कामरेड विजय मित्र की मृत्यु को लेकर हुए हंगामे के बाद सरकार ने हृदय-रोग विशेषज्ञ डॉ. सी.के.भगत को निलंबित करते हुए उनके ख़िलाफ़ तीन सदस्यीय जाँच-दल नियुक्त कर दिया। जाँच दल को पंद्रह दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देने के साथ मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए जाँच को मुख्य रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित करने का निर्देश दिया गया थाः
(क) डॉ. सी.के. भगत की चिकित्सा के दौरान पेशेंट विजय मित्र की हुई मृत्यु का वास्तविक कारण।
(ख) एक जनवरी की रात ड्यूटी पर न रहते हुए भी डॉ. सी.के. भगत का आई.सी.सी.यू. में ड्यूटी करना।
(ग) डॉ. सी.के. भगत का व्यक्तिगत आचरण।
(घ) और डॉ. सी.के. भगत द्वारा दिए गए ‘डेथ सर्टिफ़िकेट’ की वैधानिक हैसियत जाँच दल में डॉ. रजनीश आचार्य, कार्डियोलॉजिस्ट, डॉ. जीवकांत यादव, न्यूरोलाजिस्ट, तथा डॉ. रामाशीष देव, साइकियाट्रिस्ट शामिल थे। अपने-अपने क्षेत्र के इन विशेषज्ञों ने अपना कार्य शुरू करते हुए सबसे पहले गवाहों, साक्ष्यों और परिस्थितियों पर ग़ौर किया। इस क्रम में जाँच-दल के दायरे में शामिल सभी पक्षों को नोटिस जारी किया, फिर उन्हें अपना बयान दर्ज कराने के लिए एक-एक कर तलब किया, जाँच दल को सहयोग करते हुए सभी सबद्ध पक्षों ने अपने बयान दर्ज कराए, जो इस प्रकार है:
डॉ. सी.के. भगत का बयानः
यह सच है कि एक जनवरी की रात कार्डियोलॉजी में मेरी ड्यूटी नहीं थी, लिहाज़ा मैं अपने क्वार्टर में था और अपनी लकवाग्रस्त पत्नी को बाथरूम से लाकर बेड पर लिटा ही रहा था कि मेरे क्वार्टर की कॉल-बेल बज उठी थी, मैंने सोचा कि पत्नी को बेड पर लिटाकर, क्योंकि वह थोड़ी देर टी.वी. देखना चाहती थी, इसलिए उसकी पीठ के नीचे तकिए का सपोर्ट देकर और उसके पाँवों पर कंबल डालकर दरवाज़ा खोलूँ, लेकिन कॉल-बेल न सिर्फ़ लगातार बजती ही जा रही थी, बल्कि साथ-साथ दरवाज़े पर भी किसी के हाथों की दस्तक होने लगी थी। मुझे लगा कि बाहर कोई बेहद परेशानी और अधीरता में खड़ा है; मैंने पत्नी को जिस हालत में थी उसी में छोड़कर और लगभग दौड़ते हुए मुख्य द्वार खोला। द्वार पर पी.जी. स्टूडेंट डॉ. सुजाता राय खड़ी थी। वह बेहद घबराई और तनावग्रस्त दिख रही थी। उसकी साँसें तेज़-तेज़ चल रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वे दौड़ते हुए आई हो।
मुझे अपने सामने पाकर डॉ. सुजाता राय, जैसा कि सामान्यतः होता है, पी.जी. स्टूडेंट्स अपने सीनियर डॉक्टर का अभिवादन ज़रूर करते हैं, मेरा अभिवादन करना भी भूल गई और इससे पहले कि मैं उससे कुछ पूछू उसने स्वयं ही बताना शुरू कर दिया, “सर, अभी...अभी एक सीरियस पेशेंट आया है...मैंने उसे आई.सी.सी.यू. में भर्ती कर लिया है...कोई सीनियर डॉक्टर नहीं है...सर, कोई नहीं मिला... इसलिए आपको तकलीफ़ दे रही हूँ...प्लीज़ सर...आप ज़रा चल कर देख लें।”
डॉ. सुजाता राय के आग्रह के बावजूद मैंने निर्पेक्ष भाव से उससे पूछा “डॉ. राय क्या पेशेंट आपका रिश्तेदार है?”
“नो सर!” डॉ. सुजाता राय सकपकाई।
मेरे माथे पर बल पड़ गए, “फिर आप इतनी इमोशनल क्यों हो रही हैं?”
डॉ. सुजाता राय को कोई जवाब नहीं सूझा। बड़ी मुश्किल से थूक निगलते हुए बोल पाई, “सॉरी सर।”
“किसकी ड्यूटी है?” मैंने शुष्क स्वर में पूछा।
डॉ. सुजाता राय ने बताया, “डॉ. चौधरी की!”
“क्यों? कहाँ हैं डॉ. चौधरी?”
“सर, डॉक्टर चौधरी अभी तक आए नहीं हैं। मैंने उनके घर फ़ोन लगाने की कोशिश की, लेकिन घंटी बजती रही...कोई रेस्पांस नहीं हुआ...शायद फाल्स रिंग...”
डॉ. सुजाता राय की बात मैंने बीच में काट दी, “क्यों, कैंपस में कोई और सीनियर नहीं मिला?”
“नहीं सर, डायरेक्टर साहब सीनियर डॉक्टर की एक टीम के साथ सी.एम. हाउस गए हैं...रूटीन चेकअप के लिए।” डॉ. सुजाता राय ने मजबूरन मेरे पास आने की जैसे सफ़ाई-सी दी।
उस वक़्त मेरी तत्काल इच्छा हुई कि मैं अपनी ड्यूटी न होने का बहाना करके या फिर अपनी पत्नी की बीमारी का हवाला देकर छुटकारा पा लूँ, पर डॉ. सुजाता राय की घबराहट और बेचारगी देखकर मुझे ऐसा करना अनैतिक-सा लगा, लिहाज़ा मैंने डॉ. सुजाता राय को आश्वस्त किया, “बस दो मिनट डॉ. राय! पत्नी को लिटाकर आता हूँ...वह अभी-अभी बाथरूम से आई है...यू नो शी इज अनेबल टू डू एनीथिंग...आज नौकरानी भी छूट्टी पर है!”
मैं डॉ. सुजाता राय को वहीं छोड़कर, उल्टे पाँव बेडरूम की ओर लौट गया, जहाँ मेरी पत्नी अस्त-व्यस्त सी बेड पर पड़ी थी। मैंने पत्नी को ठीक से लिटाया। उसके पाँवों पर कंबल डाला और टी.वी. ऑन करके उसे बताया, “एक सीरियस पेशेंट है...मैं उसे देखकर आता हूँ।”
पत्नी ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मैं उसकी बात सुने बग़ैर तेज़ी से बाहर चला आया। डॉ. सुजाता राय अपराध-बोध, आशंका और अजीब से आतंक में डूबी मेरे लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी। मैंने उस पर नज़र पड़ते ही टोका, “डॉ. राय, एक डॉक्टर की पहली शर्त जानती हो क्या है?”
डॉ. सुजाता राय ने मेरी ओर उत्सुकता से देखा। मैंने उसे लक्ष्य करके कहा, “नो सेंटीमेंट्स...नो इमोशंस...नो इंवाल्वमेंट्स!”
मैंने यह बात दो कारणों से कही थी। एक तो यह मेरी धारणा रही है कि लड़कियाँ मूलतः भावुक होती हैं और दूसरे यह कि मैं चाहता था कि डॉ. सुजाता राय जो अब तक असहज दिख रही थी, सहज हो जाए।
पता नहीं, डॉ. सुजाता राय सहज हुई या नहीं, लेकिन मेरे साथ इंस्टीट्यूट बिल्डिंग की ओर बढ़ते हुए उसने मुझे बताया, “सर, मैंने ऐसी ख़ामोश भीड़ नहीं देखी, जिसकी आप उपेक्षा कर जाएँ। शायद इसीलिए मैं इतनी परेशान और एक्साइटेड दिख रही हूँ।”
मुझे लगा, डॉ. सुजाता राय सफ़ाई दे रही है। शायद मेरी टिप्पणी ने उसे आहत किया था। मैंने उसके चेहरे को देखने की कोशिश की, लेकिन उसकी चाल में अप्रत्याशित आई तेज़ी से, ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया। मैंने भी चुप रहना बेहतर समझा। फिर हम सारी राह चुप ही रहे।
जिस वक़्त मैं आई.सी.सी.यू. में दाख़िल हुआ सिस्टर एलविन पेशेंट को आई.वी. लाइन लगा चुकी थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही उसने मुझे मुस्कुरा कर “गुड इवनिंग” कहा। उसकी प्रोफ़ेशनल मुस्कुराहट में कशिश नहीं थी, या कि मैं ही ऐसी मुस्कुराहट का अभ्यस्त था, सो मैंने उस पर ख़ास ध्यान नहीं दिया और उससे चार्ट लेकर पेशेंट की डिटेल्स देखने लगा।
चार्ट में पेंशेंट का नाम विजय मित्र, उम्र 51 वर्ष दर्ज था। उसका ब्लड प्रेशर असामान्य रूप से बढ़ा हुआ था। उसकी ई.सी.जी. रिपोर्ट ख़तरनाक संकेत दे रही थी। मैंने एक नज़र पेशेंट पर डाली। पेशेंट के चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क चढ़ा था, जिसके ज़रिए वह कठिनाई से साँस ले पा रहा था। ई.सी.जी. मॉनिटर स्क्रीन पर उठती-गिरती तरंगे बता रही थी कि पेशेंट अपनी मौत से जूझ रहा है।
मैं डॉ. सुजाता राय के इस प्रश्न का आशय तत्काल नहीं समझ सका, बल्कि मुझे उसके इस मासूम सवाल पर हैरानी-सी हुई, तो मैंने उसे घूरते हुए पूछा “ह्वाट डू यू मीन?”
“दरअसल, सर!” डॉ. सुजाता राय कुछ कहते-कहते रुक गई। शायद कोई हिचक उसके आड़े आ गई थी।
उसकी हिचक मेरी समझ से परे थी। मुझे लगा कि डॉ. सुजाता राय पेशेंट के प्रति कुछ ज़्यादा की कांशस है, इसलिए उत्सुकतावश मैंने पूछा, “डॉ. राय, समथिंग रांग विद यू?”
“नो...नो...सर!” डॉ. सुजाता राय घबरा गई गोया मैंने उसकी चोरी पकड़ ली हो। उसने स्वयं को संयत करने की कोशिश में कहा, “सर, मुझे लगता है, इस आदमी को मायोकार्डियल इनफ़ैर्कशन नहीं हो सकता।”
“क्यों, ऐसा तुम कैसे कह सकती हो?” पहली बार मैंने ख़ुद को विश्वास दिलाने के लिए जैसे अपनी आँखें ई.सी.जी. मॉनिटर स्क्रीन पर टिका दीं।
“सर, एक ऐसा आदमी जो हिंसा में विश्वास करता हो...जिसके लिए किसी को छः ईंच छोटा कर देना मामूली बात हो...जिसका नाम जनसंहारों का पर्याय हो, उसके पास भी दिल जैसी कोई चीज़ हो सकती है क्या?” डॉ. सुजाता राय के स्वर में उत्तेजना इस क़दर व्याप्त थी कि मैं निरपेक्ष नहीं रह सका। मैंने डॉ. सुजाता राय को आश्चर्य से देखा—यह डॉक्टर है या महज़ मामूली लड़की?
मैंने उसकी आँखों में कुछ तलाशने की कोशिश की, शायद मासूमियत या कि मायूसी, ठीक-ठीक नहीं कह सकता, लेकिन अपना असमंजस छुपा नहीं पाया, “मैं कुछ समझा नहीं, डॉ. राय?”
“सर! यह आदमी एक नक्सल लीडर है। यू नो; नक्सलीज़ डू बिलीव इन ब्लड शेड्स!” डॉ. सुजाता राय की आवाज़ लरज़ रही थी।
बयान देते-देते डॉ. सी.के. भगत ठिठक गए, क्योंकि उन्हें ऐन इसी वक़्त अपनी वह मनःस्थिति याद आ गई। जब डॉ. सुजाता राय ने कहा था कि “नक्सलीज़ बिलीव इन ब्लड शेड्स!”
(उस वक़्त उनके माथे पर बल पड़ गए थे जैसे वह कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों। उनकी स्मृति में पेशेंट-चार्ट पर दर्ज नाम विजय मित्र स्फुर्लिंग की तरह कौंधा था और वह मन ही मन बुदबुदाए थे—नक्सल लीडर विजय मित्र! सहसा वह एक झटके से उठे थे और पेशेंट के क़रीब जा पहुँचे थे। पेशेंट के चेहरे पर ऑक्सीजन-मास्क लगे होने की वजह से उन्होंने पहले उसे बहुत ग़ौर से नहीं देखा था, तब कोई दिलचस्पी भी नहीं थी, लेकिन अभी, इस वक़्त वह पेशेंट के बहुत क़रीब खड़े होकर न सिर्फ़ उसे बेहद ध्यान से देख रहे थे, बल्कि जैसे लगातार अपनी याददाश्त पर भी ज़ोर डाल रहे थे। क़द, काठी, रंग रूप वहीं होने के बावजूद पेशेंट के चेहरे पर व्याप्त प्रौढ़ता, बालों से झाँकती सफ़ेदी और निश्चल मुँदी आँखें उनके देखे विजय मित्र से मेल नहीं खाती थी। बीस-पच्चीस साल पहले के विजय मित्र को याद करते हुए उनकी आँखें सुखद आश्चर्य से फैलती चली गई थी। वह उस क्षण सचमुच भावुक हो आए थे।)
डॉ. सी.के. भगत को चुप और कुछ असामान्य देखकर साइकियाट्रिस्ट डॉ., रामाशीष देव ने टोका, “वाट हैपेंड, डॉ. भगत?”
डॉ. सुजाता राय ने मुझे यही पूछा था, “वाट हैपेंड, सर?”
मैंने डॉ. सुजाता राय के इस सवाल का जवाब देने के बजाए सिस्टर एलविन को पुकारा। सिस्टर एलविन लगभग दौड़ती हुई मेरे पास आई। मैंने उसे आदेश दिया, “सिस्टर पेशेंट का ब्लड बायोकेमेस्ट्री के लिए भिजवाइए और हाँ, पेशेंट के अटेडेंट को बुलाइए।”
सिस्टर एलविन उलटे पाँव लौट गई। डॉ. सुजाता राय पेशेंट को स्ट्रेप्टोकिनेस दे चुकी थी। मैंने आई.वी. लाईन को चेक किया। इस तरह चेक करने से मुझे संतोष हुआ। फिर मैं ई.सी.जी. मॉनिटर के पास बैठकर सिस्टर एलविन की प्रतीक्षा करने लगा। शायद मुझे बेहद सीरियस देखकर डॉ. सुजाता राय ने टोका, “सर, क्या सोच रहे हैं, आप?”
(डॉ.सी.के. भगत को अच्छी तरह याद है कि उस वक़्त वह विजय मित्र के बारे में सोच रहे थे। मेडिकल कॉलेज में थर्ड ईयर में जो लड़का उनका रूम मेट बना था वह विजय मित्र ही था। सामान्य क़द-काठी का साँवला-सा विजय मित्र क्लास में भी ज़ियादातर ख़ामोश ही रहता। अपने आप में खोया हुआ गोया मन कहीं और तन कहीं और हो। सेकेंड ईयर तक उसका विजय मित्र से बस “हाय-हैलो” भर का रिश्ता था, थर्ड ईयर में जब विजय मित्र उनके साथ एक ही कमरे में रहने लगा, तब उसे क़रीब से देखने-जानने का मौक़ा मिला। शुरू-शुरू में विजय मित्र उनके साथ बस काम भर ही बात करता, लेकिन धीरे-धीरे उनके बीच में अनौपचारिकता की दीवार ढहने लगी थी। वे अब कुछ-कुछ खुलकर बोलने-बतियाने लगे थे।
उन दिनों विजय मित्र देर रात तक जागता और सिरहाने टेबल लैंप जलाकर पढ़ता रहता। चूँकि उन्हें रात में देर तक जागने की आदत नहीं थी, इसलिए वह जल्दी ही सो जाते, लेकिन देर रात जब कभी नींद टूटती, वह पाते कि विजय मित्र पढ़ रहा है। ऐसी ही एक रात जब उनकी आँख खुली, तो उन्होंने पाया कि विजय मित्र अपने बेड पर नहीं है। उस रात यह सोचकर कि विजय मित्र बाथरूम गया होगा, वह सो गए थे। पर अक्सर ऐसा होता कि जब भी वह रात में उठते, विजय मित्र अपने बेड पर नहीं मिलता। विजय मित्र का इस तरह रात को ग़ायब हो जाना, जितना औत्सुक्यपूर्ण था, उतना ही रहस्यमय भी। आख़िरकार एक दिन उन्होंने विजय मित्र से पूछ ही डाला था, “पार्टनर, ये रात-रात भर कहाँ ग़ायब रहते हो? कोई चक्कर-वक्कर तो नहीं?”
विजय मित्र न तो चौंका था, न ही कोई चोरी पकड़ लिए जाने जैसा भाव उसके चेहरे पर दिखा था। एक मद्धिम-सी मुस्कुराहट उसके होंठों पर ज़रूर उभरी थी, “कोई चक्कर-वक्कर नहीं साथी! बस, यूँही मन नहीं लगता, तो घूमने निकल जाता हूँ।”
विजय मित्र के जवाब से वह संतुष्ट नहीं हुए थे, लेकिन विजय मित्र का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि वह आगे कुछ नहीं पूछ पाए थे। उसे कुरेदना, ख़्वाह-मख़्वाह उसके निजी जीवन में हस्तक्षेप-सा लगा था। वह कुछ अबूझ जानने की फाँस दबा गए थे।
लेकिन यह रहस्य...अबूझपन ज़ियादा दिनों तक छुपा नहीं रह पाया था। विजय मित्र के सिरहाने, किताबों के बीच, कई ऐसी किताबें दिखने लगी थी, जिनका मेडिकल साइंस से कोई लेना-देना नहीं था। वह कभी कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र पढ़ता, तो कभी दास कैपिटल, वह अक्सर कार्ल मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, माओत्से तुंग की किताबों में खोया रहता और जब थक जाता तो आँखें मूद कर कुछ सोचता रहता। उन्हें लगता कि विजय मित्र अपना समय बर्बाद कर रहा है। रूम मेट होने के नाते उन्हें विजय मित्र का यह भटकाव अच्छा नहीं लगता, इसलिए उन्होंने विजय मित्र को समझाने की कोशिश की थी, “विजय इन फ़ालतू किताबों में अपना वक़्त क्यों बर्बाद कर रहे हो?”
