प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा दसवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
अंदमान द्वीपसमूह का अंतिम दक्षिणी द्वीप है लिटिल अंदमान। यह पोर्ट ब्लेयर से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित है। इसके बाद निकोबार द्वीपसमूह की शृंखला आरंभ होती है जो निकोबारी जनजाति की आदिम संस्कृति के केंद्र हैं। निकोबार द्वीपसमूह का पहला प्रमुख द्वीप है कार-निकोबार जो लिटिल अंदमान से 96 कि.मी. दूर है। निकोबारियों का विश्वास है कि प्राचीन काल में ये दोनों द्वीप एक ही थे। इनके विभक्त होने की एक लोककथा है जो आज भी दुहराई जाती है।
सदियों पूर्व, जब लिटिल अंदमान और कार-निकोबार आपस में जुड़े हुए थे तब वहाँ एक सुंदर सा गाँव था। पास में एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। उसका नाम था तताँरा। निकोबारी उसे बेहद प्रेम करते थे। तताँरा एक नेक और मददगार व्यक्ति था। सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता। अपने गाँववालों को ही नहीं, अपितु समूचे द्वीपवासियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझता था। उसके इस त्याग की वजह से वह चर्चित था। सभी उसका आदर करते। वक़्त मुसीबत में उसे स्मरण करते और वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता। दूसरे गाँवों में भी पर्व-त्योहारों के समय उसे विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही, साथ ही आत्मीय स्वभाव की वजह से लोग उसके क़रीब रहना चाहते। पारंपरिक पोशाक के साथ वह अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता। लोगों का मत था, बावजूद लकड़ी की होने पर, उस तलवार में अद्भुत दैवीय शक्ति थी। तताँरा अपनी तलवार को कभी अलग न होने देता। उसका दूसरों के सामने उपयोग भी न करता। किंतु उसके चर्चित साहसिक कारनामों के कारण लोग-बाग तलवार में अद्भुत शक्ति का होना मानते थे। तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी।
एक शाम तताँरा दिनभर के अथक परिश्रम के बाद समुद्र किनारे टहलने निकल पड़ा। सूरज समुद्र से लगे क्षितिज तले डूबने को था। समुद्र से ठंडी बयारें आ रही थी। पक्षियों की सायकालीन चहचहाहटें शनै: शनै: क्षीण होने को थीं। उसका मन शांत था। विचारमग्न तताँरा समुद्री बालू पर बैठकर सूरज की अंतिम रंग-बिरंगी किरणों को समुद्र पर निहारने लगा। तभी कहीं पास से उसे मधुर गीत गूँजता सुनाई दिया। गीत मानो बहता हुआ उसकी तरफ़ आ रहा हो। बीच-बीच में लहरों का संगीत सुनाई देता। गायन इतना प्रभावी था कि वह अपनी सुध-बुध खोने लगा। लहरों के एक प्रबल वेग ने उसकी तंद्रा भंग की। चैतन्य होते ही वह उधर बढ़ने को विवश हो उठा जिधर से अब भी गीत के स्वर बह रहे थे। वह विकल सा उस तरफ़ बढ़ता गया। अंततः उसकी नज़र एक युवती पर पड़ी जो ढलती हुई शाम के सौंदर्य में बेसुध, एकटक समुद्र की देह पर डूबते आकर्षक रंगों को निहारते हुए गा रही थी। यह एक शृंगार गीत था।
उसे ज्ञात ही न हो सका कि कोई अजनबी युवक उसे निःशब्द ताके जा रहा है। एकाएक एक ऊँची लहर उठी और उसे भिगो गई। वह हड़बड़ाहट में गाना भूल गई। इसके पहले कि वह सामान्य हो पाती, उसने अपने कानों में गूँजती गंभीर आकर्षक आवाज़ सुनी।
तुमने एकाएक इतना मधुर गाना अधूरा क्यों छोड़ दिया? तताँरा ने विनम्रतापूर्वक कहा।
अपने सामने एक सुंदर युवक को देखकर वह विस्मित हुई। उसके भीतर किसी कोमल भावना का संचार हुआ। किंतु अपने को संयतकर उसने बेरुख़ी के साथ जवाब दिया।
पहले बताओ! तुम कौन हो, इस तरह मुझे घूरने और इस असंगत प्रश्न का कारण? अपने गाँव के अलावा किसी और गाँव के युवक के प्रश्नों का उत्तर देने को मैं बाध्य नहीं। यह तुम भी जानते हो।
तताँरा मानो सुध-बुध खोए हुए था। जवाब देने के स्थान पर उसने पुनः अपना प्रश्न दुहराया।
तुमने गाना क्यों रोक दिया? गाओ, गीत पूरा करो। सचमुच तुमने बहुत सुरीला कंठ पाया है।”
यह तो मेरे प्रश्न का उत्तर न हुआ? युवती ने कहा।
सच बताओ तुम कौन हो? लपाती गाँव में तुम्हें कभी देखा नहीं।
तताँरा मानो सम्मोहित था। उसके कानों में युवती की आवाज़ ठीक से पहुँच न सकी। उसने पुनः विनय की, तुमने गाना क्यों रोक दिया? गाओ न?
