आवहु भैणे गलि मिलह अंकि सहेलड़ीआह।
मिलि कै करह कहाणीआ संम्रथ कंत की आह॥
साचे साहिब सभि गुण अउगण सभि असाह॥
करता सभु को तेरै जोरि।
एकु सबदु बीचारीऐ जा तू ता किआ होरि॥रहाउ॥
जाइ पुछहु सोहागणी तुसी राविआ किनी गुणी।
सहजि संतोखि सीगारीआ मिठा बोलणी॥
पिरु रीसालू ता मिलै जा गुर का सबदु सुणी॥
केतीआ तेरीआ कुदरती केवड तेरी दाति।
केते तेरे जीअ जंत सिफति करहि दिनु राति॥
केते तेरे रूप रंग केते जाति अजाति॥
सचु मिलै सचु ऊपजै सचु महि साचि समाइ।
सुरति होवै पति ऊगवै गुर बचनी भउ खाइ॥
नानक सचा पातिसाहु आपे लए मिलाइ॥
(मेरी) बहनो, (मेरी) सहेलियो, आओ गले लग कर आलिंगन करो। (मुझसे) मिलकर (मेरे) समर्थ कर (प्रियतम परमात्मा) की कहानियाँ कहो। (मेरे) समर्थ कत (प्रियतम परमात्मा) की कहानियाँ को। (मेरे) सच्चे साहब में सभी गुण हैं, हम में तो सभी अवगुण ही हैं।
हे कर्त्ता, सभी (प्राणियों) को तेरा ही जोर है। एक बात विचार कीजिए—यदि तू है, तो अन्य क्या है? (यदि सर्वशक्तिमान किसी ने तुम्हारा आश्रय ले लिया, तो उसे अन्य आश्रयो की क्या आवश्यकता है)?
जाकर उस सोहागिनी से पूछो कि तुम किन गुणों द्वारा (अपने प्रियतम से) रमण की गई? (इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें यही मिलेगा।)
“सहजावस्था एवं संतोष रूपी शृंगार एवं मीठी बोली से (मैंने प्रियतम के साथ रमण किया है)। रसिक प्रियतम तभी मिलता है, जब गुरु का उपदेश (सबद) सुना जाए।”
(हे प्रभु,) तेरी कुदरत कितनी (महान) तेरे दान कितने बड़े है? (हे प्रभु, तुझ द्वारा रचे गए) कितने जीव-जंतु है, जो दिन-रात तेरी प्रशंसा करते है? (अर्थात उनकी गणना नहीं की जा सकती। वे अनंत है)।
सत्य (परमात्मा) के मिलने पर ही (सचु) प्राप्त होता है। इस प्रकार) सच्चा (साधक) सच्चे (परमात्मा) में ही समा जाता है। जब (साधक) गुरु के वचनों द्वारा (परमात्मा से) भय खाता है, तो (उसे) सुरति प्राप्त होती है और (परमात्मा के यहाँ) प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। नानक कहते है कि सच्चा बादशाह (प्रभु) स्वयं अपने में (साधक को) मिला लेता है।
- पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 150)
- संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
- रचनाकार : गुरु नानक
- प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
- संस्करण : 2003
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