'अपन का क्या है/अपन उड़ जाएँगे अर्चना/धरती को धता बताकर/अपन तो राह लेंगे/पीछे छूट जाएगी/घृणा से भरी और संवेदना से ख़ाली/इस संसार की कहानी'—एयर इंडिया के सभागार में पिन ड्राप साइलेन्स के बीच राहुल बजाज की कविता की पंक्तियाँ एक ऐंद्रजालिक सम्मोहन उपस्थित किए दे रही थीं। अब किसी सभागार में राहुल बजाज की कविता का पाठ शहर के लिए एक दुर्लभ घटना जैसा होता था। प्रबुद्ध जन दूर-दूर के उपनगरों से लोकल, ऑटो, बस टैक्सी या अपनी निजी कार से इस क्षण का गवाह बनने के लिए सहर्ष उपस्थित होते थे। राहुल शहर का मान था। साहित्य के जितने भी भारतीय अवार्ड थे, वे सब के सब राहुल के घर में एक वर्गीले ठाठ के साथ शोभायमान थे। दुनिया भर की प्रसिद्ध किताबों से उसकी स्टडी अँटी पड़ी थी। अख़बार, पत्रिकाओं और टीवी चैनल वाले जब-तब उसका इंटरव्यू लेने के लिए उसके घर की सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते रहते थे। उसके मोबाइल फ़ोन में प्रदेश के सी.एम., होम मिनिस्टर, गवर्नर, कल्चरल सेक्रेटरी, पुलिस कमिश्नर, पेज थ्री की सेलिब्रिटिज और बड़े पत्रकारों के पर्सनल नंबर सेव थे।
वह यूनिवर्सिटियों में पढ़ाया जा रहा था। असम, दार्जिलिंग, शिमला, नैनीताल, देहरादून, इलाहाबाद, लखनऊ,भोपाल, चंडीगढ़, जोधपुर, जयपुर, पटना और नागपुर में बुलवाया जा रहा था। मुंबई जैसी मायावी नगर में वह टू बेडरूम हॉल के एक सुविधा और सुरुचिसंपन्न फ़्लैट में जीवन बसर कर रहा था। वह मारुति ज़ेन में चलता था। रेमंड तथा ब्लैक बेरी की पैंटे, पार्क एवेन्यू और वेनह्यूजन की शर्ट और रेड टेप के जूते पहनता था। विगत में घटा जो कुछ भी बुरा, बदरंग और कसैला था, उन सबको झाड़-पोंछकर नष्ट कर चुका था। लेकिन चीज़ें इस तरह नष्ट होती हैं क्या! 'अतीत कभी दौड़ता है, हमसे आगे/भविष्य की तरह/कभी पीछे भूत की तरह लग जाता है/हम उल्टे लटके हैं आग के अलाव पर/ आग ही आग है नसों के बिलकुल क़रीब/और उनमें बारूद भरा है।' यह उसके बचपन का एक बहुत ख़ास दोस्त बंधु था जो कॉलेज पहुँचने तक कविताएँ लिखने लगा था। और नक्सली गतिविधियों के मुहाने पर खड़ा रहता था। वह बारूद की तरह फटता इससे पहले ही देहरादून की वादियों में कुछ अज्ञात लोगों द्वारा निर्ममतापूर्वक मार दिया गया।
राहुल डर गया। इसलिए नहीं कि उसने पहली बार मौत को इतने क़रीब से देखा था। इसलिए कि चौबीस बरस का बंधु बीस साल के राहुल के जीवन की पाठशाला बना हुआ था। यह पाठशाला उजड़ गई थी। उसने गर्दन उठाकर देखा, शहर के तमाम रास्ते निर्जन और डरावने लग रहे थे। एक ख़ूबसूरत शहर में कुछ अभिशप्त प्रेतों ने डेरा डाल दिया था। वह एकदम अकेला था और निहत्था भी। कुछ कच्ची अधपकी कविताएँ, थोड़े-बहुत विद्रोही क़िस्म के विचार, कुछ मौलिक और पवित्र तरह के सपने, एक इंटरमीडिएट पास का सर्टिफिकेट, अहंकारी, तानाशाह, सर्वज्ञ और गीता इलैक्ट्रिकल्स के मालिक पिता के एकाधिकारवादी साये के नीचे बिता रहा जीवन। यह सब कुछ इतना थोड़ा और आतताई क़िस्म का था कि राहुल डगमगा गया। उस रात वह देर तक पीता रहा और आधी रात को घर लौटा। पीता वह पहले भी था लेकिन तब वह बंधु के साथ उसके घर चला जाता था।
राहुल को याद है, एकदम साफ़-साफ़। पिता ने उसे पर्दे की रॉड से मारा था। वह पिटते-पिटते आँगन में आ गया था और हैंडपंप से टकराकर गिर पड़ा था। पंप और हत्थे को जोड़नेवाली मोटी-लंबी कील उसके पेट को चीरती गुज़र गई थी। पेट पर दाईं ओर बना छह इंच का यह काला निशान रोज़ सुबह नहाते समय उसे पिता की याद दिलाता है। सिद्धार्थ अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़कर एक रात से ग़ायब हुआ था और गौतम बुद्ध कहलाया था। राहुल अपने पिता, अपनी माँ और कमरे की खिड़की से झांकते अपने तीन भाई बहनों की भयाक्रांत आँखों को ताकते हुए, ख़ून से लथपथ उसी हैंडपंप पर चढ़कर आँगन की छत के उस पार कूद गया था। उस पार एक आग की नदी थी और तैर के जाना था। पीछे शायद माँ पछाड़ खाकर गिरी थी।
मेरे पास गाड़ी है, बँगला है, नौकर हैं। तुम्हारे पास क्या है? अमिताभ बच्चन ने दर्प में ऐंठते हुए पूछा है। शशि कपूर शाँत हैं। ममत्व की गर्माहट में सिंकता हुआ। उसने एक गहरे अभिमान में भरकर कहा—मेरे पास माँ है। अमिताभ का दर्प दरक रहा है।
राहुल को समझ नहीं आता। उसके पास माँ क्यों नहीं है? राहुल को यह भी समझ नहीं आता कि क्यों दुनिया का कोई बेटा घमंड में भरकर यह नहीं कहता कि मेरे पास बाप है। बाप और बेटे अकसर द्वंद्व की एक अदृश्य डोर पर क्यों खड़े रहते हैं?
अब जबकि उँगलियों से फ़िसल रहा है जीवन/और शरीर शिथिल पड़ रहा है/ आओ अपन प्रेम करें वैशाली।' एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस रूम में राहुल बजाज की कविता गूँज रही है। कविता ख़त्म होते ही वह ऑटोग्राफ़ माँगती नवयौवनाओं से घिर गया है।
वह कुमाऊँ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का सभागार था। उसके एकल काव्यपाठ के बाद विभागाध्यक्ष ने अपनी सबसे मेधावी छात्रा को नैतीताल घुमाने के लिए उसके साथ कर दिया था। इस छात्रा के साथ राहुल का छोटा-मोटा भावात्मक और बौद्धिक पत्र-व्यवहार पहले से था। वह पत्रिकाओं में राहुल की कविताएँ पढ़कर उसे ख़त लिखा करती थी। बीस-साल पहले माल रोड की उस ठंडी सड़क पर केतकी बिष्ट नाम की उस एम.ए. हिंदी की छात्रा ने सहसा राहुल का हाथ पकड़कर पूछा था—मुझसे शादी करोगे?”
राहुल अवाक्। हलक़ भीतर तक सूखी हुई। अक्टूबर की उस पहाड़ी ठंड में माथे पर चली आई पसीने की चंद बूँदे। आँखों में अचरज का समुंदर। एक युवा, प्रतिभाशाली, तेज़-तर्रार कवि के रूप में राहुल को तब तक मान्यता मिल चुकी थी। वह दिल्ली के एक साप्ताहिक अख़बार में नौकरी कर रहा था। लेकिन शादी के लिए इतना काफ़ी था क्या? फिर वह लड़की के बारे में ज़ियादा कुछ जानता नहीं था। सिवा इसके लिए वह कुछ-कुछ रिबेलियन क़िस्म के विचारों से खदबदाती रहती थी, कि जीवन की चुनौतियाँ उसे जीने की लालसा से भरती थीं। उसकी आँखें ग़ज़ब के आत्मविश्वास से दमक रही थीं।
आत्मविश्वास की इस डगर पर चलता हुआ क्या मैं अपने स्वप्नों को पैरों पर खड़ा कर सकूँगा। राहुल ने सोचा और केतकी की आँखों में झाँका। 'हाँ!' केतकी ने कहा और मुस्कुराने लगी। 'हाँ!' राहुल ने कहा और केतकी का माथा चूम लिया। आसपास चलती भीड़ आश्चर्य से ठहरने लगी। बीस बरस पहले यह अचरज की ही बात थी। ख़ासकर नैनीताल जैसे छोटे शहर में। विष्ट साहब की बेटी...हवाओं में हरकारे दौड़ पड़े।
लेकिन अगली सुबह नैनिताल कोर्ट में बिष्ट दंपती तथा विभागाध्यक्ष की गवाही में राहुल और केतकी पति-पत्नी बन गए। उसी शाम राहुल और केतकी दिल्ली लौट आए—सरोजिनी नगर के एक छोटे से किराए के कमरे में अपना जीवन शुरू करने। एस.एन.डी.टी. के सभागार में ऑटोग्राफ़ सेशन से निपटने के बाद एक कुर्सी पर बैठे राहुल को अपना विगत अपने से आगे दौड़ता नज़र आता है।
राहुल अँधेरी स्टेशन की सीढ़ियाँ उतर रहा था। विकास सीढ़ियाँ चढ़ रहा था। उसकी उँगिलयों में सिगरेट दबी थी। राहुल ने विकास की कलाई थाम ली। सिगरेट ज़मीन पर गिर पड़ी। राहुल विकास को घसीटता हुआ स्टेशन के बाहर ले आया। एक सुरक्षित से लगते कोने पर पहुँचकर उसने विकास की कलाई छोड़ दी और हाँफते हुए बोला, मैंने तुमसे कहा था, जीवन का पहला पैग और पहली सिगरेट तुम मेरे साथ पीना। कहा था न? ज्जी! विकास की घिघ्यी बँधी हुई थी। तो फिर? राहुल ने पूछा। विकास ने गर्दन झुका ली और धीरे से कहा, सॉरी पापा! अब ऐसा न होगा। राहुल मुस्कुराया। बोला, दोस्त जैसा बाप मिला है। क़द्र करना सीखो। फिर दोनों अपने-अपने रास्तों पर चले गए।
विकास मुंबई के जे जे कॉलेज ऑफ आर्ट्स में प्रथम वर्ष का छात्र था। केतकी उसे डॉक्टर बनाना चाहती थी लेकिन विकास के कलात्मक रुझान को देख राहुल ने उसे हाई स्कूल साइंस के बाद इंटर आर्ट्स से करने और उसके बाद जे जे में एडमिशन लेने की स्वीकृति दे दी थी। वह कमर्शियल आर्टिस्ट बनना चाहता था। राहुल उन दिनों एक दैनिक अख़बार का न्यूज़ एडीटर था। आधी रात को आना और सुबह देर तक सोते रहना उसकी दिनचर्या थी।
इतवार की एक सुबह उसने केतकी से पूछा, “विकास नहीं दिख रहा।'
बेटे की सुध आई? केतकी व्यंग्य की डोर थामे उस पार खड़ी थी।
लेकिन घर तो शुरू से ही तुम्हारा ही रहा है। राहुल ने सहजता से जवाब दिया। यह घर नहीं है। केतकी तिक्त थी। उसे बहुत ज़माने के बाद संवादों की दुनिया में उपस्थित होने का मौक़ा मिला था—गेस्ट हाउस है। और मैं हाउस कीपर हूँ। सिर्फ़ हाउस कीपर।
राहुल उलझने के मूड में नहीं था। सी ई ओ ने उसे पुणे एडीशन की रूपरेखा बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। दोपहर के भोज के बाद अपनी स्टडी में बंद होकर वह होमवर्क कर लेना चाहता था। उसने विकास का मोबाइल लगाया।
पापा...। उधर विकास था।
बेटे कहाँ हो तुम? राहुल थोड़ा तुर्श था।
पापा, बान्द्रा के रासबेरी में मेरा शो है अगले मंडे। इसलिए एक हफ़्ते से अपने दोस्त कपिल के घर पर हूँ। रिहर्सल चल रही है।
रिहर्सल? कैसा शो?
