बिहंगम कौन दिसा उड़ि जइहो
bihangam kaun disa uDi jaiho
बिहंगम कौन दिसा उड़ि जइहो।
नाम बिहुना सो पर हीना, भरमि-भरमि भव रहिहो॥
गुरु निंदक मद संत के द्रोही, निंदहिं जन्म गंवइहो।
पर दारा प्रसंग परस्पर, कहहु कौन गुन लहिहो॥
मदपी भांति मदन तन व्यापेव, अमृत तेजि विष खइहो।
बिसरि गयी तेहि दिन की बातें, अब बहु घात लगइहो॥
चरन कमल बिनु सो नर बूड़े, उभि चुभि थाह न पइहो।
कहें ‘दरिया' सतनाम भजन बिनु, रोई रोई जनम गंवइहो॥
हे आत्मारूपी पक्षी! तू उड़कर किस ओर जाएगा? यदि तुझे नाम का भेद नहीं मिला तो तू मानो बिना पंख के है और इस संसार में भटकता ही रहेगा। तू गुरु की निंदा करने में मस्त रहता है और संतों से वैर करता है—इस प्रकार तूने निंदा करते हुए ही सारा जन्म गँवा दिया है। तू परस्त्री के साथ दुष्कर्म भी करता है। ऐसे में कहो तो, तूने कौन-से गुण पाए हैं? नशा पीकर मस्त रहने से काम-भावना तेरे शरीर में छा गई है, इस प्रकार तू नामरूपी अमृत को त्यागकर विषयरूपी विष खा रहा है। तू जब गर्भ में कष्ट सहता था तो बार-बार परमात्मा के आगे प्रार्थना करता था कि गर्भ से बाहर निकलने पर कभी भी उसे नहीं भूलेगा, परंतु संसार में आकर तू उन दिनों की बातें भूल गया है और अब तरह-तरह की धोखाधड़ी में लगा हुआ है। सतगुरु के चरण-कमल प्राप्त न होने के कारण तू ग़ोते खाता हुआ इस संसार-सागर में इस तरह डूबेगा कि तुझे कहीं भी थाह नहीं मिलेगी। सच्चे नाम के भजन के बिना तू रो-रोकर यह मनुष्य-जन्म गँवा देगा।
- पुस्तक : संत दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 389)
- संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
- रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
- संस्करण : 2016
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.