जब लग परम तत्तु नहिं जाने
jab lag param tattu nahin jaane
जब लग परम तत्तु नहिं जाने।
तब लग भरम नहिं भाजे, करम कीच लपटाने॥
सहस नाम कहि कहा भयो मन, कोटि कहत न अघाने।
भूले भरम भागवत पढ़ि के, पूजत फिरत पखाने॥
का गिरि कंदर मंदर माहें, कंद मूरि खनि खाने।
कहा जो बरस हजार रह्यो तन, अंत बहुरि पछिताने॥
दानि कबीसुर सरसुती, रंक होउ भा राने।
प्रेम प्रतीति अमिय परचे बिनु, मिले न पद निरवाने॥
मन वच करम सदा निसिवासर, दूजो ज्ञान न ध्याने।
धरनी जन सतगुरु सिर ऊपर, भक्त-वछल भगवाने॥
- पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 20)
- रचनाकार : धरनीदास
- प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
- संस्करण : 1931
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