi der mein kamra aurton, bachchon aur dalalon se thasathas bhar gaya, use kisi tarah apna camera god mein rakhkar ukDu baithna paDa parde ki ot se ek kale rang ki moti si aurat i jiske chehre par pute pauDar ke bawjud chechak ke dagh jhilmila rahe the, baithkar ghunghru bandhne lagi parkash ko laga ki wo ghunghru nahin bandh rahin, kahin jane se pahle jute pahan rahi hai uske pichhe ghunghru bandhe ek khubsurat si laDki i jiski ankhe bilkul bhawahin theen wo honth aage ki taraf nikalkar beech mein khaDi ho gai use dekh kar parkash ko laga ki use kahin pahle dekha hai wo itni dubli thi ki enimiya ki mariz lagti thi
achanak sur milane ke liye tuti bhathi wale harmonium ne hanphna shuru kiya aur donon aurten nachne lagin we hath pair aise jhatak rahi thi jaise un par jami dhool jhaD rahi hon donon ne bhawahin tariqe se ek chalu filmi gana gaya ek unghti buDhiya ne jaise neend mein farmaish ki, ‘babu ko punjabi sunao, punjabi ’
ek kshan ke liye moti aurat ne honth phailakar parkash ki taraf dekha phir apne anchal ko kamar se nikalkar sir par patka bandh liya Dholak ki gamak ke sath uchakte hue unhonne gana shuru kiya, ‘bole tara ra ra, bole tara ra ra!
saDDe nal rahoge to aish karoge, duniya ke sare maze cash karoge ’
kai bachche bhi kudkar nachne lage aur dhakka mukki hone lagi kamre mein dhool uDne lagi, laltenon ke aage kuhasa sa gaya ab cheekh pukar ke beech sirf uchhalti hui akritiyon ka abhas bhar ho raha tha mano raat ke dhundhalake mein pret nach rahe hon waqi ye bhukhe aur kruddh preton ka hi nach tha jinhen gherkar saDte hue pani aur police ke pahre mein band kar diya gaya dhool ke ghubar ke karan ab photo kheench pana sambhaw nahin rah gaya tha wo uthkar bahar nikal aaya chehre ke samne ki dhool uDane ki bekar koshish karte hue abhijit ne kaha, ‘yahi inki zidangi hai sar ’
abhijit ko sath lekar parkash chala to saDak aate hi police wale chillate hue lapke isse pahle ki wo kuch bol pata ek lathi se motor cycle ki heDlait phoot kar chhitra chuki thi abhijit ne tezi se kaha, muD lijiye, dusri taraf se nikaliye janbujhkar mar rahe hain, ye press batane par bhi sunenge nahin
muDte muDte ek lathi abhijit ki peeth par paDi wo bilbila gaya basti ke dusre chhor par mustaid par police wale door se hi lathiyan lahrate, galiyan dete hue bula rahe the, wo samajh gaya ye nikalne nahin denge aaj ki raat yahin katni paDegi bahut dinon ke baad use us raat sachmuch ka Dar laga lag raha tha jaise pet mein pani bhar gaya hai aur munh se bahar aa jana chahta hai thoDi der tak basti ke donon chhoron se galiyan lahratin aati rahi, ‘sale, madarchod press ke nam par ranDibazi karne aate hain ’
motarsaikil khaDi kar sanyat hone ke baad dukhte hath ko senkne ke liye wo ek alaw ke aage baith gaya abhijit wahan pahle hi jacket utarkar apni peeth senk raha tha aur do bachche, sipahiyon ko galiyan dete hue, master sahab ki peeth ki malish kar rahe the donon nachne waliyan yasmin aur wimla use chheD rahi thi, aur karao, khuleam mujra, samujhawan bujhawan ka parsad mil gaya na
we donon ab parkash ko dekhkar muskura rahi thi kuch is bhaw se jaise ab aate dal ka bhaw kuch samajh mein aane laga hoga patrakar ji ko donon ke chehre par chuhchuha aaye pasine se pauDar jagah jagah bah gaya tha usne yasmin se kaha, tum donon nachti achchha ho, khoob nachti ho wo jaise bura man gai, khali pet khak nachenge diwali andhere mein gai, shadi byah mein satta hota tha, wo bhi band hua dekhiye kitne din numaish ke liye nachte hain alaw se phoos ka ek tinka khinchte hue yasmin ne ulahna diya, jinko khilaya, pilaya, bap bhai mana jab wahi dushman ho jayen to koi kya gayega aur kya nachega
parkash ne abhijit se puchha inke kaun bap bhai hai jo dushman ho gaye hain wo hansa, ‘khu hi dekh lijiye, ab ruk hi gaye hain to sab samajh mein aa jayega uske kahne par wimla ek ghar se ek chhota sa photo albam le i wapsi mein uske pichhe chhoti si bheeD chali aa rahi thi usne photo dikhane shuru kiye, ‘yah dekhiye sawitri ki bitiya ka kanyadan ho raha hai ’ agal baghal baithi kai aurton, bachchon ke chehre us photon mein the we sabhi ek sarpat ke manDap ke niche khaड़e the ek adami jhuka hua war ke pair dho raha tha
‘ye mayaram patel hain, jo is laDki ke bap hain yahin se DeDh sal pahle shadi hui thi aaj ye hum logon ko bhagane ke liye kachahri par dharna dekar baitha hua hai
ye dekhiye, asagri begam ke laDke ke khatne mein sabhasad tirathraj dube murgha toD rahe hain
botalon, gilason, juthi pleton ke pichhe do aurton ko agal baghal dabaye tirathraj dube photo se bahar bhahrane wala tha
‘yah dekhiye, hum logon ke chhote bhaiya salma se rakhi bandhwa rahe hain ’
pan ki dukan chalane wale rajesh bhardwaj ke hathon mein itni rakhiyan bandhi thi ki uski kalaiyan phuladan lag rahi theen
‘yah dekhiye pardhan ji suhani ke sath chand par ja rahe hain ’
shiwdaspur ke upaprdhan ram wilas yadaw kisi mele ke stuDiyo mein chamkili panniyon se saje lakDi ke chand tare par ek laDki se gal sataye bewajah muskura rahe the
‘yah dekhiye ye dekhiye we ek ke baad ek mamuli cameron se khinche hue ghairmamuli photo dikhaye ja rahi theen ’
hamari daru, murgha hamara, andolan unka
