साधौ भाई यो जग माया जाल।
जो दीसे ऊ साँचो नाहीं, कर देखो पड़ताल।
जो जनम्यो सो अवस विनासे, क्यूँ मन करो मलाल॥
मकड़ी जाल बुने श्रम करतां, अद्भुत करे कमाल।
वो ही काल बणे मकड़ी को, एसो मक्कड़ जाल॥
माया का हे बाग-बगीचा, माया नदिया ताल।
माया सूरज चंदा ऊगे, माया काल अकाल॥
माया खिंड्यो कमल ताल में, माया वण की नाल।
माया औचक माया कौतक, माया हे खुसहाल॥
माया सिरजन करे जगत को, माया ही महाकाल।
सैना माया बाँधे खोले, माया है जंजाल॥
साधौ भाई! यह जग माया का जाल है। इससे निकलना कठिन है। हमें जो भी दिख रहा है, वह सच नहीं है। माया का खेल है। चाहो तो जाँच करके देख लो। जो पैदा हुआ है, वह अवश्य नष्ट होगा। यह सारी सृष्टि नाशवान है। इस नश्वरता पर मलाल मत करो। मकड़ी बहुत श्रम करके एक अद्भुत विचित्र जाल बुनती है। अंततः वह उसी मक्कड़ जाल में उलझ कर मर जाती है। उसी का कमाल उसका काल बन जाता है। ये बाग-बगीचे, ये नदियाँ, ये ताल-तलैयाँ सब माया के खेल हैं। यह चाँद-सूरज का उदय होना और अस्त हो जाना, माया का ही खेल है। यह काल-अकाल भी माया की ही लीला है। तालाब में खिले कमल भी माया की ही लीला है। उनकी नाल माया ही है। जगत में सब आश्चर्य, सब कौतुक, सब माया ही के कारण हैं। माया के ही कारण ख़ुशहाली है और माया के ही कारण उदासी। माया ही सृजन करती है, माया ही महाकाल भी है। माया वशीभूत करती है। माया ही उन्मुक्त भी करती है। सैन भगत कहते हैं—यह सारा जंजाल माया का ही है।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 305)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
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