कुमारपाल रास
kumarpal ras
॥रोला॥
पढम जिर्णिदह नमीय पाय अनइ वीरह सामी,
गायेम पमुह जि सूरिराय मुणि सिद्धिहिं गामी,
समरवि सरसति, कवडि जक्ख, वरदेवि अंबाई,
कुमरनरिंदह तणउ रासु पभणउं सुहदाई॥१॥
॥वस्तु॥
चच्चनन्दन चच्चनन्दन गुणह सम्पन्न,
पाहिणिदेवी उवरि धरिउ मोढवंसि उपन्न सुणीइ,
पुप्फवृष्टि सुरवइ करइ ए जास जनमि उवतार,
चंगदेव चिर जीविजिउ जिणिसासणि साधार॥२॥
वालकालि संजम लियउ गुरु विनय करन्ता,
हेमसूरि गुरु नाम दिन्न जगि जस जयवंता,
मति थोडी गुणतणी रासि हउं कहवि न जामउं,
हैमसूरि गुरुतणउ चरित किम करीअ वक्खाणउ॥३॥
मेपु षडी फरसिय, जाव मसि कीजइ सायर,
अन्त न लाभइ गुणह तणउ जिम चन्द दिवायर,
पहिलउं धरीइ धजपताक गिरि मेरु समाणा,
कुमरविहारह करउ भगति सवि मंडलिकराणा॥४॥
सोवन्नथंभे पूतली ए मई मयगल दीठा,
सम्भलि कुमरनरिंद राउजिनपंडित बइठा,
रायहं कुमरनरिंद राय हेमसूरि बूझावइ,
आहेडउ वारिउ, सयलदेसि राय धम्म करावइ॥५॥
अरिट्ठनेमि जिम कुमरपालि डांगरउ दिवारिउ,
छाली बोकड करइ वात, गाडरि वधावइं,
ससला नाचइ रुलियभरे अजराभर हूआ,
लहिया दहिया करइं आलि, पारेवइ सहीआ॥६॥
भइं सा अनइं हरिण रोझ सूयर अनइ संबर,
चीत्रा कुमरनरिंदराजि रंगि नाचइं तीतर,
जूअ न मांकुण लीक कोइ कहवि न मारइ,
हरिणा हरिणी करइ केलि सुषि हेमसूरिवारइ॥७॥
लावां लवइं पंजर थियां सुषि अच्छइं भूतलि,
सूइंडा नवि पंजरइ थियां पुण नाचइं सीतलि,
काबरि अनइं होल भणइ, सांभलि तू सारइ,
पाणी माहि जि मच्छली ए लोधा नवि मारइ॥८॥
सारसरी सरि हांस लवइ मोरडीअ वधावइं,
अक्खई होजे कुमरपाल, अम्हमरण न आवइं,
काग सरप अनइ सुणह घाउ कोइ नवि घालइ,
न मरउं कुमरनरिंद राजि, सखि हीयडउ माचइ॥९॥
कंटेसरि चामंड भणइ, सांभलि तउं साउगि,
छंडि न पडहण तणीय वात अच्छि भइया सावगि,
कंटेसरि आपणइ चित्ति थाकी आलोची,
हेमसूरि सरिसउ किसउ रोसु, जेह न सकउं पहुंची॥१०॥
वालीनाह करहडा ए बे पडणि पङंता,
छंडि न आमिष तणी आस अच्छि बाकुल पन्ता,
वालीनाह दिउ गाम, लोहावउ वहीए,
मांडइ लाडूइं करउ भगति अनइ ईडराए॥११॥
पारधि जीवन पोसीग ए बहु पावह जोगु,
पारधि खेलत दसरथह हूउ पुत्रवियोगु,
कुमरनरेसर नियज्जि आहेडउ वारइं,
जलचर थलचर खचर जीव इह कोइ न मारइं॥१२॥
पट्टणि टालिय पट्टणि टालिय जीवसंधार,
सूअर संबर रोझ तहिं फिरइं, जेह जिम मणह भावइं,
दहीआ तीतर सालहिय कच्छ मच्छ नहुमरण आवइं,
छाली बोकड गाडरहं कोई न घालइं घाउ,
राजु करइं जा मेइणिहिं कमरड रायहंराउ॥१३॥
॥रोला॥
जूअ वसणि हूउ नलनरिंद दमयंति विओगु,
अडवि भमंता बार वरिस, पांडव मनि सोगु,
देषी दूषण जूअतणउं नवि षेलइं सारि,
जूआरी नवि जूय रमइं, नवि बोलइं मारि॥१४॥
मंसवसणि सोदास राय, पामिउ दुहसेणीय,
दीठी नरगह तणीय भूमि नरवइ पुण सेणिय,
आमिषभोयण तणइ दंडि बत्तीस विहार,
राय करावइ कुमरपाल जगि तिहुअणसार॥१५॥
दूषण मदिरापान तणइ जायवकुलनासो,
किरिउं दीवायणि दुट्ठ देवि बारवइ विणासो,
