बहुत-से लोग यहाँ-वहाँ सिर लटकाए बैठे थे जैसे किसी का मातम करने आए हों। कुछ लोग अपनी पोटलियाँ खोलकर खाना खा रहे थे। दो-एक व्यक्ति पगड़ियाँ सिर के नीचे रखकर कम्पाउंड के बाहर सड़क के किनारे बिखर गए थे। छोले-कुलचे वाले का रोज़गार गर्म था, और कमेटी के नल के पास एक छोटा-मोटा क्यू लगा था। नल के पास कुर्सी डालकर बैठा अर्ज़ीनवीस धड़ाधड़ अर्ज़ियाँ टाइप कर रहा था। उसके माथे से बहकर पसीना उसके होंठों पर आ रहा था, लेकिन उसे पोंछने की फ़ुरसत नहीं थी। सफ़ेद दाढ़ियों वाले दो-तीन लंबे-ऊँचे जाट, अपनी लाठियों पर झुके हुए, उसके ख़ाली होने का इंतिज़ार कर रहे थे। धूप से बचने के लिए अर्ज़ीनवीस ने जो टाट का परदा लगा रखा था, वह हवा से उड़ा जा रहा था। थोड़ी दूर मोढ़े पर बैठा उसका लड़का अँग्रेज़ी प्राइमर को रट्टा लगा रहा था-सी ए टी कैट-कैट माने बिल्ली; बी ए टी बैट-बैट माने बल्ला; एफ ए टी फैट-फैट माने मोटा...। क़मीज़ों के आधे बटन खोले और बग़ल में फ़ाइलें दबाए कुछ बाबू एक-दूसरे से छेड़खानी करते, रजिस्ट्रेशन ब्रांच से रिकार्ड ब्रांच की तरफ़ जा रहे थे। लाल बेल्ट वाला चपरासी, आस-पास की भीड़ से उदासीन, अपने स्टूल पर बैठा मन ही मन कुछ हिसाब कर रहा था। कभी उसके होंठ हिलते थे, और कभी सिर हिल जाता था। सारे कंपाउंड में सितम्बर की खुली धूप फैली थी। चिड़ियों के कुछ बच्चे डालों से कूदने और फिर ऊपर को उड़ने का अभ्यास कर रहे थे और कई बड़े-बड़े कौए पोर्च के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चहलक़दमी कर रहे थे। एक सत्तर-पचहत्तर की बुढ़िया, जिसका सिर काँप रहा था और चेहरा झुर्रियों के गुंझल के सिवा कुछ नहीं था, लोगों से पूछ रही थी कि वह अपने लड़के के मरने के बाद उसके नाम एलाट हुई ज़मीन की हक़दार हो जाती है या नहीं...?
अंदर हॉल कमरे में फ़ाइलें धीरे-धीरे चल रही थीं। दो-चार बाबू बीच की मेज़ के पास जमा होकर चाय पी रहे थे। उनमें से एक दफ़्तरी काग़ज़ पर लिखी अपनी ताज़ा ग़ज़ल दोस्तों को सुना रहा था और दोस्त इस विश्वास के साथ सुन रहे थे कि वह ग़ज़ल उसने 'शमा' या 'बीसवीं सदी' के किसी पुराने अंक में से उड़ाई है।
अज़ीज़ साहब, ये शेअर आपने आज ही कहे हैं, या पहले के कहे हुए शेअर आज अचानक याद हो आए हैं? साँवले चेहरे और घनी मूँछों वाले एक बाबू ने बाईंआँख को ज़रा-सा दबाकर पूछा। आस-पास खड़े सब लोगों के चेहरे खिल गए।
यह बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल है, अज़ीज़ साहब ने अदालत में खड़े होकर हलफ़िया बयान देने के लहज़े में कहा, इससे पहले भी इसी वज़न पर कोई और चीज़ कही हो तो याद नहीं। और फिर आँखों से सबके चेहरों को टटोलते हुए वे हल्की हँसी के साथ बोले, अपना दीवान तो कोई रिसर्चदां ही मुरत्तब करेगा...।
एक फ़रमायशी कहकहा लगा जिसे 'शी-शी' की आवाज़ों ने बीच में ही दबा दिया। क़हक़हे पर लगाई गई इस ब्रेक का मतलब था कि कमिश्नर साहब अपने कमरे में तशरीफ़ ले आए हैं। कुछ देर का वक़्फ़ा रहा, जिसमें सुरजीत सिंह वल्द गुरमीत सिंह की फ़ाइल एक मेज़ से एक्शन के लिए दूसरी मेज़ पर पहुँच गई, सुरजीत सिंह वल्द गुरमीत सिंह मुस्कुराता हुआ हॉल से बाहर चला गया, और जिस बाबू की मेज़ से फ़ाइल गई थी, वह पाँच रुपये के नोट को सहलाता हुआ चाय पीने वालों के जमघट में आ शामिल हुआ। अज़ीज़ साहब अब आवाज़ ज़रा धीमी करके ग़ज़ल का अगला शेअर सुनाने लगे।
साहब के कमरे से घंटी हुई। चपरासी मुस्तैदी से उठकर अंदर गया, और उसी मुस्तैदी से वापस आकर फिर अपने स्टूल पर बैठ गया।