युवती झुँझला उठी। वह कुछ और सोचने लगी। अंततः उसने निश्चयपूर्वक एक बार पुनः लगभग विरोध करते हुए कड़े स्वर में कहा।
ढीठता की हद है। मैं जब से परिचय पूछ रही हूँ और तुम बस एक ही राग अलाप रहे हो। गीत गाओ-गीत गाओ, आख़िर क्यों? क्या तुम्हें गाँव का नियम नहीं मालूम? इतना बोलकर वह जाने के लिए तेज़ी से मुड़ी। तताँरा को मानो कुछ होश आया। उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ। वह उसके सामने रास्ता रोककर, मानो गिड़गिड़ाने लगा।
“मुझे माफ़ कर दो। जीवन में पहली बार मैं इस तरह विचलित हुआ हूँ। तुम्हें देखकर मेरी चेतना लुप्त हो गई थी। मैं तुम्हारा रास्ता छोड़ दूँगा। बस अपना नाम बता दो। तताँरा ने विवशता में आग्रह किया। उसकी आँखें युवती के चेहरे पर केंद्रित थीं। उसके चेहरे पर सच्ची विनय थी।
वा...मी...रो...” एक रस घोलती आवाज़ उसके कानों में पहुँची।
वामीरो...वा...मी...रो...वाह कितना सुंदर नाम है। कल भी आओगी न यहाँ? तताँरा ने याचना भरे स्वर में कहा।
नहीं...शायद...कभी नहीं। वामीरो ने अन्यमनस्कतापूर्वक कहा और झटके से लपाती की तरफ़ बेसुध सी दौड़ पड़ी। पीछे तताँरा के वाक्य गूँज रहे थे।
वामीरो...मेरा नाम तताँरा है। कल मैं इसी चट्टान पर प्रतीक्षा करूँगा...तुम्हारी बाट जोहूँगा...ज़रूर आना...”
वामीरो रुकी नहीं, भागती ही गई। तताँरा उसे जाते हुए निहारता रहा।
वामीरो घर पहुँचकर भीतर-ही-भीतर कुछ बेचैनी महसूस करने लगी। उसके भीतर तताँरा से मुक्त होने की एक झूठी छटपटाहट थी। एक झल्लाहट में उसने दरवाज़ा बंद किया और मन को किसी और दिशा में ले जाने का प्रयास किया। बार-बार तताँरा का याचना भरा चेहरा उसकी आँखों में तैर जाता। उसने तताँरा के बारे में कई कहानियाँ सुन रखी थीं। उसकी कल्पना में वह एक अद्भुत साहसी युवक था। किंतु वही तताँरा उसके सम्मुख एक अलग रूप में आया। सुंदर, बलिष्ठ किंतु बेहद शांत, सभ्य और भोला। उसका व्यक्तित्व कदाचित वैसा ही था जैसा वह अपने जीवन-साथी के बारे में सोचती रही थी। किंतु एक दूसरे गाँव के युवक के साथ यह संबंध परंपरा के विरुद्ध था। अतएव उसने उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर समझा। किंतु यह असंभव जान पड़ा। तताँरा बार-बार उसकी आँखों के सामने था। निर्निमेष याचक की तरह प्रतीक्षा में डूबा हुआ।
किसी तरह रात बीती। दोनों के हृदय व्यथित थे। किसी तरह आँचरहित एक ठंडा और ऊबाऊ दिन गुज़रने लगा। शाम की प्रतीक्षा थी। तताँरा के लिए मानो पूरे जीवन की अकेली प्रतीक्षा थी। उसके गंभीर और शांत जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था। वह अचंभित था, साथ ही रोमांचित भी। दिन ढलने के काफ़ी पहले वह लपाती की उस समुद्री चट्टान पर पहुँच गया। वामीरो की प्रतीक्षा में एक-एक पल पहाड़ की तरह भारी था। उसके भीतर एक आशंका भी दौड़ रही थी। अगर वामीरो न आई तो? वह कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था। सिर्फ़ प्रतीक्षारत था। बस आस की एक किरण थी जो समुद्र की देह पर डूबती किरणों की तरह कभी भी डूब सकती थी। वह बार-बार लपाती के रास्ते पर नज़रें दौड़ाता। सहसा नारियल के झुरमुटों में उसे एक आकृति कुछ साफ़ हुई...कुछ और...कुछ और। उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। सचमुच वह वामीरो थी। लगा जैसे वह घबराहट में थी। वह अपने को छुपाते हुए बढ़ रही थी। बीच-बीच में इधर-उधर दृष्टि दौड़ाना न भूलती। फिर तेज़ क़दमों से चलती हुई तताँरा के सामने आकर ठिठक गई। दोनों शब्दहीन थे। कुछ था जो दोनों के भीतर बह रहा था। एकटक निहारते हुए वे जाने कब तक खड़े रहे। सूरज समुद्र की लहरों में कहीं खो गया था। अँधेरा बढ़ रहा था। अचानक वामीरो कुछ सचेत हुई और घर की तरफ़ दौड़ पड़ी। तताँरा अब भी वहीं खड़ा था...निश्चल...शब्दहीन...।