विजय मित्र जैसे उनके इस आक्रमण के लिए पहले से तैयार था। शांत-चित्त उसने दलील दी थी, “तुम जिन किताबों को फ़ालतू कह रहे हो, दरअसल वे ही एक दिन दुनिया का नक़्शा बदल कर रख देंगी।”
“लेकिन ये किताबें तुम्हें डॉक्टर नहीं बनने देंगी।” उन्होंने प्रतिवाद किया था।
“शायद हाँ!” विजय मित्र विचलित होने के बजाए कहीं ज़्यादा दृढ़ हो आया था, “मैं डॉक्टर न भी बन पाऊँ...मरीज़ों की बीमारी का इलाज न कर पाऊँ...लेकिन मनुष्य को जो बीमारी भीतर ही भीतर खाए जा रही है, उसका कोई निदान ज़रूर कर सकूँगा।”
वह विजय मित्र को आवाक देखते रह गए थे—जैसे उसका दिमाग़ चल गया हो। लेकिन नहीं, विजय मित्र उनकी आँखों में आँखें डाले मुस्कुराए जा रहा था। उन्होंने एक बार फिर विजय मित्र को समझाने के प्रयास में उसके मर्म पर चोट की थी, “विजय, यह सब जानकर तुम्हारे घर वालों को दुख होगा। उन्होंने तुम्हें यहाँ डॉक्टर बनने के लिए भेजा है। उनकी तुमसे ढ़ेर सारी उम्मीदें होंगी। मुझे लगता है, तुम उनके साथ ज़ियादती कर रहे हो!” इस बार विजय मित्र ने विरोध नहीं किया, लेकिन वह उनकी बातों से सहमत हो, ऐसा भी नहीं लगा था। उन्हें अपनी कोशिश की निरर्थकता खल गई थी। अनचाहे ही उस दिन, एक गहरी चुप्पी उन दोनों के बीच तन गई थी।
उस दिन के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि विजय मित्र जो पढ़ता है, या रात-रात भर ग़ायब रहता है, या जो सोचता है, या जो करता है, उस सबका मेडिकल की पढ़ाई से कोई वास्ता नहीं है और वह लगभग आत्महंता हो चुका है। यह सब दुःखद था। उन्हें अफ़सोस होता और वह मन से चाहते कि विजय मित्र ऐसा न करे।
पता नहीं, विजय मित्र के प्रति वह किस भावना से भरे थे कि जब भी कभी मौक़ा मिलता, वह उसे समझाने से फिर भी स्वयं को रोक नहीं पाते, वह ऐसे वक़्तों में अक्सर उससे पूछते, “विजय, तुम्हें नहीं लगता है कि तुम अपने आपको वेस्ट कर रहे हो? यह जो अपॉर्चुनिटी मिली है, एक डॉक्टर बनने की, इसे तुम खो रहे हो...एक बेहतर कैरियर...एक बेहतर फ़्यूचर...एबब ऑल एक बेहतर ह्यूमन सर्विस का मौक़ा तुम गँवा रहे हो?”
“साथी! मैं तुम्हारी भावना की क़द्र करता हूँ। मैं मानता हूँ कि तुम जो कह रहे हो, उसमें कहीं ज़ियादा आकर्षण है...ज़िंदगी कहीं ज़ियादा सुविधाजनक हो सकती है। लेकिन...!” विजय मित्र एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोलता, “ग़रीबी...ग़ैर-बराबरी...भूख...अन्याय...दमन...शोषण...अत्याचार...मनुष्य के श्रम का अपमान, यह सब कुछ देखकर मैं बेचैन हो उठता हूँ...गहरे तक आहत और अपराध-बोध से भर जाता हूँ। मुझे लगता है, मैं इस मशीनरी का पुर्ज़ा नहीं बन सकता।”
विजय मित्र का यह फ़ैसलाकुन तेवर दिन पर दिन परवान चढ़ता गया था। वह अपनी रातें मज़दूर-बस्तियों में गुज़ारने लगा था। दिन जन-आंदोलनों...विरोध प्रदर्शनों...गोष्ठियों सेमिनारों में गुज़रते। वह कई-कई दिन हॉस्टल नहीं लौटता। उसकी गतिविधियाँ जिस तेज़ी से बढ़ रही थी, वह उतनी ही तेज़ी से मेडिकल की पढ़ाई से विमुख होता जा रहा था।
वह जब भी विजय मित्र को घेरने की कोशिश करते, वह उनसे कोई तीखा प्रश्न पूछ कर, उन्हें निरुत्तर कर देता, वह जब-तब कहता, “साथी, मेडिकल छात्रों का जितना शोषण होता है...बंधुआ मज़दूर-सा जो बर्ताव होता है, मैं सोचता हूँ, उसके ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाई जानी चाहिए...छात्रों को गोलबंद किया जाना चाहिए....”
विजय मित्र की बातें सुनकर उनके शरीर में झुरझुरी छूट जाती। वह बग़लें झाँकने लगते। कहीं कोई सुन न ले। वह कमरे के बाहर की आहट लेते और कमरे के भीतर विजय मित्र की उपस्थिति से सहमे रहते। वह उसके साथ असहज ज़रूर महसूस करते, लेकिन पता नहीं क्यों, उसकी अनुपस्थिति उन्हें बेहद खलती। यह अजीब वितृष्णापूर्ण आकर्षण था।
उन्हीं दिनों, अचानक एक दिन पुलिस कमरे की तलाशी लेने आ धमकी। पता चला, विजय मित्र गिरफ़्तार हो गया है। यह ख़बर सुनकर उनका ख़ून जम गया था। चेतना सुन्न हो गई थी। दिल बैठने लगा था। पुलिस जब तक कमरे की तलाशी लेती रही थी, वह दहशत के मारे डूबते-उतराते रहे थे।
पुलिस ने विजय मित्र की वे तमाम किताबें, जो उसके सिरहाने, बिस्तर के नीचे, अलमारी के अंदर और ट्रंक के भीतर रखी हुई थी, बतौर “आपत्तिजनक सामग्री” अपने साथ ले गई थी। जाने से पहले एक पुलिस अफ़सर ने उनसे भी विजय मित्र के बारे में कई प्रश्न पूछे थे, लेकिन उन्होंने ज़्यादातर प्रश्नों के प्रति अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की थी। उस वक़्त, उनके सीनियर्स, सहपाठियों और कई प्रोफ़ेसर्स ने उनके पक्ष में पुलिस अफ़सर को समझाया था, कि भगत कॉलेज का बेस्ट स्टूडेंट है और एक रूम में रहने के बावजूद उसका विजय मित्र से कोई लेना-देना नहीं है।
पुलिस के जाने के बाद वह बड़ी देर तक उभर नहीं पाए थे। मन में जारी धुक-धुकी और विजय मित्र का रह-रहकर आता ख़याल, उन्हें उद्वेलित करता रहा था। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस पूरी घटना से स्वयं को किस तरह असंपृक्त करें? उनकी आँखों में विजय मित्र का साँवला-सा चेहरा, चमकीली आँखें, विद्रोही तेवर बरबस उभर आता और वह जैसे स्वयं से ही पूछने लगते—विजय मित्र नक्सलबाड़ी क्या करने गया था? वहाँ पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कैसे कर लिया? वह जिस राह पर जा रहा है, वह सही है या ग़लत? वह अपने कैरियर से ज़्यादा क्रांति को तरजीह क्यों दे रहा है?
उस रात विजय मित्र का अस्त-व्यस्त बेड उन्हें बड़ी देर तक परेशान करता रहा। वह बड़ी देर तक उस ओर से स्वयं को विमुख रखने की कोशिश करते रहे। बड़ी देर तक वह विजय मित्र की स्मृति-छाया से जूझते रहे। बड़ी देर तक दोनों के बीच शह-मात का खेल चलता रहा। अंततः वह उठे थे और विजय मित्र के बेड को व्यवस्थित करने लगे थे। उसकी बिखरी किताबें क़रीने से अलमारी में लगाई थीं। गद्दे को झाड़ा था और उस पर चादर डाल दी थी। तकिए का कवर ठीक करते हुए उन्हें आभास हुआ था कि तकिए के अंदर कुछ है। उन्होंने उत्सुकता से तकिए के अंदर हाथ डाला था। वहाँ एक डायरी थी। लाल रंग के प्लास्टिक कवर वाली, उस डायरी में विजय मित्र ने बहुत सारी बातें लिख रखी थीं, घटनाएँ...विचार...निजी प्रसंग।
विजय मित्र की डायरी विजय मित्र की अंतरंग टिप्पणियों से भरी पड़ी थी। उसे पढ़ते हुए कभी रोमांचित तो कभी आतंकित होते रहे थे। उसी डायरी में विजय मित्र ने एक जगह लिखा था—“विश्लेषणात्मक रूख की कमी होने की वजह से हमारे बहुत से साथी जटिल समस्याओं का बार-बार गहराई से विश्लेषण और अध्ययन नहीं करना चाहते, बल्कि सीधे निष्कर्ष निकालना चाहते हैं, जो या तो मुकम्मल तौर पर सकारात्मक होते हैं अथवा मुकम्मल तौर पर नकारात्मक ”—माओ-त्से-तुंग।
इन पंक्तियों को पढ़ते हुए उन्हें विजय मित्र की मनःस्थिति का अंदाज़ा हुआ था और लगा था कि यह टिप्पणी एक तरह से उन्हें ही संबोधित करती है। अक्सर ऐसा होता कि विजय मित्र से होने वाली बातचीत से वह एकदम से असहमत होते और कई बार तो उसकी दलीलों की खिल्ली भी उड़ा देते, “डोंट लिव इन फ़ूल्स पैराडाइज़।”)
डॉ. सी.के. भगत के होंठ हिले। वह स्वगत की बुदबुदा रहे थे, “बेवक़ूफ़ कहीं का।”
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. जीवकांत यादव चौंको उन्होंने डॉ. सी.के. भगत को टोका, “डॉ. भगत, आर यू राइट?”
डॉ. सी.के. भगत ने स्वयं को संभाला, लेकिन अपनी झेंप छुपा नहीं पाए, “यस...यस, डॉ. यादव, आयम एबसल्यूटली राइट!”
इससे पहले कि कोई उनकी मनःस्थिति को पकड़ पाए, डॉ. सी.के. भगत ने स्वयं को संयत करते हुए अपने बयान का छूटा सिरा था लिया।
डॉ. सुजाता राय के यह पूछने पर कि मैं क्या सोच रहा हूँ, मैंने टालने की ग़रज़ से उससे ही पूछा, “बाय द वे, तुम इस पेशेंट को जानती हो?”
डॉ. सुजाता राय को संभवतः इस सवाल की क़तई उम्मीद नहीं थी, शायद इसीलिए क्षणभर को वह सकते में आ गई, लेकिन मुझे अपनी ओर एकटक देखता पाकर बोली, “सर, वो क्या है कि अख़बारों वग़ैरह में पढ़ती रही हूँ।”
“आईसी!” मैं मुस्कुराया, “मुझे लगा शायद तुम इसे पर्सनली जानती हो!”
“नहीं सर! ऐसी कोई बात नहीं।” डॉ. सुजाता राय जैसे सफ़ाई देने पर उतर आई, “पेशेंट के साथ जो लोग आए हैं, दरअसल उनकी बातों से भी भान हुआ कि यह पेशेंट नक्सल लीडर है।”
सहसा मुझे ख़याल आया कि सिस्टर एलविन अभी तक वापस नहीं आई है, लिहाज़ा मैंने पेशेंट की बाबत डॉ. सुजाता राय को कुछ हिदायत दी और तेज़ी से आई.सी.सी.यू. से बाहर चला आया।
सिस्टर एलविन मुझे कॉरीडोर में ही आती हुई मिल गई। वह बुरी तरह झुंझलाई हुई थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वह तीखे लहजे में लगभग फट-सी पड़ी, “सर, उधर कोई नहीं है। बायोकेमेस्ट्री में ताला लगा है।”
“क्या?” मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। इस इंस्टीट्यूट में व्याप्त यह अराजकता कोई नई बात नहीं, लेकिन उस वक़्त सिस्टर एलविन द्वारा दी गई यह सूचना मुझे नागवार लगी। मैं एकदम तैश में आ गया। सिस्टर एलविन को आई.सी.सी.यू. में जाने को बोल कर मैं तेज़ी से आगे बढ़ गया।
इंस्टीट्यूट के बाहर बरामदे में एक, ख़ामोश मगर बेचैन भीड़ खड़ी थी। मुझे देखते ही कई जोड़ी आँखें मेरे चेहरे पर टिकीं। उन आँखों में आशा थी...आशंका थी...जिज्ञासा भरी चुप्पी के पीछे छलछलाती हुई याचना थी। मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उस भीड़ से आँख मिला पाऊँ। बचकर निकल जाने की कोशिश में मैं डाक्टर्स चेंबर की ओर बढ़ा ही था कि यक-ब-यक पूरा इंस्टीट्यूट घुप्प अँधेरे में डूब गया बिजली गुल हो गई थी। अछोर-अँधेरे में जैसे हर चीज़ अपनी जगह पर ठहर गई थी।
इस भयावह अँधेरे के बीच एक बारगी मेरे दिमाग़ में एक साथ दो चेहरे कौंधे। पहला मेरी पत्नी का चेहरा, दूसरा आई.सी.सी.यू में अपनी मौत से लड़ रहे पेशेंट विजय मित्र का। दोनों चेहरे एक-दूसरे में गुड्डमुड्ड हो गए और मैं किंकर्तव्यविमूढ़-सा रौशनी आने का इंतिज़ार करता रहा।
मुझे आश्चर्य हो रहा था कि अभी तक इंस्टीट्यूट का जेनरेटर क्यों नहीं चालू हुआ? इस अप्रत्याशित विलंब और अँधेरे के आतंक में मेरे लिए और प्रतीक्षा करना मुश्किल हो गया। मैं अँधेरे में ही अंदाज़ के सहारे आई.सी.सी.यू. की ओर दौड़-सा पड़ा। आई.सी.सी.यू. में मेरे दाख़िल होते न होते बिजली आ गई या कि जेनरेटर चल पड़ा। झपाक से आई रौशनी मे मेरी आँखें चुंधिया गई। मैंने पलकें झपकाते हुए ई.सी.जी. मॉनिटर स्क्रीन पर टिका दीं। वहाँ “हार्ट बीट्स” बताने वाली रेखाओं का ग्राफ़ नदारद था। स्क्रीन पर सिर्फ़ एक सपाट-सी चमकती लकीर स्थिर थी। मैं दौड़ा हुआ पेशेंट के पास गया, उसकी कलाई अपने हाथ में लेकर नब्ज़ टटोलने लगा। मैं इस क़दर व्यग्र और विह्वल था कि पेशेंट की नब्ज़ पकड़ में नहीं आ रही थी। मैंने आनन-फ़ानन पेशेंट को कार्डियल पल्मोनरी रिससिटेशन देने की कोशिश की, लेकिन डॉ. सुजाता राय ने मुझे रोकते हुए कहा, “सर, पेशेंट इज नो मोर!”
मैंने ग़ौर किया कि डॉ. सुजाता राय उस वक़्त न तो भावुक थी न ही बेचैन। उसका स्वर निहायत सपाट था। मुझे लगा कि वह मेरी बेचैनी और भावुकता को लक्ष्य कर रही है, लेकिन सच तो यह है कि मैं उस वक़्त तक पेशेंट की मृत्यु को स्वीकार नहीं पाया था। मैंने हताश स्वर में डॉ. सुजाता राय से कहा, “नो डॉ. राय, वी कुड नाट सेव हिम!”
बयान देते-देते डॉ. सी.के. भगत रुके, उनके माथे पर पसीना छलक आया था, पसीना पोंछने के लिए रूमाल निकालते हुए उनका दिमाग़ कई-कई स्मृतियों में उलझ गया था। मन सुदूर अतीत ओर भाग छूटा था।
(लाख चाहकर भी विजय मित्र को बचाया नहीं जा सका था, हालाँकि उन समेत कई छात्रों ने तर्क दिया था कि किसी छात्र की राजनीतिक प्रतिबद्धता उसका निजी अधिकार है इस आधार पर उसे कॉलेज ने नहीं निकाला जाना चाहिए। लेकिन कॉलेज प्रशासन कोई दलील सुनने को तैयार नहीं था। बल्कि छात्रों के इस विरोधी तेवर के उग्र होने से पहले ही कॉलेज परिसर में सख़्ती शुरू कर दी गई थी। एहतियात के नाम पर पुलिस की तैनाती और कई प्राध्यापकों के धमकी भरे रवैये ने छात्रों का हौसला पस्त कर दिया था। विजय मित्र का निष्कासन पहले तो बहस का विषय बना रहा, फिर धीरे-धीरे विस्मृति के गर्भ में खो गया था।
तब भी विजय मित्र उनके दिल-ओ-दिमाग़ पर अर्से तक छाया रहा। कमरे में मौजूद उसका बेड, उसकी किताबें, ट्रंक, टेबुल लैंप और उसके कपड़े उसकी स्मृति को कहीं ज़्यादा सघन कर जाते। उसके शब्द, उसके भाव, उसकी भंगिमा, उसकी त्वरा और उसके तेवर...वह लाख चाहकर भी भुला नहीं पाते। जिस विजय मित्र के सदा विरोध में रहे, उसी विजय मित्र के लिए अपने मन की इस कमज़ोरी को कभी समझ नहीं पाया वह।
अचानक एक दिन जब विजय मित्र का सामान लेने उसके पिता मिहिजाम से आए थे तो उनके हताश और दरके व्यक्तित्व को देखकर वह भीतर तक हिल गए थे। बड़ी मुश्किल से उनसे कह पाए थे, “हमने बहुत कोशिश की लेकिन...”
उन्हें इस ‘लेकिन’ के आगे क्या कहना है, कुछ समझ नहीं आया था और न ही विजय मित्र के पिता ने कुछ जानने की ही कोशिश की थी। सामान समेटने और रिक्शे पर लदवाने के दरमियान एक ऐसी सख़्त चुप्पी बनी रही थी, जिसके भीतर इतना कुछ कहा जा चुका था, कि शब्दों के होने न होने का कोई अर्थ नहीं रह गया था, वह हतप्रभ रिक्शे को होस्टल-गेट से बाहर जाते देखते रहे थे। थोड़ी देर में ही विजय मित्र के पिता परछाई में तब्दील हो गए थे।
उनका मन गहरे अवसाद में डूब गया था। कमरे में विजय मित्र की उपस्थिति का अहसास कराती चीज़ें नहीं थी, बल्कि कोने में एक निचाट ख़ालीपन सनसना रहा था। पहली बार उन्होंने सन्नाटे को बजते हुए सुना था जैसे कोई उनके कान में कह रहा हो, “साथी, मेरी डायरी तुमने अपने पास ही क्यों रख ली?”
यह विजय मित्र था! तो क्या विजय मित्र उनके भीतर भी मौजूद है? उन्होंने कमरे के चारों और निगाह दौड़ाई थी, फिर बेहद सतर्कता से अपने तकिए के भीतर रखी विजय मित्र की लाल डायरी को बाहर खींचते हुए अपने आप से सवाल किया था, “विजय मित्र की डायरी विजय मित्र के पिता से जान-बूझकर क्यों छुपा ली थी?”
अपने ही सवाल का कोई जवाब नहीं था उनके पास। वह ठगे-से डायरी के पन्ने पलटने लगे थे जैसे जवाब उस डायरी में ही कहीं दबा पड़ा हो। अचानक उनकी आँखें एक पृष्ठ पर जम-सी गई थी। उस पृष्ठ पर विजय मित्र ने लिखा था—“सर्वहारा को किसान वर्ग की पूरी मदद पाने की कोशिश करनी चाहिए और सशस्त्र विद्रोह की तैयारी करनी चाहिए। देहातों में किसानों की क्रांतिकारी समितियों की स्थापना करनी चाहिए और ज़मींदारियों की ज़ब्ती के लिए तैयारियाँ करनी चाहिए। मज़दूर वर्ग को क्रांति का नेतृत्व आगे बढ़कर अपने हाथ में लेना होगा, तभी क्रांति को सफल बनाया जा सकता है।—लेनिन”
डायरी का यह पृष्ठ पढ़ते-पढ़ते वह एक साथ आतंक और अपराध की भावना से इस बुरी तरह ग्रस्त हो गए थे कि उन्हें लगा था इस डायरी का उनके पास रहना उचित नहीं। डायरी छुपा लेने के पीछे जिस भावुकता का हाथ था, डायरी से निजात पाने के लिए उसी भावुकता ने उन्हें उकसाया। वह तत्काल उठे थे और डायरी जेब में डालकर रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े थे।
विजय मित्र के पिता रेलवे स्टेशन पर गुमसुम बैठे मिल गए थे। उन्होंने डायरी छूट जाने का बहाना करते हुए वह डायरी उन्हें सौंप दी थी। डायरी लेते हुए विजय मित्र के पिता का हाथ थरथरा रहा था मानो वह अपने बेटे का शव ले रहे हों।)
“डॉ. भगत, अगर आप इज़ी न फील कर रहे हों तो आपका बयान बाद में ले लिया जाएगा।” डॉ. रजनीश आचार्य ने डॉ. सी.के. भगत को पसीना पोंछते देखकर सलाह दी।
डॉ. सी.के. भगत ने रूमाल मुट्ठी में भींचते हुए कहा, “नो डॉ. आचार्य, आयम क्वाइट नॉर्मल।”
एक असामान्य चुप्पी के बीच डॉ. सी.के. भगत ने भरसक सामान्य लहजे में अपना पक्ष रखने की कोशिश की।
“जिस वक़्त पेशेंट विजय मित्र की लाश आई.सी.सी.यू. से बाहर आई, इंस्टीट्यूट परिसर में मौजदू भीड़ शोक-संताप से भरी नारे लगाने लगी—कामरेड विजय मित्रा अमर रहे! अमर रहे!! नारों की गूँज से इंस्टीट्यूट परिसर का कोना-कोना लरज़ रहा था। उस वक़्त मेरे लिए तय करना मुश्किल हो गया था कि मुझे क्या करना चाहिए? मैं किंकर्तव्यविमूढ़-सा डाक्टर्स चेंबर में जाकर बैठ गया। मेरे पीछे-पीछे डॉ. सुजाता राय भी आई और बैठ गई। बाहर उठते नारों के शोर और व्याप्त उत्तेजना से वह जैसे दहशत में डूबी हुई थी। उसका चेहरा फ़क़ पड़ा था। ऐसे में उसे अकेले छोड़कर जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। मैं बग़ैर कुछ बोले बैठा रहा। सिस्टर यथावत भागदौड़ में लगी हुई थी।”
मैंने तब राहत की साँस ली, जब डॉ. चौधरी को डाक्टर्स चेंबर में प्रवेश करते देखा। डॉ. चौधरी हैरान और हाँफते हुए-से अंदर आए और सीधे मुझसे मुख़ातब हो गए, “डॉ. भगत, यह क्या माजरा है? बाहर इतनी भीड़...नारेबाज़ी...सब कुशल तो है?”