jaise photo albam mein koi pump laga tha har phlaip palatne ke sath parkash ki chhati mein hawa bharti ja rahi thi ye sabhi to badnam basti ko hatane ke liye andolan chala rahe, kachahri par amarn anshan par baithe neta the bus inke chhapne ki der thi ki unke pakhanD ko barud lag jata aur sara andolan kuch ghante mein chithDe chithDe ho jata apni uttejna par qabu pane ke baad usne albam hath mein lete hue kaha, lekin ye log to kah rahe hain ki unke bachchon ki shadiyan nahin ho pa rahi hain, bahu betiyon ka jina mushkil ho gaya hai
laga madhumakkhiyon ki chhatte par Dhela paD gaya alaw ki aag se bhi tez jibhen lapalpane lagin, ye asli dalle hain, apni bahu betiyon ka jina khu inhonne mushkil kar rakha hai inke ghar mein kaun si aisi shadi hui hai, jismen hum logon ne pachas hazar lakh rupya jama karke na diya ho aur muft mein gana bajana na kiya ho hamare samne to ayen, zaban hi nahin khulegi hum log to rajesh bhardwaj ki barat mein bhi gai theen, uski shadi yahin ki mahamaya ne karai hai jis makan mein wo rahta hai wo bhi mahamaya ka hi hai uske pas registry ke kaghaz hain, chahiye to abhi le jaiye prapanchi hain, kukarmi hain samne paisa dekhkar badal gaye hain koDh phutega salon ko
is kuhram se abhijit hakabka gaya thoDi der tak lachar bhaw se dekhne ke baad usne khaड़e hokar puri taqat se chillakar kaha, halla karne se koi fayda nahin mahamaya ko bolne diya jaye wo sabko janti hain ziyada achchhi tarah batayegi bhunbhunahat ke baad phir thoDi ke liye khamoshi chha gai
nepalin mahamaya ke basti mein teen makan th shayad sabse maldar aur manind wahi thi wo aag ko khodte hue ek chamkile shaal mein lipti chupchap baithi hui thi sabke chup hone ke baad usne jhurriyon mein dhansi, kajal puti, chamkilin akhen uthain, nashe se larazti awaz mein wo thahar thahar kar bolnen lagi, dekhiye koi chhath aath mahine pahle ki baat hai ye netaji log aur bhi kai sharif log basti mein roz aate the hamari daru pite the hamara murgha toDte the aur hamare hi sath sote the hum log bhi inse har tarah ka rishta rakhte the ye baat unke baal bachchon ko bhi pata hai lekin unka lalach baDhta hi ja raha tha ye log police ke bhi bap nikle, aaye din itna paisa mangte the ki dena hamare bus mein nahin raha master sahab ke kahne par sab aurton ne panchayat karke tay kiya ki bahut ho gaya ab paisa, daru, murgha band han, bol baat rahegi, unke prayojan mein pahle ki tarah nach gana bhi rahega lekin paise ki madad kisi ko nahin ki jayegi yahi narazgi ki wajah hai warna, hum logon ko to inhin logon ne aur unke bap dadon ne hi yahan basaya tha basaya bhi apne fayde ke liye bazar se teen gune ret par bhaDa liya aur panch gune ret par zamin aur makan beche apni sari punji lagakar hum logon ne apne thihe khaड़e kiye, ab ranDiya ankh dikhayen, un logon se ye bardasht nahin ho raha hai parkash ko basti ke bhitar ek nai basti nazar aa rahi thi
mahamaya ne upar tak kar kaha, ‘kaghaz lao makan hi nahin basti ke bhitar jitni dukanen hain, we bhi unhin logon ki hain ghar ghar mein jhagDa ho raha hai ki unki zid ki wajah se pachason pariwaron ki rozi roti mari ja rahi hai usne ek ek dukandaron ke nam ginane shuru kiye to unhin ke sajhidar, bhai, rishtedar ya naukar chakar the koi dukan chhoot jaye to bachche beech mein uchakkar yaad dila dete the aadhe ghante ke bhitar parkash ke pas ikkis makanon ki registry ke staimp lage asli kaghaz jama ho chuke the bees bais sal pahle waqi shahr se bahar ki jalabhraw wali zamin ke manmane dam liye gaye the
ab abhijit ne bolna shuru kiya ‘asliyat waisi ikahri nahin hai, jaisa ki aap log sochte hain darasal ye andolan ye bulldozer wale chalwa rahe hain jalabhraw ke agal bagal ke khet aur parti dilli ki ek kanstrakshan company ne kharid liye hain yahan ke kai baDe neta, bilDar aur mafia company ke phrenchaizi hain un sabki nazar is basti par hain, ganw aur paDos ke muhallon ke chalak log Diaiji ki shah pakar andolan isliye chala rahe hain ki weshyayen apne makan aune paune mein inhen bechkar bhag jayen phir ye unki plating karke bilDron ki madad se yahan apartament aur marketing kampleks banwayenge aur raton raat malamal ho jayenge yaqin na ho to inmen se jinke ghar hain, kisi se poochh lijiye dalal aur bichauliye makanon ki qimat lagane lage hain unhen lagta hai ki dhandha band hone ke baad weshyayen yahan ziyada din nahin tik payengi aap ghaur se dekhiye jo sansthayen ajkal Diaiji ka abhinandan karne mein lagi hain, unka koi na koi padadhikari kanstrakshan company ya phir bilDron se juDa hua hai
parkash ke sine mein phir se hawa bharne lagi wo turant uD jana chahta tha use tees sal pahle is ilaqe ki zaminon ke asal ret aur weshyaon ko ki gai registry ke ret ka tulnatmak wyaura, kanstrakshan company ke bhu upyog aur le out plan ka khaka, andolan kar rahe netaon aur Diaiji ki bilDron se saudebazi ke sabut aur kuch purane property Dilron aur riyal istet ke dhandhebazon ke bayanon ka intizam karna tha bus! ye koi baDi baat nahin thi registry daftar, wikas pradhikarn aur kanstrakshan company ke marketing diwision aur piarao se milkar ye sare kaam chutki bajate ho sakte the ek sanasnikhez stori siriz uski mutthi mein thi usne abhijit se kaha, ‘hamen ek bar phir nikalne ki koshish karni chahiye ’
‘ab ziyada khatra hai, subah se pahle nikalne ki sochiye bhi mat, is samay police wale trakon ko rokkar wasuli kar rahe honge, baukhla jayenge, abhijit ne kaha
ek laDki ne aakar bataya ki aaj raat khane ka intizam roti gali mein hai ziyadatar log khakar ja chuke hain, we log bhi pahunchen, nahin to khana khatm ho jayega parkash hichakichaya to ek adheD aurat ne hath pakaDkar khinchte hue kaha, ‘ham logon ka kothi, bangla aur gaDiyan sab to aapne dekh hi liya, ab chalkar khana bhi dekh lijiye baDe baDe lagon ka khana to roz hi khate honge, ek din hamara bhi khaiye
