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सुनीता की पहिया कुर्सी

sunita ki pahiya kursi

अज्ञात

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सुनीता की पहिया कुर्सी

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    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा चौथी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    सुनीता सुबह सात बजे सोकर उठी। कुछ देर तो वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वह सोच रही थी कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं। उसे याद आया कि आज तो बाज़ार जाना है। सोचते ही उसकी आँखों में चमक गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाज़ार जाने वाली थी।

    उसने अपनी टाँगों को हाथ से पकड़कर खींचा और उन्हें पलंग से नीचे की ओर लटकाया। फिर पलंग का सहारा लेती हुई अपनी पहिया कुर्सी तक बढ़ी। सुनीता चलने-फिरने के लिए पहिया कुर्सी की मदद लेती है। आज वह सभी काम फुर्ती से निपटाना चाहती थी। हालाँकि कपड़े बदलना, जूते पहनना आदि उसके लिए कठिन काम हैं। पर अपने रोज़ाना के काम करने के लिए उसने स्वयं ही कई तरीक़े ढूँढ़ निकाले हैं।

    आठ बजे तक सुनीता नहा-धोकर तैयार हो गई।

    माँ ने मेज़ पर नाश्ता लगा दिया था।

    “माँ, अचार की बोतल पकड़ाना”, सुनीता ने कहा।

    “अलमारी में रखी है। ले लो”, माँ ने रसोईघर से जवाब दिया।

    सुनीता ख़ुद जाकर अचार ले आई।

    नाश्ता करते-करते उसने पूछा, “माँ, बाज़ार से क्या-क्या लाना है?”

    “एक किलो चीनी लानी है। पर क्या तुम अकेले सँभाल लोगी?”

    “पक्का”, सुनीता ने मुस्कुराते हुए कहा।

    सुनीता ने माँ से झोला और रुपए लिए। अपनी पहिया कुर्सी पर बैठकर वह बाज़ार की ओर चल दी।

    सुनीता को सड़क की ज़िंदगी देखने में मज़ा आता है। चूँकि आज छुट्टी है इसलिए हर जगह बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं। सुनीता थोड़ी देर रुक कर उन्हें रस्सी कूदते, गेंद खेलते देखती रही। वह थोड़ी उदास हो गई। वह भी उन बच्चों के साथ खेलना चाहती थी। खेल के मैदान में उसे एक लड़की दिखी, जिसकी माँ उसे वापिस लेने के लिए आई थी। दोनों एक-दूसरे को टुकुर-टुकुर देखने लगे।

    फिर सुनीता को एक लड़का दिखा। उस बच्चे को बहुत सारे बच्चे “छोटू-छोटू” बुलाकर चिढ़ा रहे थे। उस लड़के का क़द बाक़ी बच्चों से बहुत छोटा था। सुनीता को यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।

    रास्ते में कई लोग सुनीता को देखकर मुस्कुराए, जबकि वह उन्हें जानती तक नहीं थी। पहले तो वह मन ही मन ख़ुश हुई परंतु फिर सोचने लगी, “ये सब लोग मेरी तरफ़ भला इस तरह क्यों देख रहे हैं?”

    खेल के मैदान वाली छोटी लड़की सुनीता को दुबारा कपड़ों की दुकान के सामने खड़ी मिली। उसकी माँ कुछ कपड़े देख रही थी।

    “तुम्हारे पास यह अजीब चीज़ क्या है?” उस लड़की ने सुनीता से पूछा।

    “यह तो बस एक....”