दोनों रोज़ उसी जगह पहुँचते और मूर्तिवत एक-दूसरे को निर्निमेष ताकते रहते। बस भीतर समर्पण था जो अनवरत गहरा रहा था। लपाती के कुछ युवको ने इस मूक प्रेम को भाँप लिया और ख़बर हवा की तरह बह उठी। वामीरो लपाती ग्राम की थी और तताँरा पासा का। दोनों का संबंध संभव न था। रीति अनुसार दोनों को एक ही गाँव का होना आवश्यक था। वामीरो और तताँरा को समझाने-बुझाने के कई प्रयास हुए किंतु दोनों अडिग रहे। वे नियमत: लपाती के उसी समुद्री किनारे पर मिलते रहे। अफ़वाहें फैलती रहीं।
कुछ समय बाद पासा गाँव में 'पशु-पर्व' का आयोजन हुआ। पशु-पर्व में हष्ट-पुष्ट पशुओं के प्रदर्शन के अतिरिक्त पशुओं से युवकों की शक्ति परीक्षा प्रतियोगिता भी होती है। वर्ष में एक बार सभी गाँव के लोग हिस्सा लेते हैं। बाद में नृत्य-संगीत और भोजन का भी आयोजन होता है। शाम से सभी लोग पासा में एकत्रित होने लगे। धीरे-धीरे विभिन्न कार्यक्रम शुरू हुए। तताँरा का मन इन कार्यक्रमों में तनिक न था। उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं। नारियल के झुंड के एक पेड़ के पीछे से उसे जैसे कोई झाँकता दिखा। उसने थोड़ा और क़रीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। वह वामीरो थी जो भयवश सामने आने में झिझक रही थी। उसकी आँखें तरल थीं। होंठ काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वह फूटकर रोने लगी। तताँरा विह्वल हुआ। उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था। रोने की आवाज़ लगातार ऊँची होती जा रही थी। तताँरा किंकर्तव्यविमूढ़ था। वामीरो के रुदन स्वरों को सुनकर उसकी माँ वहाँ पहुँची और दोनों को देखकर आग बबूला हो उठी। सारे गाँववालों की उपस्थिति में यह दृश्य उसे अपमानजनक लगा। इस बीच गाँव के कुछ लोग भी वहाँ पहुँच गए। वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। उसने तताँरा को तरह-तरह से अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरोध में आवाज़ें उठाने लगे। यह तताँरा के लिए असहनीय था। वामीरो अब भी रोए जा रही थी। तताँरा भी ग़ुस्से से भर उठा। उसे जहाँ विवाह को निषेध परंपरा पर क्षोभ था वहीं अपनी असहायता पर खीझ। वामीरो का दु:ख उसे और गहरा कर रहा था। उसे मालूम न था कि क्या क़दम उठाना चाहिए? अनायास उसका हाथ तलवार की मूठ पर जा टिका। क्रोध में उसने तलवार निकाली और कुछ विचार करता रहा। क्रोध लगातार अग्नि की तरह बढ़ रहा था। लोग सहम उठे। एक सन्नाटा-सा खिंच गया। जब कोई राह न सूझी तो क्रोध का शमन करने के लिए उसमें शक्ति भर उसे धरती में घोंप दिया और ताक़त से उसे खींचने लगा। वह पसीने से नहा उठा। सब घबराए हुए थे। वह तलवार को अपनी तरफ़ खींचते-खींचते दूर तक पहुँच गया। वह हाँफ रहा था। अचानक जहाँ तक लकीर खिंच गई थी, वहाँ एक दरार होने लगी। मानो धरती दो टुकड़ों में बँटने लगी हो। एक गड़गड़ाहट-सी गूँजने लगी और लकीर की सीध में धरती फटती ही जा रही थी। द्वीप के अंतिम सिरे तक तताँरा धरती को मानों क्रोध में काटता जा रहा था। सभी भयाकुल हो उठे। लोगों ने ऐसे दृश्य की कल्पना न की थी, वे सिहर उठे। उधर वामीरो फटती हुई धरती के किनारे चीख़ती हुई दौड़ रही थी—तताँरा...तताँरा...तताँरा उसकी करुण चीख़ मानो गड़गड़ाहट में डूब गई। तताँरा दुर्भाग्यवश दूसरी तरफ़ था। द्वीप के अंतिम सिरे तक धरती को चाकना वह जैसे ही अंतिम छोर पर पहुँचा, द्वीप दो टुकड़ों में विभक्त हो चुका था। एक तरफ़ तताँरा था दूसरी तरफ़ वामीरो। तताँरा को जैसे ही होश आया, उसने देखा उसकी तरफ़ का द्वीप समुद्र में धँसने लगा है। वह छटपटाने लगा उसने छलाँग लगाकर दूसरा सिरा थामना चाहा किंतु पकड़ ढीली पड़ गई। वह नीचे की तरफ़ फिसलने लगा। वह लगातार समुद्र की सतह की तरफ़ फिसल रहा था। उसके मुँह से सिर्फ़ एक ही चीख़ उभरकर डूब रही थी, वामीरो...वामीरो...वामीरो...वामीरो... उधर वामीरो भी “तताँरा...तताँरा...ता...ताँ...रा पुकार रही थी।
