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ग़ुब्बारे पर चीता

gubbare par chita

प्रेमचंद

प्रेमचंद

ग़ुब्बारे पर चीता

प्रेमचंद

और अधिकप्रेमचंद

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    “मैं तो ज़रूर जाऊँगा, चाहे कोई छुट्टी दे या दे।”

    बलदेव सब लड़कों को सर्कस देखने चलने की सलाह दे रहा है।

    बात यह थी कि स्कूल के पास एक मैदान में सर्कस पार्टी आई हुई थी। सारे शहर की दीवारों पर उसके विज्ञापन चिपका दिए गए थे। विज्ञापन में तरह-तरह के जंगली जानवर अजीब-अजीब काम करते दिखाए गए थे। लड़के तमाशा देखने के बड़ा लिए ललचा रहे थे। पहला तमाशा रात को शुरू होने वाला था मगर हेडमास्टर साहब ने लड़कों को वहाँ जाने की मनाही कर दी थी। इश्तिहार आकर्षक था—

    ‘आ गया है! गया है!’

    ‘जिस तमाशे की आप लोग भूख-प्यास छोड़कर इंतज़ार कर रहे थे, वही बंबई सर्कस गया है।’

    ‘आइए और तमाशे का आनंद उठाइए। बड़े-बड़े खेलों के सिवा एक खेल और भी दिखाया जाएगा, जो किसी ने देखा होगा और सुना होगा।’

    लड़कों का मन तो सर्कस में लगा हुआ था। सामने किताबें खोले जानवरों की चर्चा कर रहे थे। क्योंकर शेर और बकरी एक बर्तन में पानी पिएँगे! और इतना बड़ा हाथी पैरगाड़ी पर कैसे बैठेगा? पैरगाड़ी के पहिए बहुत बड़े-बड़े होंगे! तोता बंदूक़ छोड़ेगा! और बनमानुष बाबू बनकर मेज़ पर बैठेगा!

    बलदेव सबसे पीछे बैठा हुआ अपनी हिसाब की कॉपी पर शेर की तस्वीर खींच रहा था और सोच रहा था कि कल शनीचर नहीं, इतवार होता तो कैसा मज़ा आता।

    बलदेव ने बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे जमा किए थे। मना रहा था कि कब छुट्टी हो और कब भागूँ। हेडमास्टर साहब का हुक्म सुनकर वह जामे से बाहर हो गया। छुट्टी होते ही वह बाहर मैदान में निकल आया और लड़कों से बोला, “मैं तो जाऊँगा, ज़रूर जाऊँगा चाहे कोई छुट्टी दे या दे।” मगर और लड़के इतने साहसी थे। कोई उसके साथ जाने पर राज़ी हुआ। बलदेव अब अकेला पड़ गया। मगर वह बड़ा ज़िद्दी था, दिल में जो बात बैठ जाती, उसे पूरा करके ही छोड़ता था। शनीचर को और लड़के तो मास्टर के साथ गेंद खेलने चले गए, बलदेव चुपके से खिसककर सर्कस की ओर चला। वहाँ पहुँचते ही उसने जानवरों को देखने के लिए एक आने का टिकट ख़रीदा और जानवरों को देखने लगा। इन जानवरों को देखकर बलदेव मन में बहुत झुँझलाया वह शेर है! मालूम होता है महीनों से इसे मलेरिया बुख़ार रहा हो। वह भला क्या बीस हाथ ऊँचा उछलेगा! और यह सुंदर-वन का बाघ है? जैसे किसी ने इसका ख़ून चूस लिया हो। मुर्दे की तरह पड़ा है। वाह रे भालू! यह भालू है या सूअर और वह भी काना, जैसे मौत के चँगुल से निकल भागा हो। अलबत्ता चीता कुछ जानदार है और एक तीन टाँग का कुत्ता भी।

    यह कहकर बड़े ज़ोर से हँसा। उसकी एक टाँग किसने काट ली? दुमकटे कुत्ते तो देखे थे, पैरकटा कुत्ता आज ही देखा! और यह दौड़ेगा कैसे?

