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प्रभुजी अब जनि मोहि बिसारो

prabhuji ab jani mohi bisaro

धरनीदास

धरनीदास

प्रभुजी अब जनि मोहि बिसारो

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    प्रभुजी अब जनि मोहि बिसारो।

    असरन-सरन अधम-जन-तारन, जुग-जुग बिरद तिहारो।

    जहँ-जहँ जनम करम बसि पायो, तहँ अरुझे रस खारो॥

    पाँचहूँ के परपंच भुलनो, धरेउ ध्यान अधारो।

    पाँचहुँ के परपंच भुलानो, धरेउ ध्यान अधारो॥

    अंध गर्भ दस मास निरंतर, नखसिख सुरति सँवारो।

    मंजा मुत्र अग्नि मल मल जहँ, सहजै तहँ प्रतिपारो॥

    दीजै दरस दयाल दया करि, गुन ऐगुन विचारो।

    धरनी भजि आयो सरनागति, तजि लज्जा कुल गारो॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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