“पापा, आपको अपने सिवा कुछ याद भी रहता है? पिछले महीने मैंने आपको बताया नहीं था कि मैंने एक रॉक बैण्ड ज्वाइन किया है।
रिहर्सल घर पर भी हो सकती है। राहुल उत्तेजित होने लगा था, टिपिकल पिताओं की तरह।
“पापा, आप यह भी भूल गए? विकास की आवाज़ में व्यंग्य तैरने लगा था—“अभी कुछ दिन पहले जब मैं रात को प्रैटिक्स कर रहा था तब आपने घर आते ही मुझे कितनी बुरी तरह डाँट दिया था कि यह घर है, नाचने-गाने का अड्डा नहीं।
शटअप! राहुल ने मोबाइल ऑफ़ कर दिया। उसने देखा, केतकी उसे व्यंग्य से ताक रही थी। उसने सिर झुका लिया। वह धीमे क़दमों से अपनी स्टडी में जा रहा था। पीछे-पीछे केतकी भी आ रही थी।
क्या है? राहुल ने पूछा और पाया कि उसकी आवाज़ में एक अजीब क़िस्म की टूटन जैसी है। इस टूटन में किसी शोध में असफल हो जाने का दर्द समाया हुआ था।
तुम हार गए राहुल! केतकी की आँख में बरसों पुराना आत्मविश्वास था।
तुम भी ऐसा ही सोचती हो केतकी? राहुल ने अपनी क़मीज़ और बनियान उलट दी—क्या तुम चाहती थीं कि पेट पर पड़े ऐसे ही किसी निशान को देखकर विकास को अपने बाप की याद आया करती?
“नहीं
तो फिर? राहुल की आवाज़ में दर्द था—मैंने विकास को एक लोकतांत्रिक माहौल देने का प्रयास किया था। मैं चाहता था कि वह मुझे अपना बाप नहीं, दोस्त समझे।
“बाप दोस्त नहीं हो सकता राहुल! वह दोस्तों की तरह बिहेव भले ही कर ले, लेकिन होता वह बाप ही है। और उसे बाप होना भी चाहिए। केतकी ने झटके से अपना वाक्य पूरा किया और स्टडी से बाहर चली गई।
राहुल आराम कुर्सी पर ढह गया। अगली सुबह जब वह बहुत देर तक नहीं उठा तो केतकी ने अपने फ़ैमिली डॉक्टर को तलब किया। डॉक्टर ने बताया—इनके जीवन में हाई ब्लड प्रेशर ने सेंध लगा दी है।
राहुल की आँखें आश्चर्य से भारी हो गईं। वह सिगरेट नहीं पीता था। शराब कभी-कभी छूता था। तला हुआ और तैलीय भोजन नहीं खाता था। घर से बाहर का पानी तक नहीं पीता था।
तो फिर? उसने केतकी से पूछा।
लेकिन तब तक डॉक्टर की बताई दवाइयाँ लेने के लिए केतकी बाज़ार जा चुकी थी।
ग्यारह सितंबर दो हज़ार एक को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए विनाशक हमले के ठीक एक हफ़्ते बाद राहुल बजाज को रात ग्यारह बजे उसके बेटे विकास ने मोबाइल पर याद किया। राहुल उन दिनों एक टीवी चैनल में इनपुट एडिटर था और पत्नी के साथ दिल्ली में रहता था। चैनल की नौकरी में विकास तो विकास, केतकी तक राहुल को कभी-कभी किसी भूली हुई याद की तरह उभरती नज़र आती थी। वह विकास को अपने मुंबई वाले बसे-बसाए घर में अकेला छोड़ आया था। विकास तब तक एक मल्टीनेशनल कंपनी के मुंबई ऑफ़िस में विजुलाइज़र के तौर पर नौकरी करने लगा था। आमतौर पर विकास का मोबाइल 'नॉट रीचेबल' ही होता था। पंद्रह-बीस दिनों में कभी उसे माँ की याद आती तो वह दिल्ली के लैंडलाइन पर फ़ोन कर माँ से बतियाता था। केतकी के ज़रिए ही राहुल को पता चलता कि विकास मज़े में है। उसकी नौकरी ठीक है और वह एक उभरता हुआ रॉक गायक भी बन गया है। वह माँ को बताता था कि मकान का मेंटिनेंस समय पर किया जा रहा है, कि लैंडलाइन फ़ोन का बिल और बिजली का बिल भी समय पर दिया जा रहा है। सोसाइटी के लोग उन्हें याद करते हैं और उसने अपने एक दोस्त से क़िस्तों पर एक सेकेंड हैंड मोटर साइकिल ख़रीद ली है। वह बताता कि मुंबई की लोकल में भीड़ अब जानलेवा हो गई है। अब तो किसी भी समय चढ़ना-उतरना मुश्किल हो गया है। एक खाते-पीते मध्यवर्गीय परिवार के लक्षण यहाँ भी थे। वहाँ भी। राहुल की ज़िंदगी बीत रही थी। केतकी की भी। व्यस्त रहने के लिए केतकी दिल्ली में कुछ ट्यूशन करने लगी थी।
इसीलिए विकास के फ़ोन ने राहुल को विचलित कर दिया।
बापू...'' विकास लाड़, शराब और स्वतंत्रता के नशे में था—बापू, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की बिल्डिंग में हमारा भी हेड ऑफ़िस था। सब ख़ल्लास हो गया। ऑफ़िस भी, मालिक भी। मालकिन ने ई-मेल भेजकर मुंबई ऑफ़िस को बंद कर दिया है।”
“अब? राहुल ने संयत रहने की कोशिश की—अब क्या करेगा?
करेगा क्या स्ट्रगल करेगा। अभी तो एक महीने नोटिस की पगार है अपने पास। उसके बाद देखा जाएगा। विकास आश्वस्त लग रहा था।
“ऐसा कर, तू घर में ताला लगाकर दिल्ली आ जा। मैं तुझे अपने चैनल में फिट करवा दूँगा। राहुल की हमेशा व्यस्त और व्यावसायिक आवाज़ में बहुत दिनों के बाद एक चिंतातुर पिता लौटा।
“क्या पापा...'' विकास शायद चिढ़ गया था—आप भी कभी-कभी कैसी बातें करते हैं। मेरा कैरियर, मेरे दोस्त, मेरा शौक़, मेरा पैशन सब कुछ यहाँ है...यह सब छोड़कर मैं वहाँ आ जाऊँ, उस गाँव में जहाँ लोग रात को आठ बजे सो जाते हैं। जहाँ बिजली कभी-कभी आती है। ओह शिट...आई हेट दैट सिटी।” विकास बहकने लगा था—मम्मी मुझे बताती रहती हैं वहाँ की मुसीबतों के बारे में। अपुन इधरीच रहेगा। आई लव मुंबई, यू नो। अगले महिने में अपना बैण्ड लेकर पूना जा रहा हूँ शो करने।
जैसी तेरी मर्ज़ी! राहुल ने समर्पण कर दिया!—कोई प्राब्लम आए तो बता ज़रूर देना।
“शाब्बाश! ये हुई न मर्दोवाली बात। विकास ने ठहाका लगाया फिर बोला, टेक केयर...बाय।
राहुल का जी उचट गया। उसने ख़ुद को सांत्वना देने की कोशिश की। आख़िर सबकुछ तो है मुंबई वाले घर में। टी.वी., फ़्रिज़, कम्प्यूटर, वीसीडी प्लेयर, वाशिंग मशीन, गैस, डबल बेड, वार्डरोब, सोफ़ा, बिस्तर। इतना सक्षम तो है ही अपना बेटा कि दो वक़्त की रोटी जुटा ले। उसने निश्चिंत होने की कोशिश की लेकिन कुछ था जो उसके सुकून में सेंध लगा रहा था। थोड़ी देर बाद वह घर लौट आया। लौटते वक़्त उसने मोबाइल पर अपनी सोसाइटी के सेक्रेटरी से रिक्वेस्ट किया कि कभी मेंटिनेंस मिलने में देर हो जाए तो वह मिसकॉल दे। पैसा सोसाइटी के अकाउंट में ट्रांसफ़र हो जाएगा। फिर उसने सेक्रेटरी से आग्रह किया कि विकास का ध्यान रखना। सेक्रेटरी सिख था। ख़ुशमिज़ाज था। बोला, तुसी फ़िक्र न करो। असि हैं न। वैसे त्वाडा मुंडा बड़ा मस्त है। कदी-कदी दिखता है बाइक पर तो बाय अंकल बोलता है।”
राहुल को घर आया देख केतकी विस्मित रह गई। अभी तो सिर्फ़ पौने बारह बजे थे। राहुल कभी भी दो बजे से पहले नहीं आता था।
विकास का फ़ोन था। राहुल ने बताया—उसकी नौकरी चली गई है लेकिन यह कोई चिंता की बात नहीं है।
तो? केतकी कुछ समझी नहीं।
“उसने शराब पी रखी थी। राहुल ने सिर झुका लिया। उसकी आवाज़ दूसरी शताब्दी के उस पार से आती हुई लग रही थी। राख में सनी, मटमैली और अशक्त केतकी के भीतर बुझते अंगारों में से कोई एक अंगार सुलग उठा। राहुल की आवाज़ ने उसे हवा दी शायद।
जब हम दिल्ली आ रहे थे, मैंने तभी कहा था कि विकास की मुंबई में अकेला मत छोड़ो।
केतकी, मूर्खें जैसी बात मत करो। बच्चे जवान होकर लंदन, अमेरिका, जर्मनी और जापान तक जाते हैं। नौकरियाँ भी आती-जाती रहती हैं। फिर हम अभी जीवित हैं!'' राहुल सोफ़े पर बैठ गया और जूते उतारने लगा—उसका नशे में होना भी कोई धमाका नहीं है। आफ़्टर ऑल, बाईस साल का यंग चैप है।”
तो फिर? केतकी पूछ रही थी—“तुम परेशान किस बात को लेकर हो?”
