कोई उत्तर नहीं मिला। आवाज़ आई— “हत्यारिन! तुझे कतल कर दूँगा!”
स्त्री का स्वर आया— “करके तो देख! तेरे कुनबे को डायन बनके न खा गई, निपूते!”
डोड़ी बैठा न रह सका। बाहर आया।
“क्या करता है, क्या करता है, निहाल?”— डोड़ी बढ़कर चिल्लाया— “आख़िर तेरी मैया है।”
“मैया है!”— कहकर निहाल हट गया।
“और तू हाथ उठाके तो देख!” स्त्री ने फुफकारा— “कढ़ीखाए! तेरी सींक पर बिल्लियाँ चलवा दूँ! समझ रखियो! मत जान रखियो! हाँ! तेरी आसरतू नहीं हूँ।”
“भाभी!”— डोड़ी ने कहा— “क्या बकती है? होश में आ!”
वह आगे बढ़ा। उसने मुड़कर कहा— “जाओ सब। तुम सब लोग जाओ!”
निहाल हट गया। उसके साथ ही सब लोग इधर-उधर हो गए।
डोड़ी निस्तब्ध, छप्पर के नीचे लगा बरैंडा पकड़े खड़ा रहा। स्त्री वहीं बिफरी हुई-सी बैठी रही। उसकी आँखों में आग-सी जल रही थी।
उसने कहा— “मैं जानती हूँ, निहाल में इतनी हिम्मत नहीं। यह सब तैने किया है, देवर!”
“हाँ गदल!”— डोड़ी ने धीरे से कहा— “मैंने ही किया है।”
गदल सिमट गई। कहा— “क्यों, तुझे क्या ज़रूरत थी?”
डोड़ी कह नहीं सका। वह ऊपर से नीचे तक झनझना उठा। पचास साल का वह लंबा खारी गूजर, जिसकी मूँछें खिचड़ी हो चुकी थीं, छप्पर तक पहुँचा-सा लगता था। उसके कंधे की चौड़ी हड्डियों पर अब दीए का हल्का प्रकाश पड़ रहा था, उसके शरीर पर मोटी फतुही थी और उसकी धोती घुटनों के नीचे उतरने के पहले ही झूल देकर चुस्त-सी ऊपर की ओर लौट जाती थी। उसका हाथ कर्रा था और वह इस समय निस्तब्ध खड़ा रहा।
स्त्री उठी। वह लगभग 45 वर्षीया थी, और उसका रंग गोरा होने पर भी आयु के धुँधलके में अब मैला-सा दिखने लगा था। उसको देखकर लगता था कि वह फुर्तीली थी। जीवन-भर कठोर मेहनत करने से, उसकी गठन के ढीले पड़ने पर भी उसकी फूर्ती अभी तक मौजूद थी।
“तुझे शरम नहीं आती, गदल?”— डोड़ी ने पूछा।
“क्यों, शरम क्यों आएगी?”— गदल ने पूछा।
डोड़ी क्षणभर सकते में पड़ गया। भीतर के चौबारे से आवाज़ आई— “शरम क्यों आएगी इसे? शरम तो उसे आए, जिसकी आँखों में हया बची हो।”
“निहाल!”— डोड़ी चिल्लाया— “तू चुप रह!”
फिर आवाज़ बंद हो गई।
गदल ने कहा— “मुझे क्यों बुलाया है तूने?”
डोड़ी ने इस बात का उत्तर नहीं दिया। पूछा— “रोटी खाई है?”
“नहीं, “ गदल ने कहा— “खाती भी कब? कमबख़्त रास्ते में मिले। खेत होकर लौट रही थी। रास्ते में अरने-कंडे बीनकर संझा के लिए ले जा रही थी।”
डोड़ी ने पुकारा— “निहाल! बहू से कह, अपनी सास को रोटी दे जाए!”
भीतर से किसी स्त्री की ढीठ आवाज़ सुनाई दी— “अरे, अब लौहारों की बैयर आई हैं; उन्हें क्यों ग़रीब खारियों की रोटी भाएगी?”
कुछ स्त्रियों ने ठहाका लगाया।
निहाल चिल्लाया— “सुन ले, परमेसुरी, जगहँसाई हो रही है। खारियों की तो तूने नाक कटाकर छोड़ी।”
(दो)
गुन्ना मरा, तो पचपन बरस का था। गदल विधवा हो गई। गदल का बड़ा बेटा निहाल तीस वर्ष के पास पहुँच रहा था। उसकी बहू दुल्ला का बड़ा बेटा सात का, दूसरा चार का और तीसरी छोरी थी जो उसकी गोद में थी। निहाल से छोटी तरा-ऊपर की दो बहिनों थी चंपा और चमेली, जिसका क्रमशः झाज और विश्वारा गाँवों में ब्याह हुआ था। आज उनकी गोदियों से उनके लाल उतरकर धूल में घुटुरुवन चलने लगे थे। अंतिम पुत्र नारायन अब बाईस का था, जिसकी बहू दूसरे बच्चे की माँ बनने वाली थी। ऐसी गदल, इतना बड़ा परिवार छोड़कर चली गई थी और बत्तीस साल के एक लौहारे गूजर के यहाँ जा बैठी थी।
डोड़ी गुन्ना का सगा भाई था। बहू थी, बच्चे भी हुए। सब मर गए। अपनी जगह अकेला रह गया। गुन्ना ने बड़ी-बड़ी कही, पर वह फिर अकेला ही रहा, उसने ब्याह नहीं किया, गदल ही के चूल्हे पर खाता रहा। कमाकर लाता, वो उसी को दे देता, उसी के बच्चों को अपना मानता, कभी उसने अलगाव नहीं किया। निहाल अपने चाचा पर जान देता था। और फिर खारी गूजर अपने को लौहारों से ऊँच समझते थे।
गदल जिसके घर बैठी थी, उसका पूरा कुनबा था। उसने गदल की उम्र नहीं देखी, यह देखा कि खारी औरत है, पड़ी रहेगी। चूल्हे पर दम फूँकने वाली की ज़रूरत भी थी।
आज ही गदल सवेरे गई थी और शाम को उसके बेटे उसे फिर बाँध लाए थे। उसके नए पति मौनी को अभी पता भी नहीं हुआ होगा। मौनी रँडुआ था। उसकी भाभी जो पाँव फैलाकर मटक-मटककर छाछ बिलोती थी, दुल्लो सुनेगी तो क्या कहेगी?
गदल का मन विक्षोभ से भर उठा।
(तीन)
आधी रात हो चली थी। गदल वहीं पड़ी थी। डोड़ी वहीं बैठा चिलम फूँक रहा था।
उस सन्नाटे में डोड़ी ने धीरे से कहा— “गदल!”
“क्या है?”— गदल ने हौले से कहा।
“तू चली गई न?”
गदल बोली नहीं। डोड़ी ने फिर कहा— “सब चले जाते हैं। एक दिन तेरी देवरानी चली गई, फिर एक-एक करके तेरे भतीजे भी चले गए। भैया भी चला गया। पर तू जैसी गई; वैसे तो कोई भी नहीं गया। जग हँसता है, जानती है?”
गदल बुरबुराई— “जग हँसाई से मैं नहीं डरती देवर! जब चौदह की थी, तब तेरा भैया मुझे गाँव में देख गया था। तू उसके साथ तेल पिया लट्ठ लेकर मुझे लेने आया था न, तब? मैं आई थी कि नहीं? तू सोचता होगा कि गदल की उमर गई, अब उसे खसम की क्या ज़रूरत है? पर जानता है, मैं क्यों गई?”
“नहीं।”
“तू तो बस यही सोच करता होगा कि गदल गई, अब पहले-सा रोटियों का आराम नहीं रहा। बहुएँ नहीं करेंगी तेरी चाकरी देवर! तूने भाई से और मुझसे निभाई, तो मैंने भी तुझे अपना ही समझा! बोल झूठ कहती हूँ?”
“नहीं, गदल, मैंने कब कहा!”
“बस यही बात है देवर! अब मेरा यहाँ कौन है! मेरा मरद तो मर गया। जीते-जी मैंने उसकी चाकरी की, उसके नाते उसके सब अपनों की चाकरी बजाई। पर जब मालिक ही न रहा, तो काहे को हड़कंप उठाऊँ? यह लड़के, यह बहुएँ! मैं इनकी ग़ुलामी नहीं करूँगी!”
“पर क्या यह सब तेरी औलाद नहीं बावरी। बिल्ली तक अपने जायों के लिए सात घर उलट-फेर करती है, फिर तू तो मानुष है। तेरी माया-ममता कहाँ चली गई?”
“देवर, तेरी कहाँ चली गई थी, तूने फिर ब्याह न किया।”
“मुझे तेरा सहारा था गदल!”
“कायर! भैया तेरा मरा, कारज किया बेटे ने और फिर जब सब हो गया तब तू मुझे रखकर घर नहीं बसा सकता था। तूने मुझे पेट के लिए पराई डयौढ़ी लँघवाई। चूल्हा मैं तब फूँकूँ, जब मेरा कोई अपना हो। ऐसी बाँदी नहीं हूँ कि मेरी कुहनी बजे, औरों के बिछिए छनके। मैं तो पेट तब भरूँगी, जब पेट का मोल कर लूँगी। समझा देवर! तूने तो नहीं कहा तब। अब कुनबे की नाक पर चोट पड़ी, तब सोचा। तब न सोचा, जब तेरी गदल को बहुओं ने आँखें तरेरकर देखा। अरे, कौन किसकी परवा करता है!”
“गदल!”— डोड़ी ने भर्राए स्वर में कहा— “मैं डरता था।”
“भला क्यों तो?”
“गदल, मैं बुढ्ढा हूँ। डरता था, जग हँसेगा। बेटे सोचेंगे, शायद चाचा का अम्माँ से पहले से नाता था, तभी चाचा ने दूसरा ब्याह नहीं किया। गदल, भैया की भी बदनामी होती न?”
“अरे चल रहने दे!” गदल ने उत्तर दिया— “भैया का बड़ा ख़याल रहा तुझे? तू नहीं था कारज में उनके क्या? मेरे सुसर मरे थे, तब तेरे भैया ने बिरादरी को जिमाकर होठों से पानी छुलाया था अपने। और तुम सबने कितने बुलाए? तू भैया दो बेटे। यही भैया हैं, यहीं बेटे हैं? पच्चीस आदमी बुलाए कुल। क्यों आख़िर? कह दिया लड़ाई में क़ानून है। पुलिस पच्चीस से ज़ियादा होते ही पकड़ ले जाएगी! डरपोक कहीं के! मैं नहीं रहती ऐसों के।”
हठात् डोड़ी का स्वर बदला। कहा— “मेरे रहते तू पराए मरद के जा बैठेगी?”
“हाँ।”
“अब के तो कह!”— वह उठकर बढ़ा।
“सौ बार कहूँ लाला!”— गदल पड़ी-पड़ी बोली। डोड़ी बढ़ा।
“बढ़!”— गदल ने फुफकारा।
डोड़ी रूक गया। गदल देखती रही। डोड़ी जाकर बैठ गया। गदल देखती रही। फिर हँसी। कहा— “तू मुझे करेगा! तुझमें हिम्मत कहाँ है देवर! मेरा नया मरद है न? मरद है। इतनी सुन तो ले भला। मुझे लगता है तेरा भइया ही फिर मिल गया है मुझे। तू?”— वह रूकी— “मरद है! अरे कोई बैयर से घिघियाता है? बढ़कर जो तू मुझे मारता, तो मैं समझती, तू अपनापा मानता हैं। मैं इस घर में रहूँगी?”
डोड़ी देखता ही रह गया। रात गहरी हो गई। गदल ने लहँगे की पर्त फैलाकर तन ढक लिया। डोड़ी ऊँघने लगा।
(चार)
ओसारे में दुल्ले ने अँगडाई लेकर कहा— “आ गई देवरानी जी! रात कहाँ रही?”
सूका डूब गया था। आकाश में पौ फट रही थी। बैल अब उठकर खड़े हो गए थे। हवा में एक ठंडक थी।
गदल ने तड़ाक से जवाब दिया— “सो, जेठानी मेरी! हुकुम नहीं चला मुझ पर। तेरी जैसी बेटियाँ है मेरी। देवर के नाते देवरानी हूँ, तेरी जूती नहीं।”
दुल्लो सकपका गई। मौनी उठा ही था। भन्नाया हुआ आया। बोला— “कहाँ गई थी?”