तताँरा लहूलुहान हो चुका था...वह अचेत होने लगा और कुछ देर बाद उसे कोई होश नहीं रहा। वह कटे हुए द्वीप के अंतिम भूखंड पर पड़ा हुआ था जो कि दूसरे हिस्से से संयोगवश जुड़ा था। बहता हुआ तताँरा कहाँ पहुँचा, बाद में उसका क्या हुआ कोई नहीं जानता। इधर वामीरों पागल हो उठी। वह हर समय तताँरा को खोजती हुई उसी जगह पहुँचती और घंटों बैठी रहती। उसने खाना-पीना छोड़ दिया। परिवार से वह एक तरह विलग हो गई। लोगों ने उसे ढूँढ़ने की बहुत कोशिश की किंतु कोई सुराग़ न मिल सका।
आज न तताँरा है न वामीरो किंतु उनकी यह प्रेमकथा घर-घर में सुनाई जाती है। निकोबारियों का मत है कि तताँरा की तलवार से कार-निकोबार के जो टुकड़े हुए, उसमें दूसरा लिटिल अंदमान है जो कार-निकोबार से आज 96 कि.मी. दूर स्थित है। निकोबारी इस घटना के बाद दूसरे गाँवों में भी आपसी वैवाहिक संबंध करने लगे। तताँरा-वामीरो की त्यागमयी मृत्यु शायद इसी सुखद परिवर्तन के लिए थी।
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use gyaat hi na ho saka ki koi ajnabi yuvak use niःshabd take ja raha hai. ekayek ek uunchi lahr uthi aur use bhigo gai. wo haDbaDahat mein gana bhool gai. iske pahle ki wo samanya ho pati, usne apne kanon mein gunjti gambhir akarshak avaz suni.
tumne ekayek itna madhur gana adhura kyon chhoD diya? tatanra ne vinamrtapurvak kaha.
apne samne ek sundar yuvak ko dekhkar wo vismit hui. uske bhitar kisi komal bhavna ka sanchar hua. kintu apne ko sanyatkar usne berukhi ke saath javab diya.
pahle batao! tum kaun ho, is tarah mujhe ghurne aur is asangat parashn ka karan? apne gaanv ke alava kisi aur gaanv ke yuvak ke prashnon ka uttar dene ko main badhya nahin. ye tum bhi jante ho.
tatanra mano sudh budh khoe hue tha. javab dene ke sthaan par usne punः apna parashn duhraya.
tumne gana kyon rok diya? gao, geet pura karo. sachmuch tumne bahut surila kanth paya hai. ”
yah to mere parashn ka uttar na hua? yuvati ne kaha.
sach batao tum kaun ho? lapati gaanv mein tumhein kabhi dekha nahin.
tatanra mano sammohit tha. uske kanon mein yuvati ki avaz theek se pahunch na saki. usne punः vinay ki, tumne gana kyon rok diya? gao na?
yuvati jhunjhla uthi. wo kuch aur sochne lagi. antatः usne nishchaypurvak ek baar punः lagbhag virodh karte hue kaDe svar mein kaha.
Dhithata ki had hai. main jab se parichay poochh rahi hoon aur tum bas ek hi raag alap rahe ho. geet gao geet gao, akhir kyon? kya tumhein gaanv ka niyam nahin malum? itna bolkar wo jane ke liye tezi se muDi. tatanra ko mano kuch hosh aaya. use apni ghalati ka ahsas hua. wo uske samne rasta rokkar, mano giDgiDane laga.
“mujhe maaf kar do. jivan mein pahli baar main is tarah vichlit hua hoon. tumhein dekhkar meri chetna lupt ho gai thi. main tumhara rasta chhoD dunga. bas apna naam bata do. tatanra ne vivashta mein agrah kiya. uski ankhen yuvati ke chehre par kendrit theen. uske chehre par sachchi vinay thi.
vamiro. . . va. . . mi. . . ro. . . vaah kitna sundar naam hai. kal bhi aogi na yahan? tatanra ne yachana bhare svar mein kaha.
nahin. . . shayad. . . kabhi nahin. vamiro ne anyamnasktapurvak kaha aur jhatke se lapati ki taraf besudh si dauD paDi. pichhe tatanra ke vakya goonj rahe the.