    उसे अफ़सोस हुआ कि गेंद छोड़कर यहाँ नाहक आया। एक आने पैसे भी गए। इतने में एक बड़ा भारी ग़ुब्बारा दिखाई दिया। उसके पास एक आदमी खड़ा चिल्ला रहा था—‘आओ, चले आओ, चार आने में आसमान की सैर करो।’

    अभी वह उसी तरफ़ देख रहा था कि अचानक शोर सुनकर वह चौंक पड़ा। पीछे फिरकर देखा तो मारे डर के उसका दिल काँप उठा। वही चीता जाने किस तरह पिंजरे से निकलकर उसी की तरफ़ दौड़ा चला रहा था। बलदेव जान लेकर भागा।

    इतने में एक और तमाशा हुआ। इधर से चीता ग़ुब्बारे की तरफ़ दौड़ा। जो आदमी ग़ुब्बारे की रस्सी पकड़े हुए था, वह चीते को अपनी तरफ़ आता देखकर बेतहाशा भागा। बलदेव को और कुछ सूझा तो वह झट से ग़ुब्बारे पर चढ़ गया। चीता भी शायद उसे पकड़ने के लिए कूदकर ग़ुब्बारे पर जा पहुँचा। ग़ुब्बारे की रस्सी छोड़कर तो वह आदमी पहले ही भाग गया था। वह ग़ुब्बारा उड़ने के लिए बिल्कुल तैयार था। रस्सी छूटते ही वह ऊपर उठा। बलदेव और चीता दोनों ऊपर उठ गए। बात की बात में ग़ुब्बारा ताड़ के बराबर जा पहुँचा। बलदेव ने एक बार नीचे देखा तो लोग चिल्ला-चिल्लाकर उसे बचने के उपाय बतलाने लगे। मगर बलदेव के तो होश उड़े हुए थे। उसकी समझ में कोई बात आई ज्यों-ज्यों ग़ुब्बारा ऊपर उठता जाता था चीते की जान निकली जाती थी। उसकी समझ में आता था कि कौन मुझे आसमान की ओर लिए जाता है। वह चाहता तो बड़ी आसानी से बलदेव को चट कर जाता, मगर उसे अपनी ही जान की फ़िक्र पड़ी हुई थी। सारा चीतापन भूल गया था। आख़िर वह इतना डरा कि उसके हाथ-पाँव फूल गए और वह फिसलकर उलटा नीचे गिरा। ज़मीन पर गिरते ही उसकी हड्डी पसली चूर-चूर हो गई।

    अब तक तो बलदेव को चीते का डर था। अब यह फ़िक्र हुई कि ग़ुब्बारा मुझे कहाँ लिए जाता है। वह एक बार घंटाघर की मीनार पर चढ़ा था। ऊपर से उसे नीचे के आदमी खिलौनों से और घर घरौदों से लगते थे। मगर इस वक़्त वह उससे कई गुना ऊँचा था। एकाएक उसे एक बात याद गई। उसने किसी किताब में पढ़ा था कि ग़ुब्बारे का मुँह खोल देने से गैस निकल जाती है और ग़ुब्बारा नीचे उतर आता है। मगर उसे यह मालूम था कि मुँह बहुत धीरे-धीरे खोलना चाहिए। उसने एकदम उसका मुँह खोल दिया और ग़ुब्बारा बड़े ज़ोर से गिरने लगा। जब वह ज़मीन से थोड़ी ऊँचाई पर गया तो उसने नीचे की तरफ़ देखा, दरिया बह रहा था। फिर तो वह रस्सी छोड़कर दरिया में कूद पड़ा और तैरकर निकल आया।

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    प्रेमचंद

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    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर्वा (भाग-2) (पृष्ठ 17-20)
    • रचनाकार : प्रेमचंद
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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