नामा तै झुटारे रे
nama tai jhutare re
नामा तै झुटारे रे, तेरा पंथ झुटारे रे।
अल्ला है आलम का साइ, सोही गुप्त चेहेरा रे।।
मुसलमान साहेब जाने, नही राम सु तोली।।
पाँच बखत निजाम गुजरी, मजहब नही कै बोली।।
पादशहा नहीं दीवाना रे, तेरा तुही दीवाना रे।।
गाइत्री सो हम वि जानी, खेतनी राना खांती।
एक पाव तो छीन लीया मैं, तीन पाव पर जाती।।
नामा तुही झुटारे।
बकरी काटी मुरगी काटी, हलाल कहता है।
मुरगी में से अंडा निकला, हलाल कै नहीं होता है।।
पादशहा तुही दिवाने।
बाबा आदम हम बी जाने, ढबलानंदी आवे।।
सीराल सेट का बेटा मारा, हराम खाना खावे।।
नामा तुही झटारे।
उननें मारा उननें तारा, उननें किया उधारा।
मुवा पोंगडा आप जीवावे, ऐसा राम मेरा।।
पादशहा तुही दीवाने।
दशरथ के दोनों बेटे, राम लछमण भाई।
घर छोडके जंगल बसाया, जोरू आप गमायी।।
नाम तुही झुटारे।
जल ऊपर पाषाण तारे, चरन से शिला उधारी।।
रावण मारकर विभीषण थापा, लंका बकसी सारी।।
पादशहा तुही दीवाने।
गाऊँ बछवा दोनो काटे, नामा मागे डोर।
नामदेव ने हात लगाया, बछीया पीवन लागे।।
अबतों भली बनी है जी, सबका एक धनी है जी।।
नामा अकबर सहजी मीले, साचा झगड़ा उनका।।
उचो नीचो करकर देखे, सोही उचा नीचा।।
- पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 269)
- रचनाकार : नामदेव
- प्रकाशन : मोतीलाल बनारसी दास
- संस्करण : 1963
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