गदल ने घूँघट खींच लिया, पर आवाज़ नहीं बदली। कहा— “वही ले गए मुझे घेरकर! मौक़ा पाके निकल आई।”
मौनी दब गया। मौनी का बाप बाहर से ही ढोर हाँक ले गया। मौनी बढ़ा।
“कहाँ जाता है?”— गदल ने पूछा।
“खेतहार।”
“पहले मेरा फ़ैसला कर जा।”— गदल ने कहा।
दुल्लो उस अधेड़ स्त्री के नक़्शे देखकर अचरज में खड़ी रही।
“कैसा फ़ैसला?”— मौना ने पूछा। वह उस बड़ी स्त्री से दब गया।
“अब क्या तेरे घर का पीसना पीसूँगी मैं?”— गदल ने कहा— “हम तो दो जने हैं। अलग करेंगे खाएँगे।”— उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही यह कहती रही— “कमाई शामिल करो, मैं नहीं रोकती, पर भीतर तो अलग-अलग भले।”
मौनी क्षण-भर सन्नाटे में खड़ा रहा। दुल्लो तिनककर निकली। बोली— “अब चुप क्यों हो गया, देवर? बोलता क्यों नहीं? देवरानी लाया है कि सास! तेरी बोलती क्यों नहीं कढती? ऐसी न समझियो तू मुझे! रोटी तवे पर पलटते मुझे भी आँच नहीं लगती, जो मैं इसकी खरी-खोटी सुन लूँगी, समझा? मेरी अम्माँ ने भी मुझे चूल्हे की मिट्टी खा के ही जना था। हाँ!”
“अरी तो सौत!”— गदल ने पुकारा— “मिट्टी न खा के आई, सारे कुनबे को चबा जाएगी डायन। ऐसी नहीं तेरी गुड़ की भेली है, जो न खाएँगे हम, तो रोटी गले में फंदा मार जाएगी।”
मौनी उत्तर नहीं दे सका। वह बाहर चला गया। दुपहर हो गई। दुल्लो बैठी चरखा कात रही थी। नरायन ने आकर आवाज़ दी— “कोई है?”
दुल्लो ने घूँघट काढ़ लिया। पूछ— “कौन हो?”
नरायन ने ख़ून का घूँट पीकर कहा— “गदल का बेटा हूँ।”
दुल्लो घूँघट में हँसी। पूछा— “छोटे हो कि बड़े?”
“छोटा।”
“और कितने है!”
“कित्ते भी हों। तुझे क्या?”— गदल ने निकल कर कहा।
“अरे आ गई!” कहकर दुल्लो भीतर भागी।
“आने दे आज उसे। तुझे बता दूँगी जिठानी!”— गदल ने सिर हिलाकर कहा।
“अम्माँ!”— नरायन ने कहा— “यह तेरी जिठानी!”
“क्यों आया है तू? यह बता!”— गदल झल्लाई।
“दंड धरवाने आया हूँ, अम्माँ!”— कहकर नरायन आगे बैठने को बढ़ा।
“वहीं रह!”— गदल ने कहा।
उसी समय लोटा-डोर लिए मौनी लौटा। उसने देखा कि गदल ने अपने कड़े और हँसली उतारकर फेंक दी और कहा— “भर गया दंड तेरा! अब मरद का सब माल दबाकर बहुओं के कहने से बेटों ने मुझे निकाल दिया है।”
नरायन का मुँह स्याह पड़ गया। वह गहने उठाकर चला गया। मौनी मन-ही-मन शंकित-सा भीतर आया।
दुल्लो ने शिकायत की— “सुना तूने देवर! देवरानी को गहने दे दिए। घुटना आख़िर पेट को ही मुडा। चार जगह बैठेगी, तो बेटों के खेत की डौर पर डंडा-धूआ तक लग जाएँगे, पक्का चबूतरा घर के आगे बन जाएगा, समझा देती हूँ। तुम भोले-भाले ठहरे। तिरिया-चरित्तर तुम क्या जानो। धंधा है यह भी। अब कहेगी, फिर बनवा मुझे।”
गदल हँसी, कहा— “वाह जिठानी, पुराने मरद का मोल नए मरद से तेरे घर की बैयर चुकवाती होंगी। गदल तो मालकिन बनकर रहती है, समझी! बाँदी बनकर नहीं। चाकरी करूँगी तो अपने मरद की, नहीं तो बिधना मेरे ठेंगे पर। समझी! तू बीच में बोलने वाली कौन?”
दुल्लो ने रोष से देखा और पाँव पटकती चली गई।
मौनी ने देखा और कहा— “बहुत बढ़-बढ़कर बातें मत हाँक, समझ ले घर में बहू बनकर रह!”
“अरे तू तो तब पैदा भी नहीं हुआ था, बालम!”— गदल ने मुस्कुराकर कहा— “तब से मैं सब जानती हूँ। मुझे क्या सिखाता है तू? ऐसा कोई मैंने काम नहीं किया है, जो बिरादरी के नेम के बाहर हो। जब तू देखे, मैंने ऐसी कोई बात की हो, तो हज़ार बार रोक, पर सौत की ठसक नहीं सहूँगी।”
“तो बताऊँ तुझे!”— वह सिर हिलाकर बोला।
गदल हँसकर ओबरी में चली गई और काम में लग गई।
(पाँच)
ठंडी हवा तेज़ हो गई। डोड़ी चुपचाप बाहर छप्पर में बैठा हुक्का पी रहा था। पीते-पीते ऊब गया और उसने चिलम उलट दी और फिर बैठा रहा।
खेत से लौटकर निहाल ने बैल बाँधे, न्यार डाला और कहा— “काका!” डोड़ी कुछ सोच रहा था। उसने सुना नहीं।
“काका!”— निहाल ने स्वर उठाकर कहा।
“हैं!” डोड़ी चौक उठा— “क्या है? मुझसे कहा कुछ?”
“तुमसे न कहूँगा, तो कहूँगा किससे? दिन-भर तो तुम मिले नहीं। चिम्मन कढेरा कहता था, तुमने दिन-भर मनमौजी बाबा की धूनी के पास बिताया, यह सच है?”
“हाँ, बेटा, चला तो गया था।”
“क्यों गए थे भला?”
“ऐसे ही जी किया था, बेटा!”
“और क़स्बे से बनिए का आदमी आया था, घी कटऊ क्या कराया मैंने कहा नहीं है, वह बोला, ले के जाएगा। झगड़ा होते-होते बचा।”
“ऐसा नहीं करते, बेटा!”— डोड़ी ने कहा— “बौहरे से कोई झगड़ा मोल लेता है?”
निहाल ने चिलम उठाई, कंडों में से आँच बीनकर धरी और फूँक लगाता हुआ आया। कहा— “मैं तो गया नहीं। सिर फूट जाते। नरायन को भेजा था।”
“कहाँ?” डोड़ी चौंका।
“उसी कुलच्छनी कुलबोरनी के पास।”
“अपनी माँ के पास?”
“न जाने तुम्हें उससे क्या है, अब भी तुम्हें उस पर ग़ुस्सा नहीं आता। उसे माँ कहूँगा मैं?”
“पर बेटा, तू न कह, जग तो उसे तेरी माँ ही कहेगा। जब तक मरद जीता है, लोग बैयर को मरद की बहू कहकर पुकारते हैं, जब मरद मर जाता है, तो लोग उसे बेटे की अम्माँ कहकर पुकारते हैं। कोई नया नेम थोड़ी ही है।”
निहाल भुनभुनाया। कहा— “ठीक है, काका ठीक है, पर तुमने अभी तक ये तो पूछा ही नहीं कि क्यों भेजा था उसे?”
“हाँ बेटा!”— डोड़ी ने चौंककर कहा— “यह तो तूने बताया ही नहीं! बता न?”
“दंड भरवाने भेजा था। सो पंचायत जुड़वाने के पहले ही उसने तो गहने उतार फेंके।”
डोड़ी मुस्कुराया। कहा— “तो वह यह बता रही है कि घरवालों ने पंचायत भी नहीं जुड़वाई? यानी हम उसे भगाना ही चाहते थे। नरायन ले आया?”
“हाँ।”
डोड़ी सोचने लगा।
“मैं फेर आऊँ?”— निहाल ने पूछा।
“नहीं बेटा!” डोड़ी ने कहा— “वह सचमुच रूठकर ही गई है। और कोई बात नहीं है। तूने रोटी खा ली?”
“नहीं।”
“तो जा पहले खा ले।”
निहाल उठ गया, पर डोड़ी बैठा रहा। रात का अँधेरा साँझ के पीछे ऐसे आ गया, जैसे कोई पर्त उलट गई हो।
दूर ढोला गाने की आवाज़ आने लगी। डोड़ी उठा और चल पड़ा।
निहाल ने बहू से पूछा— “काका ने खा ली?”
“नहीं तो।”
निहाल बाहर आया। काका नहीं थे।
“काका।” उसने पुकारा।
राह पर चिरंजी पुजारी गढवाले हनुमानजी के पट बंद करके आ रहा था। उसने पुछा—”क्या है रे?”
“पाँय लागूँ, पंडितजी।” निहाल ने कहा— “काका अभी तो बैठे थे।”
चिरंजी ने कहा— “अरे, वह वहाँ ढोल सुन रहा है। मैं अभी देखकर आया हूँ।”
चिरंजी चला गया, निहाल ठिठक खडा रहा। बहू ने झाँककर पूछा— “क्या हुआ?”
“काका ढोला सुनने गए हैं।”— निहाल ने अविश्वास से कहा— “वे तो नहीं जाते थे।”
“जाकर बुला ले आओ। रात बढ़ रही है।”— बहू ने कहा और रोते बच्चे को दूध पिलाने लगी।
निहाल जब काका को लेकर लौटा, तो काका की देही तप रही थी।
“हवा लग गई है और कुछ नहीं।”— डोड़ी ने छोटी खटिया पर अपनी निकाली टाँगे समेटकर लेटते हुए कहा— “रोटी रहने दे, आज जी नहीं चाहता।”
निहाल खड़ा रहा। डोड़ी ने कहा— “अरे, सोच तो, बेटा! मैंने ढोला कितने दिन बाद सुना है।
“उस दिन भैया की सुहागरात को सुना था, या फिर आज...।”
निहाल ने सुना और देखा, डोड़ी आँख मीचकर कुछ गुनगुनाने लगा था...
(छः)
शाम हो गई थी। मौनी बाहर बैठा था। गदल ने गरम-गरम रोटी और आम की चटनी ले जाकर खाने को धर दी।
“बहुत अच्छी बनी है।”— मौनी ने खाते हुए कहा— “बहुत अच्छी है।”
गदल बैठ गई। कहा— “तुम एक ब्याह और क्यों नहीं कर लेते अपनी उमिर लायक़?”
मौनी चौंका। कहा— “एक की रोटी भी नहीं बनती?”
“नहीं”, गदल ने कहा— “सोचते होंगे सौत बुलाती हूँ, पर मरद का क्या? मेरी भी तो ढलती उमिर है। जीते जी देख जाऊँगी तो ठीक है। न हो ते हुकूमत करने को तो एक मिल जाएगी।”
मौना हँसा। बोला— “यों कह। हौंस है तुझे, लड़ने को चाहिए।”
खाना खाकर उठा, तो गदल हुक्का भरकर दे गई और आप दीवार की ओट में बैठकर खाने लगी। इतने में सुनाई दिया— “अरे, इस बखत कहाँ चला?”
“ज़रूरी काम है, मौनी!”— उत्तर मिला— “पेसकार साब ने बुलवाया है।”
गदल ने पहचाना। उसी के गाँव का तो था, घोटया मैना का चंदा गिर्राज ग्वारिया। ज़रूर पेसकार की गाय की चराने की बात होगी।
“अरे तो रात को जा रहा है?”— मौनी ने कहा— “ले चिलम तो पीता जा।”
आकर्षण ने रोका। गिर्राज बैठ गया। गदल ने दूसरी रोटी उठाई। कौर मुँह में रखा।
“तुमने सुना?” गिर्राज ने कहा और दम खींचा।
“क्या?” मौनी ने पूछा।
“गदल का देवर डोड़ी मर गया।”
गदल का मुँह रूक गया। जल्दी से लोटे के पानी के संग कौर निगला और सुनने लगी। कलेजा मुँह को आने लगा।
“कैसे मर गया?”— मौनी ने कहा— “वह तो भला-चंगा था!”
“ठंड लग गई, रात उघाड़ा रह गया।”
गदल द्वार पर दिखाई दी। कहा— “गिर्राज!”
“काकी!”— गिर्राज ने कहा— “सच। मरते बखत उसके मुँह से तुम्हारा नाम कढा था, काकी। बिचारा बड़ा भला मानस था।”
गदल स्तब्ध खड़ी रही।
गिर्राज चला गया।
गदल ने कहा— “सुनते हो!”
“क्या है री?”
