भरतेश्वर बाहुबली रास (ठवणि १३)
bharteshwar bahubli ras (thawani १३)
हिवं चउपइ
चन्द्र चूड विज्जाहर राउ, तिणि वातइं मनि विहीय विसाउ
हा कुल मंडण हा कुलवीर, हा समरंगणि साहस धीर
कहिइ कहि नइं किसिउं घणु, कुल न लजाविउं तइं आपणउं
तइं पुण भरह भलाविउ आप, भलु भणाविउ तिहूयणि बापु
सुजि बोलइ बाहूबलि पासि, देव म दोहिलुंईं हीइ विमांसि
कहि किण ऊपरि कीजइ रोसु, एहिजि देवहं दीजइ दोसु
सामीय विसमु करम विपाउ, कोइ न छूटइ रंक न राउ
कोई न भांजइ लिहिया लीह, पामइ अधिक न ओछा दीह
भंजउं भूयबलि भरह नरिंद, मइं सिउं रणि न रहइ सुरिंद
इम भणि बर वीय बावन वीर, सेलइ समहरि साहस धीर
धसमस धीर धसइं धडहडइं, गाजइ गजदलि गिरि गडयडइं
जसु भुइ भड हड हडइ भडक्क, दल दड वडइ जि चंड चडक्क
मारइ दारइ खल दल खणइ, हेड हयोणि हयदल हणइ
अनल वेग कुण कुखइं अछइं, इम पचारीय पाडइ पछइ
नरू निरूवइ नरनरइ निनादि, वीर विणासइ वादि विवादि
तिन्नि मास एकल्लउ भिडइ, तउ पुण पुरउं चक्कह चडइ
चऊद कोडि विद्याधर सांमि, तउ झूरह रतनारी नामि
दल दंदोलिउं दउढ वरीस, तउ चक्किइं तसु छेदीय सीस
रतन चूड विद्याधर धसइ, गंजइ गयघड हियडइ हंसइ
पवन जय भड भरहु नरिंद, सु जि संहारीय हसइं सुरिंद
बाहुलीक भरहेसर तणु, भड भांजणीय भीडीउ घणु
सुरसारी बाहुबलि जाउ, भडिउ तेण तहि फेडीय ठाउ
अमित केत विद्याधर सार, जस पामीय न पौरुष पार
चल्लि उ चक्रधर वाजइ अगि, चूरिउ चक्रिहि चडिउ चउरंगि
समर बंध अनइ वीरह बंध, मिलीउ समहरि विहुं सिउं बंध
सात मास रहीया रणि बेउ, गई गहगहीया अपछरा लेउ
सिर ताली दुरी ताली नामि, भिडइ महाभड बेउ संग्रामि
आव्या बरवहं बाथोबाथि, परभवि पुहता सरसा साथि
महेन्द्र चूड रथचूड नरिंद, झूझइं हडहूड हसइं सुरिंद
हाकइं तकइ तुलपइं तुलपइ आठि मासि जई जिमपुरि मिलइं
दंड लेई धसीउ युरदादि, भरतपूत नरनरइ निनादि
गंजीउ बलि बाहुबलि तणउ, वंस मल्हाविउ तीणि आपणु
सिहरथ उठीउ हाकंत, अमित गति झंपिउ आवंत
तिन्निमास धड धूजिउं जास, भरह राउ मनि वसिउ वासु
अमित तेज प्रतपइ तहिं तेजिं, सिउं सारगिइं मिलिउ हेजि
धाइं धीर हणइं वे बाणि, एक मास निवड्या नीयाणि
कुंडरीक भरहेसर जाउ, लस भडत न पाछउ पाउ
द्रठदीय दल बाहुबलि राय, तउ पय पंकइ प्रणमीय तांउ
सूरिजसोम समर हाकंत, मिलिया तालि तोमर ताकंत
पांच बरिस भरभोलीय घाइ, नीय नीय ठामि लिवारिआ राइ।।१७२।।
इकि चुरइं इकि चंपइं पाय, एकि डारइं एकि मारइं घाइ
झल झलन्त झूझइ सेयंस, धनु धनु रिसहेसरनुं वस
सकमारी भरहेसर जाउ, रण रसि रोपइ पहिलउ पाउ
गिणइ न गांठइ गजदल हणइ, धणरसि धीर धणावइ धणइ
बीस कोडि विद्याधर मिली, ऊठिउ सुगति नाम किलगिली
शिव नंदनी सिउं मिलीउ तालि, बासठि दिवस बिहुं जमजालि
कोपि चडिउ चल्लिउ चक्रपाणि, मारउं वयरी वाण विनाणि
मंडी रहिउ बाहुबलि राउ, भंजउं भणइ भरह भडिवाउ।।१७६।।
बिहुं दलि वाजि रणि काहली, खेलदल खोणि खे खल भली।।१७७।।
उडोय खेह न सूझइ सूर, नवि जाणि सवार असूर
पडइं सुहड धड धायइं धसी, हणइं हणोहणि हाकइं हसी।।१७८।।
गडयड गघघड ढींचा ढलइं, सूना समा तुरंग मग तुलइं
वाजइं धणुहीं तणां धोंकार, भाजइं भिडत न भेडिगार।।१७९।।
वहइं रूहिर नइ सिखर तरइ, री री या रट राषस करइं
हयदल हाकइ भरह नरिंद, तु सोहसु लहइ सग्गि सुरिंद।।१८०।।
भरह जाउ सरभु संग्रामि, गाजइ गजदंल आगलि सामि
तेर दिवस भड पडिउ धाइ, धूणि सीस बाहूबलि राइ।।१८१।।
तींह प्रति जंपइ सुरवर सार, देखिं एवडु भड संहार
कांइ मरावउ तम्हि इम जीव, पडसिउ नरकि करंता रीव।।१८२।।
गज ऊतारीय बंधव बेउ, मानिउं वयण सुरिंदह तेउ
पइसइं मालाखाडइ वीर, गिरिवरं पाहिइं सबल शरीर
बचन झूझि भड भरहु नजिणइ, दृष्टि झुझि हारिउं कुण अणइ
दंडि झूझि झड झंपीय पडइ, बाहुपासि पडिउ तडफडइ।।१८४।।
गूडा समु धरणि मझारि, गिउ बाहूबल मुष्टि प्रहार
भरह सबल तइं तीणइं धाइ, कंठ संगाणउ भूमिहिं जाइ।।१८५।।
कुपीउ भरह छ खण्डह धणी, चक्र पठावइ भाइ भणी
पाखलि फिरी सु वलीउं जाम, करि बाहूबलि धरिउं ताम।।१८६।।
बोलइ बाहूबलि वलवंत, लोह खंडि तउ गरवीउ हंत
चक्र सरीसउ चुनउ करउं, सयलहं गोत्रह कुल संहरउं।।१८७।।
तु भरहेसर चिंतइ चींति, मइं पुण लोपीय भाईय भीत्ति
जाणउं चक्र न गोत्री हणइ, माम महारी हिव कुण गिणइ।।१८८।।
तु बोलइ बाहूबलि राय (उ), भाईय मनिम म धरसि विसाउ
तइं जीतउं मइं हारिउं भाइ, अम्ह शरण रिसहेसर पाय।।१८९।।
- पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 17)
- संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
- रचनाकार : शालिभद्र सूरि
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
- संस्करण : 1976
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