“परेशान कहाँ हूँ? राहुल झूठ बोल गया—एक प्रतिकूल स्थिति है जो फिलहाल विकास को फ़ेस करनी है। टैलेंटेड लड़का है। दूसरी नौकरी मिल जाएगी। इस उम्र में स्ट्रगल नहीं करेगा तो कब करेगा? उसे अपने ख़ुद के अनुभवों और यथार्थ के साथ बड़ा होने दो।
तुम जानो। केतकी ने गहरी निःश्वास ली—“कहीं तुम्हारे विश्वास तुम्हें छल न लें।
डोंट वरी। मैं हूँ न! राहुल मुस्कुराया। फिर वे सोने के लिए बेडरूम में चले गए। रात का खाना राहुल दफ़्तर में ही खाया करता था। उस रात राहुल ने सिर्फ़ दो काम किए। दाएँ से बाएँ करवट ली और बाएँ से दाएँ।
सुबह हमेशा की तरह व्यस्तता-भरी थी। अख़बार, फ़ोन, ख़बरें, न्यूज़ चैनल, इंटरव्यू, प्रशासनिक समस्याएँ, कंट्रोवर्सी, मार्केटिंग स्ट्रेटजी, ब्यूरो कोऑर्डिनेशन, आदेश, निर्देश, टार्गेट...। एक निरंतर हाहाकार था जो चौबीस घंटे अनवरत उपस्थित था। इस हाहाकार में समय हवा की तरह उड़ता था और संवदेनाएँ मोम की तरह पिघलती थीं। इन्हीं व्यस्तताओं में दिल्ली का दिसम्बर आया। ठंड, कोहरे और बारिश में ठिठुरता। विकास से कोई सम्पर्क नहीं हो पा रहा था। घर का फ़ोन बजता रहता। घर में कोई स्पेशल डिश बनती तो उसका दिल हूम-हूम करता। पता नहीं विकास ने क्या खाया होगा! खाना हलक़ से नीचे उतरने से इंकार कर देता। केतकी कुमार गंधर्व और भीमसेन जोशी की शरण लेती। विकास का मोबाइल ट्राई करती। सोसाइटी की सेक्रेटरी की पत्नी से फ़ोन पर पूछती—विकास का क्या हाल है?'' एक ही जवाब मिलता—“दिखा नहीं जी बड्डे दिनों से। मैं इनसे पूछ के फ़ोन करूँगी। पर उसका फ़ोन नहीं आता। केतकी अपनी कातर निगाहें राहुल की तरफ़ उठाती तो वह गहरी निस्संगता से जवाब देता—नो न्यूज़ इज़ द गुड न्यूज़।
“कैसे बाप हो? आख़िर एक रात केतकी ढह गई—तीन महीने से बेटे का अता-पता नहीं है और बाप मज़े में है।
“केतकी!” राहुल ने केतकी को उसके मर्मस्थल पर लपक लिया, मैं बीस साल की उम्र में अपना घर छोड़कर भागा था। देहरादून से। फिर तुमसे शादी की। स्ट्रगल किया, अपना एक मुक़ाम बनाया। बेशक तुम साथ-साथ रही थी। हम देहरादून से दिल्ली, दिल्ली से लखनऊ, लखनऊ से गुवाहाटी और गुवाहाटी से मुंबई पहुँचे। और अब फिर दिल्ली में हैं। क्या तुम्हें एक बार भी याद नहीं आया कि मेरा भी एक पिता था। मैं भी एक बेटा था?
लेकिन इस मामले में मैं कहाँ से आती हूँ राहुल? केतकी ने प्रतिवाद किया—“वह तुम्हारा और तुम्हारे पिता का मामला था। लेकिन यहाँ में इन्वॉल्व हूँ। मैं विकास की माँ हूँ। मेरे दिल में हर समय साँय-साँय होती है। सोचती हूँ कि कुछ दिनों के लिए मुंबई हो आती हूँ।
ठीक है। राहुल गंभीर हो गया—मैं कुछ करता हूँ।
नए वर्ष के पहले दिन दोपहर बारह पैंतीस की फ़्लाइट से राहुल मुंबई के लिए उड़ गया। उसके ब्रीफ़केस में घर की चाबियाँ और पर्स में तीन बैंकों के डेबिट तथा क्रेडिट कार्ड थे।
घर विस्मयकारी तरीक़े से बदरंग, उदास, अराजक और उजाड़ था। राहुल का घर, जिसे वह बतौर अमानत विकास को सौंप गया था। दरवाज़े के बाहर लगी नेमप्लेट ज़रूर राहुल के ही नाम की थी, लेकिन भीतर मानो एक अपाहिज पहरेदार की छायाएँ डोल रही थीं।
धीरे-धीरे राहुल को डर लगना शुरू हुआ—मैं उधर से बन रहा हूँ, इधर से ढह रहा हूँ। राहुल ने सोचा। इक्कीसवीं सदी का अँधेरा उसके जिस्म में भविष्य की तरह ठहर जाने पर आमदा था। उसके विश्वास, उसके मूल्य, उसकी समझ जिस पर देश का पढ़ा-लिखा तबक़ा यक़ीन करता था, उसके अपने घर में विकास के मैले-कुचैले कपड़ों की तरह जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े थे। हॉल में बने बुक शेल्फ़ में मकड़ी के जाले लगे हुए थे और उनमें छिपकलियाँ आराम कर रही थीं। उसने फ़ोन का रिसीवर उठाकर देखा-वह मृतकों की दुनिया में शामिल था। यानी घंटी एक्सचेंज में बजा करती होगी। नागार्जुन, निराला और मुक्तिबोध की रचनावलियों के साथ कालिदास ग्रंथावली जैसी दुर्लभ और बेशक़ीमती पुस्तकें सदियों पुरानी घूल के नीचे हाँफ़ रही थीं। सोफ़े के ऊपर एक इलेक्ट्रोनिक गिटार औंधा पड़ा था। टीवी के ऊपर एक नहीं तीन-तीन ऐश-ट्रे थीं, जिनमें चुटकी-भर राख झाड़ने की भी जगह नहीं थी। शोकेस के किनारे कोने में सिगरेट के ख़ाली पैकेट पड़े थे। फ़र्श पर चलते हुए धूल पर जूतों के निशान छप रहे थे।
राहुल भीतर घुसा—एक साबुत आशंका के साथ। किचन के प्लेटफ़ार्म पर बिसलरी के बीस लीटर वाले कई कैन क़तार से लगे थे—ख़ाली, बिना ढक्कन। वाशिंग मशीन का मुँह खुला था और उसमें गर्दन तक विकास के गंदे कपड़े ठूँसे हुए थे। पर्यों पर तेल और मसालों के दाग़ थे। बाथरूम और लैट्रीन के दरवाज़ो पर कुछ विदेशी गायकों के अहमक़ों जैसी मुद्रावाले पोस्टर चिपके थे। राहुल का स्टडी रूम बंद था। बेडरूम में रखा कम्प्यूटर और प्रिंटर नदारद था। राहुल ने चाबी से स्टडी का दरवाज़ा खोला—वहाँ धूल, उमस और सीलन ज़रूर थी लेकिन बंद होने की वजह से बाक़ी कमरा जस का तस था—जैसा राहुल उसे छोड़ गया था। थका हुआ, प्रतीक्षातुर और उदास यह कमरा मानो राहुल को यह सांत्वना दे रहा था कि अभी सबकुछ समाप्त नहीं हुआ है। अपनी राइटिंग टेबल के सामने पड़ी रिवाल्विंग चेयर पर बैठकर राहुल ने विकास का मोबाइल लगाने की एक व्यर्थ-सी कोशिश की लेकिन आश्चर्य कि घंटी बज गई।
हैलो...'' यह विकास था, हू-ब-हू राहुल जैसी आवाज़ में। तीन महीने से अदृश्य।
“कहाँ हैं? विकास चीखा—कैसे हो, मॉम कैसी है?
“तुझसे मतलब? राहुल चिढ़ गया।
“पापा, मेरा मोबाइल बंद था, परसों ही चालू हुआ है। मैं आपको बताने ही वाला था। गुड न्यूज़! परसों ही मेरी नौकरी लगी है—रिलायन्स इन्फोकॉम में। पगार है पंद्रह हज़ार रुपए। तीन महीने से ख़ाली भटकते-भटकते मैं पागल हो गया था। बीच में मेरा एक्सीडेंट भी हो गया था। मैं पंद्रह दिन अस्पताल में पड़ा रहा। बाइक भी टूट गई। भंगार में बेच दी। विकास बताता जा रहा था बिना रुके, बिना किसी दुख, तकलीफ़ या पछतावे के। ख़ालिस खबरों की तरह।
तूने एक्सीडेंट की भी सूचना नहीं दी? राहुल को सहसा एक अनाम दुःख ने पकड़ लिया।
“उससे क्या होता? विकास तर्क दे रहा था—आपका ब्लडप्रेशर बढ़ जाता। आपलोग भागे-भागे यहाँ आते। ठीक तो मुझे दवाइयाँ ही करतीं न!' फिर दोस्त लोग थे न। किस काम आते साले हरामख़ोर! आप देखते तो डर जाते पापा! बाईं आँख की तो वाट लग गई थी। पूरी बाहर ही आ गई थी। माथे पर सात टाँके आए। होंठ कट गया था। अब सब ठीक है।
पैसा कहाँ से आया? राहुल ने पूछा।
दोस्तों ने दिया। कम्प्यूटर बेचना पड़ा। अब धीरे-धीरे सब चुका दूँगा।
“और घर कबसे नहीं गया?
'शायद आठ-दस दिन हो गए। विकास ने आराम से बताया।
“और घर का फ़ोन?
वो डेड है। विकास ने बताया—“मैं भाड़ा कहाँ से देता? खाने के ही वाँदे पड़े हुए थे।
मेन्टिनेंस भी नहीं दिया होगा?
हाँ। विकास बोला।
'तुझे यह सब बताना नहीं चाहिए था? राहुल झुंझला गया—इस तरह बर्ताव करती है तुम लोगों की पीढ़ी अपने माँ-बाप के साथ?
“पापा, आप तो लेक्चर देने लगते हो। विकास भी चिढ़ गया—मकान कोई छीन थोड़े ही रहा है? अब नौकरी लग गई है, सबकुछ दे दूँगा। अच्छा सुनो, मम्मी से बात कराओ न।
“मम्मी दिल्ली में है।
“दिल्ली में? तो आप कहाँ हैं? विकास थोड़ा विस्मित हुआ।
“मुंबई में। अपने घर में। राहुल ने बताया।
“ओके बाय, मैं शाम तक आता हूँ। विकास ने फ़ोन काट दिया। उसकी आवाज़ में पहली बार कोई लहर उठी थी। क्या फ़र्क़ है? राहुल ख़ुद से पूछ रहा था। सिर्फ़ इतना ही न कि मैं घर से भाग गया था और विकास घर से दूर है—अपनी तरह से जीता-मरता हुआ। अपनी एक समानांतर दुनिया में। वह एक अदृश्य-सी डोर से अपने मम्मी-पापा के साथ बँधा हुआ है और राहुल की दुनिया में यह डोर भी नहीं थी। घर से भागने के पूरे सात वर्ष बाद जब जोधपुर में पिता का ब्रेन कैंसर से देहांत हो गया, माँ का मौन टूटा था। और माँ की आज्ञा से छोटे भाई ने उसका पता खोजकर उसे टेलीग्राम दिया था—पिता नहीं रहे। अगर आना चाहो तो आ सकते हो।”
वह नहीं गया था। अगर पिता उसके जीवन से निकल गए थे, अगर माँ, माँ नहीं बनी रह सकी थी, अगर भाई-बहन उसे ठुकरा चुके थे तो राहुल ही क्यों एक बंद दुनिया का दरवाज़ा खोलने जाता? जब अपने लहूलुहान शरीर को लिए वह घर से बाहर कूद रहा था तब दरवाज़ा खोलकर माँ बाहर आकर उसके क़दमों की ज़ंजीर नहीं बन सकती थी? पिता को एक बार भी ख़याल नहीं आया कि बीस साल का एक इंटर पास लड़का इतनी बड़ी दुनिया में कहाँ मर-खप रहा है?