“मैं ज़रा जाऊँगी।”
“कहाँ?”— वह आतंकित हुआ।
“वहीं।”
“क्यों?”
“देवर मर गया है न?”
“देवर! अब तो वह तेरा देवर नहीं।”
गदल झनझनाती हुई हँसी हँसी— “देवर तो मेरा अगले जनम में भी रहेगा। वही न मुझे रूखाई दिखाता, तो क्या यह पाँव कटे बिना उस देहरी से बाहर निकल सकते थे? उसने मुझसे मन फेरा, मैंने उससे। मैंने ऐसा बदला लिया उससे!”
कहते कहते वह कठोर हो गई।
“तू नहीं जा सकती।”— मौनी ने कहा।
“क्यों?”— गदल ने कहा— “तू रोकेगा? अरे, मेरे खास पेट के जाए मुझे रोक न पाए। अब क्या है? जिसे नीचा दिखाना चाहती थी, वही न रहा और तू मुझे रोकने वाला है कौन? अपने मन से आई थी, रहूँगी, नहीं रहूँगी, कौन तूने मेरा मोल दिया है। इतना बोल तो भी लिया तू, जो होता मेरे उस घर में तो, तो जीभ कढवा लेती तेरी।”
“अरी चल-चल।”
मौनी ने हाथ पकड़कर उसे भीतर धकेल दिया और द्वार पर खाट डालकर लेटकर हुक्का पीने लगा।
गदल भीतर रोने लगी, परंतु इतने धीरे कि उसकी सिसकी तक मौनी नहीं सुन सका। आज गदल का मन बहा जा रहा था। रात का तीसरा पहर बीत रहा था। मौनी की नाक बज रही थी। गदल ने पूरी शक्ति लगाकर छप्पर का कोना उठाया और साँपिन की तरह उसके नीचे से रेंगकर दूसरी ओर कूद गई।
मौनी रह-रहकर तड़पता था। हिम्मत नहीं होती थी कि जाकर सीधे गाँव में हल्ला करे और लट्ठ के बल पर गदल को उठा लाए। मन करता सुसरी की टाँगे तोड़ दे। दुल्लो ने व्यंग्य भी किया कि उसकी लुगाई भागकर नाक कटा गई है, ख़ून का-सा घूँट पीकर रह गया। गूजरों ने जब सुना, तो कहा— “अरे बुढ़िया के लिए ख़ून-ख़राबा कराएगा! और अभी तेरा उसने खरच ही क्या कराया है? दो जून रोटी खा गई है, तुझे भी तो टिक्कड़ खिलाकर ही गई!”
मौनी का क्रोध भड़क गया।
घोटया का गिर्राज सुना गया था।
जिस वक़्त गदल पहुँची, पटेल बैठा था। निहाल ने कहा था— “ख़बरदार! भीतर पाँव न धरियो!”
“क्यों लौट आई है, बहू?” पटेल चौंका था। बोला— “अब क्या लेने आई है?”
गदल बैठ गई। कहा— “जब छोटी थी, तभी मेरा देवर लट्ठ बाँध मेरे खसम के साथ आया था। इसी के हाथ देखती रह गई थी मैं तो। सोचा था मरद है, इसकी छत्तर-छाया में जी लूँगी। बताओ, पटेल, वह ही जब मेरे आदमी के मरने के बाद मुझे न रख सका, तो क्या करती? अरे, मैं न रही, तो इनसे क्या हुआ? दो दिन में काका उठ गया न? इनके सहारे मैं रहती तो क्या होता?”
पटेल ने कहा— “पर तूने बेटा-बेटी की उमर न देखी बहू।”
“ठीक है”, गदल ने कहा— “उमर देखती कि इज्जत, यह कहो। मेरी देवर से रार थी, खतम हो गई। ये बेटा है, मैने कोई बिरादरी के नेम के बाहर की बात की हो तो रोककर मुझ पर दावा करो। पंचायत में जवाब दूँगी। लेकिन बेटों ने बिरादरी के मुँह पर थूका, तब तुम सब कहाँ थे?”
“सो कब?”— पटेल ने आश्चर्य से पूछा।
“पटेल न कहेंगे तो कौन कहेगा? पच्चीस आदमी खिलाकर लुटा दिया मेरे मरद के कारज में!”
“पर पगली, यह तो सरकार का क़ानून था।”
“क़ानून था!”— गदल हँसी— “सारे जग में क़ानून चल रहा है, पटेल?
दिन दहाड़े भैंस खोलकर लाई जाती हैं। मेरे ही मरद पर क़ानून था? यूँ न कहोगे, बेटों ने सोचा, दूसरा अब क्या धरा है, क्यों पैसा बिगाड़ते हो? कायर कहीं के?”
निहाल गरजा— “कायर! हम कायर? तू सिंधनी?”
“हाँ मैं सिंधनी!”...गदल तड़पी— “बोल तुझमें है हिम्मत?”
“बोल!”— वह भी चिल्लाया।
“जा, बिरादरी कारज में न्योता दे काका के।”— गदल ने कहा।
निहाल सकपका गया। बोला— “पुलिस...”
गदल ने सीना ठोंककर कहा— “बस?”
“लुगाई बकती है!”— पटेल ने कहा— “गोली चलेगी, तो?”
गदल ने कहा— “धरम-धुरंधरों ने तो डूबो ही दी। सारी गुजरात की डूब गई, माधो। अब किसी का आसरा नहीं। कायर-ही-कायर बसे हैं।”
फिर अचानक कहा— “मैं करूँ परबंध?”
“तू?”— निहाल ने कहा।
“हाँ, मैं!”... और उसकी आँखों में पानी भर आया। कहा— “वह मरते बखत मेरा नाम लेता गया है न, तो उसका परबंध मैं ही करूँगी।”
मौनी आश्चर्य में था। गिर्राज ने बताया था कि कारज का ज़ोरदार इंतिज़ाम है। गदल ने दरोग़ा को रिश्वत दी है। वह इधर आएगा ही नहीं। गदल बड़ा इंतिज़ाम कर रही है। लोग कहते है, उसे अपने मरद का इतना ग़म नहीं हुआ था, जितना अब लगता है।
गिर्राज तो चला गया था, पर मौनी में विष भर गया था। उसने उठते हुए कहा— “तो गदल! तेरी भी मन की होने दूँ, सो गोला का मौनी नहीं। दरोग़ा का मुँह बंद कर दे, पर उससे भी ऊपर एक दरबार है। मैं क़स्बे में बड़े दरोग़ा से शिकायत करूँगा।”
कारज हो रहा था। पाँते बैठतीं, जीमतीं, उठ जातीं और कढाव से पुए उतरते। बाहर मरद इंतिज़ाम कर रहे थे, खिला रहे थे। निहाल और नरायन ने लड़ाई में महँगा नाज बेचकर जो घड़ों में नोटों की चाँदी बनाकर डाली थी, वह निकली और बौहरे का क़र्ज़ चढ़ा। पर डाँग में लोगों ने कहा—“गदल का ही बूता था। बेटे तो हार बैठे थे। क़ानून क्या बिरादरी से ऊपर है?”
गदल थक गई थी। औरतों में बैठी थी। अचानक द्वार में से सिपाही-सा दीखा। बाहर आ गई। निहाल सिर झुकाए खड़ा था।
“क्या बात है, दीवानजी?”— गदल ने बढ़कर पूछा।
स्त्री का बढ़कर पूछना देख दीवान सकपका गया।
निहाल ने कहा— “कहते हैं कारज रोक दो।”
“सो, कैसे?”— गदल चौंकी।
“दरोग़ाजी ने कहा है।” दीवानजी ने नम्र उत्तर दिया।
“क्यों? उनसे पूछकर ही तो किया जा रहा है।” उसका स्पष्ट संकेत था कि रिश्वत दी जा चुकी है।
दीवान ने कहा— “जानता हूँ, दरोग़ाजी तो मेल-मुलाक़ात मानते हैं, पर किसी ने बड़े दरोग़ाजी के पास शिकायत पहुँचाई है, दरोग़ाजी को आना ही पड़ेगा। इसी से उन्होंने कहला भेजा है कि भीड़ छाँट दो। वर्ना क़ानूनी कार्रवाई करनी पड़ेगी।”
क्षणभर गदल ने सोचा। कौन होगा वह? समझ नहीं सकी। बोली— “दरोग़ाजी ने पहले नहीं सोचा यह सब? अब बिरादरी को उठा दें? दीवानजी, तुम भी बैठकर पत्तल परोसवा लो। होगी सो देखी जाएगी। हम ख़बर भेज देंगे, दरोग़ा आते ही क्यों हैं? वे तो राजा है।”
दीवानजी ने कहा—“सरकारी नौकरी है। चली जाएगी? आना ही होगा उन्हें।”
“तो आने दो!”— गदल ने चुभते स्वर से कहा— “सब गिरफ़्तार कर लिए जाएँगे। समझी! राज से टक्कर लेने की कोशिश न करो।”
अरे तो क्या राज बिरादरी से ऊपर है?”— गदल ने तमककर कहा— “राज के पीसे तो आज तक पिसे हैं, पर राज के लिए धर्म नहीं छोड़ देंगे, तुम सुन लो! तुम धरम छीन लो, तो हमें जीना हराम है।”
गदल के पाँव के धमाके से धरती चल गई।
तीन पाँते और उठ गई, अंतिम पाँत थी। निहाल ने अँधेरे में देखकर कहा— “नरायन, जल्दी कर। एक पाँत बची है न?”
गदल ने छप्पर की छाया में से कहा— “निहाल!”
निहाल गया।
“डरता है?”— गदल ने पूछा।
सूखे होठों पर जीभ फेरकर उसने कहा— “नहीं!”
“मेरी कोख की लाज करनी होगी तुझे।”— गदल ने कहा— “तेरे काका ने तुझको बेटा समझकर अपना दूसरा ब्याह नामंज़ूर कर दिया था। याद रखना, उसके और कोई नहीं।”
निहाल ने सिर झुका लिया।
भागा हुआ एक लड़का आया।
“दादी!” वह चिल्लाया।
“क्या है रे?”— गदल ने सशंक होकर देखा।
“पुलिस हथियारबंद होकर आ रही है।”
निहाल ने गदल की ओर रहस्यभरी दृष्टि से देखा।
गदल ने कहा— “पाँत उठने में ज़ियादा देर नहीं है।”
“लेकिन वे कब मानेंगे?”
“उन्हें रोकना होगा।”
“उनके पास बंदूक़ें हैं।”
“बंदूक़ें हमारे पास भी हैं, निहाल!”— गदल ने कहा— “डाँग में बंदूक़ों की क्या कमी?”
“पर हम फिर खाएँगे क्या!”
“जो भगवान देगा।”
बाहर पुलिस की गाड़ी का भोंपू बजा। निहाल आगे बढ़ा। दरोग़ा ने उतरकर कहा— “यहाँ दावत हो रही है?”
निहाल भौंचक रह गया। जिस आदमी ने रिश्वत ली थी, अब वह पहचान भी नहीं रहा था।
“हाँ। हो रही है?”— उसने क्रुद्ध स्वर में कहा।
“पच्चीस आदमी से ऊपर है?”
“गिनकर हम नहीं खिलाते, दरोग़ाजी!”
“मगर तुम क़ानून तो नहीं तोड़ सकते।
“राज का क़ानून कल का है, मगर बिरादरी का क़ानून सदा का है, हमें राज नहीं लेना है, बिरादरी से काम है।”
“तो मैं गिरफ़्तार करूँगा!”
गदल ने पुकारा— “निहाल।”
निहाल भीतर गया।
गदल ने कहा— “पंगत होने तक इन्हें रोकना ही होगा!”
“फिर!”
“फिर सबको पीछे से निकाल देंगे। अगर कोई पकड़ा गया, तो बिरादरी क्या कहेगी?”
“पर ये वैसे न रूकेंगे। गोली चलाएँगे।”
“तू न डर। छत पर नरायन चार आदमियों के साथ बंदूक़ें लिए बैठा है।”
निहाल काँप उठा। उसने घबराए हुए स्वर से समझने की कोशिश की— “हमारी टोपीदार हैं, उनकी रैफल हैं।”
“कुछ भी हो, पंगत उतर जाएगी।”
“और फिर!”
“तुम सब भागना।”
हठात् लालटेन बुझ गई। धाँय—धाँय की आवाज़ आई।
गोलियाँ अंधकार में चलने लगीं।
गदल ने चिल्लाकर कहा— “सौगंध है, खाकर उठना।”
पर सबको जल्दी की फिकर थी।
बाहर धाँय—धाँय हो रही थी। कोई चिल्लाकर गिरा।
पाँत पीछे से निकलने लगी।
जब सब चले गए, गदल ऊपर चढ़ी। निहाल से कहा— “बेटा!”