ek gali mein petromeks ki raushani mein weshyaon ki pangat baith rahi thi bachchon ko pahle hi khila diya gaya tha ye shayad akhiri pangat thi pattal par jab khichDi aur achar aaya to yasmin hansi, patrakar ji ajkal hum log yahi kha rahe hain jo kamaya tha DeDh mahine mein uD gaya agar paisa ho bhi to saman lane nikal nahin sakte chori chhipe chawal lakar yahi intizam kiya gaya hai
parkash achraj ko dabana chahta tha lekin munh se nikal gaya, ‘tawayfen sadhuon ki tarah khichDi kha rahi hain aur jahan ye bant rahi hai, us jagah ka nam roti hi gali hai ’
abhijit ne samne ki pangat mein kha rahi patthar jaise bhawahin chehre wali ek aurat se kaha, ‘ye patrakar hain, inko batao roti wali gali ko kisne basaya ’
jaldi jaldi chaar panch kaur khane ke baad wo bolne lagi, asli roti gali yahan nahin kanpur mein hai wahan bhi ek pagal police afsar i theen, nam tha uska mamta widyarthi, usne dhandha band kara diya aur pitkar sab adamiyon ko bhaga diya asapas ke log bhi hamein hatane ke liye dharna pradarshan karne lage DeDh sal tak hum log baithkar khate rahe, sochte the ki dhandha phir shuru hoga lekin nahin hua sabki haalat bahut kharab ho gai to bhagna paDa mera bachcha DeDh sal ka tha aur buDhi man thi sawitri, janki aur reshma ke bhi bachche chhote chhote the hum log kisi parichit ke sath yahan aa gaye baqi aurten kahan kahan gai pata nahin hum logon ka nam hi roti gali wali paD gaya hai parkash jaan gaya, agar ye yahan se gain to pata nahin kitne gaye manDuwaDih aur abad honge
khana khane ke baad donon baqi roti gali waliyon ke ghar gaye jahan mombatti ki maddhim raushani mein latakte chithDon ke beech une bachche besudh so rahe the parkash ne aise saikDon ghar dekhe the jahan gharib, bhookh aur dinta bachchon ki ankhon mein ansuon ki patli parat ki tarah jam jati hai aur we duniya ko hamesha bhay ke parde se dekhne ke aadi ho jate hain yahan unki ankhen band theen sote bachchon ki taswiren khinchne ke baad we phir alaw ke pas wapas aa gaye wahan ek luli buDhiya, wahi roz wala qissa suna rahi thi ki kaise ek barat mein nachte hue usne banduq ki nal par rakhe sau rupae ke not ko chhua tabhi banduq wale ne ghoDa daba diya uski jo hatheli ab nahin hai, usmen dard mahsus hota hai bachche use chup karane ke liye shor macha rahe the
nihlani ki ankhon mein naitikta ka pul
parkash ki haalat us sanp jaisi ho gai jisne apni auqat se kafi baDa meDhak anjane mein nigal liya ho, jise na wo ugal pa raha hai na pacha pa raha hai wo din mein zila kachahri ke samne dharne par baithe netaon ke pas baithkar lantaraniyan sunta, ghar aakar raat mein taswiron mein unke chehron ka milan karta har din unke byan paDhta aur raat mein registry ke kaghazon par unke halafname dekhta snehalta dwiwedi, Diaiji ke pita ke sath is beech lucknow jakar do bar mukhyamantri aur kai widhaykon se mil i theen din mein kai bar gaDiyon se utarne wale sone ki chenon, pan masale ke Dibbon, mobile fonon se lade phande log unka haal poochh jaya karte the prashasan ki sari apilen thukrakar unhonne ailan kar rakha tha ki ye dharna tabhi uthega jab manDuwaDih ki sari weshyayen shahr chhoDkar chali jayengi
tent ke aage laga weshya hatao kashi bachao ka banner ab os aur dhool mein lithaD kar matmaila paD chuka tha pual par bichhe safed razai, gaddon, masnadon par mail jamne lagi thi roz pahnai jane wali sookh kar kali paD chuki gende ki latakti malaon ki jhalar ban chuki thi gadde par bikhre lai chane, pan ke patton aur muchDe hue akhbaron ke beech, dharna dene wale ab bhi weshyaon, grahkon aur dalalon ke utpat ke qisse dharawahik sunaye ja rahe the samarthan dene wali sansthaon ke liye dopahar baad ka samay tay tha unke netaon ke aane ke sath maik on hota aur sabha shuru ho jati jo kachahri band hone tak chalti thi sham aur raat ka samay bhajan gane wale kirtaniyon ke liye tha we sabhi puri tanyamta se ek puny kaam mein sahyog kar rahe the
si antratma hi chhawi ko khush kar sakne wale, parkash ke khoji patrakarita abhiyan mein madad kar sakte the usne chant photographer ki tarah unki barson purani ek ichha puri kar di we na jane kab se kah rahe the ki parkash unke man bap ki achchhi si taswir kheench de usne antratma ke ghar jakar chupchap taswir hi nahin khinchi, ek painter se uska potret banwaya, abhi paint sukha bhi nahin tha ki akhbar mein lapetkar unhen bhent kar diya wo khushi aur achraj se hakke bakke rah gaye unhen andaza hi nahin tha ki unki chhipi hui sadh is tarah puri ho jayegi
antratma, parkash ko lekar shahr ke sabse baDe bilDar aur rajyasbha ke sadasy hariram agarwal ke pas lekar gaye, jisko wo apna dost kahte the parkash ko yaqin nahin tha ki antratma jaisa fatichar patrakar agarwal ka itna qaribi ho sakta hai wo baDe tapak se mila jaise ghisi paint qamiz wale antratma siddhanton, mulyon wale koi asaphal neta hon jinke liye uske man mein apar sahanubhuti hai use bataya gaya ki akhbar ke liye ek fotophichar karna hai jiski theme ye hai ki prastawit nirman pariyojana puri hone ke baad manDuwaDih ka pichhDa, badhal ilaqa kaisa dikhega aur shahr mein kya kya badlaw ayenge agarwal, fauran donon ko lekar nidhi kanstrakshan company ke emDi shriwilas nihlani ke pas gaye jo shahr ke ek panch sitara hotel mein thahre hue the company ke chief arkitekt aur jansanpark adhikari ko bhi wahin bulwa liya gaya
