मैं अमीर नहीं हूँ। बहुत कुछ समझदार भी नहीं हूँ। पर मैं परले दरजे का माँसाहारी हूँ। मैं रोज़ जंगल को जाता हूँ और एक-आध हिरन को मार लाता हूँ। यही मेरा रोज़मर्रा का काम है। मेरे घर में रुपये-पैसे की कमी नहीं। मुझे कोई फ़िकर भी नहीं। इसी सबब से हर रोज़ मैं शिकार के पीछे पड़ा रहता हूँ। मुझे शिकार का बड़ा भारी शौक़ है। यहाँ तक कि मैं उसके सामने अपने माँ, बाप, पुत्र, कलत्र और प्यारे प्राणों को भी कोई चीज़ नहीं समझता हूँ। आप लोग मेरे कहने को अगर झूठ समझते हों तो आप एक दिन के शिकार का मेरा वृत्तांत सुन लीजिए। उस वृत्तांत को सुनकर मुझे भरोसा है कि आप यह अनुमान कर सकेंगे कि मुझे शिकार ज़्यादा प्यारा है कि अपना प्राण। अच्छा, अब उस वृत्तांत को सुनिए—
मेरे यहाँ आदमियों की कमी नहीं है। अगर मैं चाहूँ तो शिकार को जाते वक़्त एक की जगह कई आदमी ले जा सकता हूँ। लेकिन मेरी आदत कुछ ऐसी पड़ गई है कि चोर की तरह अकेले जाना ही मुझे अच्छा लगता है। शिकार के हाथ लग जाने पर मुझे उतनी ही ख़ुशी होती है जितनी कि चोर को मनमाना माल मिल जाने से होती है।
एक दिन की बात सुनिए। गर्मी का मौसम था। पल-पल पर गर्मी बढ़ती जाती थी और आदमी पानी-पानी चिल्लाकर अपने गले को और भी ज़्यादा सुखाते जाते थे। ऐसे वक़्त में मेरे गाँव के कुछ आदमी मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि गाँव के पास का तालाब क़रीब-क़रीब बिलकुल सूख गया है। बीच में थोड़ा-सा पानी रह गया है। वही पानी पीकर हम लोग किसी तरह से अपने प्राण बचाते हैं। पर कई दिनों से, रात के वक़्त, एक बहुत बड़ा जंगली सूअर वहाँ पर आता है। वह उस कुंड से पानी भी पीता है और उसमें लोटकर बचे हुए पानी को कीचड़ कर देता है। इस वजह से वह पानी हम लोगों के पीने के लायक़ नहीं रह जाता। आप इसका कुछ बंद-ओ-बस्त कीजिए।
यह सुनकर मुझे बड़ी ख़ुशी हुई, क्योंकि मैं एक शौक़ीन शिकारी हूँ और निशाना भी बहुत अच्छा लगाता हूँ। मैंने उन लोगों से कहा कि आज चाँदनी रात है। इसलिए आज ही मैं इस सूअर का शिकार खेलना चाहता हूँ। तुम अभी जाकर तालाब के पास के पेड़ पर एक मचान बना दो। वे तो यह चाहते ही थे। उन्होंने फ़ौरन ही एक मचान मेरे लिए तैयार कर दिया।
रात हुई। आठ बज गए। मैंने खाने को खाया; अपनी मामूली शिकारी पोशाक पहनी; बंदूक़ हाथ में उठाई और एक भाला और एक पेशक़ब्ज़ भी हाथ में लिया। इस तरह साज-सामान से दुरुस्त होकर मैं उस तालाब की तरफ रवाना हुआ। तालाब के पास पेड़ पर मचान को देखकर मैं ख़ुशी से फूल उठा। भाले को मैंने उस मचान के ठीक नीचे गाड़ दिया और चढ़कर उसके ऊपर आसन जमाकर मैं बैठ गया।
वहाँ पर मैं बिलकुल अकेला था। मगर मैं बड़ा निडर हूँ। मुझे ज़रा भी डर न लगा। वायु मंद-मंद चल रही थी। उसने नींद को झटपट मेरी आँखों के सामने लाकर खड़ा कर दिया। मगर मैं उसके क़ाबू में आनेवाला आदमी नहीं। इसलिए उस बेचारी को मुझसे दो गज़ दूर ही खड़ा रहना पड़ा।
