प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
अब राजप्पा को कोई नहीं पूछता। आजकल सब के सब नागराजन को घेरे रहते। ‘नागराजन घमंडी हो गया है’, राजप्पा सारे लड़कों में कहता फिरता। पर लड़के भला कहाँ उसकी बातों पर ध्यान देते! नागराजन के मामा जी ने सिंगापुर से एक अलबम भिजवाया था। वह लड़कों को दिखाया करता। सुबह पहली घंटी के बजने तक सभी लड़के नागराजन को घेरकर अलबम देखा करते। आधी छुट्टी के वक़्त भी उसके आसपास लड़कों का जमघट लगा रहता। कई लोग टोलियों में उसके घर तक हो आए। नागराजन शांतिपूर्वक सभी को अपना अलबम दिखाता, पर किसी को हाथ नहीं लगाने देता। अलबम को गोद में रख लेता और एक-एक पन्ना पलटता, लड़के बस देखकर ख़ुश होते।
और तो और कक्षा की लड़कियाँ भी उस अलबम को देखने के लिए उत्सुक थीं। पार्वती लड़कियों की अगुवा बनी और अलबम माँगने आई। लड़कियों में वही तेज़-तर्रार मानी जाती थी। नागराजन ने कवर चढ़ाकर अलबम उसे दिया। शाम तक लड़कियाँ अलबम देखती रहीं फिर उसे वापस कर दिया।
अब राजप्पा के अलबम को कोई पूछने वाला नहीं था। वाक़ई उसकी शान अब घट गई थी। राजप्पा के अलबम की, लड़कों में काफ़ी तारीफ़ रही थी। मधुमक्खी की तरह उसने एक-एक करके टिकट जमा किए थे। उसे तो बस एक यही धुन सवार थी। सुबह आठ बजे वह घर से निकल पड़ता। टिकट जमा करने वाले सारे लड़कों के चक्कर लगाता। दो ऑस्ट्रेलिया के टिकटों के बदले एक फ़िनलैंड का टिकट लेता। दो पाकिस्तान के बदले एक रूस का। बस शाम, जैसे ही घर लौटता, बस्ता कोने में पटककर अम्मा से चबेना लेकर निकर की जेब में भर लेता और खड़े-खड़े कॉफ़ी पीकर निकल जाता। चार मील दूर अपने दोस्त के घर से कनाडा का टिकट लेने पगडंडियों में होकर भागता। स्कूल भर में उसका अलबम सबसे बड़ा था। सरपंच के लड़के ने उसके अलबम को पच्चीस रुपए में ख़रीदना चाहा था, पर राजप्पा नहीं माना। ‘घमंडी कहीं का’, राजप्पा बड़बड़ाया था। फिर उसने तीखा जवाब दिया था, “तुम्हारे घर में जो प्यारी बच्ची है न, उसे दे दो न तीस रुपए में।” सारे लड़के ठहाका मारकर हँस पड़े थे। पर अब? कोई उसके अलबम की बात तक नहीं करता। और तो और अब सब उसके अलबम की तुलना नागराजन के अलबम से करने लगे हैं। सब कहते हैं राजप्पा का अलबम फिसड्डी है।
पर राजप्पा ने नागराजन के अलबम को देखने की इच्छा कभी नहीं प्रकट की। लेकिन जब दूसरे लड़के उसे देख रहे होते तो वह नीची आँखों से देख लेता। सचमुच नागराजन का अलबम बेहद प्यारा था। पर राजप्पा के पास जितने टिकट थे उतने नागराजन के अलबम में नहीं थे। पर ख़ुद उसका अलबम ही कितना प्यारा था। उसे छू लेना ही कोई बड़ी बात थी। इस तरह का अलबम यहाँ थोड़ी मिलेगा। अलबम के पहले पृष्ठ पर मोती जैसे अक्षरों में उसके मामा ने लिख भेजा था—
ए. एम. नागराजन
‘इस अलबम को चुराने वाला बेशर्म है। अलबम मेरा है। जब तक घास हरी है ऊपर लिखे नाम को कभी देखा है? यह और कमल लाल, सूरज जब तक पूर्व से उगे और पश्चिम में छिपे, उस अनंत काल तक के लिए यह अलबम मेरा है, रहेगा।’
लड़कों ने इसे अपने अलबम में अपने अलबम में उतार लिया। लड़कियों ने झट कापियों और किताबों में टीप लिया।
“तुम लोग यह नक़ल क्यों करते हो? नक़लची कहीं के”, राजप्पा ने लड़कों को घुड़की दी। सब चुप रहे पर कृष्णन से नहीं रहा गया।
“जा, जा। जलता है, ईर्ष्यालु कहीं का।”
“मैं काहे को जलूँ? जले तेरा ख़ानदान। मेरा अलबम उसके अलबम से कहीं बड़ा है।” राजप्पा ने शान बघारी।
