सबद

गोरखनाथ के ‘सबदी’ को बाद के संत कवियों ने ‘सबद’ बना लिया। संतों की आत्मानुभूति ‘सबद’ कहलाती है। सबद गेय होते हैं और राग-रागिनियों में बंधे हुए होते हैं। ‘सबद’ का प्रयोग आंतरिक अनुभव-आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है।

अपने युग के आत्मज्ञानी जैन संत। पदों में कबीर का तीखा अंदाज और मीरा की मिठास दोनों एक साथ समाहित।

1398 -1518

मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि।

भक्तिकाल के संत कवि।

1479 -1574

सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु और आध्यात्मिक संत। जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और आपसी सौहार्द स्थापित करने के लिए 'लंगर परंपरा' शुरू कर 'पहले पंगत फिर संगत' पर ज़ोर दिया।

1563 -1606

सिक्खों के पाँचवें गुरु और 'गुरुग्रंथ साहिब' के संपादक।

1666 -1708

सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।

1621 -1675

सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।

1469 -1539

सिक्ख धर्म के आदिगुरु। भावुक और कोमल हृदय के गृहस्थ संत कवि। सर्वेश्वरवादी दर्शन के पक्षधर।

1534 -1581

सिक्ख धर्म के चौथे गुरु। अमृतसर के संस्थापक।

1717 -1778

रीतिकालीन संत। ग़रीब पंथ के प्रवर्तक। राम-रहीम में अभेद और सर्वधर्म समभाव के पक्षधर। कबीर के स्वघोषित शिष्य।

1758

'वागड़ की मीरा' के उपनाम से भूषित। राजस्थान की निर्गुण भक्ति परंपरा से संबद्ध।

प्रसिद्ध नाथ कवि। मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य, नाथ संप्रदाय के संस्थापक और नौ नाथों में से एक। समय : 845 ई. के आस-पास।

1706 -1785

'चरणदासी संप्रदाय' के प्रवर्तक। योगसाधक संत। जीवन-लक्ष्य साधने हेतु कृष्ण-भक्ति के साथ अष्टांग योग पर बल देने के लिए स्मरणीय।

1451 -1536

विश्नोई संप्रदाय के संस्थापक। पर्यावरणविद् और वैष्णव भक्ति के पोषक कवि।

सांगीतिक मधुरिमा के साथ आत्मशुद्धि, विरह और प्रेम को कविता का वर्ण्य-विषय बनाने वाले संतकवि। 'निरंजनी संप्रदाय' से संबद्ध।

1763 -1843

'साहिब पंथ' से संबंधित संत कवि।

1511 -1623

रामभक्ति शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। कीर्ति का आधार-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’। उत्तर भारत के मानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भक्त कवि।

1634 -1780

मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।

1660 -1778

रीतिकालीन संधि कवि। सतनामी संप्रदाय से संबद्ध। जगजीवनदास के शिष्य। भाषा में भोजपुरी का पुट।

1544 -1603

भक्तिकाल के निर्गुण संत। दादूपंथ के संस्थापक। ग़रीबदास, सुंदरदास, रज्जब और बखना के गुरु। राजस्थान के कबीर।

1415 -1475

भक्तिकालीन निर्गुण संत। स्वामी रामानंद के शिष्य। आजीवन खेती-बाड़ी करते हुए भक्ति-पथ पर गतिशील कृषक-कवि।

1656

भक्तिकाल के संत कवि। आत्महीनता, नाम स्मरण, विनय और आध्यात्मिक विषयों पर कविताई की। 'निज' की पहचान पर विशेष बल दिया।

1270 -1350

बिसोवा खेचर के शिष्य और वारकरी संप्रदाय के प्रमुख संत। सगुण-निर्गुण में अभेद स्थापित करते हुए सैकड़ों अभंग पदों के रचनाकार।

1769

अठारहवीं सदी के संत कवि। पदों में हृदय की सचाई और भावों की निर्भीक अभिव्यक्ति। स्पष्ट, सरल, ओजपूर्ण और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग।