राहुल बजाज ने पाया कि उसकी बाईं आँख से एक आँसू ढुलककर गाल पर उतर आया है। शायद बाईं आँख दिल से और दाईं आँख दिमाग़ से जुड़ी है। राहुल ने सोचा और अपनी खोज पर मुस्कुरा दिया।
दो बाइयों की मदद से घर शाम तक सामान्य स्थिति में आ गया। सोसाइटी का सेक्रेटरी बदल गया था। नोटिस बोर्ड पर मेंटिनेंस न देनेवालों में राहुल बजाज का नाम भी शोभायमान था। राहुल ने पूरे हिसाब चुकता किए और बारह महीने के पोस्टडेटेड चेक सेक्रेटरी को सौंप दिए। बिजली के बिल के खाते में भी उसने पुराने चौदह सौ और अग्रिम सोलह सौ मिलाकर तीन हज़ार का चेक जमा करवा दिया। टेलीफ़ोन सरेंडर करने की अप्लीकेशन भी उसने सेक्रेटरी को दे दी—साइन किए हुए क्रॉस्ड चेक के साथ। विकास के सारे गंदे कपड़े धोबी के यहाँ भिजवा दिए। टीवी, फ़्रिज़ और वाशिंग मशीन उसने दस हज़ार रुपए में केतकी के एक दोस्त को बेच दिए। इसी दोस्त रेवती के पति ललित तिवारी के घर वह रात के खाने पर आमंत्रित था।
रात आठ बजे विकास आया। वह अपने आप बैगपाइपर की बॉटल लाया था।
“आपने कहा था न, पहला पैग मेरे साथ पीना। विकास बोला, वह तो नहीं हो सका लेकिन मेरी नई नौकरी की ख़ुशी में हम एक साथ चियर्स करेंगे।”
मंज़ूर है— राहुल निर्विकार था! मैं घर में ताला लगाकर जा रहा हूँ।”
“चलेगा। विकास तनिक भी परेशान नहीं हुआ—मेरा दफ़्तर मरोल में है। अँधेरी से मीरा रोड की ट्रेन में चढ़ना अब पॉसिबल नहीं रहा। मैं दफ़्तर के पास ही कहीं पेइंग गेस्ट होने की सोच रहा हूँ।
विकास रेवती और ललित के घर खाने पर नहीं गया। उसने पुष्पक होटल से अपने लिए चिकन बिरयानी मँगवा ली। अगली सुबह इतवार था। राहुल सोकर उठा तब तक विकास तैयार था। उसने पापा के लिए दो अंडों का आमलेट बना दिया था।
“कहाँ? राहुल ने पूछा।
मेरी रिहर्सल है। विकास ने कहा, आज शाम सात बजे बान्द्रा के रासबेरी में मेरा शो है।”
“क्या उस शो में मैं नहीं आ सकता? राहुल ने पूछा।
“क्या? विकास अचरज के हवाले था—आप मेरा शो देखने आएँगे? लेकिन आप और मम्मी तो कुमार गंधर्व, भीमसेन जोशी टाइप के लोगों...।
ऑफ्टर ऑल, जो तू गाता है वह भी तो संगीत ही है न?' राहुल ने विकास की बात काट दी।
“येस्स!'' विकास ने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ हवा में उछालीं—मैं इंतिज़ार करूँगा। फिर वह अपना गिटार लेकर सीढ़ियाँ उतर गया। देर तक राहुल की आँख में विकास के कानों में लटकी बालियाँ और कलर किए गए छोटे-छोटे खड़े बाल उलझन की तरह डूबते-उतराते रहे। जब केतकी का फ़ोन आया तो राहुल ठीक-ठाक बता नहीं पाया कि वो किसके साथ है—विकास के या अपने? केतकी ज़रूर विकास के साथ थी—जब उसके लिए तुमने घर ही बंद कर दिया है तो उसका अंतिम संस्कार भी हाथों हाथ क्यों नहीं कर आते? वह रो रही थी। वह माँ थी और स्वभावतः अपने बेटे के साथ थी। राहुल माँ को नहीं जानता। वह केतकी की रुदन से तनिक भी विचलित नहीं हुआ।
रासबेरी। नई उम्र के लड़के-लड़कियों का डिस्कोथेक। बाहर पोस्टर लगे थे-न्यू सेंसेशन ऑफ़ इंडियन रॉक सिंगर विकास बजाज। राहुल तीन सौ रुपए का टिकट लेकर भीतर चला गया। वहाँ अजीब-ओ-ग़रीब लड़के-लड़कियों की भीड़ थी। हवालों में चरस की गंध थी। बीयर का सुरूर था। यौवन की मस्ती थी। क्षण में जी लेने का उन्माद था। लड़कियों की जींस से उनके नितंबों के कटाव झाँक रहे थे। लड़कों ने टाइट टी शर्ट पहनी हुई थी। उनके बाल चोटियों की तरह बँधे थे। स्लीवलेस टी-शर्ट से उनके मसल्स छलके पड़े थे। ब्रा की कैद से आज़ाद लड़कियों के स्तन शर्ट्स के भीतर टेनिस के गेंद की तरह उछल रहे थे। राहुल वहाँ शायद एकमात्र अधेड़ था जिसे रासबेरी का समाज कभी-कभी कौतुक-भरी निगाह से निहार लेता था।
एक संक्षिप्त से अनाउन्समेंट के बाद विकास मंच पर था—अपने गिटार के साथ। उसने कान-फाड़ शोर के साथ गर्दन को घुटनों के पास तक झुकाते हुए पता नहीं क्या गीत गाया कि हॉल तालियों से गड़गड़ाने लगा, लड़कियाँ झूमने लगी और लड़के उन्मत्त होकर नाचने लगे।
इस लड़के की रचना हुई है उससे? राहुल ने सोचा और युवक-युवतियों द्वारा धकेला जाकर एक कोने में सिमट गया। भीड़ पागल हो गई थी और विकास के लिए 'वन्स मोर' का नारा लगा रही थी। राहुल का दिल दो-फाँक हो गया। उसने केतकी को फ़ोन लगाया और धीरे से बोला, शोर सुन रही हो? यह विकास की कामयाबी का शोर है। मैं नहीं जानता कि मैं सुखी हूँ या दुःखी। पहली बार एक पिता बहुत असमंजस में है केतकी। राहुल ने फ़ोन काट दिया और मंच पर उछलते-कूदते विकास को देखने लगा।
ब्रेक के बाद वह बाहर आ गया। 'हाय गाइज़, हैलो गर्ल्स' करता हुआ विकास भी बाहर निकला। उसके मुँह में सिगरेट दबी थी। उसने राहुल के पाँव छू लिए और बोला, “मैं बहुत ख़ुश हूँ कि मेरा बाप मेरी ख़ुशी को शेयर कर रहा है।
मेरे बच्चे!'' राहुल ने विकास को गले गला लिया—जहाँ भी रहो, ख़ुश रहो। मुझे अब जाना होगा। मेरी दस पैंतीस की फ़्लाइट है। अपने सारे प्रेस किए हुए कपड़े तुझे रेवती आंटी के घर से मिल जाएँगे। राहुल बजाज का गला रुँध गया था—“कल से तू कहाँ रहेगा? क्या मैं घर की चाबियाँ...?
राहुल बजाज के भीतर एक पिता पिघलता, तब तक विकास का बुलावा आ गया। उसने वापस राहुल के पाँव छुए और बोला, मेरी चिंता मत करो पापा! मैं ऐसा ही हूँ। आप जाओ। बेस्ट ऑफ़ जर्नी। सॉरी! विकास ने हाथ नचाए, “मैं एयरपोर्ट नहीं आ सकता। माँ को प्यार बोलना।'' विकास भीतर चला गया। भीड़ और शोर और उन्माद के बीच।
बाहर अँधेरा उतर आया था। इस अँधेरे में राहुल बजाज बहुत अकेला, अशक्त और दुविधाग्रस्त था। वह सबके साथ होना चाहता था लेकिन किसी के साथ नहीं था। उसके पास न पिता था, ना माँ। उसके पास बेटा भी नहीं था। और दिल्ली पहुँचने के बाद उसके पास केतकी भी नहीं रहने वाली थी। राहुल ने हाथ दिखाकर टैक्सी रोकी, उसमें बैठा और बोला, “सान्ताक्रूज़ एयरपोर्ट।
टैक्सी में गाना बज रहा था—बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए।”
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to phir? ketki poochh rahi thi—“tum pareshan kis baat ko lekar ho?”
“pareshan kahan hoon? rahul jhooth bol gaya—ek pratikul sthiti hai jo philhal wikas ko face karni hai tailenteD laDka hai dusri naukari mil jayegi is umr mein strugle nahin karega to kab karega? use apne khu ke anubhwon aur yatharth ke sath baDa hone do
tum jano ketki ne gahri niashwas li—“kahin tumhare wishwas tumhein chhal na len
Dont wari main hoon n! rahul muskuraya phir we sone ke liye beDrum mein chale gaye raat ka khana rahul daftar mein hi khaya karta tha us raat rahul ne sirf do kaam kiye dayen se bayen karwat li aur bayen se dayen
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“kaise bap ho? akhir ek raat ketki Dah gai—tin mahine se bete ka ata pata nahin hai aur bap maze mein hai
“ketki!” rahul ne ketki ko uske marmasthal par lapak liya, main bees sal ki umr mein apna ghar chhoDkar bhaga tha dehradoon se phir tumse shadi ki strugle kiya, apna ek muqam banaya beshak tum sath sath rahi thi hum dehradoon se dilli, dilli se lucknow, lucknow se guwahati aur guwahati se mumbai pahunche aur ab phir dilli mein hain kya tumhein ek bar bhi yaad nahin aaya ki mera bhi ek pita tha main bhi ek beta tha?