“अरे, उसके पास जो टिकटें हैं, वह हैं कहीं तेरे पास? सब क्यों? बस एक इंडोनेशिया का टिकट दिखा दो। अरे, पानी भरोगे, हाँ।” कृष्णन ने छेड़ा।
“पर मेरे पास जो टिकट है, वह कहाँ है उसके पास?” राजप्पा ने फिर ललकारा।
“उसके पास जो टिकट है वही दिखा दो।” कृष्णन भी कम नहीं था।
“ठीक है, दस रुपए की शर्त। मेरे वाले टिकट दिखा दो।”
राजप्पा को लगा, अपने अलबम के बारे में बातें करना फ़ालतू है। उसने कितनी मेहनत और लगन से टिकट बटोरे हैं। सिंगापुर से आए इस एक पार्सल ने नागराजन को एक ही दिन में मशहूर कर दिया। पर दोनों में कितना अंतर है! ये लड़के क्या समझेंगे! राजप्पा मन-ही-मन कुढ़ रहा था। स्कूल जाना अब खलने लगा था और लड़कों के सामने जाने में शर्म आने लगी। आमतौर पर शनिवार और रविवार को टिकट की खोज में लगा रहता, परंतु अब घर-घुसा हो गया था। दिन में कई बार अलबम को पलटता रहता। रात को लेट जाता। सहसा जाने क्या सोचकर उठता, ट्रंक खोलकर अलबम निकालता और एक बार पूरा देख जाता। उसे अलबम से चिढ़ होने लगी थी। उसे लगा, अलबम वाकई कूड़ा हो गया है।
उस दिन शाम उसने जैसे तय कर लिया था, वह नागराजन के घर गया। अब कोई कितना अपमान सहे! नागराजन के हाथ अचानक एक अलबम लगा है, बस यही ना। वह क्या जाने टिकट कैसे जमा किए जाते हैं। एक-एक टिकट की क्या क़ीमत होती है, वह भला क्या समझे! सोचता होगा टिकट जितना बड़ा होगा, वह उतना ही क़ीमती होगा। या फिर सोचता होगा, बड़े देश का टिकट क़ीमती होगा। वह भला क्या समझे!
उसके पास जितने भी फ़ालतू टिकट हैं उन्हें टरका कर, उससे अच्छे टिकट झाड़ लेगा। कितनों को तो उसने यूँ ही उल्लू बनाया है। कितनी चालबाज़ी करनी पड़ती है। नागराजन भला किस खेत की मूली है?
राजप्पा नागराजन के घर पहुँचकर ऊपर गया। चूँकि वह अक्सर आया-जाया करता था, सो किसी ने नहीं टोका। ऊपर पहुँचकर वह नागराजन की मेज़ के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। कुछ देर बाद नागराजन की बहन कामाक्षी ऊपर आई।
“भैया शहर गया है। अरे हाँ, तुमने भैया का अलबम देखा?” उसने पूछा।
“हूँ”, राजप्पा को हाँ कहने में हेकड़ी हो रही थी।
“बहुत सुंदर अलबम है ना? सुना है स्कूल भर में किसी के भी पास इतना बड़ा अलबम नहीं है।”
“तुमसे किसने कहा?”
“भैया ने।” वह कुढ़ गया।
“बड़े से क्या मतलब हुआ? आकार में बड़ा हुआ तो अलबम बड़ा हो गया?” उसकी चिड़चिड़ाहट साफ़ थी।
कामाक्षी कुछ देर तक वहीं रही। फिर नीचे चली गई। राजप्पा मेज़ पर बिखरी किताबों को टटोलने लगा। अचानक उसका हाथ दराज़ के ताले से टकरा गया। उसने ताले को खींचकर देखा। बंद था, क्यों न उसे खोलकर देख लिया जाए। मेज़ पर से उसने चाबी ढूँढ़ निकाली। सीढ़ियों के पास जाकर उसने एक बार झाँककर देखा। फिर जल्दी में दराज़ खोली। अलबम ऊपर ही रखा हुआ था। पहला पृष्ठ खोला। उन वाक्यों को उसने दुबारा पढ़ा। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। अलबम को झट क़मीज़ के नीचे खोंस लिया और दराज़ बंद कर दिया। सीढ़ियाँ उतरकर घर की ओर भागा।
घर जाकर सीधा पुस्तक की अलमारी के पास गया और पीछे की ओर अलबम छिपा दिया। उसने बाहर आकर झाँका। पूरा शरीर जैसे जलने लगा था। गला सूख रहा था और चेहरा तमतमाने लगा था।
रात आठ बजे अपू आया। हाथ-पाँव हिलाकर उसने पूरी बात कह सुनाई।
“सुना तुमने, नागराजन का अलबम खो गया। हम दोनों शहर गए हुए थे। लौटकर देखा तो अलबम ग़ायब!”