चपरासी से खिड़की का पर्दा ठीक कराकर कमिश्नर साहब ने मेज़ पर रखे ढेर-से काग़ज़ों पर एक साथ दस्तख़त किए और पाइप सुलगाकर 'रीडर्ज़ डाइजेस्ट' का ताज़ा अंक बैग से निकाल लिया। लेटीशिया बाल्ड्रिज का लेख कि उसे इतालवी मर्दों से क्यों प्यार है, वे पढ़ चुके थे। और लेखों में हृदय की शल्य चिकित्सा के संबंध में जे.डी. रैटक्लिफ का लेख उन्होंने सबसे पहले पढ़ने के लिए चुन रखा था। पृष्ठ एक सौ ग्यारह खोलकर वे हृदय के नए ऑपरेशन का ब्यौरा पढ़ने लगे।
तभी बाहर से कुछ शोर सुनाई देने लगा।
कंपाउंड में पेड़ के नीचे बिखरकर बैठे लोगों में चार नए चेहरे आ शामिल हुए थे। एक अधेड़ आदमी था जिसने अपनी पगड़ी ज़मीन पर बिछा ली थी और हाथ पीछे करके तथा टाँगें फैलाकर उस पर बैठ गया था। पगड़ी के सिरे की तरफ़ उससे ज़रा बड़ी उम्र की एक स्त्री और एक जवान लड़की बैठी थीं; और उनके पास खड़ा एक दुबला-सा लड़का आस-पास की हर चीज़ को घूरती नज़र से देख रहा था, अधेड़ मर्द की फैली हुई टाँगें धीरे-धीरे पूरी खुल गई थीं और आवाज़ इतनी ऊँची हो गई थी कि कम्पाउंड के बाहर से भी बहुत-से लोगों का ध्यान उसकी तरफ़ खिंच गया था। वह बोलता हुआ साथ अपने घुटने पर हाथ मार रहा था। सरकार वक़्त ले रही है! दस-पाँच साल में सरकार फ़ैसला करेगी कि अर्ज़ी मंज़ूर होनी चाहिए या नहीं। सालो, यमराज भी तो हमारा वक़्त गिन रहा है। उधर वह वक़्त पूरा होगा और इधर तुमसे पता चलेगा कि हमारी अर्ज़ी मंज़ूर हो गई है।
चपरासी की टाँगें ज़मीन पर पुख़्ता हो गईं, और वह सीधा खड़ा हो गया। कम्पाउंड में बिखरकर बैठे और लेटे हुए लोग अपनी-अपनी जगह पर कस गए। कई लोग उस पेड़ के पास आ जमा हुए।
दो साल से अर्ज़ी दे रखी है कि सालो, ज़मीन के नाम पर तुमने मुझे जो गड्ढा एलाट कर दिया है, उसकी जगह कोई दूसरी ज़मीन दो। मगर दो साल से अर्ज़ी यहाँ के दो कमरे ही पार नहीं कर पाई! वह आदमी अब जैसे एक मजमे में बैठकर तकरीर करने लगा, इस कमरे से उस कमरे में अर्ज़ी के जाने में वक़्त लगता है! इस मेज़ से उस मेज़ तक जाने में भी वक़्त लगता है! सरकार वक़्त ले रही है! लो, मैं आ गया हूँ आज यहीं पर अपना सारा घर-बार लेकर। ले लो जितना वक़्त तुम्हें लेना है!...सात साल की भुखमरी के बाद सालों ने ज़मीन दी है मुझे-सौ मरले का गड्ढा! उसमें क्या मैं बाप-दादों की अस्थियाँ गाड़ूँगा? अर्ज़ी दी थी कि मुझे सौ मरले की जगह पचास मरले दे दी-लेकिन ज़मीन तो दो! मगर अर्ज़ी दो साल से वक़्त ले रही है! मैं भूखा मर रहा हूँ, और अर्ज़ी वक़्त ले रही है!
चपरासी अपने हथियार लिए हुए आगे आया-माथे पर त्योरियाँ और आँखों में क्रोध। आस-पास की भीड़ को हटाता हुआ वह उसके पास आ गया।
ए मिस्टर, चल हियाँ से बाहर! उसने हथियारों की पूरी चोट के साथ कहा, चल...उठ...!
मिस्टर आज यहाँ से नहीं उठ सकता1 वह आदमी अपनी टाँगें थोड़ी और चौड़ी करके बोला, मिस्टर आज यहाँ का बादशाह है। पहले मिस्टर देश के बेताज बादशाहों की जय बुलाता था। अब वह किसी की जय नहीं बुलाता। अब वह ख़ुद यहाँ का बादशाह है... बेलाज बादशाह उसे कोई लाज-शरम नहीं है। उस पर किसी का हुक्म नहीं चलता। समझे, चपरासी बादशाह!
अभी तुझे पता चल जाएगा कि तुझ पर किसी का हुक्म चलता है या नहीं, चपरासी बादशाह और गर्म हुआ, अभी पुलिस के सुपुर्द कर दिया जाएगा तो तेरी सारी बादशाही निकल जाएगी...।
हा-हा! बेलाज बादशाह हँसा। तेरी पुलिस मेरी बादशाही निकालेगी? तू बुला पुलिस को। मैं पुलिस के सामने नंगा हो जाऊँगा और कहूँगा कि निकालो मेरी बादशाही! हममें से किस-किसकी बादशाही निकालेगी पुलिस? ये मेरे साथ तीन बादशाह और हैं। यह मेरे भाई की बेवा है—उस भाई की जिसे पाकिस्तान में टाँगों से पकड़कर चीर दिया गया था। यह मेरे भाई का लड़का है जो अभी से तपेदिक का मरीज़ है। और यह मेरे भाई की लड़की है जो अब ब्याहने लायक़ हो गई है। इसकी बड़ी कुँवारी बहन आज भी पाकिस्तान में है। आज मैंने इन सबको बादशाही दे दी है। तू ले आ जाकर अपनी पुलिस, कि आकर इन सबकी बादशाही निकाल दे। कुत्ता साला...!