रायादेसइं नीच सवे हिव मदिरा मेल्हइं,
मतवाला नवि मधु करइं, भूंमली न षेलइं॥१६॥
गणिका गमणु निवारिउं ए नरवइ निय राजि,
छंडविवेशावसण लोग लागा सवि काजि,
वेशा कीधी माइ सरिस तइं कुमरड राय,
तां पण पूजइं जिणह मुत्ति, वन्दइ गुरू पाय॥१७॥
वेशावसणिइं गमइ अरथ जो पुरिस अहन्नउ,
पाछइ झरइ मनहमाहि जिम वणीय कयन्नउ,
जोरह जणणी इम भणइ ए सांभलि वछ वात,
निश्चइं जीवडउ जाइसइ ए जइ पाडिसि षात॥१८॥
दीसइ चोर न देसमाहि, जिम सुसमइ रंकु,
धरि ऊघाडे बारणइ लोए सूयइ निसंकु,
परस्त्रीदोसिहं रावणइ ए दिउं नरगि पीआणुं,
दसरथनन्दणि रामदेवि किउं अकह कहाणउं॥१९॥
नियनिय मंदिर भणइं नारी, सांभलि परतार,
नारि नियारिय जो अतउ, हिव जाणिसि सार,
रंगइं धरणी भणह, नाह, सुणि धम्म विचारो,
मनुसुद्धिहि हिव करि न सामि, परस्त्री परिहारो॥२०॥
॥वस्तु॥
जूय वारिय जूय वारिय मंससंजुत्त,
सुरापाणु नवि जाणीइ, वेसवसण नयणो न दीसइ,
पारधि जीव न मारिइं, चोर कोइ दष्टिइं न दीसइ,
कुमरड राउ उम्मूलि तउं परस्त्रीउ परिहार,
सातइ वसण निवारिं करि गहिउ धम्मह मार॥२१॥
पाणिय गालइं तिन्नि वार अणात्थमिय करंता,
कुमरनरिंद तणइं राजि सावइ पडिक्कंता,
वड्डा सरावग थिया अच्छइं, श्रावकविधि पालइं,
धम्महि लीणा रातिदिवस सवे पातग टालइं॥२२॥
बहिनडली बंधव भणइ, ए मज्झ कउतिगु भावइं,
हेमसूरि गुरु तणउ बोध अम्ह भलउ सुहावइं,
कुमरविहार वन्दावि चालि, जिण राय कराविय,
अणहिलवाडउं कुमरपालि तलितलि मंडाविय॥२३॥
सोवनथंभे पूतली ए आपण जोअन्ती,
निरुवम रूविहि आपणइ ए तिहुयण मोहन्ती,
हीरे माणिक्य चूनडी ए पाथरखंड जडिया,
निम्मल कंती बिंकरासि अइ निउणे घडिया॥२४॥
मंतिय मोकलि देसि देसि बहु संघ मेलावइ,
घामी बहु भासीस दिइं, राउ जात चलावइ,
देसि-विदेसह मिलिय संघ, पहुतउ गूजरात,
बाहड मंत्री वीनवइ ए, सुणि स्वामिय वात॥२५॥
चउरा गूडर संघ तणा, नवि लाभइ पार,
चालि न नरवर सुरट्ठ भणी, म न लाइ सि वार,
दीधउं संघपति तीरथ भणी पहिलउं पीआणउं,
भोली बुद्धिहि आपणिए हुं किंपि वक्खाणउं?॥२६॥
॥वस्तु॥
बहूय देसह बहूय देसह संघ मेलेवि,
जिणभत्तिहिं एगमणि भूमिनाह सेत्रुंजि वच्चइ,
गाइं वाइं रूलिय भरी, संघलोक आणंदि नच्चइ,
ठामि ठागि वघाविइं हिव हुइं मंगल चारू,
अरथहिं वरसइं मेह जिम दानि मानि सुविचारू॥२७॥
॥रोला॥
सूरिराय सिरि हेमसूरि जिण धम्मधुरीणा,
समणा समणी सहससंख, मनि समरसि लीणा,
मिलिया सावतणा साष, धनि धनद समाणा,
सावीय वहती सीसकमलि गुरु-गुरुणी आणा॥२८॥
मेरी मूंगल ढोल घणा घमघमइं नीसाणा,
खेला नाचइं रंग भरे नवनवा सुजाणा,
धामिणि तरुणि दिइं रासु करि सग्रह आवी,
मधुरी वाणिहि भणइं भास किवि कंन सुहावी॥२९॥
बन्दी जयजयकार करइं कइ दीहर सादि,
गायइं गायण सत्त सरे कवि किन्नर आदि,
चालीय गयघड माल्हती ए झरती मद वारि,
खोणी खणंता तुरय लाष, करहा सइं च्यारि॥३०॥
राउत पायक राजलोक अनइ मागणहार,
संख विवज्जिय मिलिय लोक, कोइ जाणइ सार?