राजप्पा चुप रहा। उसने अपू को किसी तरह टाला। उसके जाते ही उसने झट कमरे का दरवाज़ा भिड़ा लिया और अलमारी के पीछे से अलबम निकालकर देखा। उसे फिर छिपा दिया। डर था कहीं कोई देख न ले।
रात में खाना नहीं खाया। पेट जैसे भरा हुआ था। सारा घर चिंतित हो गया। उसका चेहरा भयानक हो गया था।
रात, उसने सोने की कोशिश की पर नींद नहीं आई। अलबम सिरहाने तकिए के नीचे रखकर सो गया।
सुबह अपू दुबारा आया। राजप्पा तब भी बिस्तर पर बैठा था। अपू सुबह नागराजन के घर होकर आया था। “कल तुम उसके घर गए थे?” अपू ने पूछा। राजप्पा की साँस जैसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई। फिर सिर हिला दिया। वह जिस तरह चाहे सोच ले।
“कामाक्षी ने कहा था कि हमारे जाने के बाद ख़ाली तुम वहाँ आए थे।” अपू बोला। राजप्पा को समझते देर नहीं लगी कि अब सब उस पर शक करने लगे हैं।
“कल रात से नागराजन लगातार रोए जा रहा है। उसके पापा शायद पुलिस को ख़बर दें।” अपू ने फिर कहा।
राजप्पा फिर भी चुप रहा।
“उसके पापा डी.एस.पी. के दफ़्तर में ही तो काम करते हैं। बस वह पलक झपक दें और पुलिस की फ़ौज हाज़िर।” अपू जैसे आग में घी डाल रहा था। यह तो भला हुआ कि अपू का भाई उसे ढूँढ़ता हुआ आ गया और अपू चलता बना।
राजप्पा के पापा दफ़्तर चले गए थे। बाहर का किवाड़ बंद था। राजप्पा अभी तक बिस्तर पर बैठा हुआ था। आधा घंटा गुज़र गया और वह उसी तरह बैठा रहा।
तभी बाहर की साँकल खटकी।
‘पुलिस’, राजप्पा बुदबुदाया।
भीतर साँकल लगी थी। दरवाज़ा खटकने की आवाज़ तेज़ हो गई। राजप्पा ने तकिए के नीचे से अलबम उठाया और ऊपर भागा। अलमारी के पीछे छिपा दे? नहीं। पुलिस ने अगर तलाशी ली तो पकड़ा जाएगा। अलबम को क़मीज़ के नीचे छिपाकर वह नीचे आ गया। बाहर का दरवाज़ा अब भी बज रहा था।
“कौन है? अरे दरवाज़ा क्यों नहीं खोलता?” अम्मा भीतर से चिल्लाई। थोड़ी देर और हुई तो अम्मा ख़ुद ही उठकर चली आएँगी।
राजप्पा पिछवाड़े की ओर भागा। जल्दी से बाथरूम में घुसकर दरवाज़ा बंद कर लिया। अम्मा ने अँगीठी पर गर्म पानी की देगची चढ़ा रखी थी। उसने अलबम को अँगीठी में डाल दिया। अलबम जलने लगा। कितने प्यारे टिकट थे। राजप्पा की आँखों में आँसू आ गए।
तभी अम्मा की आवाज़ आई, “जल्दी से आ तो नहाकर। नागराजन तुझे ढूँढ़ता हुआ आया है।” राजप्पा ने निकर उतार दी और गीला तौलिया लपेटकर बाहर आ गया। कपड़े बदलकर वह ऊपर गया। नागराजन कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसे देखते ही बोला, “मेरा अलबम खो गया है यार।” उसका चेहरा उतरा हुआ था। काफ़ी रोकर आया था शायद।
“कहाँ रखा था तुमने?” राजप्पा ने पूछा।
“शायद दराज़ में। शहर से लौटा तो ग़ायब।”
नागराजन की आँखों में आँसू आ गए। राजप्पा से चेहरा बचाकर उसने आँखें पोंछ लीं।
“रो मत यार।” राजप्पा ने उसे पुचकारा। वह फफक-फफक कर रो दिया।
राजप्पा झट नीचे उतरकर गया। एक मिनट में वह ऊपर नागराजन के सामने था। उसके हाथ में उसका अपना अलबम था।
“लो यह रहा मेरा अलबम। अब इसे तुम रख लो। ऐसे क्यों देख रहे हो। मज़ाक़ नहीं कर रहा। सच कहता हूँ, इसे अब तुम रख लो।”
“बहला रहे हो यार।”
नागराजन को जैसे यक़ीन नहीं आया।
“नहीं यार। सचमुच तुमको दे रहा हूँ। रख लो।”
राजप्पा भला अपना अलबम उसे दे दे! कैसा चमत्कार है! नागराजन को अब भी यक़ीन नहीं आ रहा था। पर राजप्पा अपनी बात बार-बार दोहरा रहा था। उसका गला भर आया था।
“ठीक है, मैं इसे रख लेता हूँ। पर तुम क्या करोगे?”
“मुझे नहीं चाहिए।”
“क्यों, तुम्हें एक भी टिकट नहीं चाहिए?”
“नहीं।”
“पर तुम कैसे रहोगे बग़ैर किसी टिकट के?”
“रोता क्यों है यार!”
“ले, इस अलबम को तू ही रख ले। इतनी मेहनत की है तूने।” नागराजन बोला।
“नहीं, तुम रख लो। लेकर चले जाओ। जाओ, चले जाओ यहाँ से।” वह चीख़ा और फूट-फूटकर रो दिया।
नागराजन की समझ में कुछ नहीं आया। वह अलबम लेकर नीचे उतर गया। क़मीज़ से आँखें पोंछता हुआ राजप्पा भी नीचे उत्तर आया। दोनों साथ-साथ दरवाज़े तक आए।
“बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं घर चलूँ?” नागराजन सीढ़ियाँ उत्तरने लगा।
“सुनो राजू”, राजप्पा ने पुकारा। नागराजन ने उसे पलटकर देखा। “अलबम दे दो। मैं आज रात जी भरकर इसे देखना चाहता हूँ। कल सुबह तुम्हें दे जाऊँगा।”
“ठीक है।” नागराजन ने उसे अलबम लौटा दी और चला गया।
राजप्पा ऊपर आया। उसने दरवाज़ा बंद कर लिया और अलबम को छाती से लगाकर फूट-फूटकर रो दिया।
ab rajappa ko koi nahin puchhta. ajkal sab ke sab nagrajan ko ghere rahte. ‘nagrajan ghamanDi ho gaya hai’, rajappa sare laDkon mein kahta phirta. par laDke bhala kahan uski baton par dhyaan dete! nagrajan ke mama ji ne singapur se ek albam bhijvaya tha. wo laDkon ko dikhaya karta. subah pahli ghanti ke bajne tak sabhi laDke nagrajan ko gherkar albam dekha karte. aadhi chhutti ke vaqt bhi uske asapas laDkon ka jamghat laga rahta. kai log toliyon mein uske ghar tak ho aaye. nagrajan shantipurvak sabhi ko apna albam dikhata, par kisi ko haath nahin lagane deta. albam ko god mein rakh leta aur ek ek panna palatta, laDke bas dekhkar khush hote.