उसके स्वर की अखंड ममता सुनकर निहाल के रोंगटे उस हलचल में भी खड़े हो गए। इससे पहले कि वह उत्तर दे, गदल ने कहा— “तुझे मेरी कोख की सौगंध है। नरायन को और बहू—बच्चों को लेकर निकल जो पीछे से।”
“और तू?”
“मेरी फिकर छोड़! मैं देख रही हूँ, तेरा काका मुझे बुला रहा है।”
निहाल ने बहस नहीं की। गदल ने एक बंदूक़वाले से भरी बंदूक़ लेकर कहा— “चले जाओ सब, निकल जाओ।”
संतान के मोह से जकड़े हुए युवकों को विपत्ति ने अंधकार में विलीन कर दिया।
गदल ने घोड़ा दबाया। कोई चिल्लाकर गिरा। वह हँसी। विकराल हास्य उस अंधकार में गूँज उठा।
दरोग़ा ने सुना तो चौंका: औरत! मरद कहाँ गए! उसके कुछ सिपाहियों ने पीछे से घेराव डाला और ऊपर चढ़ गए। गोली चलाई। गदल के पेट में लगी।
युद्ध समाप्त हो गया था। गदल रक्त से भीगी हुई पड़ी थी। पुलिस के जवान इकट्ठे हो गए।
दरोग़ा ने पूछा— “यहाँ तो कोई नहीं?”
“हुज़ूर!— एक सिपाही ने कहा— “यह औरत है।”
दरोग़ा आगे बढ़ आया। उसने देखा और पूछा— “तू कौन है?”
गदल मुस्कराई और धीरे से कहा— “कारज हो गया, दरोग़ाजी! आतमा को सांति मिल गई।”
दरोग़ा ने झल्लाकर कहा— “पर तू है कौन?
गदल ने और भी क्षीण स्वर से कहा— “जो एक दिन अकेला न रह सका, उसी की...।”
और सिर लुढ़क गया। उसके होठों पर मुस्कुराहट ऐसी दिखाई दे रही थी, जैसे अब पुराने अंधकार में जलाकर लाई हुई...पहले की बुझी लालटेन।
bahar shorgul macha DoDi ne pukara — kaun hai?
koi uttar nahin mila awaz i — hatyarin! tujhe katal kar dunga!
istri ka swar aaya — karke to dekh! tere kunbe ko Dayan banke na kha gai, nipute!
DoDi baitha na rah saka bahar aaya
kya karta hai, kya karta hai, nihal? — DoDi baDhkar chillaya — akhir teri maiya hai
maiya hai! — kahkar nihal hat gaya
aur tu hath uthake to dekh! istri ne phuphkara — kaDhikhaye! teri seenk par billiyan chalwa doon! samajh rakhiyo! mat jaan rakhiyo! han! teri asartu nahin hoon
wo aage baDha usne muDkar kaha — jao sab tum sab log jao!
nihal hat gaya uske sath hi sab log idhar udhar ho gaye
DoDi nistabdh, chhappar ke niche laga barainDa pakDe khaDa raha istri wahin biphri hui si baithi rahi uski ankhon mein aag si jal rahi thi \
usne kaha — main janti hoon, nihal mein itni himmat nahin ye sab taine kiya hai, dewar!
han gadal! — DoDi ne dhire se kaha — mainne hi kiya hai
gadal simat gai kaha — kyon, tujhe kya zarurat thee?
DoDi kah nahin saka wo upar se niche tak jhanjhana utha pachas sal ka wo lamba khari gujar, jiski munchhen khichDi ho chuki theen, chhappar tak pahuncha sa lagta tha
uske kandhe ki chauDi haDDiyon par ab diye ka halka parkash paD raha tha, uske sharir par moti phatuhi thi aur uski dhoti ghutnon ke niche utarne ke pahle hi jhool dekar chust si upar ki or laut jati thi uska hath karra tha aur wo is samay nistabdh khaDa raha
istri uthi wo lagbhag 45 warshiya thi, aur uska rang gora hone par bhi aayu ke dhundhalake mein ab maila sa dikhne laga tha usko dekhkar lagta tha ki wo phurtili thi jiwan bhar kathor mehnat karne se, uski gathan ke Dhile paDne par bhi uski phurti abhi tak maujud thi
tujhe sharam nahin aati, gadal? — DoDi ne puchha
kyon, sharam kyon ayegi? — gadal ne puchha
DoDi kshanbhar sakte mein paD gaya bhitar ke chaubare se awaz i — sharam kyon ayegi ise? sharam to use aaye, jiski ankhon mein haya bachi ho
nihal! — DoDi chillaya — tu chup rah!
phir awaz band ho gai
gadal ne kaha — mujhe kyon bulaya hai tune?
DoDi ne is baat ka uttar nahin diya puchha — roti khai hai?
nahin, gadal ne kaha — khati bhi kab? kambakht raste mein mile khet hokar laut rahi thi raste mein arne kanDe binkar sanjha ke liye le ja rahi thi
DoDi ne pukara — nihal! bahu se kah, apni sas ko roti de jaye!
bhitar se kisi istri ki Dheeth awaz sunai di — are, ab lauhron ki baiyar i hain; unhen kyon gharib khariyon ki roti bhayegi?
kuch istriyon ne thahaka lagaya
nihal chillaya — sun le, parmesuri, jagahnsai ho rahi hai khariyon ki to tune nak katakar chhoDi
gunna mara, to pachpan baras ka tha gadal widhwa ho gai gadal ka baDa beta nihal tees warsh ke pas pahunch raha tha uski bahu dulla ka baDa beta sat ka, dusra chaar ka aur tisri chhori thi jo uski god mein thi
nihal se chhoti tara upar ki do bahinon thi champa aur chameli, jiska kramash jhaj aur wishwara ganwon mein byah hua tha aaj unki godiyon se unke lal utarkar dhool mein ghutruwan chalne lage the antim putr narayan ab bais ka tha, jiski bahu dusre bachche ki man bannewali thi aisi gadal, itna baDa pariwar chhoDkar chali gai thi aur battis sal ke ek lauhre gujar ke yahan ja baithi thi
DoDi gunna ka saga bhai tha bahu thi, bachche bhi hue sab mar gaye apni jagah akela rah gaya gunna ne baDi baDi kahi, par wo phir akela hi raha, usne byah nahin kiya, gadal hi ke chulhe par khata raha kamakar lata, wo usi ko de deta, usi ke bachchon ko apna manata, kabhi usne algaw nahin kiya nihal apne chacha par jaan deta tha aur phir khari gujar apne ko lauhron se unch samajhte the
gadal jiske ghar baithi thi, uska pura kunba tha usne gadal ki umr nahin dekhi, ye dekha ki khari aurat hai, paDi rahegi chulhe par dam phunknewali ki zarurat bhi thi
aj hi gadal sawere gai thi aur sham ko uske bete use phir bandh laye the uske nae pati mauni ko abhi pata bhi nahin hua hoga mauni ranDua tha uski bhabhi jo panw phailakar matak matakkar chhachh biloti thi — dullo sunegi to kya kahegi?
gadal ka man wikshaobh se bhar utha
adhi raat ho chali thi gadal wahin paDi thi DoDi wahin baitha chilam phoonk raha tha
us sannate mein DoDi ne dhire se kaha — gadal!
kya hai? — gadal ne haule se kaha
tu chali gai n?
gadal boli nahin DoDi ne phir kaha — sab chale jate hain ek din teri dewrani chali gai, phir ek ek karke tere bhatije bhi chale gaye bhaiya bhi chala gaya par tu jaisi gai; waise to koi bhi nahin gaya jag hansta hai, janti hai?
gadal buraburai — jag hansai se main nahin Darti dewar! jab chaudah ki thi, tab tera bhaiya mujhe ganw mein dekh gaya tha tu uske sath tel piya latth lekar mujhe lene aaya tha na, tab? main i thi ki nahin? tu sochta hoga ki gadal ki umar gai, ab use khasam ki kya zarurat hai? par janta hai, main kyon gai?
nahin
tu to bus yahi soch karta hoga ki gadal gai, ab pahle sa rotiyon ka aram nahin raha bahuwen nahin karengi teri chakari dewar! tune bhai se aur mujhse nibhai, to mainne bhi tujhe apna hi samjha! bol jhooth kahti hoon?
nahin, gadal, mainne kab kaha!
bus yahi baat hai dewar! ab mera yahan kaun hai! mera marad to mar gaya jite ji mainne uski chakari ki, uske nate uske sab apnon ki chakari bajai par jab malik hi na raha, to kahe ko haDkamp uthaun? ye laDqe, ye bahuwen! main inki ghulami nahin karungi!
par kya ye sab teri aulad nahin bawri billi tak apne jayon ke liye sat ghar ulat pher karti hai, phir tu to manush hai teri maya mamta kahan chali gai?
dewar, teri kahan chali gai thi, tune phir byah na kiya
mujhe tera sahara tha gadal!
kayer! bhaiya tera mara, karaj kiya bete ne aur phir jab sab ho gaya tab tu mujhe rakhkar ghar nahin bsa sakta tha tune mujhe pet ke liye parai DayauDhi langhwai
chulha main tab phunkun, jab mera koi apna ho aisi bandi nahin hoon ki meri kuhni baje, auron ke bichhiye chhanke main to pet tab bharungi, jab pet ka mol kar lungi
samjha dewar! tune to nahin kaha tab ab kunbe ki nak par chot paDi, tab socha tab na socha, jab teri gadal ko bahuon ne ankhen tarerkar dekha are, kaun kiski parwa karta hai!
gadal! — DoDi ne bharraye swar mein kaha — main Darta tha
bhala kyon to?
gadal, main buDDha hoon Darta tha, jag hansega bete sochenge, shayad chacha ka amman se pahle se nata tha, tabhi chacha ne dusra byah nahin kiya gadal, bhaiya ki bhi badnami hoti n?
are chal rahne de! gadal ne uttar diya — bhaiya ka baDa khayal raha tujhe? tu nahin tha karaj mein unke kya? mere susar mare the, tab tere bhaiya ne biradri ko jimakar hothon se pani chhulaya tha apne aur tum sabne kitne bulaye? tu bhaiya do bete yahi bhaiya hain, yahin bete hain? pachchis adami bulaye kul kyon akhir? kah diya laDai mein qanun hai police pachchis se ziyada hote hi pakaD le jayegi! Darpok kahin ke! main nahin rahti aison ke
hathat DoDi ka swar badla kaha — mere rahte tu paraye marad ke ja baithegi?
han
abke to kah! — wo uthkar baDha
sau bar kahun lala! gadal paDi paDi boli
DoDi baDha
baDh! — gadal ne phuphkara
DoDi rook gaya gadal dekhti rahi DoDi jakar baith gaya gadal dekhti rahi phir hansi kaha — tu mujhe karega! tujhmen himmat kahan hai dewar! mera naya marad hai n? marad hai itni sun to le bhala mujhe lagta hai tera bhaiya hi phir mil gaya hai mujhe too? — wo ruki— marad hai! are koi baiyar se ghighiyata hai? baDhkar jo tu mujhe marta, to main samajhti, tu apnapa manata hain main is ghar mein rahungi?