lekin is mamle mein main kahan se aati hoon rahul? ketki ne pratiwad kiya—“wah tumhara aur tumhare pita ka mamla tha lekin yahan mein inwaulw hoon main wikas ki man hoon mere dil mein har samay sanya sanya hoti hai sochti hoon ki kuch dinon ke liye mumbai ho aati hoon
theek hai rahul gambhir ho gaya—main kuch karta hoon
nae warsh ke pahle din dopahar barah paintis ki flight se rahul mumbai ke liye uD gaya uske brifkes mein ghar ki chabiyan aur purse mein teen bankon ke Debit tatha credit card the
ghar wismaykari tariqe se badrang, udas, arajak aur ujaD tha rahul ka ghar, jise wo bataur amanat wikas ko saunp gaya tha darwaze ke bahar lagi nemaplet zarur rahul ke hi nam ki thi, lekin bhitar mano ek apahij pahredar ki chhayayen Dol rahi theen
dhire dhire rahul ko Dar lagna shuru hua—main udhar se ban raha hoon, idhar se Dah raha hoon rahul ne socha ikkiswin sadi ka andhera uske jism mein bhawishya ki tarah thahar jane par aamda tha uske wishwas, uske mooly, uski samajh jis par desh ka paDha likha tabqa yaqin karta tha, uske apne ghar mein wikas ke maile kuchaile kapDon ki tarah jahan tahan bikhre paDe the hall mein bane buk shelf mein makDi ke jale lage hue the aur unmen chhipkiliyan aram kar rahi theen usne phone ka receiwer uthakar dekha wo mritkon ki duniya mein shamil tha yani ghanti exchange mein baja karti hogi nagarjun, nirala aur muktibodh ki rachnawaliyon ke sath kalidas granthawali jaisi durlabh aur beshqimti pustken sadiyon purani ghool ke niche hanf rahi theen sofe ke upar ek ilektronik gitar aundha paDa tha tiwi ke upar ek nahin teen teen aish tray theen, jinmen chutki bhar rakh jhaDne ki bhi jagah nahin thi shokes ke kinare kone mein cigarette ke khali packet paDe the farsh par chalte hue dhool par juton ke nishan chhap rahe the
rahul bhitar ghusa—ek sabut ashanka ke sath kitchen ke pletfarm par bisalri ke bees liter wale kai kain qatar se lage the—khali, bina Dhakkan washing machine ka munh khula tha aur usmen gardan tak wikas ke gande kapDe thunse hue the paryon par tel aur masalon ke dagh the bathrum aur laitrin ke darwazo par kuch wideshi gayakon ke ahmaqon jaisi mudrawale poster chipke the rahul ka study room band tha beDrum mein rakha kampyutar aur printar nadarad tha rahul ne chabi se study ka darwaza khola—wahan dhool, umas aur silan zarur thi lekin band hone ki wajah se baqi kamra jas ka tas tha—jaisa rahul use chhoD gaya tha thaka hua, prtikshatur aur udas ye kamra mano rahul ko ye santwana de raha tha ki abhi sabkuchh samapt nahin hua hai apni writing table ke samne paDi riwalwing chair par baithkar rahul ne wikas ka mobile lagane ki ek byarth si koshish ki lekin ashchary ki ghanti baj gai
hailo ye wikas tha, hu ba hu rahul jaisi awaz mein teen mahine se adrshy
“papa, mera mobile band tha, parson hi chalu hua hai main aapko batane hi wala tha good news! parson hi meri naukari lagi hai—rilayans inphokaum mein pagar hai pandrah hazar rupae teen mahine se khali bhatakte bhatakte main pagal ho gaya tha beech mein mera accident bhi ho gaya tha main pandrah din aspatal mein paDa raha baik bhi toot gai bhangar mein bech di wikas batata ja raha tha bina ruke, bina kisi dukh, taklif ya pachhtawe ke khalis khabron ki tarah
tune accident ki bhi suchana nahin dee? rahul ko sahsa ek anam duःkh ne pakaD liya
“usse kya hota? wikas tark de raha tha—apka blDapreshar baDh jata aplog bhage bhage yahan aate theek to mujhe dawaiyan hi kartin n! phir dost log the na kis kaam aate sale haramkhor! aap dekhte to Dar jate papa! bain ankh ki to watt lag gai thi puri bahar hi aa gai thi mathe par sat tanke aaye honth kat gaya tha ab sab theek hai
paisa kahan se aya? rahul ne puchha
doston ne diya kampyutar bechna paDa ab dhire dhire sab chuka dunga
“aur ghar kabse nahin gaya?
shayad aath das din ho gaye wikas ne aram se bataya
“aur ghar ka phone?
wo dead hai wikas ne bataya—“main bhaDa kahan se deta? khane ke hi wande paDe hue the
mentinens bhi nahin diya hoga?
han wikas bola
tujhe ye sab batana nahin chahiye tha? rahul jhunjhla gaya—is tarah bartaw karti hai tum logon ki piDhi apne man bap ke sath?
“papa, aap to lecture dene lagte ho wikas bhi chiDh gaya—makan koi chheen thoDe hi raha hai? ab naukari lag gai hai, sabkuchh de dunga achchha suno, mammy se baat karao na
“mammy dilli mein hai
“dilli mein? to aap kahan hain? wikas thoDa wismit hua
“mumbi mein apne ghar mein rahul ne bataya
“ok bay, main sham tak aata hoon wikas ne phone kat diya uski awaz mein pahli bar koi lahr uthi thi kya farq hai? rahul khu se poochh raha tha sirf itna hi na ki main ghar se bhag gaya tha aur wikas ghar se door hai—apni tarah se jita marta hua apni ek samanantar duniya mein wo ek adrshy si Dor se apne mammy papa ke sath bandha hua hai aur rahul ki duniya mein ye Dor bhi nahin thi ghar se bhagne ke pure sat warsh baad jab jodhpur mein pita ka brain cancer se dehant ho gaya, man ka maun tuta tha aur man ki aagya se chhote bhai ne uska pata khojkar use telegram diya tha—pita nahin rahe agar aana chaho to aa sakte ho ”
wo nahin gaya tha agar pita uske jiwan se nikal gaye the, agar man, man nahin bani rah saki thi, agar bhai bahan use thukra chuke the to rahul hi kyon ek band duniya ka darwaza kholne jata? jab apne lahuluhan sharir ko liye wo ghar se bahar kood raha tha tab darwaza kholkar man bahar aakar uske qadmon ki zanjir nahin ban sakti thee? pita ko ek bar bhi khayal nahin aaya ki bees sal ka ek inter pas laDka itni baDi duniya mein kahan mar khap raha hai?
rahul bajaj ne paya ki uski bain ankh se ek ansu Dhulakkar gal par utar aaya hai shayad bain ankh dil se aur dain ankh dimagh se juDi hai rahul ne socha aur apni khoj par muskura diya
do baiyon ki madad se ghar sham tak samany sthiti mein aa gaya society ka sekretari badal gaya tha notis board par meintinens na denewalon mein rahul bajaj ka nam bhi shobhayaman tha rahul ne pure hisab chukta kiye aur barah mahine ke postDeteD check sekretari ko saunp diye bijli ke bil ke khate mein bhi usne purane chaudah sau aur agrim solah sau milakar teen hazar ka check jama karwa diya telephone sarenDar karne ki aplikeshan bhi usne sekretari ko de di—sain kiye hue krausD check ke sath wikas ke sare gande kapDe dhobi ke yahan bhijwa diye tiwi, friz aur washing machine usne das hazar rupae mein ketki ke ek dost ko bech diye isi dost rewati ke pati lalit tiwari ke ghar wo raat ke khane par amantrit tha
raat aath baje wikas aaya wo apne aap baigapaipar ki bautal laya tha
“apne kaha tha na, pahla paig mere sath pina wikas bola, wah to nahin ho saka lekin meri nai naukari ki khushi mein hum ek sath chiyars karenge ”
manzur hai— rahul nirwikar tha! main ghar mein tala lagakar ja raha hoon ”
“chalega wikas tanik bhi pareshan nahin hua—mera daftar marol mein hai andheri se mera roD ki train mein chaDhna ab pausibal nahin raha main daftar ke pas hi kahin peing guest hone ki soch raha hoon
wikas rewati aur lalit ke ghar khane par nahin gaya usne pushpak hotel se apne liye chikan biryani mangwa li agli subah itwar tha rahul sokar utha tab tak wikas taiyar tha usne papa ke liye do anDon ka omelette bana diya tha
“kahan? rahul ne puchha
meri riharsal hai wikas ne kaha, aaj sham sat baje bandra ke rasberi mein mera sho hai ”
“kya us sho mein main nahin aa sakta? rahul ne puchha
“kya? wikas achraj ke hawale tha—ap mera sho dekhne ayenge? lekin aap aur mammy to kumar gandharw, bhimasen joshi type ke logon
auphtar all, jo tu gata hai wo bhi to sangit hi hai n? rahul ne wikas ki baat kat di
“yess! wikas ne donon hathon ki mutthiyan hawa mein uchhalin—main intizar karunga phir wo apna gitar lekar siDhiyan utar gaya der tak rahul ki ankh mein wikas ke kanon mein latki baliyan aur kalar kiye gaye chhote chhote khaDe baal uljhan ki tarah Dubte utrate rahe jab ketki ka phone aaya to rahul theek thak bata nahin paya ki wo kiske sath hai—wikas ke ya apne? ketki zarur wikas ke sath thi—jab uske liye tumne ghar hi band kar diya hai to uska antim sanskar bhi hathon hath kyon nahin kar ate? wo ro rahi thi wo man thi aur swabhawat apne bete ke sath thi rahul man ko nahin janta wo ketki ki rudan se tanik bhi wichlit nahin hua
rasberi nai umr ke laDke laDakiyon ka Diskothek bahar poster lage the new senseshan off indian rauk singar wikas bajaj rahul teen sau rupae ka ticket lekar bhitar chala gaya wahan ajib o gharib laDke laDakiyon ki bheeD thi hawalon mein charas ki gandh thi beer ka surur tha yauwan ki masti thi kshan mein ji lene ka unmad tha laDkiyon ki jeans se unke nitambon ke kataw jhank rahe the laDkon ne tight t shirt pahni hui thi unke baal chotiyon ki tarah bandhe the sliwles t shirt se unke masals chhalke paDe the bra ki kaid se azad laDkiyon ke stan sharts ke bhitar tennis ke gend ki tarah uchhal rahe the rahul wahan shayad ekmatr adheD tha jise rasberi ka samaj kabhi kabhi kautuk bhari nigah se nihar leta tha
ek sankshaipt se anaunsment ke baad wikas manch par tha—apne gitar ke sath usne kan phaD shor ke sath gardan ko ghutnon ke pas tak jhukate hue pata nahin kya geet gaya ki hall taliyon se gaDagDane laga, laDkiyan jhumne lagi aur laDke unmatt hokar nachne lage
is laDke ki rachna hui hai usse? rahul ne socha aur yuwak yuwatiyon dwara dhakela jakar ek kone mein simat gaya bheeD pagal ho gai thi aur wikas ke liye wans mor ka nara laga rahi thi rahul ka dil do phank ho gaya usne ketki ko phone lagaya aur dhire se bola, shor sun rahi ho? ye wikas ki kamyabi ka shor hai main nahin janta ki main sukhi hoon ya duःkhi pahli bar ek pita bahut asmanjas mein hai ketki rahul ne phone kat diya aur manch par uchhalte kudte wikas ko dekhne laga
break ke baad wo bahar aa gaya hay gaiz, hailo girls karta hua wikas bhi bahar nikla uske munh mein cigarette dabi thi usne rahul ke panw chhu liye aur bola, “main bahut khush hoon ki mera bap meri khushi ko sheyar kar raha hai
mere bachche! rahul ne wikas ko gale gala liya—jahan bhi raho, khush raho mujhe ab jana hoga meri das paintis ki flight hai apne sare press kiye hue kapDe tujhe rewati anti ke ghar se mil jayenge rahul bajaj ka gala rundh gaya tha—“kal se tu kahan rahega? kya main ghar ki chabiyan ?