aur to aur kaksha ki laDkiyan bhi us albam ko dekhne ke liye utsuk theen. parvati laDakiyon ki aguva bani aur albam mangne aai. laDakiyon mein vahi tez tarrar mani jati thi. nagrajan ne kavar chaDhakar albam use diya. shaam tak laDkiyan albam dekhti rahin phir use vapas kar diya.
ab rajappa ke albam ko koi puchhne vala nahin tha. vakii uski shaan ab ghat gai thi. rajappa ke albam ki, laDkon mein kafi tarif rahi thi. madhumakkhi ki tarah usne ek ek karke tikat jama kiye the. use to bas ek yahi dhun savar thi. subah aath baje wo ghar se nikal paDta. tikat jama karne vale sare laDkon ke chakkar lagata. do austreliya ke tikton ke badle ek phinlainD ka tikat leta. do pakistan ke badle ek roos ka. bas shaam, jaise hi ghar lautta, basta kone mein patakkar amma se chabena lekar nikar ki jeb mein bhar leta aur khaDe khaDe kaufi pikar nikal jata. chaar meel door apne dost ke ghar se kanaDa ka tikat lene pagDanDiyon mein hokar bhagta. skool bhar mein uska albam sabse baDa tha. sarpanch ke laDke ne uske albam ko pachchis rupe mein kharidna chaha tha, par rajappa nahin mana. ‘ghamanDi kahin ka’, rajappa baDabDaya tha. phir usne tikha javab diya tha, “tumhare ghar mein jo pyari bachchi hai na, use de do na tees rupe mein. ” sare laDke thahaka markar hans paDe the. par ab? koi uske albam ki baat tak nahin karta. aur to aur ab sab uske albam ki tulna nagrajan ke albam se karne lage hain. sab kahte hain rajappa ka albam phisaDDi hai.
par rajappa ne nagrajan ke albam ko dekhne ki ichchha kabhi nahin prakat ki. lekin jab dusre laDke use dekh rahe hote to wo nichi ankhon se dekh leta. sachmuch nagrajan ka albam behad pyara tha. par rajappa ke paas jitne tikat the utne nagrajan ke albam mein nahin the. par khud uska albam hi kitna pyara tha. use chhu lena hi koi baDi baat thi.
is tarah ka albam yahan thoDi milega. albam ke pahle prishth par moti jaise akshron mein uske mama ne likh bheja tha—
e. em. nagrajan
‘is albam ko churane vala besharm hai. albam mera hai. jab tak ghaas hari hai uupar likhe naam ko kabhi dekha hai? ye aur kamal laal, suraj jab tak poorv se uge aur pashchim mein chhipe, us anant kaal tak ke liye ye albam mera hai, rahega. ’
laDkon ne ise apne albam ne apne albam mein utaar liya. laDakiyon ne jhat kapiyon aur kitabon mein teep liya.
“tum log ye naqal kyon karte ho? nakalchi kahin ke”, rajappa ne laDkon ko ghuDki di. sab chup rahe par krishnan se nahin raha gaya.
“ja, ja. jalta hai, iirshyalu kahin ka. ”
“main kahe ko jalun? jale tera khanadan. mera albam uske albam se kahin baDa hai. ” rajappa ne shaan baghari.
“are, uske paas jo tikten hain, wo hain kahin tere paas? sab kyon? bas ek inDoneshiya ka tikat dikha do. are, pani bharoge, haan. ” krishnan ne chheDa.
“par mere paas jo tikat hai, wo kahan hai uske paas?” rajappa ne phir lalkara.
“uske paas jo tikat hai vahi dikha do. ” krishnan bhi kam nahin tha.
“theek hai, das rupe ki shart. mere vale tikat dikha do. ”
rajappa ko laga, apne albam ke bare mein baten karna faltu hai. usne kitni mehnat aur lagan se tikat batore hain. singapur se aaye is ek parsal ne nagrajan ko ek hi din mein mashhur kar diya. par donon mein kitna antar hai! ye laDke kya samjhenge! rajappa man hi man kuDh raha tha. skool jana ab khalne laga tha aur laDkon ke samne jane mein sharm aane lagi. amtaur par shanivar aur ravivar ko tikat ki khoj mein laga rahta, parantu ab ghar ghusa ho gaya tha. din mein kai baar albam ko palatta rahta. raat ko let jata. sahsa jane kya sochkar uthta, trank kholkar albam nikalta aur ek baar pura dekh jata. use albam se chiDh hone lagi thi. use laga, albam vakii kuDa ho gaya hai.
