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कहउँ कहा अपनी अधमाई

kahaun kaha apni adhmai

गुरु तेगबहादुर

गुरु तेगबहादुर

कहउँ कहा अपनी अधमाई

गुरु तेगबहादुर

और अधिकगुरु तेगबहादुर

    कहउँ कहा अपनी अधमाई।

    उरझियो कनक कामिनी के रस नहिं कीरति प्रभु गाई॥

    जग झूठे कउ साँचु जानि कै तासिउ रुचि उपजाई।

    दीनबंधु सिमरिओ नहिं कबहू होत जु संगि सहाई॥

    मगन रहिओ माइआ मैं निसिदिन छुटी मन की काई।

    कह नानक अब नाहि अनंत गति बिनु हरि की सरनाई॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत-सुधा-सार (पृष्ठ 393)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : गुरु तेगबहादुर
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1953

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