DoDi dekhta hi rah gaya raat gahri ho gai gadal ne lahnge ki part phailakar tan Dhak liya DoDi unghne laga
osare mein dulle ne angDai lekar kaha — a gai dewrani jee! raat kahan rahi?
suka Doob gaya tha akash mein pau phat rahi thi bail ab uthkar khaDe ho gaye the hawa mein ek thanDak thi
gadal ne taDak se jawab diya — so, jethani meri! hukum nahin chala mujh par teri jaisi betiyan hai meri dewar ke nate dewrani hoon, teri juti nahin
dullo sakapka gai mauni utha hi tha bhannaya hua aaya bola— kahan gai thee?
gadal ne ghunghat kheench liya, par awaz nahin badli kaha — wahi le gaye mujhe gherkar! mauqa pake nikal i
mauni dab gaya mauni ka bap bahar se hi Dhor hank le gaya mauni baDha
kahan jata hai? — gadal ne puchha
khet haar
pahle mera faisla kar ja gadal ne kaha
dullo us adheD istri ke naqshe dekhkar achraj mein khaDi rahi
kaisa faisla? — mauna ne puchha wo us baDi istri se dab gaya
ab kya tere ghar ka pisna pisungi main? — gadal ne kaha — hum to do jane hain alag karenge khayenge — uske uttar ki pratiksha kiye bina hi ye kahti rahi — kamai shamil karo, main nahin rokti, par bhitar to alag alag bhale
mauni kshan bhar sannate mein khaDa raha dullo tinakkar nikli boli — ab chup kyon ho gaya, dewar? bolta kyon nahin? dewrani laya hai ki sas! teri bolti kyon nahin kaDhti? aisi na samajhiyo tu mujhe! roti tawe par palatte mujhe bhi anch nahin lagti, jo main iski khari khoti sun lungi, samjha? meri amman ne bhi mujhe chulhe ki mitti kha ke hi jana tha han!
ari to saut! — gadal ne pukara — mitti na kha ke i, sare kunbe ko chaba jayegi Dayan aisi nahin teri guD ki bheli hai, jo na khayenge hum, to roti gale mein phanda mar jayegi
mauni uttar nahin de saka wo bahar chala gaya duphar ho gai dullo baithi charkha kat rahi thi narayan ne aakar awaz di — koi hai?
dullo ne ghunghat kaDh liya poochh — kaun ho?
narayan ne khoon ka ghoont pikar kaha — gadal ka beta hoon
dullo ghunghat mein hansi puchha — chhote ho ki baDe?
chhota
aur kitne hai!
kitte bhi hon tujhe kya? — gadal ne nikalkar kaha
are aa gai! kahkar dullo bhitar bhagi
ane de aaj use tujhe bata dungi jithani! — gadal ne sir hilakar kaha
usi samay lota Dor liye mauni lauta usne dekha ki gadal ne apne kaDe aur hansli utarkar phenk di aur kaha — bhar gaya danD tera! ab marad ka sab mal dabakar bahuon ke kahne se beton ne mujhe nikal diya hai
narayan ka munh syah paD gaya wo gahne uthakar chala gaya mauni man hi man shankit sa bhitar aaya
dullo ne shikayat ki — suna tune dewar! dewrani ko gahne de diye ghutna akhir pet ko hi muDa chaar jagah baithegi, to beton ke khet ki Daur par DanDa dhua tak lag jayenge, pakka chabutara ghar ke aage ban jayega, samjha deti hoon tum bhole bhale thahre tiriya charittar tum kya jano dhandha hai ye bhi ab kahegi, phir banwa mujhe
gadal hansi, kaha — wah jithani, purane marad ka mol nae marad se tere ghar ki baiyar chukwati hongi gadal to malkin bankar rahti hai, samjhi! bandi bankar nahin chakari karungi to apne marad ki, nahin to bidhna mere thenge par samjhi! tu beech mein bolnewali kaun?
dullo ne rosh se dekha aur panw patakti chali gai
mauni ne dekha aur kaha — bahut baDh—baDhkar baten mat hank, samajh le ghar mein bahu bankar rah!
are tu to tab paida bhi nahin hua tha, balam! — gadal ne muskurakar kaha — tab se main sab janti hoon mujhe kya sikhata hai too? aisa koi mainne kaam nahin kiya hai, jo biradri ke nem ke bahar ho jab tu dekhe, mainne aisi koi baat ki ho, to hazar bar rok, par saut ki thasak nahin sahungi
to bataun tujhe! — wo sir hilakar bola
gadal hansakar obari mein chali gai aur kaam mein lag gai
thanDi hawa tez ho gai DoDi chupchap bahar chhappar mein baitha hukka pi raha tha pite pite ub gaya aur usne chilam ulat di aur phir baitha raha
khet se lautkar nihal ne bail bandhe, nyar Dala aur kaha — kaka! DoDi kuch soch raha tha usne suna nahin
kaka! — nihal ne swar uthakar kaha
he! DoDi chauk utha — kya hai? mujhse kaha kuchh?
tumse na kahunga, to kahunga kisse? din bhar to tum mile nahin chimman kaDhera kahta tha, tumne din bhar manmauji baba ki dhuni ke pas bitaya, ye sach hai?
han, beta, chala to gaya tha
kyon gaye the bhala?
aise hi ji kiya tha, beta!
aur qasbe se ghi katu kya karaya ki baniye ka adami aaya tha mainne kaha — nahin hai, wo bola — leke jaunga jhagDa hote hote bacha
aisa nahin karte, beta! — DoDi ne kaha — bauhre se koi jhagDa mol leta hai?
nihal ne chilam uthai, kanDon mein se anch binkar dhari aur phoonk lagata hua aaya kaha — main to gaya nahin sir phoot jate narayan ko bheja tha
kahan? DoDi chaunka
usi kulachchhani kulborni ke pas
apni man ke pas?
na jane tumhein usse kya hai, ab bhi tumhein us par ghussa nahin aata use man kahunga main?
par beta, tu na kah, jag to use teri man hi kahega jab tak marad jita hai, log baiyar ko marad ki bahu kahkar pukarte hain, jab marad mar jata hai, to log use bete ki amman kahkar pukarte hain koi naya nem thoDi hi hai
nihal bhunabhunaya kaha — theek hai, kaka theek hai, par tumne abhi tak ye to puchha hi nahin ki kyon bheja tha use?
han beta! — DoDi ne chaunkkar kaha — ye to tune bataya hi nahin! bata n?
danD bharwane bheja tha so panchayat juDwane ke pahle hi usne to gahne utar phenke
DoDi muskuraya kaha — to wo ye bata rahi hai ki gharwalon ne panchayat bhi nahin juDwai? yani hum use bhagana hi chahte the narayan le aya?
han
DoDi sochne laga
main pher aun? — nihal ne puchha
nahin beta! DoDi ne kaha — wo sachmuch ruthkar hi gai hai aur koi baat nahin hai tune roti kha lee?
nahin
to ja pahle kha le
nihal uth gaya, par DoDi baitha raha raat ka andhera sanjh ke pichhe aise aa gaya, jaise koi part ulat gai ho
door Dhola gane ki awaz aane lagi DoDi utha aur chal paDa
nihal ne bahu se puchha — kaka ne kha lee?
nahin to
nihal bahar aaya kaka nahin the
kaka usne pukara
rah par chiranji pujari gaDhwale hanumanji ke pat band karke aa raha tha usne puchha —kya hai re?
pany lagun, panDitji nihal ne kaha — kaka abhi to baithe the
chiranji ne kaha— are, wo wahan Dhol sun raha hai main abhi dekhkar aaya hoon
chiranji chala gaya, nihal thithak khaDa raha bahu ne jhankakar puchha— kya hua?
kaka Dhola sunne gaye hain — nihal ne awishwas se kaha — we to nahin jate the
jakar bula le aao raat baDh rahi hai — bahu ne kaha aur rote bachche ko doodh pilane lagi
nihal jab kaka ko lekar lauta, to kaka ki dehi tap rahi thi
hawa lag gai hai aur kuch nahin — DoDi ne chhoti khatiya par apni nikali tange sametkar lette hue kaha — roti rahne de, aaj ji nahin chahta
nihal khaDa raha DoDi ne kaha — are, soch to, beta! mainne Dhola kitne din baad suna hai
us din bhaiya ki suhagarat ko suna tha, ya phir aaj
nihal ne suna aur dekha, DoDi ankh michkar kuch gungunane laga tha
sham ho gai thi mauni bahar baitha tha gadal ne garam garam roti aur aam ki chatni le jakar khane ko dhar di
bahut achchhi bani hai — mauni ne khate hue kaha — bahut achchhi hai
gadal baith gai kaha — tum ek byah aur kyon nahin kar lete apni umir layaq?
mauni chaunka kaha — ek ki roti bhi nahin banti?
nahin, gadal ne kaha — sochte honge saut bulati hoon, par marad ka kya? meri bhi to Dhalti umir hai jite ji dekh jaungi to theek hai na ho te hukumat karne ko to ek mil jayegi
mauna hansa bola — yon kah hauns hai tujhe, laDne ko chahiye
khana khakar utha, to gadal hukka bharkar de gai aur aap diwar ki ot mein baithkar khane lagi itne mein sunai diya — are, is bakhat kahan chala?
zaruri kaam hai, mauni! — uttar mila — peskar sab ne bulwaya hai
gadal ne pahchana usi ke ganw ka to tha, ghotya maina ka chanda girraj gwariya zarur peskar ki gay ki charane ki baat hogi
are to raat ko ja raha hai? — mauni ne kaha — le chilam to pita ja
akarshan ne roka girraj baith gaya gadal ne dusri roti uthai kaur munh mein rakha
tumne suna? girraj ne kaha aur dam khincha
kya? mauni ne puchha
gadal ka dewar DoDi mar gaya
gadal ka munh rook gaya jaldi se lote ke pani ke sang kaur nigla aur sunne lagi kaleja munh ko aane laga
kaise mar gaya? — mauni ne kaha — wo to bhala changa tha!
thanD lag gai, raat ughaDa rah gaya
gadal dwar par dikhai di kaha — girraj!
kaki! — girraj ne kaha — sach marte bakhat uske munh se tumhara nam kaDha tha, kaki bichara baDa bhala manas tha
gadal stabdh khaDi rahi
girraj chala gaya
gadal ne kaha — sunte ho!
kya hai ree?
main zara jaungi
kahan? — wo atankit hua
wahin
kyon?
dewar mar gaya hai n?
dewar! ab to wo tera dewar nahin
gadal jhanjhanati hui hansi hansi — dewar to mera agle janam mein bhi rahega wahi na mujhe rukhai dikhata, to kya ye panw kate bina us dehri se bahar nikal sakte the? usne mujhse man phera, mainne usse mainne aisa badla liya usse!
kahte kahte wo kathor ho gai
tu nahin ja sakti — mauni ne kaha
kyon? — gadal ne kaha — tu rokega? are, mere khas pet ke jaye mujhe rok na pae ab kya hai? jise nicha dikhana chahti thi, wahi na raha aur tu mujhe roknewala hai kaun? apne man se i thi, rahungi, nahin rahungi, kaun tune mera mol diya hai itna bol to bhi liya — tu jo hota mere us ghar mein to, to jeebh kaDhwa leti teri
ari chal chal
mauni ne hath pakaDkar use bhitar dhakel diya aur dwar par khat Dalkar letkar hukka pine laga
gadal bhitar rone lagi, parantu itne dhire ki uski siski tak mauni nahin sun saka aaj gadal ka man baha ja raha tha raat ka tisra pahar beet raha tha mauni ki nak baj rahi thi gadal ne puri shakti lagakar chhappar ka kona uthaya aur sanpin ki tarah uske niche se rengkar dusri or kood gai
mauni rah rahkar taDapta tha himmat nahin hoti thi ki jakar sidhe ganw mein halla kare aur latth ke bal par gadal ko utha laye man karta susri ki tange toD de dullo ne wyangy bhi kiya ki uski lugai bhagkar nak kata gai hai, khoon ka sa ghoont pikar rah gaya gujron ne jab suna, to kaha — are buDhiya ke liye khoon kharaba karayega! aur abhi tera usne kharach hi kya karaya hai? do june roti kha gai hai, tujhe bhi to tikkaD khilakar hi gai!
mauni ka krodh bhaDak gaya
ghotya ka girraj suna gaya tha
jis waqt gadal pahunchi, patel baitha tha nihal ne kaha tha — khabardar! bhitar panw na dhariyo!
kyon laut i hai, bahu? patel chaunka tha bola— ab kya lene i hai?
gadal baith gai kaha — jab chhoti thi, tabhi mera dewar latth bandh mere khasam ke sath aaya tha isi ke hath dekhti rah gai thi main to socha tha marad hai, iski chhattar chhaya mein ji lungi batao, patel, wo hi jab mere adami ke marne ke baad mujhe na rakh saka, to kya karti? are, main na rahi, to inse kya hua? do din mein kaka uth gaya n? inke sahare main rahti to kya hota?
patel ne kaha— par tune beta beti ki umar na dekhi bahu
theek hai, gadal ne kaha — umar dekhti ki ijjat, ye kaho meri dewar se rar thi, khatam ho gai ye beta hai, maine koi biradri ke nem ke bahar ki baat ki ho to rokkar mujh par dawa karo panchayat mein jawab dungi lekin beton ne biradri ke munh par thuka, tab tum sab kahan the?
so kab? — patel ne ashchary se puchha
patel na kahenge to kaun kahega? pachchis adami khilakar luta diya mere marad ke karaj mein!
par pagli, ye to sarkar ka qanun tha
qanun tha! — gadal hansi — sare jag mein qanun chal raha hai, patel?
din dahaDe bhains kholkar lai jati hain mere hi marad par qanun tha? yoon na kahoge, beton ne socha, dusra ab kya dhara hai, kyon paisa bigaDte ho? kayer kahin ke?
nihal garja — kayer! hum kayer? tu sindhni?
han main sindhni! gadal taDpi — bol tujhmen hai himmat?
bol! — wo bhi chillaya
ja, biradri karaj mein nyota de kaka ke — gadal ne kaha
gadal ne kaha — dharam dhurandhron ne to Dubo hi di sari gujrat ki Doob gai, madho ab kisi ka aasra nahin kayer hi kayer base hain
phir achanak kaha — main karun parbandh?
