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जीवदया रास

jiwadya ras

आसिगु

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जीवदया रास

आसिगु

और अधिकआसिगु

    उरि सरसति आसिगु भणइ, नवउ रासु जीवदया-सारु।

    कंनु धरिवि निसुणेहु जण, दुत्तरू जेम तरहु संसारु॥१॥

    जय-जय-जय पणमउ सरसत्ती। जय-जय-जय खिवि पुत्थाहत्थी।

    कसमीरह मुखमंडणिय, तइं तुट्टी हउ रयउ कहाणउं।

    जालउरउ कवि वज्जरइ, देहा सरवरि हंसु वखाणउं॥२॥

    पहिलउ अक्खउं जिणवरधम्मु। जिम सफलउ हुइ माणुसजंमु।

    जीवदया परिपालिजए, माय वप्पु गुरु आराहिजए।

    सव्वह तित्थह तरुवर ठविजइ, (जिम?) छाही फलु पावीजइ॥३॥

    देवभत्ति गुरुभत्ति अराहहु। हियडइ अंखि धरे विणु चाहहु।

    घणु वेचहु जिणवर भवणि, खाहु पियहु नर वंधहु आसा।

    कायागढ तारुण भरि, जं पडहिं जमदेवहं पासा॥४॥

    सारय सजल सरिसु परधंधउ। नालिउ लोउ पेखइ अंधउ।

    डुंगरि लग्गइ दव हरणि, तिम माणुसु बहु दुक्खहं आलउ।

    डज्जइ अवगुण दोसडइ, जिम हिम वणि वणगहणु विसालउ॥५॥

    नालिउ अप्पउ अप्पइ दक्खइ। पायहं दिट्ठि बलंतु पिक्खइ।

    गणिया लब्भहिं दिवसडइं, जंजि मरेवउ तं वीसरियउ।

    दाणु दिंनउ तप किउ, जाणंतो वि जीउ छेतरियउ॥६॥

    अरि जिय यउ चिंतिवि किरि धंमु। वलि-वलि दुलहु माणुसजंमु।

    नत्थि कोइ कासु वि तणउं, माय ताय सुय सज्जण भाय।

    पुत कलत्त कुमित्त जिम, खाइ पियइ सवु पच्छइ थाइ॥७॥

    धणि मिलियइ बहुमग्ग जण हार। किं तसु जणणिहि किं महतार।

    किं केतउ मागइ धरणि पुत्रु, होइ प्राणी णेइ लेसइ।

    विहव वारहं पत्तगहं, बोलाविउ को सावु देसइ॥८॥

    जणणि भणइ मइ उयरहं धरियउ। वप्पु भणइ महु घरि अवतरियउ।

    अणखाइय महिलिय भणइ, पातग तणइ मारगि जाउ।

    जरथु धरम विहंचिवि लियउं वि, दिनत्थी पतुं चडसइ न्हाउ॥९॥

    यउ चिंतिवि निय मणिहिं धरिज्जइ। कुडी साखि कासु वि दिज्जइ।

    आलिं दि नइ आलसउ जउ, अजु हूवउ कालु होसइ।

    अनु चिंतंतहे अनु हुइ, धंधइ पडियउ जीउ मरेसइ।

    पुडइ निपंन जेम जलबिंदु। तिम संसारु असा समुंदु॥१०॥

    इंदियालु नडपिखणउ जिम, अंवरि जलु वरिसइ मेहु।

    पंच दिवस मणि छोहलउ, तिम थहु प्रियतम सरिसउ नेहु॥

    अरिजिय परतंह पालि बंधिजइ। जीविय जोवण लाहउ लीजइ॥११॥

    अलियउ कह वि बोलिजइ, सुद्धइ भाविहि दिज्जइ दाणु।

    धम्म सरोवर विमल जलु, कुंडपाउ नियमणि यउ जाणु॥

    पंच दिवस होसइ तारुन्नु। ऊडइ देह जिम मन्दिर सुन्नु॥१२॥

    जाणंतो विय जाणइ, दिक्खांता हइ होइ पयाणउ।

    वट्टहं संवलु नहु लयउ, आगइ जीव किसउ परिमाणु॥