अंदर से कई-एक बाबू निकलकर बाहर आ गए थे। 'कुत्ता साला' सुनकर चपरासी आपे से बाहर हो गया। वह तैश में उसे बाँह से पकड़कर घसीटने लगा, तुझे अभी पता चल जाता है कि कौन साला कुत्ता है! मैं तुझे मार-मारकर... और उसने उसे अपने टूटे हुए बूट की एक ठोकर दी। स्त्री और लड़की सहमकर वहाँ से हट गई। लड़का एक तरफ़ खड़ा होकर रोने लगा।
बाबू लोग भीड़ को हटाते हुए आगे बढ़ आए और उन्होंने चपरासी को उस आदमी के पास से हटा लिया। चपरासी फिर भी बड़बड़ाता रहा, कमीना आदमी, दफ़्तर में आकर गाली देता है। मैं अभी तुझे दिखा देता कि...
एक तुम्हीं नहीं, यहाँ तुम सबके-सब कुत्ते हो, वह आदमी कहता रहा, तुम सब भी कुत्ते हो, और मैं भी कुत्ता हूँ। फर्क़ सिर्फ़ इतना है कि तुम लोग सरकार के कुत्ते हो-हम लोगों की हड्डियाँ चूसते हो और सरकार की तरफ़ से भौंकते हो। मैं परमात्मा का कुत्ता हूँ। उसकी दी हुई हवा खाकर जीता हूँ, और उसकी तरफ़ से भौंकता हूँ। उसका घर इंसाफ़ का घर है। मैं उसके घर की रखवाली करता हूँ। तुम सब उसके इंसाफ़ की दौलत के लुटेरे हो। तुम पर भौंकना मेरा फ़र्ज़ है, मेरे मालिक का फ़रमान है। मेरा तुमसे अज़ली बैर है। कुत्ते का बैरी कुत्ता होता है। तुम मेरे दुश्मन हो, मैं तुम्हारा दुश्मन हूँ। मैं अकेला हूँ, इसलिए तुम सब मिलकर मुझे मारो। मुझे यहाँ से निकाल दो। लेकिन मैं फिर भी भौंकता रहूँगा। तुम मेरा भौंकना बंद नहीं कर सकते। मेरे अंदर मेरे मालिक का नर है, मेरे वाहगुरु का तेज़ है। मुझे जहाँ बंद कर दोगे, मैं वहाँ भौंकूँगा, और भौंक-भौंककर तुम सबके कान फाड़ दूँगा। साले, आदमी के कुत्ते, जूठी हड्डी पर मरनेवाले कुत्ते दुम हिला-हिलाकर जीनेवाले कुत्ते...!
बाबा जी, बस करो, एक बाबू हाथ जोड़कर बोला, हम लोगों पर रहम खाओ, और अपनी यह संतबानी बंद करो। बताओ तुम्हारा नाम क्या है, तुम्हारा केस क्या है...?
मेरा नाम है बारह सौ छब्बीस बटा सात! मेरे माँ-बाप का दिया हुआ नाम खा लिया कुत्तों ने। अब यही नाम है जो तुम्हारे दफ़्तर का दिया हुआ है। मैं बारह सौ छब्बीस बटा सात हूँ। मेरा और कोई नाम नहीं है। मेरा यह नाम याद कर लो। अपनी डायरी में लिख लो। वाहगुरु का कुत्ता-बारह सौ छब्बीस बटा सात।
बाबा जी, आज जाओ, कल या परसों आ जाना। तुम्हारी अर्ज़ी की कार्रवाई तक़रीबन-तक़रीबन पूरी हो चुकी है...।
तक़रीबन-तक़रीबन पूरी हो चुकी है! और मैं ख़ुद ही तक़रीबन-तक़रीबन पूरा हो चुका हूँ! अब देखना यह है कि पहले कार्रवाई पूरी होती है, कि पहले मैं पूरा होता हूँ! एक तरफ़ सरकार का हुनर है और दूसरी तरफ़ परमात्मा का हुनर है! तुम्हारा तक़रीबन-तक़रीबन अभी दफ़्तर में ही रहेगा और मेरा तक़रीबन-तक़रीबन कफ़न में पहुँच जाएगा। सालों ने सारी पढ़ाई ख़र्च करके दो लफ़्ज़ ईज़ाद किए हैं-शायद और तक़रीबन। 'शायद आपके काग़ज़ ऊपर चले गए हैं-तक़रीबन-तक़रीबन कार्रवाई पूरी हो चुकी है!' शायद से निकालो और तक़रीबन में डाल दो! तक़रीबन से निकालो और शायद में ग़र्क़ कर दो। तक़रीबन तीन-चार महीने में तहक़ीक़ात होगी।...शायद महीने-दो महीने में रिपोर्ट आएगी।' मैं आज शायद और तकरीबन दोनों घर पर छोड़ आया हूँ। मैं यहाँ बैठा हूँ और यहीं बैठा रहूँगा। मेरा काम होना है, तो आज ही होगा और अभी होगा। तुम्हारे शायद और तक़रीबन के गाहक ये सब खड़े हैं। यह ठगी इनसे करो...।
बाबू लोग अपनी सद्भावना के प्रभाव से निराश होकर एक-एक करके अंदर लौटने लगे।
बैठा है, बैठा रहने दो।
बकता है, बकने दो।
साला बदमाशी से काम निकालना चाहता है।
लेट हिम बार्क हिमसेल्फ टु डेथ।
बाबुओं के साथ चपरासी भी बड़बड़ाता हुआ अपने स्टूल पर लौट गया। मैं साले के दाँत तोड़ देता। अब बाबू लोग हाकिम हैं और हाकिमों का कहा मानना पड़ता है, वरना...