    सुनीता जवाब देने लगी परंतु उस लड़की की माँ ने ग़ुस्से में आकर लड़की को सुनीता से दूर हटा दिया।

    “इस तरह का सवाल नहीं पूछना चाहिए फ़रीदा! अच्छा नहीं लगता!” माँ ने कहा।

    “मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ” सुनीता ने दुखी होकर कहा। उसे फ़रीदा की माँ का व्यवहार समझ में नहीं आया।

    अंत में सुनीता बाज़ार पहुँच गई। दुकान में घुसने के लिए उसे सीढ़ियों पर चढ़ना था। उसके लिए यह कर पाना बहुत मुश्किल था। आसपास के सब लोग जल्दी में थे। किसी ने उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया।

    अचानक जिस लड़के को “छोटू” कहकर चिढ़ाया जा रहा था वह रहा था वह उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

    “मैं अमित हूँ,” उसने अपना परिचय दिया, “क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद करूँ?”

    “मेरा नाम सुनीता है,” सुनीता ने राहत की साँस ली और मुस्कुराकर बोली, “पीछे के पैडिल को पैर से ज़रा दबाओगे?”

    “हाँ, हाँ, ज़रूर” कहते हुए अमित ने पहिया कुर्सी को टेढ़ा करके उसके अगले पहियों को पहली सीढ़ी पर रखा। फिर उसने पिछले पहियों को भी ऊपर चढ़ाया। सुनीता ने अमित को धन्यवाद दिया और कहा, “अब मैं दुकान तक ख़ुद पहुँच सकती हूँ।”

    दुकान में पहुँचकर सुनीता ने एक किलो चीनी माँगी। दुकानदार उसे देखकर मुस्कुराया। चीनी की थैली पकड़ने के लिए उसने हाथ आगे बढ़ाया ही था कि दुकानदार ने थैली उसकी गोदी में रख दी। सुनीता ने ग़ुस्से से कहा, “मैं भी दूसरों की तरह ख़ुद अपने आप सामान ले सकती हूँ।”

    उसे दुकानदार का व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। चीनी लेकर सुनीता और अमित बाहर निकले।

    “लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि मैं कोई अजीबोग़रीब लड़की हूँ।” सुनीता ने कहा।

    “शायद तुम्हारी पहिया कुर्सी के अमित ने कहा। के कारण ही वे ऐसा व्यवहार करते हैं।”

    “पर इस कुर्सी में भला ऐसी क्या ख़ास बात है, मैं तो बचपन से ही इस पर बैठकर इसे चलाती हूँ”, सुनीता ने कहा।

    अमित ने पूछा, “पर तुम इस पर क्यों बैठती हो?”

    “मैं पैरों से चल ही नहीं सकती। इस पहिया कुर्सी के पहियों को घुमाकर ही मैं चल-फिर पाती हूँ लेकिन फिर भी मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ। मैं वे सारे काम कर सकती हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं” सुनीता ने कहा।

    अमित ने अपना सिर ना में हिलाया और कहा, “मैं भी वे सारे काम कर सकता हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं। पर मैं भी दूसरे बच्चों से अलग हूँ। इसी तरह तुम भी अलग हो।”

    सुनीता ने कहा, “नहीं! हम दोनों दूसरे बच्चों जैसे ही हैं।”

    अमित ने दुबारा अपना सिर ना में हिलाया और कहा, “देखो तुम पहिया कुर्सी पर बैठकर चलती हो। मेरा क़द बहुत छोटा है। हम दोनों ही बाक़ी लोगों से कुछ अलग हैं।”

    सुनीता कुछ सोचने लगी। उसने अपनी पहिया कुर्सी आगे की ओर खिसकाई। अमित भी उसके साथ-साथ चलने लगा।

    सड़क पार करते समय सुनीता को फ़रीदा फिर नज़र आई। इस बार फ़रीदा ने कोई सवाल नहीं पूछा। अमित झट से सुनीता की पहिया कुर्सी के पीछे चढ़ गया। फिर दोनों पहिया-कुर्सी पर सवार होकर तेज़ी से सड़क पर आगे बढ़े। फ़रीदा भी उनके साथ-साथ दौड़ी। इस बार भी लोगों ने उन्हें घूरा परंतु अब सुनीता को उनकी परवाह नहीं थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 97)
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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