us sham wo hotel ke sabse shanadar soot mein ek bed par laiptap, phonon brifkeson aur kaghazon ke Dher se ghira sharab pi raha tha uske samne plastic ki kursiyon par wibhinn akar prakar ke karobari, bilDar, chhutabhaiye neta, ghunDe, dalal winamr bhaw se baithe hue the uska pet itna baDa tha ki lag raha tha, uske sanwle, wishal sharir ke baghal mein alag se rakha hua hai us pure paridrshy mein uski ankhen wilakshan theen uski asadharan baDi ankhon ka ujla parda ati atmawishwas se buna hua tha jis par ashwasti se nirmit, bhuri putliyan Dol rahi theen duniya ke sare rahasyon ko wo jaan chuka tha, shayad isiliye kisi bhi baat par uski ankhen jhapakti nahin thi aur na hi unmen wismay ka halka sa bhi bhaw aane pata tha
agarwal ke aate hi usne arkitekt aur piarao ko ishara kiya aur meeting chutki bajate nipta di samne baithe logon se usne kaha, us ganw mein jin logon ke baDe plot hain, unka ret thoDa baDha do unhen lagao ki baqi logon ko samjhayen phir bhi nahin samajhte to chhoD do, us ganw ko bhool jao hamare pas abhi chhah mahine ka time hai do mahine baad us zamin ke sarkari adhigrahn ka kaghaz nikalwa denge sarkari ret aur circle ret donon hamare ret se kam hai thoDa jindabad murdabad hoga aur police DanDa chalayegi to apne aap aqal thikane aa jayegi we apne khet apne hath mein uthakar le ayenge aur hamein de denge
jansanpark adhikari unhen dusre kamre mein le gaya, jahan mez par beyre khane pine ka saman laga rahe the sansad agarwal ne kaha, kuch lete rahiye, batachit bhi chalti rahegi, nihlani ji wyast adami hai
si antratma lapakkar uthe aur parkash ke kan mein kaha, ‘wahi wali piya jayega jo ye pi raha tha whisky se sabere pet bhi baDhiya saf hoga ’
nihlani kursi mein nahin at pata tha apna gilas liye bistar mein dhanste hue bola, is shahr mein city planning ka hum naya yug shuru karne ja rahe hain, purane ke theek baghal mein naya shahr hoga jahan duniya ke kisi bhi achchhe metro jaisi suwidhayen hongi duniya purana banaras dekhne aati hai lekin yahan ke log inch aur centimetre mein napi jane wali patli galiyon mein, tent mein rupaya dabaye ghut rahe hain hum unhen nae khule aur marDan shahr mein le ayenge wo hansa kahiye agarwal ji ye kabir das ki ulti bani kaisi rahegi
bahut sundar, bahut sundar! agarwal ne gilas rakhte hue bhawbhine Dhang se kaha jaise unka gala rundh gaya ho khankhar kar bole, ab dekhiye bhagwan ki kripa rahi, Diaiji sahab aur antratma ji ne chaha to do mahine mein akhiri samasya bhi khatm ho jayegi uske baad roD kliyar hai
nihlani hansa, Diaiji to dharmatma adami hai sain, tapasya kar raha hai bus antratma ji ke bhai bandon ki kripa bani rahe to gaDi nikal jayegi mainne to inke liye ek par ek phri ka auphar soch rakha hai ek makan ke badle ek dukan aur ek flat le jao aish karo waise bhi hamari scheme hai ki jab booking hogi to hum police, press aur wakilon ka khas khayal rakhenge patrakar sangh se baat hui hai agar unhonne paisa ikattha kar liya to hum patrkaron ke liye alag ek block de denge, usmen koi samasya nahin hai
agarwal ji ne antratma ka kandha thapthapaya, hamare to Diaiji yahi hain, inhonne bhi kam prayas nahin kiya hai antratma ki paki daDhi mein medhawi skuli chhatr jaisi muskan phail gai
nihlani ke sanket par arkitekt ne mez par naqsha phaila diya ardhachandrakar ghere mein gyarah gyarah manzil ke teen awasiy kampleks banne the jinke beech phaile saDkon ke jal ke dhagon ke idhar udhar marketing kampleks, parking zone, stadium, sinemahal, petrol pump, swimming pool, park, kamyuniti centre, sikyoriti aafis chhitre hue the lal nile rang nishanon se bhare sketch mein parkash andaza lagane ki koshish kar raha tha ki ismen badnam basti wali jagah kahan hai
arkitekt, achanak naqsha sametne laga to parkash ne haDabDakar puchha, agar weshyayen manDuwaDih se nahin hatti hain, tab aapke project ka kya hoga? nihlani ne ashwast bhaw se kaha, nahin hatengi to project ruk thoDe jayega balki aur shanadar ho jayega usne arkitekt ko ishara kiya, inhen maureliti bridge dikhao
arkitekt ne ab dusra sketch kholkar mez par phaila diya ardhachandr ke donon chhoron par bani bahumanzili imaraton ko ek ower bridge se joD diya gaya tha jiske niche, theek beech mein badnam basti thi
arkitekt samachar wachak ki tarah bolne laga, ye naitikta setu panch sau meter chauDa hoga jiske beech phaibar glas ke transapairent slaib honge yahan caren asani se pahunch sakengi niche hailojan laitas hongi, jisse niche, zaminn ki sari chizen raat mein bhi saf nazar ayengi ek bangijamping ka pletfarm hoga aur bhi bahut kuch hoga is bridge ka istemal manoranjan, sair sapate lekar nigrani tak ke liye kiya jayega aur wahan par
use rokkar nihlani ne batana shuru kiya ek ejensi se baat ho gai hai jo logon ko kiraye par har din durbinen degi aur suraksha ka intizam dekhegi aiDiya ye hai ki wahan ghumne aane wale log ticket lekar niche weshyaon ko ghumte, grahkon ko patate aur wahan chalta sara karobar dekh sakenge isse baDa manoranjan aur kya ho sakta hai police petrol aur nigrani ke liye khas intizam hoga police wahan se awaidh karobar par nazar rakhegi, apradhiyon ko pahchanegi isse crime control karne mein bhi kafi madad milegi ye bhi ho sakta hai ki isse banne wale manowaij~nanik dabaw, pahchane aur pakDe jane ke Dar ke karan wahan customer aana band kar den jab karobar hi thap ho jayega to weshyayen kitne din rahengi
