पंचपंडव चरित रासु (ठवणि ५)
panchpanDaw charit rasu (thawani ५)
पंडु नरेसरी सइंवरि जाइ हथिणाउरपुर संचरुए
राइं दले सरिसा कूंयर लेउ तारे सुंजिम चांदुलउ ए॥
वाजीय त्रंबक गुहिर नीसाण दिणयरो रेणिहिं छाईउ ए
पहूतउ जाणीउ पंडु नरिंदु द्रुपदु पहूचए सामहो ए॥
तलीया तोरण वंदरवाल नयरु उलोचिहिं छाईउं ए।
मणिमय पूतली सोवनथंभ मोतीय चउक पूराविया ए॥
कंकूय चंदणि छडउ दिवारि घरि घरि तोरण ऊभीयां ए
नयरि पइसारउ पंडु नरिद किरि अमराउरि अवतरी ए॥
पोलि पहूतउ पंडु तेजि तरणि पयंडु
सीसि चमर बंबाल अनु कंठि कुसुमह माल॥
अनु कठि कुसुमह माल किरि सुं मयणि आपणि आवीइ
कोइ इंदु चंदु नरिंदु सइंवरि पहुतु इम संभावीयइ॥
चंडीउ चंचलि नयणि निरखइं वयणु बोलइ सउं सही
‘पंच पंडव सहितु पहूतु तउ पंडु नरवरु हुइ सही'॥
मिलिया सुरवए कोडि तेत्रीस गयणे दुंदुहि द्रहद्रहीय
मेडे बइठला रायकूंयार आवए कूंयरि द्रूपदीय
सीसि कचुंवरि कुसुमह खूंपु कानि कनेउर झलहलइं ए
नयण सलूणीय काजलरेह तिलउ कसत्तूरी यम णिधडीय
करयले कंकण मणि झमकारु जादर फालीय पहिरण ए
अहर तंबोलीय द्रू पसी बाल पाए नेउर रुणझुणइं ए
भाईय वयणिहि राधावेधु नरवर साधइं सवि भला ए
कुणिहि न साधीउ पंडु आएसि अरजुनु ऊठइ नरनीउ ए
‘अति धणुहु जूनु एह तूय सामि सबलुं देहु’
इम भणी रहिउं भीमु ‘सो धनुषु नामइ कीमु'
सो धनुषु नामइ कीमु काटकि धरणि ध्रासकि धडहडी
बंभंड खंड विखंड थाइ कि सग्गि सयल बि रडवडी
झलहलीय सायर सत्त सुरगिरि शृंगु शृंगि खडखडी
खणु एकु असरणु हूउं तिहूयणु राय सयल धरहडी
एतइं हूयउ जयजयकारु सुर पन्नग सवि हरखीया ए
धनु धनु रायह द्रुपदधीय जीण असंभम वर वरिया ए
धनु धनु राणीय कुंतादेवि जसु कूहिहिं ए ऊपना ए
पंचम गति रहइं अवतर्या पंच पंचबाणं जिसा जगि हूया ए
पांचइ गाईय सुर सुरलोकि सुर वए सिरु धूणाविया ए
महीयले महिलीय करइं विचारु “कवणु कीउ तपु द्रु पदीय
कोइ न त्रिहू जगि हूईय नारि हिव पछी कोइ न होइसि ए
एक महेलीय पंच भतार सतीय सिरोमणि गाई ए॥
राधावेधु सु अरजुनि साधिउ मन चींतिउ वरु लाडीय लाधउ
जां मेम्हि गलि अरजुन माल दीसइ पांचह, गलि समकाल
राइ, युधिष्ठिर मनि लाजीजइ तिणि खणि चारणि मुनि बोलीजइ
“निसुणउ लाडीय तपह प्रमाणुं पुरविलइ भवि कियउं नियाणुं
भवि पहिलेरइ बंभणि हूंती कडुउं तूंबु मुणिवर दिंती
नरग सही वलि साहूणि हुई पांचह पुरिस प नियाणु धरेई
एहू न कोईय करउ विचार द्रूपदराणीयपंच भतार”
साहू कही नई गयणि पहूतउ पंडु नराहिवु हुयउ सयंतउ
अइहवि दीजइं मंगल चार जगि सचराचर जयजयकार
लाडीय कोटं कुसुमह माल लाडइय लोचन अति अणीयाला
लाडीय नयणे काजलरेह सहजिहिं लाडण सोवनदेह
कुंती मद्रीय माथइ मउड धनु धनु पंडव द्रूपदि जोड
पंचइ पंडव ब ठा चउरी नर व आसातरुयरु मउरी
॥वस्तु॥
पंच पंडव पंच पंडव देवि परिणेवि
सउं परिवारिहिं सुं दलिहिं हस्तिनागपुरि नगरि आवइं
अन्नदिवसि रिषि नारदह नारि कज्जि आदेसु पामई
समयधम्मु जो लंघिसिइ तीण पुरषि वनवासि
बार वरिस वसिवुं अवसि अहनिसि तीरथवासि॥
सच्च कज्जिहिं सच्च कज्जिहिं अन्न दीहंमि
उल्लंघिउ गुर वयणु इंदपुत्तु वनवासि चल्लई
गिरि वेयड्ढह तलि गयऊ पणमिउ नामि मल्हारु
निव मणि चूडह राजु दिइ पहिलउ उपकारु
बार वरिसह बार वरि सह चडिउ विमाणि
अट्ठावयपमुह सवि नमीय तित्थ जां घरि पहुच्चई
मणिचूडह मित्तह भयणि राउ एकु परिहरीउ वच्चई
गहीय पभावइ रिउ हणिउ मंजिउमारग कूडु
धरि पहूत्तउ बेउ मित्त लेउ हेमंगडू मणिचूडू॥
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 104)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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