वेद पुरान सब झूठ का खेल है
wed puran sab jhooth ka khel hai
वेद पुरान सब झूठ का खेल है, लूट बदफ़ेल सब खोसि खाया॥
भया मन जोश भौ भागवत पढ़े से, चढ़ा मन ज्ञान का मान आया॥
अगम की राह का खोज कीन्हा नहीं, रोज रस ज्ञान बस लोभ माया॥
सुनें जजमान परमान गये खान में, मुक्ति नित कहत भई भूत काया॥
दास तुलसी टुक जीभ के कारने, अल्प सुख मान फिर नरक पाया॥
वेदों और पुराणों में वर्णित बातों से जीव का कल्याण नहीं होता है। उन्होंने जीवों को सही मार्ग नहीं बताया यानी अवतारों और देवताओं की पूजा करना, बाहरमुखी कार्रवाईयाँ करना, जप, तप संयम, यज्ञ, आचार, तीर्थ-व्रत व मंदिरों, मूर्तियों और जड़ पदार्थों की पूजा करना सिखाया और आडंबर झूठी सिखाया। इस तरह उन्होंने जीवों को लूट लिया यानी उनकी चैतन्यता इन असार कार्रवाइयों में ख़र्च करवा कर क्षीण कर दी और उन्हें सत्य परमार्थ के मार्ग से विचलित कर दिया। इस संसार में भागवत की कथा पढ़ने से मन में जोश पैदा होता है और मन अभिमान से भर जाता है कि उसे ज्ञान प्राप्त हो गया। ज्ञान प्राप्त करके भी, उसने मालिक के लोक में जानने की खोज नहीं की और लोभ व माया के वशीभूत होकर, थोथे ज्ञान की बातों में रस लेता रहा। कहते हैं कि ये ग्रंथ सुनने से जीव को मुक्ति मिलती है, किंतु जिन गृहस्थियों ने ये ग्रंथ सुने, वे चार खान में चले गए। इसका प्रमाण यह है कि उन्हें भूत की जून मिली। तुलसी साहब कहते हैं कि थोड़े से जीभ के स्वाद की खातिर, यानी इन ग्रंथों के पठन पाठन से उसे अल्प सुख मान कर जीव उद्धार नहीं प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि वे नर्क जाते हैं, जहाँ भारी दुख भोगना पड़ता है।
- पुस्तक : तुलसी साहब (हाथरस वाले) की बानी (पृष्ठ 56)
- संपादक : ज्ञान दास माहेश्वरी
- रचनाकार : तुलसी साहब
- प्रकाशन : स्वामी बाग, आगरा
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