अरे बाबा, शांति से काम ले। यहाँ मिन्नत चलती है, पैसा चलता है, धौंस नहीं चलती,
भीड़ में से कोई उसे समझाने लगा।
वह आदमी उठकर खड़ा हो गया।
मगर परमात्मा का हुक्म हर जगह चलता है, वह अपनी क़मीज़ उतारता हुआ बोला, और परमात्मा के हुक्म से आज बेलाज बादशाह नंगा होकर कमिश्नर साहब के कमरे में जाएगा। आज वह नंगी पीठ पर साहब के डंडे खाएगा। आज वह बूटों की ठोकरें खाकर प्रान देगा। लेकिन वह किसी की मिन्नत नहीं करेगा। किसी को पैसा नहीं चढ़ाएगा। किसी की पूजा नहीं करेगा। जो वाहगुरु की पूजा करता है, वह और किसी की पूजा नहीं कर सकता। तो वाहगुरु का नाम लेकर...
और इससे पहले कि वह अपने कहे को किए में परिणत करता, दो-एक आदमियों ने बढ़कर तहमद की गाँठ पर रखे उसके हाथ को पकड़ लिया। बेलाज बादशाह अपना हाथ छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगा।
मुझे जाकर पूछने दो कि क्या महात्मा गाँधी ने इसीलिए इन्हें आज़ादी दिलाई थी कि ये आज़ादी के साथ इस तरह संभोग करें? उसकी मिट्टी ख़राब करें? उसके नाम पर कलंक लगाएँ? उसे टके-टके की फ़ाइलों में बाँधकर ज़लील करें? लोगों के दिलों में उसके लिए नफ़रत पैदा करें? इंसान के तन पर कपड़े देखकर बात इन लोगों की समझ में नहीं आती। शरम तो उसे होती है जो इंसान हो। मैं तो आप कहता हूँ कि मैं इंसान नहीं, कुत्ता हूँ...!
सहसा भीड़ में एक दहशत-सी फैल गई। कमिश्नर साहब अपने कमरे से बाहर निकल आए थे। वे माथे की त्योरियों और चेहरे की झुर्रियों को गहरा किए भीड़ के बीच में आ गए।
क्या बात है? क्या चाहते हो तुम?
आपसे मिलना चाहता हूँ, साहब, वह आदमी साहब को घूरता हुआ बोला, सौ मरले का एक गड्ढा मेरे नाम एलाट हुआ है। वह गड्ढा आपको वापस करना चाहता हूँ ताकि सरकार उसमें एक तालाब बनवा दे, और अफ़सर लोग शाम को वहाँ जाकर मछलियाँ मारा करें। या उस गड्ढे में सरकार एक तहख़ाना बनवा दे और मेरे जैसे कुत्तों को उसमें बंद कर दे...।
ज़ियादा बक-बक मत करो, और अपना केस लेकर मेरे पास आओ।
मेरा केस मेरे पास नहीं है, साहब! दो साल से सरकार के पास है—आपके पास है। मेरे पास अपना शरीर और दो कपड़े हैं। चार दिन बाद ये भी नहीं रहेंगे, इसलिए इन्हें भी आज ही उतारे दे रहा हूँ। इसके बाद बाक़ी सिर्फ़ बारह सौ छब्बीस बटा सात रह जाएगा। बारह सौ छब्बीस बटा सात को मार-मारकर परमात्मा के हुज़ूर में भेज दिया जाएगा...।
यह बकवास बंद करो ओर मेरे साथ अंदर आओ।
और कमिश्नर साहब अपने कमरे में वापस चले गए। वह आदमी भी कमीज़ कंधे पर रखे उस कमरे की तरफ़ चल दिया।
दो साल चक्कर लगाता रहा, किसी ने बात नहीं सुनी। ख़ुशामदें करता रहा, किसी ने बात नहीं सुनी। वास्ते देता रहा, किसी ने बात नहीं सुनी...।
चपरासी ने उसके लिए चिक उठा दी और वह कमिश्नर साहब के कमरे में दाख़िल हो गया। घंटी बजी, फ़ाइलें हिलीं,बाबुओं की बुलाहट हुई, और आधे घंटे के बाद बेलाज बादशाह मुस्कराता हुआ बाहर निकल आया। उत्सुक आँखों की भीड़ ने उसे आते देखा, तो वह फिर बोलने लगा, चूहों की तरह बिटर-बिटर देखने में कुछ नहीं होता। भौंको, भौंको,सबके-सब भौंको। अपने-आप सालों के कान फट जाएँगे। भौंको कुत्तों, भौंको...
उसकी भौजाई दोनों बच्चों के साथ गेट के पास खड़ी इंतज़ार कर रही थी। लडक़े और लडक़ी के कंधों पर हाथ रखते हुए वह सचमुच बादशाह की तरह सडक़ पर चलने लगा।
हयादार हो, तो सालहा-साल मुँह लटकाए खड़े रहो। अर्ज़ियाँ टाइप कराओ और नल का पानी पियो। सरकार वक़्त ले रही है! नहीं तो बेहया बनो। बेहयाई हज़ार बरकत है।
वह सहसा रुका और ज़ोर से हँसा।
यारो, बेहयाई हज़ार बरकत है।
उसके चले जाने के बाद कम्पाउंड में और आस-पास मातमी वातावरण पहले से और गहरा हो गया। भीड़ धीरे-धीरे बिखरकर अपनी जगहों पर चली गई। चपरासी की टाँगें फिर स्टूल पर झूलने लगीं। सामने के कैंटीन का लडक़ा बाबुओं के कमरे में एक सेट चाय ले गया। अर्ज़ीनवीस की मशीन चलने लगी और टिक-टिक की आवाज़ के साथ उसका लडक़ा फिर अपना सबक दोहराने लगा। पी ई एन पेन-पेन माने कलम; एच ई एन हेन-हेन माने मुर्गी; डी ई ऐन डेन-डेन माने अँधेरी गुफ़ा...!