rahul bajaj ke bhitar ek pita pighalta, tab tak wikas ka bulawa aa gaya usne wapas rahul ke panw chhue aur bola, meri chinta mat karo papa! main aisa hi hoon aap jao best off jarni sorry! wikas ne hath nachaye, “main airport nahin aa sakta man ko pyar bolna wikas bhitar chala gaya bheeD aur shor aur unmad ke beech
bahar andhera utar aaya tha is andhere mein rahul bajaj bahut akela, ashakt aur duwidhagrast tha wo sabke sath hona chahta tha lekin kisi ke sath nahin tha uske pas na pita tha, na man uske pas beta bhi nahin tha aur dilli pahunchne ke baad uske pas ketki bhi nahin rahne wali thi rahul ne hath dikhakar taxi roki, usmen baitha aur bola, “santakruz airport
taxi mein gana baj raha tha—babul mora naihar chhuto hi jaye ”
apan ka kya hai/apan uD jayenge archna/dharti ko dhata batakar/apan to rah lenge/pichhe chhoot jayegi/ghrina se bhari aur sanwedana se khali/is sansar ki kahani—air india ke sabhagar mein pin Drap sailens ke beech rahul bajaj ki kawita ki panktiyan ek aindrajalik sammohan upasthit kiye de rahi theen ab kisi sabhagar mein rahul bajaj ki kawita ka path shahr ke liye ek durlabh ghatna jaisa hota tha prabuddh jan door door ke upanagron se local, ऑto, bus taxi ya apni niji kar se is kshan ka gawah banne ke liye saharsh upasthit hote the rahul shahr ka man tha sahity ke jitne bhi bharatiy awarD the, we sab ke sab rahul ke ghar mein ek wargile thath ke sath shobhayaman the duniya bhar ki prasiddh kitabon se uski study anti paDi thi akhbar, patrikaon aur tiwi channel wale jab tab uska interwiew lene ke liye uske ghar ki siDhiyan chaDhte utarte rahte the uske mobile phone mein pardesh ke si em, hom minister, gawarnar, cultural sekretari, police commissioner, pej thre ki selibritij aur baDe patrkaron ke personal number sawe the
wo yuniwarsitiyon mein paDhaya ja raha tha asam, darjiling, shimla, nainital, dehradoon, allahabad, lucknow,bhopal, chanDigaDh, jodhpur, jaypur, patna aur nagpur mein bulwaya ja raha tha mumbai jaisi mayawi nagar mein wo two beDrum hall ke ek suwidha aur suruchisampann flat mein jiwan basar kar raha tha wo maruti zen mein chalta tha remanD tatha black beri ki painte, park ewenyu aur wenahyujan ki shirt aur red tape ke jute pahanta tha wigat mein ghata jo kuch bhi bura, badrang aur kasaila tha, un sabko jhaD ponchhkar nasht kar chuka tha lekin chizen is tarah nasht hoti hain kya! atit kabhi dauDta hai, hamse age/bhawishya ki tarah/kabhi pichhe bhoot ki tarah lag jata hai/ham ulte latke hain aag ke alaw par/ aag hi aag hai nason ke bilkul qarib/aur unmen barud bhara hai ye uske bachpan ka ek bahut khas dost bandhu tha jo college pahunchne tak kawitayen likhne laga tha aur naksali gatiwidhiyon ke muhane par khaDa rahta tha wo barud ki tarah phahtta isse pahle hi dehradoon ki wadiyon mein kuch agyat logon dwara nirmamtapurwak mar diya gaya
rahul Dar gaya isliye nahin ki usne pahli bar maut ko itne qarib se dekha tha isliye ki chaubis baras ka bandhu bees sal ke rahul ke jiwan ki pathashala bana hua tha ye pathashala ujaD gai thi usne gardan uthakar dekha, shahr ke tamam raste nirjan aur Darawne lag rahe the ek khubsurat shahr mein kuch abhishapt preton ne Dera Dal diya tha wo ekdam akela tha aur nihattha bhi kuch kachchi adhapki kawitayen, thoDe bahut widrohi qim ke wichar, kuch maulik aur pawitra tarah ke sapne, ek intarmiDiyet pas ka sartiphiket, ahankari, tanashah, sarwaj~n aur gita ilaiktrikals ke malik pita ke ekadhikarwadi saye ke niche bita raha jiwan ye sab kuch itna thoDa aur attai qim ka tha ki rahul Dagmaga gaya us raat wo der tak pita raha aur aadhi raat ko ghar lauta pita wo pahle bhi tha lekin tab wo bandhu ke sath uske ghar chala jata tha
rahul ko yaad hai, ekdam saf saf pita ne use parde ki raD se mara tha wo pitte pitte angan mein aa gaya tha aur hainDpanp se takrakar gir paDa tha pump aur hatthe ko joDnewali moti lambi keel uske pet ko chirti guzar gai thi pet par dain or bana chhah inch ka ye kala nishan roz subah nahate samay use pita ki yaad dilata hai siddharth apni patni aur bachchon ko chhoDkar ek raat se ghayab hua tha aur gautam buddh kahlaya tha rahul apne pita, apni man aur kamre ki khiDki se jhankte apne teen bhai bahnon ki bhayakrant ankhon ko takte hue, khoon se lathpath usi hainDpanp par chaDhkar angan ki chhat ke us par kood gaya tha us par ek aag ki nadi thi aur tair ke jana tha pichhe shayad man pachhaD khakar giri thi
mere pas gaDi hai, bangla hai, naukar hain tumhare pas kya hai? amitabh bachchan ne darp mein ainthte hue puchha hai shashi kapur shant hain mamatw ki garmahat mein sinkta hua usne ek gahre abhiman mein bharkar kaha—mere pas man hai amitabh ka darp darak raha hai
rahul ko samajh nahin aata uske pas man kyon nahin hai? rahul ko ye bhi samajh nahin aata ki kyon duniya ka koi beta ghamanD mein bharkar ye nahin kahta ki mere pas bap hai bap aur bete aksar dwandw ki ek adrshy Dor par kyon khaDe rahte hain?
ab jabki ungliyon se fisal raha hai jiwan/aur sharir shithil paD raha hai/ aao apan prem karen waishali s en d t mahila wishwawidyalay ke kaunphrens room mein rahul bajaj ki kawita goonj rahi hai kawita khatm hote hi wo autograph mangti nawyauwnaon se ghir gaya hai
wo kumaun wishwawidyalay ke hindi wibhag ka sabhagar tha uske ekal kawypath ke baad wibhagadhyaksh ne apni sabse medhawi chhatra ko naitital ghumane ke liye uske sath kar diya tha is chhatra ke sath rahul ka chhota mota bhawatmak aur bauddhik patr wywahar pahle se tha wo patrikaon mein rahul ki kawitayen paDhkar use khat likha karti thi bees sal pahle mal roD ki us thanDi saDak par ketki bisht nam ki us em e hindi ki chhatra ne sahsa rahul ka hath pakaDkar puchha tha—mujhse shadi karoge?”
rahul awak halaq bhitar tak sukhi hui october ki us pahaDi thanD mein mathe par chali i pasine ki chand bunde ankhon mein achraj ka samundar ek yuwa, pratibhashali, tez tarrar kawi ke roop mein rahul ko tab tak manyata mil chuki thi wo dilli ke ek saptahik akhbar mein naukari kar raha tha lekin shadi ke liye itna kafi tha kya? phir wo laDki ke bare mein ziyada kuch janta nahin tha siwa iske liye wo kuch kuch ribeliyan qim ke wicharon se khadabdati rahti thi, ki jiwan ki chunautiyan use jine ki lalsa se bharti theen uski ankhen ghazab ke atmawishwas se damak rahi theen
atmawishwas ki is Dagar par chalta hua kya main apne swapnon ko pairon par khaDa kar sakunga rahul ne socha aur ketki ki ankhon mein jhanka han! ketki ne kaha aur muskurane lagi han! rahul ne kaha aur ketki ka matha choom liya asapas chalti bheeD ashchary se thaharne lagi bees baras pahle ye achraj ki hi baat thi khaskar nainital jaise chhote shahr mein wisht sahab ki beti hawaon mein harkare dauD paDe
lekin agli subah nainital court mein bisht dampati tatha wibhagadhyaksh ki gawahi mein rahul aur ketki pati patni ban gaye usi sham rahul aur ketki dilli laut aye—sarojini nagar ke ek chhote se kiraye ke kamre mein apna jiwan shuru karne s en d t ke sabhagar mein autograph session se nipatne ke baad ek kursi par baithe rahul ko apna wigat apne se aage dauDta nazar aata hai
rahul andheri station ki siDhiyan utar raha tha wikas siDhiyan chaDh raha tha uski ungilayon mein cigarette dabi thi rahul ne wikas ki kalai tham li cigarette zamin par gir paDi rahul wikas ko ghasitta hua station ke bahar le aaya ek surakshait se lagte kone par pahunchakar usne wikas ki kalai chhoD di aur hanphate hue bola, mainne tumse kaha tha, jiwan ka pahla paig aur pahli cigarette tum mere sath pina kaha tha n? jjee! wikas ki ghighyi bandhi hui thi to phir? rahul ne puchha wikas ne gardan jhuka li aur dhire se kaha, sorry papa! ab aisa na hoga rahul muskuraya bola, dost jaisa bap mila hai qadr karna sikho phir donon apne apne raston par chale gaye
wikas mumbai ke je je college auph aarts mein pratham warsh ka chhatr tha ketki use doctor banana chahti thi lekin wikas ke kalatmak rujhan ko dekh rahul ne use high school science ke baad inter aarts se karne aur uske baad je je mein eDamishan lene ki swikriti de di thi wo kamarshiyal artist banna chahta tha rahul un dinon ek dainik akhbar ka news editor tha aadhi raat ko aana aur subah der tak sote rahna uski dincharya thi
itwar ki ek subah usne ketki se puchha, “wikas nahin dikh raha
bete ki sudh i? ketki wyangy ki Dor thame us par khaDi thi
lekin ghar to shuru se hi tumhara hi raha hai rahul ne sahajta se jawab diya yah ghar nahin hai ketki tikt thi use bahut zamane ke baad sanwadon ki duniya mein upasthit hone ka mauqa mila tha—guest house hai aur main house keeper hoon sirf house keeper
rahul ulajhne ke mood mein nahin tha si i o ne use pune edition ki ruparekha banane ki zimmedari saunpi thi dopahar ke bhoj ke baad apni study mein band hokar wo homework kar lena chahta tha usne wikas ka mobile lagaya
papa udhar wikas tha
bete kahan ho tum? rahul thoDa tursh tha
papa, bandra ke rasberi mein mera sho hai agle manDe isliye ek hafte se apne dost kapil ke ghar par hoon riharsal chal rahi hai
riharsal? kaisa sho?