    दिवसे मासे पूजइ कालु। जीउ छूटइ विरधु वालु॥१३॥

    छडउ पयाणउ जीव तुहु, साजणु मितु बोलावि बलेसइ।

    धम्मु परतह संवलओ, जंता सरिसउ तं जि बलेसइ॥

    अरि जिय जइ बूक्कहि ता बूक्कु। वलि-वलि सीख कु दीसइ तुक्कू॥१४॥

    वारि मसाणिहि चिय वलइ, कुडि दाउं ती गंधि आवइ।

    पावकूव भिंतरि पडिउ तिणि, जिणधम्मु कियउ नवि भावइ॥१५॥

    जिम कुंभारिं घडियउ भंडू। तिम माणुसु कारिमउ करंडु।

    करतारह निप्पाइयउ, अट्टुत्तरसउ वाहिसयाइं।

    जिम पसुपालह खीरहरु, पुट्टिहिं लग्गउ हिंडइ ताइं॥१६॥

    देहा सरवर मज्झिहिं कमलु। तहि वइसउ हंसा धुरि धवलो।

    कालु भमरु उपरि भमइ, आउखए रस गंधु वि लेसई।

    अणखूटइ नहु जिउ मरइ, खूटा उपर घरी दीसइ॥१७॥

    नयर पुक्क आया वणिजारा। जणणि समाणु अरिहिं परिबारा।

    धम्म फयाणउं ववहरहु, पावतणी भंडसाल निवारहु।

    जीवह लोहु समग्गल कुमारगि जणु अंतउ वारहु॥१८॥

    एगिंदिय रे जीव सुणिज्जइ। बेइं दिय नवि आसा किज्जइ।

    तेईं दिय नवि संभलइ, चउरिंदिय महिमंडलि वासु।

    पंचिदिय तुहुं करहिं दय, जिणधम्मिहिं कज्जइ अहिलासु॥१९॥

    धम्मिहिं गय घडतुरियहं घट्ट। भयभिभल कंचण कसबट्ट।

    धम्मिहि सज्जण गुणपवर, धम्मिहिं रज्ज रयण भंडार।

    धम्मफलिण सुकलत्त घरि, वे पक्खसुद्ध सीलसिंगार॥२०॥

    धम्मिहिं मुक्खसुक्ख पाविज्जइ। धम्मिहि भवसंसारु तरीजइ।

    धम्मिहिं धणु कणु संपडइं, धम्मिहि कंचण आभरणाइं।

    नालिय जीउ जाणइ य, एहि धम्महं तण फलाइं॥२१॥

    धम्मिहि संपज्जइ सिणगारो। करि कंकण एकावलि हारु।

    धम्मि पटोला पहिरिजहिं, धम्मिहि सालि दालि घिउ घोलु।

    धम्मि फलिण वितसा (रु?) लियइं, धम्मिहिं पानबीड तंबोलु॥२२॥

    अरि जिय धम्मु इक्कुपरिपालहु। नरयबारि किवाडइं तालहु।

    मणु चंचलु अविचलु बरहु, कोहु लोहु मय मोहु निवारहु।

    पंचवाण कामहिं जिणहुं जिम, सुह सिद्धिमग्गु तुम्हि पावहु॥२३॥

    सिद्धिनामि सिद्धि वरसारु। एकाएकि कहहु विचारु।

    चउरासी लक्ख जोणि, जीवह जो घल्लेसइ घाउ।

    अंतकालि संमरइ अंगि, कोइ तसे होइ हु दाहु॥२४॥

    अरु जीवइं अस्संखइ मारइं। मारोमारि करइ मारावइ।

    मुच्छाविय धरणिहि पडइ, जीउ विणासिवि जीतउ मानइ।

    मच्छगिलिग्गिलि पुणु वि पुणु, दुख सहई ऊथलियइ पंनइ॥२५॥

    पन्नउ जउ जगु छन्नउं मंनउं। कूवहं संसारिहि उप्पंनउं।

    पुन सारिहि कलिजुगिहिं, ढीलइ जं लाजइ बवहारु।

    एकहं जीवहं कारणिण, सहसलक्ख जी वहं संहारु॥२६॥

    वरिसा सउ आऊषउ लोए। असी वरिस नहु जीवइ कोइ।

    कूडी कलि आसिगु भणइ, दयारीजि नय नय अवतारु।