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baba ji, bus karo, ek babu hath joDkar bola, ham logon par rahm khao, aur apni ye santbani band karo batao tumhara nam kya hai, tumhara kes kya hai ?
mera nam hai barah sau chhabbis bata sat! mere man bap ka diya hua nam kha liya kutton ne ab yahi nam hai jo tumhare daftar ka diya hua hai main barah sau chhabbis bata sat hoon mera aur koi nam nahin hai mera ye nam yaad kar lo apni Diary mein likh lo wahaguru ka kutta barah sau chhabbis bata sat
baba ji, aaj jao, kal ya parson aa jana tumhari arzi ki karrwai taqriban taqriban puri ho chuki hai
taqriban taqriban puri ho chuki hai! aur main khu hi taqriban taqriban pura ho chuka hoon! ab dekhana ye hai ki pahle karrwai puri hoti hai, ki pahle main pura hota hoon! ek taraf sarkar ka hunar hai aur dusri taraf parmatma ka hunar hai! tumhara taqriban taqriban abhi daftar mein hi rahega aur mera taqriban taqriban kafan mein pahunch jayega salon ne sari paDhai kharch karke do lafz izad kiye hain shayad aur taqriban shayad aapke kaghaz upar chale gaye hain taqriban taqriban karrwai puri ho chuki hai! shayad se nikalo aur taqriban mein Dal do! taqriban se nikalo aur shayad mein gharq kar do taqriban teen chaar mahine mein tahqiqat hogi shayad mahine do mahine mein report ayegi main aaj shayad aur takriban donon ghar par chhoD aaya hoon main yahan baitha hoon aur yahin baitha rahunga mera kaam hona hai, to aaj hi hoga aur abhi hoga tumhare shayad aur taqriban ke gahak ye sab khaDe hain ye thagi inse karo
babu log apni sadbhawana ke prabhaw se nirash hokar ek ek karke andar lautne lage
baitha hai, baitha rahne do
bakta hai, bakne do
sala badmashi se kaam nikalna chahta hai
let him bark himselph tu Deth
babuon ke sath chaprasi bhi baDbaData hua apne stool par laut gaya main sale ke dant toD deta ab babu log hakim hain aur hakimon ka kaha manna paDta hai, warna
are baba, shanti se kaam le yahan minnat chalti hai, paisa chalta hai, dhauns nahin chalti,
bheeD mein se koi use samjhane laga
wo adami uthkar khaDa ho gaya
magar parmatma ka hukm har jagah chalta hai, wo apni qamiz utarta hua bola, aur parmatma ke hukm se aaj belaj badashah nanga hokar commissioner sahab ke kamre mein jayega aaj wo nangi peeth par sahab ke DanDe khayega aaj wo buton ki thokren khakar pran dega lekin wo kisi ki minnat nahin karega kisi ko paisa nahin chaDhayega kisi ki puja nahin karega jo wahaguru ki puja karta hai, wo aur kisi ki puja nahin kar sakta to wahaguru ka nam lekar
aur isse pahle ki wo apne kahe ko kiye mein parinat karta, do ek adamiyon ne baDhkar tahmad ki ganth par rakhe uske hath ko pakaD liya belaj badashah apna hath chhuDane ke liye sangharsh karne laga
mujhe jakar puchhne do ki kya mahatma gandhi ne isiliye inhen azadi dilai thi ki ye azadi ke sath is tarah sambhog karen? uski mitti kharab karen? uske nam par kalank lagayen? use take take ki failon mein bandhakar zalil karen? logon ke dilon mein uske liye nafar paida karen? insan ke tan par kapDe dekhkar baat in logon ki samajh mein nahin aati sharam to use hoti hai jo insan ho main to aap kahta hoon ki main insan nahin, kutta hoon !
sahsa bheeD mein ek dahshat si phail gai commissioner sahab apne kamre se bahar nikal aaye the we mathe ki tyoriyon aur chehre ki jhurriyon ko gahra kiye bheeD ke beech mein aa gaye
kya baat hai? kya chahte ho tum?
apse milna chahta hoon, sahab, wo adami sahab ko ghurta hua bola, sau marle ka ek gaDDha mere nam elat hua hai wo gaDDha aapko wapas karna chahta hoon taki sarkar usmen ek talab banwa de, aur afsar log sham ko wahan jakar machhliyan mara karen ya us gaDDhe mein sarkar ek tahkhana banwa de aur mere jaise kutton ko usmen band kar de
ziyada bak bak mat karo, aur apna kes lekar mere pas aao
mera kes mere pas nahin hai, sahab! do sal se sarkar ke pas hai—apke pas hai mere pas apna sharir aur do kapDe hain chaar din baad ye bhi nahin rahenge, isliye inhen bhi aaj hi utare de raha hoon iske baad baqi sirf barah sau chhabbis bata sat rah jayega barah sau chhabbis bata sat ko mar markar parmatma ke huzur mein bhej diya jayega
yah bakwas band karo or mere sath andar aao
aur commissioner sahab apne kamre mein wapas chale gaye wo adami bhi kamiz kandhe par rakhe us kamre ki taraf chal diya
do sal chakkar lagata raha, kisi ne baat nahin suni khushamden karta raha, kisi ne baat nahin suni waste deta raha, kisi ne baat nahin suni
chaprasi ne uske liye chik utha di aur wo commissioner sahab ke kamre mein dakhil ho gaya ghanti baji, failen hilin,babuon ki bulahat hui, aur aadhe ghante ke baad belaj badashah muskrata hua bahar nikal aaya utsuk ankhon ki bheeD ne use aate dekha, to wo phir bolne laga, chuhon ki tarah bitar bitar dekhne mein kuch nahin hota bhaunko, bhaunko,sabke sab bhaunko apne aap salon ke kan phat jayenge bhaunko kutton, bhaunko
uski bhaujai donon bachchon ke sath gate ke pas khaDi intzar kar rahi thi laDqe aur laDqi ke kandhon par hath rakhte hue wo sachmuch badashah ki tarah saDaq par chalne laga
hayadar ho, to salaha sal munh latkaye khaDe raho arziyan type karao aur nal ka pani piyo sarkar waqt le rahi hai! nahin to behaya bano behayai hazar barkat hai
wo sahsa ruka aur zor se hansa
yaro, behayai hazar barkat hai
uske chale jane ke baad kampaunD mein aur aas pas matami watawarn pahle se aur gahra ho gaya bheeD dhire dhire bikharkar apni jaghon par chali gai chaprasi ki tangen phir stool par jhulne lagin samne ke kaintin ka laDqa babuon ke kamre mein ek set chay le gaya arzinwis ki machine chalne lagi aur tik tik ki awaz ke sath uska laDqa phir apna sabak dohrane laga pi i en pen pen mane kalam; ech i en hen hen mane murgi; d i ain Den Den mane andheri gufa !