“एक पेशेंट...नक्सल लीडर...उसी के सपोर्टर हैं ये।” अनमने ढंग से उत्तर देते हुए मैं घर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। “डॉ. चौधरी मैं चलता हूँ। अब आप आ गए हैं...डेथ सर्टिफ़िकेट दे दीजिएगा।”
“म...म...मैं!” डॉ. चौधरी हक़लाए। उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी, “मैं कैसे दे सकता हूँ डेथ सर्टिफ़िकेट! मैंने पेशेंट को नहीं देखा...मैं उसकी केस हिस्ट्री तक नहीं जानता।”
मैं अवाक डॉ. चौधरी को देखता रह गया। बाहर नारों का शोर मद्धिम पड़ने लगा था। भीतर एक अनपेक्षित स्थिति सिर उठा चुकी थी। मेरी समझ में नहीं आया, मैं क्या करूँ? मैंने संयत स्वर में डॉ. चौधरी को याद दिलाया कि आप ड्यूटी पर हैं। क़ायदे से तो यह आपका ही केस है।”
लेकिन डॉ. चौधरी कोई तर्क मानने को तैयार नहीं हुए। एक तरह से उन्होंने अड़ियल रुख़ इख़्तियार कर लिया था। ऐसे में, पेशेंट की लाश, बाहर उत्तेजित भीड़, किसी भी क्षण कुछ भी घट जाने की आशंका और अपने क्वार्टर में निरीह पड़ी अपनी पत्नी का ख़याल आते ही मेरे दिमाग़ की नसें तड़तड़ाने लगी। इससे पहले कि मैं अपना आपा खो बैठूँ, मैंने डेथ सर्टिफ़िकेट लिखकर दे देना ही उचित समझा।
डॉ. सुजाता राय का बयानः
मैं पी.जी.स्टूडेंट डॉ. सुजाता राय एक जनवरी की रात डॉ. चौधरी की यूनिट में ड्यूटी पर थी, जब नक्सल लीडर विजय मित्र को अचेतावस्था में कार्डियोलाजी में लाया गया। प्रारंभिक जाँच के बाद मैंने पाया कि पेशेंट की हालत बहुत सीरियस है और उसके साथ आई भीड़ निहायत उग्र। मैं मन ही मन आतंकित और असहाय महसूस करती पेशेंट का तत्काल आई.सी.सी.यू. में दाख़िल करने का निर्देश देकर डॉ. चौधरी से फ़ोन पर संपर्क करने की कोशिश करने लगी। लेकिन काफ़ी प्रयास के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पाया। मैं चूँकि अब तक जान चुकी थी कि विजय मित्र नाम का एक पेशेंट नक्सल लीडर है और बाहर खड़े लोग उसके सपोर्टर, मेरे हाथ-पाँव फूलने लगे थे। मैं इसी मनःस्थिति में किसी सीनियर डॉक्टर की तलाश में इंस्टीट्यूट के पिछले दरवाज़े से बाहर निकल पड़ी।
यह एक जनवरी की रात थी, शायद इसीलिए कैंपस में कुछ ज़्यादा ही सन्नाटा था। पता नहीं, मेरे भीतर का भय था, या कैंपस में व्याप्त सन्नाटा, वातावरण कुछ ज़्यादा ही भयावह लग रहा था। अचानक मेरी नज़र डॉ. भगत के क्वार्टर की खिड़की से आती रौशनी और डोलती परछाई पर पड़ी। मुझे लगा कि डॉ. भगत अपने क्वार्टर में हैं, मैंने घबराहट और बैचेनी के उस आलम में डॉ. भगत के क्वार्टर की कालबेल बजा दी।
अपने क्वार्टर का दरवाज़ा डॉ. भगत ने ही खोला इससे पहले कि डॉ. भगत मुझसे कुछ पूछते, मैंने पेशेंट की सीरियस हालत का हवाला देते हुए उनसे मदद की माँग की, डॉ. भगत शायद मुझे असहाय और उद्विग्न देखकर मेरे साथ चलने को तैयार हो गए।
आई.सी.सी.यू. में भर्ती पेशेंट के बारे में यह जानकर कि वह नक्सल लीडर विजय मित्र है, डॉ. भगत कुछ इस तरह चौंके कि मैंने ग़ौर किया, वह जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों। अगले ही क्षण डॉ. भगत पेशेंट के क़रीब पहुँचे और उसे ध्यान से देखने लगे, फिर गहरी साँस खींचते हुए उन्होंने मुझसे पूछा, “डॉ. राय, आप पेशेंट को जानती हैं?”
हाँ, मैं पेशेंट विजय मित्र को जानती थी और उसे सिर्फ़ इसलिए नहीं जानती थी कि वह नक्सल लीडर है, बल्कि मैं उसी नक्सलबाड़ी की रहने वाली हूँ, जहाँ कभी नक्सलवाद ने जन्म लिया था और उसके क़हर का शिकार मेरा परिवार भी हुआ था लेकिन यह बात मैं डॉ. भगत से छुपा गई। उल्टे, उस वक़्त मुझे लगा कि डॉ. भगत भी किसी न किसी रूप में विजय मित्र को जानते हैं। उनकी आँखों में किसी को पहचान लेने जैसी स्निग्ध आभा उभरी थी और साथ ही उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई थी।
डॉ. भगत पेशेंट विजय मित्र की स्थिति पर लगातार नज़र रखे हुए थे। ई.सी.जी. मॉनिटर स्क्रीन पर हो रहे एक-एक परिवर्तन से उनके माथे पर बल पड़ जाते। मुझे लगा कि डॉ. भगत भीतर से बेहद उद्वेलित और इमोशनल हो आए हैं। मैंने उन्हें इस स्थिति से उबारने की ग़रज़ से, या कि नक्सलियों के प्रति मेरे मन में भयबोध ने मुझे उकसाया कि मैंने उनसे एक बेवक़ूफ़ाना सवाल कर डाला, “सर, ऐसे नृशंस आदमी के पास भी दिल हो सकता है, क्या?”
डॉ. भगत ने मुझे कौतूहल से देखा और मुझे अपनी और एकटक देखती पाकर ठंडी आह भरते हुए कहा, “डॉ. राय, यह आदमी जैसी दुनिया बनाने की लड़ाई लड़ता रहा है, वह किसी मामूली आदमी के वश की बात नहीं।”
ज़ाहिर था कि डॉ. भगत न सिर्फ़ पेशेंट के बारे में बहुत कुछ जानते थे, बल्कि उससे कहीं न कहीं अंतरंग भी थे। मेरी इच्छा हुई कि मैं डॉ. भगत से पूछूँ कि क्या विजय मित्र की लड़ाई से इत्तिफ़ाक़ रखते हैं, लेकिन किसी सीनियर से तुर्की-ब-तुर्की सवाल-जवाब करना न तो हम पी.जी स्टूडेंट के लिए उचित होता है, न ही सुविधाजनक।
मुझे चुप देखकर डॉ. भगत कुछ, ज़ियादा ही व्यग्र हो उठे। उन्होंने जैसे अपने-आप से ही कहा, “इस पेशेंट को किसी भी क़ीमत पर बचाया जाना बहुत ज़रूरी है, डॉ. राय।”
लेकिन वह पेशेंट नहीं बचा। डॉ. भगत लाख चाह कर भी पेशेंट विजय मित्र को नहीं बचा पाए। उस वक़्त डॉ. भगत उस लुटे हुए मुसाफ़िर की तरह नज़र आ रहे थे। जो अपना सब कुछ गँवा कर भी कहीं शिकायत दर्ज न करा पाने की बेबसी में जड़ हो गया हो। डॉ. भगत हताश, उदास, भारी क़दमों से आई.सी.सी.यू. से बाहर निकले और डाक्टर्स चेंबर में जाकर बैठ गए। उनके पीछे-पीछे मैं भी डाक्टर्स चेंबर में पहुँची और चुपचाप एक कुर्सी पर बैठ गई।
कुछ ही देर बाद, डॉ. चौधरी भी आ पहुँचे। बाहर विजय मित्र के सपोर्टर नारे लगा रहे थे। चैंबर के भीतर डॉ. चौधरी को देखकर डॉ. भगत कुर्सी से उठे और डॉ. चौधरी से डेथ-सर्टिफ़िकेट दे देने के लिए कहकर जाने लगे कि डॉ. चौधरी ने डेथ सर्टिफ़िकेट देने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी। डॉ. भगत और डॉ. चौधरी में इस मुद्दे पर तकरार भी हुई और तभी मैंने देखा कि डॉ. भगत तमतमाए हुए कुर्सी पर जा बैठे। उस वक़्त वह क्रोध से काँप रहे थे और उसी हालत में उन्होंने डेथ-सर्टिफ़िकेट लिखना शुरू कर दिया था।
डॉ. भगत डेथ सर्टिफ़िकेट पर अपना हस्ताक्षर करने के साथ ही झटके से उठे और काग़ज़ के उस टुकड़े को वहीं टेबल पर छोड़कर तीर की मानिंद डॉक्टर चेंबर से बाहर निकल गए।
सिस्टर एलविन का बयानः
मैं सीनियर सिस्टर एलविन हेम्ब्रम एक जनवरी की रात ड्यूटी पर थी। उस रात जब पेशेंट विजय मित्र को लेकर एक भीड़ आई तो तत्काल उसे पी.जी.स्टूडेंट डॉ. सुजाता राय ने एक्ज़ामिन किया और उसे ऑक्सीजन लगाने को कहकर आई.सी.सी.यू. में ले जाने की हिदायत दी। आई.सी.सी.यू. में थोड़ी देर बाद डॉ. सुजाता राय के साथ डॉ. सी.के. भगत आए। उन्होंने पेशेंट को देखा और मुझसे पेशेंट का ब्लड बायोकेमेस्ट्री का इंतिज़ाम करने को कहा। मैं डॉ. भगत के आदेश पर आई.सी.सी.यू. से बाहर चली गई। मुझे बायोकेमेस्ट्री में ताला बंद मिला। मैंने डॉ. भगत को जब यह सूचना दी तो वह बुरी तरह बौखला गए और दौड़ते हुए बरामदे की ओर भागे इसी बीच लाइट चली गई और जब लाइट आई तो मैंने देखा कि डॉ. भगत हाँफते हुए आई.सी.सी.यू. में घुस रहे हैं। डॉ. भगत ई.सी.जी. मॉनिटर स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही चीख़ पड़े—ओह नो!
डॉ. भगत की चीख़ से मेरा ध्यान उस ओर गया। मैंने देखा, डॉ. भगत पेशेंट की नब्ज़ टटोल रहे हैं। डॉ. भगत बेहद बैचेन और घबराए हुए थे। शायद उस वक़्त उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। तभी डॉ. सुजाता राय ने कहा, “सर पेशेंट इज नो मोर।”
जेनरेटर-आपरेटर का बयानः
एक जनवरी की रात जिस वक़्त बिजली ग़ायब हुई थी, मैं अपनी ड्यूटी पर था। मैंने दौड़कर तुरंत जेनरेटर चालू करने की कोशिश की थी, लेकिन जेनरेटर में कचरा आ जाने के कारण उसे चालू होने में समय लगा। समय कितना लगा, यह ठीक-ठीक बता पाना संभव नहीं है, क्योंकि न तो मेरे पास घड़ी थी और न ही ऐसी कोई ज़रूरी कभी पड़ी थी।
डॉ. चौधरी का बयानः
मैं डॉ. नीलकांत चौधरी एक जनवरी को नाइट ड्यूटी पर था, मुझे कैंपस में आवास उपलब्ध नहीं है, इसलिए मैं शहर में किराए के मकान में रहता हूँ। उस रात मैं ड्यूटी के लिए घर से चला। रास्ते में पता चला कि मुख्यमार्ग पर वाहनों का आना-जाना बंद है, क्योंकि उधर से गवर्नर का काफ़िला गुज़रने वाला है। रास्ता डाइवर्ट कर दिया गया था, लिहाज़ा दूसरे तमाम रास्तों में ट्रैफ़िक जाम हो गया था। और मैं चाहकर भी ड्यूटी पर समय से पहुँच पाने में विवश था। जब मैं अपनी ड्यूटी पर पहुँचा तो कैंपस में एक शव को घेरे लोगों का हुजूम नारेबाज़ी कर रहा था। भीड़ बेहद उत्तेजित थी। मुझे लगा, वहाँ किसी भी क्षण हिंसा हो सकती है। मैं घबराया हुआ डॉक्टर्स चेंबर में पहुँचा, जहाँ पहले से ही डॉ. भगत और पी.जी. स्टूडेंट डॉ. सुजाता राय मौजूद थे। डॉ. भगत ने मुझसे कहा कि मैं विजय मित्र का डेथ सर्टिफ़िकेट दे दूँ। लेकिन मैंने पेशेंट का इलाज नहीं किया था, न ही मैं केस-हिस्ट्री से वाफ़िक़ था, इसलिए डेथ सर्टिफ़िकेट देना मेरे लिए न ही व्यावहारिक था, न ही उचित, इसलिए मैंने अपनी विवशता ज़ाहिर कर दी। इस पर डॉ. भगत मुझसे उलझ पड़े और उन्होंने अपना आपा खो दिया। उसी मानसिक स्थिति में उन्होंने विजय मित्र का ‘डेथ सर्टिफ़िकेट’ जारी कर दिया।
डॉ. भगत के लिखे सर्टिफ़िकेट पर नज़र पड़ते ही मैं हैरान रह गया। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। मैंने उसे डॉ. सुजाता राय को पढ़ने के लिए दिया। डॉ. सुजाता राय भी डेथ सर्टिफ़िकेट में पेशेंट विजय मित्र की मृत्यु का कारण लिखा था—ड्यू टू फ़ैल्योर ऑफ़ सिस्टम (व्यवस्था के असफल हो जाने से मृत्यु)
जाँच दल ने महसूस किया कि इस बिंदु पर डॉ. सी.के. भगत का स्पष्टीकरण ज़रूरी है, लिहाज़ा डॉ. भगत एक बार फिर तलब किए गए। जाँच दल की ओर से डॉ. रजनीश आचार्य ने डॉ. सी.के. भगत से पूछा, “डॉ. भगत, आप एक सीनियर और ज़िम्मेदार डॉक्टर हैं, फिर आपने ऐसा डेथ सर्टिफ़िकेट क्यों दिया?”
“क्यों, मैंने कुछ ग़लत लिखा है, क्या?” डॉ. सी.के. भगत इस इत्मीनान से मुस्कुराए कि जाँच दल के तीनों सदस्य सकते में आ गए।
“आर यू श्योर डॉ. भगत, कि आपने सही लिखा है?” बड़ी मुश्किल से पूछ पाए डॉ. देवाशीष देव।
“यस...यस! आयम हंड्रेड परसेंट श्योर!” डॉ. सी.के. भगत के स्वर में सख़्ती और तल्ख़ी एक साथ उभरी। उन्होंने उल्टा सवाल दाग़ दिया, “एनी मोर क्वेश्चन?”
जाँच दल ने डॉ. सी.के. भगत से कोई और सवाल पूछना ज़रूरी नहीं समझा। इसके साथ ही कार्डियोलॉजी के डायरेक्टर और अन्य डाक्टरों से भी कोई पूछताछ इसलिए नहीं की गई, कि उनका इस घटना से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था और वे जाँच के दायरे में नहीं आते थे।
साक्ष्यों, परिस्थितियों और गवाहों के बयानों के मद्देनज़र जाँच दल के तीन सदस्यों ने जो रिपोर्ट तैयार की, वह इस प्रकार है:—
डॉ. रजनीश आचार्य, कार्डियोलाजिस्ट:
पेशेंट विजय मित्र की ब्लड बायोकेमेस्ट्री उपलब्ध न होने से मायोकार्डियल इनफ़ैर्कशन (हार्ट-अटैक) की पुष्टि नहीं होती है, लेकिन ब्लड प्रेशर और ई.सी.जी. रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि पेशेंट विजय मित्र की हालत गंभीर थी। उसका प्रॉपर-केयर और आब्ज़र्वेशन ज़रूरी था जो नहीं हुआ। यह स्पष्टतः लापरवाही का मामला है और डाक्टरी नैतिकता के विरूद्ध है। मेरी राय में पेशेंट की मृत्यु का कारण है “लैक-ऑफ़ प्रापर ट्रीटमेंट!”