vamiro. . . mera naam tatanra hai. kal main isi chattan par prtiksha karunga. . . tumhari baat johunga. . . zarur aana. . . ”
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kuch samay baad pasa gaanv mein pashu parv ka ayojan hua. pashu parv mein hasht pusht pashuon ke pradarshan ke atirikt pashuon se yuvkon ki shakti pariksha pratiyogita bhi hoti hai. varsh mein ek baar sabhi gaanv ke log hissa lete hain. baad mein nritya sangit aur bhojan ka bhi ayojan hota hai. shaam se sabhi log pasa mein ekatrit hone lage. dhire dhire vibhinn karyakram shuru hue. tatanra ka man in karyakrmon mein tanik na tha. uski vyakul ankhen vamiro ko DhunDhane mein vyast theen. nariyal ke jhunD ke ek peD ke pichhe se use jaise koi jhankta dikha. usne thoDa aur qarib jakar pahchanne ki cheshta ki. wo vamiro thi jo bhayvash samne aane mein jhijhak rahi thi. uski ankhen taral theen. honth kaanp rahe the. tatanra ko dekhte hi wo phutkar rone lagi. tatanra vihval hua. usse kuch bolte hi nahin ban raha tha. rone ki avaz lagatar uunchi hoti ja rahi thi. tatanra kinkartavyavimuDh tha. vamiro ke rudan svron ko sunkar uski maan vahan pahunchi aur donon ko dekhkar aag babula ho uthi. sare ganvvalon ki upasthiti mein ye drishya use apmanajnak laga. is beech gaanv ke kuch log bhi vahan pahunch ge. vamiro ki maan krodh mein uphan uthi. usne tatanra ko tarah tarah se apmanit kiya. gaanv ke log bhi tatanra ke virodh mein avazen uthane lage. ye tatanra ke liye asahniy tha. vamiro ab bhi roe ja rahi thi. tatanra bhi ghusse se bhar utha. use jahan vivah ko nishedh parampara par kshobh tha vahin apni ashayta par kheejh. vamiro ka duhakh use aur gahra kar raha tha. use malum na tha ki kya qadam uthana chahiye? anayas uska haath talvar ki mooth par ja tika. krodh mein usne talvar nikali aur kuch vichar karta raha. krodh lagatar agni ki tarah baDh raha tha. log saham uthe. ek sannata sa khinch gaya. jab koi raah na sujhi to krodh ka shaman karne ke liye usmen shakti bhar use dharti mein ghomp diya aur taqat se use khinchne laga. wo pasine se nha utha. sab ghabraye hue the. wo talvar ko apni taraf khinchte khinchte door tak pahunch gaya. wo haanph raha tha. achanak jahan tak lakir khinch gai thi, vahan ek darar hone lagi. mano dharti do tukDon mein bantane lagi ho. ek gaDgaDahat si gunjne lagi aur lakir ki seedh mein dharti phatti hi ja rahi thi. dveep ke antim sire tak tatanra dharti ko manon krodh mein katta ja raha tha. sabhi bhayakul ho uthe. logon ne aise drishya ki kalpana na ki thi, ve sihar uthe. udhar vamiro phatti hui dharti ke kinare chikhti hui dauD rahi thi—tatanra. . . tatanra. . . tatanra uski karun cheekh mano gaDgaDahat mein Doob gai. tatanra durbhagyavash dusri taraf tha. dveep ke antim sire tak dharti ko chakta wo jaise hi antim chhor par pahuncha, dveep do tukDon mein vibhakt ho chuka tha. ek taraf tatanra tha dusri taraf vamiro. tatanra ko jaise hi hosh aaya, usne dekha uski taraf ka dveep samudr mein dhansane laga hai. wo chhataptane laga usne chhalang lagakar dusra sira thamna chaha kintu pakaD Dhili paD gai. wo niche ki taraf phisalne laga. wo lagatar samudr ki satah ki taraf phisal raha tha. uske munh se sirf ek hi cheekh ubharkar Doob rahi thi, vamiro. . . vamiro. . . vamiro. . . vamiro. . . udhar vamiro bhi “tatanra. . . tatanra. . . ta. . . taan. . . ra pukar rahi thi.
tatanra lahuluhan ho chuka tha. . . wo achet hone laga aur kuch der baad use koi hosh nahin raha. wo kate hue dveep ke antim bhukhanD par paDa hua tha jo ki dusre hisse se sanyogvash juDa tha. bahta hua tatanra kahan pahuncha, baad mein uska kya hua koi nahin janta. idhar vamiron pagal ho uthi. wo har samay tatanra ko khojti hui usi jagah pahunchti aur ghanton baithi rahti. usne khana pina chhoD diya. parivar se wo ek tarah vilag ho gai. logon ne use DhunDhane ki bahut koshish ki kintu koi suragh na mil saka.
aaj na tatanra hai na vamiro kintu unki ye premaktha ghar ghar mein sunai jati hai. nikobariyon ka mat hai ki tatanra ki talvar se kaar nikobar ke jo tukDe hue, usmen dusra litil andman hai jo kaar nikobar se aaj 96 ki. mi. door sthit hai. nikobari is ghatna ke baad dusre ganvon mein bhi aapsi vaivahik sambandh karne lage. tatanra vamiro ki tyagamyi mrityu shayad isi sukhad parivartan ke liye thi.