bahut se log yahan wahan sir latkaye baithe the jaise kisi ka matam karne aaye hon kuch log apni potaliyan kholkar khana kha rahe the do ek wekti pagDiyan sir ke niche rakhkar kampaunD ke bahar saDak ke kinare bikhar gaye the chhole kulche wale ka rozgar garm tha, aur committe ke nal ke pas ek chhota mota kyu laga tha nal ke pas kursi Dalkar baitha arzinwis dhaDadhaD arziyan type kar raha tha uske mathe se bahkar pasina uske honthon par aa raha tha, lekin use ponchhne ki fursat nahin thi safed daDhiyon wale do teen lambe unche jat, apni lathiyon par jhuke hue, uske khali hone ka intizar kar rahe the dhoop se bachne ke liye arzinwis ne jo tat ka parda laga rakha tha, wo hawa se uDa ja raha tha thoDi door moDhe par baitha uska laDka angrezi praimar ko ratta laga raha tha si e t kait kait mane billi; b e t bat bat mane balla; eph e t phait phait mane mota qamizon ke aadhe button khole aur baghal mein failen dabaye kuch babu ek dusre se chheDkhani karte, registration branch se rikarD branch ki taraf ja rahe the lal belt wala chaprasi, aas pas ki bheeD se udasin, apne stool par baitha man hi man kuch hisab kar raha tha kabhi uske honth hilte the, aur kabhi sir hil jata tha sare kampaunD mein sitambar ki khuli dhoop phaili thi chiDiyon ke kuch bachche Dalon se kudne aur phir upar ko uDne ka abhyas kar rahe the aur kai baDe baDe kaue porch ke ek sire se dusre sire tak chahalaqadmi kar rahe the ek sattar pachhattar ki buDhiya, jiska sir kanp raha tha aur chehra jhurriyon ke gunjhal ke siwa kuch nahin tha, logon se poochh rahi thi ki wo apne laDke ke marne ke baad uske nam elat hui zamin ki haqdar ho jati hai ya nahin ?
andar hall kamre mein failen dhire dhire chal rahi theen do chaar babu beech ki mez ke pas jama hokar chay pi rahe the unmen se ek daftri kaghaz par likhi apni taza ghazal doston ko suna raha tha aur dost is wishwas ke sath sun rahe the ki wo ghazal usne shama ya biswin sadi ke kisi purane ank mein se uDai hai
aziz sahab, ye shear aapne aaj hi kahe hain, ya pahle ke kahe hue shear aaj achanak yaad ho aaye hain? sanwle chehre aur ghani munchhon wale ek babu ne bainankh ko zara sa dabakar puchha aas pas khaDe sab logon ke chehre khil gaye
yah bilkul taza ghazal hai, aziz sahab ne adalat mein khaDe hokar halafiya byan dene ke lahze mein kaha, isse pahle bhi isi wazan par koi aur cheez kahi ho to yaad nahin aur phir ankhon se sabke chehron ko tatolte hue we halki hansi ke sath bole, apna diwan to koi risarchdan hi murattab karega
ek farmayshi kahakha laga jise shi shee ki awazon ne beech mein hi daba diya qahqahe par lagai gai is break ka matlab tha ki commissioner sahab apne kamre mein tashrif le aaye hain kuch der ka waqfa raha, jismen surjit sinh wald gurmit sinh ki file ek mez se ekshan ke liye dusri mez par pahunch gai, surjit sinh wald gurmit sinh muskurata hua hall se bahar chala gaya, aur jis babu ki mez se file gai thi, wo panch rupye ke not ko sahlata hua chay pine walon ke jamghat mein aa shamil hua aziz sahab ab awaz zara dhimi karke ghazal ka agla shear sunane lage
sahab ke kamre se ghanti hui chaprasi mustaidi se uthkar andar gaya, aur usi mustaidi se wapas aakar phir apne stool par baith gaya
chaprasi se khiDki ka parda theek karakar commissioner sahab ne mez par rakhe Dher se kaghzon par ek sath dastakhat kiye aur paip sulgakar riDarz Daijest ka taza ank bag se nikal liya letishiya balDrij ka lekh ki use italawi mardon se kyon pyar hai, we paDh chuke the aur lekhon mein hirdai ki shaly chikitsa ke sambandh mein je d raitakliph ka lekh unhonne sabse pahle paDhne ke liye chun rakha tha prishth ek sau gyarah kholkar we hirdai ke nae operation ka byaura paDhne lage
tabhi bahar se kuch shor sunai dene laga
kampaunD mein peD ke niche bikharkar baithe logon mein chaar nae chehre aa shamil hue the ek adheD adami tha jisne apni pagDi zamin par bichha li thi aur hath pichhe karke tatha tangen phailakar us par baith gaya tha pagDi ke sire ki taraf usse zara baDi umr ki ek istri aur ek jawan laDki baithi theen; aur unke pas khaDa ek dubla sa laDka aas pas ki har cheez ko ghurti nazar se dekh raha tha, adheD mard ki phaili hui tangen dhire dhire puri khul gai theen aur awaz itni unchi ho gai thi ki kampaunD ke bahar se bhi bahut se logon ka dhyan uski taraf khinch gaya tha wo bolta hua sath apne ghutne par hath mar raha tha sarkar waqt le rahi hai! das panch sal mein sarkar faisla karegi ki arzi manzur honi chahiye ya nahin salo, yamraj bhi to hamara waqt gin raha hai udhar wo waqt pura hoga aur idhar tumse pata chalega ki hamari arzi manzur ho gai hai
chaprasi ki tangen zamin par pukhta ho gain, aur wo sidha khaDa ho gaya kampaunD mein bikharkar baithe aur lete hue log apni apni jagah par kas gaye kai log us peD ke pas aa jama hue
do sal se arzi de rakhi hai ki salo, zamin ke nam par tumne mujhe jo gaDDha elat kar diya hai, uski jagah koi dusri zamin do magar do sal se arzi yahan ke do kamre hi par nahin kar pai! wo adami ab jaise ek majme mein baithkar takrir karne laga, is kamre se us kamre mein arzi ke jane mein waqt lagta hai! is mez se us mez tak jane mein bhi waqt lagta hai! sarkar waqt le rahi hai! lo, main aa gaya hoon aaj yahin par apna sara ghar bar lekar le lo jitna waqt tumhein lena hai! sat sal ki bhukhamri ke baad salon ne zamin di hai mujhe sau marle ka gaDDha! usmen kya main bap dadon ki asthiyan gaDunga? arzi di thi ki mujhe sau marle ki jagah pachas marle de di lekin zamin to do! magar arzi do sal se waqt le rahi hai! main bhukha mar raha hoon, aur arzi waqt le rahi hai!