डॉ. जीवकांत यादव, न्यूरोलॉजिस्टः
साक्ष्यों, परिस्थितियों और पेशेंट की पृष्ठभूमि से ज़ाहिर होता है कि पेशेंट विजय मित्र ज़बरदस्त ‘नर्वस ब्रेक डाउन’ का शिकार था, जिससे उसके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया। ऐसा मरीज़ शारीरिक तौर पर ज़िंदा होते हुए भी दिमाग़ी तौर पर मर चुका होता है। ऐसे केस में तुरंत न्यूरोलाजिस्ट से संपर्क किया जाना चाहिए, जो नहीं हुआ। मेरी राय में विजय मित्र की मौत का कारण है—‘ब्रेन-डेथ’।
डॉ. रामाशीष देव, साइकियाट्रिस्टः
पेशेंट विजय मित्र चूँकि नक्सल-लीडर और एक्टिविस्ट था, इसलिए उसका अत्यधिक तनाव और दबाव में होना स्वाभाविक है, पर कल्पनाओं और सपनों की दुनिया में जीने का आदी था, जैसा कि ऐसे लोग होते हैं। वस्तुतः यह एक प्रकार का मनोरोग है। इस रोग के चरम पर पहुँच जाने के कारण ऐसे रोगी या तो पागलपन का शिकार हो जाते हैं या फिर एक्यूट-डिप्रेशन के। साक्ष्यों, परिस्थितियों और गवाहों के बयानों से मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि पेशेंट विजय मित्र की मृत्यु ‘स्ट्रेस एंड स्टेन’ की वजह से हुई।
लेकिन जाँच दल के तीनों सदस्य इसके विपरीत कुछ बातों पर एकमत भी थे। वे सहमत थे कि एक जनवरी की रात डॉ. चौधरी की ड्यूटी थी और ट्रैफ़िक जाम की वजह वे समय से ड्यूटी पर नहीं पहुँच पाए, जो संभव है: इसके बावजूद डॉ. चौधरी की ड्यूटी में डॉ. भगत द्वारा पेशेंट का इलाज किया जाना उचित नहीं था, क्योंकि इस तरह डॉ. चौधरी की जबावदेही समाप्त हो गई और जान-बूझकर डॉ. भगत ने न सिर्फ़ पेशेंट विजय मित्र के इलाज की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, बल्कि उन्होंने संस्थान के नियमों का भी उल्लंघन किया।
जाँच दल के सदस्य इस बात पर भी एक मत थे कि अपने पुत्र की आत्महत्या, पत्नी की लंबी बीमारी और कार्डियोलॉजी इंस्टीट्यूट का डायरेक्टर न बनाए जाने के कारण मुक़दमेबाज़ी में उलझे डॉ. सी.के. भगत हताशा, हीनता और कुंठा के शिकार हो चुके हैं। उनकी मानसिक स्थिति भी क़तई सामान्य नहीं लगती।
जाँच दल के डॉ. सी.के. भगत द्वारा जारी डेथ सर्टिफ़िकेट की वैधानिक हैसियत के बारे में अपनी राय देते हुए लिखाः- डॉ. सी.के. भगत चूँकि एक जनवरी की रात ड्यूटी पर नहीं थे, इसलिए नियमतः उन्हें डेथ सर्टिफ़िकेट नहीं जारी करना चाहिए था। इस तरह न सिर्फ़ अराजकता बढ़ेगी, बल्कि एक ग़लत परिपाटी भी जन्म लेगी। डॉ. भगत द्वारा जारी डेथ सर्टिफ़िकेट सिद्धांततः नियम विरुद्ध है। वैसे इस मामले में विधि विशेषज्ञ की राय अपेक्षित है।
सरकार का निर्णय
जाँच दल के विशेषज्ञों की राय, गवाहों के संलग्न बयान और परिस्थितियों के आलोक में प्रमाणित है कि डॉ. सी.के. भगत का नक्सल लीडर विजय मित्र से गहरा संबंध था और इसी कारण उन्होंने सरकार को बदनाम करने के लिए सुनियोजित साज़िश के तहत असंवैधानिक डेथ सर्टिफ़िकेट जारी किया, जो घोर अनुशासनहीनता का परिचायक है तथा एक सरकारी सेवक की आचार संहिता के विरूद्ध है। डॉ. सी.के. भगत को चिकित्सकीय मर्यादा के उल्लंघन और आपत्तिजनक आचरण के कारण तत्काल प्रभाव से सेवामुक्त किया जाता है।
डॉ. सी.के. भगत की प्रतिक्रियाः
कामरेड विजय मित्र, काश, तुम्हारे पास दिल न होता!
(हंस, नवंबर 1999)
kamareD wijay mitr ki mirtyu ko lekar hue hangame ke baad sarkar ne hirdai rog wisheshaj~n Dau si ke bhagat ko nilambit karte hue unke khilaf teen sadasyiy jaanch dal niyukt kar diya jaanch dal ko pandrah dinon ke bhitar apni report sarkar ko saunp dene ke sath mamle ki gambhirta aur sanwedanshilata ko dhyan mein rakhte hue jaanch ko mukhy roop se nimnalikhit binduon par kendrit karne ka nirdesh diya gaya thaः
(k) Dau si ke bhagat ki chikitsa ke dauran peshent wijay mitr ki hui mirtyu ka wastawik karan
(kh) ek january ki raat duty par na rahte hue bhi Dau si ke bhagat ka i si si yu mein duty karna
(g) Dau si ke bhagat ka wyaktigat acharn
(gh) aur Dau si ke bhagat dwara diye gaye Deth sartifiket ki waidhanik haisiyat jaanch dal mein Dau rajnish acharya, karDiyolaॉjist, Dau jiwkant yadaw, nyurolajist, tatha Dau ramashish dew, saikiyatrist shamil the apne apne kshaetr ke in wisheshagyon ne apna kary shuru karte hue sabse pahle gawahon, sakshyon aur paristhitiyon par ghaur kiya is kram mein jaanch dal ke dayre mein shamil sabhi pakshon ko notis jari kiya, phir unhen apna byan darj karane ke liye ek ek kar talab kiya, jaanch dal ko sahyog karte hue sabhi sabaddh pakshon ne apne byan darj karaye, jo is prakar haih
Dau si ke bhagat ka byanः
ye sach hai ki ek january ki raat karDiyolaॉji mein meri duty nahin thi, lihaza main apne quarter mein tha aur apni lakwagrast patni ko bathrum se lakar bed par lita hi raha tha ki mere quarter ki call bel baj uthi thi, mainne socha ki patni ko bed par litakar, kyonki wo thoDi der t wi dekhana chahti thi, isliye uski peeth ke niche takiye ka support dekar aur uske panwon par kanbal Dalkar darwaza kholun, lekin call bel na sirf lagatar bajti hi ja rahi thi, balki sath sath darwaze par bhi kisi ke hathon ki dastak hone lagi thi mujhe laga ki bahar koi behad pareshani aur adhirata mein khaDa hai; mainne patni ko jis haalat mein thi usi mein chhoDkar aur lagbhag dauDte hue mukhy dwar khola dwar par pi ji student Dau sujata ray khaDi thi wo behad ghabrai aur tanawagrast dikh rahi thi uski sansen tez tez chal rahi theen aisa lag raha tha jaise we dauDte hue i ho
mujhe apne samne pakar Dau sujata ray, jaisa ki samanyat hota hai, pi ji stuDents apne siniyar doctor ka abhiwadan zarur karte hain, mera abhiwadan karna bhi bhool gai aur isse pahle ki main usse kuch puchhu usne swayan hi batana shuru kar diya, “sar, abhi abhi ek siriyas peshent aaya hai mainne use i si si yu mein bharti kar liya hai koi siniyar doctor nahin hai sar, koi nahin mila isliye aapko taklif de rahi hoon pleez sar aap zara chal kar dekh len
Dau sujata ray ke agrah ke bawjud mainne nirpeksh bhaw se usse puchha “Dau ray kya peshent aapka rishtedar hai?
“no sar!” Dau sujata ray sakapkai
mere mathe par bal paD gaye, “phir aap itni imoshnal kyon ho rahi hain?
Dau sujata ray ko koi jawab nahin sujha baDi mushkil se thook nigalte hue bol pai, “sorry sar
“kiski duty hai?” mainne shushk swar mein puchha
Dau sujata ray ne bataya, “Dau chaudhari kee!
kyon? kahan hain Dau chaudhari?
“sar, doctor chaudhari abhi tak aaye nahin hain mainne unke ghar phone lagane ki koshish ki, lekin ghanti bajti rahi koi respans nahin hua shayad phaals ring ”
Dau sujata ray ki baat mainne beech mein kat di, “kyon, kainpas mein koi aur siniyar nahin mila?
“nahin sar, Dayarektar sahab siniyar doctor ki ek team ke sath si em house gaye hain routine chekap ke liye ” Dau sujata ray ne majburan mere pas aane ki jaise safai si di
us waqt meri tatkal ichha hui ki main apni duty na hone ka bahana karke ya phir apni patni ki bimari ka hawala dekar chhutkara pa loon, par Dau sujata ray ki ghabrahat aur becharagi dekhkar mujhe aisa karna anaitik sa laga, lihaza mainne Dau sujata ray ko ashwast kiya, “bus do minat Dau ray! patni ko litakar aata hoon wo abhi abhi bathrum se i hai yu no shi ij anebal two Du enithing aaj naukarani bhi chhutti par hai!
main Dau sujata ray ko wahin chhoDkar, ulte panw beDrum ki or laut gaya, jahan meri patni ast wyast si bed par paDi thi mainne patni ko theek se litaya uske panwon par kanbal Dala aur t wi on karke use bataya, “ek siriyas peshent hai main use dekhkar aata hoon
patni ne kuch kahna chaha, lekin main uski baat sune baghair tezi se bahar chala aaya Dau sujata ray apradh bodh, ashanka aur ajib se atank mein Dubi mere lautne ki pratiksha kar rahi thi mainne us par nazar paDte hi toka, “Dau ray, ek doctor ki pahli shart janti ho kya hai?
Dau sujata ray ne meri or utsukta se dekha mainne use lakshya karke kaha, “no sentiments no imoshans no inwalwments!”
mainne ye baat do karnon se kahi thi ek to ye meri dharana rahi hai ki laDkiyan mulat bhawuk hoti hain aur dusre ye ki main chahta tha ki Dau sujata ray jo ab tak ashaj dikh rahi thi, sahj ho jaye
pata nahin, Dau sujata ray sahj hui ya nahin, lekin mere sath institute building ki or baDhte hue usne mujhe bataya, “sar, mainne aisi khamosh bheeD nahin dekhi, jiski aap upeksha kar jayen shayad isiliye main itni pareshan aur eksaiteD dikh rahi hoon
mujhe laga, Dau sujata ray safai de rahi hai shayad meri tippanai ne use aahat kiya tha mainne uske chehre ko dekhne ki koshish ki, lekin uski chaal mein apratyashit i tezi se, aisa mumkin nahin ho paya mainne bhi chup rahna behtar samjha phir hum sari rah chup hi rahe
jis waqt main i si si yu mein dakhil hua sister elwin peshent ko i wi line laga chuki thi mujh par nazar paDte hi usne mujhe muskura kar “good iwning” kaha uski profeshnal muskurahat mein kashish nahin thi, ya ki main hi aisi muskurahat ka abhyast tha, so mainne us par khas dhyan nahin diya aur usse chart lekar peshent ki Ditels dekhne laga
chart mein penshent ka nam wijay mitr, umr 51 warsh darj tha uska blaD preshar asamany roop se baDha hua tha uski i si ji report khatarnak sanket de rahi thi mainne ek nazar peshent par Dali peshent ke chehre par aksijan mask chaDha tha, jiske zariye wo kathinai se sans le pa raha tha i si ji maunitar screen par uthti girti tarange bata rahi thi ki peshent apni maut se joojh raha hai
sar, aapko kya lagta hai iz it a kes aaf mayokarDiyal infairkshan?
main Dau sujata ray ke is parashn ka ashay tatkal nahin samajh saka, balki mujhe uske is masum sawal par hairani si hui, to mainne use ghurte hue puchha “hwat Du yu meen?”
“darasal, sar!” Dau sujata ray kuch kahte kahte ruk gai shayad koi hichak uske aaDe aa gai thi
uski hichak meri samajh se pare thi mujhe laga ki Dau sujata ray peshent ke prati kuch ziyada ki kanshas hai, isliye utsuktawash mainne puchha, Dau ray, samthing rang wid yoo?
“no no sar!” Dau sujata ray ghabra gai goya mainne uski chori pakaD li ho usne swayan ko sanyat karne ki koshish mein kaha, “sar, mujhe lagta hai, is adami ko mayokarDiyal inphairkshan nahin ho sakta
“kyon, aisa tum kaise kah sakti ho? pahli bar mainne khu ko wishwas dilane ke liye jaise apni ankhen i si ji maunitar screen par tika deen
sar, ek aisa adami jo hinsa mein wishwas karta ho jiske liye kisi ko chhः inch chhota kar dena mamuli baat ho jiska nam jansanharon ka paryay ho, uske pas bhi dil jaisi koi cheez ho sakti hai kya?” Dau sujata ray ke swar mein uttejna is qadar wyapt thi ki main nirpeksh nahin rah saka mainne Dau sujata ray ko ashchary se dekha—yah doctor hai ya mahz mamuli laDki?
mainne uski ankhon mein kuch talashne ki koshish ki, shayad masumiyat ya ki mayusi, theek theek nahin kah sakta, lekin apna asmanjas chhupa nahin paya, “main kuch samjha nahin, Dau ray?
“sar! ye adami ek naksal leader hai yu no; nakslij Du biliw in blaD sheDs!” Dau sujata ray ki awaz laraz rahi thi
byan dete dete Dau si ke bhagat thithak gaye, kyonki unhen ain isi waqt apni wo manasthiti yaad aa gai jab Dau sujata ray ne kaha tha ki “naksliz biliw in blaD sheDs!
(us waqt unke mathe par bal paD gaye the jaise wo kuch yaad karne ki koshish kar rahe hon unki smriti mein peshent chart par darj nam wijay mitr sphurling ki tarah kaundha tha aur wo man hi man budabudaye the—naksal leader wijay mitr! sahsa wo ek jhatke se uthe the aur peshent ke qarib ja pahunche the peshent ke chehre par oxygen mask lage hone ki wajah se unhonne pahle use bahut ghaur se nahin dekha tha, tab koi dilchaspi bhi nahin thi, lekin abhi, is waqt wo peshent ke bahut qarib khaDe hokar na sirf use behad dhyan se dekh rahe the, balki jaise lagatar apni yadadasht par bhi zor Dal rahe the
qad, kathi, rang roop wahin hone ke bawjud peshent ke chehre par wyapt prauDhta, balon se jhankti safedi aur nishchal mundi ankhen unke dekhe wijay mitr se mel nahin khati thi bees pachchis sal pahle ke wijay mitr ko yaad karte hue unki ankhen sukhad ashchary se phailti chali gai thi wo us kshan sachmuch bhawuk ho aaye the )
Dau si ke bhagat ko chup aur kuch asamany dekhkar saikiyatrist Dau, ramashish dew ne toka, “watt haipenD, Dau bhagat?
Dau sujata ray ne mujhe yahi puchha tha, “watt haipenD, sar?
mainne Dau sujata ray ke is sawal ka jawab dene ke bajaye sister elwin ko pukara sister elwin lagbhag dauDti hui mere pas i mainne use adesh diya, “sister peshent ka blaD bayokemestri ke liye bhijwaiye aur han, peshent ke ateDent ko bulaiye ”
sister elwin ulte panw laut gai Dau sujata ray peshent ko streptokines de chuki thi mainne i wi lain ko check kiya is tarah check karne se mujhe santosh hua phir main i si ji maunitar ke pas baithkar sister elwin ki pratiksha karne laga shayad mujhe behad siriyas dekhkar Dau sujata ray ne toka, “sar, kya soch rahe hain, aap?
(Dau si ke bhagat ko achchhi tarah yaad hai ki us waqt wo wijay mitr ke bare mein soch rahe the medical college mein third iyar mein jo laDka unka room met bana tha wo wijay mitr hi tha samany qad kathi ka sanwla sa wijay mitr class mein bhi ziyadatar khamosh hi rahta apne aap mein khoya hua goya man kahin aur tan kahin aur ho second iyar tak uska wijay mitr se bus hay hailo” bhar ka rishta tha, third iyar mein jab wijay mitr unke sath ek hi kamre mein rahne laga, tab use qarib se dekhne janne ka mauqa mila shuru shuru mein wijay mitr unke sath bus kaam bhar hi baat karta, lekin dhire dhire unke beech mein anaupacharikta ki diwar Dhahne lagi thi we ab kuch kuch khulkar bolne batiyane lage the
un dinon wijay mitr der raat tak jagata aur sirhane table lainp jalakar paDhta rahta chunki unhen raat mein der tak jagne ki aadat nahin thi, isliye wo jaldi hi so jate, lekin der raat jab kabhi neend tutti, wo pate ki wijay mitr paDh raha hai aisi hi ek raat jab unki ankh khuli, to unhonne paya ki wijay mitr apne bed par nahin hai us raat ye sochkar ki wijay mitr bathrum gaya hoga, wo so gaye the par aksar aisa hota ki jab bhi wo raat mein uthte, wijay mitr apne bed par nahin milta wijay mitr ka is tarah raat ko ghayab ho jana, jitna autsukypurn tha, utna hi rahasyamay bhi akhiraka ek din unhonne wijay mitr se poochh hi Dala tha, “partnar, ye raat raat bhar kahan ghayab rahte ho? koi chakkar wakkar to nahin?”
wijay mitr na to chaunka tha, na hi koi chori pakaD liye jane jaisa bhaw uske chehre par dikha tha ek maddhim si muskurahat uske honthon par zarur ubhri thi, “koi chakkar wakkar nahin sathi! bus, yunhi man nahin lagta, to ghumne nikal jata hoon
wijay mitr ke jawab se wo santusht nahin hue the, lekin wijay mitr ka andaz kuch aisa tha ki wo aage kuch nahin poochh pae the use kuredna, khamakhwah uske niji jiwan mein hastakshaep sa laga tha wo kuch abujh janne ki phans daba gaye the
lekin ye rahasy abujhpan ziyada dinon tak chhupa nahin rah paya tha wijay mitr ke sirhane, kitabon ke beech, kai aisi kitaben dikhne lagi thi, jinka medical science se koi lena dena nahin tha wo kabhi communist party ka ghoshana patr paDhta, to kabhi das capital, wo aksar karl marx, engels, lenin, maotse tung ki kitabon mein khoya rahta aur jab thak jata to ankhen mood kar kuch sochta rahta unhen lagta ki wijay mitr apna samay barbad kar raha hai room met hone ke nate unhen wijay mitr ka ye bhatkaw achchha nahin lagta, isliye unhonne wijay mitr ko samjhane ki koshish ki thi, “wijay in faltu kitabon mein apna waqt kyon barbad kar rahe ho?
wijay mitr jaise unke is akramn ke liye pahle se taiyar tha shant chitt usne dalil di thi, “tum jin kitabon ko faltu kah rahe ho, darasal we hi ek din duniya ka naqsha badal kar rakh dengi
“lekin ye kitaben tumhein doctor nahin banne dengi unhonne pratiwad kiya tha
“shayad han!” wijay mitr wichlit hone ke bajaye kahin ziyada driDh ho aaya tha, main doctor na bhi ban paun marizon ki bimari ka ilaj na kar paun lekin manushya ko jo bimari bhitar hi bhitar khaye ja rahi hai, uska koi nidan zarur kar sakunga ”
wo wijay mitr ko awak dekhte rah gaye the—jaise uska dimagh chal gaya ho lekin nahin, wijay mitr unki ankhon mein ankhen Dale muskuraye ja raha tha unhonne ek bar phir wijay mitr ko samjhane ke prayas mein uske marm par chot ki thi, “wijay, ye sab jankar tumhare ghar walon ko dukh hoga unhonne tumhein yahan doctor banne ke liye bheja hai unki tumse Dher sari ummiden hongi mujhe lagta hai, tum unke sath ziyadati kar rahe ho!” is bar wijay mitr ne wirodh nahin kiya, lekin wo unki baton se sahmat ho, aisa bhi nahin laga tha unhen apni koshish ki nirarthakta khal gai thi anchahe hi us din, ek gahri chuppi un donon ke beech tan gai thi
us din ke baad ye aspasht ho gaya tha ki wijay mitr jo paDhta hai, ya raat raat bhar ghayab rahta hai, ya jo sochta hai, ya jo karta hai, us sabka medical ki paDhai se koi wasta nahin hai aur wo lagbhag atmahanta ho chuka hai ye sab duakhad tha unhen afsos hota aur wo man se chahte ki wijay mitr aisa na kare
pata nahin, wijay mitr ke prati wo kis bhawna se bhare the ki jab bhi kabhi mauqa milta, wo use samjhane se phir bhi swayan ko rok nahin pate, wo aise waqton mein aksar usse puchhte, “wijay, tumhein nahin lagta hai ki tum apne aapko waste kar rahe ho? ye jo apaurchuniti mili hai, ek doctor banne ki, ise tum kho rahe ho ek behtar career ek behtar phyuchar ebab all ek behtar human serwice ka mauqa tum ganwa rahe ho?