us din shaam usne jaise tay kar liya tha, wo nagrajan ke ghar gaya. ab koi kitna apman sahe! nagrajan ke haath achanak ek albam laga hai, bas yahi na. wo kya jane tikat kaise jama kiye jate hain. ek ek tikat ki kya kimat hoti hai, wo bhala kya samjhe! sochta hoga tikat jitna baDa hoga, wo utna hi kimti hoga. ya phir sochta hoga, baDe desh ka tikat kimti hoga. wo bhala kya samjhe!
uske paas jitne bhi faltu tikat hain unhen tarka kar, usse achchhe tikat jhaaD lega. kitnon ko to usne yoon hi ullu banaya hai. kitni chalbazi karni paDti hai. nagrajan bhala kis khet ki muli hai?
rajappa nagrajan ke ghar pahunchakar uupar gaya. chunki wo aksar aaya jaya karta tha, so kisi ne nahin toka. uupar pahunchakar wo nagrajan ki mez ke paas paDi kursi par baith gaya. kuch der baad nagrajan ki bahan kamakshi uupar aai.
“bhaiya shahr gaya hai. are haan, tumne bhaiya ka albam dekha?” usne puchha.
“hoon”, rajappa ko haan kahne mein hekDi ho rahi thi.
“bahut sundar albam hai na? suna hai skool bhar mein kisi ke bhi paas itna baDa albam nahin
hai. ”
“tumse kisne kaha?”
“bhaiya ne. ” wo kuDh gaya.
“baDe se kya matlab hua? akar mein baDa hua to albam baDa ho gaya?” uski chiDchiDahat saaf thi.
kamakshi kuch der tak vahin rahi. phir niche chali gai. rajappa mez par bikhri kitabon ko tatolne laga. achanak uska haath daraj ke tale se takra gaya. usne tale ko khinchkar dekha. band tha, kyon na use kholkar dekh liya jaye. mez par se usne chabi DhoonDh nikali. siDhiyon ke paas jakar usne ek baar jhankakar dekha. phir jaldi mein daraz kholi. albam uupar hi rakha hua tha. pahla prishth khola. un vakyon ko usne dobara paDha. uska dil tezi se dhaDakne laga. albam ko jhat kamiz ke niche khons liya aur daraz band kar diya. siDhiyan utarkar ghar ki or bhaga.
ghar jakar sidha pustak ki almari ke paas gaya aur pichhe ki or albam chhipa diya. usne bahar aakar jhanka. pura sharir jaise jalne laga tha. gala sookh raha tha aur chehra tamtamane laga tha.
“suna tumne, nagrajan ka albam kho gaya. hum donon shahr ge hue the. lautkar dekha to albam ghayab!”
rajappa chup raha. usne apu ko kisi tarah tala. uske jate hi usne jhat kamre ka darvaja bhiDa liya aur almari ke pichhe se albam nikalkar dekha. use phir chhipa diya. Dar tha kahin koi dekh na le.
raat mein khana nahin khaya. pet jaise bhara hua tha. sara ghar chintit ho gaya. uska chehra bhayanak ho gaya tha.
raat, usne sone ki koshish ki par neend nahin aai. albam sirhane takiye ke niche rakhkar so gaya.
subah apu dobara aaya. rajappa tab bhi bistar par baitha tha. apu subah nagrajan ke ghar hokar aaya tha. “kal tum uske ghar ge the?” apu ne puchha. rajappa ki saans jaise uupar ki uupar aur niche ki niche rah gai. phir sir hila diya. wo jis tarah chahe soch le.
“kamakshi ne kaha tha ki hamare jane ke baad khali tum vahan aaye the. ” apu bola. rajappa ko samajhte der nahin lagi ki ab sab us par shak karne lage hain.
“kal raat se nagrajan lagatar roe ja raha hai. uske papa shayad pulis ko khabar den. ” apu ne phir kaha.
rajappa phir bhi chup raha.
“uske papa Di. es. pi. ke daftar mein hi to kaam karte hain. bas wo palak jhapak den aur pulis ki fauj hazir. ” apu jaise aag mein ghi Daal raha tha. ye to bhala hua ki apu ka bhai use DhunDhata hua aa gaya aur apu chalta bana.
rajappa ke papa daftar chale ge the. bahar ka kivaD band tha. rajappa abhi tak bistar par baitha hua tha. aadha ghanta guzar gaya aur wo usi tarah baitha raha.
tabhi bahar ki sankal khatki.
‘pulis’, rajappa budabudaya.
bhitar sankal lagi thi. darvaza khatakne ki avaj tez ho gai. rajappa ne takiye ke niche se albam uthaya aur uupar bhaga. almari ke pichhe chhipa de? nahin. pulis ne agar talashi li to pakDa jayega. albam ko kamiz ke niche chhipakar wo niche aa gaya. bahar ka darvaza ab bhi baj raha tha.
“kaun hai? are darvaza kyon nahin kholta?” amma bhitar se chillai. thoDi der aur hui to amma khud hi uthkar chali ayengi.
rajappa pichhvaDe ki or bhaga. jaldi se bathrum mein ghuskar darvaza band kar liya. amma ne angithi par garm pani ki degchi chaDha rakhi thi. usne albam ko angithi mein Daal diya. albam jalne laga. kitne pyare tikat the. rajappa ki ankhon mein ansu aa ge.
tabhi amma ki avaz aai, “jaldi se aa to nahakar. nagrajan tujhe DhunDhata hua aaya hai. ” rajappa ne nikar utaar di aur gila tauliya lapetkar bahar aa gaya. kapDe badalkar wo uupar gaya. nagrajan kursi par baitha hua tha. use dekhte hi bola, “mera albam kho gaya hai yaar. ” uska chehra utra hua tha. kafi rokar aaya tha shayad.