too? — nihal ne kaha
han, main! aur uski ankhon mein pani bhar aaya kaha — wo marte bakhat mera nam leta gaya hai na, to uska parbandh main hi karungi
mauni ashchary mein tha girraj ne bataya tha ki karaj ka zordar intizam hai gadal ne darogha ko rishwat di hai wo idhar ayega hi nahin gadal baDa intizam kar rahi hai log kahte hai, use apne marad ka itna gham nahin hua tha, jitna ab lagta hai
girraj to chala gaya tha, par mauni mein wish bhar gaya tha usne uthte hue kaha — to gadal! teri bhi man ki hone doon, so gola ka mauni nahin darogha ka munh band kar de, par usse bhi upar ek darbar hai main qasbe mein baDe darogha se shikayat karunga
karaj ho raha tha pante baithtin, jimtin, uth jatin aur kaDhaw se pue utarte bahar marad intizam kar rahe the, khila rahe the nihal aur narayan ne laDai mein mahnga naj bechkar jo ghaDon mein noton ki chandi banakar Dali thi, wo nikli aur bauhre ka qarz chaDha par Dang mein logon ne kaha —gadal ka hi buta tha bete to haar baithe the qanun kya biradri se upar hai?
gadal thak gai thi aurton mein baithi thi achanak dwar mein se sipahi sa dikha bahar aa gai nihal sir jhukaye khaDa tha
kya baat hai, diwanji? — gadal ne baDhkar puchha
istri ka baDhkar puchhna dekh diwan sakapka gaya
nihal ne kaha — kahte hain karaj rok do
so, kaise? — gadal chaunki
daroghaji ne kaha hai diwanji ne namr uttar diya
kyon? unse puchhkar hi to kiya ja raha hai uska aspasht sanket tha ki rishwat di ja chuki hai
diwan ne kaha — janta hoon, daroghaji to mel mulaqat mante hain, par kisi ne baDe daroghaji ke pas shikayat pahunchai hai, daroghaji ko aana hi paDega isi se unhonne kahla bheja hai ki bheeD chhant do warna qanuni karrwai karni paDegi
kshanbhar gadal ne socha kaun hoga wah? samajh nahin saki boli — daroghaji ne pahle nahin socha ye sab? ab biradri ko utha den? diwanji, tum bhi baithkar pattal paroswa lo hogi so dekhi jayegi hum khabar bhej denge, darogha aate hi kyon hain? we to raja hai
diwanji ne kaha —sarkari naukari hai chali jayegi? aana hi hoga unhen
to aane do! — gadal ne chubhte swar se kaha — sab giraftar kar liye jayenge samjhi! raj se takkar lene ki koshish na karo
are to kya raj biradri se upar hai? — gadal ne tamakkar kaha — raj ke pise to aaj tak pise hain, par raj ke liye dharm nahin chhoD denge, tum sun lo! tum dharam chheen lo, to hamein jina haram hai
gadal ke panw ke dhamake se dharti chal gai
teen pante aur uth gai, antim pant thi nihal ne andhere mein dekhkar kaha — narayan, jaldi kar ek pant bachi hai n?
gadal ne chhappar ki chhaya mein se kaha — nihal!
nihal gaya
Darta hai? — gadal ne puchha
sukhe hothon par jeebh pherkar usne kaha — nahin!
meri kokh ki laj karni hogi tujhe — gadal ne kaha — tere kaka ne tujhko beta samajhkar apna dusra byah namanzur kar diya tha yaad rakhna, uske aur koi nahin
nihal ne sir jhuka liya
bhaga hua ek laDka aaya
dadi! wo chillaya
kya hai re? — gadal ne sashank hokar dekha
police hathiyarband hokar aa rahi hai
nihal ne gadal ki or rahasyabhri drishti se dekha
gadal ne kaha — pant uthne mein ziyada der nahin hai
lekin we kab manenge?
unhen rokna hoga
unke pas banduqen hain
banduqen hamare pas bhi hain, nihal! — gadal ne kaha — Dang mein banduqon ki kya kami?
par hum phir khayenge kya!
jo bhagwan dega
bahar police ki gaDi ka bhompu baja nihal aage baDha darogha ne utarkar kaha — yahan dawat ho rahi hai?
nihal bhaunchak rah gaya jis adami ne rishwat li thi, ab wo pahchan bhi nahin raha tha
han ho rahi hai? — usne kruddh swar mein kaha
pachchis adami se upar hai?
ginkar hum nahin khilate, daroghaji!
magar tum qanun to nahin toD sakte
raj ka qanun kal ka hai, magar biradri ka qanun sada ka hai, hamein raj nahin lena hai, biradri se kaam hai
to main giraftar karunga!
gadal ne pukara — nihal
nihal bhitar gaya
gadal ne kaha — pangat hone tak inhen rokna hi hoga!
phir!
phir sabko pichhe se nikal denge agar koi pakDa gaya, to biradri kya kahegi?
par ye waise na rukenge goli chalayenge
tu na Dar chhat par narayan chaar adamiyon ke sath banduqen liye baitha hai
nihal kanp utha usne ghabraye hue swar se samajhne ki koshish ki — hamari topidar hain, unki raiphal hain
kuch bhi ho, pangat utar jayegi
aur phir!
tum sab bhagna
hathat lalten bujh gai dhany—dhany ki awaz i
goliyan andhkar mein chalne lagin
gadal ne chillakar kaha — saugandh hai, khakar uthna
par sabko jaldi ki phikar thi
bahar dhany—dhany ho rahi thi koi chillakar gira
pant pichhe se nikalne lagi
jab sab chale gaye, gadal upar chaDhi nihal se kaha — beta!
uske swar ki akhanD mamta sunkar nihal ke rongte us halchal mein bhi khaDe ho gaye isse pahle ki wo uttar de, gadal ne kaha — tujhe meri kokh ki saugandh hai narayan ko aur bahu—bachchon ko lekar nikal jo pichhe se
aur too?
meri phikar chhoD! main dekh rahi hoon, tera kaka mujhe bula raha hai
nihal ne bahs nahin ki gadal ne ek banduqwale se bhari banduq lekar kaha — chale jao sab, nikal jao
santan ke moh se jakDe hue yuwkon ko wipatti ne andhkar mein wilin kar diya
gadal ne ghoDa dabaya koi chillakar gira wo hansi wikral hasya us andhkar mein goonj utha
darogha ne suna to chaunkah aurat! marad kahan gaye! uske kuch sipahiyon ne pichhe se gheraw Dala aur upar chaDh gaye goli chalai gadal ke pet mein lagi
yudh samapt ho gaya tha gadal rakt se bhigi hui paDi thi police ke jawan ikatthe ho gaye
darogha ne puchha — yahan to koi nahin?
huzur! — ek sipahi ne kaha — ye aurat hai
darogha aage baDh aaya usne dekha aur puchha — tu kaun hai?
gadal muskrai aur dhire se kaha — karaj ho gaya, daroghaji! aatma ko santi mil gai
darogha ne jhallakar kaha — par tu hai kaun?
gadal ne aur bhi kshain swar se kaha — jo ek din akela na rah saka, usi ki
aur sir luDhak gaya uske hothon par muskurahat aisi dikhai de rahi thi, jaise ab purane andhkar mein jalakar lai hui pahle ki bujhi lalten
bahar shorgul macha DoDi ne pukara — kaun hai?
koi uttar nahin mila awaz i — hatyarin! tujhe katal kar dunga!
istri ka swar aaya — karke to dekh! tere kunbe ko Dayan banke na kha gai, nipute!
DoDi baitha na rah saka bahar aaya
kya karta hai, kya karta hai, nihal? — DoDi baDhkar chillaya — akhir teri maiya hai
maiya hai! — kahkar nihal hat gaya
aur tu hath uthake to dekh! istri ne phuphkara — kaDhikhaye! teri seenk par billiyan chalwa doon! samajh rakhiyo! mat jaan rakhiyo! han! teri asartu nahin hoon
wo aage baDha usne muDkar kaha — jao sab tum sab log jao!
nihal hat gaya uske sath hi sab log idhar udhar ho gaye
DoDi nistabdh, chhappar ke niche laga barainDa pakDe khaDa raha istri wahin biphri hui si baithi rahi uski ankhon mein aag si jal rahi thi \
usne kaha — main janti hoon, nihal mein itni himmat nahin ye sab taine kiya hai, dewar!
han gadal! — DoDi ne dhire se kaha — mainne hi kiya hai
gadal simat gai kaha — kyon, tujhe kya zarurat thee?
DoDi kah nahin saka wo upar se niche tak jhanjhana utha pachas sal ka wo lamba khari gujar, jiski munchhen khichDi ho chuki theen, chhappar tak pahuncha sa lagta tha
uske kandhe ki chauDi haDDiyon par ab diye ka halka parkash paD raha tha, uske sharir par moti phatuhi thi aur uski dhoti ghutnon ke niche utarne ke pahle hi jhool dekar chust si upar ki or laut jati thi uska hath karra tha aur wo is samay nistabdh khaDa raha
istri uthi wo lagbhag 45 warshiya thi, aur uska rang gora hone par bhi aayu ke dhundhalake mein ab maila sa dikhne laga tha usko dekhkar lagta tha ki wo phurtili thi jiwan bhar kathor mehnat karne se, uski gathan ke Dhile paDne par bhi uski phurti abhi tak maujud thi
tujhe sharam nahin aati, gadal? — DoDi ne puchha
kyon, sharam kyon ayegi? — gadal ne puchha
DoDi kshanbhar sakte mein paD gaya bhitar ke chaubare se awaz i — sharam kyon ayegi ise? sharam to use aaye, jiski ankhon mein haya bachi ho
nihal! — DoDi chillaya — tu chup rah!
phir awaz band ho gai
gadal ne kaha — mujhe kyon bulaya hai tune?
DoDi ne is baat ka uttar nahin diya puchha — roti khai hai?
nahin, gadal ne kaha — khati bhi kab? kambakht raste mein mile khet hokar laut rahi thi raste mein arne kanDe binkar sanjha ke liye le ja rahi thi
DoDi ne pukara — nihal! bahu se kah, apni sas ko roti de jaye!
bhitar se kisi istri ki Dheeth awaz sunai di — are, ab lauhron ki baiyar i hain; unhen kyon gharib khariyon ki roti bhayegi?
kuch istriyon ne thahaka lagaya
nihal chillaya — sun le, parmesuri, jagahnsai ho rahi hai khariyon ki to tune nak katakar chhoDi
gunna mara, to pachpan baras ka tha gadal widhwa ho gai gadal ka baDa beta nihal tees warsh ke pas pahunch raha tha uski bahu dulla ka baDa beta sat ka, dusra chaar ka aur tisri chhori thi jo uski god mein thi
nihal se chhoti tara upar ki do bahinon thi champa aur chameli, jiska kramash jhaj aur wishwara ganwon mein byah hua tha aaj unki godiyon se unke lal utarkar dhool mein ghutruwan chalne lage the antim putr narayan ab bais ka tha, jiski bahu dusre bachche ki man bannewali thi aisi gadal, itna baDa pariwar chhoDkar chali gai thi aur battis sal ke ek lauhre gujar ke yahan ja baithi thi
DoDi gunna ka saga bhai tha bahu thi, bachche bhi hue sab mar gaye apni jagah akela rah gaya gunna ne baDi baDi kahi, par wo phir akela hi raha, usne byah nahin kiya, gadal hi ke chulhe par khata raha kamakar lata, wo usi ko de deta, usi ke bachchon ko apna manata, kabhi usne algaw nahin kiya nihal apne chacha par jaan deta tha aur phir khari gujar apne ko lauhron se unch samajhte the
gadal jiske ghar baithi thi, uska pura kunba tha usne gadal ki umr nahin dekhi, ye dekha ki khari aurat hai, paDi rahegi chulhe par dam phunknewali ki zarurat bhi thi
aj hi gadal sawere gai thi aur sham ko uske bete use phir bandh laye the uske nae pati mauni ko abhi pata bhi nahin hua hoga mauni ranDua tha uski bhabhi jo panw phailakar matak matakkar chhachh biloti thi — dullo sunegi to kya kahegi?
gadal ka man wikshaobh se bhar utha
adhi raat ho chali thi gadal wahin paDi thi DoDi wahin baitha chilam phoonk raha tha
us sannate mein DoDi ne dhire se kaha — gadal!
kya hai? — gadal ne haule se kaha
tu chali gai n?
gadal boli nahin DoDi ne phir kaha — sab chale jate hain ek din teri dewrani chali gai, phir ek ek karke tere bhatije bhi chale gaye bhaiya bhi chala gaya par tu jaisi gai; waise to koi bhi nahin gaya jag hansta hai, janti hai?
