थोड़े दिन पहले ही इशापुर गाँव में खेत-मज़दूरों और किसानों का संगठन बना था। भूदानी नेता बेनी बाबू ने घर-घर घूमकर किसानों से अपील की थी कि तुम लोग अब किसी संगठन या झंडे के नीचे क्यों जाओ! मैंने ज़मींदार से पूरा गाँव भू-दान में ले लिया है, इसलिए अब बे-दख़ली का सवाल ही नहीं उठता। जयप्रकाश बाबू जल्दी ही आने वाले हैं और 'आदर्श सर्वोदयी गाँव' की नींव पड़ने वाली है। लेकिन गाँव के लड़कों ने उनकी बात नहीं मानी थी। जब से खेत-मज़दूरों और बटाईदारों के एक-आध लड़के पढ़ने लगे हैं, तब से वे किसी की बात नहीं मानते। इसीलिए 'आदर्श सर्वोदयी गाँव' का उद्घाटन समारोह टलता गया था और उस दिन उनके कलेजे को गहरी चोट लगी थी, जिस दिन भगलू बटाईदार के लड़के विशू ने कह दिया था—बेनी बाबू, आपको कोई दूसरा गाँव नहीं मिलता जो आप ज़मींदार साहब से ले लें। हम ग़रीबों के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हैं? आपको चुनाव लड़ना नहीं है, तब आप क्यों इस झमेले में पड़ रहे हैं? शिवजी बाबू खेत आपको दान देंगे, बोएँगे किसान और फ़सलें होने पर शिवजी बाबू के ग़ुंडे बंदूक़ लेकर आएँगे और फ़सल काटकर ले जाएँगे। ठीक उसी समय आपका आविर्भाव होगा और फ़सल के दूसरे छोर पर लाठी, तीर, भाला, गँडासा लिए खड़े किसानों के सामने आप छाती खोलकर पड़ जाएँगे कि पहले मुझको मारो, मैं ज़िंदा रहते हिंसा नहीं होने दूँगा। आप बौखलाती भीड़ को हिंसा-अहिंसा पर चौपाई सुनाएँगे और इस क्षणभंगुर संसार के मायाजाल में न फँसने तथा अहिंसा के द्वारा ही आसुरी शक्तियों को पराजित करने की रामधुन गाएँगे। तब तक ज़मींदार के गुंडे हवाई फ़ायर करते हुए फ़सल लेकर चले जाएँगे। फिर आप संतोष की लंबी साँस खींचते हुए शहर चले जाएँगे अपने बड़े नेताओं को बताने कि अहिंसा के ब्रह्मास्त्र से मैंने आज एक दानवी हिंसा पर विजय प्राप्त कर ली है और बहुत बड़े ख़ून-ख़राबे को रोका है। दूसरे दिन फिर आप ज़मींदार की देहरी पर पहुँचेंगे और सत्संग होगा। नेताओं और अफ़सरों के इस अहिंसक विजय-समारोह में बग़ल का गाँव भी आपको दान में मिल जाएगा। आप वहाँ भी ख़ून-ख़राबा रोकने के लिए पहुँच जाएँगे। आपकी यह लीला अनंत है बेनी बाबू, और इस अनंत की चक्की में हम ग़रीब पिस गए हैं—आप हमें क्षमा करिए। हम ग़रीबों को हमारी ही हिंसा पर छोड़ दीजिए। कम से कम अपनी फ़सल की रक्षा ही हम कर लेंगे, जिससे साल भर भूखों मरना नहीं पड़ेगा।
इस लड़के ने उनकी आत्मा हिला दी थी। बेनी बाबू अगर ग़लती से भी उस गाँव से गुज़रते तो लड़के 'भूदानी जा', 'भूदानी जा' के नारे लगाकर चिढ़ाने लगते थे।
विशू, भगलू बटाईदार का लड़का है। भगलू अपना पेट काटकर विशू को पढ़ा रहा है। विशू के साथ इसी गाँव के दो लड़के और हैं जो पढ़ रहे हैं। बेनी बाबू ने थाने-भर में कह दिया है कि इशापुर के कच्ची उम्र के लड़कों में दायित्वहीन उत्साह है। वहाँ के बड़े-बूढ़े उन्हें रोकते नहीं। किसी दिन सब भारतीय आदर्श उस गाँव में धराशायी हो जाएँगे, तब हम क्या कर सकते हैं? हमारी जनम-जनम की साधना पराजित हो जाएगी। यह कर्मभूमि मरणभूमि में बदल जाएगी। यह सब मुझसे नहीं देखा जाएगा। मैंने उस गाँव में जाना छोड़ दिया है। अब उस गाँव में उन तत्त्वों का आवागमन प्रारंभ हुआ है, जो उपद्रवी हैं, हिंसा में विश्वास करते हैं। इशापुर गाँव में अब प्रभात-फेरी नहीं होती, शाम को लाल झंडा लेकर जुलूस निकलता है। जो नारियाँ एक दिन भी प्रभात-फेरी में नहीं आईं, रामधुन नहीं गाया, वे जुलूस में जा रही हैं, इंक़लाब गा रही हैं। धर्मचर्या के बदले विलास होता है। बज़रू अहीर, जो भैंस चराता था और समझता था कि डेढ़ गज़ चौड़ी भैंस की पीठ ही पृथ्वी की चौड़ाई है, जिसकी दुनिया सिमट कर भैंस की पीठ पर चली गई थी, वह अब नेता