chaprasi apne hathiyar liye hue aage aaya mathe par tyoriyan aur ankhon mein krodh aas pas ki bheeD ko hatata hua wo uske pas aa gaya
e mistar, chal hiyan se bahar! usne hathiyaron ki puri chot ke sath kaha, chal uth !
mistar aaj yahan se nahin uth sakta1 wo adami apni tangen thoDi aur chauDi karke bola, mistar aaj yahan ka badashah hai pahle mistar desh ke betaj badshahon ki jay bulata tha ab wo kisi ki jay nahin bulata ab wo khu yahan ka badashah hai belaj badashah use koi laj sharam nahin hai us par kisi ka hukm nahin chalta samjhe, chaprasi badashah!
abhi tujhe pata chal jayega ki tujh par kisi ka hukm chalta hai ya nahin, chaprasi badashah aur garm hua, abhi police ke supurd kar diya jayega to teri sari badshahi nikal jayegi
ha ha! belaj badashah hansa teri police meri badshahi nikalegi? tu bula police ko main police ke samne nanga ho jaunga aur kahunga ki nikalo meri badshahi! hammen se kis kiski badshahi nikalegi police? ye mere sath teen badashah aur hain ye mere bhai ki bewa hai—us bhai ki jise pakistan mein tangon se pakaDkar cheer diya gaya tha ye mere bhai ka laDka hai jo abhi se tapedik ka mariz hai aur ye mere bhai ki laDki hai jo ab byahane layaq ho gai hai iski baDi kunwari bahan aaj bhi pakistan mein hai aaj mainne in sabko badshahi de di hai tu le aa jakar apni police, ki aakar in sabki badshahi nikal de kutta sala !
andar se kai ek babu nikalkar bahar aa gaye the kutta sala sunkar chaprasi aape se bahar ho gaya wo taish mein use banh se pakaDkar ghasitne laga, tujhe abhi pata chal jata hai ki kaun sala kutta hai! main tujhe mar markar aur usne use apne tute hue boot ki ek thokar di istri aur laDki sahamkar wahan se hat gai laDka ek taraf khaDa hokar rone laga
babu log bheeD ko hatate hue aage baDh aaye aur unhonne chaprasi ko us adami ke pas se hata liya chaprasi phir bhi baDbaData raha, kamina adami, daftar mein aakar gali deta hai main abhi tujhe dikha deta ki
ek tumhin nahin, yahan tum sabke sab kutte ho, wo adami kahta raha, tum sab bhi kutte ho, aur main bhi kutta hoon pharq sirf itna hai ki tum log sarkar ke kutte ho hum logon ki haDDiyan chuste ho aur sarkar ki taraf se bhaunkte ho main parmatma ka kutta hoon uski di hui hawa khakar jita hoon, aur uski taraf se bhaunkta hoon uska ghar insaf ka ghar hai main uske ghar ki rakhwali karta hoon tum sab uske insaf ki daulat ke lutere ho tum par bhaunkna mera farz hai, mere malik ka farman hai mera tumse azali bair hai kutte ka bairi kutta hota hai tum mere dushman ho, main tumhara dushman hoon main akela hoon, isliye tum sab milkar mujhe maro mujhe yahan se nikal do lekin main phir bhi bhaunkta rahunga tum mera bhaunkna band nahin kar sakte mere andar mere malik ka nar hai, mere wahaguru ka tez hai mujhe jahan band kar doge, main wahan bhaunkunga, aur bhaunk bhaunkkar tum sabke kan phaD dunga sale, adami ke kutte, juthi haDDi par marnewale kutte dum hila hilakar jinewale kutte !
baba ji, bus karo, ek babu hath joDkar bola, ham logon par rahm khao, aur apni ye santbani band karo batao tumhara nam kya hai, tumhara kes kya hai ?