parkash ko laga ye mazaq hai antratma jo bhaunchak, sans roke sun rahe the, thathakar hans paDe, ‘julum baat hai ye to waise hi hai jaise bachpan mein hum log sarpat mein chhipkar kuen par nahati aurton ko dekha karte the ’
parkash ne hairat se kaha, agar ye mazaq nahin hai to ye bataiye ki agar weshyaon ne dhandhe ka aisa koi naya tariqa apna liya, jismen saDak par koi dikhe hi nahin to kya hoga? jahan tak manowij~nan ki baat hai to bahut pahle makanon ki diwaron par peshab karne walon ke bare mein bhi log yahi sochte the lekin kya natija nikla
nihlani ne tisra peg khatm kar lambi hunkar bhari, sain tabhi to asli hona shuru hoga das sal mein hamara durabin culture aa chuka hoga tab intartenment kampaniyan apni laDakiyon ko lakar tumhare manDuwaDih mein bsa dengi unki chhaton par open air bar, kaibare, swinming pool, san bath stand, jakuji, sauna aur tarah tarah ke khel honge log unhen dekhne ke liye ayenge weshyayen in smart aur maldar laDakiyon wali kampaniyon ke aage pit jayengi ye kampaniyan unse pura ilaqa hi kharidkar use asia kya, duniya ke sabse baDe open air peep sho wale intartenment zone mein badal dengi banaras mein wideshiyon ki bhari aamad ko dhyan mein rakhte hue ye yojna taiyar ki ja rahi hai lekin abhi paiplain mein hi hai parkash hairat se nashe se ratnar, atmawishwas se damakti ankhon wali maihar ki dewi jaisi us murti ko dekhta hi rah gaya
nihlani ke sone ka samay ho chuka tha le out plan ki photo kapi, yojna ka broshar aur kuch taswiren parkash chala to antratma ne plate se ek mutthi kaju uthakar pant ki jeb mein Dal liya jansanpark adhikari ne bahar chhoDte samay sabhi ko nidhi kanstrakshan company ka ek momento, company ke hologram wali ek ghaDi, do hazar ke gift bauchar uphaar mein diye antratma ko ye kahte hue, kaju ka do kilo ek packet diya ki apne doston ki pasand ka hum khas khayal rakhte hain antratma ne bachche ki tarah use god mein utha liya raste mein hawa lagi to wo hichki lete hue budbudane lage, bahut durdin dekha dada, bahut durdin dekha
wo baDbaDa rahe the, sab koi bhagwan se manao ki ye sala muralti ka pul na bane, nahin to hamara pariwar barbad ho jayega basti wala makan to waise hi hath se nikal gaya hai aasha bandhi thi ki company kharid leti to kuch roti pani ka Daul baith jayega hamari to barah sau ki riportri karte kisi tarah kat gai panch panch bachche hain, pul ban gaya to sale kahan jayenge parkash ne unhen ghar chhoDa tab sisak rahe the, wishwanath baba se manao ki muralti ka pul na bane dada
titliyon ke pankhon ki dhaar
badnam basti mein pahle bhukhe bhanware aate the teen mahine tak khichDi khane ke baad ab bhukhi titliyan dam sadhkar phulon ki taraf uDne lagin, unke rahasyamay pankhon ke raste mein jo bhi aaya, kat gaya
sham ke dhundhalake mein jab gaDiyon ka dhuna manDuwaDih ki badnam basti ke upar jamne lagta, saji dhaji titliyan ek ek kar behichak bahar nikaltin sipahiyon ke tanon ka muskanon se jawab dete hue we saDak par kar jatin wahan pahle se khaड़e unke mausa, chacha, dulhabhai ya bhaijan yani dalal unhen ishara karte aur we chupchap ek ek ke pichhe ho letin we unhen pahle se tay grahkon ke pas pahuncha kar laut aate the jinke customer pahle se tay nahin hote the, we atrpt, kamatur preton ki talash mein saDkon aur ghaton par chalne lagtin aurton ko muD muD kar dekhne aur unka pichha karte hue bhatakne walon ko we thanDe, sadhe Dhang se itna uksati ki we ghabrakar bhag jate ya unhen rokkar tay toD karne lagte jo thoDa tez tarrar aur atmawishwasi theen we hotalon aur sinemahalon ke bahar konon mein ghat lagatin
doyam darje ki samjhi jane wali adheD aurten raat gaye basti ke dusre chhor se jhunD mein nikaltin aur ganw ke pichhwaDe kheton se hote hue high we par nikal jatin wahan os se bhige, pale se ainthte pairon ko kaghaz, plastic aur tyre jalakar senkne ke baad we ek ek kar Dhabon par khaDi trakon ki qatar mein sama jatin bhor mein jab we lauttin lariyon mein, chay ki dukanon ki benchon aur makanon ke chabutron par owercoat mein lipte, police wale aram se so rahe hote pahra dene walon ka haft tay kar diya gaya tha jise dalal aur bhaDue ek musht pahuncha aate the
ek dopahar parkash ghat par salma ko dekhkar chakkar khakar girte girte bacha wo nile rang ka skirt aur safed qamiz pahne, chhati par ek moti kitab dabaye, ek panDe ki khali chhatri ke niche baithi chhawi ke pet par leti, nadi ko dekh rahi thi chhawi ka pet thoDa aur ubhar aaya tha aur chehre par lunai aa gai thi salma ki banh par hath rakhe wo jitni shant aur sundar lag rahi thi, utna hi wibhats, hahakar parkash ke bhitar macha hua tha to mera purwabhas sahi tha use manDuwaDih mein us laDki ke balatkar ka pata tha shayad wo wahan ke bare mein mujhse kahin ziyada janti hai, usne socha uska hath camere par gaya ki wo donon ki ek photo utar le lekin phir wo wikshaipt jaisi haalat mein laDkhaData, bharsak tez qadmon se dusre ghat ki or chal paDa
samne jalasmadhi lene wale yuwak ke aage pichhe, ajib o gharib antarrashtriy beDa guzar raha tha aur logon ki tarah salma bhi naw par ghante ghaDiyal bajate, nare lagate logon ko dekhkar hath hila rahi thi
koi do ghante baad salma use phir dikhi is bar wo akeli, chhati par kitab dabaye bhatak rahi thi wo usse bahut kuch puchhna chahta tha, lapak kar pas bhi gaya lekin usne kitab ki or ishara kiya, aaj kal tumhare school mein quran paDhai ja rahi hai kya?