andman dvipasmuh ka antim dakshini dveep hai litil andman. ye port bleyar se lagbhag sau kilomitar door sthit hai. iske baad nikobar dvipasmuh ki shrinkhla arambh hoti hai jo nikobari janjati ki aadim sanskriti ke kendr hain. nikobar dvipasmuh ka pahla pramukh dveep hai kaar nikobar jo litil andman se 96 ki. mi. door hai. nikobariyon ka vishvas hai ki prachin kaal mein ye donon dveep ek hi the. inke vibhakt hone ki ek lokaktha hai jo aaj bhi duhrai jati hai.
sadiyon poorv, jab litil andman aur kaar nikobar aapas mein juDe hue the tab vahan ek sundar sa gaanv tha. paas mein ek sundar aur shaktishali yuvak raha karta tha. uska naam tha tatanra. nikobari use behad prem karte the. tatanra ek nek aur madadgar vyakti tha. sadaiv dusron ki sahayata ke liye tatpar rahta. apne ganvvalon ko hi nahin, apitu samuche dvipvasiyon ki seva karna apna param kartavya samajhta tha. uske is tyaag ki vajah se wo charchit tha. sabhi uska aadar karte. vaqt musibat mein use smran karte aur wo bhaga bhaga vahan pahunch jata. dusre ganvon mein bhi parv tyoharon ke samay use vishesh roop se amantrit kiya jata. uska vyaktitv to akarshak tha hi, saath hi atmiy svbhaav ki vajah se log uske qarib rahna chahte. paramprik poshak ke saath wo apni kamar mein sadaiv ek lakDi ki talvar bandhe rahta. logon ka mat tha, bavjud lakDi ki hone par, us talvar mein adbhut daiviy shakti thi. tatanra apni talvar ko kabhi alag na hone deta. uska dusron ke samne upyog bhi na karta. kintu uske charchit sahasik karnamon ke karan log baag talvar mein adbhut shakti ka hona mante the. tatanra ki talvar ek vilakshan rahasya thi.
ek shaam tatanra dinbhar ke athak parishram ke baad samudr kinare tahalne nikal paDa. suraj samudr se lage kshitij tale Dubne ko tha. samudr se thanDi bayaren aa rahi thi. pakshiyon ki saykalin chahachhahten shanaih shanaih ksheen hone ko theen. uska man shaant tha. vicharamagn tatanra samudri balu par baithkar suraj ki antim rang birangi kirnon ko samudr par niharne laga. tabhi kahin paas se use madhur geet gunjta sunai diya. geet mano bahta hua uski taraf aa raha ho. beech beech mein lahron ka sangit sunai deta. gayan itna prabhavi tha ki wo apni sudh budh khone laga. lahron ke ek prabal veg ne uski tandra bhang ki. chaitanya hote hi wo udhar baDhne ko vivash ho utha jidhar se ab bhi geet ke svar wo rahe the. wo vikal sa us taraf baDhta gaya. antatः uski nazar ek yuvati par paDi jo Dhalti hui shaam ke saundarya mein besudh, ektak samudr ki deh par Dubte akarshak rangon ko niharte hue ga rahi thi. ye ek shringar geet tha.
use gyaat hi na ho saka ki koi ajnabi yuvak use niःshabd take ja raha hai. ekayek ek uunchi lahr uthi aur use bhigo gai. wo haDbaDahat mein gana bhool gai. iske pahle ki wo samanya ho pati, usne apne kanon mein gunjti gambhir akarshak avaz suni.
tumne ekayek itna madhur gana adhura kyon chhoD diya? tatanra ne vinamrtapurvak kaha.
apne samne ek sundar yuvak ko dekhkar wo vismit hui. uske bhitar kisi komal bhavna ka sanchar hua. kintu apne ko sanyatkar usne berukhi ke saath javab diya.
pahle batao! tum kaun ho, is tarah mujhe ghurne aur is asangat parashn ka karan? apne gaanv ke alava kisi aur gaanv ke yuvak ke prashnon ka uttar dene ko main badhya nahin. ye tum bhi jante ho.
tatanra mano sudh budh khoe hue tha. javab dene ke sthaan par usne punः apna parashn duhraya.
tumne gana kyon rok diya? gao, geet pura karo. sachmuch tumne bahut surila kanth paya hai. ”
yah to mere parashn ka uttar na hua? yuvati ne kaha.
sach batao tum kaun ho? lapati gaanv mein tumhein kabhi dekha nahin.
tatanra mano sammohit tha. uske kanon mein yuvati ki avaz theek se pahunch na saki. usne punः vinay ki, tumne gana kyon rok diya? gao na?
yuvati jhunjhla uthi. wo kuch aur sochne lagi. antatः usne nishchaypurvak ek baar punः lagbhag virodh karte hue kaDe svar mein kaha.