gadal buraburai — jag hansai se main nahin Darti dewar! jab chaudah ki thi, tab tera bhaiya mujhe ganw mein dekh gaya tha tu uske sath tel piya latth lekar mujhe lene aaya tha na, tab? main i thi ki nahin? tu sochta hoga ki gadal ki umar gai, ab use khasam ki kya zarurat hai? par janta hai, main kyon gai?
nahin
tu to bus yahi soch karta hoga ki gadal gai, ab pahle sa rotiyon ka aram nahin raha bahuwen nahin karengi teri chakari dewar! tune bhai se aur mujhse nibhai, to mainne bhi tujhe apna hi samjha! bol jhooth kahti hoon?
nahin, gadal, mainne kab kaha!
bus yahi baat hai dewar! ab mera yahan kaun hai! mera marad to mar gaya jite ji mainne uski chakari ki, uske nate uske sab apnon ki chakari bajai par jab malik hi na raha, to kahe ko haDkamp uthaun? ye laDqe, ye bahuwen! main inki ghulami nahin karungi!
par kya ye sab teri aulad nahin bawri billi tak apne jayon ke liye sat ghar ulat pher karti hai, phir tu to manush hai teri maya mamta kahan chali gai?
dewar, teri kahan chali gai thi, tune phir byah na kiya
mujhe tera sahara tha gadal!
kayer! bhaiya tera mara, karaj kiya bete ne aur phir jab sab ho gaya tab tu mujhe rakhkar ghar nahin bsa sakta tha tune mujhe pet ke liye parai DayauDhi langhwai
chulha main tab phunkun, jab mera koi apna ho aisi bandi nahin hoon ki meri kuhni baje, auron ke bichhiye chhanke main to pet tab bharungi, jab pet ka mol kar lungi
samjha dewar! tune to nahin kaha tab ab kunbe ki nak par chot paDi, tab socha tab na socha, jab teri gadal ko bahuon ne ankhen tarerkar dekha are, kaun kiski parwa karta hai!
gadal! — DoDi ne bharraye swar mein kaha — main Darta tha
bhala kyon to?
gadal, main buDDha hoon Darta tha, jag hansega bete sochenge, shayad chacha ka amman se pahle se nata tha, tabhi chacha ne dusra byah nahin kiya gadal, bhaiya ki bhi badnami hoti n?
are chal rahne de! gadal ne uttar diya — bhaiya ka baDa khayal raha tujhe? tu nahin tha karaj mein unke kya? mere susar mare the, tab tere bhaiya ne biradri ko jimakar hothon se pani chhulaya tha apne aur tum sabne kitne bulaye? tu bhaiya do bete yahi bhaiya hain, yahin bete hain? pachchis adami bulaye kul kyon akhir? kah diya laDai mein qanun hai police pachchis se ziyada hote hi pakaD le jayegi! Darpok kahin ke! main nahin rahti aison ke
hathat DoDi ka swar badla kaha — mere rahte tu paraye marad ke ja baithegi?
han
abke to kah! — wo uthkar baDha
sau bar kahun lala! gadal paDi paDi boli
DoDi baDha
baDh! — gadal ne phuphkara
DoDi rook gaya gadal dekhti rahi DoDi jakar baith gaya gadal dekhti rahi phir hansi kaha — tu mujhe karega! tujhmen himmat kahan hai dewar! mera naya marad hai n? marad hai itni sun to le bhala mujhe lagta hai tera bhaiya hi phir mil gaya hai mujhe too? — wo ruki— marad hai! are koi baiyar se ghighiyata hai? baDhkar jo tu mujhe marta, to main samajhti, tu apnapa manata hain main is ghar mein rahungi?
DoDi dekhta hi rah gaya raat gahri ho gai gadal ne lahnge ki part phailakar tan Dhak liya DoDi unghne laga
osare mein dulle ne angDai lekar kaha — a gai dewrani jee! raat kahan rahi?
suka Doob gaya tha akash mein pau phat rahi thi bail ab uthkar khaDe ho gaye the hawa mein ek thanDak thi
gadal ne taDak se jawab diya — so, jethani meri! hukum nahin chala mujh par teri jaisi betiyan hai meri dewar ke nate dewrani hoon, teri juti nahin
dullo sakapka gai mauni utha hi tha bhannaya hua aaya bola— kahan gai thee?
gadal ne ghunghat kheench liya, par awaz nahin badli kaha — wahi le gaye mujhe gherkar! mauqa pake nikal i
mauni dab gaya mauni ka bap bahar se hi Dhor hank le gaya mauni baDha
kahan jata hai? — gadal ne puchha
khet haar
pahle mera faisla kar ja gadal ne kaha
dullo us adheD istri ke naqshe dekhkar achraj mein khaDi rahi
kaisa faisla? — mauna ne puchha wo us baDi istri se dab gaya
ab kya tere ghar ka pisna pisungi main? — gadal ne kaha — hum to do jane hain alag karenge khayenge — uske uttar ki pratiksha kiye bina hi ye kahti rahi — kamai shamil karo, main nahin rokti, par bhitar to alag alag bhale
mauni kshan bhar sannate mein khaDa raha dullo tinakkar nikli boli — ab chup kyon ho gaya, dewar? bolta kyon nahin? dewrani laya hai ki sas! teri bolti kyon nahin kaDhti? aisi na samajhiyo tu mujhe! roti tawe par palatte mujhe bhi anch nahin lagti, jo main iski khari khoti sun lungi, samjha? meri amman ne bhi mujhe chulhe ki mitti kha ke hi jana tha han!
ari to saut! — gadal ne pukara — mitti na kha ke i, sare kunbe ko chaba jayegi Dayan aisi nahin teri guD ki bheli hai, jo na khayenge hum, to roti gale mein phanda mar jayegi
mauni uttar nahin de saka wo bahar chala gaya duphar ho gai dullo baithi charkha kat rahi thi narayan ne aakar awaz di — koi hai?
dullo ne ghunghat kaDh liya poochh — kaun ho?
narayan ne khoon ka ghoont pikar kaha — gadal ka beta hoon
dullo ghunghat mein hansi puchha — chhote ho ki baDe?
chhota
aur kitne hai!
kitte bhi hon tujhe kya? — gadal ne nikalkar kaha
are aa gai! kahkar dullo bhitar bhagi
ane de aaj use tujhe bata dungi jithani! — gadal ne sir hilakar kaha
usi samay lota Dor liye mauni lauta usne dekha ki gadal ne apne kaDe aur hansli utarkar phenk di aur kaha — bhar gaya danD tera! ab marad ka sab mal dabakar bahuon ke kahne se beton ne mujhe nikal diya hai
narayan ka munh syah paD gaya wo gahne uthakar chala gaya mauni man hi man shankit sa bhitar aaya
dullo ne shikayat ki — suna tune dewar! dewrani ko gahne de diye ghutna akhir pet ko hi muDa chaar jagah baithegi, to beton ke khet ki Daur par DanDa dhua tak lag jayenge, pakka chabutara ghar ke aage ban jayega, samjha deti hoon tum bhole bhale thahre tiriya charittar tum kya jano dhandha hai ye bhi ab kahegi, phir banwa mujhe
gadal hansi, kaha — wah jithani, purane marad ka mol nae marad se tere ghar ki baiyar chukwati hongi gadal to malkin bankar rahti hai, samjhi! bandi bankar nahin chakari karungi to apne marad ki, nahin to bidhna mere thenge par samjhi! tu beech mein bolnewali kaun?
dullo ne rosh se dekha aur panw patakti chali gai
mauni ne dekha aur kaha — bahut baDh—baDhkar baten mat hank, samajh le ghar mein bahu bankar rah!
are tu to tab paida bhi nahin hua tha, balam! — gadal ne muskurakar kaha — tab se main sab janti hoon mujhe kya sikhata hai too? aisa koi mainne kaam nahin kiya hai, jo biradri ke nem ke bahar ho jab tu dekhe, mainne aisi koi baat ki ho, to hazar bar rok, par saut ki thasak nahin sahungi
to bataun tujhe! — wo sir hilakar bola
gadal hansakar obari mein chali gai aur kaam mein lag gai
thanDi hawa tez ho gai DoDi chupchap bahar chhappar mein baitha hukka pi raha tha pite pite ub gaya aur usne chilam ulat di aur phir baitha raha
khet se lautkar nihal ne bail bandhe, nyar Dala aur kaha — kaka! DoDi kuch soch raha tha usne suna nahin
kaka! — nihal ne swar uthakar kaha
he! DoDi chauk utha — kya hai? mujhse kaha kuchh?
tumse na kahunga, to kahunga kisse? din bhar to tum mile nahin chimman kaDhera kahta tha, tumne din bhar manmauji baba ki dhuni ke pas bitaya, ye sach hai?
han, beta, chala to gaya tha
kyon gaye the bhala?
aise hi ji kiya tha, beta!
aur qasbe se ghi katu kya karaya ki baniye ka adami aaya tha mainne kaha — nahin hai, wo bola — leke jaunga jhagDa hote hote bacha
aisa nahin karte, beta! — DoDi ne kaha — bauhre se koi jhagDa mol leta hai?
nihal ne chilam uthai, kanDon mein se anch binkar dhari aur phoonk lagata hua aaya kaha — main to gaya nahin sir phoot jate narayan ko bheja tha
kahan? DoDi chaunka
usi kulachchhani kulborni ke pas
apni man ke pas?
na jane tumhein usse kya hai, ab bhi tumhein us par ghussa nahin aata use man kahunga main?
par beta, tu na kah, jag to use teri man hi kahega jab tak marad jita hai, log baiyar ko marad ki bahu kahkar pukarte hain, jab marad mar jata hai, to log use bete ki amman kahkar pukarte hain koi naya nem thoDi hi hai
nihal bhunabhunaya kaha — theek hai, kaka theek hai, par tumne abhi tak ye to puchha hi nahin ki kyon bheja tha use?
han beta! — DoDi ne chaunkkar kaha — ye to tune bataya hi nahin! bata n?
danD bharwane bheja tha so panchayat juDwane ke pahle hi usne to gahne utar phenke
DoDi muskuraya kaha — to wo ye bata rahi hai ki gharwalon ne panchayat bhi nahin juDwai? yani hum use bhagana hi chahte the narayan le aya?
han
DoDi sochne laga
main pher aun? — nihal ne puchha
nahin beta! DoDi ne kaha — wo sachmuch ruthkar hi gai hai aur koi baat nahin hai tune roti kha lee?
nahin
to ja pahle kha le
nihal uth gaya, par DoDi baitha raha raat ka andhera sanjh ke pichhe aise aa gaya, jaise koi part ulat gai ho
door Dhola gane ki awaz aane lagi DoDi utha aur chal paDa
nihal ne bahu se puchha — kaka ne kha lee?
nahin to
nihal bahar aaya kaka nahin the
kaka usne pukara
rah par chiranji pujari gaDhwale hanumanji ke pat band karke aa raha tha usne puchha —kya hai re?
pany lagun, panDitji nihal ne kaha — kaka abhi to baithe the
chiranji ne kaha— are, wo wahan Dhol sun raha hai main abhi dekhkar aaya hoon
chiranji chala gaya, nihal thithak khaDa raha bahu ne jhankakar puchha— kya hua?
kaka Dhola sunne gaye hain — nihal ne awishwas se kaha — we to nahin jate the
jakar bula le aao raat baDh rahi hai — bahu ne kaha aur rote bachche ko doodh pilane lagi
nihal jab kaka ko lekar lauta, to kaka ki dehi tap rahi thi
hawa lag gai hai aur kuch nahin — DoDi ne chhoti khatiya par apni nikali tange sametkar lette hue kaha — roti rahne de, aaj ji nahin chahta
nihal khaDa raha DoDi ne kaha — are, soch to, beta! mainne Dhola kitne din baad suna hai
us din bhaiya ki suhagarat ko suna tha, ya phir aaj
nihal ne suna aur dekha, DoDi ankh michkar kuch gungunane laga tha
sham ho gai thi mauni bahar baitha tha gadal ne garam garam roti aur aam ki chatni le jakar khane ko dhar di
bahut achchhi bani hai — mauni ne khate hue kaha — bahut achchhi hai
gadal baith gai kaha — tum ek byah aur kyon nahin kar lete apni umir layaq?
mauni chaunka kaha — ek ki roti bhi nahin banti?
nahin, gadal ne kaha — sochte honge saut bulati hoon, par marad ka kya? meri bhi to Dhalti umir hai jite ji dekh jaungi to theek hai na ho te hukumat karne ko to ek mil jayegi
mauna hansa bola — yon kah hauns hai tujhe, laDne ko chahiye
khana khakar utha, to gadal hukka bharkar de gai aur aap diwar ki ot mein baithkar khane lagi itne mein sunai diya — are, is bakhat kahan chala?