usne quran ko palat diya aur apni chutiya ko ainthte hue hansi tunak kar dhime se kaha, jo mujhe le jayega, wo kitab ko nahin paDhega achchha ab aap jaiye yahan mat khaड़e hoiye, baat karni ho to wahin din mein aiyega wahan ab raat mein koi nahin milta ab parkash ko dikha ki niche ghat ki siDhiyon par, nadi kinare usi jaisi panch sat aur laDkiyan skirt, salwar soot, sasti jeans pahne ghoom rahi theen unki bulati ankhe, rukhe baal, ziyada hi ithlati chaal aur kitaben pakaDne ka Dhang, koi bhi ghaur karta to jaan jata ki we school kalej ki laDkiyan nahin hain jo log unke khilaf itne tam jham se samarohpurwak apna ghussa ugal rahe the, unhin ke beech bhatakti hui we customer pata rahi theen parkash unke dussahas par dang tha shayad unhen sachmuch ki haalat ka pata nahin tha isiliye we saDak par hunkarate trakon ke beech meDhkon ki tarah phudak rahi theen agar logon ko pata chal jata ki we weshyayen hai to bheeD unki tange cheer deti aur jhulakar nadi mein phenk deti salma ne palatkar dekha parkash wahin khaDa, camera phokas kar raha tha usne puchha ‘ap akhbar mein hum logon ko nagar wadhu kyon likhte hain?’
parkash ne camere mein dekhte hue hi kaha, ‘kyonki tum kisi ek ki nahin, sare nagar ki bahu ho, tum yahan kisi khas adami ko to khoj nahin rahi ho, jo mil jaye usi ke sath chali jaogi ’
‘achchha tab mayor sahab ko nagar pramukh kyon, nagar pita kyon nahin likhte aur unse kah do ki aakar hum logon ke sath bap ki tarah rahen ’
parkash ne khilkhilati hui us weshya chhatra ko dekha use achanak lalbatti aur reDlait area ka farq nae Dhang se samajh mein aa gaya mayor purush hai, sanpann hai isliye lalbatti mein ghoom rahe hain tum gharib laDki ho isliye apna pet bharne ke liye maut ke munh mein ghuskar gerahak khoj rahi ho
uski hansi se chiDhkar puchha, ‘tumhen yahan Dar nahin lagta in logon ko pata chal gaya to?’
wo hansti hi ja rahi thi, usne nadi ke us par kshaitij tak phaile balu ka suna wistar dikhate hue kaha, ‘jinhen pata chal gaya hai, we laDakiyon ke sath us par reti mein kahin paDe hue hain aur we kisi se nahin kahne jayenge albatta halke hokar hum logon ko hatane ke liye aur zor se har har mahadew chillayenge achchha ab aap chaliye, nahin to laDkiyan aapko hi customer samajh kar pichhe lag lengi ’
beimani ka santosh
dhandha, shahr mein phail raha hai ye khabar Diaiji ramashankar tripathi ko lag chuki thi unhonne afsaron ki meetingen keen sipahiyon ki man bahan ki daroghaon ko jhaDa, elaiyu ko mustaid kiya, tabadale kiye lekin koi natija nahin nikla jo bhi manDuwaDih ke donon chhoron par pahra dene jata, bhaDuon ka ghussail baDa bhai ho jata jiski har sukh suwidha ka we Dheeth winamrata ke sath khayal rakhte kaptan waghairah rasmi taur par muayna karne aate to sipahi unhen weshyaon ke khali paDe do chaar ghar dikha dete we lautkar report dete ki dhandha band hone ke karan, un gharon ko chhoDkar we kahin aur chali gain hain Diaiji ne shahr ke laujon, hotalon mein chhape Dalwane shuru kara diye, jinmen bahar se aakar dhandha kar rahi kalgarlen pakDi gain lekin manDuwaDih ki koi weshya nahin mili hamesha ki tarah khabre chhapi ki raiket chalane walon ki Dayariyon aur kalgarlon ke bayanon se kai safedaposh logon ke nam, pate aur number mile hain jaldi hi police unse puchhatachh karegi aur unki qali khulegi hamesha ki tarah na puchhatachh hui, na qali khuli aur na hi phaloap hua kalgarlen zamanat par chhutkar kisi aur shahr chali gain aur raiket chalane walon ne bhi nam aur thikane badal liye
parkash ki duty lagai gai ki wo sham ko pahra dete puliswalon ke beech se hokar badnam basti se dhandhe ke liye nikalne wali laDakiyon ki photo le aaye usne pahli bar beimani ki, jab we nikal rahin thi, tab wo antratma ke ghar mein baithkar unke sath chay pi raha tha unke nikal jane ke baad wahan pahunchakar usne ek pura rol kheench Dala, jismen kuhre beech jhilmilate sipahiyon aur guzarte ikka dukka rahgiron ke siwa aur kuch nahin tha use flaish chamkate dekh, do sipahiyon ne khadeDne ki koshish ki to usne kaha ki we nishchint rahen aaj wo ek bhi photo aisa nahin khinga jisse unko koi pareshani ho ek sipahi ne puchha, bahut sadhu ki tarah bol rahe ho, bai ji logon ne kuch sungha diya hai kya?’