    धंमु चलिउ पाडलिय पुरे, एका कालु कलिहि संचारु॥।२७१॥

    माय भणेविण विणउ कीजहा बहिणि भणिवि पावडणुन कीजइ

    लहुड बड़ाई हा... तिय मुक्की, लाज समुद मरजाद।

    घरघरिणिहिं वीया पियइं, पिय हत्थि थोवावइ पाय॥२८॥

    सासुव बहूव चलणे लग्गई। इह छाहइ पाडऊणइ मागइ।

    ससुरा जिट्ठह नवि टलइ, राजि करंती लाज भावइ।

    मेलावइ साजण तणइं, सिरि उग्घाडइ बाहिरि धावइ॥२९॥

    मित्तिहि मुक्का मित्ताचारि। एकहि घरणिहिं हुइ रखवाला।

    जे साजण ते खेलत गिइं, गोती कूका गोताचारा।

    हाणि विधि वट्टावणइं, विहुरहि बार करहिं नहु सारा॥३०॥

    कवि आसिग कलिअंतरु जाइ। एक समाण दीसई कोइ॥

    के नरि पाला परिभभहि, के गय तुरि चंडति सुखासणि।

    केई नर कठा बहहि, के नर बइसहिं रायसिंहासणि॥३१॥

    के नर सालि दालि भुंजता। घिय घलहलु मज्झे विलहंता।

    के नर भूषा (खा) दूषि (खि) यइं दीसहिं परघरि कमुं करंता।

    जीवता वि मुया गणिय, अच्छहिं बाहिरि भूमि रूलंता॥३२॥

    के नर तंबोलु वि संभाणहिं। विविह भोय रमणिहि सउ माणहि।

    के वि अपुं नइं वप्पुडइं, अणु हुंतइ दोहला करंता।

    दाणु दिनउं अनं भवि, ते नर परघर कंमु करंता॥३३॥

    आसेवंता जीव जाणहिं। अप्पहिं अप्पाउ नहुँ परियाणहि।

    चंचलु जीविउ धूय मरण, विहि विद्धाता वस इउ सीसइ।

    मूढ धम्मु परजालियइ, अजरु अमरु कलि कोइ ना दीसइ॥३४॥

    नव निधान जसु हुंता वारि। सो बलिराय गयउ संसारि।

    बाहुबलि बलबंत गउ, धण कण जोयण करहु गारहु॥

    डुबंह घर पाणिउ भरिउ, पुहविहि गयउ सु हरिचंदु राउ॥३५॥

    गउ दसरथु गउ लक्खणु रामु। हिडइ धरउ कोइ संविसाउ।

    बार बरसि वणु सेवियउ, लंका राहवि किय संहारु।

    गइय सीय महासइय, पिक्खा हु इंदियालु संसारु॥३६॥

    जसु घरि जमु पाणिउ आणेई। फुल्लतरु जसु वणसइ देई।

    पवणु बुहारइ जसु ज्वहि, करइ तलाउ चामुड माया।

    खूटइ सो रावणु गयउ, जिणि गह बद्धा खाटहं पाए॥३७॥

    गउ भरथेसरु चक्कधरंधरु। जिणि अट्ठावइ ठविय जिणेसरु।

    मंधाता नलु सगरु गओ, गउ कयरव-पंडव परिवारो।

    सेतुजा सिहरिहि चडेवि जिणि, जिणभवण कियउ उद्धारु॥३८॥

    जिणु रणि जरासिंधु विद्दारिउ। आहि दाणवु वलवंतउ मारिउ।

    कंस केसि चाणरु, जिणि ठवियउ नेमिकुमारु।

    वारवई नयरिय घणिउ कहहि सु हरि गोविहि मत्तारु॥३९॥

    जिणु चउवीसमु वंदिउ वीरु। कहहि सु सेणिउ साहस धीरु।

    जिणसासण समुद्धरणु, बिहलिय जण वंदिय सद्धारु।

    रायग्गिह नयरियहं, बुद्धिमंतु गउ अभयकुमारु॥४०॥

    पाउ पणासइ मुणिवर नामि। वयरसाभि तह गोयमसामि।

    सालिभइ संसारि गउ, मंगलकलस सुदरिसण सारो।