इतने में कुछ दूर पर मुझे आहट मालूम हुई। मैं समझ गया कि वराह महाराज की सवारी आ गर्इ। मेरा यह अनुमान ठीक निकला। तालाब के पास एक गुफ़ा थी। वहीं पर वह सूअर आकर कंद-मूल खोद-खोदकर खाने लगा। मैंने अपनी बंदूक़ सँभाली, और इस ताक में लगा, कि वह सूअर वहाँ से ज़रा और आगे बढ़े तो मैं उसे अपनी गोली का निशाना बनाऊँ। इतने में एक और अजीब घटना हुई। जिस पेड़ पर मैं था, उस पर एक बड़ा ही भयानक साँप चढ़ा। साँप काला था। वह धीरे-धीरे मेरे मचान की तरफ बढ़ा और मेरे ऊपर चढ़ आया। मैं काँप उठा। मैंने समझा कि मेरी मौत आ गई। मगर मैं चिल्लाया नहीं। और न उस साँप को अपने शरीर से अलग फेंक देने ही की मैंने कोशिश की। मैंने सोचा कि अगर मैं चिल्लाऊँगा, या इस साँप को पकड़कर ज़मीन में पटकूँगा, तो आवाज़ सुनकर वह सूअर भाग जाएगा। अब आप समझ गए होंगे कि जैसा मैंने ऊपर कहा है, मुझे अपने प्राण उतने प्यारे नहीं है, जितना कि मुझे शिकार प्यारा है।
मैं पत्थर का हो गया। ज़रा भी अपने आसन को मैंने नहीं हिलाया। वह साँप पीठ से मेरे कंधे पर आया। और कंधे से पेट की तरफ़ नीचे उतरकर उसने अपना फ़न मेरे पैर के अंगूठे और उसके पास की उँगली के बीच में डाला। अब मुझसे न रहा गया। वहाँ पर मैंने उसके सिर को इस मज़बूती के साथ दबाया कि वह साँप एक ही मिनट में फटक-फटक कर वहीं मर गया। मेरे शिकार का पहला कांड यहाँ पर ख़त्म हो गया।
शूकरराज अब तक उस गुफ़ा के पास खोद ही खाद में लगे थे, कि तालाब के पास पानी पीने के लिए एक भयानक भालू आ पहुँचा। अगर मैं चाहता तो उसे वहीं पर मार गिराता। मगर सूअर के भाग जाने के डर से मैंने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा। जाम्बुवान्नन्दन पानी पीकर तालाब के पास खड़े-खड़े दम लेने लगे। इतने में एक बहुत बड़ा शेर आता हुआ दिखाई दिया। शेर बहुत प्यासा था। इसलिए जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाता हुआ वह आ रहा था। रीछराज की नज़र ज्योंही शेर पर पड़ी त्योंही आप पर क्वार के महीने की-सी जूड़ी चढ़ आई। आपको उस वक़्त और कुछ न सूझा। आप काँपते हुए उसी पेड़ पर चढ़े जिसपर कि मैं बैठा हुआ था। मेरे मचान के नीचे ही एक डाल थी। उसी पर वह आकर खड़ा हो गया और एक दूसरी डाल को अपने अगले पैरों से उसने ख़ूब मज़बूती से पकड़ लिया। डर भी बुरा होता है। उस वक़्त मारे डर के वह रीछ इतने ज़ोर से काँपता था कि वह उतना बड़ा पेड़ भी हिल रहा था। मैं आप से कोई बात छिपाना नहीं चाहता। मेरा बदन पसीने-पसीने हो गया। मुझ पर ख़ौफ़ ग़ालिब हो आया। मैंने कहा कि अगर मैं शोर करूँगा या कुछ भी हाथ-पैर हिलाऊँगा, तो यह रीछ फ़ौरन ही मुझ पर हमला करेगा। इसलिए साहस करके मैं वहीं पर जमा हुआ बैठा रहा।