बन गया है और भाषण देता है। उस दिन वह कंधे पर लाठी लिए सड़क पर मिल गया। मैंने कहा—बज़रू, यह लाठी लेकर घूमना अच्छी बात नहीं है। वह कहने लगा कि, बेनी बाबू, मैं तो बचपन से ही लाठी लेकर घूमता हूँ। मैंने उसे समझाया, तब तुम भैंस को मारने के लिए यह लाठी रखते थे, अब आदमी को मारने के लिए इसे लेकर घूम रहे हो, बज़रू, बहुत फ़र्क़ आ गया है, बहुत। अगर इतनी समझदारी आ गई है कि तुम भैंस की पीठ पर से ज़मीन पर उतर आए हो तो कुछ और सोचो। लेकिन वह नहीं माना। कहने लगा, जितना सोचूँगा, लाठी उतनी ही मोटी होती जाएगी बेनी बाबू! अब मैंने भैंसों की संगत छोड़कर आदमियों की संगत पकड़ ली है।”
बेनी बाबू आगे बढ़ना ही चाहते थे कि सड़क के चौमुहाने से विशू ने उन्हें पुकारा, वे ठहर गए। यद्यपि वे जानते हैं कि यही लड़का ख़ुराफ़ात की जड़ है, लाल झंडा के नेताओं को बुला लाता है और कहता है कि खेत-मज़दूरों का नेता खेत-मज़दूर ही होगा, कोई भूदानी या ज्ञानदानी नहीं। इसीलिए उसने बज़रू चरवाहे को नेता बना दिया और ग्वाला-कुल में हलचल मचा दी। सब चमार, दुसाध, डोम, हलखोर, जोलहा, धुनियाँ, कोइरी, कोहार, अहीर-बिलार एक हो गए हैं। कहते हैं, बज़रू ही हमारा नेता है, इस बज़रू की डुगडुगी कोसी की पंकिल घाटियों में बजने लगी है। हालत इतनी नाज़ुक है कि ऊँची ज़ातियों के कुछ सिरफिरे लोग भी इनका साथ दे रहे हैं। उस दिन ढोलबज्जा में इन्होंने पाँच हज़ार नंग-धडंगों का प्रदर्शन किया था, नवगछिया में तो बीस हज़ार का अस्त्र-प्रदर्शन। बेनी बाबू ने सोचा कि इस लड़के को अहिंसा के लिए राज़ी कर लिया जाए तो शायद खौलती हुई भीड़ को रोका जा सकता है, क्योंकि उन्हीं के बीच का पढ़ा-लिखा यह बच्चा उनका सबसे अधिक विश्वासपात्र है। इसलिए बिशू के हाथों एक बार अपमानित होने पर भी उसके पुकारने पर वे रुक गए। बिशू के क़रीब आने पर मुस्कराए और कहा, तुम लोग इस बज़रू को एम.एल.ए. बनाकर ही छोड़ोगे। जिस तरह की ज़मीन तैयार कर ली है, उससे हुआ ही समझो।
विशू के बोलने से पहले ही बज़रू बिगड़ गया; कहा, “पंडितजी, हम लोग इस एमेलेपन पर थूकते हैं।”
लेकिन विशू ने आगे बढ़कर बात सँभाल ली, “पंडितजी, ज़रूरत पड़ी तो वह भी बना लेंगे, मगर हमारा उद्देश्य एम.एल.ए. बनना-बनाना नहीं है।”
बेनी बाबू ने बात रोक ली; सोचा, लड़का समझदार हो रहा है, कहा, कहा, सचमुच इन सत्तालोभियों और सत्ताभोगियों की क़तार में शामिल नहीं होना है। यह सत्ता ही संपूर्ण विग्रह की जन्मदायिनी है; इससे जितना दूर रहो, उतना ही भला। देखते नहीं, मैं चुनावों में तटस्थ रहा करता हूँ, मैं तो निर्विकारचित सेवी हूँ। अब बात बिशू के लिए असह्य होती जा रही थी। उसने कहा, पंडितजी, मगर हम इतना निर्विकार नहीं बन पाएँगे। हम यह समझ गए हैं कि इसी सत्ता ने हमारा सबकुछ छीन लिया है, इसलिए सत्ताभोगियों के हाथ से इस सत्ता को छीन लो।
बेनी बाबू सकपका गए, “यह तो हिंसा का पथ है और हिंसा के लिए दानवी युद्ध का हुंकार। तुम लोगों को पुनर्विचार करना चाहिए। आसुरी शक्तियाँ देवत्व के सामने ही पराजित होती है, अतः कर्म का आचरण देवता तुल्य ही होना चाहिए। स्थिति में द्रवित मैं भी हूँ, लेकिन।
विशू ने संजीदगी से कहा, यही बात ज़रा ज़मींदार साहब, बीडीओ साहब और दारोग़ा जी को समझाइए।
बेनी बाबू ने कहा, “यही तो वे आसुरी शक्तियाँ है, जिनके विरुद्ध हमें आध्यात्मिक स्तर पर संघर्ष करना है। भौतिकता से संघर्ष में हमारे अस्त्र आध्यात्मिक ही होंगे, क्योंकि सत्य हमारे साथ है और सत्य की प्राप्ति का संघर्ष यदि कुरूप हुआ हो तो सत्य भी कुरूप हो जाएगा। इसलिए हमें सावधान होकर ही सत्य के पथ पर लड़ना है। बच्चों, हृदय-परिवर्तन की प्रक्रिया बड़ी पीड़ादायिनी और दीर्घ होती है। साधना में उतावलापन कैसे?