zaruri kaam hai, mauni! — uttar mila — peskar sab ne bulwaya hai
gadal ne pahchana usi ke ganw ka to tha, ghotya maina ka chanda girraj gwariya zarur peskar ki gay ki charane ki baat hogi
are to raat ko ja raha hai? — mauni ne kaha — le chilam to pita ja
akarshan ne roka girraj baith gaya gadal ne dusri roti uthai kaur munh mein rakha
tumne suna? girraj ne kaha aur dam khincha
kya? mauni ne puchha
gadal ka dewar DoDi mar gaya
gadal ka munh rook gaya jaldi se lote ke pani ke sang kaur nigla aur sunne lagi kaleja munh ko aane laga
kaise mar gaya? — mauni ne kaha — wo to bhala changa tha!
thanD lag gai, raat ughaDa rah gaya
gadal dwar par dikhai di kaha — girraj!
kaki! — girraj ne kaha — sach marte bakhat uske munh se tumhara nam kaDha tha, kaki bichara baDa bhala manas tha
gadal stabdh khaDi rahi
girraj chala gaya
gadal ne kaha — sunte ho!
kya hai ree?
main zara jaungi
kahan? — wo atankit hua
wahin
kyon?
dewar mar gaya hai n?
dewar! ab to wo tera dewar nahin
gadal jhanjhanati hui hansi hansi — dewar to mera agle janam mein bhi rahega wahi na mujhe rukhai dikhata, to kya ye panw kate bina us dehri se bahar nikal sakte the? usne mujhse man phera, mainne usse mainne aisa badla liya usse!
kahte kahte wo kathor ho gai
tu nahin ja sakti — mauni ne kaha
kyon? — gadal ne kaha — tu rokega? are, mere khas pet ke jaye mujhe rok na pae ab kya hai? jise nicha dikhana chahti thi, wahi na raha aur tu mujhe roknewala hai kaun? apne man se i thi, rahungi, nahin rahungi, kaun tune mera mol diya hai itna bol to bhi liya — tu jo hota mere us ghar mein to, to jeebh kaDhwa leti teri
ari chal chal
mauni ne hath pakaDkar use bhitar dhakel diya aur dwar par khat Dalkar letkar hukka pine laga
gadal bhitar rone lagi, parantu itne dhire ki uski siski tak mauni nahin sun saka aaj gadal ka man baha ja raha tha raat ka tisra pahar beet raha tha mauni ki nak baj rahi thi gadal ne puri shakti lagakar chhappar ka kona uthaya aur sanpin ki tarah uske niche se rengkar dusri or kood gai
mauni rah rahkar taDapta tha himmat nahin hoti thi ki jakar sidhe ganw mein halla kare aur latth ke bal par gadal ko utha laye man karta susri ki tange toD de dullo ne wyangy bhi kiya ki uski lugai bhagkar nak kata gai hai, khoon ka sa ghoont pikar rah gaya gujron ne jab suna, to kaha — are buDhiya ke liye khoon kharaba karayega! aur abhi tera usne kharach hi kya karaya hai? do june roti kha gai hai, tujhe bhi to tikkaD khilakar hi gai!
mauni ka krodh bhaDak gaya
ghotya ka girraj suna gaya tha
jis waqt gadal pahunchi, patel baitha tha nihal ne kaha tha — khabardar! bhitar panw na dhariyo!
kyon laut i hai, bahu? patel chaunka tha bola— ab kya lene i hai?
gadal baith gai kaha — jab chhoti thi, tabhi mera dewar latth bandh mere khasam ke sath aaya tha isi ke hath dekhti rah gai thi main to socha tha marad hai, iski chhattar chhaya mein ji lungi batao, patel, wo hi jab mere adami ke marne ke baad mujhe na rakh saka, to kya karti? are, main na rahi, to inse kya hua? do din mein kaka uth gaya n? inke sahare main rahti to kya hota?
patel ne kaha— par tune beta beti ki umar na dekhi bahu
theek hai, gadal ne kaha — umar dekhti ki ijjat, ye kaho meri dewar se rar thi, khatam ho gai ye beta hai, maine koi biradri ke nem ke bahar ki baat ki ho to rokkar mujh par dawa karo panchayat mein jawab dungi lekin beton ne biradri ke munh par thuka, tab tum sab kahan the?
so kab? — patel ne ashchary se puchha
patel na kahenge to kaun kahega? pachchis adami khilakar luta diya mere marad ke karaj mein!
par pagli, ye to sarkar ka qanun tha
qanun tha! — gadal hansi — sare jag mein qanun chal raha hai, patel?
din dahaDe bhains kholkar lai jati hain mere hi marad par qanun tha? yoon na kahoge, beton ne socha, dusra ab kya dhara hai, kyon paisa bigaDte ho? kayer kahin ke?
nihal garja — kayer! hum kayer? tu sindhni?
han main sindhni! gadal taDpi — bol tujhmen hai himmat?
bol! — wo bhi chillaya
ja, biradri karaj mein nyota de kaka ke — gadal ne kaha
gadal ne kaha — dharam dhurandhron ne to Dubo hi di sari gujrat ki Doob gai, madho ab kisi ka aasra nahin kayer hi kayer base hain
phir achanak kaha — main karun parbandh?
too? — nihal ne kaha
han, main! aur uski ankhon mein pani bhar aaya kaha — wo marte bakhat mera nam leta gaya hai na, to uska parbandh main hi karungi
mauni ashchary mein tha girraj ne bataya tha ki karaj ka zordar intizam hai gadal ne darogha ko rishwat di hai wo idhar ayega hi nahin gadal baDa intizam kar rahi hai log kahte hai, use apne marad ka itna gham nahin hua tha, jitna ab lagta hai
girraj to chala gaya tha, par mauni mein wish bhar gaya tha usne uthte hue kaha — to gadal! teri bhi man ki hone doon, so gola ka mauni nahin darogha ka munh band kar de, par usse bhi upar ek darbar hai main qasbe mein baDe darogha se shikayat karunga
karaj ho raha tha pante baithtin, jimtin, uth jatin aur kaDhaw se pue utarte bahar marad intizam kar rahe the, khila rahe the nihal aur narayan ne laDai mein mahnga naj bechkar jo ghaDon mein noton ki chandi banakar Dali thi, wo nikli aur bauhre ka qarz chaDha par Dang mein logon ne kaha —gadal ka hi buta tha bete to haar baithe the qanun kya biradri se upar hai?
gadal thak gai thi aurton mein baithi thi achanak dwar mein se sipahi sa dikha bahar aa gai nihal sir jhukaye khaDa tha
kya baat hai, diwanji? — gadal ne baDhkar puchha
istri ka baDhkar puchhna dekh diwan sakapka gaya
nihal ne kaha — kahte hain karaj rok do
so, kaise? — gadal chaunki
daroghaji ne kaha hai diwanji ne namr uttar diya
kyon? unse puchhkar hi to kiya ja raha hai uska aspasht sanket tha ki rishwat di ja chuki hai
diwan ne kaha — janta hoon, daroghaji to mel mulaqat mante hain, par kisi ne baDe daroghaji ke pas shikayat pahunchai hai, daroghaji ko aana hi paDega isi se unhonne kahla bheja hai ki bheeD chhant do warna qanuni karrwai karni paDegi
kshanbhar gadal ne socha kaun hoga wah? samajh nahin saki boli — daroghaji ne pahle nahin socha ye sab? ab biradri ko utha den? diwanji, tum bhi baithkar pattal paroswa lo hogi so dekhi jayegi hum khabar bhej denge, darogha aate hi kyon hain? we to raja hai
diwanji ne kaha —sarkari naukari hai chali jayegi? aana hi hoga unhen
to aane do! — gadal ne chubhte swar se kaha — sab giraftar kar liye jayenge samjhi! raj se takkar lene ki koshish na karo
are to kya raj biradri se upar hai? — gadal ne tamakkar kaha — raj ke pise to aaj tak pise hain, par raj ke liye dharm nahin chhoD denge, tum sun lo! tum dharam chheen lo, to hamein jina haram hai
gadal ke panw ke dhamake se dharti chal gai
teen pante aur uth gai, antim pant thi nihal ne andhere mein dekhkar kaha — narayan, jaldi kar ek pant bachi hai n?
gadal ne chhappar ki chhaya mein se kaha — nihal!
nihal gaya
Darta hai? — gadal ne puchha
sukhe hothon par jeebh pherkar usne kaha — nahin!
meri kokh ki laj karni hogi tujhe — gadal ne kaha — tere kaka ne tujhko beta samajhkar apna dusra byah namanzur kar diya tha yaad rakhna, uske aur koi nahin
nihal ne sir jhuka liya
bhaga hua ek laDka aaya
dadi! wo chillaya
kya hai re? — gadal ne sashank hokar dekha
police hathiyarband hokar aa rahi hai
nihal ne gadal ki or rahasyabhri drishti se dekha
gadal ne kaha — pant uthne mein ziyada der nahin hai
lekin we kab manenge?
unhen rokna hoga
unke pas banduqen hain
banduqen hamare pas bhi hain, nihal! — gadal ne kaha — Dang mein banduqon ki kya kami?
par hum phir khayenge kya!
jo bhagwan dega
bahar police ki gaDi ka bhompu baja nihal aage baDha darogha ne utarkar kaha — yahan dawat ho rahi hai?
nihal bhaunchak rah gaya jis adami ne rishwat li thi, ab wo pahchan bhi nahin raha tha
han ho rahi hai? — usne kruddh swar mein kaha
pachchis adami se upar hai?
ginkar hum nahin khilate, daroghaji!
magar tum qanun to nahin toD sakte
raj ka qanun kal ka hai, magar biradri ka qanun sada ka hai, hamein raj nahin lena hai, biradri se kaam hai
to main giraftar karunga!
gadal ne pukara — nihal
nihal bhitar gaya
gadal ne kaha — pangat hone tak inhen rokna hi hoga!
phir!
phir sabko pichhe se nikal denge agar koi pakDa gaya, to biradri kya kahegi?
par ye waise na rukenge goli chalayenge
tu na Dar chhat par narayan chaar adamiyon ke sath banduqen liye baitha hai
nihal kanp utha usne ghabraye hue swar se samajhne ki koshish ki — hamari topidar hain, unki raiphal hain
kuch bhi ho, pangat utar jayegi
aur phir!
tum sab bhagna
hathat lalten bujh gai dhany—dhany ki awaz i
goliyan andhkar mein chalne lagin
gadal ne chillakar kaha — saugandh hai, khakar uthna
par sabko jaldi ki phikar thi
bahar dhany—dhany ho rahi thi koi chillakar gira
pant pichhe se nikalne lagi
jab sab chale gaye, gadal upar chaDhi nihal se kaha — beta!
uske swar ki akhanD mamta sunkar nihal ke rongte us halchal mein bhi khaDe ho gaye isse pahle ki wo uttar de, gadal ne kaha — tujhe meri kokh ki saugandh hai narayan ko aur bahu—bachchon ko lekar nikal jo pichhe se
aur too?
meri phikar chhoD! main dekh rahi hoon, tera kaka mujhe bula raha hai
nihal ne bahs nahin ki gadal ne ek banduqwale se bhari banduq lekar kaha — chale jao sab, nikal jao
santan ke moh se jakDe hue yuwkon ko wipatti ne andhkar mein wilin kar diya
gadal ne ghoDa dabaya koi chillakar gira wo hansi wikral hasya us andhkar mein goonj utha
darogha ne suna to chaunkah aurat! marad kahan gaye! uske kuch sipahiyon ne pichhe se gheraw Dala aur upar chaDh gaye goli chalai gadal ke pet mein lagi
yudh samapt ho gaya tha gadal rakt se bhigi hui paDi thi police ke jawan ikatthe ho gaye
darogha ne puchha — yahan to koi nahin?
huzur! — ek sipahi ne kaha — ye aurat hai
darogha aage baDh aaya usne dekha aur puchha — tu kaun hai?
gadal muskrai aur dhire se kaha — karaj ho gaya, daroghaji! aatma ko santi mil gai
darogha ne jhallakar kaha — par tu hai kaun?
gadal ne aur bhi kshain swar se kaha — jo ek din akela na rah saka, usi ki
aur sir luDhak gaya uske hothon par muskurahat aisi dikhai de rahi thi, jaise ab purane andhkar mein jalakar lai hui pahle ki bujhi lalten
स्रोत :
पुस्तक : हिंदी कहानियाँ जैनेंद्र कुमार संपादित (पृष्ठ 277)
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