“papa, aapko apne siwa kuch yaad bhi rahta hai? pichhle mahine mainne aapko bataya nahin tha ki mainne ek rauk bainD jwain kiya hai
riharsal ghar par bhi ho sakti hai rahul uttejit hone laga tha, tipikal pitaon ki tarah
“papa, aap ye bhi bhool gaye? wikas ki awaz mein wyangy tairne laga tha—“abhi kuch din pahle jab main raat ko praitiks kar raha tha tab aapne ghar aate hi mujhe kitni buri tarah Dant diya tha ki ye ghar hai, nachne gane ka aDDa nahin
shatap! rahul ne mobile off kar diya usne dekha, ketki use wyangy se tak rahi thi usne sir jhuka liya wo dhime qadmon se apni study mein ja raha tha pichhe pichhe ketki bhi aa rahi thi
kya hai? rahul ne puchha aur paya ki uski awaz mein ek ajib qim ki tutan jaisi hai is tutan mein kisi shodh mein asaphal ho jane ka dard samaya hua tha
tum haar gaye rahul! ketki ki ankh mein barson purana atmawishwas tha
tum bhi aisa hi sochti ho ketki? rahul ne apni qamiz aur baniyan ulat di—kya tum chahti theen ki pet par paDe aise hi kisi nishan ko dekhkar wikas ko apne bap ki yaad aaya karti?
“nahin
to phir? rahul ki awaz mein dard tha—mainne wikas ko ek lokatantrik mahaul dene ka prayas kiya tha main chahta tha ki wo mujhe apna bap nahin, dost samjhe
“bap dost nahin ho sakta rahul! wo doston ki tarah bihew bhale hi kar le, lekin hota wo bap hi hai aur use bap hona bhi chahiye ketki ne jhatke se apna waky pura kiya aur study se bahar chali gai
rahul aram kursi par Dah gaya agli subah jab wo bahut der tak nahin utha to ketki ne apne faimili doctor ko talab kiya doctor ne bataya—inke jiwan mein high blaD preshar ne sendh laga di hai
rahul ki ankhen ashchary se bhari ho gain wo cigarette nahin pita tha sharab kabhi kabhi chhuta tha tala hua aur tailiy bhojan nahin khata tha ghar se bahar ka pani tak nahin pita tha
to phir? usne ketki se puchha
lekin tab tak doctor ki batai dawaiyan lene ke liye ketki bazar ja chuki thi
gyarah september do hazar ek ko amerika ke world treD centre par hue winashak hamle ke theek ek hafte baad rahul bajaj ko raat gyarah baje uske bete wikas ne mobile par yaad kiya rahul un dinon ek tiwi channel mein input eDitar tha aur patni ke sath dilli mein rahta tha channel ki naukari mein wikas to wikas, ketki tak rahul ko kabhi kabhi kisi bhuli hui yaad ki tarah ubharti nazar aati thi wo wikas ko apne mumbai wale base basaye ghar mein akela chhoD aaya tha wikas tab tak ek multinational company ke mumbai office mein wijulaizar ke taur par naukari karne laga tha amtaur par wikas ka mobile not richebal hi hota tha pandrah bees dinon mein kabhi use man ki yaad aati to wo dilli ke lainDlain par phone kar man se batiyata tha ketki ke zariye hi rahul ko pata chalta ki wikas maze mein hai uski naukari theek hai aur wo ek ubharta hua rauk gayak bhi ban gaya hai wo man ko batata tha ki makan ka meintinens samay par kiya ja raha hai, ki lainDlain phone ka bil aur bijli ka bil bhi samay par diya ja raha hai society ke log unhen yaad karte hain aur usne apne ek dost se qiston par ek second hand motor cycle kharid li hai wo batata ki mumbai ki local mein bheeD ab janalewa ho gai hai ab to kisi bhi samay chaDhna utarna mushkil ho gaya hai ek khate pite madhywargiy pariwar ke lachchhan yahan bhi the wahan bhi rahul ki zindagi beet rahi thi ketki ki bhi wyast rahne ke liye ketki dilli mein kuch tution karne lagi thi
isiliye wikas ke phone ne rahul ko wichlit kar diya
bapu wikas laD, sharab aur swatantrata ke nashe mein tha—bapu, world treD centre ki building mein hamara bhi head office tha sab khallas ho gaya office bhi, malik bhi malkin ne i mel bhejkar mumbai office ko band kar diya hai ”
“ab? rahul ne sanyat rahne ki koshish ki—ab kya karega?
karega kya strugle karega abhi to ek mahine notis ki pagar hai apne pas uske baad dekha jayega wikas ashwast lag raha tha
“aisa kar, tu ghar mein tala lagakar dilli aa ja main tujhe apne channel mein phit karwa dunga rahul ki hamesha wyast aur wyawasayik awaz mein bahut dinon ke baad ek chintatur pita lauta
“kya papa wikas shayad chiDh gaya tha—ap bhi kabhi kabhi kaisi baten karte hain mera career, mere dost, mera shauq, mera paishan sab kuch yahan hai ye sab chhoDkar main wahan aa jaun, us ganw mein jahan log raat ko aath baje so jate hain jahan bijli kabhi kabhi aati hai oh shit i het dait city ” wikas bahakne laga tha—mammy mujhe batati rahti hain wahan ki musibaton ke bare mein apun idhrich rahega i lawa mumbai, yu no agle mahine mein apna bainD lekar puna ja raha hoon sho karne
jaisi teri marzi! rahul ne samarpan kar diya!—koi problem aaye to bata zarur dena
“shabbash! ye hui na mardowali baat wikas ne thahaka lagaya phir bola, tek keyar bay
rahul ka ji uchat gaya usne khu ko santwana dene ki koshish ki akhir sabkuchh to hai mumbai wale ghar mein t wi, friz, kampyutar, wisiDi player, washing machine, gas, double bed, warDrob, sofa, bistar itna saksham to hai hi apna beta ki do waqt ki roti juta le usne nishchint hone ki koshish ki lekin kuch tha jo uske sukun mein sendh laga raha tha thoDi der baad wo ghar laut aaya lautte waqt usne mobile par apni society ke sekretari se rikwest kiya ki kabhi meintinens milne mein der ho jaye to wo miskaul de paisa society ke account mein transfar ho jayega phir usne sekretari se agrah kiya ki wikas ka dhyan rakhna sekretari sikh tha khushamizaj tha bola, tusi fir na karo asi hain na waise twaDa munDa baDa mast hai qadi qadi dikhta hai baik par to bay uncle bolta hai ”
rahul ko ghar aaya dekh ketki wismit rah gai abhi to sirf paune barah baje the rahul kabhi bhi do baje se pahle nahin aata tha
wikas ka phone tha rahul ne bataya—uski naukari chali gai hai lekin ye koi chinta ki baat nahin hai
to? ketki kuch samjhi nahin
“usne sharab pi rakhi thi rahul ne sir jhuka liya uski awaz dusri shatabdi ke us par se aati hui lag rahi thi rakh mein sani, matmaili aur ashakt ketki ke bhitar bujhte angaron mein se koi ek angar sulag utha rahul ki awaz ne use hawa di shayad
jab hum dilli aa rahe the, mainne tabhi kaha tha ki wikas ki mumbai mein akela mat chhoDo
ketki, murkhen jaisi baat mat karo bachche jawan hokar london, amerika, jarmni aur japan tak jate hain naukariyan bhi aati jati rahti hain phir hum abhi jiwit hain! rahul sofe par baith gaya aur jute utarne laga—uska nashe mein hona bhi koi dhamaka nahin hai auphtar all, bais sal ka young chaip hai ”
to phir? ketki poochh rahi thi—“tum pareshan kis baat ko lekar ho?”
“pareshan kahan hoon? rahul jhooth bol gaya—ek pratikul sthiti hai jo philhal wikas ko face karni hai tailenteD laDka hai dusri naukari mil jayegi is umr mein strugle nahin karega to kab karega? use apne khu ke anubhwon aur yatharth ke sath baDa hone do
tum jano ketki ne gahri niashwas li—“kahin tumhare wishwas tumhein chhal na len
Dont wari main hoon n! rahul muskuraya phir we sone ke liye beDrum mein chale gaye raat ka khana rahul daftar mein hi khaya karta tha us raat rahul ne sirf do kaam kiye dayen se bayen karwat li aur bayen se dayen
subah hamesha ki tarah wyastata bhari thi akhbar, phone, khabren, news channel, interwiew, prashasanik samasyayen, kantrowarsi, marketing stretji, byuro koaurDineshan, adesh, nirdesh, target ek nirantar hahakar tha jo chaubis ghante anawrat upasthit tha is hahakar mein samay hawa ki tarah uDta tha aur sanwdenayen mom ki tarah pighalti theen inhin wyasttaon mein dilli ka december aaya thanD, kohre aur barish mein thithurta wikas se koi sampark nahin ho pa raha tha ghar ka phone bajta rahta ghar mein koi special Dish banti to uska dil hoom hoom karta pata nahin wikas ne kya khaya hoga! khana halaq se niche utarne se inkar kar deta ketki kumar gandharw aur bhimasen joshi ki sharan leti wikas ka mobile trai karti society ki sekretari ki patni se phone par puchhti—wikas ka kya haal hai? ek hi jawab milta—“dikha nahin ji baDDe dinon se main inse poochh ke phone karungi par uska phone nahin aata ketki apni katar nigahen rahul ki taraf uthati to wo gahri nissangta se jawab deta—no news iz d good news
“kaise bap ho? akhir ek raat ketki Dah gai—tin mahine se bete ka ata pata nahin hai aur bap maze mein hai
“ketki!” rahul ne ketki ko uske marmasthal par lapak liya, main bees sal ki umr mein apna ghar chhoDkar bhaga tha dehradoon se phir tumse shadi ki strugle kiya, apna ek muqam banaya beshak tum sath sath rahi thi hum dehradoon se dilli, dilli se lucknow, lucknow se guwahati aur guwahati se mumbai pahunche aur ab phir dilli mein hain kya tumhein ek bar bhi yaad nahin aaya ki mera bhi ek pita tha main bhi ek beta tha?
