आवो री सखी हो मिली गोविंद गावै
aawo ri sakhi ho mili gowind gawai
तुरसीदास निरंजनी
Tursidaas Niranjani
आवो री सखी हो मिली गोविंद गावै
aawo ri sakhi ho mili gowind gawai
Tursidaas Niranjani
तुरसीदास निरंजनी
और अधिकतुरसीदास निरंजनी
आवो री सखी हो मिली गोविंद गावै।
गाइ-गाइ प्रीति सूँ पीव अपनो मनावै॥
अपनै-अपनै मंदिरन सूँ, झूँडन चलि-चलि आवै।
जेनि केनि केहू प्रकार, अपनो राम रिझावै॥
पाँच छठी सातई मिलि, औरहू बुलावै।
हिरदै राम रूप में, जल बूँद लौं मिली जावै॥
तीनि लोक भर में तो ऐसो न औसर पावै।
जन तुरसी अपने प्रभु कूँ मिली, जीति निसान बजावै॥
- पुस्तक : निरंजनी सप्रदाय और संत तुरसीदास निरंजनी (पृष्ठ 173)
- संपादक : भगीरथ मिश्र
- रचनाकार : तुरसीदास निरंजनी
- प्रकाशन : राष्ट्रभाषा मुख्यालय, पुणे
- संस्करण : 1964
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