mera nam hai barah sau chhabbis bata sat! mere man bap ka diya hua nam kha liya kutton ne ab yahi nam hai jo tumhare daftar ka diya hua hai main barah sau chhabbis bata sat hoon mera aur koi nam nahin hai mera ye nam yaad kar lo apni Diary mein likh lo wahaguru ka kutta barah sau chhabbis bata sat
baba ji, aaj jao, kal ya parson aa jana tumhari arzi ki karrwai taqriban taqriban puri ho chuki hai
taqriban taqriban puri ho chuki hai! aur main khu hi taqriban taqriban pura ho chuka hoon! ab dekhana ye hai ki pahle karrwai puri hoti hai, ki pahle main pura hota hoon! ek taraf sarkar ka hunar hai aur dusri taraf parmatma ka hunar hai! tumhara taqriban taqriban abhi daftar mein hi rahega aur mera taqriban taqriban kafan mein pahunch jayega salon ne sari paDhai kharch karke do lafz izad kiye hain shayad aur taqriban shayad aapke kaghaz upar chale gaye hain taqriban taqriban karrwai puri ho chuki hai! shayad se nikalo aur taqriban mein Dal do! taqriban se nikalo aur shayad mein gharq kar do taqriban teen chaar mahine mein tahqiqat hogi shayad mahine do mahine mein report ayegi main aaj shayad aur takriban donon ghar par chhoD aaya hoon main yahan baitha hoon aur yahin baitha rahunga mera kaam hona hai, to aaj hi hoga aur abhi hoga tumhare shayad aur taqriban ke gahak ye sab khaDe hain ye thagi inse karo
babu log apni sadbhawana ke prabhaw se nirash hokar ek ek karke andar lautne lage
baitha hai, baitha rahne do
bakta hai, bakne do
sala badmashi se kaam nikalna chahta hai
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babuon ke sath chaprasi bhi baDbaData hua apne stool par laut gaya main sale ke dant toD deta ab babu log hakim hain aur hakimon ka kaha manna paDta hai, warna
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bheeD mein se koi use samjhane laga
wo adami uthkar khaDa ho gaya
magar parmatma ka hukm har jagah chalta hai, wo apni qamiz utarta hua bola, aur parmatma ke hukm se aaj belaj badashah nanga hokar commissioner sahab ke kamre mein jayega aaj wo nangi peeth par sahab ke DanDe khayega aaj wo buton ki thokren khakar pran dega lekin wo kisi ki minnat nahin karega kisi ko paisa nahin chaDhayega kisi ki puja nahin karega jo wahaguru ki puja karta hai, wo aur kisi ki puja nahin kar sakta to wahaguru ka nam lekar
aur isse pahle ki wo apne kahe ko kiye mein parinat karta, do ek adamiyon ne baDhkar tahmad ki ganth par rakhe uske hath ko pakaD liya belaj badashah apna hath chhuDane ke liye sangharsh karne laga
mujhe jakar puchhne do ki kya mahatma gandhi ne isiliye inhen azadi dilai thi ki ye azadi ke sath is tarah sambhog karen? uski mitti kharab karen? uske nam par kalank lagayen? use take take ki failon mein bandhakar zalil karen? logon ke dilon mein uske liye nafar paida karen? insan ke tan par kapDe dekhkar baat in logon ki samajh mein nahin aati sharam to use hoti hai jo insan ho main to aap kahta hoon ki main insan nahin, kutta hoon !
sahsa bheeD mein ek dahshat si phail gai commissioner sahab apne kamre se bahar nikal aaye the we mathe ki tyoriyon aur chehre ki jhurriyon ko gahra kiye bheeD ke beech mein aa gaye
kya baat hai? kya chahte ho tum?
apse milna chahta hoon, sahab, wo adami sahab ko ghurta hua bola, sau marle ka ek gaDDha mere nam elat hua hai wo gaDDha aapko wapas karna chahta hoon taki sarkar usmen ek talab banwa de, aur afsar log sham ko wahan jakar machhliyan mara karen ya us gaDDhe mein sarkar ek tahkhana banwa de aur mere jaise kutton ko usmen band kar de
ziyada bak bak mat karo, aur apna kes lekar mere pas aao
mera kes mere pas nahin hai, sahab! do sal se sarkar ke pas hai—apke pas hai mere pas apna sharir aur do kapDe hain chaar din baad ye bhi nahin rahenge, isliye inhen bhi aaj hi utare de raha hoon iske baad baqi sirf barah sau chhabbis bata sat rah jayega barah sau chhabbis bata sat ko mar markar parmatma ke huzur mein bhej diya jayega
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chaprasi ne uske liye chik utha di aur wo commissioner sahab ke kamre mein dakhil ho gaya ghanti baji, failen hilin,babuon ki bulahat hui, aur aadhe ghante ke baad belaj badashah muskrata hua bahar nikal aaya utsuk ankhon ki bheeD ne use aate dekha, to wo phir bolne laga, chuhon ki tarah bitar bitar dekhne mein kuch nahin hota bhaunko, bhaunko,sabke sab bhaunko apne aap salon ke kan phat jayenge bhaunko kutton, bhaunko
uski bhaujai donon bachchon ke sath gate ke pas khaDi intzar kar rahi thi laDqe aur laDqi ke kandhon par hath rakhte hue wo sachmuch badashah ki tarah saDaq par chalne laga
hayadar ho, to salaha sal munh latkaye khaDe raho arziyan type karao aur nal ka pani piyo sarkar waqt le rahi hai! nahin to behaya bano behayai hazar barkat hai
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yaro, behayai hazar barkat hai
uske chale jane ke baad kampaunD mein aur aas pas matami watawarn pahle se aur gahra ho gaya bheeD dhire dhire bikharkar apni jaghon par chali gai chaprasi ki tangen phir stool par jhulne lagin samne ke kaintin ka laDqa babuon ke kamre mein ek set chay le gaya arzinwis ki machine chalne lagi aur tik tik ki awaz ke sath uska laDqa phir apna sabak dohrane laga pi i en pen pen mane kalam; ech i en hen hen mane murgi; d i ain Den Den mane andheri gufa !
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।