बिना जड़ का पेड़
bina jaD ka peD
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
राजा के दरबार में एक व्यापारी संदूक़ के साथ पहुँचा। उसने गर्व से कहा, ‘महाराज, मैं व्यापारी हूँ और बिना बीज एवं पानी के पेड़ उगाता हूँ। आपके लिए मैं एक अद्भुत उपहार लाया हूँ, लेकिन आपके दरबार में एक-से-एक ज्ञानी ध्यानी हैं, इसलिए पहले मुझे कोई यह बताए कि इस संदूक़ में क्या है? अगर बता देगा तो आपके यहाँ चाकरी करने को तैयार हूँ।’
सभासद पंडितों, पुरोहितों और ज्योतिषियों की ओर देखने लगे, लेकिन उन लोगों ने सिर झुका लिए।
सभा में गोनू झा भी उपस्थित थे। उन्हें उसकी चुनौती स्वीकार करना आवश्यक लगा, अन्यथा दरबार की जन-हँसाई होती। गोनू झा ने विश्वासपूर्वक कहा, ‘मैं बता सकता हूँ कि संदूक़ में क्या है, लेकिन इसके लिए मुझे रातभर का समय चाहिए और व्यापारी को संदूक़ के साथ मेरे यहाँ ठहरना होगा। संदूक़ बदला न जाए, इसकी निगरानी के लिए हम रातभर जगे रहेंगे और व्यापारी चाहे तो पहरेदार भी रखवा सकते हैं।’
सभी मान गए और व्यापारी गोनू झा के यहाँ चला गया।
रातभर दोनों संदूक़ की रखवाली करते रहे। रात काटनी थी, इसलिए क़िस्सा-कहानी भी चलती रही। बातचीत के क्रम में व्यापारी ने कहा, “मैं बिना बीज पानी के पेड़ उगा सकता हूँ।” गोनू झा ने कहा, “भाई, कुछ दिन पूर्व मुझे एक व्यापारी मिला था, उसने भी यही कहा था कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगाता हूँ। पेड़ों में भाँति-भाँति के फूल खिलते हैं, वह भी रात में क्या आप भी रात में पेड़ उगाकर भाँति-भाँति के फूल खिला सकते हैं?’
उसने अहंकार से कहा, ‘क्यों नहीं! मेरे पेड़ रात में ही अच्छे लगते हैं और उनके रंग-बिरंगे फूल देखते ही बनते हैं।’ यह सुनते ही गोनू झा की आँखों में चमक आ गई और वे निश्चित हो गए।
दूसरे दिन दोनों दरबार में उपस्थित हुए। गोनू झा ने जेब से कुछ आतिशबाज़ी निकालकर छोड़ी।
सभासद झुँझला गए। महाराज की भी आँखें लाल-पीली हो गई और कहा, गोनू झा, यह क्या बेवक़्त की शहनाई बजा दी! सभा का सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए?”
गोनू झा ने वातावरण को सहज करते हुए कहा, ‘महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमा चाहता है, लेकिन यह मेरी मजबूरी थी। इसी में व्यापारी भाई के रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छुपा है। इसमें ही बिना जड़ के भाँति-भाँति के रंगों में फूल खिलते हैं।’
व्यापारी अवाक रह गया। उसने सहमते हुए कहा, ‘महाराज, इन्होंने मेरे गूढ़ प्रश्न का उत्तर दे दिया।’ फिर उसने विस्मयपूर्वक गोनू झा से पूछा, 'आपने कैसे जाना कि इसमें आतिशबाज़ी ही है?'
गोनू झा ने सहजता से कहा, व्यापारी, जब आपने यह कहा कि बिना बीज पानी के पेड़ उगते हैं और उनमें भाँति-भाँति के फूल खिलते हैं, तब तक तो मुझे संदेह रहा, परंतु मेरे पूछने पर यह कहा कि रात ही में आपकी यह फ़सल अच्छी लगती है, तब ज़रा भी संशय नहीं रहा कि इसमें आतिशबाज़ी छोड़ कुछ अन्य सामान नहीं होगा।”
व्यापारी मायूस हो गया। राजा ने कहा, 'व्यापारी आपको दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। आप यहाँ रहने के लिए स्वतंत्र हैं, पर अपना कमाल रात में दिखाकर लोगों का मनोरंजन कीजिएगा। अगर प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा तो पुरस्कार भी पाइएगा, पर अभी पुरस्कार के हक़दार गोनू झा ही है।’
- पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 101)
- रचनाकार : वीरेंद्र झा
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.