बज़रू तब तक बुरी तरह खीझ गया था, भूदानी जी, यह सत्त-फत्त अपनी झोली में रखिए, हमको भरोसा अब अपनी लाठी पर है। जाकर उस ज़मींदार के बच्चे से कह दीजिए, हम उसकी एक नहीं चलने देंगे, हमने दो सौ बीघे जोत लिए हैं, धान भी काटेंगे। उसको आप अहिंसा पढ़ाइए, वह हमारा धान लूटने आएगा तो कोसी बहेगी ख़ून की। हम किसी को मारने नहीं जा रहे हैं, लेकिन हमें कोई मारने आएगा तो हम उसे छोड़ेंगे नहीं।
इन बातों से बेनी बाबू को पसीना आ गया। सोचने लगे कि हमारी साधना-भूमि छूटी जा रही है। अगर यही हाल रहा तो आश्रम वन-भूमि होगी। जब मनुष्य से वितृष्णा हो जाती है तो आदमी ख़ूँख़ार जंतुओं के सहवास में जंगलवास चला जाता है। लेकिन बिशू को सामने खड़ा देखकर उन्होंने वनवास की कल्पना त्याग दी और बज़रू भी अपनी लाठी पटकता वहाँ से चला गया।
बेनी बाबू ने समझा कि जो हिंसा वातावरण पर चढ़ आई थी, अब उतर गई है। विशू से पूछा, अच्छा, वह ज़हर-वहर की क्या बात है?”
विशू बताने लगा, हमने तो एतिराज़ किया, मगर गाँव के बूढ़े उछल पड़े। उन्होंने समझा कि बहुत दिनों के बाद गाँव में मिठास की हवा बही है। तीन दिनों तक हमारे प्रबल विरोध के बावजूद बूढों ने दावत स्वीकार कर ली। हंडे चढ़ते गए, भोग बनने लगा, लेकिन यह ख़बर भी फैल गई कि विशू नहीं खाएगा। भोज के एक दिन पहले रात को जब बज़रू काका के दरवाज़े से अपने घर जा रहा था तो रास्ते में एक सफ़ेद छाया ने मुझे रोक लिया। अँधेरे में चेहरा तो मैं नहीं पहचान सका, मगर आवाज़ पहचान ली। उसने मुझे रोक कर कहा, 'विशू, सुना है तुम नहीं खाओगे।' यह बहुत बुरा होगा, व्यवहार में होगा यह कि मौक़े पर आधा गाँव नहीं खाएगा। शायद मैं खा भी लेता और मर भी गया होता। लेकिन आप तो जानते हैं, भोज चाहे ज़मींदार का ही हो, कारिंदे तो हमारे ही लोग होते हैं। ऐन मौक़े पर यह ख़बर फैल गई कि मुझे जो शर्बत दिया जाएगा, उसमें ज़हर होगा। फिर क्या था! पूरी बात ही रह गई। कोई भी खाने नहीं गया। गाँव की औरतें सिर पीटने लगीं। उस दिन हमारी माँओं ने हमें आँचल में छिपा लिया था, यह कहकर कि साँप ने डंस लेना चाहा था। क्या सच है, मुझे उससे कुछ लेना-देना नहीं, मैं तो सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि एक विशद दानवीय षड्यंत्र हमारे ख़िलाफ़ चल रहा है, यह ज़हर उसी की एक बूँद थी। लेकिन पंडित जी, आपकी हिंसा-अहिंसा की कसौटी पर यह ज़हर किस ओर जाता है? उसने बिना ख़ून-ख़राबे के मुझे ख़त्म करना चाहा था।
बेनी बाबू ने बिशू को कोई जवाब नहीं दिया। ‘हरि ओम', भगवान रक्षा करें। जहाँ मैंने बीस वर्षों तक तपस्या की, मेरी इस कर्मभूमि की यह दुर्दशा। और वे आकाश की ओर देखते हुए वहाँ से चले गए।
