सद्गुरु दियो जी मारग खोल।
सदगुरु के वचना चले, चौरासी कट जाय॥
एसो मंतर दियो म्हारा सतगुरू, पारख ज्ञान कराय।
तन-मन-चित्त एक तार बाँध्यो, तनक नहीं भरमाय॥
भीतर बाहर संसो नास्यो, अज्ञान धुंध नहीं राखी।
साहिब के दरबार हाजरी, सतगुरु कर दी साखी॥
सयना झट फरमा दियो, सतगुरु साँचो बोल।
सतगुरू दियो जी मारग खोल॥
सद्गुरू ने मेरा अवरुद्ध मार्ग खोल दिया है। जो व्यक्ति सद्गुरू के वचनों पर चलता है, उसकी चौरासी से मुक्ति हो जाती है। मुझे सद्गुरू ने पारख ज्ञान देकर ऐसा मंत्र दिया है। सद्गुरू ने मेरा तन-मन और चित्त एक तार में बाँध दिया। मेरे भीतर और बाहर का संशय नष्ट हो गया है। अज्ञान रूप कुहरा समाप्त हो गया है। सद्गुरू ने मुझे साहिब के दरबार में पहुँचा दिया और स्वयं की जमानत देकर तथा कृपा करके सत्य वचन फरमा दिया।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 300)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
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