“sathi! main tumhari bhawna ki kadr karta hoon main manata hoon ki tum jo kah rahe ho, usmen kahin ziyada akarshan hai zindagi kahin ziyada suwidhajanak ho sakti hai lekin !”
wijay mitr ek ek shabd par zor dete hue bolta, “gharib ghair barabari bhookh annyaye daman shoshan attyachar manushya ke shram ka apman, ye sab kuch dekhkar main bechain ho uthta hoon gahre tak aahat aur apradh bodh se bhar jata hoon mujhe lagta hai, main is machinery ka purza nahin ban sakta
wijay mitr ka ye faislakun tewar din par din parwan chaDhta gaya tha wo apni raten mazdur bastiyon mein guzarne laga tha din jan andolnon wirodh prdarshnon goshthiyon seminaron mein guzarte wo kai kai din hostel nahin lautta uski gatiwidhiyan jis tezi se baDh rahi thi, wo utni hi tezi se medical ki paDhai se wimukh hota ja raha tha
wo jab bhi wijay mitr ko gherne ki koshish karte, wo unse koi tikha parashn poochh kar, unhen niruttar kar deta, wo jab tab kahta, “sathi, medical chhatron ka jitna shoshan hota hai bandhua mazdur sa jo bartaw hota hai, main sochta hoon, uske khilaf bhi awaz uthai jani chahiye chhatron ko golband kiya jana chahiye ”
wijay mitr ki baten sunkar unke sharir mein jhurjhuri chhoot jati wo baghlen jhankne lagte kahin koi sun na le wo kamre ke bahar ki aahat lete aur kamre ke bhitar wijay mitr ki upasthiti se sahme rahte wo uske sath ashaj zarur mahsus karte, lekin pata nahin kyon, uski anupasthiti unhen behad khalti ye ajib witrishnapurn akarshan tha
unhin dinon, achanak ek din police kamre ki talashi lene aa dhamki pata chala, wijay mitr giraftar ho gaya hai ye khabar sunkar unka khoon jam gaya tha chetna sunn ho gai thi dil baithne laga tha police jab tak kamre ki talashi leti rahi thi, wo dahshat ke mare Dubte utrate rahe the
police ne wijay mitr ki we tamam kitaben, jo uske sirhane, bistar ke niche, almari ke andar aur trunk ke bhitar rakhi hui thi, bataur “apattijnak samagri” apne sath le gai thi jane se pahle ek police afsar ne unse bhi wijay mitr ke bare mein kai parashn puchhe the, lekin unhonne ziyadatar prashnon ke prati apni anbhij~nata zahir ki thi us waqt, unke siniyars, sahpathiyon aur kai profesars ne unke paksh mein police afsar ko samjhaya tha, ki bhagat college ka best student hai aur ek room mein rahne ke bawjud uska wijay mitr se koi lena dena nahin hai
police ke jane ke baad wo baDi der tak ubhar nahin pae the man mein jari dhuk dhuki aur wijay mitr ka rah rahkar aata khayal, unhen udwelit karta raha tha unki samajh mein nahin aa raha tha ki wo is puri ghatna se swayan ko kis tarah asanprkt karen? unki ankhon mein wijay mitr ka sanwla sa chehra, chamkili ankhen, widrohi tewar barbas ubhar aata aur wo jaise swayan se hi puchhne lagte—wijay mitr naksalbaDi kya karne gaya tha? wahan police ne use giraftar kaise kar liya? wo jis rah par ja raha hai, wo sahi hai ya ghalat? wo apne career se ziyada kranti ko tarjih kyon de raha hai?
us raat wijay mitr ka ast wyast bed unhen baDi der tak pareshan karta raha wo baDi der tak us or se swayan ko wimukh rakhne ki koshish karte rahe baDi der tak wo wijay mitr ki smriti chhaya se jujhte rahe baDi der tak donon ke beech shah mat ka khel chalta raha antat wo uthe the aur wijay mitr ke bed ko wyawasthit karne lage the uski bikhri kitaben qarine se almari mein lagai theen gadde ko jhaDa tha aur us par chadar Dal di thi takiye ka kawar theek karte hue unhen abhas hua tha ki takiye ke andar kuch hai unhonne utsukta se takiye ke andar hath Dala tha wahan ek Diary thi lal rang ke plastic kawar wali, us Diary mein wijay mitr ne bahut sari baten likh rakhi theen, ghatnayen wichar niji prsang
wijay mitr ki Diary wijay mitr ki antrang tippaniyon se bhari paDi thi use paDhte hue kabhi romanchit to kabhi atankit hote rahe the usi Diary mein wijay mitr ne ek jagah likha tha—“wishleshanatmak rookh ki kami hone ki wajah se hamare bahut se sathi jatil samasyaon ka bar bar gahrai se wishleshan aur adhyayan nahin karna chahte, balki sidhe nishkarsh nikalna chahte hain, jo ya to mukammal taur par sakaratmak hote hain athwa mukammal taur par nakaratmak—mao tse tung
in panktiyon ko paDhte hue unhen wijay mitr ki manasthiti ka andaza hua tha aur laga tha ki ye tippanai ek tarah se unhen hi sambodhit karti hai aksar aisa hota ki wijay mitr se hone wali batachit se wo ekdam se asahmat hote aur kai bar to uski dalilon ki khilli bhi uDa dete, “Dont liw in phools pairaDaiz )
Dau si ke bhagat ke honth hile wo swagat ki budbuda rahe the, “bewaquf kahin ka
nyurolaujist Dau jiwkant yadaw chaunko unhonne Dau si ke bhagat ko toka, “Dau bhagat, aar yu rait?
Dau si ke bhagat ne swayan ko sambhala, lekin apni jhenp chhupa nahin pae, “yas yas, Dau yadaw, aayam ebsalyutli rait!
isse pahle ki koi unki manasthiti ko pakaD pae, Dau si ke bhagat ne swayan ko sanyat karte hue apne byan ka chhuta sira tha liyaः
Dau sujata ray ke ye puchhne par ki main kya soch raha hoon, mainne talne ki ghar se usse hi puchha, “bay d we, tum is peshent ko janti ho?
Dau sujata ray ko sambhwat is sawal ki qati ummid nahin thi, shayad isiliye kshanbhar ko wo sakte mein aa gai, lekin mujhe apni or ektak dekhta pakar boli, “sar, wo kya hai ki akhbaron waghairah mein paDhti rahi hoon
“aisi!” main muskuraya, “mujhe laga shayad tum ise parsanli janti ho!
“nahin sar! aisi koi baat nahin ” Dau sujata ray jaise safai dene par utar i, “peshent ke sath jo log aaye hain, darasal unki baton se bhi bhan hua ki ye peshent naksal leader hai
sahsa mujhe khayal aaya ki sister elwin abhi tak wapas nahin i hai, lihaza mainne peshent ki babat Dau sujata ray ko kuch hidayat di aur tezi se i si si yu se bahar chala aaya
sister elwin mujhe corridor mein hi aati hui mil gai wo buri tarah jhunjhlai hui thi mujh par nazar paDte hi wo tikhe lahje mein lagbhag phat si paDi, “sar, udhar koi nahin hai bayokemestri mein tala laga hai
“kya?” mera munh khula ka khula rah gaya is institute mein wyapt ye arajakta koi nai baat nahin, lekin us waqt sister elwin dwara di gai ye suchana mujhe nagawar lagi main ekdam taish mein aa gaya sister elwin ko i si si yu mein jane ko bol kar main tezi se aage baDh gaya
institute ke bahar baramde mein ek, khamosh magar bechain bheeD khaDi thi mujhe dekhte hi kai joDi ankhen mere chehre par tikin un ankhon mein aasha thi ashanka thi jij~nasa bhari chuppi ke pichhe chhalachhlati hui yachana thi meri himmat nahin hui ki main us bheeD se ankh mila paun bachkar nikal jane ki koshish mein main Daktars chembar ki or baDha hi tha ki yak ba yak pura institute ghupp andhere mein Doob gaya bijli gul ho gai thi achhor andhere mein jaise har cheez apni jagah par thahar gai thi
is bhayawah andhere ke beech ek baragi mere dimagh mein ek sath do chehre kaundhe pahla meri patni ka chehra, dusra i si si yu mein apni maut se laD rahe peshent wijay mitr ka donon chehre ek dusre mein guDDmuDD ho gaye aur main kinkartawyawimuDh sa raushani aane ka intizar karta raha
mujhe ashchary ho raha tha ki abhi tak institute ka jenretar kyon nahin chalu hua? is apratyashit wilamb aur andhere ke atank mein mere liye aur pratiksha karna mushkil ho gaya main andhere mein hi andaz ke sahare i si si yu ki or dauD sa paDa i si si yu mein mere dakhil hote na hote bijli aa gai ya ki jenretar chal paDa jhapak se i raushani mae meri ankhen chundhiya gai mainne palken jhapkate hue i si ji maunitar screen par tika deen wahan “heart beets” batane wali rekhaon ka graph nadarad tha screen par sirf ek sapat si chamakti lakir sthir thi main dauDa hua peshent ke pas gaya, uski kalai apne hath mein lekar nabz tatolne laga main is qadar wyagr aur wihwal tha ki peshent ki nabz pakaD mein nahin aa rahi thi mainne aanan fanan peshent ko karDiyal palmonri risasiteshan dene ki koshish ki, lekin Dau sujata ray ne mujhe rokte hue kaha, “sar, peshent ij no mor!
mainne ghaur kiya ki Dau sujata ray us waqt na to bhawuk thi na hi bechain uska swar nihayat sapat tha mujhe laga ki wo meri bechaini aur bhawukta ko lakshya kar rahi hai, lekin sach to ye hai ki main us waqt tak peshent ki mirtyu ko swikar nahin paya tha mainne hatash swar mein Dau sujata ray se kaha, “no Dau ray, wi kuD nat sawe him!
byan dete dete Dau si ke bhagat ruke, unke mathe par pasina chhalak aaya tha, pasina ponchhne ke liye rumal nikalte hue unka dimagh kai kai smritiyon mein ulajh gaya tha man sudur atit or bhag chhuta tha
(lakh chahkar bhi wijay mitr ko bachaya nahin ja saka tha, halanki un samet kai chhatron ne tark diya tha ki kisi chhatr ki rajnitik pratibaddhata uska niji adhikar hai is adhar par use college ne nahin nikala jana chahiye lekin college prashasan koi dalil sunne ko taiyar nahin tha balki chhatron ke is wirodhi tewar ke ugr hone se pahle hi college parisar mein sakhti shuru kar di gai thi ehtiyat ke nam par police ki tainati aur kai pradhyapkon ke dhamki bhare rawaiye ne chhatron ka hausla past kar diya tha wijay mitr ka nishkasan pahle to bahs ka wishay bana raha, phir dhire dhire wismriti ke garbh mein kho gaya tha
tab bhi wijay mitr unke dil o dimagh par arse tak chhaya raha kamre mein maujud uska bed, uski kitaben, trunk, tebul lainp aur uske kapDe uski smriti ko kahin ziyada saghan kar jate uske shabd, uske bhaw, uski bhangima, uski twara aur uske tewar wo lakh chahkar bhi bhula nahin pate jis wijay mitr ke sada wirodh mein rahe, usi wijay mitr ke liye apne man ki is kamzori ko kabhi samajh nahin paya wo
achanak ek din jab wijay mitr ka saman lene uske pita mihijam se aaye the to unke hatash aur darke wyaktitw ko dekhkar wo bhitar tak hil gaye the baDi mushkil se unse kah pae the, “hamne bahut koshish ki lekin ”
unhen is ‘lekin ke aage kya kahna hai, kuch samajh nahin aaya tha aur na hi wijay mitr ke pita ne kuch janne ki hi koshish ki thi saman sametne aur rikshe par ladwane ke darmiyan ek aisi sakht chuppi bani rahi thi, jiske bhitar itna kuch kaha ja chuka tha, ki shabdon ke hone na hone ka koi arth nahin rah gaya tha, wo hataprabh rikshe ko hostel gate se bahar jate dekhte rahe the thoDi der mein hi wijay mitr ke pita parchhai mein tabdil ho gaye the
unka man gahre awsad mein Doob gaya tha kamre mein wijay mitr ki upasthiti ka ahsas karati chizen nahin thi, balki kone mein ek nichat khalipan sansana raha tha pahli bar unhonne sannate ko bajte hue suna tha jaise koi unke kan mein kah raha ho, “sathi, meri Diary tumne apne pas hi kyon rakh lee?
ye wijay mitr tha! to kya wijay mitr unke bhitar bhi maujud hai? unhonne kamre ke charon aur nigah dauDai thi, phir behad satarkata se apne takiye ke bhitar rakhi wijay mitr ki lal Diary ko bahar khinchte hue apne aap se sawal kiya tha, “wijay mitr ki Diary wijay mitr ke pita se jaan bujhkar kyon chhupa li thee?
apne hi sawal ka koi jawab nahin tha unke pas wo thage se Diary ke panne palatne lage the jaise jawab us Diary mein hi kahin daba paDa ho achanak unki ankhen ek prishth par jam si gai thi us prishth par wijay mitr ne likha tha—“sarwahara ko kisan warg ki puri madad pane ki koshish karni chahiye aur sashastr widroh ki taiyari karni chahiye dehaton mein kisanon ki krantikari samitiyon ki sthapana karni chahiye aur jamindariyon ki zabti ke liye taiyariyan karni chahiye mazdur warg ko kranti ka netritw aage baDhkar apne hath mein lena hoga, tabhi kranti ko saphal banaya ja sakta hai —lenin”
Diary ka ye prishth paDhte paDhte wo ek sath atank aur apradh ki bhawna se is buri tarah grast ho gaye the ki unhen laga tha is Diary ka unke pas rahna uchit nahin Diary chhupa lene ke pichhe jis bhawukta ka hath tha, Diary se nijat pane ke liye usi bhawukta ne unhen uksaya wo tatkal uthe the aur Diary jeb mein Dalkar railway station ke liye nikal paDe the
wijay mitr ke pita railway station par gumsum baithe mil gaye the unhonne Diary chhoot jane ka bahana karte hue wo Diary unhen saunp di thi Diary lete hue wijay mitr ke pita ka hath tharthara raha tha mano wo apne bete ka shau le rahe hon )
Dau bhagat, agar aap izi na pheel kar rahe hon to aapka byan baad mein le liya jayega ” Dau rajnish acharya ne Dau si ke bhagat ko pasina ponchhte dekhkar salah di
Dau si ke bhagat ne rumal mutthi mein bhinchte hue kaha, “no Dau acharya, aayam kwait normal ”
ek asamany chuppi ke beech Dau si ke bhagat ne bharsak samany lahje mein apna paksh rakhne ki koshish ki
jis waqt peshent wijay mitr ki lash i si si yu se bahar i, institute parisar mein maujdu bheeD shok santap se bhari nare lagane lagi—kamareD wijay mitra amar rahe! amar rahe!! naron ki goonj se institute parisar ka kona kona laraz raha tha us waqt mere liye tay karna mushkil ho gaya tha ki mujhe kya karna chahiye? main kinkartawyawimuDh sa Daktars chembar mein jakar baith gaya mere pichhe pichhe Dau sujata ray bhi i aur baith gai bahar uthte naron ke shor aur wyapt uttejna se wo jaise dahshat mein Dubi hui thi uska chehra fak paDa tha aise mein use akele chhoDkar jane ki meri himmat nahin hui main baghair kuch bole baitha raha sister yathawat bhagdauD mein lagi hui thi
mainne tab rahat ki sans li, jab Dau chaudhari ko Daktars chembar mein prawesh karte dekha Dau chaudhari hairan aur hanphate hue se andar aaye aur sidhe mujhse mukhatab ho gaye, “Dau bhagat, ye kya majara hai? bahar itni bheeD narebazi sab kushal to hai?”
ek peshent naksal leader usi ke saportar hain ye ” anamne Dhang se uttar dete hue main ghar jane ke liye uth khaDa hua “Dau chaudhari main chalta hoon ab aap aa gaye hain Deth sartifiket de dijiyega
“madh madh main!” Dau chaudhari haqlaye unke chehre par hawaiyan uDne lagi thi, “main kaise de sakta hoon Deth sartifiket! mainne peshent ko nahin dekha main uski kes history tak nahin janta
main awak Dau chaudhari ko dekhta rah gaya bahar naron ka shor maddhim paDne laga tha bhitar ek anpekshait sthiti sir utha chuki thi meri samajh mein nahin aaya, main kya karun? mainne sanyat swar mein Dau chaudhari ko yaad dilaya ki aap duty par hain qayde se to ye aapka hi kes hai
lekin Dau chaudhari koi tark manne ko taiyar nahin hue ek tarah se unhonne aDiyal rukh ikhtiyar kar liya tha aise mein, peshent ki lash, bahar uttejit bheeD, kisi bhi kshan kuch bhi ghat jane ki ashanka aur apne quarter mein nirih paDi apni patni ka khayal aate hi mere dimagh ki nasen taDatDane lagi isse pahle ki main apna aapa kho baithun, mainne Deth sartifiket likhkar de dena hi uchit samjha
Dau sujata ray ka byanः
main pi ji student Dau sujata ray ek january ki raat Dau chaudhari ki unit mein duty par thi, jab naksal leader wijay mitr ko achetawastha mein karDiyolaji mein laya gaya prarambhik jaanch ke baad mainne paya ki peshent ki haalat bahut siriyas hai aur uske sath i bheeD nihayat ugr main man hi man atankit aur asahaye mahsus karti peshent ka tatkal i si si yu mein dakhil karne ka nirdesh dekar Dau chaudhari se phone par sanpark karne ki koshish karne lagi lekin kafi prayas ke bawjud unse sanpark nahin ho paya main chunki ab tak jaan chuki thi ki wijay mitr nam ka ek peshent naksal leader hai aur bahar khaDe log uske saportar, mere hath panw phulne lage the main isi manasthiti mein kisi siniyar doctor ki talash mein institute ke pichhle darwaze se bahar nikal paDi
ye ek january ki raat thi, shayad isiliye kainpas mein kuch ziyada hi sannata tha pata nahin, mere bhitar ka bhay tha, ya kainpas mein wyapt sannata, watawarn kuch ziyada hi bhayawah lag raha tha achanak meri nazar Dau bhagat ke quarter ki khiDki se aati raushani aur Dolti parchhai par paDi mujhe laga ki Dau bhagat apne quarter mein hain, mainne ghabrahat aur baicheni ke us aalam mein Dau bhagat ke quarter ki kalbel baja di
apne quarter ka darwaza Dau bhagat ne hi khola isse pahle ki Dau bhagat mujhse kuch puchhte, mainne peshent ki siriyas haalat ka hawala dete hue unse madad ki mang ki, Dau bhagat shayad mujhe asahaye aur udwign dekhkar mere sath chalne ko taiyar ho gaye
i si si yu mein bharti peshent ke bare mein ye jankar ki wo naksal leader wijay mitr hai, Dau bhagat kuch is tarah chaunke ki mainne ghaur kiya, wo jaise kuch yaad karne ki koshish kar rahe hon agle hi kshan Dau bhagat peshent ke qarib pahunche aur use dhyan se dekhne lage, phir gahri sans khinchte hue unhonne mujhse puchha, “Dau ray, aap peshent ko janti hain?
han, main peshent wijay mitr ko janti thi aur use sirf isliye nahin janti thi ki wo naksal leader hai, balki main usi naksalbaDi ki rahne wali hoon, jahan kabhi naksalwad ne janm liya tha aur uske qahr ka shikar mera pariwar bhi hua tha lekin ye baat main Dau bhagat se chhupa gai ulte, us waqt mujhe laga ki Dau bhagat bhi kisi na kisi roop mein wijay mitr ko jante hain unki ankhon mein kisi ko pahchan lene jaisi snigdh aabha ubhri thi aur sath hi unke chehre par gahri udasi chha gai thi
Dau bhagat peshent wijay mitr ki sthiti par lagatar nazar rakhe hue the i si ji maunitar screen par ho rahe ek ek pariwartan se unke mathe par bal paD jate mujhe laga ki Dau bhagat bhitar se behad udwelit aur imoshnal ho aaye hain mainne unhen is sthiti se ubarne ki ghar se, ya ki naksaliyon ke prati mere man mein bhaybodh ne mujhe uksaya ki mainne unse ek bewqufana sawal kar Dala, “sar, aise nrishans adami ke pas bhi dil ho sakta hai, kya?
