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पापा जब बच्चे थे

papa jab bachche the

अलेक्जेंडर रस्किन

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पापा जब बच्चे थे

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा चौथी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    पापा जब छोटे थे, तो उनसे अक्सर पूछा जाता था, “बड़े होकर तुम क्या बनना चाहते हो?” पापा के पास जवाब हमेशा तैयार होता। मगर उनका जवाब हर बार अलग-अलग होता था।

    शुरू-शुरू में पापा चौकीदार बनना चाहते थे। उन्हें यह सोचना बहुत अच्छा लगता था कि जब सारा शहर सोता है, चौकीदार जागता है। उन्हें यह सोचना भी अच्छा लगता था कि जब हर कोई सोया हुआ हो, वह ख़ूब शोर मचा सकते हैं। उन्हें पक्का यक़ीन था कि बड़े होकर वह चौकीदार ही बनेंगे।

    लेकिन एक दिन अपने चटकदार हरे ठेले को लिए आइसक्रीम वाला गया। भई वाह! पापा आइसक्रीम वाला बनेंगे। वह ठेले को लेकर घूम भी सकते हैं और जितना मन चाहे उतनी आइसक्रीम भी खा सकते हैं। पापा ने सोचा, “मैं एक आइसक्रीम बेचूँगा तो एक ख़ुद खाऊँगा। छोटे बच्चों को तो मैं मुफ़्त में आइसक्रीम दिया करूँगा।”

    जब पापा के माता-पिता ने यह सुना कि वह आइसक्रीम बेचनेवाला बनना चाहते हैं, तो उन्हें बहुत हैरानी हुई। उन्हें यह बात बहुत मज़ेदार लगी और वे ख़ूब हँसे लेकिन पापा इसी बात पर अड़े रहे कि वह यही काम करेंगे।

    फिर एक दिन रेलवे स्टेशन पर पापा ने एक अजीब आदमी को देखा। यह आदमी इंजनों और डिब्बों से खेल रहा था। लेकिन यह डिब्बे और इंजन खिलौने नहीं बल्कि असली थे, असली! कभी वह प्लेटफ़ार्म पर उछल कर जाता तो कभी डिब्बों के नीचे चला जाता। वह कोई बहुत अजीब और मज़ेदार खेल खेल रहा था।

    पापा ने पूछा, “यह कौन है?”

    उन्हें बताया गया, “यह शंटिंग करने वाला है।”

    “शंटिंग किसे कहते हैं?” पापा ने पूछा।

    “जब रेलगाड़ी अपनी यात्रा पूरी कर लेती है तो उसे अगली यात्रा के लिए तैयार करना होता है। रेलगाड़ी की साफ़-सफ़ाई की जाती है। इंजन को घुमाकर ईंधन-पानी भरा जाता है। इसे शंटिंग कहते हैं।” पापा को बताया गया।

    बस, पापा को पता चल गया कि वह क्या बनेंगे। वह तो रेलगाड़ी के डिब्बों की शंटिंग करेंगे। इससे भी ज़्यादा मज़ेदार और क्या हो सकता है? ज़ाहिर है कि कुछ भी नहीं। जब पापा ने कहा कि वह शंटिंग करने वाला बनेंगे तो किसी ने उनसे पूछा,

    “मगर तुम तो कहते थे कि तुम आइसक्रीम बेचने का काम करोगे! अब आइसक्रीम बेचने के काम का क्या होगा?”

    यह सचमुच समस्या थी। पापा ने शंटिंग करने वाला बनने की सोच ली थी, मगर आइसक्रीम बेचने का चटकदार हरा ठेला भी वह नहीं गँवाना चाहते थे। आख़िर उन्होंने रास्ता निकाल लिया।

    पापा ने जवाब दिया, “मैं शंटिंग करने वाला और आइसक्रीम बेचने वाला दोनों बनूँगा।”

    सबको बहुत अचंभा हुआ। “तुम दोनों काम एक साथ कैसे करोगे?”

