बंदया कर लै करम कमाई।
शबरी अते अहिल्या कीती, पीपे-सीता माई।
जंगलां दे विच होके देन्दा, खुद आया रघुराई॥
करम कमाई कबीर ने कीती, नामदेव चित्त लाई।
धन्ने भगत कंकर बीज्या, खेती होई सवाई॥
रैदास दा सबद सुचन्या, गंगा कछोटी आई।
करम कमाई परल्हाद ने बीती, हरि चित्त दिल विच लाई॥
भगतां दा प्रभ रक्खा हारा, छोड़ दिती ठकराई।
सच्चा सौदा जिस-जिस कीता, कदां न घाटा पाई॥
सद्गुरु पूरा रामानंदा, बार-बार शरणाई।
सैन भगत दी भगति कच्ची राम नाम चित लाई॥
हे बंदे! कर्म की कमाई कर ले। यह कमाई शबरी, अहिल्या, पीपाजी और उनकी सहचरी सीता ने की। भगवान राम ढूँढ़ते-ढूँढ़ते स्वयं ही दर्शन देने आ पहुँचे। कर्म कमाई कबीर ने की। ऐसी ही कमाई नामदेव ने की। धन्ना भक्त ने अपने खेत में कंकर बोए। परमात्मा की कृपा से कंकर सच्चे बीज बन गए और सवाई फसल हुई। रैदास के शब्द शुद्ध थे। उनके शब्दों को मान कर गंगाजी उनकी कठौती में प्रकट हो गई। ऐसी ही कर्म कमाई प्रह्लाद ने की। हरि को चित्त में बिठाकर उनकी भक्ति की। प्रभु अपने भक्तों के रक्षक हैं। अपना आसन छोड़कर प्रह्लाद की रक्षा करने आ पहुँचे। जिस-जिसने भी सच्ची भक्ति की, उसे कभी नुकसान नहीं हुआ। सच्चे व्यापार में लाभ ही हुआ। सैन कहते हैं—सैन की भक्ति कच्ची है। बार-बार राम रटकर पकाता रहता है। सद्गुरू रामानंद सच्चे गुरू हैं। सैन बार-बार उन्हीं की शरण में जाता है।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 323)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
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