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पूरन पैज करी प्रह्लाद की

puran paij kari prahlad ki

नरोत्तमदास

नरोत्तमदास

पूरन पैज करी प्रह्लाद की

नरोत्तमदास

और अधिकनरोत्तमदास

    पूरन पैज करी प्रह्लाद की, खंभ सों बाँध्यो पिता जिहि बेरे॥

    द्रौपदी ध्यान धौ जबहीं, तबहीं पट-कोट लगे चहुँ फेरे।

    ग्राह तैं छूटि गयंद गयौ पिय! है हरि को निहचै जिय मेरे।

    ऐसे दरिद्र हजार हरैं वै, कृपानिधि लोचन-कोर के हेरे॥

    सुदामा से असहमत होकर उसकी पत्नी कहने लगी कि श्रीकृष्ण में अलौकिक शक्ति है। जब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को खंभे में बाँध दिया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने ही प्रकट होकर प्रह्लाद की प्रतिज्ञा को पूर्ण किया था। चीरहरण के समय ज्यों ही द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का हृदय में ध्यान किया, त्यों ही उन्होंने दुर्योधन की सभा में वस्त्रों का ढेर लगाकर उसकी लाज बचाई। उन्होंने ग्राह के फंदे में फंसे हुए हाथी की रक्षा की। हे स्वामी! उसे तो श्रीकृष्ण की कृपा का पूर्ण विश्वास है। हमारी निर्धनता से हज़ार गुनी बड़ी निर्धनता भी उनकी एक कृपा-दृष्टि से दूर हो सकती है। वे सभी कुछ करने में समर्थ हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुदामा-चरित (पृष्ठ 41)
    • संपादक : मोहनलाल 'रत्नाकार'
    • रचनाकार : नरोत्तमदास
    • प्रकाशन : ऋषभरचण जैन एवं सन्तति, नई दिल्ली-2

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