lekin is mamle mein main kahan se aati hoon rahul? ketki ne pratiwad kiya—“wah tumhara aur tumhare pita ka mamla tha lekin yahan mein inwaulw hoon main wikas ki man hoon mere dil mein har samay sanya sanya hoti hai sochti hoon ki kuch dinon ke liye mumbai ho aati hoon
theek hai rahul gambhir ho gaya—main kuch karta hoon
nae warsh ke pahle din dopahar barah paintis ki flight se rahul mumbai ke liye uD gaya uske brifkes mein ghar ki chabiyan aur purse mein teen bankon ke Debit tatha credit card the
ghar wismaykari tariqe se badrang, udas, arajak aur ujaD tha rahul ka ghar, jise wo bataur amanat wikas ko saunp gaya tha darwaze ke bahar lagi nemaplet zarur rahul ke hi nam ki thi, lekin bhitar mano ek apahij pahredar ki chhayayen Dol rahi theen
dhire dhire rahul ko Dar lagna shuru hua—main udhar se ban raha hoon, idhar se Dah raha hoon rahul ne socha ikkiswin sadi ka andhera uske jism mein bhawishya ki tarah thahar jane par aamda tha uske wishwas, uske mooly, uski samajh jis par desh ka paDha likha tabqa yaqin karta tha, uske apne ghar mein wikas ke maile kuchaile kapDon ki tarah jahan tahan bikhre paDe the hall mein bane buk shelf mein makDi ke jale lage hue the aur unmen chhipkiliyan aram kar rahi theen usne phone ka receiwer uthakar dekha wo mritkon ki duniya mein shamil tha yani ghanti exchange mein baja karti hogi nagarjun, nirala aur muktibodh ki rachnawaliyon ke sath kalidas granthawali jaisi durlabh aur beshqimti pustken sadiyon purani ghool ke niche hanf rahi theen sofe ke upar ek ilektronik gitar aundha paDa tha tiwi ke upar ek nahin teen teen aish tray theen, jinmen chutki bhar rakh jhaDne ki bhi jagah nahin thi shokes ke kinare kone mein cigarette ke khali packet paDe the farsh par chalte hue dhool par juton ke nishan chhap rahe the
rahul bhitar ghusa—ek sabut ashanka ke sath kitchen ke pletfarm par bisalri ke bees liter wale kai kain qatar se lage the—khali, bina Dhakkan washing machine ka munh khula tha aur usmen gardan tak wikas ke gande kapDe thunse hue the paryon par tel aur masalon ke dagh the bathrum aur laitrin ke darwazo par kuch wideshi gayakon ke ahmaqon jaisi mudrawale poster chipke the rahul ka study room band tha beDrum mein rakha kampyutar aur printar nadarad tha rahul ne chabi se study ka darwaza khola—wahan dhool, umas aur silan zarur thi lekin band hone ki wajah se baqi kamra jas ka tas tha—jaisa rahul use chhoD gaya tha thaka hua, prtikshatur aur udas ye kamra mano rahul ko ye santwana de raha tha ki abhi sabkuchh samapt nahin hua hai apni writing table ke samne paDi riwalwing chair par baithkar rahul ne wikas ka mobile lagane ki ek byarth si koshish ki lekin ashchary ki ghanti baj gai
hailo ye wikas tha, hu ba hu rahul jaisi awaz mein teen mahine se adrshy
“papa, mera mobile band tha, parson hi chalu hua hai main aapko batane hi wala tha good news! parson hi meri naukari lagi hai—rilayans inphokaum mein pagar hai pandrah hazar rupae teen mahine se khali bhatakte bhatakte main pagal ho gaya tha beech mein mera accident bhi ho gaya tha main pandrah din aspatal mein paDa raha baik bhi toot gai bhangar mein bech di wikas batata ja raha tha bina ruke, bina kisi dukh, taklif ya pachhtawe ke khalis khabron ki tarah
tune accident ki bhi suchana nahin dee? rahul ko sahsa ek anam duःkh ne pakaD liya
“usse kya hota? wikas tark de raha tha—apka blDapreshar baDh jata aplog bhage bhage yahan aate theek to mujhe dawaiyan hi kartin n! phir dost log the na kis kaam aate sale haramkhor! aap dekhte to Dar jate papa! bain ankh ki to watt lag gai thi puri bahar hi aa gai thi mathe par sat tanke aaye honth kat gaya tha ab sab theek hai
paisa kahan se aya? rahul ne puchha
doston ne diya kampyutar bechna paDa ab dhire dhire sab chuka dunga
“aur ghar kabse nahin gaya?
shayad aath das din ho gaye wikas ne aram se bataya
“aur ghar ka phone?
wo dead hai wikas ne bataya—“main bhaDa kahan se deta? khane ke hi wande paDe hue the
mentinens bhi nahin diya hoga?
han wikas bola
tujhe ye sab batana nahin chahiye tha? rahul jhunjhla gaya—is tarah bartaw karti hai tum logon ki piDhi apne man bap ke sath?
“papa, aap to lecture dene lagte ho wikas bhi chiDh gaya—makan koi chheen thoDe hi raha hai? ab naukari lag gai hai, sabkuchh de dunga achchha suno, mammy se baat karao na
“mammy dilli mein hai
“dilli mein? to aap kahan hain? wikas thoDa wismit hua
“mumbi mein apne ghar mein rahul ne bataya
“ok bay, main sham tak aata hoon wikas ne phone kat diya uski awaz mein pahli bar koi lahr uthi thi kya farq hai? rahul khu se poochh raha tha sirf itna hi na ki main ghar se bhag gaya tha aur wikas ghar se door hai—apni tarah se jita marta hua apni ek samanantar duniya mein wo ek adrshy si Dor se apne mammy papa ke sath bandha hua hai aur rahul ki duniya mein ye Dor bhi nahin thi ghar se bhagne ke pure sat warsh baad jab jodhpur mein pita ka brain cancer se dehant ho gaya, man ka maun tuta tha aur man ki aagya se chhote bhai ne uska pata khojkar use telegram diya tha—pita nahin rahe agar aana chaho to aa sakte ho ”
wo nahin gaya tha agar pita uske jiwan se nikal gaye the, agar man, man nahin bani rah saki thi, agar bhai bahan use thukra chuke the to rahul hi kyon ek band duniya ka darwaza kholne jata? jab apne lahuluhan sharir ko liye wo ghar se bahar kood raha tha tab darwaza kholkar man bahar aakar uske qadmon ki zanjir nahin ban sakti thee? pita ko ek bar bhi khayal nahin aaya ki bees sal ka ek inter pas laDka itni baDi duniya mein kahan mar khap raha hai?
rahul bajaj ne paya ki uski bain ankh se ek ansu Dhulakkar gal par utar aaya hai shayad bain ankh dil se aur dain ankh dimagh se juDi hai rahul ne socha aur apni khoj par muskura diya
do baiyon ki madad se ghar sham tak samany sthiti mein aa gaya society ka sekretari badal gaya tha notis board par meintinens na denewalon mein rahul bajaj ka nam bhi shobhayaman tha rahul ne pure hisab chukta kiye aur barah mahine ke postDeteD check sekretari ko saunp diye bijli ke bil ke khate mein bhi usne purane chaudah sau aur agrim solah sau milakar teen hazar ka check jama karwa diya telephone sarenDar karne ki aplikeshan bhi usne sekretari ko de di—sain kiye hue krausD check ke sath wikas ke sare gande kapDe dhobi ke yahan bhijwa diye tiwi, friz aur washing machine usne das hazar rupae mein ketki ke ek dost ko bech diye isi dost rewati ke pati lalit tiwari ke ghar wo raat ke khane par amantrit tha
raat aath baje wikas aaya wo apne aap baigapaipar ki bautal laya tha
“apne kaha tha na, pahla paig mere sath pina wikas bola, wah to nahin ho saka lekin meri nai naukari ki khushi mein hum ek sath chiyars karenge ”
manzur hai— rahul nirwikar tha! main ghar mein tala lagakar ja raha hoon ”
“chalega wikas tanik bhi pareshan nahin hua—mera daftar marol mein hai andheri se mera roD ki train mein chaDhna ab pausibal nahin raha main daftar ke pas hi kahin peing guest hone ki soch raha hoon
wikas rewati aur lalit ke ghar khane par nahin gaya usne pushpak hotel se apne liye chikan biryani mangwa li agli subah itwar tha rahul sokar utha tab tak wikas taiyar tha usne papa ke liye do anDon ka omelette bana diya tha
“kahan? rahul ne puchha
meri riharsal hai wikas ne kaha, aaj sham sat baje bandra ke rasberi mein mera sho hai ”
“kya us sho mein main nahin aa sakta? rahul ne puchha
“kya? wikas achraj ke hawale tha—ap mera sho dekhne ayenge? lekin aap aur mammy to kumar gandharw, bhimasen joshi type ke logon
auphtar all, jo tu gata hai wo bhi to sangit hi hai n? rahul ne wikas ki baat kat di
“yess! wikas ne donon hathon ki mutthiyan hawa mein uchhalin—main intizar karunga phir wo apna gitar lekar siDhiyan utar gaya der tak rahul ki ankh mein wikas ke kanon mein latki baliyan aur kalar kiye gaye chhote chhote khaDe baal uljhan ki tarah Dubte utrate rahe jab ketki ka phone aaya to rahul theek thak bata nahin paya ki wo kiske sath hai—wikas ke ya apne? ketki zarur wikas ke sath thi—jab uske liye tumne ghar hi band kar diya hai to uska antim sanskar bhi hathon hath kyon nahin kar ate? wo ro rahi thi wo man thi aur swabhawat apne bete ke sath thi rahul man ko nahin janta wo ketki ki rudan se tanik bhi wichlit nahin hua
rasberi nai umr ke laDke laDakiyon ka Diskothek bahar poster lage the new senseshan off indian rauk singar wikas bajaj rahul teen sau rupae ka ticket lekar bhitar chala gaya wahan ajib o gharib laDke laDakiyon ki bheeD thi hawalon mein charas ki gandh thi beer ka surur tha yauwan ki masti thi kshan mein ji lene ka unmad tha laDkiyon ki jeans se unke nitambon ke kataw jhank rahe the laDkon ne tight t shirt pahni hui thi unke baal chotiyon ki tarah bandhe the sliwles t shirt se unke masals chhalke paDe the bra ki kaid se azad laDkiyon ke stan sharts ke bhitar tennis ke gend ki tarah uchhal rahe the rahul wahan shayad ekmatr adheD tha jise rasberi ka samaj kabhi kabhi kautuk bhari nigah se nihar leta tha
ek sankshaipt se anaunsment ke baad wikas manch par tha—apne gitar ke sath usne kan phaD shor ke sath gardan ko ghutnon ke pas tak jhukate hue pata nahin kya geet gaya ki hall taliyon se gaDagDane laga, laDkiyan jhumne lagi aur laDke unmatt hokar nachne lage
is laDke ki rachna hui hai usse? rahul ne socha aur yuwak yuwatiyon dwara dhakela jakar ek kone mein simat gaya bheeD pagal ho gai thi aur wikas ke liye wans mor ka nara laga rahi thi rahul ka dil do phank ho gaya usne ketki ko phone lagaya aur dhire se bola, shor sun rahi ho? ye wikas ki kamyabi ka shor hai main nahin janta ki main sukhi hoon ya duःkhi pahli bar ek pita bahut asmanjas mein hai ketki rahul ne phone kat diya aur manch par uchhalte kudte wikas ko dekhne laga
break ke baad wo bahar aa gaya hay gaiz, hailo girls karta hua wikas bhi bahar nikla uske munh mein cigarette dabi thi usne rahul ke panw chhu liye aur bola, “main bahut khush hoon ki mera bap meri khushi ko sheyar kar raha hai
mere bachche! rahul ne wikas ko gale gala liya—jahan bhi raho, khush raho mujhe ab jana hoga meri das paintis ki flight hai apne sare press kiye hue kapDe tujhe rewati anti ke ghar se mil jayenge rahul bajaj ka gala rundh gaya tha—“kal se tu kahan rahega? kya main ghar ki chabiyan ?
rahul bajaj ke bhitar ek pita pighalta, tab tak wikas ka bulawa aa gaya usne wapas rahul ke panw chhue aur bola, meri chinta mat karo papa! main aisa hi hoon aap jao best off jarni sorry! wikas ne hath nachaye, “main airport nahin aa sakta man ko pyar bolna wikas bhitar chala gaya bheeD aur shor aur unmad ke beech
bahar andhera utar aaya tha is andhere mein rahul bajaj bahut akela, ashakt aur duwidhagrast tha wo sabke sath hona chahta tha lekin kisi ke sath nahin tha uske pas na pita tha, na man uske pas beta bhi nahin tha aur dilli pahunchne ke baad uske pas ketki bhi nahin rahne wali thi rahul ne hath dikhakar taxi roki, usmen baitha aur bola, “santakruz airport
taxi mein gana baj raha tha—babul mora naihar chhuto hi jaye ”
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1970-1980) (पृष्ठ 107)
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