Dhithata ki had hai. main jab se parichay poochh rahi hoon aur tum bas ek hi raag alap rahe ho. geet gao geet gao, akhir kyon? kya tumhein gaanv ka niyam nahin malum? itna bolkar wo jane ke liye tezi se muDi. tatanra ko mano kuch hosh aaya. use apni ghalati ka ahsas hua. wo uske samne rasta rokkar, mano giDgiDane laga.
“mujhe maaf kar do. jivan mein pahli baar main is tarah vichlit hua hoon. tumhein dekhkar meri chetna lupt ho gai thi. main tumhara rasta chhoD dunga. bas apna naam bata do. tatanra ne vivashta mein agrah kiya. uski ankhen yuvati ke chehre par kendrit theen. uske chehre par sachchi vinay thi.
vamiro. . . va. . . mi. . . ro. . . vaah kitna sundar naam hai. kal bhi aogi na yahan? tatanra ne yachana bhare svar mein kaha.
nahin. . . shayad. . . kabhi nahin. vamiro ne anyamnasktapurvak kaha aur jhatke se lapati ki taraf besudh si dauD paDi. pichhe tatanra ke vakya goonj rahe the.
vamiro. . . mera naam tatanra hai. kal main isi chattan par prtiksha karunga. . . tumhari baat johunga. . . zarur aana. . . ”
vamiro ruki nahin, bhagti hi gai. tatanra use jate hue niharta raha.
vamiro ghar pahunchakar bhitar hi bhitar kuch bechaini mahsus karne lagi. uske bhitar tatanra se mukt hone ki ek jhuthi chhatpatahat thi. ek jhallahat mein usne darvaza band kiya aur man ko kisi aur disha mein le jane ka prayas kiya. baar baar tatanra ka yachana bhara chehra uski ankhon mein tair jata. usne tatanra ke bare mein kai kahaniyan sun rakhi theen. uski kalpana mein wo ek adbhut sahasi yuvak tha. kintu vahi tatanra uske sammukh ek alag roop mein aaya. sundar, balishth kintu behad shaant, sabhya aur bhola. uska vyaktitv kadachit vaisa hi tha jaisa wo apne jivan sathi ke bare mein sochti rahi thi. kintu ek dusre gaanv ke yuvak ke saath ye sambandh parampara ke viruddh tha. atev usne use bhool jana hi shreyaskar samjha. kintu ye asambhav jaan paDa. tatanra baar baar uski ankhon ke samne tha. nirnimesh yachak ki tarah prtiksha mein Duba hua.
kisi tarah raat biti. donon ke hriday vyathit the. kisi tarah ancharahit ek thanDa aur uubau din guzarne laga. shaam ki prtiksha thi. tatanra ke liye mano pure jivan ki akeli prtiksha thi. uske gambhir aur shaant jivan mein aisa pahli baar hua tha. wo achambhit tha, saath hi romanchit bhi. din Dhalne ke kafi pahle wo lapati ko us samudri chattan par pahunch gaya. vamiro ki prtiksha mein ek ek pal pahaD ki tarah bhari tha. uske bhitar ek ashanka bhi dauD rahi thi. agar vamiro na aai to? wo kuch nirnay nahin kar pa raha tha. sirf pratiksharat tha. bas aas ki ek kiran thi jo samudr ki deh par Dubti kirnon ki tarah kabhi bhi Doob sakti thi. wo baar baar lapati ke raste par nazren dauData. sahsa nariyal ke jhuramuton mein use ek akriti kuch saaf hui. . . kuch aur. . . kuch aur. uski khushi ka thikana na raha. sachmuch wo vamiro thi. laga jaise wo ghabrahat mein thi. wo apne ko chhupate hue baDh rahi thi. beech beech mein idhar udhar drishti dauDana na bhulti. phir tez qadmon se chalti hui tatanra ke samne aakar thithak gai. donon shabdhin the. kuch tha jo donon ke bhitar bah raha tha. ektak niharte hue ve jane kab tak khaDe rahe. suraj samudr ki lahron mein kahin kho gaya tha. andhera baDh raha tha. achanak vamiro kuch sachet hui aur ghar ki taraf dauD paDi. tatanra ab bhi vahin khaDa tha. . . nishchal. . . shabdhin. . . .
donon roz usi jagah pahunchte aur murtivat ek dusre ko nirnimesh takte rahte. bas bhitar samarpan tha jo anavrat gahra raha tha. lapati ke kuch yuvko ne is mook prem ko bhaanp liya aur khabar hava ki tarah bah uthi. vamiro lapati gram ki thi aur tatanra pasa ka. donon ka sambandh sambhav na tha. riti anusar donon ko ek hi gaanv ka hona avashyak tha. vamiro aur tatanra ko samjhane bujhane ke kai prayas hue kintu donon aDig rahe. ve niyamtah lapati ke usi samudri kinare par milte rahe. afvahen phailti rahin.