“kahan rakha tha tumne?” rajappa ne puchha.
“shayad daraz mein. shahr se lauta to ghayab. ”
nagrajan ki ankhon mein ansu aa ge. rajappa se chehra bachakar usne ankhen ponchh leen.
“ro mat yaar. ” rajappa ne use puchkara. wo phaphak phaphak kar ro diya.
rajappa jhat niche utarkar gaya. ek minat mein wo uupar nagrajan ke samne tha. uske haath mein uska apna albam tha.
“lo ye raha mera albam. ab ise tum rakh lo. aise kyon kyon dekh rahe ho. mazak nahin kar raha. sach kahta hoon, ise ab tum rakh lo. ”
“bahla rahe ho yaar. ”
nagrajan ko jaise yaqin nahin aaya.
“nahin yaar. sachmuch tumko de raha hoon. rakh lo. ”
rajappa bhala apna albam use de de! kaisa chamatkar hai! nagrajan ko ab bhi yaqin nahin aa raha tha. par rajappa apni baat baar baar dohra raha tha. uska gala bhar aaya tha.
“theek hai, main ise rakh leta hoon. par tum kya karoge?”
“mujhe nahin chahiye. ”
“kyon, tumhein ek bhi tikat nahin chahiye?”
“nahin. ”
“par tum kaise rahoge baghair kisi tikat ke?”
“rota kyon hai yaar!”
“le, is albam ko tu hi rakh le. itni mehnat ki hai tune. ” nagrajan bola.
“nahin, tum rakh lo. lekar chale jao. jao, chale jao yahan se. ” wo chikha aur phoot phutkar ro diya.
nagrajan ki samajh mein kuch nahin aaya. wo albam lekar niche utar gaya. kamiz se ankhen ponchhta hua rajappa bhi niche uttar aaya. donon saath saath darvaze tak aaye.
“bahut bahut dhanyavad. main ghar chalun?” nagrajan siDhiyan uttarne laga.
“suno raju”, rajappa ne pukara. nagrajan ne use palatkar dekha. “albam de do. main aaj raat ji bharkar ise dekhana chahta hoon. kal subah tumhein de jaunga. ”
“theek hai. ” nagrajan ne use albam lauta di aur chala gaya.
rajappa uupar aaya. usne darvaza band kar liya aur albam ko chhati se lagakar phoot phutkar ro diya.
ab rajappa ko koi nahin puchhta. ajkal sab ke sab nagrajan ko ghere rahte. ‘nagrajan ghamanDi ho gaya hai’, rajappa sare laDkon mein kahta phirta. par laDke bhala kahan uski baton par dhyaan dete! nagrajan ke mama ji ne singapur se ek albam bhijvaya tha. wo laDkon ko dikhaya karta. subah pahli ghanti ke bajne tak sabhi laDke nagrajan ko gherkar albam dekha karte. aadhi chhutti ke vaqt bhi uske asapas laDkon ka jamghat laga rahta. kai log toliyon mein uske ghar tak ho aaye. nagrajan shantipurvak sabhi ko apna albam dikhata, par kisi ko haath nahin lagane deta. albam ko god mein rakh leta aur ek ek panna palatta, laDke bas dekhkar khush hote.
aur to aur kaksha ki laDkiyan bhi us albam ko dekhne ke liye utsuk theen. parvati laDakiyon ki aguva bani aur albam mangne aai. laDakiyon mein vahi tez tarrar mani jati thi. nagrajan ne kavar chaDhakar albam use diya. shaam tak laDkiyan albam dekhti rahin phir use vapas kar diya.
ab rajappa ke albam ko koi puchhne vala nahin tha. vakii uski shaan ab ghat gai thi. rajappa ke albam ki, laDkon mein kafi tarif rahi thi. madhumakkhi ki tarah usne ek ek karke tikat jama kiye the. use to bas ek yahi dhun savar thi. subah aath baje wo ghar se nikal paDta. tikat jama karne vale sare laDkon ke chakkar lagata. do austreliya ke tikton ke badle ek phinlainD ka tikat leta. do pakistan ke badle ek roos ka. bas shaam, jaise hi ghar lautta, basta kone mein patakkar amma se chabena lekar nikar ki jeb mein bhar leta aur khaDe khaDe kaufi pikar nikal jata. chaar meel door apne dost ke ghar se kanaDa ka tikat lene pagDanDiyon mein hokar bhagta. skool bhar mein uska albam sabse baDa tha. sarpanch ke laDke ne uske albam ko pachchis rupe mein kharidna chaha tha, par rajappa nahin mana. ‘ghamanDi kahin ka’, rajappa baDabDaya tha. phir usne tikha javab diya tha, “tumhare ghar mein jo pyari bachchi hai na, use de do na tees rupe mein. ” sare laDke thahaka markar hans paDe the. par ab? koi uske albam ki baat tak nahin karta. aur to aur ab sab uske albam ki tulna nagrajan ke albam se karne lage hain. sab kahte hain rajappa ka albam phisaDDi hai.