Dau bhagat ne mujhe kautuhal se dekha aur mujhe apni aur ektak dekhti pakar thanDi aah bharte hue kaha, “Dau ray, ye adami jaisi duniya banane ki laDai laDta raha hai, wo kisi mamuli adami ke wash ki baat nahin
zahir tha ki Dau bhagat na sirf peshent ke bare mein bahut kuch jante the, balki usse kahin na kahin antrang bhi the meri ichha hui ki main Dau bhagat se puchhun ki kya wijay mitr ki laDai se ittifaq rakhte hain, lekin kisi siniyar se turki ba turki sawal jawab karna na to hum pi ji student ke liye uchit hota hai, na hi suwidhajanak
mujhe chup dekhkar Dau bhagat kuch, ziyada hi wyagr ho uthe unhonne jaise apne aap se hi kaha, “is peshent ko kisi bhi qimat par bachaya jana bahut zaruri hai, Dau ray
lekin wo peshent nahin bacha Dau bhagat lakh chah kar bhi peshent wijay mitr ko nahin bacha pae us waqt Dau bhagat us lute hue musafi ki tarah nazar aa rahe the jo apna sab kuch ganwa kar bhi kahin shikayat darj na kara pane ki bebasi mein jaD ho gaya ho Dau bhagat hatash, udas, bhari qadmon se i si si yu se bahar nikle aur Daktars chembar mein jakar baith gaye unke pichhe pichhe main bhi Daktars chembar mein pahunchi aur chupchap ek kursi par baith gai
kuch hi der baad, Dau chaudhari bhi aa pahunche bahar wijay mitr ke saportar nare laga rahe the chaimbar ke bhitar Dau chaudhari ko dekhkar Dau bhagat kursi se uthe aur Dau chaudhari se Deth sartifiket de dene ke liye kahkar jane lage ki Dau chaudhari ne Deth sartifiket dene mein apni asmarthata wyakt kar di Dau bhagat aur Dau chaudhari mein is mudde par takrar bhi hui aur tabhi mainne dekha ki Dau bhagat tamtamaye hue kursi par ja baithe us waqt wo krodh se kanp rahe the aur usi haalat mein unhonne Deth sartifiket likhna shuru kar diya tha
Dau bhagat Deth sartifiket par apna hastakshar karne ke sath hi jhatke se uthe aur kaghaz ke us tukDe ko wahin table par chhoDkar teer ki manind doctor chembar se bahar nikal gaye
sister elwin ka byanः
main siniyar sister elwin hembram ek january ki raat duty par thi us raat jab peshent wijay mitr ko lekar ek bheeD i to tatkal use pi ji student Dau sujata ray ne ekzamin kiya aur use aksijan lagane ko kahkar i si si yu mein le jane ki hidayat di i si si yu mein thoDi der baad Dau sujata ray ke sath Dau si ke bhagat aaye unhonne peshent ko dekha aur mujhse peshent ka blaD bayokemestri ka intizam karne ko kaha main Dau bhagat ke adesh par i si si yu se bahar chali gai mujhe bayokemestri mein tala band mila mainne Dau bhagat ko jab ye suchana di to wo buri tarah baukhla gaye aur dauDte hue baramde ki or bhage isi beech lait chali gai aur jab lait i to mainne dekha ki Dau bhagat hanphate hue i si si yu mein ghus rahe hain Dau bhagat i si ji maunitar screen par nazar paDte hi cheekh paDe—oh no!
Dau bhagat ki cheekh se mera dhyan us or gaya mainne dekha, Dau bhagat peshent ki nabz tatol rahe hain Dau bhagat behad baichen aur ghabraye hue the shayad us waqt unki samajh mein kuch nahin aa raha tha tabhi Dau sujata ray ne kaha, sar peshent ij no mor
jenretar apretar ka byanः
ek january ki raat jis waqt bijli ghayab hui thi, main apni duty par tha mainne dauDkar turant jenretar chalu karne ki koshish ki thi, lekin jenretar mein kachra aa jane ke karan use chalu hone mein samay laga samay kitna laga, ye theek theek bata pana sambhaw nahin hai, kyonki na to mere pas ghaDi thi aur na hi aisi koi zaruri kabhi paDi thi
Dau chaudhari ka byanः
main Dau nilakant chaudhari ek january ko knight duty par tha, mujhe kainpas mein awas uplabdh nahin hai, isliye main shahr mein kiraye ke makan mein rahta hoon us raat main duty ke liye ghar se chala raste mein pata chala ki mukhymarg par wahnon ka aana jana band hai, kyonki udhar se gawarnar ka kafila guzarne wala hai rasta Daiwart kar diya gaya tha, lihaza dusre tamam raston mein traffic jam ho gaya tha aur main chahkar bhi duty par samay se pahunch pane mein wiwash tha jab main apni duty par pahuncha to kainpas mein ek shau ko ghere logon ka hujum narebazi kar raha tha bheeD behad uttejit thi mujhe laga, wahan kisi bhi kshan hinsa ho sakti hai main ghabraya hua Daktars chembar mein pahuncha, jahan pahle se hi Dau bhagat aur pi ji student Dau sujata ray maujud the Dau bhagat ne mujhse kaha ki main wijay mitr ka Deth sartifiket de doon lekin mainne peshent ka ilaj nahin kiya tha, na hi main kes history se wafiq tha, isliye Deth sartifiket dena mere liye na hi wyawaharik tha, na hi uchit, isliye mainne apni wiwashta zahir kar di is par Dau bhagat mujhse ulajh paDe aur unhonne apna aapa kho diya usi manasik sthiti mein unhonne wijay mitr ka Deth sartifiket jari kar diya
Dau bhagat ke likhe sartifiket par nazar paDte hi main hairan rah gaya mujhe apni ankhon par wishwas nahin hua mainne use Dau sujata ray ko paDhne ke liye diya Dau sujata ray bhi Deth sartifiket mein peshent wijay mitr ki mirtyu ka karan likha tha—Dyu two phailyor aaph sistam (wyawastha ke asaphal ho jane se mirtyu)
jaanch dal ne mahsus kiya ki is bindu par Dau si ke bhagat ka spashtikarn zaruri hai, lihaza Dau bhagat ek bar phir talab kiye gaye jaanch dal ki or se Dau rajnish acharya ne Dau si ke bhagat se puchha, “Dau bhagat, aap ek siniyar aur zimmedar doctor hain, phir aapne aisa Deth sartifiket kyon diya?
kyon, mainne kuch ghalat likha hai, kya?” Dau si ke bhagat is itminan se muskuraye ki jaanch dal ke tinon sadasy sakte mein aa gaye
“ar yu shyor Dau bhagat, ki aapne sahi likha hai?” baDi mushkil se poochh pae Dau dewashish dew
“yas yas! aayam hanDreD parsent shyor!” Dau si ke bhagat ke swar mein sakhti aur talkhi ek sath ubhri unhonne ulta sawal dagh diya, “eni mor kweshchan?
jaanch dal ne Dau si ke bhagat se koi aur sawal puchhna zaruri nahin samjha iske sath hi karDiyolaॉji ke Dayarektar aur any Doctron se bhi koi puchhatachh isliye nahin ki gai, ki unka is ghatna se koi pratyaksh sambandh nahin tha aur we jaanch ke dayre mein nahin aate the
sakshyon, paristhitiyon aur gawahon ke bayanon ke maddenzar jaanch dal ke teen sadasyon ne jo report taiyar ki, wo is prakar haih—
Dau rajnish acharya, karDiyolajistah
peshent wijay mitr ki blaD bayokemestri uplabdh na hone se mayokarDiyal infairkshan (heart ataik) ki pushti nahin hoti hai, lekin blaD preshar aur i si ji report se zahir hota hai ki peshent wijay mitr ki haalat gambhir thi uska praupar keyar aur abzarweshan zaruri tha jo nahin hua ye spashtatः laparwahi ka mamla hai aur Daktari naitikta ke wiruddh hai meri ray mein peshent ki mirtyu ka karan hai “laik aaf prapar tritment!”
Dau jiwkant yadaw, nyurolaujistः
sakshyon, paristhitiyon aur peshent ki prishthabhumi se zahir hota hai ki peshent wijay mitr zabardast ‘nerwous break down ka shikar tha, jisse uske mastishk ne kaam karna band kar diya aisa mariz sharirik taur par jinda hote hue bhi dimaghi taur par mar chuka hota hai aise kes mein turant nyurolajist se sanpark kiya jana chahiye, jo nahin hua meri ray mein wijay mitr ki maut ka karan hai—brain Deth
Dau ramashish dew, saikiyatristः
peshent wijay mitr chunki naksal leader aur ektiwist tha, isliye uska atyadhik tanaw aur dabaw mein hona swabhawik hai, par kalpanaon aur sapnon ki duniya mein jine ka aadi tha, jaisa ki aise log hote hain wastut ye ek prakar ka manorog hai is rog ke charam par pahunch jane ke karan aise rogi ya to pagalpan ka shikar ho jate hain ya phir ekyut depression ke sakshyon, paristhitiyon aur gawahon ke bayanon se main is natije par pahuncha hoon ki peshent wijay mitr ki mirtyu ‘stres enD sten ki wajah se hui
lekin jaanch dal ke tinon sadasy iske wiprit kuch baton par ekmat bhi the we sahmat the ki ek january ki raat Dau chaudhari ki duty thi aur traffic jam ki wajah we samay se duty par nahin pahunch pae, jo sambhaw haih iske bawjud Dau chaudhari ki duty mein Dau bhagat dwara peshent ka ilaj kiya jana uchit nahin tha, kyonki is tarah Dau chaudhari ki jabawdehi samapt ho gai aur jaan bujhkar Dau bhagat ne na sirf peshent wijay mitr ke ilaj ki zimmedari apne upar le li, balki unhonne sansthan ke niymon ka bhi ullanghan kiya
jaanch dal ke sadasy is baat par bhi ek mat the ki apne putr ki atmahatya, patni ki lambi bimari aur karDiyolaॉji institute ka Dayarektar na banaye jane ke karan muqadmebazi mein uljhe Dau si ke bhagat hatasha, hinta aur kuntha ke shikar ho chuke hain unki manasik sthiti bhi qati samany nahin lagti
jaanch dal ke Dau si ke bhagat dwara jari Deth sartifiket ki waidhanik haisiyat ke bare mein apni ray dete hue likhaः Dau si ke bhagat chunki ek january ki raat duty par nahin the, isliye niymat unhen Deth sartifiket nahin jari karna chahiye tha is tarah na sirf arajakta baDhegi, balki ek ghalat paripati bhi janm legi Dau bhagat dwara jari Deth sartifiket siddhantatः niyam wiruddh hai waise is mamle mein widhi wisheshaj~n ki ray apekshait hai
sarkar ka nirnay
jaanch dal ke wisheshagyon ki ray, gawahon ke sanlagn byan aur paristhitiyon ke aalok mein pramanait hai ki Dau si ke bhagat ka naksal leader wijay mitr se gahra sambandh tha aur isi karan unhonne sarkar ko badnam karne ke liye suniyojit sajish ke tahat asanwaidhanik Deth sartifiket jari kiya, jo ghor anushasanhinta ka parichayak hai tatha ek sarkari sewak ki achar sanhita ke wiruddh hai Dau si ke bhagat ko chikitskiy maryada ke ullanghan aur apattijnak acharn ke karan tatkal prabhaw se sewamukt kiya jata hai
Dau si ke bhagat ki pratikriyaः
kamareD wijay mitr, kash, tumhare pas dil na hota!
(hans, nowember 1999)
kamareD wijay mitr ki mirtyu ko lekar hue hangame ke baad sarkar ne hirdai rog wisheshaj~n Dau si ke bhagat ko nilambit karte hue unke khilaf teen sadasyiy jaanch dal niyukt kar diya jaanch dal ko pandrah dinon ke bhitar apni report sarkar ko saunp dene ke sath mamle ki gambhirta aur sanwedanshilata ko dhyan mein rakhte hue jaanch ko mukhy roop se nimnalikhit binduon par kendrit karne ka nirdesh diya gaya thaः
(k) Dau si ke bhagat ki chikitsa ke dauran peshent wijay mitr ki hui mirtyu ka wastawik karan
(kh) ek january ki raat duty par na rahte hue bhi Dau si ke bhagat ka i si si yu mein duty karna
(g) Dau si ke bhagat ka wyaktigat acharn
(gh) aur Dau si ke bhagat dwara diye gaye Deth sartifiket ki waidhanik haisiyat jaanch dal mein Dau rajnish acharya, karDiyolaॉjist, Dau jiwkant yadaw, nyurolajist, tatha Dau ramashish dew, saikiyatrist shamil the apne apne kshaetr ke in wisheshagyon ne apna kary shuru karte hue sabse pahle gawahon, sakshyon aur paristhitiyon par ghaur kiya is kram mein jaanch dal ke dayre mein shamil sabhi pakshon ko notis jari kiya, phir unhen apna byan darj karane ke liye ek ek kar talab kiya, jaanch dal ko sahyog karte hue sabhi sabaddh pakshon ne apne byan darj karaye, jo is prakar haih
Dau si ke bhagat ka byanः
ye sach hai ki ek january ki raat karDiyolaॉji mein meri duty nahin thi, lihaza main apne quarter mein tha aur apni lakwagrast patni ko bathrum se lakar bed par lita hi raha tha ki mere quarter ki call bel baj uthi thi, mainne socha ki patni ko bed par litakar, kyonki wo thoDi der t wi dekhana chahti thi, isliye uski peeth ke niche takiye ka support dekar aur uske panwon par kanbal Dalkar darwaza kholun, lekin call bel na sirf lagatar bajti hi ja rahi thi, balki sath sath darwaze par bhi kisi ke hathon ki dastak hone lagi thi mujhe laga ki bahar koi behad pareshani aur adhirata mein khaDa hai; mainne patni ko jis haalat mein thi usi mein chhoDkar aur lagbhag dauDte hue mukhy dwar khola dwar par pi ji student Dau sujata ray khaDi thi wo behad ghabrai aur tanawagrast dikh rahi thi uski sansen tez tez chal rahi theen aisa lag raha tha jaise we dauDte hue i ho
mujhe apne samne pakar Dau sujata ray, jaisa ki samanyat hota hai, pi ji stuDents apne siniyar doctor ka abhiwadan zarur karte hain, mera abhiwadan karna bhi bhool gai aur isse pahle ki main usse kuch puchhu usne swayan hi batana shuru kar diya, “sar, abhi abhi ek siriyas peshent aaya hai mainne use i si si yu mein bharti kar liya hai koi siniyar doctor nahin hai sar, koi nahin mila isliye aapko taklif de rahi hoon pleez sar aap zara chal kar dekh len
Dau sujata ray ke agrah ke bawjud mainne nirpeksh bhaw se usse puchha “Dau ray kya peshent aapka rishtedar hai?
“no sar!” Dau sujata ray sakapkai
mere mathe par bal paD gaye, “phir aap itni imoshnal kyon ho rahi hain?
Dau sujata ray ko koi jawab nahin sujha baDi mushkil se thook nigalte hue bol pai, “sorry sar
“kiski duty hai?” mainne shushk swar mein puchha
Dau sujata ray ne bataya, “Dau chaudhari kee!
kyon? kahan hain Dau chaudhari?
“sar, doctor chaudhari abhi tak aaye nahin hain mainne unke ghar phone lagane ki koshish ki, lekin ghanti bajti rahi koi respans nahin hua shayad phaals ring ”
Dau sujata ray ki baat mainne beech mein kat di, “kyon, kainpas mein koi aur siniyar nahin mila?
“nahin sar, Dayarektar sahab siniyar doctor ki ek team ke sath si em house gaye hain routine chekap ke liye ” Dau sujata ray ne majburan mere pas aane ki jaise safai si di
us waqt meri tatkal ichha hui ki main apni duty na hone ka bahana karke ya phir apni patni ki bimari ka hawala dekar chhutkara pa loon, par Dau sujata ray ki ghabrahat aur becharagi dekhkar mujhe aisa karna anaitik sa laga, lihaza mainne Dau sujata ray ko ashwast kiya, “bus do minat Dau ray! patni ko litakar aata hoon wo abhi abhi bathrum se i hai yu no shi ij anebal two Du enithing aaj naukarani bhi chhutti par hai!
main Dau sujata ray ko wahin chhoDkar, ulte panw beDrum ki or laut gaya, jahan meri patni ast wyast si bed par paDi thi mainne patni ko theek se litaya uske panwon par kanbal Dala aur t wi on karke use bataya, “ek siriyas peshent hai main use dekhkar aata hoon
patni ne kuch kahna chaha, lekin main uski baat sune baghair tezi se bahar chala aaya Dau sujata ray apradh bodh, ashanka aur ajib se atank mein Dubi mere lautne ki pratiksha kar rahi thi mainne us par nazar paDte hi toka, “Dau ray, ek doctor ki pahli shart janti ho kya hai?
Dau sujata ray ne meri or utsukta se dekha mainne use lakshya karke kaha, “no sentiments no imoshans no inwalwments!”
mainne ye baat do karnon se kahi thi ek to ye meri dharana rahi hai ki laDkiyan mulat bhawuk hoti hain aur dusre ye ki main chahta tha ki Dau sujata ray jo ab tak ashaj dikh rahi thi, sahj ho jaye
pata nahin, Dau sujata ray sahj hui ya nahin, lekin mere sath institute building ki or baDhte hue usne mujhe bataya, “sar, mainne aisi khamosh bheeD nahin dekhi, jiski aap upeksha kar jayen shayad isiliye main itni pareshan aur eksaiteD dikh rahi hoon
mujhe laga, Dau sujata ray safai de rahi hai shayad meri tippanai ne use aahat kiya tha mainne uske chehre ko dekhne ki koshish ki, lekin uski chaal mein apratyashit i tezi se, aisa mumkin nahin ho paya mainne bhi chup rahna behtar samjha phir hum sari rah chup hi rahe
jis waqt main i si si yu mein dakhil hua sister elwin peshent ko i wi line laga chuki thi mujh par nazar paDte hi usne mujhe muskura kar “good iwning” kaha uski profeshnal muskurahat mein kashish nahin thi, ya ki main hi aisi muskurahat ka abhyast tha, so mainne us par khas dhyan nahin diya aur usse chart lekar peshent ki Ditels dekhne laga
chart mein penshent ka nam wijay mitr, umr 51 warsh darj tha uska blaD preshar asamany roop se baDha hua tha uski i si ji report khatarnak sanket de rahi thi mainne ek nazar peshent par Dali peshent ke chehre par aksijan mask chaDha tha, jiske zariye wo kathinai se sans le pa raha tha i si ji maunitar screen par uthti girti tarange bata rahi thi ki peshent apni maut se joojh raha hai
sar, aapko kya lagta hai iz it a kes aaf mayokarDiyal infairkshan?
main Dau sujata ray ke is parashn ka ashay tatkal nahin samajh saka, balki mujhe uske is masum sawal par hairani si hui, to mainne use ghurte hue puchha “hwat Du yu meen?”
“darasal, sar!” Dau sujata ray kuch kahte kahte ruk gai shayad koi hichak uske aaDe aa gai thi
uski hichak meri samajh se pare thi mujhe laga ki Dau sujata ray peshent ke prati kuch ziyada ki kanshas hai, isliye utsuktawash mainne puchha, Dau ray, samthing rang wid yoo?
“no no sar!” Dau sujata ray ghabra gai goya mainne uski chori pakaD li ho usne swayan ko sanyat karne ki koshish mein kaha, “sar, mujhe lagta hai, is adami ko mayokarDiyal inphairkshan nahin ho sakta
“kyon, aisa tum kaise kah sakti ho? pahli bar mainne khu ko wishwas dilane ke liye jaise apni ankhen i si ji maunitar screen par tika deen
sar, ek aisa adami jo hinsa mein wishwas karta ho jiske liye kisi ko chhः inch chhota kar dena mamuli baat ho jiska nam jansanharon ka paryay ho, uske pas bhi dil jaisi koi cheez ho sakti hai kya?” Dau sujata ray ke swar mein uttejna is qadar wyapt thi ki main nirpeksh nahin rah saka mainne Dau sujata ray ko ashchary se dekha—yah doctor hai ya mahz mamuli laDki?
mainne uski ankhon mein kuch talashne ki koshish ki, shayad masumiyat ya ki mayusi, theek theek nahin kah sakta, lekin apna asmanjas chhupa nahin paya, “main kuch samjha nahin, Dau ray?
