भायां देखो माया पद नै हेठो
bhayan dekho maya pad nai hetho
भायां देखो माया पद नै हेठो।
ईश्वर अचळ विराट कहीजै, भली विधि साखी भेंटो॥
जमी आसमान आद ले देखो, रवि शशि उडगण माया।
नवसै नदियां निनाणु नाळा, सात समंदर माय॥
चवदा तबक इकीस ब्रमंड, आवत जावत माया।
बोलत वचन में सब ही आवै, उपजै सब ही माया॥
बोलै मौन पीवे अर खावै, सब अनछर है माया।
बैठे गवण सोवै अर जागै, औ सब देखो माया॥
पुत्र परिवार कुटम अर भाई, औ सब धोखा पाया।
जो कोई ग्यान कर देखौ, घटत बढ़त सभी माया॥
पाँच तत्त्व गुण तीनूं जांणै, तत्त्व चौबीस माया।
प्रेरक सही कर सोधौ, त्यागौ तिरगुण माया॥
उपजै खपै घरै अवतारा, करम की फांस बंधाया।
चेतन इण में चौकस कर ली, तजी पदारथ माया॥
राज तेज थिर नांई रैवै, सब परळै में आया।
यां सूं वैराग राखे कोई साधु, दरसै सारी माया॥
जगत करम कोई कर देखी, दूणा संकट पाया।
अंत समय तो रीतौ जावै, ऐसी दुष्टण माया॥
प्रविरत होय नर रैवै निविरत, अग्यानी गम नई जांणै।
इण विध ग्यानी बधै नई बंधण, माया मिटै ब्रह्म पिछांणै॥
तंवरां रै घर जामी पायौ, आप कुल में कंवर कैवाया।
अजमल सुत रामदेव दाखै, मेटी तिरगुण माया॥
हे भाइयो! माया को तुच्छ और त्याज्य समझो। ईश्वर अटल और अनंत है; इससे साक्षात्कार करलो। पृथ्वी,आकाश, सूर्य, चंद्र और तारागण आदि जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह सभी माया है। नौ सौ नदियां और निन्नानवे नाले तथा सातों समुद्र भी माया है। चौदह लोक और इक्कीस ब्रह्मांड तथा इनमें आने-जाने वाला हर पदार्थ माया है। बोलना-मौन रहना, खाना-पीना, उठना-बैठना,चलना, सोना-जागना, आदि जितनी भी क्रियाएं दिखाई दे रही हैं; वे सभी माया हैं। पुत्र, परिवार, कुटुंब, भाई-बंधु आदि सभी संबंध केवल माया जनित भ्रांति है। यदि ज्ञानपूर्वक देखो तो स्पष्ट होगा कि जन्म-मरण आदि सब कुछ माया है। पंच महाभूत, त्रिगुण तथा चौबीस तत्त्व भी माया है। इस माया के प्रेरक (परब्रह्म) को खोजो, और त्रिगुणात्मक माया को त्याग दो। उत्पन्न होना, विनाश को प्राप्त होना व अवतरित होना भी कर्म बंधन है; जो माया-पाश है। इस सकल सृष्टि में जो चेतन है, उसे सचेत होकर प्राप्त कर लो। राज-पाट भी स्थाई नहीं रहता है, सब कुछ प्रलय में समाविष्ट होता है। इन सभी के प्रति वैराग्य रखने वाले साधु को माया ही दिखाई देती है। सांसारिक कर्म चाहे कैसा भी कर के देख लो, कोई सुखदायी नहीं है। बहुत कुछ करने के बाद भी प्राणी अंत समय में खाली हाथ जाता है, ऐसी दुष्ट है यह माया। संसार में प्रवृत्त होते हुए भी जो मनुष्य अनासक्त भाव से रहता है, वह ज्ञानी कर्म के बंधन में नहीं बंधता है। अज्ञानी व्यक्ति इस विधि को नहीं जानता। ज्यों ही ब्रह्म की पहचान होती है, त्यों ही माया मिट जाती है। तंवरों के घर जन्म लेकर अपने कुल में कुंवर कहलाने वाले अजमल पुत्र रामदेव कहते हैं कि हे लोगों! इस त्रिगुणात्मक माया को आत्मज्ञान से मिटा दो।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 110)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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