बरसात शुरू हो गई थी। कोसी की बेगवती धारा में इलाक़ा डूबता जा रहा था। धान की फ़सल भी डूब रही थी। किसानों ने किसान-सभा के नेतृत्व में दो सौ बीघे ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर खेती शुरू की थी। दिन-रात का पहरा खेतों पर लगा हुआ था। बेनी बाबू साँपों के उत्पात से गाँव छोड़कर शहर चले गए थे और शहर के आश्रम में ही रह रहे थे। उन्हें गाँव से जो ख़बर मिलती थी, वह संघर्षों की ही होती थी। उन्होंने सुना था कि इशापुर गाँव लगभग आधा उजड़ गया है और गाँव के आधे से अधिक लोग गिरफ़्तार होकर जेलों में हैं, तीन मारे गए हैं, पंद्रह इसी बग़ल के अस्पताल में पड़े हैं। विशू और बज़रू का नाम अख़बारों में छपने लगा है। वे दस-दस हज़ार के जुलूसों का नेतृत्व कर रहे हैं। भिंडा, लखनडीह, पारो आदि गाँवों की सभाओं में भी विशू भाषण देने लगा है। ज़मींदार लोग भी जोगबनी और किसनगंज के इलाक़े से ट्रक से आदमी ला रहे हैं। किसानों ने एलान कर दिया है कि अब हम मुंसिफ़ी मुक़दमा लड़ने शहर नहीं जाएँगे, सिर्फ़ फ़ौजदारी लड़ने जाएँगे।
बेनी बाबू गठिया रोग से पीड़ित हो गए हैं। दिन-रात की बरसात में उनके शरीर की गाँठों में सर्दी समा गई है, वे अब चलने-फिरने से भी लाचार हो गए हैं, दंतकथाओं के नायकों की तरह कहानी सुनते हैं—विशू कोसी की कीचड़-भरी कगारों पर बरसात में दस-दस कोस तक पैदल चलता है और दूसरी सुबह किसी गाँव में 'जबरिया क़ब्ज़ा करो' अभियान का नेतृत्व करता है। बेनी बाबू के गठिया का दर्द दिन-ब-दिन तेज़ होता जा रहा। उन्हें लगता है कि बिशू के आंदोलन के घटाव-बढ़ाव के साथ उनके गठिये के दर्द का संबंध हो गया है। यह भी लगता है कि वह आंदोलन बढ़ता हुआ इस शहर तक आएगा। आज शाम को ही उन्होंने अख़बारों में बिशू का वह बयान पढ़ा है, जिसमें लखनडीह-काण्ड का वर्णन है कि कैसे ज़मींदार के ग़ुंडों और पुलिस ने निहत्थे किसानों पर हमले किए। लेकिन बेनी बाबू के लिए सबसे पीड़ा-दायक ख़बर वह थी कि जिसमें बताया गया था कि 'विनोबा-नगर' में बज़रू ने किसानों की सभा की है और सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कर ‘विनोबा नगर' का नाम 'लाल नगर' रख दिया गया है और ब्रजेश बाबू की उस भूमि पर भी उन्होंने हल चला दिया है, जिसका दान नहीं किया गया था। वह पीड़ा तब और बढ़ जाती है जब उन्हें याद आता है कि ब्रजेश बाबू उनके असहयोग-आंदोलन के सहयोगी थे।
युद्ध-मोर्चे से आने वाली ख़बरों की तरह ही चौंका देने वाली ख़बरें कोसी की हरी वादियों से रोज़-रोज़ आ रही हैं। बेनी बाबू एक स्थल पर आकर निराश हो जाते हैं कि वे फिर कोसी की गोद में लौट नहीं पाएँगे। उनके गठिए का दर्द इतना बढ़ जाता है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, वहाँ जाकर वे देखते हैं कि कई परिचित चेहरे घायल अवस्था में पड़े हैं। वे उनसे कहते हैं कि मैं चल-फिर सकता तो तुम लोगों की सेवा करता, पर लाचार हूँ। मेरे हटते ही कोसी का पवित्र जल लाल हो गया है, वहाँ ख़ून की धारा बह रही है, हे राम, यह सब क्या हो रहा है!