किं अह चालिउ भरत राउ किं सगरनरिंदो?
राया संपइ दसनभइ? किं कन्ह गोविंदो?॥३१॥
किं वा दीसइ नलनरिंदु कि देवह राउ?
भ्रंति उपज्जइ जोयतां ए नरवइ समदाउ,
संघपति करतउ गामिगामि जिण पूज अवारी,
पहुतउ सेत्रुजि, दिह दाण, रिद्धि गणइ असारी॥३२॥
दोषी हरषी संघवी ए रिसहेसरु सामी,
बन्दइ-पूजइ थुणइ भावि, मिलिया सवि धामो,
मंडिय रेवइमंडणउ जायवकुलसारो,
सीलिहिं सुन्दर, नाणवन्तुं सिरि नेमिकुमारो॥३३॥
संघसहित पहुपूज करी राउ दाणु दियन्तो,
वाजत गाजत चालियउ हरसिहि उल्हसन्तो,
धीरू गुहारिय वउणथली, मंगलपुरि पासो,
दीव, अजाहरि, कोडिनारि, पाटणि जिणु पासो॥३४॥
॥वस्तु॥
चडिय भूपति चडिय भूपति नाहु सेत्रुजि,
रिसहेसर पणमीयइ नरय तिरिय जो दुक्ख वारइ,
तह उज्जिलि नेमि जिणु काम कोह तिहिं स्वामि वारइ,
मंगलि पाटणि वउणथलि, दीवि अजाहरि देव,
कोडीयनारि जुहारि करि, पाटणि पहतउ हेव॥३५॥
भणइ कुमरड भणइ कुमरड, रिसह अवधारि,
करि जोडी हूं वीनवउ, सामि पासि हूं काइ न मागउं,
जिहां कुले तिहां नवि उलखिउ तिहां चकवइ म देउ,
सिरि सित्रुजइ गिरिसिहरि वर पंषीउ करेइ॥३६॥
॥रोला॥
सांनिधि सासणदेवि तणइ संधि कीधी जात,
पाटणि आवी नारि करइ घरि घरि इम वात,
कीधी जंपुण जात अम्हे एहु सामि पसाउ,
प्रतपउ कोडि दीवालियहं हेमसूरि सिउं राउ॥३७॥
कासी कोसल मगध देस कोसंबी वच्छा,
मरहठ मालव लाडदेस सोरीपुर कच्छा,
सिन्धु सवालष कासमीर कुरु कन्ति सइंभरि,
कान्हडदेस कान्हडिय भणइ, जाणिय तालंधरि॥३८॥
॥वस्तु॥
मारि वारीय मारी वारीय देस अड्ढारि,
देस विदेसह मेलि करि भविय लोक जिणि जत्त कारिय,
चऊदसंह चालीसहं राय बिहार किय रिद्धि सारिय,
मोगड मूंकी जण हिव जगि लीधउ जसवाउ,
बूउ न होसिइं चिहु युगे कुमरड सरिसउ राउ॥३९॥
॥रोला॥
त्रिहु भुवणे जसु कीत्ति लईइणि गूजरराइं,
कृतयुग कय अवतारि नेव गंजइ कलिवाइं,
सहिय विभावठि कम्मदोसि जिम बंभ चकीसरि,
देवभूमि गिइं सिद्धचक्क जयसिंह नरीसरि॥४०॥
चुलिक्यवंसी तिहुणपाल-कुलअंबर-भाणू,
विक्कम वच्छरि वरतत ए एगार नवाणूं,
पाटि बइठउ कुमारपालु बलि, भीमसमाणउ,
मंडइ रणरंगइ जासु तणइ कोइ राउ न राणउ॥४१॥
मेरु ठामह न चलइ जाव, जां चन्द-दिवायर,
सेषनागुजां धरइ भूमि जां सातइं सायर,
धम्मह बिसउ जां जगहमाहि, धूय निश्चल होए,
कुमरउ रायहं तणउ रासु तां नन्दउ लोए॥४२॥
सूरीसर सिरि सोमतिलय गुरू पायपसाया,
बुह देवप्पह गणिवरेण चिर नन्दउ राया,
पढइ गुणइ जे सुणइ रासु जणा हरषिइं लेई,
सविहु दुरियहं करइं छेह सिवपुर पामेई॥४३॥
॥ इति कुमारपालरास समाप्तः ॥
संवत १५५९ वर्ष चैत्र वदि ३ शुक्रे भुवनवल्लभगणि लषितं।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 135)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : देवप्रभ
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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