माता मति पिता संतोखु। सतु भाई करि सहु विसेखु॥
कहणा है किछु कहणु न जाइ। तउ कुदरत की मति नही पाइ॥ ॥रहाउ॥
सरम सुरति दुइ ससुर भए। करणी कामणि करि मन लए॥
साहा संजोगु वीआहु विजोगु। सचु संतति कहु नानक जोगु॥
(हे साधक), बुद्धि को माता, सतोप को पिता तथा सत्य को भाई बनाओ—ये ही विशेष (संबंध) हैं।
(परमात्मा के संबंध में) कथन करना (व्यर्थ ही) हे, (क्योंकि) उसके संबंध में कुछ कहा नहीं जा सकता। (हे परमात्मा) तेरी कुदरत की कीमत नहीं नहीं पाई जा सकती।
लज्जा और (परमात्मा की) सुरति की दो—सास ससुर बनाओ। हे मन, (शुभ) करनी को स्त्री बनाओ।
(सत्संग का) मेल (विवाह की) लग्र हो, (आर सांसारिक विषयो से) वियोग— उभारमता विवाह हो। गुरु नानक देव का कथन हे कि सत्य को संतान बनाओ—(यही) संबंध ठीक है।
- पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 173)
- संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
- रचनाकार : गुरु नानक
- प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
- संस्करण : 2003
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