रात गहराती है, बेनी बाबू दर्द से कराहते हैं। उनके बग़ल का किसान भी दर्द से कराहता है। बेनी बाबू उससे कहते हैं, गठिया में बड़ा दर्द है भाई, लगता हैं मैं अब फिर उठकर खड़ा नहीं हो पाऊँगा।”
बेनी बाबू के बग़ल का किसान बीच-बीच में कराह उठता है। वे उसे सांत्वना देते हैं। किसान कहता है, “पंडितजी, इन दोनों दों में बहुत फ़र्क़ है। मुझे मालूम है, आपको कोई चोट नहीं लगी है।
बेनी बाबू अपना दर्द भूलकर उदास हो जाते हैं। सोचते हैं—विशू होता तो कहता—'एक दर्द हिंसक है और दूसरा अहिंसक।'
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beni babu ne bishu ko koi jawab nahin diya ‘hari om, bhagwan rakhsha karen jahan mainne bees warshon tak tapasya ki, meri is karmbhumi ki ye durdasha aur we akash ki or dekhte hue wahan se chale gaye
barsat shuru ho gai thi kosi ki begawti dhara mein ilaqa Dubta ja raha tha dhan ki fasal bhi Doob rahi thi kisanon ne kisan sabha ke netritw mein do sau bighe zamin par qabza kar kheti shuru ki thi din raat ka pahra kheton par laga hua tha beni babu sanpon ke utpat se ganw chhoDkar shahr chale gaye the aur shahr ke ashram mein hi rah rahe the unhen ganw se jo khabar milti thi, wo sangharshon ki hi hoti thi unhonne suna tha ki ishapur ganw lagbhag aadha ujaD gaya hai aur ganw ke aadhe se adhik log giraftar hokar jelon mein hain, teen mare gaye hain, pandrah isi baghal ke aspatal mein paDe hain bishu aur bazru ka nam akhbaron mein chhapne laga hai we das das hazar ke juluson ka netritw kar rahe hain bhinDa, lakhanDih, paro aadi ganwon ki sabhaon mein bhi bishu bhashan dene laga hai zamindar log bhi jogabni aur kisanganj ke ilaqe se truck se adami la rahe hain kisanon ne elan kar diya hai ki ab hum munsifi muqadma laDne shahr nahin jayenge, sirf faujadari laDne jayenge
beni babu gathiya rog se piDit ho gaye hain din raat ki barsat mein unke sharir ki ganthon mein sardi sama gai hai, we ab chalne phirne se bhi lachar ho gaye hain, dantakthaon ke naykon ki tarah kahani sunte hain—bishu kosi ki kichaD bhari kagaron par barsat mein das das kos tak paidal chalta hai aur dusri subah kisi ganw mein jabariya qabza karo abhiyan ka netritw karta hai beni babu ke gathiya ka dard din ba din tez hota ja raha unhen lagta hai ki bishu ke andolan ke ghataw baDhaw ke sath unke gathiye ke dard ka sambandh ho gaya hai ye bhi lagta hai ki wo andolan baDhta hua is shahr tak ayega aaj sham ko hi unhonne akhbaron mein bishu ka wo byan paDha hai, jismen lakhanDih kanD ka warnan hai ki kaise zamindar ke ghunDon aur police ne nihatthe kisanon par hamle kiye lekin beni babu ke liye sabse piDa dayak khabar wo thi ki jismen bataya gaya tha ki winoba nagar mein bazru ne kisanon ki sabha ki hai aur sarwasammat prastaw pas kar ‘winoba nagar ka nam lal nagar rakh diya gaya hai aur brajesh babu ki us bhumi par bhi unhonne hal chala diya hai, jiska dan nahin kiya gaya tha wo piDa tab aur baDh jati hai jab unhen yaad aata hai ki brajesh babu unke asahyog andolan ke sahyogi the
yudh morche se aane wali khabron ki tarah hi chaunka dene wali khabren kosi ki hari wadiyon se roz roz aa rahi hain beni babu ek sthal par aakar nirash ho jate hain ki we phir kosi ki god mein laut nahin payenge unke gathiye ka dard itna baDh jata hai ki unhen aspatal mein bharti hona paDta hai, wahan jakar we dekhte hain ki kai parichit chehre ghayal awastha mein paDe hain we unse kahte hain ki main chal phir sakta to tum logon ki sewa karta, par lachar hoon mere hatte hi kosi ka pawitra jal lal ho gaya hai, wahan khoon ki dhara bah rahi hai, he ram, ye sab kya ho raha hai!
raat gahrati hai, beni babu dard se karahte hain unke baghal ka kisan bhi dard se karahta hai beni babu usse kahte hain, gathiya mein baDa dard hai bhai, lagta hain main ab phir uthkar khaDa nahin ho paunga ”
beni babu ke baghal ka kisan beech beech mein karah uthta hai we use santwna dete hain kisan kahta hai, “panDitji, in donon don mein bahut farq hai mujhe malum hai, aapko koi chot nahin lagi hai
beni babu apna dard bhulkar udas ho jate hain sochte hain—bishu hota to kahta—ek dard hinsak hai aur dusra ahinsak
