पद-कंजनि मंजु बनी पनहीं
pad kanjani manju bani panhin
पद-कंजनि मंजु बनी पनहीं धनुहीं सर पंकज पानि लिए।
लरिका सँग खेलत डोलत हैं, सरजू-तट चौहट हाट हिए॥
तुलसी अस बालक-सों नहिं नेह कहा जप जोग समाधि किए?
नर ते खर सूकर स्वान समान, कहौ जग में फल कौन जिए॥
राम के पद-पद्मों में जूते सुशोभित हैं और वह अपने कर-कमलों में छोटा-सा धनुष-बाण लिए हुए हैं। वह बालकों के साथ सरयू के किनारे, चौमुहानी पर, बाज़ार में तथा (भक्तों के) हृदय में खेलते फिरते हैं। तुलसी कहते हैं कि जिसने ऐसे बालक से स्नेह नहीं किया उसका जप, योग, समाधि करना व्यर्थ है। वे मनुष्य गधे, सूअर और कुत्ते के समान हैं। भला कहिए तो सही, उनके संसार में जीवित रहने से क्या लाभ?
- पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 6)
- संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
- रचनाकार : तुलसीदास
- प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
- संस्करण : 1999
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