शेर तालाब के पास पहुँचा। पहुँचकर उसने अच्छी तरह पानी पिया। वह किनारे पर बैठ गया, और अपनी मूँछे सुधारने और धीरे-धीरे ग़ुर्राने लगा। शेर मेरे मचान के बिलकुल ही सामने था। यह हालत देखकर उस पर वार करने के लिए मैंने अपनी बंदूक़ सँभाली। इस बीच में वह सूअर गुफ़ा की तरफ़ से चला और तालाब के पास आया। अहा! वह सूअर था कि हाथी का बच्चा! ऊँचाई में वह कोई छह फुट था। उसके दो दाँत हाथी के दाँतों के समान बाहर निकले हुए थे वे इतने बड़े और मज़बूत थे कि तीन-चार फुट घेरे के तने वाले पेड़ को भी वह एक ही आघात में गिरा सकता था। उसे देखकर यह शंका होती थी कि कहीं प्रत्यक्ष दूसरे वराहजी तो नहीं अवतार ले आए।
आपने शायद सुना होगा कि बड़े-बड़े जंगली सूअर शेर से नहीं डरते। सूअर के पैने-पैने प्रकाशमान दाँतों को देखकर शेर को सूअर पर हमला करने का साहस नहीं होता था। सूअर को सामने आता देख मेरे शिकारी जोश ने ज़ोर पकड़ा। उस भयानक अवस्था में भी मैंने कंधे पर बंदूक़ रखी और सूअर को लक्ष्य करके गोली छोड़ दी। यकायक दन की आवाज़ हुई। सूअर को गोली लगी। मगर उसने समझा कि सामने बैठे हुए ग़ुर्राने वाले शेर ने मुझ पर यह चोट की है। बस, एकदम वह शेर पर टूट पड़ा। दोनों में बड़ा भयानक युद्ध हुआ। आख़िरकार वनराज को शूकरराज की कराल डाढ़ों का चबैना हो जाना पड़ा। इधर मेरी गोली के आघात से वराहजी भी स्वर्गलोक को सिधारे। यहाँ पर मेरे शिकार का दूसरा भी कांड समाप्त हुआ।
आपसे मैं कह चुका हूँ कि एक भाला मैं घर से ले आया था और मचान के नीचे ही उसे मैंने सीधा खड़ा कर दिया था। ज्योंही मेरी बंदूक़ से गोली छूटी और दन से आवाज़ हुई, त्योंही नीचे डाल पर बैठे हुए रीछ ने समझा कि वह उसी पर छोड़ी गई । इससे मारे डर के उसके हाथ से वह डाल, जो उसने हाथों से पकड़ रखी थी, सहसा छूट गई। रीछ डाल से नीचे गिरा। मगर ज़मीन पर पहुँचने के पहले ही मेरा भाला उसकी छाती को पार कर गया। ज़रा देर में उस रीछ का भी काम तमाम हो गया और उसके साथ मेरे शिकार का यह तीसरा कांड भी तमाम हुआ।
इस बहादुरी के लिए आप चाहे मुझे शाबाशी दें, चाहे मेरी सिफ़ारिश करके गवर्नमेण्ट से विक्टोरिया-क्रास का पदक दिलावें, मगर अब मैं कभी बंदूक़ हाथ से न उठाऊँगा। मैंने शिकार करना एकदम छोड़ दिया है। मैं नहीं चाहता कि मैं अपनी जान को फिर इतने बड़े जोखों में डालूँ।
main amir nahin hoon bahut kuch samajhdar bhi nahin hoon par main parle darje ka mansahari hoon main roz jangal ko jata hoon aur ek aadh hiran ko mar lata hoon yahi mera rozmarra ka kaam hai mere ghar mein rupye paise ki kami nahin mujhe koi fikar bhi nahin isi sabab se har roz main shikar ke pichhe paDa rahta hoon mujhe shikar ka baDa bhari shauq hai yahan tak ki main uske samne apne man, bap, putr, kalatr aur pyare pranon ko bhi koi cheez nahin samajhta hoon aap log mere kahne ko agar jhooth samajhte hon to aap ek din ke shikar ka mera writtant sun lijiye us writtant ko sunkar mujhe bharosa hai ki aap ye anuman kar sakenge ki mujhe shikar ziyada pyara hai ki apna paran achchha, ab us writtant ko suniye—
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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।