par rajappa ne nagrajan ke albam ko dekhne ki ichchha kabhi nahin prakat ki. lekin jab dusre laDke use dekh rahe hote to wo nichi ankhon se dekh leta. sachmuch nagrajan ka albam behad pyara tha. par rajappa ke paas jitne tikat the utne nagrajan ke albam mein nahin the. par khud uska albam hi kitna pyara tha. use chhu lena hi koi baDi baat thi.
is tarah ka albam yahan thoDi milega. albam ke pahle prishth par moti jaise akshron mein uske mama ne likh bheja tha—
e. em. nagrajan
‘is albam ko churane vala besharm hai. albam mera hai. jab tak ghaas hari hai uupar likhe naam ko kabhi dekha hai? ye aur kamal laal, suraj jab tak poorv se uge aur pashchim mein chhipe, us anant kaal tak ke liye ye albam mera hai, rahega. ’
laDkon ne ise apne albam ne apne albam mein utaar liya. laDakiyon ne jhat kapiyon aur kitabon mein teep liya.
“tum log ye naqal kyon karte ho? nakalchi kahin ke”, rajappa ne laDkon ko ghuDki di. sab chup rahe par krishnan se nahin raha gaya.
“ja, ja. jalta hai, iirshyalu kahin ka. ”
“main kahe ko jalun? jale tera khanadan. mera albam uske albam se kahin baDa hai. ” rajappa ne shaan baghari.
“are, uske paas jo tikten hain, wo hain kahin tere paas? sab kyon? bas ek inDoneshiya ka tikat dikha do. are, pani bharoge, haan. ” krishnan ne chheDa.
“par mere paas jo tikat hai, wo kahan hai uske paas?” rajappa ne phir lalkara.
“uske paas jo tikat hai vahi dikha do. ” krishnan bhi kam nahin tha.
“theek hai, das rupe ki shart. mere vale tikat dikha do. ”
rajappa ko laga, apne albam ke bare mein baten karna faltu hai. usne kitni mehnat aur lagan se tikat batore hain. singapur se aaye is ek parsal ne nagrajan ko ek hi din mein mashhur kar diya. par donon mein kitna antar hai! ye laDke kya samjhenge! rajappa man hi man kuDh raha tha. skool jana ab khalne laga tha aur laDkon ke samne jane mein sharm aane lagi. amtaur par shanivar aur ravivar ko tikat ki khoj mein laga rahta, parantu ab ghar ghusa ho gaya tha. din mein kai baar albam ko palatta rahta. raat ko let jata. sahsa jane kya sochkar uthta, trank kholkar albam nikalta aur ek baar pura dekh jata. use albam se chiDh hone lagi thi. use laga, albam vakii kuDa ho gaya hai.
us din shaam usne jaise tay kar liya tha, wo nagrajan ke ghar gaya. ab koi kitna apman sahe! nagrajan ke haath achanak ek albam laga hai, bas yahi na. wo kya jane tikat kaise jama kiye jate hain. ek ek tikat ki kya kimat hoti hai, wo bhala kya samjhe! sochta hoga tikat jitna baDa hoga, wo utna hi kimti hoga. ya phir sochta hoga, baDe desh ka tikat kimti hoga. wo bhala kya samjhe!
uske paas jitne bhi faltu tikat hain unhen tarka kar, usse achchhe tikat jhaaD lega. kitnon ko to usne yoon hi ullu banaya hai. kitni chalbazi karni paDti hai. nagrajan bhala kis khet ki muli hai?
rajappa nagrajan ke ghar pahunchakar uupar gaya. chunki wo aksar aaya jaya karta tha, so kisi ne nahin toka. uupar pahunchakar wo nagrajan ki mez ke paas paDi kursi par baith gaya. kuch der baad nagrajan ki bahan kamakshi uupar aai.
“bhaiya shahr gaya hai. are haan, tumne bhaiya ka albam dekha?” usne puchha.
“hoon”, rajappa ko haan kahne mein hekDi ho rahi thi.
“bahut sundar albam hai na? suna hai skool bhar mein kisi ke bhi paas itna baDa albam nahin
hai. ”
“tumse kisne kaha?”
“bhaiya ne. ” wo kuDh gaya.
“baDe se kya matlab hua? akar mein baDa hua to albam baDa ho gaya?” uski chiDchiDahat saaf thi.
kamakshi kuch der tak vahin rahi. phir niche chali gai. rajappa mez par bikhri kitabon ko tatolne laga. achanak uska haath daraj ke tale se takra gaya. usne tale ko khinchkar dekha. band tha, kyon na use kholkar dekh liya jaye. mez par se usne chabi DhoonDh nikali. siDhiyon ke paas jakar usne ek baar jhankakar dekha. phir jaldi mein daraz kholi. albam uupar hi rakha hua tha. pahla prishth khola. un vakyon ko usne dobara paDha. uska dil tezi se dhaDakne laga. albam ko jhat kamiz ke niche khons liya aur daraz band kar diya. siDhiyan utarkar ghar ki or bhaga.
ghar jakar sidha pustak ki almari ke paas gaya aur pichhe ki or albam chhipa diya. usne bahar aakar jhanka. pura sharir jaise jalne laga tha. gala sookh raha tha aur chehra tamtamane laga tha.
