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रुति आईले सरस बसंत माहि।

ruti aa.iile saras basa.nt maahi।

गुरु नानक

गुरु नानक

रुति आईले सरस बसंत माहि।

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    रुति आईले सरस बसंत माहि। रंगि राते रवहिसि तेरै चाइ।

    किसु पूज चड़ावउ लगउ पाई॥

    तेरा दासनिदासा कहउ राई। जगजीवन जुगति नमिलै काइ॥ रहाउ॥

    तेरी मूरति एका बहुतु रूप। किसु पूज चड़ावउ देउ धूप॥

    तेरा अंतु पाइआ कहा पाई। तेरा दासनिदासा कहउ राइ॥

    तेरे सठि संबत सभि तीरथा। तेरा सचु नामु परमेसरा॥

    तेरी गति अविगति नहीं जाणीऐ। अणजाणत नामु वखाणीऐ॥

    नानकु वेचारा किआ कहै। सभु लोकु सलाहे एकसै॥

    सिरु नानक लोकापाव है। बलिहारी जाउ जेते तेरे नाव है॥

    (उन्ही भाग्यशाली व्यक्तियों के लिए) वसंत ऋतु आई है (वे) (इस वसंत ऋतु में) आनंदित हैं—(कौन? इसका वर्णन आगे की पंक्तियों में है)—जो (तेरे नाम में) अनुरक्त है और तेरे ही चाव—उत्साह में रमण करते है। (हरी को छोड़कर मैं) किसी और को क्या पूजा चढ़ाऊँ?

    हे राय (हरी, मैं) तेरे दासो का दास हूँ और कह रहा हूँ कि किसी (अन्य साधन) से जीवन की मुक्ति नहीं प्राप्त होती है।

    (हे प्रभु), तेरी मूर्त्ति (स्थिति) तो एक ही है, (किंतु) उसके स्वरूप बहुत से है। (मैं) किसे पूजा चढ़ाऊँ और (किसे) धूप (आदि सामग्री) निवेदित करूँ? (हे हरी), तेरी गति अव्यक्त है, (वह) जानी नहीं जाती। (अतएव) बिना जाने ही तेरे नाम का गुणगान (और चिंतन) करना चाहिए।

    (हे स्वामी) बेचारा नानक, तेरा क्या वर्णन करे? सभी लोग उस एक प्रभु की ही स्तुति करते हैं। (जो गुरुमुख अहर्निश तेरी उपासना में लीन रहते है) (उन) लोगों के चरणों में नानक का सिर (समर्पित है)। जितने भी तेरे नाम है, (मैं उन सब की) बलैया लेता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 264)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

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