1568 -1646

राजस्थान के किसान परिवार में जन्म। आडंबरहीन, सरल व सीधी भाषा में ज्ञान मार्ग के गूढ़ तथ्यों को जनमानस के सामने रखा जिससे साधारण व बिना पढ़ा व्यक्ति भी मुक्ति का मार्ग अपना सके।

संत कवि और गायक। संत दादूदयाल के प्रधान शिष्यों में से एक। सांप्रदायिक सद्भाव के प्रचारक।

संत यारी के शिष्य और गुलाल साहब और संत जगजीवन के गुरु। सुरत शब्द अभ्यासी सरल चित्त संतकवि।

1352 -1385

राजस्थान के पाँच पीरों में से एक। जाति से क्षत्रिय और वृत्ति से संत। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के सबसे बड़े पक्षधर। दोनों धर्मों में समान रूप से पूज्य।

भक्तिकालीन निर्गुण मत की स्त्री संत। 'बावरी संप्रदाय' की संस्थापिका।

1713 -1763

समय : 18वीं सदी। बावरी पंथ ग़ाज़ीपुर शाखा के संत गुलाल साहब के शिष्य। चमत्कार-विरोधी। नाम-स्मरण के सुगम पथ के राही।

रीतिकालीन अलक्षित कवयित्री।

मध्व संप्रदाय के वैष्णव भक्त। पदों में सूफ़ीज़्म और सगुण भक्ति का सामजंस्य।

1574 -1682

भक्ति परंपरा के संत कवि। ‘अजगर करे ना चाकरी...’ जैसी उक्ति के लिए स्मरणीय।

1690 -1768

अलक्षित संत कवि। कबीर को आदर्श मानते हुए साधना के गूढ़ भावों को सरल रूप में प्रस्तुत किया।

रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।

1567 -1689

भक्तिकाल के संत कवि। विवाह के दिन संसार से विरक्त हो दादूदयाल से दीक्षा ली। राम-रहीम और केशव-करीम की एकता के गायक।

1398 -1518

भक्ति की ज्ञानमार्गी एवं प्रेममार्गी शाख़ाओं के मध्य सेतु। मीरा के गुरु।

1504 -1570

राजस्थान के जाट परिवार में जन्म। संत चतुरदास की शिष्या और मीरा की समकालीन। पदों में भक्ति की सरल अभिव्यक्ति।

'नाथ संप्रदाय' से प्रभावित संत। 'आदिग्रंथ' में संकलित संत कवियों में से एक।

कृष्ण भक्ति-परंपरा के अलक्षित कवि। रचनाओं में सरस और माधुर्य भाव का आधिक्य।

दादू के प्रधान शिष्यों में से एक। दया, उदारता और देह की अनित्यता पर सरल भाषा में लिखे पदों के लिए स्मरणीय।

संत कवि। सरल और सहज भाषा। कविता में दैनिक जीवनानुभवों और उदाहरणों से अपनी बात पुष्ट करने के लिए स्मरणीय।

संत कबीर के औरस पुत्र और शिष्य।

संत यारी के शिष्य। आध्यात्मिक अनुभव को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले अलक्षित संत-कवि।

-1700

रीतिकालीन निर्गुण संतकवि और संत बुल्ला साहब के प्रधान शिष्य। वाणियों की मुख्य विषय-वस्तु अध्यात्म, प्रेम और शांति की कामना।

1670

रीतिकाल के निर्गुण संतकवि। संत बुल्ला के शिष्य और 'सतनामी संप्रदाय' के संस्थापक।

1676 -1758

भक्तिकाल के निर्गुण संतकवि। वाणियों में प्रेम, विरह, और ब्रह्म की साधना के गहरे अनुभव। जनश्रुतियों में संत दादू के अवतार।

निंबार्क संप्रदाय से संबद्ध। प्रसिद्ध भक्त हरिव्यास देव के शिष्य।

बावरी साहिबा के प्रधान शिष्य और प्रसिद्ध संत यारी साहब के गुरु। जन्म-मृत्यु तिथियाँ अनिश्चित।

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