“suna tumne, nagrajan ka albam kho gaya. hum donon shahr ge hue the. lautkar dekha to albam ghayab!”
rajappa chup raha. usne apu ko kisi tarah tala. uske jate hi usne jhat kamre ka darvaja bhiDa liya aur almari ke pichhe se albam nikalkar dekha. use phir chhipa diya. Dar tha kahin koi dekh na le.
raat mein khana nahin khaya. pet jaise bhara hua tha. sara ghar chintit ho gaya. uska chehra bhayanak ho gaya tha.
raat, usne sone ki koshish ki par neend nahin aai. albam sirhane takiye ke niche rakhkar so gaya.
subah apu dobara aaya. rajappa tab bhi bistar par baitha tha. apu subah nagrajan ke ghar hokar aaya tha. “kal tum uske ghar ge the?” apu ne puchha. rajappa ki saans jaise uupar ki uupar aur niche ki niche rah gai. phir sir hila diya. wo jis tarah chahe soch le.
“kamakshi ne kaha tha ki hamare jane ke baad khali tum vahan aaye the. ” apu bola. rajappa ko samajhte der nahin lagi ki ab sab us par shak karne lage hain.
“kal raat se nagrajan lagatar roe ja raha hai. uske papa shayad pulis ko khabar den. ” apu ne phir kaha.
rajappa phir bhi chup raha.
“uske papa Di. es. pi. ke daftar mein hi to kaam karte hain. bas wo palak jhapak den aur pulis ki fauj hazir. ” apu jaise aag mein ghi Daal raha tha. ye to bhala hua ki apu ka bhai use DhunDhata hua aa gaya aur apu chalta bana.
rajappa ke papa daftar chale ge the. bahar ka kivaD band tha. rajappa abhi tak bistar par baitha hua tha. aadha ghanta guzar gaya aur wo usi tarah baitha raha.
tabhi bahar ki sankal khatki.
‘pulis’, rajappa budabudaya.
bhitar sankal lagi thi. darvaza khatakne ki avaj tez ho gai. rajappa ne takiye ke niche se albam uthaya aur uupar bhaga. almari ke pichhe chhipa de? nahin. pulis ne agar talashi li to pakDa jayega. albam ko kamiz ke niche chhipakar wo niche aa gaya. bahar ka darvaza ab bhi baj raha tha.
“kaun hai? are darvaza kyon nahin kholta?” amma bhitar se chillai. thoDi der aur hui to amma khud hi uthkar chali ayengi.
rajappa pichhvaDe ki or bhaga. jaldi se bathrum mein ghuskar darvaza band kar liya. amma ne angithi par garm pani ki degchi chaDha rakhi thi. usne albam ko angithi mein Daal diya. albam jalne laga. kitne pyare tikat the. rajappa ki ankhon mein ansu aa ge.
tabhi amma ki avaz aai, “jaldi se aa to nahakar. nagrajan tujhe DhunDhata hua aaya hai. ” rajappa ne nikar utaar di aur gila tauliya lapetkar bahar aa gaya. kapDe badalkar wo uupar gaya. nagrajan kursi par baitha hua tha. use dekhte hi bola, “mera albam kho gaya hai yaar. ” uska chehra utra hua tha. kafi rokar aaya tha shayad.
“kahan rakha tha tumne?” rajappa ne puchha.
“shayad daraz mein. shahr se lauta to ghayab. ”
nagrajan ki ankhon mein ansu aa ge. rajappa se chehra bachakar usne ankhen ponchh leen.
“ro mat yaar. ” rajappa ne use puchkara. wo phaphak phaphak kar ro diya.
rajappa jhat niche utarkar gaya. ek minat mein wo uupar nagrajan ke samne tha. uske haath mein uska apna albam tha.
“lo ye raha mera albam. ab ise tum rakh lo. aise kyon kyon dekh rahe ho. mazak nahin kar raha. sach kahta hoon, ise ab tum rakh lo. ”
“bahla rahe ho yaar. ”
nagrajan ko jaise yaqin nahin aaya.
“nahin yaar. sachmuch tumko de raha hoon. rakh lo. ”
rajappa bhala apna albam use de de! kaisa chamatkar hai! nagrajan ko ab bhi yaqin nahin aa raha tha. par rajappa apni baat baar baar dohra raha tha. uska gala bhar aaya tha.
“theek hai, main ise rakh leta hoon. par tum kya karoge?”
“mujhe nahin chahiye. ”
“kyon, tumhein ek bhi tikat nahin chahiye?”
“nahin. ”
“par tum kaise rahoge baghair kisi tikat ke?”
“rota kyon hai yaar!”
“le, is albam ko tu hi rakh le. itni mehnat ki hai tune. ” nagrajan bola.
“nahin, tum rakh lo. lekar chale jao. jao, chale jao yahan se. ” wo chikha aur phoot phutkar ro diya.
nagrajan ki samajh mein kuch nahin aaya. wo albam lekar niche utar gaya. kamiz se ankhen ponchhta hua rajappa bhi niche uttar aaya. donon saath saath darvaze tak aaye.
“bahut bahut dhanyavad. main ghar chalun?” nagrajan siDhiyan uttarne laga.
“suno raju”, rajappa ne pukara. nagrajan ne use palatkar dekha. “albam de do. main aaj raat ji bharkar ise dekhana chahta hoon. kal subah tumhein de jaunga. ”
“theek hai. ” nagrajan ne use albam lauta di aur chala gaya.
rajappa uupar aaya. usne darvaza band kar liya aur albam ko chhati se lagakar phoot phutkar ro diya.
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