thoDe din pahle hi ishapur ganw mein khet mazduron aur kisanon ka sangthan bana tha bhudani neta beni babu ne ghar ghar ghumkar kisanon se appeal ki thi ki tum log ab kisi sangthan ya jhanDe ke niche kyon jao! mainne zamindar se pura ganw bhudan mein le liya hai, isliye ab bedakhal ka sawal hi nahin uthta jayaprkash babu jaldi hi aane wale hain aur adarsh sarwodyi ganw ki neenw paDne wali hai lekin ganw ke laDkon ne unki baat nahin mani thi jab se khet mazduron aur bataidaron ke ek aadh laDke paDhne lage hain, tab se we kisi ki baat nahin mante isiliye adarsh sarwodyi ganw ka udghatan samaroh talta gaya tha aur us din unke kaleje ko gahri chot lagi thi, jis din bhaglu bataidar ke laDke wishu ne kah diya tha—beni babu, aapko koi dusra ganw nahin milta jo aap zamindar sahab se le len hum gharibon ke pichhe hath dhokar kyon paDe hain? aapko chunaw laDna nahin hai, tab aap kyon is jhamele mein paD rahe hain? shiwji babu khet aapko dan denge, boenge kisan aur faslen hone par shiwji babu ke ghunDe banduq lekar ayenge aur fasal katkar le jayenge theek usi samay aapka awirbhaw hoga aur fasal ke dusre chhor par lathi, teer, bhala, ganDasa liye khaDe kisanon ke samne aap chhati kholkar paD jayenge ki pahle mujhko maro, main zinda rahte hinsa nahin hone dunga aap baukhlati bheeD ko hinsa ahinsa par chaupai sunayenge aur is kshanbhangur sansar ke mayajal mein na phansne tatha ahinsa ke dwara hi asuri shaktiyon ko parajit karne ki ramadhun gayenge tab tak zamindar ke gunDe hawai fire karte hue fasal lekar chale jayenge phir aap santosh ki lambi sans khinchte hue shahr chale jayenge apne baDe netaon ko batane ki ahinsa ke brahmastr se mainne aaj ek danawi hinsa par wijay prapt kar li hai aur bahut baDe khoon kharabe ko roka hai dusre din phir aap zamindar ki dehri par pahunchenge aur satsang hoga netaon aur afasron ke is ahinsak wijay samaroh mein baghal ka ganw bhi aapko dan mein mil jayega aap wahan bhi khoon kharaba rokne ke liye pahunch jayenge apaki ye lila anant hai beni babu, aur is anant ki chakki mein hum gharib pis gaye hain—ap hamein kshama kariye hum gharibon ko hamari hi hinsa par chhoD dijiye kam se kam apni fasal ki rakhsha hi hum kar lenge, jisse sal bhar bhukhon marna nahin paDega
is laDke ne unki aatma hila di thi beni babu agar ghalati se bhi us ganw se guzarte to laDke bhudani ja, bhudani ja ke nare lagakar chiDhane lagte the
bishu, bhaglu bataidar ka laDka hai bhaglu apna pet katkar bishu ko paDha raha hai bishu ke sath isi ganw ke do laDke aur hain jo paDh rahe hain beni babu ne thane bhar mein kah diya hai ki ishapur ke kachchi umr ke laDkon mein dayitwhin utsah hai wahan ke baDe buDhe unhen rokte nahin kisi din sab bharatiy adarsh us ganw mein dharashayi ho jayenge, tab hum kya kar sakte hain? hamari janam janam ki sadhana parajit ho jayegi ye karmbhumi maranbhumi mein badal jayegi ye sab mujhse nahin dekha jayega mainne us ganw mein jana chhoD diya hai ab us ganw mein un tattwon ka awagaman prarambh hua hai, jo upadrawi hain, hinsa mein wishwas karte hain ishapur ganw mein ab prabhatapheri nahin hoti, sham ko lal jhanDa lekar julus nikalta hai jo nariyan ek din bhi prabhatapheri mein nahin ain, ramadhun nahin gaya, we julus mein ja rahi hain, inqlab ga rahi hain dharmacharya ke badle wilas hota hai bazru ahir, jo bhains charata tha aur samajhta tha ki DeDh gaz chauDi bhains ki peeth hi prithwi ki chauDai hai, jiski duniya simat kar bhains ki peeth par chali gai thi, wo ab neta ban gaya hai aur bhashan deta hai us din wo kandhe par lathi liye saDak par mil gaya mainne kaha—bazru, ye lathi lekar ghumna achchhi baat nahin hai wo kahne laga ki, beni babu, main to bachpan se hi lathi lekar ghumta hoon mainne use samjhaya, tab tum bhains ko marne ke liye ye lathi rakhte the, ab adami ko marne ke liye ise lekar ghoom rahe ho, bazru, bahut farq aa gaya hai, bahut agar itni samajhdari aa gai hai ki tum bhains ki peeth par se zamin par utar aaye ho to kuch aur socho lekin wo nahin mana kahne laga, jitna sochunga, lathi utni hi moti hoti jayegi beni babu! ab mainne bhainson ki sangat chhoDkar adamiyon ki sangat pakaD li hai ”