kuch samay baad pasa gaanv mein pashu parv ka ayojan hua. pashu parv mein hasht pusht pashuon ke pradarshan ke atirikt pashuon se yuvkon ki shakti pariksha pratiyogita bhi hoti hai. varsh mein ek baar sabhi gaanv ke log hissa lete hain. baad mein nritya sangit aur bhojan ka bhi ayojan hota hai. shaam se sabhi log pasa mein ekatrit hone lage. dhire dhire vibhinn karyakram shuru hue. tatanra ka man in karyakrmon mein tanik na tha. uski vyakul ankhen vamiro ko DhunDhane mein vyast theen. nariyal ke jhunD ke ek peD ke pichhe se use jaise koi jhankta dikha. usne thoDa aur qarib jakar pahchanne ki cheshta ki. wo vamiro thi jo bhayvash samne aane mein jhijhak rahi thi. uski ankhen taral theen. honth kaanp rahe the. tatanra ko dekhte hi wo phutkar rone lagi. tatanra vihval hua. usse kuch bolte hi nahin ban raha tha. rone ki avaz lagatar uunchi hoti ja rahi thi. tatanra kinkartavyavimuDh tha. vamiro ke rudan svron ko sunkar uski maan vahan pahunchi aur donon ko dekhkar aag babula ho uthi. sare ganvvalon ki upasthiti mein ye drishya use apmanajnak laga. is beech gaanv ke kuch log bhi vahan pahunch ge. vamiro ki maan krodh mein uphan uthi. usne tatanra ko tarah tarah se apmanit kiya. gaanv ke log bhi tatanra ke virodh mein avazen uthane lage. ye tatanra ke liye asahniy tha. vamiro ab bhi roe ja rahi thi. tatanra bhi ghusse se bhar utha. use jahan vivah ko nishedh parampara par kshobh tha vahin apni ashayta par kheejh. vamiro ka duhakh use aur gahra kar raha tha. use malum na tha ki kya qadam uthana chahiye? anayas uska haath talvar ki mooth par ja tika. krodh mein usne talvar nikali aur kuch vichar karta raha. krodh lagatar agni ki tarah baDh raha tha. log saham uthe. ek sannata sa khinch gaya. jab koi raah na sujhi to krodh ka shaman karne ke liye usmen shakti bhar use dharti mein ghomp diya aur taqat se use khinchne laga. wo pasine se nha utha. sab ghabraye hue the. wo talvar ko apni taraf khinchte khinchte door tak pahunch gaya. wo haanph raha tha. achanak jahan tak lakir khinch gai thi, vahan ek darar hone lagi. mano dharti do tukDon mein bantane lagi ho. ek gaDgaDahat si gunjne lagi aur lakir ki seedh mein dharti phatti hi ja rahi thi. dveep ke antim sire tak tatanra dharti ko manon krodh mein katta ja raha tha. sabhi bhayakul ho uthe. logon ne aise drishya ki kalpana na ki thi, ve sihar uthe. udhar vamiro phatti hui dharti ke kinare chikhti hui dauD rahi thi—tatanra. . . tatanra. . . tatanra uski karun cheekh mano gaDgaDahat mein Doob gai. tatanra durbhagyavash dusri taraf tha. dveep ke antim sire tak dharti ko chakta wo jaise hi antim chhor par pahuncha, dveep do tukDon mein vibhakt ho chuka tha. ek taraf tatanra tha dusri taraf vamiro. tatanra ko jaise hi hosh aaya, usne dekha uski taraf ka dveep samudr mein dhansane laga hai. wo chhataptane laga usne chhalang lagakar dusra sira thamna chaha kintu pakaD Dhili paD gai. wo niche ki taraf phisalne laga. wo lagatar samudr ki satah ki taraf phisal raha tha. uske munh se sirf ek hi cheekh ubharkar Doob rahi thi, vamiro. . . vamiro. . . vamiro. . . vamiro. . . udhar vamiro bhi “tatanra. . . tatanra. . . ta. . . taan. . . ra pukar rahi thi.
tatanra lahuluhan ho chuka tha. . . wo achet hone laga aur kuch der baad use koi hosh nahin raha. wo kate hue dveep ke antim bhukhanD par paDa hua tha jo ki dusre hisse se sanyogvash juDa tha. bahta hua tatanra kahan pahuncha, baad mein uska kya hua koi nahin janta. idhar vamiron pagal ho uthi. wo har samay tatanra ko khojti hui usi jagah pahunchti aur ghanton baithi rahti. usne khana pina chhoD diya. parivar se wo ek tarah vilag ho gai. logon ne use DhunDhane ki bahut koshish ki kintu koi suragh na mil saka.
aaj na tatanra hai na vamiro kintu unki ye premaktha ghar ghar mein sunai jati hai. nikobariyon ka mat hai ki tatanra ki talvar se kaar nikobar ke jo tukDe hue, usmen dusra litil andman hai jo kaar nikobar se aaj 96 ki. mi. door sthit hai. nikobari is ghatna ke baad dusre ganvon mein bhi aapsi vaivahik sambandh karne lage. tatanra vamiro ki tyagamyi mrityu shayad isi sukhad parivartan ke liye thi.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।