    पापा ने कहा, “इसमें क्या मुश्किल है। आइसक्रीम मैं सुबह बेचा करूँगा। कुछ देर आइसक्रीम बेचने के बाद मैं स्टेशन चला जाया करूँगा। वहाँ मैं कुछ डिब्बों की शंटिंग करूँगा और फिर जाकर कुछ आइसक्रीम और बेच आऊँगा। इसके बाद मैं फिर स्टेशन चला जाऊँगा। कुछ डिब्बों की शंटिंग कर लूँगा, इसके बाद जाकर फिर कुछ आइसक्रीम और बेच लूँगा। इससे ज़्यादा मुश्किल नहीं होगी क्योंकि अपना ठेला मैं स्टेशन के पास ही खड़ा करूँगा और इसलिए गाड़ियों के लिए मुझे ज़्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा।”

    सब लोग फिर हँस पड़े। पापा ग़ुस्से में आकर बोले, “अगर तुम मेरी हँसी उड़ाओगे तो मैं साथ में चौकीदार भी बन जाऊँगा। आख़िर रात में करने की लिए होता ही क्या है।”

    सभी कुछ तय हो गया, लेकिन एक दिन पापा को वायुयान चालक बनने की सूझी। इसके बाद उन्होंने अभिनेता बनने की सोची। इसके अलावा वह जहाज़ी भी बनना चाहते थे। कम से कम वह चरवाहा बनकर लाठी हिलाते हुए गायों के पीछे घूमते हुए अपने दिन बिताना तो चाहते ही थे।

    अंत में एक दिन उन्होंने तय किया कि वह असल में जो बनना चाहतें हैं वह है कुत्ता। उस दिन वह दिन भर चारों हाथ-पैरों पर इधर-उधर भागते हुए अजनबियों पर भौंकते रहे। एक बूढ़ी महिला ने उनके सिर को सहलाना चाहा तो पापा ने उन्हें काटने की कोशिश तक की! पापा ने भौंकना तो बड़ी अच्छी तरह से सीख लिया लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी अपने पैर से कान के पीछे खुजाना नहीं सीख पाए। उन्होंने सोचा कि अगर वह बाहर जाकर अपने पालतू कुत्ते के साथ बैठ जाएँ, तो शायद वह कान के पीछे खुजाना ज़्यादा जल्दी सीख जाएँगे। पापा कुत्ते के पास जाकर बैठ गए। उसी वक़्त एक अवनबी फ़ौजी अफ़सर उधर से निकला। वह खड़ा होकर पापा को देखने लगा। यह उन्हें कुछ देर तक देखता रहा और फिर उसने पूछा, “यह तुम क्या कर रहे हो?”

    पापा ने जवाब दिया, “मैं कुत्ता बनना सीख रहा हूँ।”

    तब फ़ौजी ने पूछा, “तुम कुत्ता बनना क्यों चाहते हो?”

    पापा ने कहा, क्योंकि मैं काफ़ी दिन तक इंसान बनकर चुका हूँ। अफ़सर ने कहा, “बात तो सही है। पर क्या तुम जानते भी हो कि इंसान किसे कहते हैं?”

    पापा ने पूछा, “मुझे तो नहीं पता। आप ही बता दीजिए।”

    अफ़सर ने कहा, “इसके बारे में तुम अपने आप सोचो!”

    अफ़सर वहाँ से चला गया। वह तो हँसा और मुस्कुराया। पापा सोचने लगे। वह सोचते ही रहे। अफ़सर ने उन्हें कोई बात भी नहीं समझाई थी पर अचानक ही यह बात पापा की समझ में गई कि वह रोज़-रोज़ अपना इरादा नहीं बदल सकते। अगली बार जब उनसे यही सवाल पूछा गया तो उन्हें अफ़सर की याद गई, और उन्होंने कहा, “मैं इंसान बनना चाहता हूँ।”

    इस बार कोई भी नहीं हँसा और पापा समझ गए कि यही सबसे अच्छा जवाब है। आज भी वह यही समझते हैं। पहली बात तो यही है कि हमें अच्छा इंसान बनना चाहिए।

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    अलेक्जेंडर रस्किन

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    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : अलेक्जेंडर रस्किन
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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