beni babu aage baDhna hi chahte the ki saDak ke chaumuhane se bishu ne unhen pukara, we thahar gaye yadyapi we jante hain ki yahi laDka khurafat ki jaD hai, lal jhanDa ke netaon ko bula lata hai aur kahta hai ki khet mazduron ka neta khet mazdur hi hoga, koi bhudani ya gyandani nahin isiliye usne bazru charwahe ko neta bana diya aur gwala kul mein halchal macha di sab chamar, dusadh, Dom, halkhor, jolha, dhuniyan, koiri, kohar, ahir bilar ek ho gaye hain kahte hain, bazru hi hamara neta hai, is bazru ki DugDugi kosi ki pankil ghatiyon mein bajne lagi hai haalat itni nazuk hai ki unchi zatiyon ke kuch siraphire log bhi inka sath de rahe hain us din Dholbajja mein inhonne panch hazar nang dhaDangon ka pradarshan kiya tha, nawagachhiya mein to bees hazar ka astra pradarshan beni babu ne socha ki is laDke ko ahinsa ke liye razi kar liya jaye to shayad khaulti hui bheeD ko roka ja sakta hai, kyonki unhin ke beech ka paDha likha ye bachcha unka sabse adhik wishwasapatr hai isliye bishu ke hathon ek bar apmanit hone par bhi uske pukarne par we ruk gaye bishu ke qarib aane par muskraye aur kaha, tum log is bazru ko em l e banakar hi chhoDoge jis tarah ki zamin taiyar kar li hai, usse hua hi samjho
bishu ke bolne se pahle hi bazru bigaD gaya; kaha, “panDitji, hum log is emelepan par thukte hain ”
lekin bishu ne aage baDhkar baat sanbhal li, “panDitji, zarurat paDi to wo bhi bana lenge, magar hamara uddeshy em l e banna banana nahin hai ”
beni babu ne baat rok lee; socha, laDka samajhdar ho raha hai, kaha, kaha, sachmuch in sattalobhiyon aur sattabhogiyon ki qatar mein shamil nahin hona hai ye satta hi sampurn wigrah ki janmdayini hai; isse jitna door raho, utna hi bhala dekhte nahin, main chunawon mein tatasth raha karta hoon, main to nirwikarchit sewi hoon ab baat bishu ke liye asahy hoti ja rahi thi usne kaha, panDitji, magar hum itna nirwikar nahin ban payenge hum ye samajh gaye hain ki isi satta ne hamara sabkuchh chheen liya hai, isliye sattabhogiyon ke hath se is satta ko chheen lo
beni babu sakapka gaye, “yah to hinsa ka path hai aur hinsa ke liye danawi yudh ka hunkar tum logon ko punarwichar karna chahiye asuri shaktiyan dewatw ke samne hi parajit hoti hai, atः karm ka acharn dewta tuly hi hona chahiye sthiti mein drwit main bhi hoon, lekin
bishu ne sanjidgi se kaha, yahi baat zara zamindar sahab, biDio sahab aur darogha ji ko samjhaiye
beni babu ne kaha, “yahi to we asuri shaktiyan hai, jinke wiruddh hamein adhyatmik star par sangharsh karna hai bhautikta se sangharsh mein hamare astra adhyatmik hi honge, kyonki saty hamare sath hai aur saty ki prapti ka sangharsh yadi kurup hua ho to saty bhi kurup ho jayega isliye hamein sawdhan hokar hi saty ke path par laDna hai bachchon, hirdai pariwartan ki prakriya baDi piDadayini aur deergh hoti hai sadhana mein utawalapan kaise?
bazru tab tak buri tarah kheejh gaya tha, bhudani ji, ye satt phatt apni jholi mein rakhiye, hamko bharosa ab apni lathi par hai jakar us zamindar ke bachche se kah dijiye, hum uski ek nahin chalne denge, hamne do sau bighe jot liye hain, dhan bhi katenge usko aap ahinsa paDhaiye, wo hamara dhan lutne ayega to kosi bahegi khoon ki hum kisi ko marne nahin ja rahe hain, lekin hamein koi marne ayega to hum use chhoDenge nahin
in baton se beni babu ko pasina aa gaya sochne lage ki hamari sadhana bhumi chhuti ja rahi hai agar yahi haal raha to ashram wan bhumi hogi jab manushya se witrshna ho jati hai to adami khunkhar jantuon ke sahwas mein jangalwas chala jata hai lekin bishu ko samne khaDa dekhkar unhonne wanwas ki kalpana tyag di aur bazru bhi apni lathi patakta wahan se chala gaya
beni babu ne samjha ki jo hinsa watawarn par chaDh i thi, ab utar gai hai bishu se puchha, achchha, wo zahr wahar ki kya baat hai?”