“sar! ye adami ek naksal leader hai yu no; nakslij Du biliw in blaD sheDs!” Dau sujata ray ki awaz laraz rahi thi
byan dete dete Dau si ke bhagat thithak gaye, kyonki unhen ain isi waqt apni wo manasthiti yaad aa gai jab Dau sujata ray ne kaha tha ki “naksliz biliw in blaD sheDs!
(us waqt unke mathe par bal paD gaye the jaise wo kuch yaad karne ki koshish kar rahe hon unki smriti mein peshent chart par darj nam wijay mitr sphurling ki tarah kaundha tha aur wo man hi man budabudaye the—naksal leader wijay mitr! sahsa wo ek jhatke se uthe the aur peshent ke qarib ja pahunche the peshent ke chehre par oxygen mask lage hone ki wajah se unhonne pahle use bahut ghaur se nahin dekha tha, tab koi dilchaspi bhi nahin thi, lekin abhi, is waqt wo peshent ke bahut qarib khaDe hokar na sirf use behad dhyan se dekh rahe the, balki jaise lagatar apni yadadasht par bhi zor Dal rahe the
qad, kathi, rang roop wahin hone ke bawjud peshent ke chehre par wyapt prauDhta, balon se jhankti safedi aur nishchal mundi ankhen unke dekhe wijay mitr se mel nahin khati thi bees pachchis sal pahle ke wijay mitr ko yaad karte hue unki ankhen sukhad ashchary se phailti chali gai thi wo us kshan sachmuch bhawuk ho aaye the )
Dau si ke bhagat ko chup aur kuch asamany dekhkar saikiyatrist Dau, ramashish dew ne toka, “watt haipenD, Dau bhagat?
Dau sujata ray ne mujhe yahi puchha tha, “watt haipenD, sar?
mainne Dau sujata ray ke is sawal ka jawab dene ke bajaye sister elwin ko pukara sister elwin lagbhag dauDti hui mere pas i mainne use adesh diya, “sister peshent ka blaD bayokemestri ke liye bhijwaiye aur han, peshent ke ateDent ko bulaiye ”
sister elwin ulte panw laut gai Dau sujata ray peshent ko streptokines de chuki thi mainne i wi lain ko check kiya is tarah check karne se mujhe santosh hua phir main i si ji maunitar ke pas baithkar sister elwin ki pratiksha karne laga shayad mujhe behad siriyas dekhkar Dau sujata ray ne toka, “sar, kya soch rahe hain, aap?
(Dau si ke bhagat ko achchhi tarah yaad hai ki us waqt wo wijay mitr ke bare mein soch rahe the medical college mein third iyar mein jo laDka unka room met bana tha wo wijay mitr hi tha samany qad kathi ka sanwla sa wijay mitr class mein bhi ziyadatar khamosh hi rahta apne aap mein khoya hua goya man kahin aur tan kahin aur ho second iyar tak uska wijay mitr se bus hay hailo” bhar ka rishta tha, third iyar mein jab wijay mitr unke sath ek hi kamre mein rahne laga, tab use qarib se dekhne janne ka mauqa mila shuru shuru mein wijay mitr unke sath bus kaam bhar hi baat karta, lekin dhire dhire unke beech mein anaupacharikta ki diwar Dhahne lagi thi we ab kuch kuch khulkar bolne batiyane lage the
un dinon wijay mitr der raat tak jagata aur sirhane table lainp jalakar paDhta rahta chunki unhen raat mein der tak jagne ki aadat nahin thi, isliye wo jaldi hi so jate, lekin der raat jab kabhi neend tutti, wo pate ki wijay mitr paDh raha hai aisi hi ek raat jab unki ankh khuli, to unhonne paya ki wijay mitr apne bed par nahin hai us raat ye sochkar ki wijay mitr bathrum gaya hoga, wo so gaye the par aksar aisa hota ki jab bhi wo raat mein uthte, wijay mitr apne bed par nahin milta wijay mitr ka is tarah raat ko ghayab ho jana, jitna autsukypurn tha, utna hi rahasyamay bhi akhiraka ek din unhonne wijay mitr se poochh hi Dala tha, “partnar, ye raat raat bhar kahan ghayab rahte ho? koi chakkar wakkar to nahin?”
wijay mitr na to chaunka tha, na hi koi chori pakaD liye jane jaisa bhaw uske chehre par dikha tha ek maddhim si muskurahat uske honthon par zarur ubhri thi, “koi chakkar wakkar nahin sathi! bus, yunhi man nahin lagta, to ghumne nikal jata hoon
wijay mitr ke jawab se wo santusht nahin hue the, lekin wijay mitr ka andaz kuch aisa tha ki wo aage kuch nahin poochh pae the use kuredna, khamakhwah uske niji jiwan mein hastakshaep sa laga tha wo kuch abujh janne ki phans daba gaye the
lekin ye rahasy abujhpan ziyada dinon tak chhupa nahin rah paya tha wijay mitr ke sirhane, kitabon ke beech, kai aisi kitaben dikhne lagi thi, jinka medical science se koi lena dena nahin tha wo kabhi communist party ka ghoshana patr paDhta, to kabhi das capital, wo aksar karl marx, engels, lenin, maotse tung ki kitabon mein khoya rahta aur jab thak jata to ankhen mood kar kuch sochta rahta unhen lagta ki wijay mitr apna samay barbad kar raha hai room met hone ke nate unhen wijay mitr ka ye bhatkaw achchha nahin lagta, isliye unhonne wijay mitr ko samjhane ki koshish ki thi, “wijay in faltu kitabon mein apna waqt kyon barbad kar rahe ho?
wijay mitr jaise unke is akramn ke liye pahle se taiyar tha shant chitt usne dalil di thi, “tum jin kitabon ko faltu kah rahe ho, darasal we hi ek din duniya ka naqsha badal kar rakh dengi
“lekin ye kitaben tumhein doctor nahin banne dengi unhonne pratiwad kiya tha
“shayad han!” wijay mitr wichlit hone ke bajaye kahin ziyada driDh ho aaya tha, main doctor na bhi ban paun marizon ki bimari ka ilaj na kar paun lekin manushya ko jo bimari bhitar hi bhitar khaye ja rahi hai, uska koi nidan zarur kar sakunga ”
wo wijay mitr ko awak dekhte rah gaye the—jaise uska dimagh chal gaya ho lekin nahin, wijay mitr unki ankhon mein ankhen Dale muskuraye ja raha tha unhonne ek bar phir wijay mitr ko samjhane ke prayas mein uske marm par chot ki thi, “wijay, ye sab jankar tumhare ghar walon ko dukh hoga unhonne tumhein yahan doctor banne ke liye bheja hai unki tumse Dher sari ummiden hongi mujhe lagta hai, tum unke sath ziyadati kar rahe ho!” is bar wijay mitr ne wirodh nahin kiya, lekin wo unki baton se sahmat ho, aisa bhi nahin laga tha unhen apni koshish ki nirarthakta khal gai thi anchahe hi us din, ek gahri chuppi un donon ke beech tan gai thi
us din ke baad ye aspasht ho gaya tha ki wijay mitr jo paDhta hai, ya raat raat bhar ghayab rahta hai, ya jo sochta hai, ya jo karta hai, us sabka medical ki paDhai se koi wasta nahin hai aur wo lagbhag atmahanta ho chuka hai ye sab duakhad tha unhen afsos hota aur wo man se chahte ki wijay mitr aisa na kare
pata nahin, wijay mitr ke prati wo kis bhawna se bhare the ki jab bhi kabhi mauqa milta, wo use samjhane se phir bhi swayan ko rok nahin pate, wo aise waqton mein aksar usse puchhte, “wijay, tumhein nahin lagta hai ki tum apne aapko waste kar rahe ho? ye jo apaurchuniti mili hai, ek doctor banne ki, ise tum kho rahe ho ek behtar career ek behtar phyuchar ebab all ek behtar human serwice ka mauqa tum ganwa rahe ho?
“sathi! main tumhari bhawna ki kadr karta hoon main manata hoon ki tum jo kah rahe ho, usmen kahin ziyada akarshan hai zindagi kahin ziyada suwidhajanak ho sakti hai lekin !”
wijay mitr ek ek shabd par zor dete hue bolta, “gharib ghair barabari bhookh annyaye daman shoshan attyachar manushya ke shram ka apman, ye sab kuch dekhkar main bechain ho uthta hoon gahre tak aahat aur apradh bodh se bhar jata hoon mujhe lagta hai, main is machinery ka purza nahin ban sakta
wijay mitr ka ye faislakun tewar din par din parwan chaDhta gaya tha wo apni raten mazdur bastiyon mein guzarne laga tha din jan andolnon wirodh prdarshnon goshthiyon seminaron mein guzarte wo kai kai din hostel nahin lautta uski gatiwidhiyan jis tezi se baDh rahi thi, wo utni hi tezi se medical ki paDhai se wimukh hota ja raha tha
wo jab bhi wijay mitr ko gherne ki koshish karte, wo unse koi tikha parashn poochh kar, unhen niruttar kar deta, wo jab tab kahta, “sathi, medical chhatron ka jitna shoshan hota hai bandhua mazdur sa jo bartaw hota hai, main sochta hoon, uske khilaf bhi awaz uthai jani chahiye chhatron ko golband kiya jana chahiye ”
wijay mitr ki baten sunkar unke sharir mein jhurjhuri chhoot jati wo baghlen jhankne lagte kahin koi sun na le wo kamre ke bahar ki aahat lete aur kamre ke bhitar wijay mitr ki upasthiti se sahme rahte wo uske sath ashaj zarur mahsus karte, lekin pata nahin kyon, uski anupasthiti unhen behad khalti ye ajib witrishnapurn akarshan tha
unhin dinon, achanak ek din police kamre ki talashi lene aa dhamki pata chala, wijay mitr giraftar ho gaya hai ye khabar sunkar unka khoon jam gaya tha chetna sunn ho gai thi dil baithne laga tha police jab tak kamre ki talashi leti rahi thi, wo dahshat ke mare Dubte utrate rahe the
police ne wijay mitr ki we tamam kitaben, jo uske sirhane, bistar ke niche, almari ke andar aur trunk ke bhitar rakhi hui thi, bataur “apattijnak samagri” apne sath le gai thi jane se pahle ek police afsar ne unse bhi wijay mitr ke bare mein kai parashn puchhe the, lekin unhonne ziyadatar prashnon ke prati apni anbhij~nata zahir ki thi us waqt, unke siniyars, sahpathiyon aur kai profesars ne unke paksh mein police afsar ko samjhaya tha, ki bhagat college ka best student hai aur ek room mein rahne ke bawjud uska wijay mitr se koi lena dena nahin hai
police ke jane ke baad wo baDi der tak ubhar nahin pae the man mein jari dhuk dhuki aur wijay mitr ka rah rahkar aata khayal, unhen udwelit karta raha tha unki samajh mein nahin aa raha tha ki wo is puri ghatna se swayan ko kis tarah asanprkt karen? unki ankhon mein wijay mitr ka sanwla sa chehra, chamkili ankhen, widrohi tewar barbas ubhar aata aur wo jaise swayan se hi puchhne lagte—wijay mitr naksalbaDi kya karne gaya tha? wahan police ne use giraftar kaise kar liya? wo jis rah par ja raha hai, wo sahi hai ya ghalat? wo apne career se ziyada kranti ko tarjih kyon de raha hai?
us raat wijay mitr ka ast wyast bed unhen baDi der tak pareshan karta raha wo baDi der tak us or se swayan ko wimukh rakhne ki koshish karte rahe baDi der tak wo wijay mitr ki smriti chhaya se jujhte rahe baDi der tak donon ke beech shah mat ka khel chalta raha antat wo uthe the aur wijay mitr ke bed ko wyawasthit karne lage the uski bikhri kitaben qarine se almari mein lagai theen gadde ko jhaDa tha aur us par chadar Dal di thi takiye ka kawar theek karte hue unhen abhas hua tha ki takiye ke andar kuch hai unhonne utsukta se takiye ke andar hath Dala tha wahan ek Diary thi lal rang ke plastic kawar wali, us Diary mein wijay mitr ne bahut sari baten likh rakhi theen, ghatnayen wichar niji prsang
wijay mitr ki Diary wijay mitr ki antrang tippaniyon se bhari paDi thi use paDhte hue kabhi romanchit to kabhi atankit hote rahe the usi Diary mein wijay mitr ne ek jagah likha tha—“wishleshanatmak rookh ki kami hone ki wajah se hamare bahut se sathi jatil samasyaon ka bar bar gahrai se wishleshan aur adhyayan nahin karna chahte, balki sidhe nishkarsh nikalna chahte hain, jo ya to mukammal taur par sakaratmak hote hain athwa mukammal taur par nakaratmak—mao tse tung
in panktiyon ko paDhte hue unhen wijay mitr ki manasthiti ka andaza hua tha aur laga tha ki ye tippanai ek tarah se unhen hi sambodhit karti hai aksar aisa hota ki wijay mitr se hone wali batachit se wo ekdam se asahmat hote aur kai bar to uski dalilon ki khilli bhi uDa dete, “Dont liw in phools pairaDaiz )
Dau si ke bhagat ke honth hile wo swagat ki budbuda rahe the, “bewaquf kahin ka
nyurolaujist Dau jiwkant yadaw chaunko unhonne Dau si ke bhagat ko toka, “Dau bhagat, aar yu rait?
Dau si ke bhagat ne swayan ko sambhala, lekin apni jhenp chhupa nahin pae, “yas yas, Dau yadaw, aayam ebsalyutli rait!
isse pahle ki koi unki manasthiti ko pakaD pae, Dau si ke bhagat ne swayan ko sanyat karte hue apne byan ka chhuta sira tha liyaः
Dau sujata ray ke ye puchhne par ki main kya soch raha hoon, mainne talne ki ghar se usse hi puchha, “bay d we, tum is peshent ko janti ho?
Dau sujata ray ko sambhwat is sawal ki qati ummid nahin thi, shayad isiliye kshanbhar ko wo sakte mein aa gai, lekin mujhe apni or ektak dekhta pakar boli, “sar, wo kya hai ki akhbaron waghairah mein paDhti rahi hoon
“aisi!” main muskuraya, “mujhe laga shayad tum ise parsanli janti ho!
“nahin sar! aisi koi baat nahin ” Dau sujata ray jaise safai dene par utar i, “peshent ke sath jo log aaye hain, darasal unki baton se bhi bhan hua ki ye peshent naksal leader hai
sahsa mujhe khayal aaya ki sister elwin abhi tak wapas nahin i hai, lihaza mainne peshent ki babat Dau sujata ray ko kuch hidayat di aur tezi se i si si yu se bahar chala aaya
sister elwin mujhe corridor mein hi aati hui mil gai wo buri tarah jhunjhlai hui thi mujh par nazar paDte hi wo tikhe lahje mein lagbhag phat si paDi, “sar, udhar koi nahin hai bayokemestri mein tala laga hai
“kya?” mera munh khula ka khula rah gaya is institute mein wyapt ye arajakta koi nai baat nahin, lekin us waqt sister elwin dwara di gai ye suchana mujhe nagawar lagi main ekdam taish mein aa gaya sister elwin ko i si si yu mein jane ko bol kar main tezi se aage baDh gaya
institute ke bahar baramde mein ek, khamosh magar bechain bheeD khaDi thi mujhe dekhte hi kai joDi ankhen mere chehre par tikin un ankhon mein aasha thi ashanka thi jij~nasa bhari chuppi ke pichhe chhalachhlati hui yachana thi meri himmat nahin hui ki main us bheeD se ankh mila paun bachkar nikal jane ki koshish mein main Daktars chembar ki or baDha hi tha ki yak ba yak pura institute ghupp andhere mein Doob gaya bijli gul ho gai thi achhor andhere mein jaise har cheez apni jagah par thahar gai thi
is bhayawah andhere ke beech ek baragi mere dimagh mein ek sath do chehre kaundhe pahla meri patni ka chehra, dusra i si si yu mein apni maut se laD rahe peshent wijay mitr ka donon chehre ek dusre mein guDDmuDD ho gaye aur main kinkartawyawimuDh sa raushani aane ka intizar karta raha
mujhe ashchary ho raha tha ki abhi tak institute ka jenretar kyon nahin chalu hua? is apratyashit wilamb aur andhere ke atank mein mere liye aur pratiksha karna mushkil ho gaya main andhere mein hi andaz ke sahare i si si yu ki or dauD sa paDa i si si yu mein mere dakhil hote na hote bijli aa gai ya ki jenretar chal paDa jhapak se i raushani mae meri ankhen chundhiya gai mainne palken jhapkate hue i si ji maunitar screen par tika deen wahan “heart beets” batane wali rekhaon ka graph nadarad tha screen par sirf ek sapat si chamakti lakir sthir thi main dauDa hua peshent ke pas gaya, uski kalai apne hath mein lekar nabz tatolne laga main is qadar wyagr aur wihwal tha ki peshent ki nabz pakaD mein nahin aa rahi thi mainne aanan fanan peshent ko karDiyal palmonri risasiteshan dene ki koshish ki, lekin Dau sujata ray ne mujhe rokte hue kaha, “sar, peshent ij no mor!
mainne ghaur kiya ki Dau sujata ray us waqt na to bhawuk thi na hi bechain uska swar nihayat sapat tha mujhe laga ki wo meri bechaini aur bhawukta ko lakshya kar rahi hai, lekin sach to ye hai ki main us waqt tak peshent ki mirtyu ko swikar nahin paya tha mainne hatash swar mein Dau sujata ray se kaha, “no Dau ray, wi kuD nat sawe him!
byan dete dete Dau si ke bhagat ruke, unke mathe par pasina chhalak aaya tha, pasina ponchhne ke liye rumal nikalte hue unka dimagh kai kai smritiyon mein ulajh gaya tha man sudur atit or bhag chhuta tha
(lakh chahkar bhi wijay mitr ko bachaya nahin ja saka tha, halanki un samet kai chhatron ne tark diya tha ki kisi chhatr ki rajnitik pratibaddhata uska niji adhikar hai is adhar par use college ne nahin nikala jana chahiye lekin college prashasan koi dalil sunne ko taiyar nahin tha balki chhatron ke is wirodhi tewar ke ugr hone se pahle hi college parisar mein sakhti shuru kar di gai thi ehtiyat ke nam par police ki tainati aur kai pradhyapkon ke dhamki bhare rawaiye ne chhatron ka hausla past kar diya tha wijay mitr ka nishkasan pahle to bahs ka wishay bana raha, phir dhire dhire wismriti ke garbh mein kho gaya tha
tab bhi wijay mitr unke dil o dimagh par arse tak chhaya raha kamre mein maujud uska bed, uski kitaben, trunk, tebul lainp aur uske kapDe uski smriti ko kahin ziyada saghan kar jate uske shabd, uske bhaw, uski bhangima, uski twara aur uske tewar wo lakh chahkar bhi bhula nahin pate jis wijay mitr ke sada wirodh mein rahe, usi wijay mitr ke liye apne man ki is kamzori ko kabhi samajh nahin paya wo
achanak ek din jab wijay mitr ka saman lene uske pita mihijam se aaye the to unke hatash aur darke wyaktitw ko dekhkar wo bhitar tak hil gaye the baDi mushkil se unse kah pae the, “hamne bahut koshish ki lekin ”
unhen is ‘lekin ke aage kya kahna hai, kuch samajh nahin aaya tha aur na hi wijay mitr ke pita ne kuch janne ki hi koshish ki thi saman sametne aur rikshe par ladwane ke darmiyan ek aisi sakht chuppi bani rahi thi, jiske bhitar itna kuch kaha ja chuka tha, ki shabdon ke hone na hone ka koi arth nahin rah gaya tha, wo hataprabh rikshe ko hostel gate se bahar jate dekhte rahe the thoDi der mein hi wijay mitr ke pita parchhai mein tabdil ho gaye the
unka man gahre awsad mein Doob gaya tha kamre mein wijay mitr ki upasthiti ka ahsas karati chizen nahin thi, balki kone mein ek nichat khalipan sansana raha tha pahli bar unhonne sannate ko bajte hue suna tha jaise koi unke kan mein kah raha ho, “sathi, meri Diary tumne apne pas hi kyon rakh lee?