sipahi jab ashwast ho gaye to unhonne bataya ki kam umr ki laDakiyon ka dhandha baDhiya chalne se ab nai laDkiyan bhi aa rahi theen unhen manDuwaDih mein nahin, shahr mein kiraye par liye makanon mein rakha ja raha tha thane ka ret baDhkar ab paintis se pachas hazar ho gaya tha parkash ne antratma se kaha ki lagta hai nihlani ka maureliti bridge hi banega aur baDe logon ki chandi rahegi tum to bai ji logon se hi baat kar lo, shayad unmen se koi tumhara makan kharid le antratma ko afsos tha ki police bhi do tukDa ho chuki hai
press lautkar usne photo editor ko samjhaya ki kuhra itna hai ki wahan kuch bhi dekh pana sambhaw nahin hai jo ban sakti theen, we yahi taswire hain wo beimani karke bahut khush tha usne khu ko hatasha se bacha liya tha uske photo khinchne se akhbar ki thoDi wishwasniyata baDhti, circulation baDhta lekin dhandhe par koi farq nahin paDta police wale hi band nahin hone dete wo chahta bhi nahin tha ki dhandha band ho wo ab chahta tha ki chale aur khoob chale
mariyal clerk, thril aur galta patthar
(amar hone ki chah ke bajay zindagi ki gati ke sath chalne ke thril ko bar bar mahsus karne ki ghar se likhi is lambi kahani urf laghu upanyas ki ye samapan qit hai ise hazar panch sau pratiyon wali kisi patrika mein prakashit karane ke bajay net par khas maqsad se jari kiya gaya hai irada hai ki hindi ke pri paid alochkon, samikshkon aur sahitybazon ke bajay ise sidhe pathkon ke pas le jaya jaye aur unki ray jani jaye aap sabse agrah hai ki is kahani par apni ray bedhak Dhang se likhen bina is baat ki parwah kiye ki wo pahle kahin dekhi kisi swanamadhany ki likhawat ke asapas hai ya nahin kya pata bina sahityik wiwadon ki jhalar, alochana shastr ke salme sitaron se rahit, in ya un jee ke dayniy dabawon se mukt sahj prtikriyayen hindi ke nae lekhkon ki rachnaon ke mulyankan ka koi naya darwaza khol den aapke nazariye ko alag se prakashit kiya jayega )anil
bhejne ka pata haiः oopsanil@gmail com
koi teen mahine baad, phir bima company ka wahi mariyal clerk, kala chashma lagaye akhbar ke daftar ki siDhiyon par nazar aaya is bar phir pakki khabar laya tha ki praiwet Ditektiw ejensi ki jaanch report aa gai hai ki pan masala nahin, Diaiji ramashankar tripathi hi apni patni ki atmahatya ke zimmedar hain lagatar marapit, prataDa़na ke tarikhwar byaure wo lowely tripathi ki Dayariyon ki photo pratiyon mein samet laya tha iske alawa wo ye khabar bhi laya tha ki Diaiji tripathi DeDh mahine baad, apne se kafi juniyar ek mahila aipiyes afsar se shadi karne ja rahe hain in khabron ki swatantr paड़tal karai jane lagin
un dinon akhbar parkash ko behad ubau lagne laga har subah kholte hi kale akshar ek dusre mein gaDDmaDD apni jaghon se Dolte hue nazar aate the, jiski wajah se sirdard karne lagta tha aur wo akhbar phenk deta tha iski ek wajah to yahi thi ki jin ghatnaon ko khu usne dekha aur bhoga hota tha, we chhapne ke baad berang aur pranhin ho jati thi kisi jadu se unke bhitar ki asal baat hi bhap ki tarah uD jati thi pahli line paDhte hi wo jaan jata tha ki asliyat kaise shabdon ki lanatraniyon mein lapata hone wali hai routine ki baithkon mein use roz jhaD paDti thi ki wo akhbar tak nahin paDhta isiliye use nahin pata rahta ki shahr mein kya hone wala hai aur prtidwandi akhbar kin mamlon mein score kar rahe hain darasal wo in dinon apni ek bahut purani gupt lalsa ke sakar hone ki kalpana se tharthara raha tha ye lalsa thi nakachDha, ahankar se gandhata patrakar nahin sachmuch ka ek riportar hone ki aisa riportar jiski qalam saty ke sath ekmek hokar dharti mein kanpan paida kar sake
uske pas itne adhik kaghazi sabut, anubhaw, photograph aur byan ho gaye the ki ab aur chupchap sab kuch dekhte rah pana mushkil ho gaya tha ab wo jab chahe jab weshyaon ko hatane walon ke pakhanD ka bhanDa phoD sakta tha yahi sansani uske bhitar lahron ki tarah chal rahi thi sidhe sapat shabdon mein, usne raton ko jagkar compose kar Dala ki kaise paisa, daru, deh nahin milne par weshyaon ko basane wale local neta unke khilaf hue kaise nidhi kanstrakshan company ne unke ghusse ko apne paksh mein istemal kar liya kaise Diaiji ne apni chhawi banane ke liye dhandha band karaya aur baad mein we commissioner ke sath kanstrakshan company ke agnet ho gaye kanstrakshan company kaise isse baDa aur adhunik weshyalay kholne ja rahi hai weshyaon ko hatane se kaise ye dhandha aur jaghon par phailega kaise Diaiji ke pita aur commissioner ne dharmik bhaunaun ko bhaDkaya aur kaise har har mahadew ke udghghosh ke sath wirodh aur weshyawritti donon ek sath ghaton par chal rahe hain uska anuman tha ki ye series chhapte chhapte bima company ke jasuson ki jaanch rapat ka bhi satyapan ho jayega aur uske chhapne ke baad sare pakhanD ke chithDe uD jayenge iske baad shayad sachmuch weshyaon ke punarwas par baat shuru ho
parkash ne do dinon tak apne Dhang se sabhi chhote baDe sampadkon ko tatola aur ashwast ho gaya ki, uski riporting ka waqt aa gaya hai tisre din usne report, taswiren, registry ke kaghaz, le out plan aur tamam sabut le jakar asthaniya sanpadak ki mez par rakh diye pure din we unhen paDhte, janchate aur puchhatachh karte rahe sham ko aakar unhonne uski peeth thapthapai, ‘tum to yar, purane ranDibaz nikale! baDhiya report hain, hum chhapenge ’
ye sachmuch dil se nikli tarif thi
agle din akhbar ki stiyring committe ki baithak hui kyonki is masle par purana stand badalne wala tha sanpadak ka faisla ho chuka tha, baqi wibhagon se ab aupacharik sahamti li jane ki der thi DeDh ghante ki bahs ke baad akhbar ke mainnejar ne sanpadak se puchha, ‘manDuwaDih mein kul kitni weshyayen hain?
