साधो भाई मूळ भेद विचारा।
इक ब्रह्म दुई कर दरसै, रचिया सकळ पसारा॥
चेतन समान विशेष होय ईश्वर, किया जीव विस्तारा।
ब्रह्मा विष्णु किया शिव स्वामी, पाँच तत्त्व गुण सारा॥
रजोगुण ब्रह्मा,सतोगुण विष्णु, तमोगुण शिव औंकारा।
दसूं इन्द्रियाँ रजोगुण क्रिया, सतोगुण देव अपारा॥
तमोगुण पाँच तत्त्व कर रचिया चवदह लोक संसारा।
सब में अंश ईश्वर कर देखो, चली शक्ति री धारा॥
पै’ली पंथ चलायो शिव शक्ति, महा धरम विस्तारा।
ईश्वर नेम दिया शिव शक्ति, रिया निकलंक निज नियारा॥
च्यारूं खांणी,बांणी, थिर चर जीव उपाया।
अंतरजामी आप अखंडी, रचना उणांरी छांयां॥
जमी आसमांन सूर अर चंदा, सप्त समुन्द्र रचिया।
नवसै नदी उडगण नवलख, अंत प्रकाश कराया॥
अरबद निरबद कळपै बहुता, अड़ा-औड़ा जुग रचाया।
चार चौकड़ी कळप रचाया, जुग आरम्भ गाया॥
सतजुग त्रेता, द्वापर कळु थापिया, जैड़ा सिमरथ राया।
रिषी मुनी मिलकर साख बांधी, ईश्वर अखंड रहाया॥
सात द्वीप नौ खंड बणाया, चौबीस अवतार विस्तारा।
जळ पर धरण चहूँ दिश राची, ग्रह गोचर विस्तारा॥
बोलिया रामदेव रचना देखी, किया अनंत नर नारी।
अनेक रचना कही नई जावै, जैड़ा धणी अपारा॥
साधु भाइयो! मूल रहस्य का विचार सुनो। ब्रह्म एक और अद्वितीय है, जो ब्रह्म और जीव रूप में दर्शित होता है। इसी ने संपूर्ण सृष्टि का विस्तार किया है। चेतन के रूप में यह विस्तार परब्रह्म का है। परब्रह्म (परमशिव) ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में साकार रूप धारण किया और पाँच तत्त्व तथा सत्, रज, तम तीन गुण उत्पन्न किए। ब्रह्मा में रजोगुण, विष्णु में सतोगुण तथा शिव में तमोगुण समाविष्ट किया।रजोगुण से दसों इंद्रियाँ, तमोगुण से पाँच विकार उत्पन्न करके सतोगुण के रूप में जीवात्मा का प्रवेश हुआ। इस प्रकार चौदह लोक सृजित किए। शिव और शक्ति से उत्पन्न इस संपूर्ण संसार के समस्त प्राणियों में उसी ईश्वर का अंश है।
शिव-शक्ति ने ही इस सृष्टि रचना का प्रवर्तन किया जिसका यह संपूर्ण विस्तार है। परमशिव ने शिव-शक्ति को सृष्टि रचना का कर्तव्य सौंप दिया और स्वयं निर्गुण, निराकार,परब्रह्म अपने विशुद्ध व मूल स्वरूप में इस सृष्टि-सृजन के व्यापार से सर्वथा असम्पृक्त रहा। पिंडज, जरायुज, स्वेदज और उद्भिज, ये चार प्रकार के जीव, बेखरी, मध्यमा, परा और पश्यन्ति चार वाणियाँ और स्थावर व जंगम दो प्रकार के पदार्थ उत्पन्न किए। अखंड रूप से इन सब में रहने वाला परब्रह्म वस्तुतः इनसे परे है, यह सारी सृष्टि उसकी छाया है। पृथ्वी, सात समुद्र, नौ सौ नदियाँ तथा सूर्य, चंद्र व नौ लाख तारागण का निर्माता व प्रकाश देने वाला वही है, इनमें उसी का प्रकाश है। बीज से तथा बिना बीज से उत्पन्न विचित्र जीवों की अद्भुत रचना उसने की। युग, चतुर्युगी, कल्प आदि नामों से काल विभाजन किया। जिसके अंतर्गत सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग की स्थापना की सब कुछ करके भी स्वयं अखंड रहा, ऋषि-मुनि भी उस अद्भुत व सर्वसमर्थ स्वामी के अद्वितीय रूप की साक्षी देते हैं। जिसने सप्त द्वीप और नौ खंड बनाए। चौबीस अवतार धारण किए। जल पर चारों दिशाओं में पृथ्वी की रचना की नौ ग्रहों तथा उपग्रहों आदि का निर्माण किया। रामदेवजी कहते हैं कि उस ईश्वर ने अनंत नर-नारियों की उत्पत्ति की जो सभी रूपगुण में भिन्न हैं, यह कैसी अद्भुत रचना है। नर-नारियों के अतिरिक्त जो रचना है वह भी वर्णनातीत है। जिसकी रचना का कोई पार नहीं उसका रचयिता व स्वामी तो निश्चय ही अपरंपार है।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 112)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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