ye wijay mitr tha! to kya wijay mitr unke bhitar bhi maujud hai? unhonne kamre ke charon aur nigah dauDai thi, phir behad satarkata se apne takiye ke bhitar rakhi wijay mitr ki lal Diary ko bahar khinchte hue apne aap se sawal kiya tha, “wijay mitr ki Diary wijay mitr ke pita se jaan bujhkar kyon chhupa li thee?
apne hi sawal ka koi jawab nahin tha unke pas wo thage se Diary ke panne palatne lage the jaise jawab us Diary mein hi kahin daba paDa ho achanak unki ankhen ek prishth par jam si gai thi us prishth par wijay mitr ne likha tha—“sarwahara ko kisan warg ki puri madad pane ki koshish karni chahiye aur sashastr widroh ki taiyari karni chahiye dehaton mein kisanon ki krantikari samitiyon ki sthapana karni chahiye aur jamindariyon ki zabti ke liye taiyariyan karni chahiye mazdur warg ko kranti ka netritw aage baDhkar apne hath mein lena hoga, tabhi kranti ko saphal banaya ja sakta hai —lenin”
Diary ka ye prishth paDhte paDhte wo ek sath atank aur apradh ki bhawna se is buri tarah grast ho gaye the ki unhen laga tha is Diary ka unke pas rahna uchit nahin Diary chhupa lene ke pichhe jis bhawukta ka hath tha, Diary se nijat pane ke liye usi bhawukta ne unhen uksaya wo tatkal uthe the aur Diary jeb mein Dalkar railway station ke liye nikal paDe the
wijay mitr ke pita railway station par gumsum baithe mil gaye the unhonne Diary chhoot jane ka bahana karte hue wo Diary unhen saunp di thi Diary lete hue wijay mitr ke pita ka hath tharthara raha tha mano wo apne bete ka shau le rahe hon )
Dau bhagat, agar aap izi na pheel kar rahe hon to aapka byan baad mein le liya jayega ” Dau rajnish acharya ne Dau si ke bhagat ko pasina ponchhte dekhkar salah di
Dau si ke bhagat ne rumal mutthi mein bhinchte hue kaha, “no Dau acharya, aayam kwait normal ”
ek asamany chuppi ke beech Dau si ke bhagat ne bharsak samany lahje mein apna paksh rakhne ki koshish ki
jis waqt peshent wijay mitr ki lash i si si yu se bahar i, institute parisar mein maujdu bheeD shok santap se bhari nare lagane lagi—kamareD wijay mitra amar rahe! amar rahe!! naron ki goonj se institute parisar ka kona kona laraz raha tha us waqt mere liye tay karna mushkil ho gaya tha ki mujhe kya karna chahiye? main kinkartawyawimuDh sa Daktars chembar mein jakar baith gaya mere pichhe pichhe Dau sujata ray bhi i aur baith gai bahar uthte naron ke shor aur wyapt uttejna se wo jaise dahshat mein Dubi hui thi uska chehra fak paDa tha aise mein use akele chhoDkar jane ki meri himmat nahin hui main baghair kuch bole baitha raha sister yathawat bhagdauD mein lagi hui thi
mainne tab rahat ki sans li, jab Dau chaudhari ko Daktars chembar mein prawesh karte dekha Dau chaudhari hairan aur hanphate hue se andar aaye aur sidhe mujhse mukhatab ho gaye, “Dau bhagat, ye kya majara hai? bahar itni bheeD narebazi sab kushal to hai?”
ek peshent naksal leader usi ke saportar hain ye ” anamne Dhang se uttar dete hue main ghar jane ke liye uth khaDa hua “Dau chaudhari main chalta hoon ab aap aa gaye hain Deth sartifiket de dijiyega
“madh madh main!” Dau chaudhari haqlaye unke chehre par hawaiyan uDne lagi thi, “main kaise de sakta hoon Deth sartifiket! mainne peshent ko nahin dekha main uski kes history tak nahin janta
main awak Dau chaudhari ko dekhta rah gaya bahar naron ka shor maddhim paDne laga tha bhitar ek anpekshait sthiti sir utha chuki thi meri samajh mein nahin aaya, main kya karun? mainne sanyat swar mein Dau chaudhari ko yaad dilaya ki aap duty par hain qayde se to ye aapka hi kes hai
lekin Dau chaudhari koi tark manne ko taiyar nahin hue ek tarah se unhonne aDiyal rukh ikhtiyar kar liya tha aise mein, peshent ki lash, bahar uttejit bheeD, kisi bhi kshan kuch bhi ghat jane ki ashanka aur apne quarter mein nirih paDi apni patni ka khayal aate hi mere dimagh ki nasen taDatDane lagi isse pahle ki main apna aapa kho baithun, mainne Deth sartifiket likhkar de dena hi uchit samjha
Dau sujata ray ka byanः
main pi ji student Dau sujata ray ek january ki raat Dau chaudhari ki unit mein duty par thi, jab naksal leader wijay mitr ko achetawastha mein karDiyolaji mein laya gaya prarambhik jaanch ke baad mainne paya ki peshent ki haalat bahut siriyas hai aur uske sath i bheeD nihayat ugr main man hi man atankit aur asahaye mahsus karti peshent ka tatkal i si si yu mein dakhil karne ka nirdesh dekar Dau chaudhari se phone par sanpark karne ki koshish karne lagi lekin kafi prayas ke bawjud unse sanpark nahin ho paya main chunki ab tak jaan chuki thi ki wijay mitr nam ka ek peshent naksal leader hai aur bahar khaDe log uske saportar, mere hath panw phulne lage the main isi manasthiti mein kisi siniyar doctor ki talash mein institute ke pichhle darwaze se bahar nikal paDi
ye ek january ki raat thi, shayad isiliye kainpas mein kuch ziyada hi sannata tha pata nahin, mere bhitar ka bhay tha, ya kainpas mein wyapt sannata, watawarn kuch ziyada hi bhayawah lag raha tha achanak meri nazar Dau bhagat ke quarter ki khiDki se aati raushani aur Dolti parchhai par paDi mujhe laga ki Dau bhagat apne quarter mein hain, mainne ghabrahat aur baicheni ke us aalam mein Dau bhagat ke quarter ki kalbel baja di
apne quarter ka darwaza Dau bhagat ne hi khola isse pahle ki Dau bhagat mujhse kuch puchhte, mainne peshent ki siriyas haalat ka hawala dete hue unse madad ki mang ki, Dau bhagat shayad mujhe asahaye aur udwign dekhkar mere sath chalne ko taiyar ho gaye
i si si yu mein bharti peshent ke bare mein ye jankar ki wo naksal leader wijay mitr hai, Dau bhagat kuch is tarah chaunke ki mainne ghaur kiya, wo jaise kuch yaad karne ki koshish kar rahe hon agle hi kshan Dau bhagat peshent ke qarib pahunche aur use dhyan se dekhne lage, phir gahri sans khinchte hue unhonne mujhse puchha, “Dau ray, aap peshent ko janti hain?
han, main peshent wijay mitr ko janti thi aur use sirf isliye nahin janti thi ki wo naksal leader hai, balki main usi naksalbaDi ki rahne wali hoon, jahan kabhi naksalwad ne janm liya tha aur uske qahr ka shikar mera pariwar bhi hua tha lekin ye baat main Dau bhagat se chhupa gai ulte, us waqt mujhe laga ki Dau bhagat bhi kisi na kisi roop mein wijay mitr ko jante hain unki ankhon mein kisi ko pahchan lene jaisi snigdh aabha ubhri thi aur sath hi unke chehre par gahri udasi chha gai thi
Dau bhagat peshent wijay mitr ki sthiti par lagatar nazar rakhe hue the i si ji maunitar screen par ho rahe ek ek pariwartan se unke mathe par bal paD jate mujhe laga ki Dau bhagat bhitar se behad udwelit aur imoshnal ho aaye hain mainne unhen is sthiti se ubarne ki ghar se, ya ki naksaliyon ke prati mere man mein bhaybodh ne mujhe uksaya ki mainne unse ek bewqufana sawal kar Dala, “sar, aise nrishans adami ke pas bhi dil ho sakta hai, kya?
Dau bhagat ne mujhe kautuhal se dekha aur mujhe apni aur ektak dekhti pakar thanDi aah bharte hue kaha, “Dau ray, ye adami jaisi duniya banane ki laDai laDta raha hai, wo kisi mamuli adami ke wash ki baat nahin
zahir tha ki Dau bhagat na sirf peshent ke bare mein bahut kuch jante the, balki usse kahin na kahin antrang bhi the meri ichha hui ki main Dau bhagat se puchhun ki kya wijay mitr ki laDai se ittifaq rakhte hain, lekin kisi siniyar se turki ba turki sawal jawab karna na to hum pi ji student ke liye uchit hota hai, na hi suwidhajanak
mujhe chup dekhkar Dau bhagat kuch, ziyada hi wyagr ho uthe unhonne jaise apne aap se hi kaha, “is peshent ko kisi bhi qimat par bachaya jana bahut zaruri hai, Dau ray
lekin wo peshent nahin bacha Dau bhagat lakh chah kar bhi peshent wijay mitr ko nahin bacha pae us waqt Dau bhagat us lute hue musafi ki tarah nazar aa rahe the jo apna sab kuch ganwa kar bhi kahin shikayat darj na kara pane ki bebasi mein jaD ho gaya ho Dau bhagat hatash, udas, bhari qadmon se i si si yu se bahar nikle aur Daktars chembar mein jakar baith gaye unke pichhe pichhe main bhi Daktars chembar mein pahunchi aur chupchap ek kursi par baith gai
kuch hi der baad, Dau chaudhari bhi aa pahunche bahar wijay mitr ke saportar nare laga rahe the chaimbar ke bhitar Dau chaudhari ko dekhkar Dau bhagat kursi se uthe aur Dau chaudhari se Deth sartifiket de dene ke liye kahkar jane lage ki Dau chaudhari ne Deth sartifiket dene mein apni asmarthata wyakt kar di Dau bhagat aur Dau chaudhari mein is mudde par takrar bhi hui aur tabhi mainne dekha ki Dau bhagat tamtamaye hue kursi par ja baithe us waqt wo krodh se kanp rahe the aur usi haalat mein unhonne Deth sartifiket likhna shuru kar diya tha
Dau bhagat Deth sartifiket par apna hastakshar karne ke sath hi jhatke se uthe aur kaghaz ke us tukDe ko wahin table par chhoDkar teer ki manind doctor chembar se bahar nikal gaye
sister elwin ka byanः
main siniyar sister elwin hembram ek january ki raat duty par thi us raat jab peshent wijay mitr ko lekar ek bheeD i to tatkal use pi ji student Dau sujata ray ne ekzamin kiya aur use aksijan lagane ko kahkar i si si yu mein le jane ki hidayat di i si si yu mein thoDi der baad Dau sujata ray ke sath Dau si ke bhagat aaye unhonne peshent ko dekha aur mujhse peshent ka blaD bayokemestri ka intizam karne ko kaha main Dau bhagat ke adesh par i si si yu se bahar chali gai mujhe bayokemestri mein tala band mila mainne Dau bhagat ko jab ye suchana di to wo buri tarah baukhla gaye aur dauDte hue baramde ki or bhage isi beech lait chali gai aur jab lait i to mainne dekha ki Dau bhagat hanphate hue i si si yu mein ghus rahe hain Dau bhagat i si ji maunitar screen par nazar paDte hi cheekh paDe—oh no!
Dau bhagat ki cheekh se mera dhyan us or gaya mainne dekha, Dau bhagat peshent ki nabz tatol rahe hain Dau bhagat behad baichen aur ghabraye hue the shayad us waqt unki samajh mein kuch nahin aa raha tha tabhi Dau sujata ray ne kaha, sar peshent ij no mor
jenretar apretar ka byanः
ek january ki raat jis waqt bijli ghayab hui thi, main apni duty par tha mainne dauDkar turant jenretar chalu karne ki koshish ki thi, lekin jenretar mein kachra aa jane ke karan use chalu hone mein samay laga samay kitna laga, ye theek theek bata pana sambhaw nahin hai, kyonki na to mere pas ghaDi thi aur na hi aisi koi zaruri kabhi paDi thi
Dau chaudhari ka byanः
main Dau nilakant chaudhari ek january ko knight duty par tha, mujhe kainpas mein awas uplabdh nahin hai, isliye main shahr mein kiraye ke makan mein rahta hoon us raat main duty ke liye ghar se chala raste mein pata chala ki mukhymarg par wahnon ka aana jana band hai, kyonki udhar se gawarnar ka kafila guzarne wala hai rasta Daiwart kar diya gaya tha, lihaza dusre tamam raston mein traffic jam ho gaya tha aur main chahkar bhi duty par samay se pahunch pane mein wiwash tha jab main apni duty par pahuncha to kainpas mein ek shau ko ghere logon ka hujum narebazi kar raha tha bheeD behad uttejit thi mujhe laga, wahan kisi bhi kshan hinsa ho sakti hai main ghabraya hua Daktars chembar mein pahuncha, jahan pahle se hi Dau bhagat aur pi ji student Dau sujata ray maujud the Dau bhagat ne mujhse kaha ki main wijay mitr ka Deth sartifiket de doon lekin mainne peshent ka ilaj nahin kiya tha, na hi main kes history se wafiq tha, isliye Deth sartifiket dena mere liye na hi wyawaharik tha, na hi uchit, isliye mainne apni wiwashta zahir kar di is par Dau bhagat mujhse ulajh paDe aur unhonne apna aapa kho diya usi manasik sthiti mein unhonne wijay mitr ka Deth sartifiket jari kar diya
Dau bhagat ke likhe sartifiket par nazar paDte hi main hairan rah gaya mujhe apni ankhon par wishwas nahin hua mainne use Dau sujata ray ko paDhne ke liye diya Dau sujata ray bhi Deth sartifiket mein peshent wijay mitr ki mirtyu ka karan likha tha—Dyu two phailyor aaph sistam (wyawastha ke asaphal ho jane se mirtyu)
jaanch dal ne mahsus kiya ki is bindu par Dau si ke bhagat ka spashtikarn zaruri hai, lihaza Dau bhagat ek bar phir talab kiye gaye jaanch dal ki or se Dau rajnish acharya ne Dau si ke bhagat se puchha, “Dau bhagat, aap ek siniyar aur zimmedar doctor hain, phir aapne aisa Deth sartifiket kyon diya?
kyon, mainne kuch ghalat likha hai, kya?” Dau si ke bhagat is itminan se muskuraye ki jaanch dal ke tinon sadasy sakte mein aa gaye
“ar yu shyor Dau bhagat, ki aapne sahi likha hai?” baDi mushkil se poochh pae Dau dewashish dew
“yas yas! aayam hanDreD parsent shyor!” Dau si ke bhagat ke swar mein sakhti aur talkhi ek sath ubhri unhonne ulta sawal dagh diya, “eni mor kweshchan?
jaanch dal ne Dau si ke bhagat se koi aur sawal puchhna zaruri nahin samjha iske sath hi karDiyolaॉji ke Dayarektar aur any Doctron se bhi koi puchhatachh isliye nahin ki gai, ki unka is ghatna se koi pratyaksh sambandh nahin tha aur we jaanch ke dayre mein nahin aate the
sakshyon, paristhitiyon aur gawahon ke bayanon ke maddenzar jaanch dal ke teen sadasyon ne jo report taiyar ki, wo is prakar haih—
Dau rajnish acharya, karDiyolajistah
peshent wijay mitr ki blaD bayokemestri uplabdh na hone se mayokarDiyal infairkshan (heart ataik) ki pushti nahin hoti hai, lekin blaD preshar aur i si ji report se zahir hota hai ki peshent wijay mitr ki haalat gambhir thi uska praupar keyar aur abzarweshan zaruri tha jo nahin hua ye spashtatः laparwahi ka mamla hai aur Daktari naitikta ke wiruddh hai meri ray mein peshent ki mirtyu ka karan hai “laik aaf prapar tritment!”
Dau jiwkant yadaw, nyurolaujistः
sakshyon, paristhitiyon aur peshent ki prishthabhumi se zahir hota hai ki peshent wijay mitr zabardast ‘nerwous break down ka shikar tha, jisse uske mastishk ne kaam karna band kar diya aisa mariz sharirik taur par jinda hote hue bhi dimaghi taur par mar chuka hota hai aise kes mein turant nyurolajist se sanpark kiya jana chahiye, jo nahin hua meri ray mein wijay mitr ki maut ka karan hai—brain Deth
Dau ramashish dew, saikiyatristः
peshent wijay mitr chunki naksal leader aur ektiwist tha, isliye uska atyadhik tanaw aur dabaw mein hona swabhawik hai, par kalpanaon aur sapnon ki duniya mein jine ka aadi tha, jaisa ki aise log hote hain wastut ye ek prakar ka manorog hai is rog ke charam par pahunch jane ke karan aise rogi ya to pagalpan ka shikar ho jate hain ya phir ekyut depression ke sakshyon, paristhitiyon aur gawahon ke bayanon se main is natije par pahuncha hoon ki peshent wijay mitr ki mirtyu ‘stres enD sten ki wajah se hui
lekin jaanch dal ke tinon sadasy iske wiprit kuch baton par ekmat bhi the we sahmat the ki ek january ki raat Dau chaudhari ki duty thi aur traffic jam ki wajah we samay se duty par nahin pahunch pae, jo sambhaw haih iske bawjud Dau chaudhari ki duty mein Dau bhagat dwara peshent ka ilaj kiya jana uchit nahin tha, kyonki is tarah Dau chaudhari ki jabawdehi samapt ho gai aur jaan bujhkar Dau bhagat ne na sirf peshent wijay mitr ke ilaj ki zimmedari apne upar le li, balki unhonne sansthan ke niymon ka bhi ullanghan kiya
jaanch dal ke sadasy is baat par bhi ek mat the ki apne putr ki atmahatya, patni ki lambi bimari aur karDiyolaॉji institute ka Dayarektar na banaye jane ke karan muqadmebazi mein uljhe Dau si ke bhagat hatasha, hinta aur kuntha ke shikar ho chuke hain unki manasik sthiti bhi qati samany nahin lagti
jaanch dal ke Dau si ke bhagat dwara jari Deth sartifiket ki waidhanik haisiyat ke bare mein apni ray dete hue likhaः Dau si ke bhagat chunki ek january ki raat duty par nahin the, isliye niymat unhen Deth sartifiket nahin jari karna chahiye tha is tarah na sirf arajakta baDhegi, balki ek ghalat paripati bhi janm legi Dau bhagat dwara jari Deth sartifiket siddhantatः niyam wiruddh hai waise is mamle mein widhi wisheshaj~n ki ray apekshait hai
sarkar ka nirnay
jaanch dal ke wisheshagyon ki ray, gawahon ke sanlagn byan aur paristhitiyon ke aalok mein pramanait hai ki Dau si ke bhagat ka naksal leader wijay mitr se gahra sambandh tha aur isi karan unhonne sarkar ko badnam karne ke liye suniyojit sajish ke tahat asanwaidhanik Deth sartifiket jari kiya, jo ghor anushasanhinta ka parichayak hai tatha ek sarkari sewak ki achar sanhita ke wiruddh hai Dau si ke bhagat ko chikitskiy maryada ke ullanghan aur apattijnak acharn ke karan tatkal prabhaw se sewamukt kiya jata hai
Dau si ke bhagat ki pratikriyaः
kamareD wijay mitr, kash, tumhare pas dil na hota!
(hans, nowember 1999)
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1990-2000) (पृष्ठ 1)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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