bishu batane laga, hamne to etiraz kiya, magar ganw ke buDhe uchhal paDe unhonne samjha ki bahut dinon ke baad ganw mein mithas ki hawa bahi hai teen dinon tak hamare prabal wirodh ke bawjud buDhon ne dawat swikar kar li hanDe chaDhte gaye, bhog banne laga, lekin ye khabar bhi phail gai ki bishu nahin khayega bhoj ke ek din pahle raat ko jab bazru kaka ke darwaze se apne ghar ja raha tha to raste mein ek safed chhaya ne mujhe rok liya andhere mein chehra to main nahin pahchan saka, magar awaz pahchan li usne mujhe rok kar kaha, bishu, suna hai tum nahin khaoge ye bahut bura hoga, wywahar mein hoga ye ki mauqe par aadha ganw nahin khayega shayad main kha bhi leta aur mar bhi gaya hota lekin aap to jante hain, bhoj chahe zamindar ka hi ho, karinde to hamare hi log hote hain ain mauqe par ye khabar phail gai ki mujhe jo sharbat diya jayega, usmen zahr hoga phir kya tha! puri baat hi rah gai koi bhi khane nahin gaya ganw ki aurten sir pitne lagin us din hamari manon ne hamein anchal mein chhipa liya tha, ye kahkar ki sanp ne Dans lena chaha tha kya sach hai, mujhe usse kuch lena dena nahin, main to sirf itna janta hoon ki ek wishad danwiy shaDyantr hamare khilaf chal raha hai, ye zahr usi ki ek boond thi lekin panDit ji, apaki hinsa ahinsa ki kasauti par ye zahr kis or jata hai? usne bina khoon kharabe ke mujhe khatm karna chaha tha
beni babu ne bishu ko koi jawab nahin diya ‘hari om, bhagwan rakhsha karen jahan mainne bees warshon tak tapasya ki, meri is karmbhumi ki ye durdasha aur we akash ki or dekhte hue wahan se chale gaye
barsat shuru ho gai thi kosi ki begawti dhara mein ilaqa Dubta ja raha tha dhan ki fasal bhi Doob rahi thi kisanon ne kisan sabha ke netritw mein do sau bighe zamin par qabza kar kheti shuru ki thi din raat ka pahra kheton par laga hua tha beni babu sanpon ke utpat se ganw chhoDkar shahr chale gaye the aur shahr ke ashram mein hi rah rahe the unhen ganw se jo khabar milti thi, wo sangharshon ki hi hoti thi unhonne suna tha ki ishapur ganw lagbhag aadha ujaD gaya hai aur ganw ke aadhe se adhik log giraftar hokar jelon mein hain, teen mare gaye hain, pandrah isi baghal ke aspatal mein paDe hain bishu aur bazru ka nam akhbaron mein chhapne laga hai we das das hazar ke juluson ka netritw kar rahe hain bhinDa, lakhanDih, paro aadi ganwon ki sabhaon mein bhi bishu bhashan dene laga hai zamindar log bhi jogabni aur kisanganj ke ilaqe se truck se adami la rahe hain kisanon ne elan kar diya hai ki ab hum munsifi muqadma laDne shahr nahin jayenge, sirf faujadari laDne jayenge
beni babu gathiya rog se piDit ho gaye hain din raat ki barsat mein unke sharir ki ganthon mein sardi sama gai hai, we ab chalne phirne se bhi lachar ho gaye hain, dantakthaon ke naykon ki tarah kahani sunte hain—bishu kosi ki kichaD bhari kagaron par barsat mein das das kos tak paidal chalta hai aur dusri subah kisi ganw mein jabariya qabza karo abhiyan ka netritw karta hai beni babu ke gathiya ka dard din ba din tez hota ja raha unhen lagta hai ki bishu ke andolan ke ghataw baDhaw ke sath unke gathiye ke dard ka sambandh ho gaya hai ye bhi lagta hai ki wo andolan baDhta hua is shahr tak ayega aaj sham ko hi unhonne akhbaron mein bishu ka wo byan paDha hai, jismen lakhanDih kanD ka warnan hai ki kaise zamindar ke ghunDon aur police ne nihatthe kisanon par hamle kiye lekin beni babu ke liye sabse piDa dayak khabar wo thi ki jismen bataya gaya tha ki winoba nagar mein bazru ne kisanon ki sabha ki hai aur sarwasammat prastaw pas kar ‘winoba nagar ka nam lal nagar rakh diya gaya hai aur brajesh babu ki us bhumi par bhi unhonne hal chala diya hai, jiska dan nahin kiya gaya tha wo piDa tab aur baDh jati hai jab unhen yaad aata hai ki brajesh babu unke asahyog andolan ke sahyogi the
yudh morche se aane wali khabron ki tarah hi chaunka dene wali khabren kosi ki hari wadiyon se roz roz aa rahi hain beni babu ek sthal par aakar nirash ho jate hain ki we phir kosi ki god mein laut nahin payenge unke gathiye ka dard itna baDh jata hai ki unhen aspatal mein bharti hona paDta hai, wahan jakar we dekhte hain ki kai parichit chehre ghayal awastha mein paDe hain we unse kahte hain ki main chal phir sakta to tum logon ki sewa karta, par lachar hoon mere hatte hi kosi ka pawitra jal lal ho gaya hai, wahan khoon ki dhara bah rahi hai, he ram, ye sab kya ho raha hai!
raat gahrati hai, beni babu dard se karahte hain unke baghal ka kisan bhi dard se karahta hai beni babu usse kahte hain, gathiya mein baDa dard hai bhai, lagta hain main ab phir uthkar khaDa nahin ho paunga ”
beni babu ke baghal ka kisan beech beech mein karah uthta hai we use santwna dete hain kisan kahta hai, “panDitji, in donon don mein bahut farq hai mujhe malum hai, aapko koi chot nahin lagi hai
beni babu apna dard bhulkar udas ho jate hain sochte hain—bishu hota to kahta—ek dard hinsak hai aur dusra ahinsak
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1970-1980) (पृष्ठ 48)
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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।