‘qarib saDhe teen sau’
‘inmen se kitni akhbar paDhti hain?’
iska ankDa kisi ke pas nahin tha usne faisla sunane ke andaz mein kaha, aaj ki tarikh mein sara shahr hamare akhbar ke sath hai kul saDhe teen sau ranDiyan jinmen se kul milakar shayad saDhe teen hongi jo akhbar paDhti hon, aise mein ye sab chhapne ka kya tuk hai agar koi bahut baDa aur naya reader group juD raha hota, to ye jokhim liya bhi ja sakta tha
sanpadak jo dhyan se uska ganait sun rahe the, hanse unhonne kaha, sawal weshyaon ki sankhya ka nahin hai mainnejar sahab! we agar teen bhi hoti to kafi thi unke bare mein jo bhi achchha bura chhapta hai use unka wirodh karne wale bhi paDhte hain balki unki ziyada dilchaspi rahti hai
mainnejar ne paintra badla, ab aap hi bataiye ki apne stand se itni jaldi kaise palat jaya jaye kal tak aap hi chhap rahe the ki weshyaon ki wajah se logon ki bahu betiyon ka ghar mein rahna tak mushkil ho gaya hai aur Diaiji dhandha band karakar bahut dharm ka kaam kar raha hai ab jab mudda aag pakaD chuka hai to us par pani Dal rahe hain aap bataiye akhbar ki kreDibiliti ka kya hoga sanpadak ne samjhane ki koshish ki ki kreDibiliti ek din mein banne bigaDne wali cheez nahin hai log thoDi der ke liye bhawna ke ubaal mein bhale aa jayen lekin anttah bharosa usi ka karte hain jo unke bhoge sach ko chhapta hai pahle hi din koi kaise jaan sakta tha ki manDuwaDih ki asli andaruni haalat kya hai ab hamein jitna pata hai, utna chhapenge ho sakta hai kal kuch aur naya pata chale use bhi chhapenge agar hamne nahin chhapa to hamari kreDibiliti ka kabaDa to tab hoga jab log dekhenge ki kanstrakshan company manDuwaDih mein imaraten bana rahi hai
gunabhag aur antat zindagi
mamla ulajh gaya kuch tay nahin ho paya mainnejar ne Dairektron se baat ki Dairektron ne pardhan sanpadak ko talab kiya pardhan sanpadak ne phir baithak bulai pardhan ne asthaniya sanpadak ko wo samjhaya jo we jante bujhte hue nahin samajhna chahte the unhonne unhen bataya ki is ilaqe ke jitne bilDar, neta, wyapari afsar hain nidhi kanstrakshan company ke sath hain aur chahte hain ki jaldi se jaldi wo basti wahan se hate taki kaam shuru ho unhonne janta ko bhi apne paksh mein saDak par utar diya hai akhbar ek sath itne logon ka wirodh nahin jhel sakta khu hamare akhbar ke is ilaqe ke phrenchaiji yani jinki building mein hum kirayedar hain, jinki machine par hamara akhbar chhapta hai, is kanstrakshan company ke partnar hain akhbar ke kai sheyar holDron ne bhi is company mein paisa laga rakha hai we sabhi apni manzil ke ekdam qarib hain, aur kahan hain aap! khu director nahin chahte ki unki rah mein koi aDanga Dala jaye naukari pyari hai to hamein, aapko donon ko chup rahna chahiye, phir kabhi dekha jayega
asthaniya sanpadak ko nikalne ki puri taiyari ho chuki thi, isliye unhen sabkuchh bahut jaldi samajh mein aa gaya stiyring committe ki baithak mein pardhan sanpadak ne bhashan diya, sabhi jante hain ki sarson ke patton par aur bengan mein allah apna hastakshar nahin karte, do sir wale wikrt bachche dewta nahin hote, khire mein se bhagwan nahin nikalte, ganesh ji doodh nahin pite ye sab safed jhooth hai lekin hum chhapte hain kyonki janta aisa manti hai aur unhen pujti hai hum saDhe teen sau weshyaon ke liye bees lakh janta se bair nahin mol le sakte bazar mein hum dhandha karne baithe hain hum weshyaon ka punarwas karane wali ejensi nahin hai loktantr mein janta sarwopari hai isliye uski bhaunaun ka aadar karna hi hoga
mainnejar muskraya
pardhan sanpadak ne asthaniya sanpadak ko muskra kar dekha, ‘ham akhbar kiske liye nikalte hain?
‘janta ke liye’ bejan hansi hanste hue unhonne kaha
asthaniya sanpadak ne parkash se kaha, is samay upar ke logon mein narazgi bahut hai isliye thoDa mahaul thanDa hone do tab dekha jayega wo janta tha ki dharti hilane ka uska arman sada ke liye dharti mein hi dafan kiya ja chuka hai
usi samay ek wichitr baat hui jalasmadhi ka irada liye ganga mein phirne wala yuwak ek din ganje ke nashe mein naw se laDakhDakar nadi mein gir gaya gale mein bandhi patthar ki patiya ke pichhe wo kati patang ki tarah lahrata hua nadi ki pendi mein baitha ja raha tha baDi koshish karke jal police ke gotakhoron ne use nikala purana patthar katkar uski jagah chhota patthar bandha gaya usi din se apne aap uske gale mein bandhe patthar ka akar ghatne laga jaise chandarma ghatta hai usi tarah pahle sil, phir chauki, phir machis ki Dibiya ke akar ka hota gaya dhire dhire ghatte hue wo ek din tawiz mein badalkar tham gaya
us kramshah ghatte hue rahasyamay patthar ki taswiren, parkash ke pas maujud hain
abhi weshyayen manDuwaDih se hati nahin hai ab wo yuwak naw mein nahin rahta wo gahe begahe apne gale ka tawiz dikhakar apna sankalp dohrata rahta hai ki wo ek din kashi ko weshyawritti ke kalank se mukti dilakar manega log use parchar ka bhukha, nautankibaz kahte hain aur us par hanste hain parkash ko lagta hai ki waisa hi ek tawiz uske gale mein bhi hai, jo hamesha dikhai deta hai use wo tawiz aksar apni qamiz ke button mein uljha hua dikh jata hai use bhi log dhandhebaj, dalal aur ek pauwa daru par bikne wala patrakar kahte hain us par aur uske akhbar par hanste hain
parkash sochta hai ki ab chhawi se jaldi se shadi kar le mana ki sach likh nahin sakta lekin use apni zindagi mein swikar to kar sakta hai
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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