    थूलभद्द सतवंतु गवो धिगु, धिगु यह संसारु असारु॥४१॥

    गउ हलधरु संजमसणगारु। गयसुकुमालु वि मेहकुमारु।

    जंबुसामि गणहरु गयउ, गउ धन्नह ढंढणह कुमारु।

    जउ चिंतिवि रे जीव तुहुँ, करि जिणाधंमु इक्कु परिवारो॥४२॥

    जिणि संवच्चरु महि अंबाविउ। अंबरि चंदिहिं नामु लिहाविउ।

    ऊरिणि की परिथिमि सयल, अणु पालिउ जिणु धम्मु पवितु।

    उज्जेणीनयरी घणिउ कह, अजरमकर विबकमदीतु॥४३॥

    गउ अणहिलपुर जेसलु राउ। जिणि उद्धरियलि पुहवि सयाउ।

    कलिजुग कुमरनरिंदु गउ, जिणि सब जीवहं अभउ दियाविउ।

    उवएसिहिं हेमसूरि गुरु, अहिणव ‘कुमरविहारु' कराविउ॥४४॥

    इत्थंतरि जण निसुणहु भाविं। करहु धम्मु जिम मुच्चहु पाविं।

    इहिं संसारि समुद्दजलि, तरण तरंड सयल तित्थाइं।

    बंदहु पूयहु भविय जण, जे तियलोह जिणभवणाइं॥४५॥

    अट्ठावइ रिसहेसरु बंदहु। कोडि दिवालिय जिम चिरु नंदहु।

    सितुज्जहं सिहरिहिं चडिवि, अच्चउं साभिउ आदिजिणिदु।

    आवुइ पणमउ पढमजिणु, उम्मुलइ भवतरुवरकंदु॥४६॥

    उज्जिलि वंदहु नेमिकुमारु। नव भव तिहुयणि तरहि संसारु।

    अंबाइय पणमेहु जण, अवलोयण सिहरि पिक्खेहू।

    बिसम तुंग अंबर रयणा, वंदहु संवु पजुंनइ वेउ॥४७॥

    थुणउ वीरु सच्चउरहं मंडणु। पावतिमिर दुहकंम विहंडणु।

    वंदउ मोढेरानयरि, चडावल्लि पुरि वंदउ देउ।

    जे दिट्टउ ते वंदियउ विमलभावि दुइ करजोडि॥४८॥

    वाणारसि महुरह जिणचंदु। थंभणि जाइवि नमहु जिणिंदु।

    संखेसरि चारोप पुरि, नागद्दहि फलवद्धि दुवारि।

    वंदहु सामिउ पासजिणु, जालउरा गिरि ‘कुमरविहारु'॥४९॥

    कास बि देह हडइ दालिहु। कासु वि तोडइ पावह कंहु।

    कासु वि दे निम्मल नयण, खासु सासु खेयणु फेडेई।

    जसु तूसइ पहु पासजिणु। तासु धरि नव निधान दरिसेइ॥५०॥

    वाला मंत्रि तणइ पाछोपइ। बेहल महिनंदन महिरोपइ।

    तसु सखहं कुलचंद फलु, तसे कुलि आसाइतु अच्छंतु।

    तसु वलहिय पल्लीपवर, कवि आसिगु बहुगुण संजुत्त॥५१॥

    सा तउपरिया कवि जालउरउ। भाउसालि सुमइ सीयलरउ।

    आसीद वदोही वयण, कवि आसिगु जाल उरह आयउ।

    सहजिगपुरि पासहं भवणि, नवउ रासु इहु तिणि निप्पाइउ॥५२॥

    संवतु बारह सय सत्तावन्नइ। बिक्कमकालि गयइ पडिपुंनइ।

    आसोयहं सिय सत्तमिहि, हत्थो हत्थिं जिण निप्पायउ।

    संतिसूरि पयभत्तयरियं, रयउ रासु भवियहं मणमोहणु॥५३॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 23)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : आसिगु
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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